आईआईटी खड़गपुर द्वारा आयोजित भारतीय ज्ञान प्रणाली पर आधारित ‘भारत तीर्थ’ एक अंतर्राष्ट्रीय वेबीनार
दिनांक: 06 नवम्बर, 2020
माननीय शिक्षा मंत्री, डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’
‘भारत तीर्थ’ को अभी हम लोगों ने देखा है और सच में आज मैं बहुत अभिभूत हूं कि आईआईटी खड़गपुर ने देश की आत्मा को पहचानने की कोशिश की है। विश्व गुरू भारत के उस दर्द को महसूस किया है और आज यह बड़ा कदम उठाया है।
मुझे कुछ विशेष नहीं कहना है क्योंकि मेरे से पूर्व सभी वक्ताओं ने और आपकी जो दो-तीन मिनट की जो प्रस्तुती है वह पूरा व्याख्यान स्वयं ही करती है मेरे भारत का, मेरे ज्ञान, विज्ञान, विचार, दर्शन का। मंत्रालयमें मेरे अनन्य सहयोगी और जिन्होंने इस नई शिक्षा नीति में रात-दिन खप करके इसकी परिणति तक पहुंचाया है उन्होंने भी बहुत सारी बातें यहां पर कही हैं मेरे सचिव, अमित खरे जो इस शिक्षा नीति में चौबिसों घंटे इसकी परिणति तक पहुंचानेके लिए रात-दिन यत्न किया वो भी हमसे जुड़े हुए हैं और तिवारी जी मेरा मन कहता है कि आपकी जो यह पहल है आज का यह बेविनार सामान्य वेबिनार नहीं है। यह भारत के मूल्यों की, ज्ञान की, विज्ञान की, उस विश्वगुरू भारत की यह आत्मा है।आपकी टीम में विजनरी लोग हैं और क्यों न हों क्योंकि देश की आजादी के साथ इस संस्थानकाजन्म हुआ है। देश ने तमाम सैकड़ों वर्षों तक की गुलामी के थपेड़ों को झेला है। उस दर्द को हम भूल नहीं सकते हैं। सब कुछ होते हुए भी इस देश में ना प्रतिभा की कमी थी, न संघर्ष की कमी थी,न विजन की कमी थी, न मिशन की कमी थी, न ज्ञान की कमी थी, न विज्ञान की कमी थी। सभी कुछ तो था फिर भी हम गुलाम रहे और हमारे उस ज्ञान विज्ञान को किस तरीके से तहस-नहस करने की कोशिशें हुई हैं यह जरूर मेरी पीढ़ीकोजाननेकी जरूरतहै क्योंकि दुर्भाग्य से देश के आजादी के बाद हमने कभी अपने भारत को जानने की कोशिश ही नहीं की। हम दौड़ में लग गए।
हमारी दौड़ एक अच्छे पैकेज तक क्यों हो गई? हमने न तो अपने को जाना तथा न ही अपने अतीत को महसूस किया और न ही पीछे को और महसूस किया न पीछे को अपने से जोड़ करके आगे बढ़ाने की कोशिश की।आप पीछे क्या हुआ उस पर न जाएं तो आज जो हो रहा है वो आशा भरा दिन है। बहुत दूर तक जाने वाला विजन है, पूरी दुनिया को एक नई ऊर्जा देने वाला कदम है और इसीलिए मैं आपको शुभकामनादेना चाहता हूं। प्रो.तिवारी जीसोचते तो बहुत सारे लोग हैं लेकिन उसको सामूहिक रूप सेअपनी टीम के साथ आगे बढ़ाने का माद्दाकुछेक लोगों में हीहोता है।
हमारे अतुल भाई जो शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के राष्ट्रीय मंत्री हैं और बहुत लंबे समय तक से जो शिक्षा के क्षेत्र में अपने जीवन को देरहे हैं, उन्होंने बहुत महत्वपूर्ण विषयों पर हमारा ध्यान केन्द्रित किया है। आपके प्रो.एस.के.भट्टाचार्य जो उप-निदेशकहैं, वे भीबहुतशालीन हैं हमने इनको भी बहुत निकटता से देखा है और मुझे अच्छा लगा जब-जब मिलते हैं और बोलते हैं तो इनकी शालीनता उसमें झलकती है और आपके जो प्रो. सोमेश जी हैं उनको भी मैं धन्यवाद देना चाहता हूं।
हां, यह बात सही है कि जब मैं आया था खड़गपुर में और उसके बाद जब निदेशक के कमरे में पहुँचा था तो प्रो. जॉयसेन ने अपनी वास्तु कला के दो पुस्तकों को मुझे भेंट किया था और मुझे उनके शब्द याद है कि उन्होंने कहा कि आप दस-बीस साल पहले क्यों नहीं आ गए उस समय अनुराधा चौधरी जो संस्कृत की आपकी प्रोफेसर हैं वो भी थी और इन दोनों से मैंने विनती की थी। जब मैंने डॉ.सेन के दोनों ग्रंथों को देखा था तो मेरी जो आशाएं थीं वो बहुत आगे बढी और उसी दिन मुझे लगा कि जो मैं सोच रहा था वो हो रहा है,जो मैं करना चाहता था, उसकी दिशाएँ बनी हुई है। मेरे देश के प्रधानमंत्री जी चाहते हैं कि मेरा देश 21वीं शताब्दी का स्वर्णिम भारत हो जो ज्ञान और विज्ञान तथाअनुसंधान और नवाचार के शीर्ष पर हो और जो भारत केन्द्रित हो जो भारत की उस ज्ञान, विज्ञान, अनुसंधान की परम्परा को आगे बढ़ाने वाला हो। जोभारत स्वच्छ भारत, स्वस्थ भारत, सशक्त भारत, समर्थ भारत,आत्मनिर्भर भारत और श्रेष्ठ भारत हो उस श्रेष्ठ भारत की आधारशिला इस संस्थान में कहीं मुझे दिखतीहै।
उसके बाद नई शिक्षा नीति आई और नई शिक्षा नीति में जो लोग इस मिशन में जुटे हुए थे, जो छटपटा रहे थे जो इस बात को जानते थे, जानते हैं और जिन्होंने अपने जीवन का कण-कण खपा कर के उस भारत की ज्ञान विज्ञानमयी और जीवनमयी उन सब विधाओं को आगे बढ़ाने की दिशा में अपना संकल्प लिया है उन लोगों की भावना को इसमें समाहित किया गया और यह डेढ़ सौ वर्षों के बाद लार्ड मैकाले के जाने के बाद क्योंकि लार्ड मैकाले सेयदि पहले के हमभारत को देखें और लार्ड मैकाले के बाद किस तरीके से मेरे देश के उन विचारों को और उस विजन को तथा उस ज्ञान को एवंविज्ञान को और तकनीकी को किस सीमा तक कुचलकरके और एकतरफ राख के ढेर में लाकर के खड़ा कर दिया गया।
उसमें हमें पीछे जाने की जरूरत नहींलेकिन उसको याद करने की जरूरत है औरआगे बढ़ने के लिए काम करना है। क्या पूरी दुनिया भूल जाएगी कि शल्य चिकित्सा का जनक सुश्रुत इस देश में पैदा हुआ और उन्होंने क्या-क्या नहीं किया?क्या दुनिया इस बात को भूल जाएगी कि आयुर्वेद का जनक चरक ऋषि इस देश में पैदा हुआ?आजपूरी दुनिया महसूस कर रही है कि यदि जीवन को बचाना है तो आयुर्वेद का रास्ता हमको अपनाना है और अभीअतुल ने कहा कि पहले ही जो व्यवस्थाएं थी वह हमारे विज्ञान में थी, हमारे शास्त्रों में थी,हमारे ज्ञान में थी और इसलिए आयुर्वेद मेंकहा गया है किचिकित्सा का विषय तो बाद में आएगा लेकिन यदि आदमी के स्वास्थ्य की पहले ही रक्षा हो तो चिकित्सा की तो जरूरत ही नहीं है। मुझे अच्छा लगा कि डॉ. तिवारी ने हमारे भास्कराचार्य जी को किस सीमा तक पढ़ा है और अपनी बेटी से किस तरीके से भास्कराचार्यने संवाद किया और उस संवाद को उन्होंने ‘सिद्धांत शिरोमणि’ 11वीं शताब्दी में लिखा जिसमें छठवें श्लोक में यहां तक लिख दिया कि धरती पर किस तरीके से गुरुत्वाकर्षण है।
यह उस जमाने में लिखा हुआ आज भी ग्रंथ हैहमारे पास।क्या बौधायन को हम भूल जाएंगे? क्या भरत जो नाट्यशास्त्र का जन्मदाता है उनकोहम भूल जाएंगे? क्या ऋषि कणाद जिसने अणु और परमाणु का विश्लेषण किया, क्या उस ऋषि कणाद को कोई भूल सकता है?क्या शून्य को देने वाले आर्यभट को पूरी दुनिया भूल सकती है? जब तक्षशिला, नालंदा, विक्रमशिला जैसे तमाम दर्जनों विश्वविद्यालय जब इस देश के अंदर थे तब दुनिया में कहांविश्वविद्यालय थे? कृषि के क्षेत्र में पाराशर जी काजोयोगदान है और जो उनका चिंतन था वो आज भी उस ग्रंथ को देखा जा सकता है। मैं यह समझता हूं कि कौटिल्य के अर्थशास्त्र से बड़ा अर्थशास्त्र का कौन-सा ग्रन्थ है? भाषा विज्ञान में पाणिनी से बड़ा कौन भाषा वैज्ञानिक हो गया? लेकिन हमने पीछे का दर्शन नहीं कराया तो जब हम इस बात को कहते हैं तो लोग हंसते हैं, जिनको इस दर्शन का पता ही नहीं।
इसलिए उनको इस देश की भव्यता का पता नहीं,इसविश्वगुरु भारत का मालूम नहीं है।आज पहली तो चुनौती हमारे सामने यह है कि हमउस भारत का दर्शन कराएं अपनी पीढ़ी को अपने युवाओं और उससे पहले जो हम लोग हैं जो योद्धा के रूप में पहली पंक्ति में खड़े हो करके देश के बारे में विचार करते हैं, शिक्षा के बारे में विचार करते हैं, देश की उन्नति तथा प्रगति और उसको उच्च शिखर तक ले जाने का मिशन ले करके चल रहे हैं, सबसे पहले तो हमको देश की आत्मा को आत्मसात करना पड़ेगा।
मैं सोचता हूं कि योग के बारे में जैसे हमारे माननीय मंत्री जी ने कहा कि योग के पीछे आज पूरी दुनिया खड़ी है।
हमारा विचार कभी कमजोर नहीं रहा है। हमने एक तरफ‘अयं निजः परो वेति गणना लघुचेतसाम्। उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम्॥’ कहा अर्थात्पूरी दुनिया मेरा कुटुम्ब है, मेरा परिवार है। हमने मार्किट नहीं माना इस दुनिया को और हमारे विचार और दुनिया के लोगों के विचार में जमीन आसमान का अंतर है। यह दुनिया पूरे विश्व को एक ग्लोबल मार्केट मानती है और हमने पूरे विश्व को अपना परिवार माना है क्योंकि सबको पता है कि मार्किट में तो व्यापार होगा लेकिन परिवार में प्यार भी होगा,यह हमारी मान्यता रही है‘सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया’ कि जब तक कुटुम्ब का एक भी व्यक्तिएक भी प्राणी जब तक दु:खी होगा।तब तक मैं सुख का अहसास नहीं कर सकता।
आज मेरे साथ देश और विदेश से आपके पूर्व-छात्र जुड़े हैं तथा मुझे इस बात का गौरव होता है कि आज खड़गपुर से निकलने वाला छात्र वो चाहे गूगल हो और चाहे माइक्रोसॉफ्ट होतमाम क्षेत्रोंमें हमारे आईआईटीसे निकलने वाले छात्र दुनिया में तकनीकी के क्षेत्र में और विज्ञान के क्षेत्र में तथा अनुसंधान के क्षेत्र में पूरी दुनिया का मार्गदर्शन कर रहे हैं और इसलिए यहवोभारत है जो हमारी रगों में बसता है क्योंकि हमपूरी दुनिया के लिए जीते हैं। हमने‘असतो मां सद्गमया’ की बात की है हजारों साल पहले। चाहे गांधी जी कोदेंखे जब उन्होंने कहा कि ‘असतो मा सद्गमया’ की बात हुई और ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’ अर्थात् हम अंधेरे को चीरकर प्रकाश जलाएंगे। हमें चाहे तिल-तिल क्यों न खपनापड़े।
इसलिए जो हमारा जीवन दर्शन हैं जहां ज्ञान, विज्ञान, अनुसंधान में वह पूरी दुनिया में श्रेष्ठ हैं। हमारी गीता को दुनिया क्यों देख रही है और हर देश गीता को ले के उसके पीछे पागल है।हमारीगीता काजो हमारे कृष्ण कादर्शन है उसमें कहा गया है कि यह शरीर नश्वर है लेकिन आत्मा अजर-अमर है।जैसे पुराने कपड़ों को छोड़ देते हैं और नए कपड़ों को पहनते है उसी तरह यह शरीर आपको कभी भी छोड़ सकता है।
अभी मैं इधर बैठा हूं अगला चरण मेरा नहीं है। हां यहशरीर कभी भी छोड़ सकता है आपको, लेकिन जो आत्मा है वो अजर अमर है। संसार में आतंक है, चाहे भुखमरी है, चाहे बेरोजगारी है और चाहे चरित्रहीनता है क्योंकि हमने उन चीजों को जीवन दर्शन नहींदिया।हमारे वेद,पुराण,उपनिषदों ने कहा है कि उतना ही ग्रहण करो जितनी आपको जरूरत है। इन ग्रंथों नेसंग्रह करने वाले आदमी को खराब माना है।जिसको जितनी जरूरत है, वह उतना ही उपयोग करेगा और सब मिल बांटकर खायेंगे। हमने कहा कि हम सब साथ खाएंगे और साथ चलेंगे तथामिलकर रहेंगे। हमारा पुरुषार्थ मिलकर होगा, यह हमारी एकता है। हमने कभी भी इस दिशा में सोचा ही नहीं।
मैं पीछे के समय में जब इंडोनेशिया गया था वहां रविन्द्रनाथ टैगोर को कितना मानते हैं और वहां के मंत्री जी ने कहा कि जहां गुरूदेव नेशांतिनिकेतन की स्थापना की है वहांहमको बुलाइए,हमकुछ करना चाहते हैं।जब दुनिया को सत्य, प्रेम और अहिंसा की बात आती है तो हम तो शुरू से ही उसके पुजारी रहे हैं और इसलिए मैं यह कहना चाहता हूं कि यह सामान्य नहीं है। यह विचार केवल एक क्लास में पूरा नहीं होगा तथा यह केवल एक सेमिनार में पूरा नहीं होगा क्योंकियहपूरी दुनिया के जीवन को बचाने काअभियान होगा।
पूरी दुनिया को सुख-शांति और समृद्धि का यह महत्वपूर्ण रास्ता होगा।इसी रास्ते से पूरी दुनिया को सुख शांति और समृद्धि का लक्ष्य मिलेगा।मुझे भरोसा है कि जिस चीज के लिए आज हम लोग यहां पर बैठे हैं निश्चित रूप में हम उसको आगे बढ़ाएंगे। चाहे वो हमारे श्रीनिवास रामानुजन हों, चाहे भारद्वाज हों और चाहे रसायनशास्त्री नागार्जुन हों आखिर क्यों नहीं बात होगी इन पर। आज जर्मनी 14 संस्कृत विश्वविद्यालयों को बना कर के भारत के ग्रंथों पर शोध एवं अनुसंधान करना चाहता है। अब बदलाव आ गया श्री नरेन्द्र मोदी जी की अगुवाई में देश ताकत के साथ अपनी बातों को साबित करने के लिए आगे बढ़ रहा है। हमारा सौभाग्य है कि श्रीनरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में विश्व फलक पर आतंकवाद के खिलाफ पूरी दुनिया को एक मंच पर एकत्रित हो रहा है।
चाहे वैकल्पिक ऊर्जा का विषय रहा हो, और चाहे पर्यावरण का विषय रहा हो या हर दिशा में पूरी दुनिया की लीडरशिपभारत ने लेना शुरू कर दिया है। हमारीनई शिक्षा नीति भारत केन्द्रित है तथा यहपूरी दुनिया की मानवता के कल्याण के लिए है। नई शिक्षा नीति में हम जो तीन वर्ष का बच्चा है, उसकी भी चिंता कर रहे हैं। तीन वर्ष से ही बच्चे की शिक्षा हम उसकी मातृभाषा में करेंगे। अपनी मातृभाषा में जो बच्चे की अभिव्यक्ति होगी औरवो अपनी अभिव्यक्तियों को बाहर निकालेगा। यदि कोई राज्य उच्च शिक्षा तक अपनी मातृभाषा में करना चाहता है तो वह कर सकता है। प्रधानमंत्रीजी ने कुछ दिन पहले बोला है किइंजीनियरिंगऔर डॉक्टरीकी भी जो परीक्षा होगी वो विद्यार्थी अपनी मातृभाषा में दे सकता है। हमने स्पष्ट कहा है कि किसी पर भी कोई भाषा थोपी नहीं जाएगी।
मैंने लोगों से भी आग्रह किया है कि भाषा के नाम पर राजनीति न करें। हमने कहाहै कि मातृभाषा के लिए कौन राजनैतिक व्यक्ति होगा, कौन ब्यूरोक्रेट होगा, कौन समाज का व्यक्ति होगा जो अपने बच्चों को मातृभाषा नहीं सिखाना चाहता है। इसलिए जब यूनेस्को ने यह कहा है और देश के मनोवैज्ञानिकों ने कहाहै कि मातृभाषा में प्रारंभिक शिक्षा से ही बच्चे का भरपूर विकास होगा।क्या जो देशनीचे से लेकर उच्च शिक्षा तकअपनी मातृभाषा में शिक्षा देते हैं वो किसी से पीछे हैं, क्या जापान,फ्रांस, इंग्लैंड और दुनिया के तमाम जो विकसित देश हैं वो अपनी मातृभाषा में शिक्षा देते हैं क्या वो किसी से पीछे हैं,फिर ऐसे तर्क दे करके देश को कमजोर करने की बातक्यों की जाती हैं।मुझे लगता है कि हालांकिमैं इस बात को लेकर बहुत संतुष्ट और खुश हूं कि अबलोग इस बात को लेकर जो कभी ऐसे विवाद पैदा करने की कोशिश करते थे वो भी समझे हैंमैं उनका अभिनंदन करता हूं। नई शिक्षा नीति आने से पूरे देश के अंदर एक उत्सव का वातावरण हैलेकिनक्रियान्वयन की आवश्यकता है।जैसे आज आईआईटी खड़गपुर ने एक-एक विधा को आगे बढ़ाने का बीड़ा उठाया है।
यह अच्छा है और इसी तरीके से हम लोग फ्रंट पर आकर इसको क्रियान्वयन की दिशा में उपयोग करना ही करना है। हम अपनी प्राचीन चीजें पर अनुसंधान करके अब कहीं भी दुनिया में जा सकते हैं लेकिन वे सारे ग्रंथ संस्कृत भाषा में हैं। आज दुनिया जानती है कि संस्कृतएक साइंटिफिक भाषा है और उससे बड़ी कोई साइंटिफिक भाषा है ही नहीं क्योंकिजो बोली जाती है वही उच्चरित होतीहै और वही लिखी भी जाती है और इसलिए पूरी दुनिया संस्कृत को पढ़ रही है। मैंपीछे के समय में तीन-चार साल पहले पौलेण्डकीवारसा यूनिवर्सिटी में गया था।
उन्होंने बताया कि हम तो लगभग दो सौ साल से संस्कृत को पढ़ा रहे हैं।पूरी दुनिया में लगभग ढाई सौ से भी अधिक शीर्षविश्वविद्यालय संस्कृत और हिंदी को पढ़ाते हैं। संस्कृत मेंवो ज्ञान और विज्ञान है तथाहम उसका अनुसंधान करेंगेऔर इसलिए मैं समझता हूँ आज यह बहुत अच्छा अवसर हैऔरयह भी मुझे अच्छा लगा कि आपने इसको भारत तीर्थ नाम दिया है। तीर्थ पुध्य, पावन एवं पवित्र होता है जो दूसरों के संकटों को खत्म कर दे, दूसरों के दुखों को खत्म कर दे जिसमें ताकत होती है वो तीर्थ होता है और इसलिए आपने बहुत सोच-समझ कर इसे भारत तीर्थनाम दिया है।
भारत तीर्थ जो अंतर्राष्ट्रीय वेबिनार आपने भारतीय ज्ञान परम्परा पर किया है उसके लिए मैं आपको साधुवाद देता हूंऔरयह अभियान अब रुकना नहीं चाहिए।हमारे विवेकानंद जी हमेशा कहते थे कि बढ़ोजितनीतेजी से आगे बढ़ सकते हो। उठो, जागो और तब तक नहीं रुको जब तक मंजिल प्राप्त नहीं हो जाए।हमको विवेकानन्द जी को साथ लेकर चलना पड़ेगा और मुझे खुशी है कि यहां पर अभी आपनेजर्मन के प्रसिद्व विद्वान मैक्समूलर के बारे में भी चर्चा की। मैक्समूलर कहते हैं कि यदि मुझसे पूछा जाता है कि आकाश तले कौन सा मानव मन सबसे अधिक विकसित है।
इसके कुछ मनचाहे उपहार क्या हैं। जीवन की सबसे बड़ी समस्याओं पर सबसे अधिक गहराई से किसने विचार किया है और इसके समाधान पाए हैं तो मैं कहूंगा इसका उत्तर केवल और केवल भारत है। यहजो शब्द मैंने पढ़े हैं वो मैक्समूलर के हैं। यह इस देश के किसी व्यक्ति के नहीं है और इतना ही नहीं अलबर्ट आइंस्टाइन ने भी कहा कि हम सभी भारतीयों का अभिनंदन करते हैं जिन्होंने गिनती करना सिखाया, जिसके बिना विज्ञान की कोई भी खोज संभव नही थी। यह तो पूरी दुनिया मान रही है। यदि दुनिया बोल रही है तथा मान रही है तो फिर दिक्कत क्या है।
यह जो सप्त ऋषियों ने शोध और अनुसंधान किया है, उसी को तो आगे बढाने की जरूरत है। अब वक्त आ गया है दुनिया हमारी ओर देख रही है। हमने ‘स्टडी इन इंडिया’ को ब्रांड बना दिया है।पूरी दुनिया के लोग इधर आ रहे हैं औरअभी हमारे आईआईटी में एक हजार आसियान देशों के बच्चे शोधके लिए आये हैं। हम बहुत तेजी से विश्व के फलक पर उभरते जा रहे हैं। हम दुनिया के 127 शीर्षविश्वविद्यालयों के साथशोध और अनुसंधान कर रहे हैं।
हम जहां ‘ज्ञान’ में बाहर की फैकल्टी को ला रहे हैं, वहीं अब ‘ज्ञान प्लस’ में हमारी फैकल्टी भी बाहर जाएगी। हम इस नई शिक्षा नीति के तहत कक्षा छ: से ही वोकेशनल स्ट्रीम इंटरर्नशिप के साथ ला रहे हैं। जब भी बच्चा स्कूलसे बाहर निकलेगा तो आपकी आईआईटी के पास हीरा बन करके आएगा। हमविद्यार्थी का मूल्यांकन भी अद्भुत तरीके से कर रहे हैं।अब बच्चेका 360 डिग्री होलस्टिक मूल्यांकन होगा। वह स्वयं भी अपना मूल्यांकन करेगा,उसकासाथी भी उसका मूल्यांकनकरेगा, उसका अभिभावक भी मूल्यांकन करेगा, अध्यापक भी मूल्यांकन करेगा तो वह एक योद्धा के रूप में उभरता चला जाएगा। इसलिए यह शिक्षा नीति हम आमूल चूल परिवर्तन के साथ ला रहे हैं। मुझे भरोसा है कि जिस तरीके से पूरे देश ने इस शिक्षा नीतिको स्वीकारा हैअब पूरी दुनिया में हम हीहोंगे जो आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस को स्कूली शिक्षा से लायेंगे।
यह आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और मेरे संस्कृत के ग्रंथ, मेरी तकनीकी के लोग और मेरे वैज्ञानिक जिस दिन यह सब एक जगह इकट्ठा हो जाएंगे उस दिन मेरा भारत पूरे विश्व में नंबर एक होगा। इसीलिए हमने मंत्रालय के स्तर पर भी पीछे के समय में भारतीय ज्ञान प्रकोष्ठ अलग से बनाया है जो यही समन्वय करेगा। जितने हमारे प्राचीन विद्वान और वैज्ञानिकहैंउनके ग्रंथों परजिस दिन शोध होना शुरू हो जाएगा,हालांकि हमारे पास हजारों लाखों ग्रंथ अभी नहीं मिले हैं और वे सब नष्ट कर दिए गए हैं लेकिन जो हैं उन पर तो हम शोध और अनुसंधान करके आगे बढ़ सकते हैं।
आज जर्मनी के पास हमसे ज्यादा ग्रंथ हैं हमारे। पीछे के समय में यहतय हुआ है कि उनसे हम अपने कुछग्रंथों को लें,वो अब शोध एवंअनुसंधान कर रहे हैं। इसलिए यह जो भारतीय ज्ञान प्रकोष्ठ है इसको प्रधानमंत्री जी के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार की अध्यक्षता में बनाया गया है। मुझे खुशी है कि इस संस्थान ने भी भारतीय ज्ञान परम्परा पर बहुत ही श्रेष्ठता से कार्य किया है। आपके यहां तिवारी जी, सेन साहब सभी लोग बहुत अच्छा काम कर रहे हैं।
इसलिए मैं सोचता हूं यह जो अभियान आज आपने शुरू किया है यह बहुत अच्छा अभियानहै। हम शोध और अनुसंधान की दिशा में जहां ‘नेशनल रिसर्चफाउंडेशन’ की स्थापना कर रहे हैं वहीं तकनीकी के क्षेत्र में ‘नेशनल एजुकेशन टेक्नोलॉजी फोरम’ का भी गठन कर हैं। हम लोगों ने नई शिक्षा नीति के आधार पर जो प्रशासनिक स्तर पर और जो सामान्य स्तर पर चेंज हो सकते हैं वो बहुत तेजी से कर रहे हैं। हमारे माननीय मंत्री आदरणीय संजय धोत्रे जी लगातार उसकी समीक्षा भी करते रहते हैं और बहुत तेजी से लोगों में बदलाव आ रहा है। स्कूली शिक्षा हो चाहे उच्च शिक्षा हो, अब उच्च शिक्षा में आपकोई भी विषय ले सकते हैं, इस शिक्षा नीति के अंतर्गत यदि कोई 4 वर्ष का कोर्स है और यदि कोई छात्र दो साल में परिस्थितिवशछोड़के जा रहा है तो पहले उसका पैसा एवं वर्ष दोनों खराब हो जाते थे लेकिन अब उसकोनिराश नहीं होना पड़ेगा।
यदि आप परिस्थितिवश एक वर्षमें छोड़ कर जा रहे हैं तो उसको सर्टिफिकेट देंगे,दो साल में छोड़ कर जा रहा है तो डिप्लोमा देगें, तीन साल में छोड़कर जा रहा है तो उसकोडिग्री देंगे लेकिन यदि फिर वह लौट कर अपने भविष्य को संवारना चाहता है तो फिर जहां से उसने छोड़ा था वहीं से शुरू कर सकता है। उसके लिए हम एक ऐसा क्रेडिट बैंक बनायेंगे जहां उसके सारे क्रेडिट जमा रहेंगे।हम अपना स्तर बढ़ाने के लिए बहुत तेजी से काम कर रहे हैं। हम विश्व स्तर की उन सारी चीजों को तथा उन अवस्थापना को कर रहे हैं लेकिन मुझे इस बात का दुख है कि बीच में विदेश जाने की लोगों में होड़ लग गई थी लेकिन अब मुझे इस बात की खुशी है यह होड़ खत्म हो गई है।
यह जो पैकेज की होड़थी, अब पेटेंट की होड़ बन रही है। हम पेटेंट करेंगे हर चीज को पेटेंट करेंगे तथाहमदुनिया को बताएंगे कि यह हम ही कर सकते हैं और तभी तो मेक इन इंडिया, डिजिटल इंडिया, स्टार्टअप इंडिया,स्टैंड अप इंडिया जैसी आधारशिला खड़ी होगी। मुझे भरोसा है कि यह होगा और इसलिए हमने ‘स्टडी इन इंडिया’ शुरु किया है उसके ब्रांड बनायेंगेअभीहमने ‘स्टेइन इंडिया’ कीभी बात की क्योंकि हमारे देश से 7-8 लाख छात्र प्रतिवर्ष विदेशों में पढ़ने के लिए जा रहे हैं।
हमारे देश का पैसा और प्रतिभा दोनों बाहर चली जाती हैं तो वापस वह हमारे देश में नहीं आती है। इसलिए हमने‘स्टे इन इंडिया’ किया और हमने छात्रों को भरोसा दिलाया कि हमारे आईआईटी, एनआईटी, आईएसर, केन्द्रीय विश्वविद्यालयों में योग्यता है, क्षमता है आपको बाहर जाने की जरूरत नहीं है औरअब लोगों यह की समझ में आ गया है। मुझे इस बात की खुशी है कि पीछे के समय जब हमने जेईई परीक्षाएं करवाई तो दो लाख से भी अधिक छात्रों ने जोविदेश में जा रहे थे, वे जेईई और नीट की परीक्षाओं में सम्मिलित हुए।
हम ‘स्टे इन इंडिया’ के तहत दुनिया के शीर्ष सौविश्वविद्यालयों को अपनी धरती पर आमंत्रित कर रहे हैं। आपको कहीं जाने की जरूरत नहीं है और यहां के जो शीर्ष विश्वविद्यालय हैं वे भीबाहर जा रहे हैं। यह आदान-प्रदान हम करेंगे।मुझे भरोसा है कि जिस तरीके से कोरोनाकाल में इस चुनौती का मुकाबला मेरे नौजवानों ने किया और मैं देखता था कि आईआईटी खड़गपुर के हमारे प्राध्यापकों ने और हमारे शोध छात्रों ने क्या किया। हमारे देश के प्रधानमंत्री जीबोलते हैं यदि चुनौती काडटकर मुकाबला हो तो वह अवसर में तब्दील होती है यही बातविवेकानन्द जी कहते थे और वो हम कर रहे हैं। हमारी शिक्षा है,हमारा देश है, हमारी संस्कृति है, हमारे आचार-विचार हैं,जो पूरी दुनिया में महकते हैं।
मैं हिमालय से आता हूं मैं देखता हूं कि पूरी दुनिया के लोग बद्री केदार और हरिद्वार में आते हैं। पीछे के समय में वर्ष 2010 मेंजब मैं मुख्यमंत्री था तब महाकुंभ कराया था। दुनिया के 100 से भी अधिक देशों के लोग गंगा का स्पर्श करने के लिए आए थे।हमने कहा था कि यूनान, मिस्र, रोमा, सब मिट गए जहां से अब तक मगर है बाकी नामो निशां हमारा और कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी। सब लोगों ने मिटाने की कोशिश की लेकिन कुछ तो है हमारे पास जो मिटने से भी नहीं मिटी है।
हम शोध और अनुसंधान करेंगे। मैंने इस एक-डेढ वर्ष में देखा है जब मैं अपने छात्रों के बीच जाता हूं और जब हमने स्मार्ट इंडिया हैकाथॉनकिया तो मुझे यह देखकर खुशी होतीहै किजोमेरे देश का नौजवान है,अध्यापक हैवहबहुत विजनरीहै। मुझे भरोसा है कि जो आपका यह आज अभियान शुरू हो रहा है आप इसको आगे बढ़ाएंगे। मैं बहुद गदगद हूं और आपने जिस तरीके से शुरू किया है, आप चट्टान की तरह खड़े रहिए और मैं इस अवसर पर कहता हूं कि यदि आईआईटीखड़गपुरने यह संकल्प लिया है तो निश्चित रूप में भविष्य में यह सेंटर ऑफ एक्सीलेंस फॉर इंडियन नॉलेज सिस्टम के रूप में जाना जाए इसकीमैं आज घोषणा कर रहा हूं।यह भारतीय ज्ञान परंपरा का एक उत्कृष्ट केंद्र होगा।जब भी लोग जाएंगे और कहेंगे कि मुझे भारतीय ज्ञान परंपरा के किसी उत्कृष्ट केंद्र में जाना है तो तब खड़गपुर में उसका दर्शन होगा।आज इस संकल्प के साथ बैठक शुरू हो रही है और पूरी ताकत के साथ हो रही है तो मैं समझता हूं आज इसका संकल्प लेने की जरूरत है।
आज आपने संकल्प ले लिया तो आप नई पीढ़ी को समझा सकते हैं कि हमारा विजन क्या है,हमारा मिशन क्या है, जुनून क्या है उसके साथ आगे बढ़ने की आवश्यकता है। आने वाले समय में पूरी दुनिया में भारत यंग इंडिया रहनेवाला है। भारत की जो आयु है और जो आगे युवा वर्ग कीजनसंख्या है उससे हमगौरोंदुनिया पर छाने वाले हैं, इसकी पूरी तैयारी होनी चाहिए। मैं भी आश्वस्त हूं कि जो यह नई पीढ़ी आ रही है इसमें छटपटाहट है अपने लिए भी तथा अपने देश की उन चीजों के प्रति भी।आजभारत अंगडाई ले रहा है और विश्वगुरु भारत जिसने पूरी दुनिया का मार्गदर्शन किया तथा ज्ञान, विज्ञान, अनुसंधान और नवाचार में उस विश्वगुरु भारत की उस थाती को आगे बढ़ाने के संकल्प के साथ आज हम यहां पर एकत्रित हुए हैं। हमारे चाहे वैज्ञानिक हैं,तकनीशियन हैं और चाहे वो कुलपतिगण हैं चाहे विद्वत वर्ग के लोग है, चाहे संस्कृत के क्षेत्र के लोग हैं सभी को समन्वय बनाकर काम करना है।
अभी मैं पीछे के दिनों पेरिस में गया था वहां पर वेदों पर शोध और अनुसंधान हो रहा हैं। इसका मतलब यह है कि वेद, पुराण और उपनिषदों जैसे प्राचीन ग्रंथ हैं जिनमें ज्ञान, विज्ञान तथासब कुछ समाया हुआ है,उनका लोग अध्ययन कर रहे हैं। उनकी आवश्यकता इस देश को है, दुनिया को है और आप उस परम्परा को आगे बढ़ाएंगे, ऐसा मेरा विश्वास है। एक बार फिर आपको बहुत-बहुत शुभकामनाएं देता हूं।
बहुत-बहुत धन्यवाद!
कार्यक्रम में गरिमामयी उपस्थिति:-
- डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’, माननीय शिक्षा मंत्री, भारत सरकार
- श्री संजय शामराव धोत्रे, माननीय शिक्षा राज्य मंत्री, भारत सरकार
- श्री अमित खरे, सचिव, उच्चतर शिक्षा, शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार
- प्रो. वीरेन्द्र कुमार तिवारी, निदेशक, आईआईटी खड़गपुर
- प्रो. सीमान्त भट्टाचार्य, उप-निदेशक, आईआईटी खड़गपुर
- श्री अतुल कोठारी, राष्ट्रीय सचिव, शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास
- प्रो. राज शेखर, डीन, आईआईटी खड़गपुर