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श्री अरबिंदो सोसाइटी और एचडीएफसी बैंक द्वारा आयोजित ‘शून्‍य से सशक्‍तिकरण’विषयपर राष्‍ट्रीय सम्‍मेलन  

श्री अरबिंदो सोसाइटी और एचडीएफसी बैंक द्वारा आयोजित ‘शून्‍य से सशक्‍तिकरण’विषयपर राष्‍ट्रीय सम्‍मेलन

 

दिनांक: 24 नवम्‍बर, 2020

 

 

माननीय शिक्षा मंत्री, डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’

 

आज के इस महत्वपूर्ण कार्यक्रम में उपस्‍थितअरबिंदो सोसाइटी के कार्यकारी सदस्य और हमारे सबके अग्रज और जिनका मार्गदर्शन बहुत लंबे समय से अरबिंदोसोसायटी को मिलरहाहै आदरणीय विजय पोद्दार जी,सीबीएसई बोर्ड के अध्यक्ष श्री मनोज आहूजा जी, हमारे साथ आज कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी के ग्लोबल एजुकेशन के मैनेजिंग डायरेक्टरश्री रॉडस्‍मिथ जी और एचडीएफसी बैंक बिजनेस फायनेंस की ग्रुप हैडश्रीमतीआशिमा भट्ट जी, सुश्री नुसरत पठान जी, सीएसआर एचडीएफसी बैंक और मैनेजिंग डायरेक्टर कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी श्री गोबिन्द तलियन वेदू जी,श्रीसंभ्रांत जी और देश तथा दुनिया से जुड़े अरबिंदो सोसाइटी के सभी सदस्यगण, कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के सभी अधिकारी वर्ग, प्रोफेसर और छात्र, साथ हीजुड़े देश के सभी अधिकारी वर्ग और सभी शिक्षाधिकारी, सभी अध्यापकगण और मेरेछात्र-छात्राओं!यहहम लोगों के लिए बहुत गौरव एवंबहुतआनंदित करने वाले पल हैं जहांहमशिक्षा पर विचार-विमर्श कर रहे हैं क्‍योंकिशिक्षा ही वह चीज है जिसने हमें यहां तक लाने का काम किया है और तभी आज हम सोच करके इस दिशा में अगला कदम बढ़ा पा रहे हैं। मैं सौभाग्यशाली हूं कि महर्षि अरविन्द का नाम लेते ही एक ऐसी ऊर्जा का संचार होता है जो मन में एक विश्‍व मानव के रूप में प्रतिपादित जैसा होता है।महर्षि अरविन्द ने जिस शिक्षा के बारे में बोला था, जिस व्यक्ति के बारे में बोला था, जिस विचार के बारे में बोला था, जिन परिस्थितियों और स्थितियों का व्याख्यान किया था वो यही था कि जैसा रॉड स्‍मिथ जीने कहाहै कि भारत ने पूरी दुनिया को बहुत कुछ दिया है और निश्चितरूप से तक्षशिला, नालंदा और विक्रमशिला जैसे विश्वविद्यालय इस देश के अंदर थे। जहां ‘‘एतद् देश प्रसूतस्य शकासाद् अग्रजन्मन :, स्वं-स्वं चरित्रं शिक्षरेन् पृथ्वियां सर्व मानव:’’पूरी दुनिया के लोग ज्ञान, विज्ञान, अनुसंधान, तकनीकी, जीवन मूल्य और विविध प्रकार की शिक्षाओं को प्राप्त करने के लिए इस धरती पर आते थे। वही हिन्दुस्तान विश्वगुरु के रूप में भी रहा है औरउसहिन्दुस्तान ने पूरी दुनिया को अपना परिवार माना है। ‘‘अयं निजः परो वेति गणना लघु चेतसाम् | उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम्’’पूरी वसुधा को पूरी दुनिया को अपना परिवार मानने वाला यह हिन्दुस्तान है। महर्षी अरविन्द की परिकल्पना थीकि सारे विश्व में शिक्षा का इतना उत्थान हो कि मनुष्‍य जो ईश्वर की सबसे सुंदरतम कृति है, वहआनंदित हो।इस पृथ्‍वी पर क्लेश न रहे।‘‘असतो मा सद्गमया’’असतकी कोई गुंजाइश न हो,‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’ अंधकार कहींनदिखे, अंधकार तभी मिटेगाजब ज्ञान की रोशनी होगी और ज्ञान की रोशनी के बाद जो उजाला होगा उसमें पूरी दुनिया प्रतिबिम्बित होगी। मनुष्य सुख-शांति और समृद्धि केशिखर तक पहुंचेगाऔर इसीलिए आज जो काम हो रहा है अरविन्द सोसायटी, एचडीएफसी बैंक औरकैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के द्वारा उसके लिए मैं आप तीनों संस्‍थानों को बहुत-बहुत बधाई देता हूं।जहां तक भारत की शिक्षा नीति को उसके आधार स्तर पर खड़ा करने की बात की है और वहीं कैम्ब्रिज जैसे विश्वविद्यालय जो आठ सौ वर्ष पुराना है और जो दुनिया को काफी कुछ देने की क्षमता रखता है उसको भी हिन्दुस्तान की इस नई शिक्षा नीति से जोड़ा है और इधरएचडीएफसी बैंक ने आपने सहयोग से इस मिशन को आगे ले जाने का मन बनाया है। इसलिए मेरे जैसे व्यक्ति के लिए आज का क्षण बहुत गौरवान्वित करने वाला क्षण है और मैं आभार प्रकट करना चाहता हूं। आज कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय ने मुझको नई शिक्षा नीति मेंव्‍यापकपरामर्श और नवाचार करने के लिए जो सम्मान दिया है तथारॉड स्‍मिथ कैंब्रिज आपने आज जो शिक्षा नीति की उत्‍कृष्‍टता की जो घोषणा की है जो मुझको सम्‍मानदिया है। उसके प्रति मैं आपका बहुत आभार प्रकट कर रहा हूं और मैं आपको भरोसा दिलाना चाहता हूं कि जो आपके मन में यह विचार आया है किहां,हिन्दुस्तान ने दुनिया को बहुत कुछ दिया है और जो हम यह नई शिक्षा नीति ले करके आए हैं उस नई शिक्षा नीति में वो सारी चीजें हैं जिसकी अपेक्षा आज पूरी दुनिया हिंदुस्तान से करती है। मुझे बहुत खुशी है कि आज अरविन्द सोसाइटी ने शिक्षा के अधिकारियों को और शिक्षकों को जो सम्मान दिया है वो अपने आप मेंअद्भुत है। मुझे इस बात का गौरव है कि हिन्दुस्तान के शिक्षा के अधिकारियों ने और शिक्षकों ने इस नई शिक्षा नीति के उदय में अहम भूमिका निभाई है जब इस कोरोना काल में पूरी दुनिया संकट से हो करके गुजर रही है ऐसे में उन्‍होंने योद्धा की भूमिका निभाई है। मैं इस देश का शिक्षा मंत्री होने के नाते इस परिवार के इन सब लोगों का अभिनंदन करना चाहता हूँ। मैं आभार प्रकट करना चाहता हूं और मुझे खुशी है कि उनकी पहचान अरविन्द सोसायटी ने की है। मुझे याद आता है कि संभ्रांत जी जब पीछे एक साल पहले हम हजारों शिक्षकों के साथ मिले थे तब भी मुझे बहुत खुशी का अनुभव हुआ था और शून्‍यइनवेस्टमेंट पर व्‍यापक परामर्श तथानवाचार हुआ था।बिना किसी खर्च के जो काम कोई सरकारहजारों करोड़ रुपया खर्च करके नहीं कर सकती है वो काम अरविन्द सोसायटी ने मेरे विलक्षण प्रतिभा के धनी अध्यापकों के साथ परामर्श करके किया है। यहछोटी बात नहीं है मेरे लिए गौरव की बात है। मैं तो एक अध्यापक हूं। मैंने सामान्य शिक्षक से लेकर शिक्षा मंत्री तक की यात्रा तय की है इसलिए मैं समझ सकता हूं कि एक अध्यापक की कितनी महत्वपूर्ण भूमिका होती है। एक अध्यापक कितना प्रखर होता है, कितना निष्ठावान होता है कि एकधुरी बन कर के पीढ़ी को खड़ा करने के लिए अपना तिल-तिल खपाता है और यही हिंदुस्तान की परंपरा भी रही है। हमने कहा गुरुर ब्रह्मा, गुरुर विष्णु,गुरु देवो महेश्‍वरा,गुरु साक्षात् पर ब्रह्म,तस्‍मैं श्री गुरूवे नम: हमने ईश्वर के रूप में हमेशा अपने अध्यापक को देखा है। ‘गुरु गोविन्द दोऊ खड़े काकेलागो पाय बलिहारी गुरु आपने गोविन्द दियो बताए।‘ यदि ईश्वर औरमेरे गुरु सामने हों तो किसी को कोई संकोच नहीं कि सबसे पहले अभिवादनगुरु के चरणों में करना है क्योंकि गुरु ने ही गोबिंद तक पहुंचायाहै। यहहमारी धारणा रही है, यह हमारा विचार रहा है, यह हमारा आचार रहा है और इसीलिए हिन्दुस्तान का जो गुरु था वह पूरे विश्व में गया है। आज वही अभियान फिर शुरू हो रहा है। आज हम ‘स्पार्क’ के तहत दुनिया के शीर्ष 127विश्वविद्यालयों के साथ परामर्श कर रहे हैं, शोध और अनुसंधान कर रहे हैं वहीं जो यह नई शिक्षा नीति है और जो आज अध्यापक और शिक्षा अधिकारी यहां पर अभी अभिनन्‍दितहुए हैं इनके बलबूते पर हम उस कल्पना को साकार करेंगे। मैं सबसे पहले तो जिन 40उच्च शिक्षा अधिकारियों को यहां सम्मान मिला है,उनकाअभिनन्‍दनकरता हूं। मैं समझ सकता हूंक्‍योंकि मैंहर प्रदेश के शिक्षा अधिकारियों के सीधे टच में रहता हूं। मैं विश्लेषण भी करता रहता हूं कि कौन से प्रदेश का, कौन सा अधिकारी, कहां तक काम कर पा रहा है और यह मैं बहुत अकलुषित तरीके से विश्लेषण करता हूं। मैं इन 40 अधिकारियों को जिसमें सिक्किम के मुख्य सचिव जो स्वयं शिक्षा सचिव भी हैं और बहुत सारे प्रदेशों के मुख्य सचिव, शिक्षा सचिव प्रमुख सचिव जिनमेंकुछ निदेशक के रूप में हैं आईएएस अधिकारी हैं उन सभी शिक्षा अधिकारियों का मैं अभिनन्‍दनकरता हूं और इन चालीस लोगोंकी जो ठोस टीम बनी है वह हमारे मिशन को बहुत आगे तक लेकर जाएगी। यह देश 130 करोड़ लोगों का देश है। यह दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है और इस देश में एक हजार से अधिक विश्वविद्यालय हैं,45 हजार से अधिक डिग्री कॉलेज हैं,15 लाख से अधिक केस्कूल हैं,1 करोड़ 9 लाख से अधिक अध्यापक हैं, और मुझे लगता है कि जितनी कुल अमेरिका की आबादी नहीं है उससे भी अधिक यहां33 करोड़ छात्र छात्राएं हैं। यहवैभवहै, इस देश का और उनमें से इन40 अधिकारियों का चयन होना और 26 अध्यापकों का चयन होना। जोआज इतने बड़े प्लेटफार्म पर सम्मानित हो रहे हैं, यह सामान्य सम्मान नहीं है, यह आपका अंतर्राष्ट्रीय सम्मान है और यह शिक्षा नीति में आपको अंर्तराष्‍ट्रीय स्तर पर भी गौरवान्वित करेगी ऐसा मेरा भरोसा है। इसलिए मैं आपके प्रदेश को, आपके विभाग को, आपके परिवार को,आपकेअध्यापकगण को और आपके संपूर्ण शिक्षा विभाग को बधाई देना चाहता हूं और जिन प्रदेशों के अधिकारी और अध्यापक आज पुरस्‍कृतहुएहैं, सम्मानित किए गए हैं, मैं उनके मुख्यमंत्री और उनके शिक्षामंत्री जी को भी विशेष करके बधाई दूंगा। मैं समझ सकता हूं कि इस जुनून के मोडमें काम करना कोई साधारण बात नहीं है। इस बीचकोविडकी महामारी आयीतो मैं समझ सकता हूं कि इन33 करोड़ छात्र-छात्राओं को एक साथ ऑनलाइन पर लाना कोई सहज काम नहीं था। यह अपने आप में एक अद्भुत आश्चर्य ही है कि हम रातों-रात ऑनलाइन माध्‍यम लायेऔर आपसमझ सकते हैं कि यदि मेरे यह छात्र छात्राएं ऑनलाइन पर नहीं आतेऔर यदि उन33 करोड़ छात्रों के माता पिता को भीजोड़ेंगे तो यह आंकड़ा सौ करोड़ को पार करता है और जो मेरेएक करोड़ दस लाख अध्यापक हैं इनकी क्या मन:स्थिति होती किस परिस्थिति से हो करके गुजरते, कोई कल्पना नहीं कर सकता।दो दिन, चार दिन, दस दिन तो कोई घर के अंदर रह सकता है लेकिन महीनों तक कोई घर के बाहर न निकलें और वो भी छात्र-छात्राएं क्या परिस्थिति पैदा होती,कोईसोच भी नहीं सकता। किस अवसाद में जाते छात्र-छात्राएं,किस अवसाद में जाते अध्यापक,किस अवसाद में जाते अभिभावक। इसकी कल्पना करने से ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं। लेकिन मुझे खुशी है मेरे देश के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी की अगुआई में हमने पूरी ताकत के साथ इस शिक्षा विभाग के इन लोगों ने रात दिन खप करके उस चुनौती का मुकाबला किया और उस चुनौती का मुकाबला करके हम आजऑनलाइनशिक्षा दे पारहे हैं। अब हमारी दूसरी चुनौती हैजो तकनीक के अंतिम छोर पर बैठा जोछात्र हैउस तक जाना है। हमरात-दिन उसमें भी खपे हुए हैं। कुछ छात्र अभी जिनके पास ऐसे संसाधन नहीं हैं जो ऑनलाइन पर आ सकते हैं उन तक भी तेजी से पहुँच हमारी हो रही है और काफी कुछ  हम तक पहुँच भीगए। कोविडके ही समय जिस तरीके का इन अध्यापक लोगों ने जो शोध किया, अनुसंधान किया, नवाचार किया और उसको फिर अपने बच्चों के साथ बांटा वह आज दुनिया के लिए उदाहरण बन रहा है। नई शिक्षा नीति दुनिया के सबसे बड़े नवाचार के रूप में जानी जाएगी, ऐसा नवाचार शायद दुनिया में आज से पहले कभी नहीं हुआ होगा। किसी नीति पर जहां 33 करोड़ छात्र छात्राओं से विमर्शहुआ हो,66 करोड़ अभिभावकगणसे विमर्श हुआ हो,ग्राम से लेकर के संसद तक, ग्रामप्रधान से ले करके प्रधानमंत्री जी तक, शिक्षक से लेकर शिक्षाविदों तक, विशेषज्ञों से लेकर के वैज्ञानिकों तक और आम आदमी से लेकर राजनैतिक व्यक्तित्वों तक, सरकारों से लेकर केग्राम पंचायतों तक कोई भी स्थान ऐसा नहीं छूटा जिससे परामर्श नहीं हुआ और उसके बाद भी जो हम लोगों ने नई शिक्षा नीति का मसौदा तैयार किया था उसके बाद फिर उसको पब्लिक डोमेन में डाला जिनमें सवा दो लाख सुझाव आए और उसमें भी तीन-तीन विश्लेषण कमेटियों का गठन किया गया।उच्च शिक्षा, तकनीकी शिक्षा और स्कूली शिक्षा के लिए हमने अलग-अलग विश्‍लेषण कमेटियों का निर्माण किया। व्यापक परामर्श के बाद, एक-एक सुझाव के विश्लेषण के बाद यह नयी शिक्षा नीति आई है, जो बहुत खूबसूरत है। पूरे देश के अंदर उत्सव जैसा वातावरण है और दुनिया के तमाम देशों ने भी इसपर कहा है कि हम भी भारत की नयी शिक्षा नीति को अपनाना चाहते हैं हमने इस नीति में5+3+3+4 किया है और अब हमने  10+2 को समाप्‍त कर दिया है और 5 को भी 3+2 किया है। तीन वर्ष के उस बच्चे को कि किस तरीके से वो सोचता है, किस तरीके की उसमें क्षमताएँ हैं उसको लेकर हम आगे बढ़ रहें हैंऔर छठवीं कक्षा से ही वोकेशनल स्ट्रीम, इन्टर्नशिप के साथ ला रहे हैं। स्कूली शिक्षा से ही हमारा विद्यार्थी वोकेशनल से इतना विज्ञहो जाएगा कि स्कूल से बाहर निकलते हुए एक योद्धा के रूप में आएगा। आर्टिफिशल इंटेलिजेंस कोस्कूली शिक्षा से ही शुरू करनेवाला यह दुनिया का पहला देश हो जाएगा। इस नई शिक्षा  नीति के तहत  बच्‍चे का 360 डिग्री होलेस्‍टिक मूल्‍यांकन होगा।वो स्वयं भी अपना विश्लेषण करेगा, उसके अभिभावक भी करेंगे,उसके अध्यापक भीकरेंगे और उसका साथी भी करेगा। उसका चौतरफा जो मूल्‍यांकन होगा  और स्वत: स्फूर्त मूल्यांकन होगा जिससे लगेगा किबच्चा कहां जा रहा है। वैज्ञानिकों ने भी इस बात को कहा है कि अपनी मातृभाषा में अभिव्यक्ति की पुष्टि होती है,जोप्रतिभा बाहर निखर कर आती है वो दूसरी भाषा में नहीं हो सकता। इसलिए जो प्रारंभिक शिक्षा है वो बच्‍चे की अपनी मातृभाषा में ही हो, इसे प्रस्‍तावित किया गया है।प्राइमरी शिक्षा से लेकर के उच्‍च शिक्षा तकआमूल चूल परिवर्तन किया गया है। उच्च शिक्षा में जहां विद्यार्थी कोई भी विषय ले सकता है और वह जब चाहे तब छोड़ सकता है जब चाहे फिर आ सकता है। अब हमारा छात्र संगीत के साथ इंजीनियरिंग ले सकता है, विज्ञान के साथ साहित्‍य ले सकता है उस पर किसी प्रकार की कोई पाबंदी नहीं होगी। वो किसी भी विषय अथवासब्जेक्ट को ले सकता है उसके लिए पूरा मैदान खाली है और इतना ही नहीं यदि वो चार वर्ष का डिग्री कोर्स है और दो वर्ष में विषम परिस्थिति के कारण यदि विद्यार्थी जाना चाहता है तो वो जाए, अबवो हताश एवं निराश नहीं होगा। यदिएक वर्ष में वह छोड़ कर जा रहा है तो उसकोसर्टिफिकेटमिल जाएगा, दो वर्ष में छोड़ कर जा रहा है तो उसको डिप्लोमा मिल जाएगा, तीन वर्ष में छोड़ कर जाता है तो उसको डिग्री मिलेगी। लेकिन यदि दो वर्ष में, एक वर्ष में वह छोड़ कर फिर दुबारा आना चाहता है और वहीं से अपनी पढ़ाई शुरू करना चाहता है तो वह आ सकता है औरअपनीपढ़ाई शुरू कर सकता है एवं अपने भविष्य को संवार सकता है।उसके लिए हम एक ऐसा क्रेडिट बैंक बना रहे हैं जिसमेंउसके सभी क्रेडिट जमा होंगे ताकि वह जहां से छोड़ कर गया है वहां से वो आगे बढ़सके। इसीलिए व्यापक तरीके से शोध और अनुसंधान के क्षेत्र में हम तेजी से जहां‘नेशनल रिसर्चफाउंडेशन का गठन कर रहे हैं वहीं‘नेशनलएजुकेशन टेक्नोलॉजी फोरम’ का भी हम गठन कर रहे हैं।जहांतकनीक को हमनीचे आम आदमी तक ले जाना चाहते हैं, वहीं तकनीकों को शीर्ष स्तर तक भी पहुंचाना चाहते हैंअभी हमने 20 लाख अध्‍यापकों कोप्रशिक्षण देनेका कार्य किया है मुझे खुशी है क्‍योंकि जब हम बच्‍चों को बढ़ाना चाहते हैं तो जब तक यौद्धा के रूप में हम अपने अध्‍यापकों को खड़ा नहीं करेंगे तब तक हम उस लक्ष्‍य को प्राप्‍त नहीं कर सकते हैं और इस लक्ष्‍य की प्राप्‍ति के लिए अरविन्‍द सोसायटी के साथ जुड़कर के जिस तरीके से एचडीएफसी बैंक काम कर रहा है उसके लिए मैं उनकी चैयरमैन को भी बधाई देना चाहता हूं।आप अपने सामाजिक दायित्‍वों के फंड कोऐसे कार्य पर खर्च कर रहे हैंजिससे देश को आप पर गौरव हो सके। आप जो कर रहे हैं वो छोटा नहीं है,आपपीढ़ी का निर्माण कर रहे हैं, विश्‍व का निर्माण कर रहे हैं। हमारे देश के प्रधानमंत्रीजी कहते हैं कि हमको राष्‍ट्र का एक बहुत अच्‍छा नागरिक चाहिए लेकिन हमको विश्‍व नागरिक चाहिए। देश के 300 जिलों में 4000 से ज्‍यादा उत्‍कृष्‍ट विद्यालय बनाने की जो पहल की है इसके लिए भी मैं अरविन्‍द सोसायटी को बधाई देना चाहता हूं। मेरा विश्‍वास है कि अनुभवों के आधार पर शिक्षा को बढ़ाने का जो आधार है और लर्निंग आउटकम का जो हमारा सिस्‍टम है वह भी इस नई शिक्षा नीति की आधारशिला है। यदि छात्रशिक्षा ग्रहण कर रहा है तो आउटकम क्‍या है उसका? इसलिए केवल अक्षर ज्ञान, अंक ज्ञान ही शिक्षा नहीं है बल्‍कि उसका व्‍यावहारिक ज्ञान, उसका प्रयोगात्‍मक ज्ञान, जो उसके मन के अंदर संचार हो रहा है उसको कैसे आगे बढ़ा सकते हैं, इसकीजरूरत है। यह जो हमारी नई शिक्षा नीति है यह भीइन्‍हीं सब चीजों को लेकर के आगे बढ़ रही है। मैं धन्‍यवाद देना चाहता हूं संभ्रांत और आपकी पूरी टीम को कि अरविन्‍द सोसायटी ने नई शिक्षा नीति की उस जड़ को पकड़ा है जिस पर हम खड़ा होना चाहते हैं। हमारी यह नई शिक्षा नीति नेशनल भी है, तो यह इंटरनेशनल भी है, यह इन्‍क्‍लुसिव भी है, इम्‍पैक्‍टफुल भी है, इन्‍टरेक्‍टिव भी है, इनोवेटिव भी है और यह इक्‍विटी, क्‍वालिटी और एक्‍सेस की आधारशिला पर खड़ी है। यह ऐसी नई शिक्षा नीति है इसकी खुशुबु पूरी दुनिया में बिखरेगी। मुझेइस बात की भी खुशीहै कि अरविन्‍द सोसायटी ने जिस तरीके से तमाम प्रकारकेअभी उदाहरण दिये हैं, प्रयोग किये हैं यह निश्‍चित रूप में हमको बहुत आगे बढ़ाएगा और जो स्‍कालरशिप का विषय है जिसमें कैम्‍ब्रिज विश्‍वविद्यालयके सहयोग से 50 लाख से भी अधिक बच्‍चों को जो स्‍कॉलरशिप मिलने वाली है यह भी अपने आप में अद्भुत है। मुझे लगता है कि आपके छोटेसेसहयोग से यह इतना बड़ा काम होगा।जिन बच्‍चों को जरूरत है, जिसको ऑनलाइन शिक्षा के लिए तकनीकी उपकरणों की जरूरत है जो उसके पास नहीं है तो मैं समझता हूं कि आपके इस प्रयास से ऐसे जरूरतमंद बच्‍चों के जीवन में बहुत बड़ा परिवर्तन होगा और जो आपका शिक्षकों को प्रशिक्षित करने का अभियान है मैं इसके लिए भी आपको शुभकामनाएं देना चाहता हूं। महर्षी अरविन्‍द जी का विचार था उन्‍होंने हमेशा कहा है कि मैं इस तरीके का काम करना चाहताहूं या आप ऐसा कुछ करिये जिससे मनुष्‍य की सृजन शक्‍ति बाहर निकलें और मनुष्‍य केवल एक मशीन न रहे। अभी हमने मनुष्‍य को मशीन बना दिया है।  हमारी होड़ है पैकेज की ना कि एक अच्‍छा मनुष्‍य बनाने की और मुझे भरोसा है कि यह नई शिक्षा नीति उस होड़ पर थोड़ा  सा अंकुश लगाकर के मनुष्‍य को एक अच्‍छा नागरिक बनने के लिए प्रेरित करेगी। मुझे भरोसा है किहम महर्षी अरविन्‍द जी के विचारों को लेकर और आज को जो खूबसूरत कार्यक्रम हो रहा है जिसमें अध्‍यापकों को सम्‍मानित किया गया है जिसमें हमने अपने विद्यार्थियों  के लिए स्‍कॉलरशिप का सुनिश्‍चितकरण किया है। अभी आपने जो-जो शोध अनुसंधान किये हैं उससे  संबंधित  जिस बुकलेट का आपने  लोकार्पण करवाया है उसके लिए भी मैं कैम्‍ब्रिज विश्‍वविद्यालय की पूरीटीम को धन्‍यवाद देनाचाहता हूं और अरविन्‍द सोसायटी को धन्‍यवाद देना चाहता हूं और मनोज जी जो सीबीएसई बोर्डकेअध्‍यक्ष हैं, मुझे भरोसा है कि हम उनकी अगुवाई में स्‍कूली शिक्षा में नई शिक्षा नीति के क्रियान्‍वयन की दिशामें सफलता पायेंगे वहीं हम उच्‍च शिक्षा में भी एक बहुत ऊंची छलांग मारकरके शिखर पर पहुंचेंगे। पूरे विश्‍व की ज्ञान की महाशक्‍ति के रूप में हिन्‍दुस्‍तान खड़ा होगा और जैसा कि हमारे देश के प्रधानमंत्री बार-बार कहते हैं कि 21वीं सदी का स्‍वर्णिम भारत चाहिए। जो स्‍वच्‍छ भारत होगा, सशक्‍त भारत होगा, समृद्ध भारत होगा, आत्‍मनिर्भर भारत होगा, एक भारत होगा और श्रेष्‍ठ भारत होगा और जिसको मेक इन इंडिया, डिजिटल इंडिया, स्‍किल इंडिया, स्‍टार्ट अप इंडिया, स्‍टैंड अप इंडिया जैसे रास्‍तों से होकर इस नई शिक्षा नीति को आधारशिला मिलेगी औरनिश्‍चित रूप में यह पूरेविश्‍व के लिए एक सुखद आभास होगा और जो हिन्‍दुस्‍तान पूरे विश्‍व को अपना परिवार मान करके यह कामना करता है कि हम सब साथ चलेंगे, साथ बढेंगे, साथ खायेंगे, साथ पुरूषार्थ करेंगे और पूरे विश्‍व को स्‍वर्ग बनायेंगे यह है हमारी धारणा। मैं एक बार फिर अरविन्‍द सोसायटी को, कैम्‍ब्रिज विश्‍वविद्यालय को और एचडीएफसी के अधिकारियों को बहुत सारीबधाई एवं शुभकामनाएं देता हूं।

 

 

 

बहुत-बहुत धन्‍यवाद!

 

कार्यक्रम में गरिमामयी उपस्‍थिति:-

  1. डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’, माननीय शिक्षा मंत्री, भारत सरकार
  2. श्रीविजय एन पोद्दार, कार्यकारी सदस्‍य,अरबिंदो सोसायटी
  3. श्री मनोज आहूजा, अध्‍यक्ष, सीबीएसई
  4. श्री रोड स्‍मिथ, प्रबंध निदेशक, ग्‍लोबल एजुकेशन, कैम्‍ब्रिज विश्‍वविद्यालय
  5. श्रीमती आशिमा बट्ट, ग्रुप हेड, बिजनेस फायनेंस, एचडीएफसी बैंक,
  6. सुश्री नुसरत पठान, हेड, सीएसआर, एचडीएफसी बैंक
  7. अरबिंदो सोसाइटी के सभी अधिकारी एवं कर्मचारी वर्ग, कैम्‍ब्रिज विश्‍वविद्यालय के सभी अधिकारी वर्ग एवं प्रोफेसर तथा छात्र-छात्राएं।

ब्रिटिश इंस्‍टीट्यूशन ग्रुप, इंग्‍लैंड द्वारा आयोजित वातायन-यूके सम्‍मान समारोह

ब्रिटिश इंस्‍टीट्यूशन ग्रुप, इंग्‍लैंड द्वारा आयोजित वातायन-यूके सम्‍मान समारोह

 

 

दिनांक: 21 नवम्‍बर, 2020

 

 

 

माननीय शिक्षा मंत्री, डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’

 

यूके सम्‍मान समारोह में उपस्‍थित इस परिवार के और इस परिवार से जुड़े देश और दुनिया के सभी भाइयों और बहनों तथा सभी लेखक मित्रों का मैं अभिनन्‍दन कर रहा हूं। आज अतिथि के रूप में यहां पर प्रख्‍यात लेखक, चिंतक, विचारक और हमारे अनुज जो बहु-आयामी प्रतिभा के धनी हैं प्रिय अमिश त्रिपाठी जी, जो भारतीय उच्‍चायोग के  सांस्‍कृतिक मंत्री है और नेहरू केन्‍द्र लंदन के निदेशक भी हैं। आदरणीय और ब्रिटिश सांसद जो हमेशा गौरव बढ़ा रहे हैं श्रद्धेय श्री वीरेन्‍द्र शर्मा जी,  मेरे बहुत ही प्रिय जिनको आज यह सम्‍मान मिला तो मुझे बहुत खुशी हुई है जिनके चेहरे पर मैं हमेशा मुस्‍कुराहट देखता हूं, जो रंगकर्मी, गीतकार,पटकथाकार ऐसे मेरे प्रिय मनोज जी, मैं आज विशेषकर आपको शुभकामना देना चाहता हूं। हम सब लोग आपको बहुत बधाई देना चाहते हैं कि आप उसी गति से और आगे बढ़े, आपके लिए पूरा मैदानखाली है और अभी आपके पास बहुत वक्‍त है। दिव्‍जा जी को भी मैं धन्‍यवाद देना चाहता हूं कि जब आपके मन में यह विचार आया होगा तो मैं समझ सकता हूं और पद्मेश को भी मैं काफी समय से जानता हूं तो उनके पिता जी के बारे में अभी सुना उनकेपास भी मैं यदा कदा जाता था। उनका स्‍नेह, प्‍यार औरगुस्सा सबसेमैं अवगत हूं क्‍योंकि मैं तो अचानक राजनीति में आया था। मेरा राजनीति में आने का न मन था, न संभव था तथान परिवेश था और ऐसे समय में उत्तर प्रदेश जैसे राज्य की विधान सभा में और युवापनमें आना तो उनके पास में यदा-कदा जाकर के उनका आशीर्वाद भी लेता रहा हूं और जैसाउन्होंने कहा किविद्वान सर्वत्र पूजे जाते हैं तो यहजितने विद्वतगण हैं इनका मैं अभिनंदन करता हूं और उनके चरणों में मैं अपना प्रणाम करता हूं। इसलिए दिव्या जी मैं बहुत बधाई एवं शुभकामना दे रहा हूं और उनकी पूरी टीम को जिन्होंने इसको स्थापित किया और जिस तरीके से आप उसको बढ़ा रहे हैं, मैं जान सकता हूं कि किसी संस्था को स्थापित करना तो बहुत सरल होता है लेकिन उसको जिंदा रख करके, उसको दौड़ाते रहना, उसकी भावनाओं पर उसको क्रियान्वित करना कम चुनौती नहीं होती है। बहुत चुनौतियां होती हैं और लगातार इस संस्था के द्वारा हिन्दी को पूरे विश्व के पटल पर प्रसारित किया गया है। अकेले हिन्दी का 9 लाख शब्दों का कोश है और इसलिए हिन्दी पूरे विश्व के लिए एकसंजीवनी का काम करेगी। हिन्दी केवल भाषा नहीं है,हिन्‍दीकेवल विचार है,बल्‍किहिन्दी तोमन की तरंगों का उल्लास है, हिन्दी संस्कार है, हिन्दी सम्मान है जो भी आप हिंदी को कह सकते हैं और उसका जो विपुल साहित्य है,उस साहित्यके निकट आना किसी के लिए भी बहुत अच्छे सौभाग्य का क्षण होता है और इसीलिए उस हिंदी की समृद्धता के लिए आपसब लोग काम कर रहे हैं जब अनिल जोशी जी से मेरी पीछे के दिनों में भी बात हुई और मुझे याद है जब मैं मुख्यमंत्री था, तब वेविदेशों से हिंदी के बच्चों को लेकर आते थे औरतब तेजेन्द्र शर्मा जी सहित सब लोगों से बातचीत होती रहती थी और मुझे अच्छा लगता था कि आप अभियान के तहत बच्चों को लाते हैं और अनिल जी कोमैंनेदेखा और जब मुझे लगा कि हिंदी के प्रति वेकिस सीमा तक लगाव रखते हैं तो अचानक ही यह संयोग है कि फिर इन्हीं के हाथों सेहमने हिंदी की बागडोर हिन्दुस्तान में दे दी है और हिंदी जो संस्थान है उसके यशस्वी उपाध्यक्ष के रूप में वे भारत सरकार के एक महत्त्वपूर्ण स्थान को विराजमान हो गये हैं। पद्मेश जी आपको भी तब से मैं जानता हूं और मुझे मालूम है कि तब आप पत्रिका भी निकालतेथे मुझे याद है कि जब आप लखनऊ में थे तब आपकी हिंदी की पत्रिका होती थी और इस बीच आपसे कुछ समय के लिए संवाद जरूर टूटा लेकिन हमेशा मन जुड़ा रहा हैक्योंकि आप उन स्थानों पर भी रह करके जो काम कर रहे हों वह मेरे लिए बहुत सुखद हैऔर मेरे लिए बहुत सौभाग्य का विषय होता है। इसीलिए पद्मेश जी, दिव्या जी और आपकी पूरी टीम को मैंबधाई देना चाहता हूं।मीराकौशिक जी जो वातायन की अध्यक्ष हैं उनको भी मैं बहुत बधाई देना चाहता हूँ। मैं शुभकामना देना चाहताहूँ अदिति माहेश्वरी जी को जो वाणी प्रकाशन की कार्यकारी निदेशक हैं। अभी कुछ ही दिन पहले हमारी बात हो रही थी अदिति बहुत प्रखर है, शालीन है और मैं देख रहा हूँ क्योंकि मैं 1999के आसपास से अरुण भाई के साथ जुड़ा हुआ हूं और उनका हिंदी को विश्व में ले जाने के लिएकाफी बड़ा योगदान है। हिंदी के लेखकों को उन्होंने हमेशा प्रोत्साहित किया है और अरुण जी यदि मेरी बात सुन रहे हैं तो मैं उनको भी अभिनन्दन करता हूँ और अदिति को जो उन्होंने जिम्मेदारी दी है अब इनके हाथों में काफी कुछ है और इसको नईपीढ़ी को भी बढाना है। हिन्दी को उसके शिखर तक पहुंचाना है। एक अच्छी टीम के रूप में यह लोग आगे काम करेंगे तो मैं सोचता हूं कि अच्‍छा ही होगा। आज रीना भारद्वाजजी का जो गीत है वह मुझे बहुत अच्छा लगा क्‍योंकि विदेशी धरती पर रहकर भी रीना अपने को बनाए हुए हैं और एक-एक शब्द उनका मां सरस्वती का ऐसा झंकार पैदा करता है कि मैं उनकाबहुत अभिनन्दन कर रहा हूं और आदरणीय निखिल जी आपका भी आभार प्रकट करता हूं। मुझे लगता है कि शेखावत जी भी हमारे साथ जुड़े होंगे और शेखावत जी से भी मेरी कल बातचीत हुई थी तो सभी लोग जुड़े हैंऔर मुझे जब बताया गया और जब से आपने घोषणा की तब से पूरे देश और दुनिया के हजारों लाखों संदेश आ रहे हैं। इस समय जो लोग हमसे जुड़े हैं या जिनका संदेश आरहा है वो संयुक्त राज्य अमेरिका है,कनाडा है, कोलंबिया है, त्रिनिनाद है, टौबोगो है, एक्वाडोर है,संयुक्‍तअरब अमीरात है, जापान, नेपाल, अफगानिस्तान, मास्को, यूक्रेन, थाईलैंड, इंडोनेशिया, श्रीलंका, भूटान, रूस, कजाकिस्तान, ओमान, यूनाइटेड किंगडम, जर्मनी डेनमार्क, बुल्गारिया, नार्वे, मॉरीशस, नाइजीरिया, यूगांडा, ट्यूनीशिया, न्यूजीलैंड, सहित लगभग 50-60 देशों के लोग कहीं न कहीं मुझसेसीधे-सीधे जुड़े हैं याजिनके संदेश हमको मिले हैं इसलिए बहुत लोग पूरी दुनिया से और मेरे हिंदुस्तान से आज हमारे साथ जुड़े हैं। मैं उन सभी लोगों का इस अवसर पर जबकि यूकेवातायन एकअंतरराष्ट्रीय शिखर सम्मान का आयोजन कर रहे हैं तो मैंइस सम्मान को उन सभी लोगों को समर्पित करता हूं जिनके मन में छटपटाहट है, वेदना है, पीड़ा है जो कुछ करने का मन रखते हैं, जो विषम और विपरीत परिस्थितियों में भी आगे बढ़ने की छटपटाहट करते हैं, मैं  उन सभी नवोदित लेखकों को और उन सभी लोगों का जो अपने विचारों के साथ अपने संघर्षमय जीवन की ताप और धार पर खड़े होकर आगे बढ़ रहे हैं मैं उन सब का अभिनंदन करता हूं तथा यह जो आपने मुझे सम्मान दिया है मैं इसको प्रत्येक भारतवासी का सम्मान महसूस करता हूं। मैं उन सभी लोगों का विशेषकर युवाओं का सम्मान महसूस करता हूं जो मेरे भारत को विश्व गुरु के रूप में स्‍थापित करना चाहते हैं क्योंकि जो मेराभारत है वो विश्‍व गुरू है‘एतद् देश प्रसूतस्य शकासाद् अग्रजन्मन : , स्वं-स्वं चरित्रं शिक्षरेन् पृथ्वियां सर्व मानव:’यह पूरी दुनिया ने मेरे हिंदुस्तान से आकर सीखाहै। पूरा विश्‍व हमारे से ज्ञान, विज्ञान, अनुसंधान तथा नवाचार को ले कर के गया है और वो विचार जो सारे विषयों में हमको विश्वगुरु के रूप में स्थापित करता है जब हम ‘वसुधैवकुटुम्बकम’ की बात करते हैं। एक ओर हम ‘‘अयं निजः परो वेति गणना लघु चेतसाम् | उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम्’’ अर्थात्पूरी वसुधा को यदि किसी ने परिवार माना है तो केवल मेरे हिन्दुस्तान ने माना है,मेरी संस्कृति ने माना है, मेरे विचार ने माना है और केवल परिवार ही नहीं माना है बल्कि उस परिवार के लिए ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया, सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चित् दुःखभाग् भवेत्’की कामना की है। जब तक धरती पर एक भी प्राणी दुखी होगा तब तक में सुखकाएहसास नहीं कर सकता यह हैहमारा विचार, यह है हमारा विजन। यह हमारा मिशन भी है क्योकि हमने पूरी धरती को माता माना है। हम वो लोग नहीं हैं जो इस विश्व को मार्किट मान रहे हैं। लोगों की नजर में यह जो विश्‍व है,वो एकमार्किट है एक बाजार है। हमने वर्ल्ड को परिवारमाना है। हमने पूरे संसार को परिवार माना है क्योंकि हम जानते हैं कि मार्केट अथवा बाजार में व्यापार होता है और परिवार में प्यार होता है। हम पूरे विश्व कोएक परिवार के रूप में बढ़ाना चाहते हैं।औरउस पूरे परिवार के सुख-दुख और दर्द को मिल करके बांटना चाहते हैं। हमारे इस विचार ने पूरी दुनिया में हमको अलग रखता है और इसीलिए मुझे अच्छा लगा कि अभी चर्चा कर रहे थे, आपने कहा वातायन अर्थात् खिड़की या झरोखा। मुझे भरोसा है कि आपके इस झरोखा से नई ऊर्जा, नई रोशनी, नई उमंग, नए उल्लास तथा नए उत्साह का संचार होगा। हमनेहमेशासर्जनात्मक रूप में प्रकृति से जुड़ करके काम किया है क्योंकि प्रकृति के विपरीत विकृति होती है वो विनाश का कारण होती है और जब प्रकृति एवं संस्कृति का समन्‍वय होता है तो एक रचना होती है, एक कृति निकलती है और हमारी अंधकार को मिटाने के लिए हमेशालालसा रहीहै। एक ओर हम कहते हैं‘असतो मां सद्गमया’ हम असत्य से सत्यकीऔर चलेंगे। ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’ हम तमस को चीरते हुएहम घनघोर अंधेरे को चीरकरके रोशनी लाएंगे।हमदुनिया में अंधेरा देखना ही नहीं चाहते। हम अपने ज्ञान, विज्ञान, अनुसंधान के तहत पूरी दुनिया के अज्ञान को भी मिटाने की बात करते हैं और जो मन के अंदर बसा अंधेरा है उसको भी हटाने की बात करते हैं और इसलिए मैं समझता हूं कि जो हमारी पहचान है उसको हमें खोना नहीं है।हमआज विशेष कर के साहित्य पर तो बहुत सारी चर्चाओं को करेंगे। उपन्यासों को भी पढ़ेंगे, कहानियों को भी पढ़ेंगे, कविताओं को भी पढ़ेंगे, गीत भी सुनेंगे लेकिन जो हमारी जड़ें हैं जो हमारे संस्कार हैं वह पूरी दुनिया के लिए हैं हमारी सांस्‍कृतिकवृक्षफलना-फूलना चाहिए औरउसकी छांव पूरी दुनिया की मानवता को मिलनी चाहिए क्योंकि पूरी दुनिया कीसुख समृद्धि और शांति हिंदुस्तान से होकर गुजरती है। हमारी नई शिक्षा नीति के बारे में अनिल जी ने चर्चा की।नई शिक्षा नीति लॉर्ड मैकाले की पद्धति से हटकर भारतीयता की जमीन पर खड़ी है। हमारी जो वास्‍तविक  शिक्षा नीति थी उस शिक्षा नीति के तहत तक्षशिला, नालंदा औरविक्रमशिला जैसे विश्वविद्यालय हमारेदेश की अंदरथे और तब दुनिया में कोई विश्वविद्यालय नहीं था। इसका मतलब हिन्‍दुस्‍तानज्ञान में, विज्ञान में, अनुसंधान में प्रथम स्‍थान पर था।सुश्रुत शल्‍य चिकित्सा का जनक इस धरती पर पैदा होता है,आयुर्वेद का जनक इस धरती पर पैदा होता है भाषा वैज्ञानिक पाणिनी भीइसी धरती पर होता है और आर्यभट जैसा गणितज्ञ जिसने पूरी दुनिया को  शून्‍य दिया वो भी इसी हिन्दुस्तान धरती पर पैदा होता है नागार्जुन जैसा रसायनशास्त्री भी इसी धरती पर पैदा होता यदि मैं उस श्रृंखला को कहूंगा तो बहुत लंबी होगी। लेकिन मैं कहना चाहता हूं कि हिन्दुस्तान पूरी ताकत के साथ पूरे विश्व का मार्गदर्शन करता रहा है। हम पूरे विश्व को एक परिवार के रूप में देखते हैं। हम विस्तारवादी कभी नहीं रहे हैंऔर इसीलिए अपनी रचनाओं से, अपने कृतित्व से अपने व्यक्तित्व से, अपने कामों से किस तरीके से फिर उस विश्व तक हम अपनी हिन्दुस्तान की इस खूबसूरतियों कोदूर तक ले जा सकते हैं,आज इसकी जरूरत है और मैं जिस संस्कृति की बात कर रहा हूं वो कभी खत्‍म नहीं हो सकती क्योंकि हम कहते हैं कि ‘यूनान, मिस्र, रोमां सब मिट गए जहां से, अब तक मगर है बाकी नामो निशां हमारा और कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी’ कुछ तो बात है जो मिटाने से भी नहीं मिटती है,उसी बात को हमें पकड़े रखना है तथाउसी को आगे बढ़ाने की जरूरत है। मुझे भरोसा है कि हम इस दिशा में आगे बढ़ेंगे जो हम नई शिक्षा नीति लाई हैं वह21वीं सदी का स्वर्णिम भारत होगा, वहस्‍वच्‍छ भारत होगा,सुंदर भारत होगा, सुदृढ भारत होगा, आत्मनिर्भर भारत होगा, श्रेष्ठ भारत होगा और एक भारतहोगा यह नीति उसभारत की है।इसनई शिक्षा नीति को हम व्यापक परिवर्तनों के साथ लाएं हैं। पूरी दुनिया में इस बात की खुशी है औरतमाम देश के लोग कह रहे हैं कि हम भी भारत की इस एनईपी को चाहते हैं। हमारे देश के प्रधानमंत्री जीने कहा है कि हमें मनुष्य को मनुष्य बनाना है, एक अच्छे नागरिक के साथ विश्व मानव बनाना है। हमने मनुष्य को मशीन बना दिया था और इसलिए यहजोनई शिक्षा नीति है यहनेशनल भी है इंटरनेशनल भी है, यह इंटरएक्टिव भी है,इम्पैक्टफुल भी है,इन्‍क्‍लुसिव भी है और इनोवेटिव भी है और यदि इसकी आधारशिला को देखेंगे तो यहइक्विटी, क्वालिटी और एक्सेस की आधार शिला पर खड़ी होकर के आज विश्व का मार्गदर्शन कर रही है। इसीलिए पूरे देश के अंदर उत्साह और उल्लास का माहौल है। मैं आज इस अवसर पर आपको बहुत बधाई देना चाहता हूं। मुझे अच्छा लगा कि आपने इस अभियान लिया है और आज मनोज जी को सम्मानित किया है और मेरी अमिश जी से भी बातचीत हुईमुझे अच्छा लगा और अमिश अच्छा विचारक है तथा उसमें छटपटाहट भी है। मैं अमिश को कहना चाहता हूं कि यह अभियान जो आपने लिया है औरआपशंकर को मानते हैं और मैं तो उस धरती से आता हूं जहां कंकड कंकड में शंकर है,हिमालय से मैं आता हूं और इसलिए जो कंकड़कंकड़ में शंकर है उस पहाड़ की मैंआपको कविता सुनाना चाहता हूं, विशेष करके अमिशआपको सुनाना चाहता हूं कि मैं पहाड़ हूं इसलिए चुप नहीं कि मैं इतना शांत हूं, मैं इसलिए चुप नहीं कि मैं इतना शांत हूं तुम नहीं जानते कि मैं कितना अक्रांत हूं,मौन हूंतो सिर्फ इसलिए कि कहीं मेरे शांत मन में अशांति न आए। कई मंद पवन, मलय समीर स्‍वयंतूफान बन कर न छाए और फिर मुझे हिमालय का अनुपम धैर्य नहीं खोना है। विश्व शांति का ध्‍वज लिए मेरा हर एक कोना है। मुझे तो देश की एकता और अखंडता की चिंता है। मुझे गंगा और यमुना सरसा के जलघूंट भी पीना है और मुझे तो विषवमन करते विषैले सांप मिटाने हैं । मुझे तो विषवमन करते विषैले नाग मिटाने हैं। जन-जन के ह्रदय पटल में समता के बीज उगाने हैं। वैसे तो मेरी एक छोटी सी चीख भी प्रलयला सकती है,दिग्‍-दिंगतक्या यहब्रह्माण्‍डहिला सकती है पर मैं ऐसे नहीं होने दूंगा। मैं तो देश की आत्मा, प्यारा पहाड़ हूं। मैं संकल्प और शांति का प्रतीक देश के सौन्दर्य की अनुपम बहार हूं, मैं पहाड़ हूं।और इसीलिए मैं समझता हूं कि यह बात सही है कि पहाड़ में कठिनाइयां हैं, पहाड़ के लोगों को तो पहाड़ सा जीवन है। मेरे से लोग पूछते हें कि आप कैसे लिखते हैं,इतनीचीजें कैसे कल्पना में आती हैं, कविताएं लिखते हैं, कहानी लिखते हैं, उपन्यासों को लिखते हैं, यात्रा संस्मरण लिखते हैं गीतों को लिखते हैं तो मैं उनको केवल इतना बताता हूं कि यदि कोई लड़का गरीब घर में पैदा हो और नंगे पांव सात-आठ किलोमीटर पैदल कहीं स्कूल पढने के लिए जाए। पहाड़ी गांवसे जाए, भयंकर जंगल को पार करते हुएजाए और जंगली जानवरों का मुकाबला करते हुए जाए और वो वहां से शिक्षक बन जाए और शिक्षक से भारत के शिक्षा मंत्री तक की यात्रा करे। उसके जीवन में क्या-क्या घटा होगा, क्या-क्या हुआ होगा वो यात्रा ही मेरे मेरी कहानियों की यात्रा है, मेरी कविताओं की यात्रा है,मेरे गीतों की यात्रा है मेरे संस्मरणों की यात्रा है। इसलिए मैं समझता हूं कि जो हमने झेला है, देखा है, महसूस किया है, जिससे हो करके गुजरे हैं वही मेरा लेखनहै। आज जिन वेदनाओंसे होकरके हर कदम पर गुजरना पड़ता हैतो स्‍वाभाविक ही है कि वो बातें आपको कहांचैन से बैठने देंगी, जब तक उनको आप बाहर नहीं निकालें और बाहर भी इसलिए नहीं निकालेंगे कि केवल अपने गुबार कोखत्म करना है बल्‍कि मेरे जैसे निशंक तो न जाने कितने पैदा होते हैं और आधे में ही वो कमर तोड़ देते होंगे क्योंकि संघर्षों की ताप अंततोगत्‍वासबको झेलनी होती है और इसीलिए मेरे जैसे निशंक खड़े होकर आगे बढ़ सकें इसलिए उनके लिए मैंटूटे-फूटे शब्दों मेंउनके लिए कहानी छोड़ के जाता हूं,कविता भी छोड़ के जाता हूं। मैं आपका बहुत आभारी हूं और मैं एक बार फिर आप सब लोगों को इस काम के लिए जो यह बहुत अच्छी आपने शुरुआत की मुझे भरोसा है कि यह आपकी छोटी शुरुआत नहीं है, बहुत व्यापक शुरुआत है।इससे बौद्धिक वातावरण बनेगा तथा भारत का  नाम फिर से रोशन होगा। भारत रत्‍न डॉ. अब्‍दुल कलाम जी ने मेरी एक पुस्‍तक ‘ए वतन तेरे लिए’ का लोकार्पण  किया था, उसका एक संस्‍मरण सुनाते हुए मैं अपनी बात समाप्‍त करना चाहूंगा। वे मेरी एक छोटी सी कविता को गुनगुनातेथेजिसमें था ‘‘अभी भी है जंग जारी, वेदना सोई नहीं है,मनुजताहोगीधरा पर, संवेदना खोई नहीं है।‘’ हम बहुत भरोसे वाले लोग हैं। हम भारत के लोग कभी निराश नहीं हो सकते। हम संवेदनाओं को जिंदा रखेंगेक्‍योंकिहमको मालूम है कि ‘‘किया है बलिदानजीवन, निर्बलता ढोई नहीं है, कह रहा हूं ये वतन तुझसे बड़ा कोई नहीं है,तुझसेबड़ा कोई नहीं है।’’ मैं आपका एक बार फिर हिंदुस्तान की धरती से अभिनंदन कर रहा हूं। मुझसे देश और दुनिया के तमाम जो लोग जुड़े हैं, मैं उनको प्रणाम करता हूं।

 

बहुत-बहुत धन्‍यवाद!

 

 

कार्यक्रम में गरिमामयी उपस्‍थिति:-

 

  1. डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’, माननीय शिक्षा मंत्री, भारत सरकार
  2. श्री अमिश त्रिपाठी, निदेशक, नेहरू युवा केन्‍द्र लंदन,
  3. श्री वीरेन्‍द्र शर्मा, संसद सदस्‍य, ब्रिटिश संसद,
  4. वातायन परिवार, यूके के अन्‍य सम्‍मानित सदस्‍य।

 

 

शारदा विश्‍वविद्यालय का चतुर्थदीक्षांत समारोह

शारदा विश्‍वविद्यालय का चतुर्थदीक्षांत समारोह

 

दिनांक: 19 नवम्‍बर, 2020

 

 

माननीय शिक्षा मंत्री, डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’

 

शारदा विश्‍वविद्यालय के चतुर्थ दीक्षांत समारोह में उपस्‍थित मेघालय के यशस्‍वी, युवा, जुझारू, संघर्षशील, सौम्‍य और बहु-आयामी प्रतिभा के धनी प्रिय कोनार्ड संगमा जी, हमारे बीच उपस्‍थित भारत के पूर्व कैबिनेट मंत्री डॉ. महेश शर्मा जी, डॉ. रवि प्रकाश महासचिव, भारतीय गुणवत्‍ता परिषद्, इस विश्‍वविद्यालय के आदरणीय कुलाधिपति  श्री पी. के. गुप्‍ता जी,आदरणीय उप-कुलाधिपति श्री यतेंद्र कुमार गुप्ता जी,इस विश्‍वविद्यालय के कुलपति डॉ. शिवराम खारा जी,  रजिस्‍ट्रार श्री अशोक जी, सभी संकाय सदस्‍य, विभागाध्‍यक्ष, अध्‍यापगण और सभी आदरणीय अभिभावकगण और बाहर से आये हमारे अतिथिगण औरमेरे प्रिय छात्र-छात्राओं! आज एक उत्सव के रूप में आज हम यहां एकत्रित हुए हैं और आपकी खुशी में हम भी सम्मलित होने के लिए आए हैं।हमारी भारत की परंपरा रही है कि जब भी कभी कोई दुख में होता है तो उसको हम मिल करके बांटते हैं और जब कोई खुशी का वक्त होता है तो उसको भी हम मिल करके बांटते हैं। यह कहा जाता है कि जब दुख होता है, कष्ट होता है, संकट होता है तोवो बाँटने से कम होता है और जब खुशी होती है तो खुशी बांटने से बढ़ती है। आप जिस दिन की प्रतीक्षा कई वर्षों से कररहेंहोंगे, आपके माता-पिता, आपके चिर परिचित और जो मेरे से जुड़े हुए आज हजारों आपके अभिभावक और आपके नाते रिश्तेदार हैं, वे सब गौरवान्वित हो रहेहोंगे और आप अनेक प्रकार के प्रश्‍नों और उथल-पुथल से होकरकरके गुजर रहें होंगे। मैं आप सबके उज्ज्वल भविष्य की कामना करते हुए आपको बधाई और शुभकामना देता हूं।मैं यह समझता हूं कि अभी तक आप निश्चित थेकि इतने वर्ष का कोर्स होगा तथा उससे हम यह उपाधि या मैडल प्राप्‍त करेंगे। अभी तक जो भी परीक्षा थी वह एक निर्धारित समय तक के लिए, निर्धारित पाठ्यक्रमकोपढ़कर केआपको रिजल्ट देना होता था। लेकिन अबअसली परीक्षा आरम्‍भ हो रही है और आज आप मैदान में जा रहें हैं जहां आपको हर प्रश्न का उत्तर देना होगा तथा हर समस्या का सामना करना होगा एवं एक योद्धा के रूप में आपके सामने तमाम सवाल खड़े होंगे। तमाम कठिनाइयां एवंपरिस्‍थितियां होंगी और अब आप यह भी नहीं बोल सकेंगे कि मेरे पाठ्यक्रम में मेरे कोर्स में तो इतना ही था और यह कोर्स से बाहर आ गया और इसलिए जो आपकी इतने वर्षों की अनवरतसाधना है उससाधना को लेकर आप एक योद्धा के रूप में आज मैदान में जा रहे हैं तथाहमसब लोग आपको बधाई देने के लिए आज एकत्रित हुए हैं। आप एक योद्धाजिस तरीके से अपने मैदान में जाता है,उसी तरह से आगे बढ़े और उसको सिर्फ और सिर्फ अपनी जीत दिखाई देती है उसकी दृष्टि सफलता पर रहती है, उसकी नज़र अपने टारगेट पर रहती है। मुझे आप पर भरोसा है क्योंकि हम उस देश के लोग हैं जो विश्व में गुरु रहा है। जब हम अभी आए तो यहां वंदना हो रही थी और मां शारदा की प्रार्थना हुई। यह विश्वविद्यालय भी शारदा विश्वविद्यालय है और हमने मां शारदा से हमेशा निवेदन किया है तथा प्रार्थना की है कि हमको ऐसी ताकत दो, हम को क्षमता दो तथा सोचने का बल दो।हमने तो यहां तक भी प्रार्थना की है हम दुनिया की दुख तकलीफ को दूर कर सकें तथा हम किसी की मदद में काम आ सकें, इसलिए शारदा इतना मजबूत करोऔर इतना हमको ताकत दो क्योंकि हम नहीं भूलते कि हम विश्व गुरू रहें हैं।‘एतद् देश प्रसूतस्य शकासाद् अग्रजन्मन:, स्वं-स्वं चरित्रं शिक्षरेन् पृथ्वियां सर्व मानव:’आज के अवसर पर मैं आपसे इतना निवेदन करना चाहता हूं कि अपने जीवन में इसको कभी भूलने की ज़रूरत नहीं है कि हम उस देश के लोग हैं जो सारे विश्व में गुरु रहा है। जिसने हर दिशा में ज्ञान, विज्ञान, अनुसंधान के क्षेत्र में पूरी दुनिया को लीडरशिप दी है।जिसने पूरे विश्व को अपना परिवार माना है।हमने पूरे विश्व को परिवार माना है हमने हमेशा कहा‘अयं निजः परो वेति गणना लघु चेतसाम् | उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम्’अर्थात् पूरी वसुधा को कुटुम्ब मानने वाला पूरी दुनिया में कोई देश है तो वह केवल और केवल मेरा भारत है और कोई सोच भी नहीं सकता।इतना ही नहीं आज मैं टिप्पणी नहीं करना चाहता लेकिन पाश्चात्य संस्‍कृति का अनुकरण करते हुए लोग दौड़ और होड़ में लगकरअब इस पूरे संसार को मार्किट मान रहे हैं और कहते हैं किवर्ल्‍डमार्किट हैं। हमने कहा संसार बाजार नहीं है, हमने संसार को अपना परिवार माना है। उन्होंने संसार को बाजारमाना है तथाबाजार में व्यापार होता है। और परिवार में प्यार होता है इतना अंतर हैहमारी और उनकी सोच में। यह जो प्यार है यह जो परिवार का भाव है। यह केवल परिवार का भाव नहीं है कमजोर आदमी कभी किसी को संरक्षण नहीं दे सकता। संरक्षण वही दे सकता है जिसके चेहरे पर ताकत हो,जिसके चेहरे परस्‍वयं ही हंसी न हो वह दूसरों को क्या हंसा सकता है। जो स्‍वयं ही निराशा के झूले में झूलता हो वह दूसरों मेंआशा का संचार कैसे कर सकता है।पहले तो अपने में ताकत चाहिए, अपने  में विजनचाहिए। इसलिए देश में जब भी हम अच्छा किसी काम सेउठकर के करते हैं तो यह भी हमारा ही विजन है और इसेमैंबांट रहा हूं। आज ऐसे क्षणों में आपके साथ इन बातों को बाँटना चाहता हूं जो आपके जीवन में अनवरत चलती ही रहनी चाहिए हमने सदैव अंतिम क्षणतक कहा ‘‘सर्वे भवन्तु सुखिनः, सर्वे सन्तु निरामया। सर्वे भद्राणी पश्‍यन्‍तु,मां कश्‍चिददुख भाग्‍भवेत’।इस धरती पर मैं तब तक सुखी नहीं हो सकता हूँ जब तक कि धरती पर एक भी प्राणी दुखी होगा, यह है हमारी ताकत।जिसमें ताकत नहीं होगी तथाजो स्वयं ही रो रहा होगा, वहदूसरे को क्या कष्ट से उबार सकेगा। जो स्वयं हीत्रासदी में झूलरहाहोगा वह दूसरे की मदद कैसे कर सकता है।किसव्यक्ति के जीवन में कष्ट नहीं है लेकिन उसकष्‍टको ताकत के साथ एकतरफ करके उसको संघर्ष के साथ दूसरों के लिए समर्पित होने का भाव हमारा हमेशा रहा है। इसलिए हमारा जो मेरा देशहै वो विश्वगुरु अचानक नहीं है। केवल जीवन मूल्यों के आधार पर हम विश्वगुरु नहीं हैं।जब-जब हम विश्वगुरु की बात करते हैं हम भूल जाते हैं कि डेढ़ सौ सालों की गुलामी ने हमको हमारी मूल जड़ों से काटकर अलग किया। लार्ड मैकाले ने कहा था कि इस देश परयदि राज करना है तो इस देश की शिक्षा तथा संस्कृति और भाषा तीनों को बदल देना चाहिए। अपने आप यह देश आपके चरणों में आ जाएगा। डेढ़ सौ साल मेंउन्होंने यह किया लेकिन आज हम स्‍वाधीनहैं। इस देश की आजादी को 70 वर्ष हो गए। आज हमको वही भारत लाना है जो विश्व में गुरूथा जो विश्व का गुरु था। मेरे मित्रो, आप आपपी.एचडीलेकर जा रहे हैं, गोल्ड मैडल लेकर जा रहे हैं जैसा कि आदरणीय डा. रामलाल जी ने कहा ‘नेशन फर्स्ट करेक्टर मस्ट’ हमारे लिए नेशन फर्स्ट है। सारी समस्याओं का समाधान हो जाएगा और आप केवल डिग्री लेकर के कहीं सर्विस करने के लिए नहीं है। हमारा देश वो है जब हम सुश्रुत को याद करते हैं तो पूरी दुनिया में शल्य चिकित्सा का जनक कौन था तो उत्‍तर मिलता है किसुश्रुत था। हम उनके अभियान को कहां आगे बढ़ा पाये हैं। हम चरक के अभियान को भी आगे कहां बढ़ा पाये हैं जबकिआजआयुर्वेद के पीछे पूरी दुनिया खड़ी हो गई।ये रवि यहां बैठे हुए हैं लोगों को आज नहीं तो कल यह बात महसूस होगी कि जो भारत की शास्वत ज्ञान परंपराएं रही हैं वो पूरी दुनिया के लिए मार्गदर्शक हैं। पातंजलि का योग भी इसी धरती पर तो पैदा हुआ। मेरे देश के प्रधानमंत्री पूरे विश्व के मानव की समृद्धता के लिए अपील करते हैं कि इसकी सुरक्षा योग कर सकता है। आज 25 वर्ष का भी नौजवान मधुमेह की रोग से पीड़ित हो रहा है। नौजवान तमाम व्याधियों से ग्रस्त हो रहे हैं और इसीलिए जब उन्होंने अंतरराष्ट्रीय फोरम पर इस बात को कहा था कि क्या पूरी दुनिया के लोग इसके पीछे आ सकते हैं तो पूरी दुनिया योग के पीछे खड़ी होगई। 21 जून को आज पूरी दुनिया योग दिवस के रूप में मनाती है औरआज पूरी दुनिया फिर योग के पीछा करके खड़ी हुई है।हम पहले योग की बात करते थे और लोग हंसते थे। हम आयुर्वेद की बात करते थे औरलोग हमारा मजाक उड़ाते थे।अणु और परमाणु का विश्लेषणकर्ता ऋषि कणाद भी तो इसी धरती पर पैदा हुए। रसायन शास्त्री नागार्जुन से बड़ा रसायनशास्त्री कोई नहींहोसकता है।आर्यभट्टने शून्य दिया आज तमाम दुनिया के वैज्ञानिकइस बात को कहते हैं कि हिन्दुस्तान हमको यदिगणित और शून्‍य नहीं देता तो विज्ञान आगे बढ़ ही नहीं सकता था। इसलिए मैं सोचता हूं कि चाहे किसी दिशा में हो, ज्ञान हो विज्ञान हो, अनुसंधान हो, तकनीकी हो, ऐसा कोई भी क्षेत्र नहीं था जहां हमपीछे थे और इसलिए आज उस पर काम करने की जरूरत है। आज यहां से जाने के बाद योद्धा के रूप में अपने उस अतीत को लेकर के वर्तमान के साथ तथा नवाचार के साथ छलांग लगाने की ज़रूरत है।मुझे भरोसा है कि जब आप बड़ी उम्मीदों के साथ एक लगन के साथ तथा छटपटाहट के साथ एक योद्धा के रूप में मैदान में जाएंगे तो आप हर मुकाम को पाएंगे। आज दीक्षांत समारोह है वैसे तो दीक्षांत जैसे भाईसाहब ने कहा कि कभी दीक्षा का अंत होता ही नहीं यह संभव ही नहीं है। लेकिन हां, हमारे देश की परंपरा रही है। हमारी संस्कृतिरही है कि पहले शिक्षा के बाद दीक्षा और दीक्षा के बाद दीक्षांत तथा उसके बाद गुरुदक्षिणा। दीक्षांत के बाद क्या है गुरुदक्षिणा।यदिगुरुदक्षिणा में आपको कुछ देना हैतोमेरे भारत को विश्वगुरु बना दीजिए। बस यही आपकी गुरुदक्षिणा होगी।पूरी दुनिया आज आपकी ओर देख रही है, पूरी दुनिया निहार रही हिन्दुस्तान को। इस कोविड की महामारी में आपने देखा है कि पूरी दुनिया इस संकट से होकर के गुजरी है। मेरे भारत ने ताकत के साथ इसकोविडकी महामारी का मुकाबला किया। मेरे देश के प्रधानमंत्री ने हर बार कहा है कि यदि चुनौतियां बड़ी होती हैं और उसका ठीक डटकर के मुकाबला होता है तो वही चुनौतियां अवसरों में तब्दील हो जाती हैं और मैंने इसको अपनी आंखों से देखा है। इस देश में एक हजार विश्वविद्यालय हैं, इस देश में 45 हजार डिग्री कॉलेज हैं, इस देश में 15 लाख से ज्यादा स्कूल हैं, इस देश में एक करोड़ दस लाख से अधिक अध्यापक हैं और अमेरिका की कुल जितनी जनसंख्या नहीं होगी उससे भी ज्यादा 33 करोड़ छात्र छात्राएं हमारे देश में हैं।यह इस देश की संपदा है। पूरी दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश हमाराहै और जब कोविडकी महामारी आई तब मेरे देश के प्रधानमंत्री ने नौजवानों से कहा कि आप क्या कर सकते हैं। मैंने देखा, जब लोग अपने घरों में थे तब मेरे प्राध्यापक और मेरे शोध छात्र अपनी प्रयोगशालाओं में थे और हमने करके दिखाया।आज यदि कोविडके समय में चाहे ड्रोन हो, चाहे टेस्टिंग किट हो, चाहे मास्‍क हो, एक के बाद एक जो हिंदुस्तान में था ही नहीं उसे आज हम उत्पादित करके पूरे विश्व को भेज रहे हैं। यह कोविडके समय में हुआ है औरयह हमने किया है।‘युक्‍ति’पोर्टल पर जब कभी आप जाएंगे तो कोविडके समय में कितना अनुसंधान हुआ मेरे आईआईटी ने, एनआईटी ने, आईसर ने, मेरे विश्वविद्यालयों ने क्या-क्या शोध किया है मेरे नौजवानों आप युक्‍ति पोर्टल पर उसे जानने के लिए जाइए। उसके बाद एआईसीटीई ने कहा हम ‘युक्ति-2’ भी चाहते हैं। जितने भी हमारे छात्रों के आइडियाज हैं वो युक्ति पोर्टल परआएं।एक ऐसा प्लेटफॉर्म हो जहां देश और दुनिया के लोग मेरे नौजवानों के आईडियाजको लेके जा सकें। मेरे नौजवान का आइडिया आज पूरी दुनिया में हलचल मचा रहा है। जो कहते हैं कि अमेरिका जाने की बहुत होड़ लगी है जबकि हमने ‘स्‍टडी इन इंडिया’ अभियान को लिया। मेरे को इस बात की खुशी है कि इस विश्वविद्यालय के अंदर 65 देशों के दो हजार से भी अधिक छात्र यहां अध्‍ययन कर रहे हैं। मैं शुभकामना देना चाहता हूं तथा बधाई देना चाहता हूं और इसीलिए हमने ‘स्टडी इन इंडिया’ किया है किपूरी दुनिया के लोग हिन्दुस्तान में पढ़ने के लिए आएं।आप सबको पता है कि तक्षशिला, नालंदा और विक्रमशिला से पहले कौनसा विश्वविद्यालय था दुनिया के अन्‍दर? जब मैं इस बात को पूछता हूं कि दुनिया के लोगों आप बता तो दीजिए कि तक्षशिला, नालंदा और विक्रमशिला से पहले कौन-सा दुनिया में विश्वविद्यालय था?तबवो कोई जवाब देने को तैयार नहीं होते। इसका मतलब है कि तक्षशिला, नालंदा और विक्रमशिला जैसे विश्वविद्यालय मेरे हिन्दुस्तान के अंदर थे जहां पूरी दुनिया के व्यक्ति ज्ञान, विज्ञान और अनुसंधान के लिए आते थे। इसीलिए हम तो पहले से ही पूरी दुनिया को लीडरशिप देते रहे हैं, यह कोई नई बात नहीं है। यह अलग बात है कि गुलामी के थपेड़ों ने हमको हमारी जड़ों से अलग किया। लेकिन फिर भी हम कहते हैं कि यूनान, मिस्र, रोमां, सब मिट गए जहां से, अब तक मगर हैबाकी नामो निशां हमारा और कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी। दुनिया में न जाने कितने देश पैदा हुए और मिट्टी में मिल गए तथाकिसी का इतिहास भी नहीं मिलता लेकिन हम जिन्दा हैं। हमारी रगों में, देशभक्ति का,संस्कारों का मूल्यों का रक्‍त प्रवाहित होता है। कुछ समय पहले यूनेस्को की डीजी मुझे मिलने के लिए आई थी। मेरी एक पुस्तक का उन्होंने कार्यक्रम रखा था तो उसमेंउन्होंने कहा कि आज अनुशासनहीनता बढ़रही है।मैंने कहा कि ऐसा इसलिए हो रहा है कि हमने उनको जड़ों से तो उसको काट दिया हमने उनको मनुष्य नहीं बल्‍कि मशीन बना दिया है।आज पैकजकी होड़ लगी हुई है। पेटेन्‍ट की होड़ नहीं है। मैंने अपने सभी छात्रों को कहा है किपैकेज कीहोड़ को छोड़ के पेटेंट की होड़ जरूरी है।जिससेदुनिया में मेरा देश फिर शीर्ष पर पहुंच जाएगा।आपशोध और अनुसंधान करो। जिस बात को हम भूल गए हैं, उसको कैसे तक हम आगे ला सकते हैं। मुझे भरोसा है कि नई शिक्षा नीतिआमूलचूल परिवर्तनों को ले करके इस देश के अंदर आई है और मुझे इस बात की खुशी है कि जब हम नई शिक्षा नीति को लाये तो शायदइस पर दुनिया कासबसे बड़ा विमर्श हुआहोगा। इससे पहले किसी नीति पर दुनिया में शायद ही इतना विमर्श हुआ होगा।जहां गांव से लेकर के संसद तक, ग्रामप्रधान से लेकर प्रधानमंत्री जी तक,शिक्षक से लेकर के शिक्षाविद् तक,कोई क्षेत्र नहीं छोड़ा। तैतीस करोड़ छात्र-छात्राओं के माता-पिताओं के साथ भी हमने परामर्श किया।आप समझ सकते हैं 33 करोड़ छात्र और उनके माता-पिता को जोड़ेंगे तो 99 करोड़ होता है। गुप्ता जी मैं देख रहा था कि एनआईआरएफ रैंकिंग में आप 200 के अंदर है, मेरी शुभकामनाएं। जब मैं अगली बार आऊं तो आपको छलांग मारते हुए आगे देखना चाहता हूं।मैं कुलपति जीको इसके लिए बधाई देनाचाहता हूं।हम टाइम्स रैंकिंग एवं क्‍यूएस रैंकिंग में भी पीछे नहीं हैं। हमको बोला जाता है कि धारणा ठीक नहीं है बाकी सब अच्छे हैं लेकिनधारणा कौनतय कर रहे हैं। मैं जब आईआईटी में जाता हूं तो पूछता हूं कि पुराने छात्र कहां-कहां हैं? मुझे ढूंढ कर के बताओ तो मुझे लगता पूरी दुनिया में मेरे आईआईटी, मेरे विश्वविद्यालय,तथामेरे एनआईटी काबच्चा छायाहुआहै। यदि अमेरिका के ही शिक्षा बहुत उत्कृष्ट कोटी की होती तो गूगल और माइक्रोसॉफ्ट के सीईओ इसहिन्दुस्तान की धरती से पढ़नेवालाबच्चा नहीं होताऔर इसकी पूरी लंबी श्रृंखला है।ऐसा नहीं कि हम कमजोर हैं और वे ताकतवर हैं। इसलिए यह नयी शिक्षा नीति आई है। मुझे इस बात की खुशी है कि पूरे देश के अंदर एक उत्सव जैसा वातावरण है। ग्राम प्रधान को भी लगता है कि यह मेरी शिक्षा नीति है। अभी कुछ दिन पहले एक वेबिनारकर रहे थे जिसमें बहुत सारे लोगों ने कहा कि निशंक जी प्रधानमंत्री जी को हम आभार व्यक्त करना चाहते हैं। 34 सालों के बाद नई शिक्षा नीति को आप लाये हैं। श्रीश्री रविशंकर जी ने अपने वक्तव्य में कहा कि मुझे ऐसा लगता है कि 34 साल के बाद जो नई शिक्षा नीति आई वह देश की आजादी के बाद पहली बार आई है। लार्ड मैकाले जिस दिन इस देश में आया था उस दिन इस देश की जो साक्षरता थी 97 प्रतिशत थी और उसके बाद देश जिस तरीके से पीछे गया उसमें पीछे जाने की बहुत जरूरत नहीं है। मैं याद दिला रहा हूं केवल क्योंकि आपकोयोद्धा की तरह आगे चलना है, देश की पहचान तो अपने आपबनेगी। इसलिए मैं याद दिला रहा हूं हालांकिआपकोभी पता है लेकिन इन बातों को जेहन में 24 घंटा रखने की ज़रूरत है। इसलिए मैं याद दिला रहा हूं क्‍योंकि मेरे देशके आगे पूरी दुनिया नतमस्तक होती है। मेरे देश के प्रधानमंत्री जी के आह्वान पर सारी दुनिया जब आतंक के ढेर पर खड़ी होती है तोआतंक के खिलाफ एक मंच पर आ जाते हैं। नरेंद्र मोदी जी के पीछे खड़े हो जाते हैं।जब मौसम परिवर्तन की बात आती है और हाहाकार मचता है तो फिर मौसम परिवर्तन के बारे में भी तथा जलवायु परिवर्तन में भी हिंदुस्तान की लीडरशिपपूरी दुनिया पीछे आ जाती है। योग का अभीमैंने उदाहरणदिया, वैकल्पिक ऊर्जा का उदाहरण देरहाहूं। पूरी दुनिया में हिन्दुस्तान लीडरशिप ले रहा है और अब अनुसंधान की मुझेबार-बार जरूरत महसूस होती है एक समय था जब हमारे देश के अंदर और बाहर हम संकट से जूझ रहे थे।जबदेश के प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी थे। आपको याद होगा कि सीमा पर हम संकट से जूझ रहे थे और देश में भी खाद्यान का बहुत संकट था। उस समय लालबहादुर शास्त्री जी ने ‘जय जवान, जय किसान’ का नारा दिया था और पूरा देश इकट्ठा हो गया। हमने दोनों संकटों कोमात किया। उसके बाद मेरे देश के यशस्वी प्रधानमंत्री भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी जी आए तो उनको लगा कि नहीं अब विज्ञान की जरूरत है और उन्होंने ‘जय विज्ञान’ का नारा दिया और परमाणु परीक्षण करके उन्होंने हिंदुस्तान को पूरे विश्व की महाशक्ति के रूप में आगे बढ़ाने का काम किया। विज्ञान में भी हम कभी पीछे नहीं रहे और अब हमारे देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने कहा कि अब एक कदम और आगे जाने की जरूरत है और उन्‍होंने‘जय अनुसंधान’ का नारा दियायह जो अनुसंधान है इसकी जरूरत है। इसलिए हम अबनेशनल रिसर्च फाउंडेशन के माध्‍यम सेशोधएवं अनुसंधान की संस्कृती को विकसित कर रहे हैं,प्रधानमंत्री जी के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार की अध्यक्षता में हम लोग ‘नेशनलरिसर्च फाउंडेशन’ की स्‍थापना कर रहे हैं। तकनीकी कोअंतिम छोर तक कैसे लेकर के जा सकते हैं इसके लिए भी हम ‘नेशनल एजुकेशन टेक्नोलॉजी फोरम’ का गठन कर रहे है।‘नेशनल एजुकेशन टेक्नोलॉजी फोरम’ का गठन करके इन दोनों को साथ जोड़कर हम शोध की संस्कृति कोआगे बढ़ा रहे हैं।मुझे भरोसा है कि जो यह नयी शिक्षा नीति आयी है वो नयी शिक्षा नीति बिल्कुल नए कलेवर के साथ आई है। अब हमने10+2 को पूराखत्म कर दियातथा उसके स्‍थान पर हमने5+3+3+4 किया है एवं 5 को भी 3+2 में किया है क्योंकि 3 से 6 वर्ष के बच्चे में 80 से85 प्रतिशत मस्तिष्क का तेजी से विकास होता है और हम उस अवसर को खोना नहीं चाहते हैं। इसलिए हम खेल-खेल में तीन वर्ष के बच्चे को भीपकड़ करके उसे आगे चलाना चाहते हैं।हमारादेश पहला होगा जो स्कूली शिक्षा मेंआर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को लेकर के आ रहा है। हमको कुछ और सोचने के लिए नहीं बल्‍कि केवल डिग्री लेकरबाबूगिरी करने के लिए कुछ लोगों की परंपरा कर दी थी।अब ऐसा नहीं होगा अब कक्षा 6 से ही हम वोकेशनल स्ट्रीम इंटर्नशिप के साथ ला रहे हैं। छठी से ही बच्चा पूरा इंटर्नशिप के साथ पढ़ाई करेगा। मेघालय के युवा मुख्यमंत्री यहां बैठे हैं। मेघालय में जैसे अभी आदरणीय रामलाल जी ने कहा कि कितनी संपदा है। वहां जड़ी-बूटी हैं, जितनी सुंदरता है, उसकी खनिज संपदा है, वहां का जो छात्र है वो सब कुछ कर सकता है। वहींशोधकरे और उसको उठाए जो प्रधानमंत्री जी ने कहा है कि वोकल फोर लोकल। यह वहां से शुरू होगा और सम्‍पूर्ण विश्व तक जाएगा। जब बच्‍चा स्कूल से निकलेगा तो वह एक योद्धा के रूप में निकलेगा। उसको किसी दूसरेके पैर पर खड़े होने की जरूरत नहीं होगी और जब वो विश्वविद्यालयों में आएगा तोविश्व में आगे किस तरीके से उसको अपनी लीडरशिप पर ले जाना है, वहां से उसका सोचना शुरू होगा। हमने स्कूली शिक्षा में 360 डिग्री होलिस्टिक मूल्यांकन रखा है।जिसमें विद्यार्थी अपना भी मूल्यांकन करेगा, उसका साथी भी उसका मूल्यांकन करेगा तथा उसका अभिभावक भी मूल्यांकन करेगा और अध्यापक भी मूल्यांकन करेगा। अब उसेकोई रिपोर्ट कार्ड नहीं दिया जाएगा बल्कि अब उसे प्रोग्रेस कार्ड दिया जाएगा। इस शिक्षा नीति में हमने मातृभाषाओं को प्राथमिकता दी है क्योंकि जितनी अभिव्यक्ति व्यक्ति अपनी मातृभाषा में दे सकता है अपनी दूसरी भाषाओं में सीखकरके कर ही नहीं सकता। देश के संविधान में भी तो हमको 22 भारतीय भाषाओं को दिया गया है।तमिल, तेलगू, मलयालम, कन्नड़, गुजराती, मराठी, बंगाली, उर्दू, संस्कृत, हिंदी, उडिया, असमिया जितनी 22 भारतीय भाषाएं खूबसूरत हैं, यह केवल शब्द नहीं हैं।इनमें ज्ञान है, विज्ञान है, अनुसंधान है, परंपराएं है,सब कुछ है इनके अंदर। यही तो विविधता में एकता है मेरे देश की औरकुछ लोग कहते हैं किडॉ. निशंक आप अंतरराष्ट्रीय स्‍तरपर जाना चाहते हैं। मैंने कहा किहां, जाना चाहते हैं, छलांग मारेंगे हम। यदि ग्लोबल की बात आप कर रहे हैं तथा विश्व की बात कर रहें हैं तो अंग्रेजी तो नर्सरी से आपको सिस्टम में लाना पड़ेगा। मैंने उनको विनम्रता से पूछा उसके बाद किसी ने जबाब नहीं दिया मैंने पूछा कि जापान, जर्मनी, फ्रांस, इजराइल, अमेरिका  समेत दुनिया के बहुत  सारे देश अपनी मातृभाषा में शिक्षा देते हैं, क्‍या वो किसी से पीछे हैं, फिर क्‍योंऐसे तर्क दिये जाते हैं? किसी प्रदेश पर कोई भाषा थोपी नहीं जाएगी, हां उसकी अपनी मातृभाषा में प्राथमिक शिक्षा और वो राज्य चाहे तो उच्च शिक्षा तक भी दे सकते हैं। अभी देश के प्रधानमंत्री जी ने तो यहां तक कह दिया कि नीट और जेईई की परीक्षाभीबचचेकी मातृभाषा में होनी चाहिए।मेरा गांव का बच्चा भी अब अपनी क्षेत्रीय भाषा में डॉक्टर, इंजीनियर बन सकेगा। इसलिए हम इसकोबहुतखूबसूरती के साथ लाये हैं। जहां तक अंतरराष्ट्रीय का विषय हमने दुनिया के सौ शीर्ष विश्वविद्यालयों को इस हिन्दुस्तान की धरती पर आमंत्रित किया है।हम अपनी शर्तों पर उन्‍हें आमंत्रित करेंगे और हमारी जो शीर्ष संस्थाएं हैं वे भी विदेशों में जाएंगी। हम दुनिया के 127शीर्ष विश्वविद्यालयों के साथ ‘स्पार्क’के तहत अनुसंधान कर रहे हैं। हम ‘स्ट्रॉयड’ के साथ अनुसंधान कर रहे हैं। हमइम्‍प्रिंट, इम्‍प्रेस के साथ अनुसंधान कर रहे है और जहां‘ज्ञान’ में बाहर की फैकल्टी हमारे यहां पढ़ाने के लिए आएंगी तो अब‘ज्ञान प्लस’ में भीहमारी फैकल्टी बाहर पढ़ाने के लिए जाएगी। यह हमने तय किया है और इतनी सामर्थ्य इस देश में होनी चाहिए। इसलिए मैं समझता हूं कियहक्षणहमारे लिए बहुत आनंद के हैं तथा गौरव के हैं, यह उत्साह के हैं तथाउल्लास के हैं एवं भविष्य की आधारशिला के हैं। आज यहां से 3593 छात्र इस दीक्षांत समारोह में स्नातक, एक हजार दो सौ तीन छात्रों ने परास्नातक डिग्री और 51 छात्र पीएचडी,26 छात्र स्वर्ण पदक और 6 छात्र चांसलर पदक और तीन छात्र कुलपति पदक लेकर जा रहे हैं।मैंपदक पाने वालों के चेहरों को देख रहा  था क्‍योंकिमैं भी अध्यापक हूं इसलिएमैंचेहरों को थोड़ा सा पढने की कोशिश करता हूं। आपके चेहरे की आभा कहीं धूमिल नहीं होनी चाहिए। पहले तो किसी स्थान को बनाना बहुत मुश्किल होता है लेकिन उसस्थान को बरकरार रखने की और भी बड़ीचुनौती होती है।मैं आपको शुभकामना देना चाहता हूं किआप उस चुनौती को बरकरार रखतेहुए मुकाम तक जाएं।। मेरी शुभकामनाएं आपको।इतनी डिग्रियों को एक साथ देना इस विश्वविद्यालय की सफलता का बहुत बड़ा परिचायक है। मैं बधाई देना चाहता हूं। आपवैज्ञानिक, इंजीनियरिंग, प्रौद्योगिकी, मैनेजमेंट, मानविकी, वास्तुकला, जनसंचार तमाम विषयों को आप यहां पर पढा रहे हैं और उसकी डिग्री दे रहे हैंऔर 11 वर्षों की आपकी यात्रा ने आशातीत सफलता पाई है। मैं कह सकता हूं और मुझे भरोसा है कि जो उत्साह आप लोगों में हैंउसको बढ़ चढ़कर आगे बढ़ाएंगे। आप उन्‍नतभारत अभियान में भी, स्वच्छता अभियान में भी, एक भारत श्रेष्ठ भारत के अभियान में भी, एक पेड़ एक छात्र जो हम लोगों ने अभियान किया था कि प्रत्‍येक छात्र एक पेड़ को अपने जन्मदिन पर जरूर लगाएं उस अभियान में भी आप लगातार आगे बढ़े हैं और हरित ऊर्जा का जो अपने कैम्पस बनाया है इसकी भी आपको बहुत-बहुत बधाई देना चाहता हूं। मेरे प्रिय छात्र छात्राओं! मैं यह समझता हूं कि यह जो नई शिक्षा नीति है वह आपके लिए बेहतरअवसर लेकर आई है इस अवसर को अपने हाथ से खोने मत दीजिए। अब नई शिक्षा नीति में आप कोई भी विषय आप ले सकते हो। विज्ञान के साथ आपसाहित्य ले सकते हैं, आप इंजीनियरिंग के साथ संगीत ले सकतेहैं और आप जब चाहें तब छोड़ सकते हैं।इस शिक्षा नीति के अंतर्गत यदि कोई 4 वर्ष का कोर्स है और यदि कोई छात्र दो साल में परिस्‍थितिवशछोड़के जा रहा है  तो पहले उसका पैसा एवं वर्ष दोनों खराब हो जाते थे लेकिन अब उसकोनिराश नहीं होना पड़ेगा।यदि आप परिस्‍थितिवश एक वर्षमें छोड़ कर जा रहे हैं तो उसको सर्टिफिकेटदेंगे,दो साल में छोड़ कर जा रहा है तो डिप्लोमा देगें, तीन साल में छोड़कर जा रहा है तो उसकोडिग्री देंगे लेकिन यदि फिर वह लौट कर अपने भविष्य को संवारना चाहता है तो फिर जहां से उसने छोड़ा था वहीं से शुरू कर सकता है। उसके लिए हम एक ऐसा क्रेडिट बैंक बनायेंगे जहां उसके सारे क्रेडिट जमा होंगेइसलिए उसके लिए आगे बहुत आपार संभावनाएं है।वह कहां जाना चाहता है, शोध और अनुसंधान के क्षेत्र में जाना चाहता है।स्‍टडी इन इंडिया के तहत अभी 50 हजार लोग यहां पर आए हैं। उन्होंने रजिस्ट्रेशन किया है। यदि कोविडनहीं होता तो बहुत तेजी से यह बढ़ रहा था लेकिन मैं अनुरोध करना चाहता हूं कि इस विश्वविद्यालय से कि जहां हमने‘स्टडी इन इंडिया’ का अभियान लिया है वहीं हमने ‘स्‍टे इन इंडिया’ अभियान भी लिया है क्‍योंकि हमारे देश से 7-8 लाख छात्र प्रतिवर्ष विदेशों में पढ़ने के लिए जा रहे हैं। हमारे देश का पैसा और प्रतिभा दोनों बाहर चली जाती हैं वो प्रतिभा वापस हमारे देश में नहीं आती है। इसलिए हमने‘स्‍टे इन इंडिया’ किया  हमने  छात्रों को भरोसा दिलाया कि हमारे आईआईटी, एनआईटी, आईसर, केन्‍द्रीय विश्‍वविद्यालयों में योग्‍यता है तथा क्षमता है और आपको  बाहर जाने  की जरूरत नहीं है,अब लोगों की समझ में आ गया है। मुझे इस बात की खुशी है कि पीछे के समय जब हमने जेईई परीक्षाएं करवाई और दो लाख से भी अधिक छात्र जोविदेश में जा रहे थेवे जेईई और नीट की परीक्षाओं में सम्‍मिलित हुए।  हम ‘स्‍टे इन इंडिया’ के तहत दुनिया के शीर्ष सौविश्वविद्यालयों को अपनी धरती पर आमंत्रित कर रहे हैं, आपकोकहीं जाने की जरूरत नहीं है और यहां के जो शीर्ष विश्वविद्यालय हैं वेभीबाहर जा रहे हैं। ये आदान-प्रदान हम करेंगे।हम कोशिश कर रहे हैं कि उनको यहां सारी सुविधाएं दें। इसलिए अब बाहर जाने की जरूरत नहीं है। मेरे देश के प्रधानमंत्री जी ने फाइव ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था की बात की है,साथ ही प्रधानमंत्री जी ने यह भी कहा हैकि21वीं सदी का स्वर्णिम भारतचाहिए। ऐसा भारत जोसुन्‍दर हो,स्वस्थ हो,सशक्त हो,समृद्ध हो,आत्मनिर्भर हो,श्रेष्ठ हो और एक भारत हो।ऐसा भारत जिसका रास्ता ‘मेक इन इंडिया’,‘डिजिटल इंडिया’,‘स्किल इंडिया’,‘स्टार्टअप इंडिया’ और ‘स्टैंडअप इंडिया’ से होकर गुजरता हो और उस भारत की आधारशिला यह नई शिक्षा नीति है और मुझे भरोसा है कि हम इसेमिशन मोड में करेंगे। यह शिक्षा नीति दुनिया के सबसे बड़े परामर्श के बाद आई है। मुझे भरोसा है कि आज का यह दिन आपके जीवन के इतिहास में एक ऐसी इबारत लिखेगा जो आपको हिन्दुस्तान की उंचाइयों पर नहीं बल्कि हिन्दुस्तान को आप पर गर्व हो करके विश्व में आप चमक सकें, आपको मेरी शुभकामनाएं।

 

बहुत-बहुत धन्‍यवाद!

 

कार्यक्रम में गरिमामयी उपस्‍थिति:-

 

  1. डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’, माननीय शिक्षा मंत्री, भारत सरकार
  2. श्री कोनार्ड संगमा, माननीय मुख्‍यमंत्री, मेघालय
  3. डॉ. महेश शर्मा जी, पूर्व कैबिनेट मंत्री, भारत सरकार
  4. डॉ. रवि प्रकाश, महासचिव, भारतीय गुणवत्‍ता परिषद्,
  5. श्री पी. के. गुप्‍ता, कुलाधिपति, शारदा विश्‍वविद्यालय
  6. श्री यतिन्‍द्र कुमार गुप्ता, उप- कुलाधिपति, शारदा विश्‍वविद्यालय
  7. डॉ. शिवराम खारा, कुलपति, शारदा विश्‍वविद्यालय

 

 

महिला सशक्‍तिकरण विषय पर आधारित एआईसीटीई लीलावती पुरस्‍कार का शुभारम्‍भ

महिला सशक्‍तिकरण विषय पर आधारित एआईसीटीई लीलावती पुरस्‍कार का शुभारम्‍भ

दिनांक: 17 नवम्‍बर, 2020

 

माननीय शिक्षा मंत्री, डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’

          मैं सबसे पहले तो ‘लीलावती पुरस्‍कार 2020’ की विधिवत् घोषण कर रहा हूं कि आपने जो यह शुरूआत की है मैं उसके लिए एआईसीटीई को बहुत बधाई देना चाहता हूं। आज एआईसीटीई के अध्‍यक्ष प्रो. अनिल सहस्‍त्रबुद्धे जी, उपाध्‍यक्ष प्रो. एम.पी. पूनिया जी, प्रो. वसुधा कामत जी, प्रो. राजीव कुमार जी, डॉ. अमित कुमार श्रीवास्‍तव जी, एआईसीटीई का पूरा परिवार तथा सभी कॉलेजों के एवं विश्‍वविद्यालयों के संकाय सदस्‍य, कुलपति, अन्‍य सहयोगी भाईयो और बहनों! साथ ही जिन लोगों ने इस योजना को समर्थ बनाया और जिन्‍होंने इसका डिजाईन बनाया प्रो. हीना जी, प्रो.शिखा कपूर जी, डॉ. पी. विनेशा जी, रूचिका जी आप सभी को बहुत सारी शुभकामनाएं देना चाहता हूं कि आज एक अच्‍छा काम हुआ है महिला सशक्‍तिकरण क्‍योंकि हमारे देश में थोड़ा सा पीछे मुड़कर देखते हैं तो जिस व्‍यक्‍ति को, जिस परिवारको, जिस समाज को, जिस राष्‍ट्र को अपने अतीत को देखकर के आगे बढ़ना नहीं आता जिसको अपने अतीत का गौरव महसूस नहीं होता है, वह बहुत आगे नहीं बढ़ पाता है वह कटी हुई पतंग की तरह आसमान में उड़ जाता है और इसलिए जब भी हम अपने देश की बात करते हैं तो हम पीछे देखते हैं कि हम क्‍या हैं क्‍योंकि वो हमारा गौरव है। पूरीदुनिया में हिन्‍दुस्‍तान विश्‍व गुरू के रूप में रहा है जिसने हर क्षेत्र मेंपूरी दुनिया का मार्गदर्शन किया है। ऐसे देश में जब हम अपने ऋषि-मुनियों की, समाजशास्‍त्रियों की, शिक्षाविदों की जब तक बात करते हैं तो उसमें हर क्षेत्र में नारी शक्‍ति शीर्ष पर दिखती है। इसलिए अगर हम शुरू से देखेंगे तो चाहे वो मां सरस्‍वती के रूप में रहा हो, हमने मां सरस्‍वती को हमेशा मां कहा है। यदि सरस्‍वती किसी व्‍यक्‍ति से रूठ जाये तो उसको लोग कहते हैं कि यह पागल हो गया, क्‍योंकि उसे पता नहीं होता है, क्‍या बोलना है और क्‍या नहीं उसकी जिह्वा पर सरस्‍वती न हो तो वह पागलों की तरह भटकता नजर आयेगा इसलिए गायत्री को मां कहा है, सरस्‍वती को मां कहा है, लक्ष्‍मी को भी हमने मां कहा है क्‍योंकि बिना धन के कोई खड़ा नहीं हो सकता है। अभी पूनिया जी 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्‍यवस्‍था की बात कर रहे थे और धरती पर जब-जब भी आसुरी प्रवृत्‍तियां पैदाहुई हैं तब उनका विनाश करने के लिए मां दुर्गा ही सामने आई हैं। यदि आप देखेंगे तो मां पुरूष और महिला की कभी समानता नहीं हो सकती है। मां तो मां है मां समान कैसे हो सकती है। इसलिए यह जो पाश्‍चात्‍य हौड़ लगी कि महिला पुरूष को समान होना चाहिए इसने महिला पुरूष के बीच की खाई को पाटा नहीं है बल्‍कि बांटा है क्‍योंकि  मां का जो दर्जा था,  जिस श्रेष्‍ठता  पर वो थी उसकी श्रेष्‍ठता  को हम कैसे नीचे ला सकते हैं, यह कैसे संभव हो सकता है।हमारे शास्‍त्रों में कहा गया है कि जिस भी समाजमें,राष्‍ट्र में महिला का सम्‍मान होताहै वही प्रगति करता है और जिस परिवार में महिला का सम्‍मान नहीं है, हम अपने अगल-बगल भी देख सकते हैं लंबी बात करने की जरूरत नहीं है जिस परिवार में महिला का अपमान हो रहा होगा आप देखिए वह परिवार  बर्बाद हो जाता है।इसीलिए यह जो मां हैं यह जो नारी शक्ति है हमने तो हमेशाउस शक्ति की पूजा की है।अंततोगत्‍वासारे संसार कोआकर के शक्ति की ही पूजा करनी है। अभी वो प्रगति की दौड़ में, अर्थतंत्र की दौड़ में,भौतिकवाद के रूप में सब कुछ हो रहा है लोगों में मूल्यों को समाप्त करके केवल होड़ लगी है, दौड़ लगी है वो हौड़ और दौड़ कहीं न कहीं जब खत्म हो जाएगी और लगेगा कि कुछ नहीं मिला तब अंत में निराश होकरके उसी स्थान पर शक्ति की पूजा के रूप में होता है, संस्‍कारों के रूप में होता है, विचारों के रूप में होता है, और जो समर्थता के रूप में होता है और अंतत: शक्ति के पास आकर के सबको खड़ा होना पड़ता है। इसीलिए भारत की जो हमारी परंपरा रही है वो सृजन करती है चाहे वो मां केरूप में हो अथवा एक बहन के रूप में। एक मां के रूप में कैसे करके वो उन रिश्तों को निभाती है और हरचुनौती का मुकाबला करकेएक सृजन करती है। इसलिए कहते हैं कि लाख पुरूष एकतरफ और एक महिला दूसरी तरफ दोनों बराबर होते हैं। पुरुष को शिक्षित करना होता है तो केवल एक पुरुष शिक्षित होता है लेकिन महिला शिक्षित होती है तो पीढ़ी दर पीढ़ी शिक्षित होती है, पूरा समाज शिक्षित होता है औरसंस्कारों के साथ खड़े होते हैं और इसलिए मैं समझता हूं कि जो आज यह काम हो रहा है यह बहुत अच्छा काम है और मुझे इस बात को लेकर की खुशी है। जब मैं देश के अन्दर सभी स्थानों पर जाता हूं तोमैं सबसे पहले देखता हूं कि जो दीक्षांत समारोह हैं इसमें पुरस्कार पाने वाले जोहैं उसमें महिलाओं की क्या स्थिति है। मुझे यह कहते हुए बहुत गर्व महसूस होता है कि अभी मैंपीछे के समय में उत्‍तर प्रदेशके एक विश्वविद्यालय में गया। वहां 75 प्रतिशत से अधिक गोल्ड मेडल प्राप्त करने वाली सब बालिकाएं थी। डिग्रियों को प्राप्त करने वाली 60 प्रतिशत से अधिक छात्राएं थी। अभी मैं आईआईएम पंजाब में जुड़ा था। उस आईआईएम के दीक्षांत समारोह में वहां 60 प्रतिशत से भी अधिक बालिकाओं ने डिग्रियों को प्राप्त किया तो मुझे इस बात की खुशी हैऔर मैं आपका भी देख रहा था कि आपने जो पीछे से 2014-15 से लेकर 2020 तक 21430 छात्राओं को स्कॉलरशिप दीऔर पीजी में 2018-19में 141 महिलाओं को फेलोशिप दी। 2015 से 2020 के बीच 14502 छात्राओं को डिग्रीकोर्स हेतू प्रगति और स्कॉलरशिप दी और 9468 छात्राओं को डिप्लोमा कोर्स के लिए प्रगति स्कॉलरशिप दी साथ ही 460 दिव्यांग छात्राओं को आपनेसक्षम स्कॉलरशिप दी। मुझे अच्छा लगा कि इस दिशा में आप यदि पीछे सेदेखेंगे तो आपने छलांग मारी है।यहबात सही है कि अभीपूनियाजीभी कह रहे थे कि हम दौड़ रहे हैं,हम भी कह रहे हैं कि दौड़ो। मुझे इस बात की खुशी है कि पीछे के एक साल सेमैं देख रहा हूं किहमारे चेयरमैन साहब तो यंग होते जा रहे हैं दौड़ते-दौड़ते,हर क्षेत्र में दौड़ रहे हैं। उनके चेहरे औरमुस्कुराहट से साफ लग रहा है वे हर क्षेत्र मेंअव्‍वलआ रहे हैं और क्यों नहीं आएंगे? जब इच्छाशक्ति होती है और टीम अच्छी होती है तथा टारगेट साफ सामने रहता है और दौड़ने की योग्यता भी रहती है तो आपको कोई रोक नहीं सकता।लेकिनकई बार दौड़ने की तो इच्छा हो तथायोग्यता न हो तो भी बहुत मुश्किल हो जाता है। लेकिन यदि योग्यता भी होऔरदौड़ने की इच्‍छा नहो तो भी बेकार हो जाता है और यदि व्‍यक्‍ति अकेला दौड़ रहा हो और टीम तमाशा देख रही होतबभी बेकार हो जाता है।इसलिए यह प्रगति की दौड़ है जिसेसब मिलकर के विजनके साथ इकट्ठा होकर जाने का दम चाहिए।हमारे देश के प्रधानमंत्री जी बार-बार कहते हैं किजो21वीं सदी का स्वर्णिम भारत है उस भारत की ओर हम तेजी से दौड़ रहे हैं। मैं कह सकता हूं कि एआईसीटीईइस दौड़ में काफी आगे दौड़ रहा है, मेरी शुभकामनाएं हैंकि आप हर कदम पर दौड़दिखा भी रहे हैं तथारिजल्ट भी पारहे हैं।मैंपीछे के एक साल, डेढ़ साल से सब कार्यक्रमों में लगभग-लगभग हरजगह जुड़ता हूं। आप नया कुछ न कुछ कर रहे हैं। छात्राओं के बीच, छात्रों के बीच, संस्थाओं के बीच, जो लोग शोध कर रहे हैं उनके बीच,जोअनुसंधान के क्षेत्र में भी बहुत आगे बढ़ रहे हैं।आज लीलावती पर आपने यहपुरस्कार शुरू किया और जैसे वसुधा जीअभी चर्चा कर रही थी कि हमारे भास्कराचार्य जी पूरी दुनिया में अद्भुत वैज्ञानिक थे और उन्‍होंने अपनी बेटी लीलावती को विदुषी बनाने के लिए ‘सिद्धांत शिरोमणि’की रचना की। लीलावती को समझाते हुए उसकी रचना 36 वर्ष की आयु में उन्होंने की थी और जटिल से जटिल जो भी विषय है,गणित जैसा जटिल विषय उसको भी पद्धात्‍मक तरीके से समझाया है। गणित को आम लोग केसेसमझ सकते हैं उसकी टीका उन्‍होंने स्वयं लिखी ताकिजन मानस के पास गणित का ज्ञान पहुंच सके।‘सिद्धांत शिरोमणि’ को पढ़ेंगे तो आपको लगेगा कि एक पिता अपनी बेटी को बात करते-करते पूरी दुनिया समझा देता है तथाज्ञान, विज्ञान, अनुसंधान का उसके अंदर समावेश कर देता है। हमारे एआईसीटीई के चेयरमैन साहब कह रहे थे और इनके यहांहम लोगों ने भारतीय ज्ञान परंपरा का एक प्रकोष्ठ भी शुरू किया है। यही सब चीजें हैं जो हमारी थाती हैं। हमारे देश की गुलामी के कारण हमारी जड़ों से हमको खत्म कर दिया गया तथादूर धकेल दिया गया। इस देश की वोविश्वगुरु भारत की छवि को खत्‍म करने की कोशिश हुई है। आज हम स्‍वाधीन हैं लेकिन लम्‍बे समय की गुलामी ने हमें अपनी जड़ों से दूर किया और आज उसको फिर हरा-भरा करने की छोटी चुनौतीनहीं है, यह बड़ी चुनौती है क्योंकि जो लार्ड मैकाले की शिक्षा नीति थी उसने हमें बहुत नुकसान पहुंचाया है। लेकिन यह जो नई शिक्षा नीति है वसुधा जी यहांपर बैठी हुई है और आज पूरे देश नेनई शिक्षा नीति को स्वीकारा है। इसका मतलब संस्कार में कहीं न कहीं वो भावनाएंजीवित हैं।‘‘यूनान,मिस्र, रोमा सब मिट गए जहां से अब तक मगर है बाकी नामोनिशां हमारा और कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी।’’ यह जो कुछ बात है जो मिटाने से भी मिटती नहीं है वो हमारी रगों में है। हमारा देश विश्‍वगुरू रहा है और हम लोगों ने हमने हमेशा यह कहा है कि‘‘अयं निजः परो वेति गणना लघुचेतसाम्। उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम्॥’’अर्थात् पूरे विश्‍व को हमने अपना परिवार माना हैऔर उसके लिए ‘सर्वे बहुत सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया’ की ईश्वर से प्रार्थना की। धरती पर कोई व्यक्ति दुखी नहीं रहना चाहिए और इसलिएहम पूरी दुनिया को अपना परिवार मानते हैं। हमने पूरी मानवता की सेवा के लिए अपना समर्पण इस सीमा तक किया। इसलिए हम विश्वगुरु रहे हैं और ऐसे ही नहीं केवल सेवा समर्पण की बात नहीं हैं बल्‍किहम ज्ञान, विज्ञान, अनुसंधान, में कहींभीपीछे नहींरहें हैंकहीं पीछे नहीं रहे हैं और हमारी मातृ शक्ति भीकहाँ पीछे रही है। हमारी मातृशक्ति भी बहुत ताकत के साथ हर कदम पर आपदेखेंगे कि हमेशा चट्टान की तरह पीछे खड़ी रही है। परिवार में अच्छे दोनों प्रकार के लोग होतेहैं हमअच्‍छेका ही उदाहरण देते हैं और जो खराब है उसको भी अच्छा करने की कोशिश करते और इसलिए मैं समझता हूँ कि इस समय हमारे देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी ने कितने ही महिला सशक्‍तिकरण से जुड़ी योजनाओं को आरम्‍भ किया है, चाहे बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ का अभियान रहा हो और चाहे वो सुकन्या का कार्यक्रम रहा हो और मुझे लगता है कि कम से कम 14-15 ऐसे कार्यक्रम हैं, जो हमारी मातृशक्‍ति को और मजबूत करते हैं। आप एक के बाद एक यदि देखेंगे तो महिला सशक्तिकरण के लिए देश में इस बीच जिस तरीके से काम हुआ है उसकापरिणाम में सारे आंकड़े जब मैं निकालता हूं तो मुझे खुशी होती है। आज छात्रों से भी आगे हैं छात्राएं तथाहर क्षेत्र में आगे हैं। यदि आप बहुत पीछे भी न जाएं तोअभी जो ‘चंद्रयान-2’ का मिशन था उसकीमिशन डायरेक्टर रितु थी। सारी दुनिया को बताया हमने भले ही चांद पर पहुंचने में थोड़ा फासला रह गया था लेकिन हमने विजय प्राप्त की। उसके साथ मुथैया वनिता, प्रोजेक्ट डायरेक्टर थी। आप सबको मालूम हैं जो मैं अभी आईआईएमरोहतक की बात कर रहा था वहां बहुत बड़ी संख्या में हमारी मातृशक्‍ति है। यदि वैसे भी केवल आईआईटी और एनआईटी में भी यदि देखेंगे तो वर्ष 2017-18 में जो हमारीमहिला छात्र थी वो 1840 थी। वर्ष 2019-20 में वो बढकर के 3411हो गई हैं। यह केवल दो ही साल में आईआईटी तथाएनआईटी की मैं बात कर रहा हूं और आपने तो बता ही दिया कि 25 लाख बालिकाएं हमारी एआईसीटीई में पढ़ रहीं हैं। हमारी बालिकाएं कहीं पीछे नहीं हैं और मैं देख रहा हूं कि पीएचडी कार्यक्रमों में भी कितनी तेजी से महिलाओं की संख्या बढ़ी है। अभी आईआईटी से वर्ष 2015-16 में केवल 1871 महिलाओं ने पीएचडी किया हैंऔर इस समय 2019-20 में 3411अर्थात्लगभग दुगना हो गए।यह तेजी से प्रगति हो रही है। मुझे बहुत खुशी है कि जिस तरीके से हमने बेटी बचाओ, बेटी पढाओ, सुकन्या, उज्ज्वला योजना के माध्‍यम से महिलाओं के उत्‍थान के लिए काम किया है। फाइटर विमान को चलाने वाली जो अवनी चतुर्वेदी है, जो वर्तिका जोशी है, उनकी लीडरशिप में हमारी महिलाएं पूरी दुनिया घूम कर के आ गयी। मुझे लगता है बिछेंद्री पाल अपने जमाने में जब मैंउत्तरकाशी में पढ़ा रहा था तो बिछेंद्रीउत्तरकाशी के पास के गांव की है। वो बहुत साहसी थी जुनूनी थी इसलिए पूरी दुनिया में भारत की पहली एवरेस्ट विजेता बिछेंद्रीपाल बनी।अभी कुछ दिन पहले मैं उत्तर प्रदेश में गया था तो जो हमारी दिव्यांग महिला अरुणिमा है, जिसने दोनों पांव न होने के बावजूद एवरेस्‍ट पर विजय प्राप्‍त की। पीछे के वर्ष में हमने दीपा मलिक को सम्‍मानित किया जो पैरा-ओलम्‍पिककी पहली भारतीय महिला दिव्यांग हुई। यदि हम सुश्री संतोष यादव की बात करें तो उन्‍होंने दो बार एवरेस्‍ट फतह किया। पी.वी. सिंधु और कल्‍पना चावला सहित कितने लोगों की गिनती करें, हर क्षेत्र में हमारी महिलाएं गौरव के शिखर पर हैं। इसीलिए यह जो आपने पुरुस्कार आज शुरू किया है तथा साथ ही महिला स्वास्थ्य के क्षेत्र में भीआप बेहतरीन कार्य कर रहे हैं। उनको सम्मान दे रहे हैं, आत्म रक्षा के क्षेत्र में भी प्रशिक्षण दे रहे हैं। साक्षरता के क्षेत्र में,देश में उद्यमशीलता के क्षेत्र में भी आप उन्‍हें प्रशिक्षित करने का सराहनीय कार्य कर रहे हैं। विधि आयोग औरकानून संबंधी जागरूकता के लिए विभिन्न आयामों को जिन छह क्षेत्रों में आप दे रहे हैं औरवसुधा जी ने जो सुझाव दिया है उसको भी आप यदि इसमें समाहित कर देंगे तो बहुत अच्छा हो जाएगा। लेकिनमुझे इस बात की खुशी है कि कहीं न कहीं चेयरमैन साहब आपके और आपकी टीम के दिमाग में कुछ न कुछ तो चलता रहता है और वो अच्छा लगता है। मैं देखता हूं कि कुछ नए आइडियाज सदैव आपके पास रहते हैं क्‍योंकिजब हमने युक्ति किया तो आपने कहा कि ‘यूक्‍ति-2’कर दीजिए। आपने अध्‍यापकप्रशिक्षण के लिए एक नया कार्यक्रम कर दिया। आपने कहा कि कोविडमें जिन-जिन संस्थाओं ने बहुत अच्छा काम किया तो आपकी नजर आपकी टीम की नजर अंतिम छोर पर हर तरफ है। कौन कहां पर क्या कर रहा है और क्या उनको करना चाहिए।इससेदूसरे लोगों को भी प्रोत्साहन मिलता है और दूसरे लोग भी उसकी प्रतिस्पर्धा में आते हैं। समाज में एक दूसरेको देख करके बहुत सारी चीजें बोलकर ही परिवर्तननहीं होते बल्‍कि करके परिवर्तन होते हैं और बोलने में तथाकरने में अंतर होता है। वहां खोखलापनहोता है वहां केवलबड़ी बातें होती हैं और छोटे-छोटे परिवर्तन बड़े-बड़े परिवर्तन का कारण हमेशा बनते हैं। मुझे लगता है एआईसीटीईजिस तरीके से आप कर रहे हैं मुझे भी खुशी होती है और मैं भी सब काम छोड़ कर के आगे दौड़ता हूं। आप आगे दौड़ते हैं और मैं आपके पीछे दौड़ता रहता हूं। जब आपबुलाते हैं तो मैं भी पहुंच जाता हूं और मुझे इसलिए खुशी है कि आप बहुत अच्छा काम कर रहे हैं। लीलावती पुरस्कार जैसे नवाचारी कदमों को आपने उठाया है और मुझे भरोसा है कि जो नयी शिक्षा नीति आ रही है वो बड़े व्यापक परिवर्तनों के साथ नए आयामों के साथआ रही है। पूरे देश में उत्सव जैसा वातावरण है और आमूल-चूलपरिवर्तन करके जो स्कूली शिक्षा से लेकर कर उच्च शिक्षा तक मुझे भरोसा है कि इसकी जो आधारशिला है वो भारत केन्द्रित है। हम अपने मानवीय मूल्यों के आधार पर शिखर को चूमना चाहते हैं जिस पर यह हिंदुस्तान विश्वगुरु रहा है और इसलिए ज्ञान, विज्ञान, अनुसंधान तथा नवाचारकेक्षेत्रों में हम आगे बढ़ेंगे। मुझे खुशी है कि आपने पीछे हैकाथान किया था और उसमें भी आप लोग बहुत तेजी से अव्‍वलआए तथा अब महिलाओं का भी हैकाथानहोगा, तो युवाओं का भी होगाऔरसंस्थाओं का भी होगा एवं विषयों का भी होगा। अबहर चीज में दौड़ होगी, कुछनयाकरने की जिजीविषा होगी, जिज्ञासा होगी औरउन संकल्पों के साथ उसको आगे बढ़ने का हम मौका देंगे और जब वे स्वयं ही लीडरशिप अपने हाथ में ले करके दौड़ेंगे तो कौन-सा परिवर्तन नहीं होगा, दुनिया तो अब आपके ऊपर देखने लग गई है। देश के प्रधानमंत्री ने जो जैसे 21वींसदी के स्वर्णिम भारत की तथा5ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था की जो बात कही है, उसे आत्मनिर्भर भारत के साथ जोड़ेंगे एवं नई शिक्षा नीति का साथ उसकी आधारशिला बनेगा।मुझे भरोसा है कि जो आज यह कार्यक्रम शुरू हो रहा है यह कार्यक्रम निश्चित रूप में दूसरों को भी प्रेरित करेगा और जो मेरी मातृशक्ति है, जो नारी शक्ति है जिसके अन्दर असीम क्षमता है, असीम इच्छा शक्ति है, वो ममता की भी प्रतिमूर्ति है और विनम्रता की भी है, साथ ही संवेदना, संवेदनशीलता की भी है लेकिन उसी सीमा तक कठोरताकी भी है। यह अत्यंत संवेदनशीलता और शिखर की कठोरता इन दोनों का यदि समावेश है तो वो नारी शक्ति है और इसलिए हर युग ने उसका दर्शन किया है, हर समाज ने उसका दर्शन किया, हर परिवार ने उसका दर्शन किया है। मुझे भरोसा है कि यह अभियान आगे बढ़ेगा और मैं तो स्वयं इस बात को महसूस करता हूं। मेरी तीन बेटियां हैं एक संस्कृति के क्षेत्र में, दूसरी फौज में हैं और तीसरीकानूनके क्षेत्र में हैं।मुझे उनको देखकर प्रेरणा मिलती है कि यदि वह बेटे होते तो शायद इतना नहीं कर पाते जितना यह अपनी मेहनत से कर रही हैं। इसलिए मैं कह सकता हूं कि जितनी मेहनती लड़कियां हैं उतने मेहनती तीन लड़के नहीं हो सकते। जितनी संवेदनशील बालिकाएं होती उतनी संवेदना पुरूषों में नहीं हो सकती।स्‍त्रीप्रकृति की देन है, जो मां है उसमें ममता आती ही आती है, उसमेंधैर्य भी कम नहीं होता। उसमेंअसीम धैर्य है लेकिन जब वो अपने पर आती है तो वह उसी शिखरताकाविकराल रूप भी है इसलिए इस शक्ति को पहचानने की ज़रूरत है तथा इस शक्‍ति को आगे बढ़ाने की जरूरत है एवं इस शक्ति का अभिनंदन करने की ज़रूरत है।मैंएआईसीटीई कोलीलावती पुरस्कार के लिए एक बार फिर बधाई देता हूं।

 

बहुत-बहुत धन्‍यवाद!

 

कार्यक्रम में गरिमामयी उपस्‍थिति:-

  1. डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’, माननीय शिक्षा मंत्री, भारत सरकार
  2. प्रो. अनिल सहस्‍त्रबुद्धे, अध्‍यक्ष, एआईसीटीई
  3. प्रो. एम.पी. पूनिया, उपाध्‍यक्ष, एआईसीटीई
  4. प्रो. वसुधा कामत, प्रो. राजीव कुमार, डॉ. अमित कुमार श्रीवास्‍तव, प्रो. हीना, प्रो.शिखा कपूर, डॉ. पी. विनेशा, प्रो. रूचिकाएवं संकाय सदस्‍य, विभिन्‍न विश्‍वविद्यालयों के कुलपतिगण एवं छात्र-छात्राएं।

 

 

आईआईटी खड़गपुर द्वारा आयोजित भारतीय ज्ञान प्रणाली पर आधारित ‘भारत तीर्थ’ एक अंतर्राष्‍ट्रीय वेबीनार

आईआईटी खड़गपुर द्वारा आयोजित भारतीय ज्ञान प्रणाली पर आधारित ‘भारत तीर्थ’ एक अंतर्राष्‍ट्रीय वेबीनार

 

दिनांक: 06 नवम्‍बर, 2020

 

माननीय शिक्षा मंत्री, डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’

 

          भारत तीर्थ’ को अभी हम लोगों ने देखा है और सच में आज मैं बहुत अभिभूत हूं कि आईआईटी खड़गपुर ने देश की आत्‍मा को पहचानने की कोशिश की है। विश्‍व गुरू भारत के उस दर्द को महसूस किया है और आज यह बड़ा कदम उठाया है।

मुझे कुछ विशेष नहीं कहना है क्‍योंकि मेरे से पूर्व सभी वक्‍ताओं ने और आपकी जो दो-तीन मिनट की जो प्रस्‍तुती है वह पूरा व्‍याख्‍यान स्‍वयं ही करती है मेरे भारत का, मेरे ज्ञान, विज्ञान, विचार, दर्शन का। मंत्रालयमें मेरे अनन्‍य सहयोगी और जिन्‍होंने इस नई शिक्षा नीति में रात-दिन खप करके इसकी परिणति तक पहुंचाया है उन्‍होंने भी बहुत सारी बातें यहां पर कही हैं मेरे सचिव, अमित खरे जो इस शिक्षा नीति में चौबिसों घंटे इसकी परिणति तक पहुंचानेके लिए रात-दिन यत्‍न किया वो भी हमसे जुड़े हुए हैं और तिवारी जी मेरा मन कहता है कि आपकी जो यह पहल है आज का यह बेविनार सामान्‍य वेबिनार नहीं है। यह भारत के मूल्‍यों की, ज्ञान की, विज्ञान की, उस विश्‍वगुरू भारत की यह आत्‍मा है।आपकी टीम में विजनरी लोग हैं और क्यों न हों क्‍योंकि देश की आजादी के साथ इस संस्‍थानकाजन्म हुआ है। देश ने तमाम सैकड़ों वर्षों तक की गुलामी के थपेड़ों को झेला है। उस दर्द को हम भूल नहीं सकते हैं। सब कुछ होते हुए भी इस देश में ना प्रतिभा की कमी थी, न संघर्ष की कमी थी,न विजन की कमी थी, न मिशन की कमी थी, न ज्ञान की कमी थी, न विज्ञान की कमी थी। सभी कुछ तो था फिर भी हम गुलाम रहे और हमारे उस ज्ञान विज्ञान को किस तरीके से तहस-नहस करने की कोशिशें हुई हैं यह जरूर मेरी पीढ़ीकोजाननेकी जरूरतहै क्योंकि दुर्भाग्य से देश के आजादी के बाद हमने कभी अपने भारत को जानने की कोशिश ही नहीं की। हम दौड़ में लग गए।

हमारी दौड़ एक अच्छे पैकेज तक क्यों हो गई? हमने न तो अपने को जाना तथा न ही अपने अतीत को महसूस किया और न ही पीछे को और महसूस किया न पीछे को अपने से जोड़ करके आगे बढ़ाने की कोशिश की।आप पीछे क्या हुआ उस पर न जाएं तो आज जो हो रहा है वो आशा भरा दिन है। बहुत दूर तक जाने वाला विजन है, पूरी दुनिया को एक नई ऊर्जा देने वाला कदम है और इसीलिए मैं आपको शुभकामनादेना चाहता हूं। प्रो.तिवारी जीसोचते तो बहुत सारे लोग हैं लेकिन उसको सामूहिक रूप सेअपनी टीम के साथ आगे बढ़ाने का माद्दाकुछेक लोगों में हीहोता है।

हमारे अतुल भाई जो शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के राष्ट्रीय मंत्री हैं और बहुत लंबे समय तक से जो शिक्षा के क्षेत्र में अपने जीवन को देरहे हैं, उन्होंने बहुत महत्वपूर्ण विषयों पर हमारा ध्यान केन्द्रित किया है। आपके प्रो.एस.के.भट्टाचार्य जो उप-निदेशकहैं, वे भीबहुतशालीन हैं हमने इनको भी बहुत निकटता से देखा है और मुझे अच्छा लगा जब-जब मिलते हैं और बोलते हैं तो इनकी शालीनता उसमें झलकती है और आपके जो प्रो. सोमेश जी हैं उनको भी मैं धन्यवाद देना चाहता हूं।

हां, यह बात सही है कि जब मैं आया था खड़गपुर में और उसके बाद जब निदेशक के कमरे में पहुँचा था तो प्रो. जॉयसेन ने अपनी वास्तु कला के दो पुस्तकों को मुझे भेंट किया था और मुझे उनके शब्द याद है कि उन्होंने कहा कि आप दस-बीस साल पहले क्यों नहीं आ गए उस समय अनुराधा चौधरी जो संस्कृत की आपकी प्रोफेसर हैं वो भी थी और इन दोनों से मैंने विनती की थी। जब मैंने डॉ.सेन के दोनों ग्रंथों को देखा था तो मेरी जो आशाएं थीं वो बहुत आगे बढी और उसी दिन मुझे लगा कि जो मैं सोच रहा था वो हो रहा है,जो मैं करना चाहता था, उसकी दिशाएँ बनी हुई है। मेरे देश के प्रधानमंत्री जी चाहते हैं कि मेरा देश 21वीं शताब्दी का स्वर्णिम भारत हो जो ज्ञान और विज्ञान तथाअनुसंधान और नवाचार के शीर्ष पर हो और जो भारत केन्द्रित हो जो भारत की उस ज्ञान, विज्ञान, अनुसंधान की परम्‍परा को आगे बढ़ाने वाला हो। जोभारत स्वच्छ भारत, स्वस्थ भारत, सशक्त भारत, समर्थ भारत,आत्मनिर्भर भारत और श्रेष्ठ भारत हो उस श्रेष्ठ भारत की आधारशिला इस संस्‍थान में कहीं मुझे दिखतीहै।

उसके बाद नई शिक्षा नीति आई और नई शिक्षा नीति में जो लोग इस मिशन में जुटे हुए थे, जो छटपटा रहे थे जो इस बात को जानते थे, जानते हैं और जिन्होंने अपने जीवन का कण-कण खपा कर के उस भारत की ज्ञान विज्ञानमयी और जीवनमयी उन सब विधाओं को आगे बढ़ाने की दिशा में अपना संकल्प लिया है उन लोगों की भावना को इसमें समाहित किया गया और यह डेढ़ सौ वर्षों के बाद लार्ड मैकाले के जाने के बाद क्योंकि लार्ड मैकाले सेयदि पहले के हमभारत को देखें और लार्ड मैकाले के बाद किस तरीके से मेरे देश के उन विचारों को और उस विजन को तथा उस ज्ञान को एवंविज्ञान को और तकनीकी को किस सीमा तक कुचलकरके और एकतरफ राख के ढेर में लाकर के खड़ा कर दिया गया।

उसमें हमें पीछे जाने की जरूरत नहींलेकिन उसको याद करने की जरूरत है औरआगे बढ़ने के लिए काम करना है। क्या पूरी दुनिया भूल जाएगी कि शल्य चिकित्सा का जनक सुश्रुत इस देश में पैदा हुआ और उन्होंने क्या-क्या नहीं किया?क्या दुनिया इस बात को भूल जाएगी कि आयुर्वेद का जनक चरक ऋषि इस देश में पैदा हुआ?आजपूरी दुनिया महसूस कर रही है कि यदि जीवन को बचाना है तो आयुर्वेद का रास्ता हमको अपनाना है और अभीअतुल ने कहा कि पहले ही जो व्यवस्थाएं थी वह हमारे विज्ञान में थी, हमारे शास्त्रों में थी,हमारे ज्ञान में थी और इसलिए आयुर्वेद मेंकहा गया है किचिकित्सा का विषय तो बाद में आएगा लेकिन यदि आदमी के स्वास्थ्य की पहले ही रक्षा हो तो चिकित्सा की तो जरूरत ही नहीं है। मुझे अच्छा लगा कि डॉ. तिवारी ने हमारे भास्कराचार्य जी को किस सीमा तक पढ़ा है और अपनी बेटी से किस तरीके से भास्‍कराचार्यने संवाद किया और उस संवाद को उन्‍होंने ‘सिद्धांत शिरोमणि’ 11वीं शताब्दी में लिखा जिसमें छठवें श्‍लोक में यहां तक लिख दिया कि धरती पर किस तरीके से गुरुत्वाकर्षण है।

यह उस जमाने में लिखा हुआ आज भी ग्रंथ हैहमारे पास।क्या बौधायन को हम भूल जाएंगे? क्या भरत जो नाट्यशास्त्र का जन्मदाता है उनकोहम भूल जाएंगे? क्‍या ऋषि कणाद जिसने अणु और परमाणु का विश्लेषण किया, क्या उस ऋषि कणाद को कोई भूल सकता है?क्‍या शून्‍य को देने वाले आर्यभट को पूरी दुनिया भूल सकती है? जब तक्षशिला, नालंदा, विक्रमशिला जैसे तमाम दर्जनों विश्वविद्यालय जब इस देश के अंदर थे तब दुनिया में कहांविश्वविद्यालय थे? कृषि के क्षेत्र में पाराशर जी काजोयोगदान है और जो उनका चिंतन था वो आज भी उस ग्रंथ को देखा जा सकता है। मैं यह समझता हूं कि कौटिल्य के अर्थशास्त्र से बड़ा अर्थशास्त्र का कौन-सा ग्रन्‍थ है? भाषा विज्ञान में पाणिनी से बड़ा कौन भाषा वैज्ञानिक हो गया? लेकिन हमने पीछे का दर्शन नहीं कराया तो जब हम इस बात को कहते हैं तो लोग हंसते हैं, जिनको इस दर्शन का पता ही नहीं।

इसलिए उनको इस देश की भव्यता का पता नहीं,इसविश्वगुरु भारत का मालूम नहीं है।आज पहली तो चुनौती हमारे सामने यह है कि हमउस भारत का दर्शन कराएं अपनी पीढ़ी को अपने युवाओं और उससे पहले जो हम लोग हैं जो योद्धा के रूप में पहली पंक्ति में खड़े हो करके देश के बारे में विचार करते हैं, शिक्षा के बारे में विचार करते हैं, देश की उन्नति तथा प्रगति और उसको उच्च शिखर तक ले जाने का मिशन ले करके चल रहे हैं, सबसे पहले तो हमको देश की आत्मा को आत्मसात करना पड़ेगा।

मैं सोचता हूं कि योग के बारे में जैसे हमारे माननीय मंत्री जी ने कहा कि योग के पीछे आज पूरी दुनिया खड़ी है।

हमारा विचार कभी कमजोर नहीं रहा है। हमने एक तरफ‘अयं निजः परो वेति गणना लघुचेतसाम्। उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम्॥’ कहा अर्थात्पूरी दुनिया मेरा कुटुम्ब है, मेरा परिवार है। हमने मार्किट नहीं माना इस दुनिया को और हमारे विचार और दुनिया के लोगों के विचार में जमीन आसमान का अंतर है। यह दुनिया पूरे विश्व को एक ग्लोबल मार्केट मानती है और हमने पूरे विश्व को अपना परिवार माना है क्योंकि सबको पता है कि मार्किट में तो व्यापार होगा लेकिन परिवार में प्यार भी होगा,यह हमारी मान्यता रही है‘सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया’ कि जब तक कुटुम्‍ब का एक भी व्‍यक्‍तिएक भी प्राणी जब तक दु:खी होगा।तब तक मैं सुख का अहसास नहीं कर सकता।

आज मेरे साथ देश और विदेश से आपके पूर्व-छात्र जुड़े हैं तथा मुझे इस बात का गौरव होता है कि आज खड़गपुर से निकलने वाला छात्र वो चाहे गूगल हो और चाहे माइक्रोसॉफ्ट होतमाम क्षेत्रोंमें हमारे आईआईटीसे निकलने वाले छात्र दुनिया में तकनीकी के क्षेत्र में और विज्ञान के क्षेत्र में तथा अनुसंधान के क्षेत्र में पूरी दुनिया का मार्गदर्शन कर रहे हैं और इसलिए यहवोभारत है जो हमारी रगों में बसता है क्योंकि हमपूरी दुनिया के लिए जीते हैं। हमने‘असतो मां सद्गमया’ की बात की है हजारों साल पहले। चाहे गांधी जी कोदेंखे जब उन्होंने कहा कि ‘असतो मा सद्गमया’ की बात हुई और ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’ अर्थात् हम अंधेरे को चीरकर प्रकाश जलाएंगे। हमें चाहे तिल-तिल क्यों न खपनापड़े।

इसलिए जो हमारा जीवन दर्शन हैं जहां ज्ञान, विज्ञान, अनुसंधान में वह पूरी दुनिया में श्रेष्‍ठ हैं। हमारी गीता को दुनिया क्यों देख रही है और हर देश गीता को ले के उसके पीछे पागल है।हमारीगीता काजो हमारे कृष्ण कादर्शन है उसमें कहा गया है कि यह शरीर नश्‍वर है लेकिन आत्‍मा अजर-अमर है।जैसे पुराने कपड़ों को छोड़ देते हैं और नए कपड़ों को पहनते है उसी तरह यह शरीर आपको कभी भी छोड़ सकता है।

अभी मैं इधर बैठा हूं अगला चरण मेरा नहीं है। हां यहशरीर कभी भी छोड़ सकता है आपको, लेकिन जो आत्मा है वो अजर अमर है। संसार में आतंक है, चाहे भुखमरी है, चाहे बेरोजगारी है और चाहे चरित्रहीनता है क्योंकि हमने उन चीजों को जीवन दर्शन नहींदिया।हमारे वेद,पुराण,उपनिषदों ने कहा है कि उतना ही ग्रहण करो जितनी आपको जरूरत है। इन ग्रंथों नेसंग्रह करने वाले आदमी को खराब माना है।जिसको जितनी जरूरत है, वह उतना ही उपयोग करेगा और सब मिल बांटकर खायेंगे। हमने कहा कि हम सब साथ खाएंगे और साथ चलेंगे तथामिलकर रहेंगे। हमारा पुरुषार्थ मिलकर होगा, यह हमारी एकता है। हमने कभी भी इस दिशा में सोचा ही नहीं।

मैं पीछे के समय में जब इंडोनेशिया गया था वहां रविन्‍द्रनाथ टैगोर को कितना मानते हैं और वहां के मंत्री जी ने कहा कि जहां गुरूदेव नेशांतिनिकेतन की स्थापना की है वहांहमको बुलाइए,हमकुछ करना चाहते हैं।जब दुनिया को सत्य, प्रेम और अहिंसा की बात आती है तो हम तो शुरू से ही उसके पुजारी रहे हैं और इसलिए मैं यह कहना चाहता हूं कि यह सामान्य नहीं है। यह विचार केवल एक क्लास में पूरा नहीं होगा तथा यह केवल एक सेमिनार में पूरा नहीं होगा क्‍योंकियहपूरी दुनिया के जीवन को बचाने काअभियान होगा।

पूरी दुनिया को सुख-शांति और समृद्धि का यह महत्वपूर्ण रास्ता  होगा।इसी रास्ते से पूरी दुनिया को सुख शांति और समृद्धि का लक्ष्य मिलेगा।मुझे भरोसा है कि जिस चीज के लिए आज हम लोग यहां पर बैठे हैं निश्चित रूप में हम उसको आगे बढ़ाएंगे। चाहे वो हमारे श्रीनिवास रामानुजन हों, चाहे भारद्वाज हों और चाहे रसायनशास्त्री नागार्जुन हों आखिर क्यों नहीं बात होगी इन पर। आज जर्मनी 14 संस्कृत विश्वविद्यालयों को बना कर के भारत के ग्रंथों पर शोध एवं अनुसंधान करना चाहता है। अब बदलाव आ गया श्री नरेन्‍द्र मोदी जी की अगुवाई में देश ताकत के साथ अपनी बातों को साबित करने के लिए आगे बढ़ रहा है। हमारा सौभाग्य है कि श्रीनरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में विश्‍व फलक पर आतंकवाद के खिलाफ पूरी दुनिया को एक मंच पर एकत्रित हो रहा है।

चाहे वैकल्पिक ऊर्जा का विषय रहा हो, और चाहे पर्यावरण का विषय रहा हो या हर दिशा में पूरी दुनिया की लीडरशिपभारत ने लेना शुरू कर दिया है। हमारीनई शिक्षा नीति भारत केन्द्रित है तथा यहपूरी दुनिया की मानवता के कल्याण के लिए है। नई शिक्षा नीति में हम जो तीन वर्ष का बच्‍चा है, उसकी भी चिंता कर रहे हैं। तीन वर्ष से ही बच्चे की शिक्षा हम उसकी मातृभाषा में करेंगे। अपनी मातृभाषा में जो बच्‍चे की अभिव्यक्ति होगी औरवो अपनी अभिव्यक्तियों को बाहर निकालेगा। यदि कोई राज्‍य उच्च शिक्षा तक अपनी मातृभाषा में करना चाहता है तो वह कर सकता है। प्रधानमंत्रीजी ने कुछ दिन पहले बोला है किइंजीनियरिंगऔर डॉक्‍टरीकी भी जो परीक्षा होगी वो विद्यार्थी अपनी मातृभाषा में दे सकता है। हमने स्‍पष्‍ट कहा है कि किसी पर भी कोई भाषा थोपी नहीं जाएगी।

मैंने लोगों से भी आग्रह किया है कि भाषा के नाम पर राजनीति न करें। हमने कहाहै कि मातृभाषा के लिए कौन राजनैतिक व्यक्ति होगा, कौन ब्यूरोक्रेट होगा, कौन समाज का व्यक्ति होगा जो अपने बच्चों को मातृभाषा नहीं सिखाना चाहता है। इसलिए जब यूनेस्को ने यह कहा है और देश के मनोवैज्ञानिकों ने कहाहै कि मातृभाषा में प्रारंभिक शिक्षा से ही बच्‍चे का भरपूर विकास होगा।क्या जो देशनीचे से लेकर उच्च शिक्षा तकअपनी मातृभाषा में शिक्षा देते हैं वो किसी से पीछे हैं, क्‍या जापान,फ्रांस, इंग्लैंड और दुनिया के तमाम जो विकसित देश हैं वो अपनी मातृभाषा में शिक्षा देते हैं क्‍या वो किसी से पीछे हैं,फिर ऐसे तर्क दे करके देश को कमजोर करने की बातक्यों की जाती हैं।मुझे लगता है कि हालांकिमैं इस बात को लेकर बहुत संतुष्ट और खुश हूं कि अबलोग इस बात को लेकर जो कभी ऐसे विवाद पैदा करने की कोशिश करते थे वो भी समझे हैंमैं उनका अभिनंदन करता हूं। नई शिक्षा नीति आने से पूरे देश के अंदर एक उत्सव का वातावरण हैलेकिनक्रियान्वयन की आवश्यकता है।जैसे आज आईआईटी खड़गपुर ने एक-एक विधा को आगे बढ़ाने का बीड़ा उठाया है।

यह अच्छा है और इसी तरीके से हम लोग फ्रंट पर आकर इसको क्रियान्‍वयन की दिशा में उपयोग करना ही करना है। हम अपनी प्राचीन चीजें पर अनुसंधान करके अब कहीं भी दुनिया में जा सकते हैं लेकिन वे सारे ग्रंथ संस्‍कृत भाषा में हैं। आज दुनिया जानती है कि संस्कृतएक साइंटिफिक भाषा है और उससे बड़ी कोई  साइंटिफिक भाषा है ही नहीं क्‍योंकिजो बोली जाती है वही उच्चरित होतीहै और वही लिखी भी जाती है और इसलिए पूरी दुनिया संस्कृत को पढ़ रही है। मैंपीछे के समय में तीन-चार साल पहले पौलेण्‍डकीवारसा यूनिवर्सिटी में गया था।

उन्होंने बताया कि हम तो लगभग दो सौ साल से संस्‍कृत को पढ़ा रहे हैं।पूरी दुनिया में लगभग ढाई सौ से भी अधिक शीर्षविश्वविद्यालय संस्कृत और हिंदी को पढ़ाते हैं। संस्कृत मेंवो ज्ञान और विज्ञान है तथाहम उसका अनुसंधान करेंगेऔर इसलिए मैं समझता हूँ आज यह बहुत अच्छा अवसर हैऔरयह भी मुझे अच्छा लगा कि आपने इसको भारत तीर्थ नाम दिया है। तीर्थ पुध्‍य, पावन एवं पवित्र होता है जो दूसरों के संकटों को खत्म कर दे, दूसरों के दुखों को खत्म कर दे जिसमें ताकत होती है वो तीर्थ होता है और इसलिए आपने बहुत सोच-समझ कर इसे भारत तीर्थनाम दिया है।

भारत तीर्थ जो अंतर्राष्ट्रीय वेबिनार आपने भारतीय ज्ञान परम्‍परा पर किया है उसके लिए मैं आपको साधुवाद देता हूंऔरयह अभियान अब रुकना नहीं चाहिए।हमारे विवेकानंद जी हमेशा कहते थे कि बढ़ोजितनीतेजी से आगे बढ़ सकते हो। उठो, जागो और तब तक नहीं रुको जब तक मंजिल प्राप्त नहीं हो जाए।हमको विवेकानन्‍द जी को साथ लेकर चलना पड़ेगा और मुझे खुशी है कि यहां पर अभी आपनेजर्मन के प्रसिद्व विद्वान मैक्समूलर के बारे में भी चर्चा की। मैक्‍समूलर कहते हैं कि यदि मुझसे पूछा जाता है कि आकाश तले कौन सा मानव मन सबसे अधिक विकसित है।

इसके कुछ मनचाहे उपहार क्या हैं। जीवन की सबसे बड़ी समस्याओं पर सबसे अधिक गहराई से किसने विचार किया है और इसके समाधान पाए हैं तो मैं कहूंगा इसका उत्तर केवल और केवल भारत है। यहजो शब्द मैंने पढ़े हैं वो मैक्समूलर के हैं। यह इस देश के किसी व्यक्ति के नहीं है और इतना ही नहीं अलबर्ट आइंस्‍टाइन ने भी कहा कि हम सभी भारतीयों का अभिनंदन करते हैं जिन्होंने गिनती करना सिखाया, जिसके बिना विज्ञान की कोई भी खोज संभव नही थी। यह तो पूरी दुनिया मान रही है। यदि दुनिया बोल रही है तथा मान रही है तो फिर दिक्कत क्या है।

यह जो सप्त ऋषियों ने शोध और अनुसंधान किया है, उसी को तो आगे बढाने की जरूरत है। अब वक्‍त आ गया है दुनिया हमारी ओर देख रही है। हमने ‘स्टडी इन इंडिया’ को ब्रांड बना दिया है।पूरी दुनिया के लोग इधर आ रहे हैं औरअभी हमारे आईआईटी में एक हजार आसियान देशों के बच्चे शोधके लिए आये हैं। हम बहुत तेजी से विश्व के फलक पर उभरते जा रहे हैं। हम दुनिया के 127 शीर्षविश्वविद्यालयों के साथशोध और अनुसंधान कर रहे हैं।

हम जहां ‘ज्ञान’ में बाहर की फैकल्टी को ला रहे हैं, वहीं अब ‘ज्ञान प्लस’ में हमारी फैकल्टी भी बाहर जाएगी। हम इस नई शिक्षा नीति के तहत कक्षा छ: से ही वोकेशनल स्ट्रीम इंटरर्नशिप के साथ ला रहे हैं। जब भी बच्चा स्‍कूलसे बाहर निकलेगा तो आपकी आईआईटी के पास हीरा बन करके आएगा। हमविद्यार्थी का मूल्यांकन भी अद्भुत तरीके से कर रहे हैं।अब बच्‍चेका 360 डिग्री होलस्‍टिक मूल्‍यांकन होगा। वह स्‍वयं भी अपना मूल्यांकन करेगा,उसकासाथी भी उसका मूल्‍यांकनकरेगा, उसका अभिभावक भी मूल्‍यांकन करेगा, अध्यापक भी मूल्यांकन करेगा तो वह एक योद्धा के रूप में उभरता चला जाएगा। इसलिए यह शिक्षा नीति हम आमूल चूल परिवर्तन के साथ ला रहे हैं। मुझे भरोसा है कि जिस तरीके से पूरे देश ने इस शिक्षा नीतिको स्वीकारा हैअब पूरी दुनिया में हम हीहोंगे जो आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस को स्कूली शिक्षा से लायेंगे।

यह आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और मेरे संस्कृत के ग्रंथ, मेरी तकनीकी के लोग और मेरे वैज्ञानिक जिस दिन यह सब एक जगह इकट्ठा हो जाएंगे उस दिन मेरा भारत पूरे विश्व में नंबर एक होगा। इसीलिए हमने मंत्रालय के स्तर पर भी पीछे के समय में भारतीय  ज्ञान प्रकोष्ठ अलग से बनाया है जो यही समन्वय करेगा। जितने हमारे प्राचीन विद्वान और वैज्ञानिकहैंउनके ग्रंथों परजिस दिन शोध होना शुरू हो जाएगा,हालांकि हमारे पास हजारों लाखों ग्रंथ अभी नहीं मिले हैं और वे सब नष्ट कर दिए गए हैं लेकिन जो हैं उन पर तो हम शोध और अनुसंधान करके आगे बढ़ सकते हैं।

आज जर्मनी के पास हमसे ज्यादा ग्रंथ हैं हमारे। पीछे के समय में यहतय हुआ है कि उनसे हम अपने कुछग्रंथों को लें,वो अब शोध एवंअनुसंधान कर रहे हैं। इसलिए यह जो भारतीय ज्ञान प्रकोष्ठ है इसको प्रधानमंत्री जी के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार की अध्यक्षता में बनाया गया है। मुझे खुशी है कि इस संस्‍थान ने भी भारतीय ज्ञान परम्‍परा पर बहुत ही श्रेष्‍ठता से कार्य किया है। आपके यहां तिवारी जी, सेन साहब सभी लोग बहुत अच्‍छा काम कर रहे हैं।

इसलिए मैं सोचता हूं यह जो अभियान आज आपने शुरू किया है यह बहुत अच्छा अभियानहै। हम शोध और अनुसंधान की दिशा में जहां ‘नेशनल रिसर्चफाउंडेशन’ की स्थापना कर रहे हैं वहीं तकनीकी के क्षेत्र में ‘नेशनल एजुकेशन टेक्नोलॉजी फोरम’ का भी गठन कर हैं। हम लोगों ने नई शिक्षा नीति के आधार पर जो प्रशासनिक स्तर पर और जो सामान्य स्तर पर चेंज हो सकते हैं वो बहुत तेजी से कर रहे हैं। हमारे माननीय मंत्री आदरणीय संजय धोत्रे जी लगातार उसकी समीक्षा भी करते रहते हैं और बहुत तेजी से लोगों में बदलाव आ रहा है। स्कूली शिक्षा हो चाहे उच्च शिक्षा हो, अब उच्‍च शिक्षा में आपकोई भी विषय ले सकते हैं, इस शिक्षा नीति के अंतर्गत यदि कोई 4 वर्ष का कोर्स है और यदि कोई छात्र दो साल में परिस्‍थितिवशछोड़के जा रहा है  तो पहले उसका पैसा एवं वर्ष दोनों खराब हो जाते थे लेकिन अब उसकोनिराश नहीं होना पड़ेगा।

यदि आप परिस्‍थितिवश एक वर्षमें छोड़ कर जा रहे हैं तो उसको सर्टिफिकेट देंगे,दो साल में छोड़ कर जा रहा है तो डिप्लोमा देगें, तीन साल में छोड़कर जा रहा है तो उसकोडिग्री देंगे लेकिन यदि फिर वह लौट कर अपने भविष्य को संवारना चाहता है तो फिर जहां से उसने छोड़ा था वहीं से शुरू कर सकता है। उसके लिए हम एक ऐसा क्रेडिट बैंक बनायेंगे जहां उसके सारे क्रेडिट जमा रहेंगे।हम अपना स्तर बढ़ाने के लिए बहुत तेजी से काम कर रहे हैं। हम विश्व स्तर की उन सारी चीजों को तथा उन अवस्थापना को कर रहे हैं लेकिन मुझे इस बात का दुख है कि बीच में विदेश जाने की लोगों में होड़ लग गई थी लेकिन अब मुझे इस बात की खुशी है यह होड़ खत्म हो गई है।

यह जो पैकेज की होड़थी, अब पेटेंट की होड़ बन रही है। हम पेटेंट करेंगे हर चीज को पेटेंट करेंगे तथाहमदुनिया को बताएंगे कि यह हम ही कर सकते हैं और तभी तो मेक इन इंडिया, डिजिटल इंडिया, स्टार्टअप इंडिया,स्‍टैंड अप इंडिया जैसी आधारशिला खड़ी होगी। मुझे भरोसा है कि यह होगा और इसलिए हमने ‘स्टडी इन इंडिया’ शुरु किया है उसके ब्रांड बनायेंगेअभीहमने ‘स्टेइन इंडिया’ कीभी बात की क्‍योंकि हमारे देश से 7-8 लाख छात्र प्रतिवर्ष विदेशों में पढ़ने के लिए जा रहे हैं।

हमारे देश का पैसा और प्रतिभा दोनों बाहर चली जाती हैं तो वापस वह हमारे देश में नहीं आती है। इसलिए हमने‘स्‍टे इन इंडिया’ किया और  हमने  छात्रों को भरोसा दिलाया कि हमारे आईआईटी, एनआईटी, आईएसर, केन्‍द्रीय विश्‍वविद्यालयों में योग्‍यता है, क्षमता है आपको  बाहर जाने  की जरूरत नहीं है औरअब लोगों यह की समझ में आ गया है। मुझे इस बात की खुशी है कि पीछे के समय जब हमने जेईई परीक्षाएं करवाई तो दो लाख से भी अधिक छात्रों ने जोविदेश में जा रहे थे, वे जेईई और नीट की परीक्षाओं में सम्‍मिलित हुए।

हम ‘स्‍टे इन इंडिया’ के तहत दुनिया के शीर्ष सौविश्वविद्यालयों को अपनी धरती पर आमंत्रित कर रहे हैं। आपको कहीं जाने की जरूरत नहीं है और यहां के जो शीर्ष विश्वविद्यालय हैं वे भीबाहर जा रहे हैं। यह आदान-प्रदान हम करेंगे।मुझे भरोसा है कि जिस तरीके से कोरोनाकाल में इस चुनौती का मुकाबला मेरे नौजवानों ने किया और मैं देखता था कि आईआईटी खड़गपुर के हमारे प्राध्यापकों ने और हमारे शोध छात्रों ने क्या किया। हमारे देश के प्रधानमंत्री जीबोलते हैं यदि चुनौती काडटकर मुकाबला हो तो वह अवसर में तब्दील होती है यही बातविवेकानन्‍द जी कहते थे और वो हम कर रहे हैं। हमारी शिक्षा है,हमारा देश है, हमारी संस्कृति है, हमारे आचार-विचार हैं,जो पूरी दुनिया में महकते हैं।

मैं हिमालय से आता हूं मैं देखता हूं कि पूरी दुनिया के लोग बद्री केदार और हरिद्वार में आते हैं। पीछे  के समय में वर्ष 2010 मेंजब मैं मुख्यमंत्री था तब महाकुंभ कराया था। दुनिया के 100 से भी अधिक देशों के लोग गंगा का स्पर्श करने के लिए आए थे।हमने कहा था कि यूनान, मिस्र, रोमा, सब मिट गए जहां से अब तक मगर है बाकी नामो निशां हमारा और कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी। सब लोगों ने मिटाने की कोशिश की लेकिन कुछ तो है हमारे पास जो मिटने से भी नहीं मिटी है।

हम शोध और अनुसंधान करेंगे। मैंने इस एक-डेढ वर्ष में देखा है जब मैं अपने छात्रों के बीच जाता हूं और जब हमने स्मार्ट इंडिया हैकाथॉनकिया तो मुझे यह देखकर खुशी होतीहै किजोमेरे देश का नौजवान है,अध्यापक हैवहबहुत विजनरीहै। मुझे भरोसा है कि जो आपका यह आज अभियान शुरू हो रहा है आप इसको आगे बढ़ाएंगे। मैं बहुद गदगद हूं और आपने जिस तरीके से शुरू किया है, आप चट्टान की तरह खड़े रहिए और मैं इस अवसर पर कहता हूं कि यदि आईआईटीखड़गपुरने यह संकल्प लिया है तो निश्चित रूप में भविष्य में यह सेंटर ऑफ एक्सीलेंस फॉर इंडियन नॉलेज सिस्टम के रूप में जाना जाए इसकीमैं आज घोषणा कर रहा हूं।यह भारतीय ज्ञान परंपरा का एक उत्कृष्‍ट केंद्र होगा।जब भी लोग जाएंगे और कहेंगे कि मुझे भारतीय ज्ञान परंपरा के किसी उत्कृष्ट केंद्र में जाना है तो तब खड़गपुर में उसका दर्शन होगा।आज इस संकल्प के साथ बैठक शुरू हो रही है और पूरी ताकत के साथ हो रही है तो मैं समझता हूं आज इसका संकल्प लेने की जरूरत है।

आज आपने संकल्प ले लिया तो आप नई पीढ़ी को समझा सकते हैं कि हमारा विजन क्या है,हमारा मिशन क्या है, जुनून क्या है उसके साथ आगे बढ़ने की आवश्‍यकता है। आने वाले समय में पूरी दुनिया में भारत यंग इंडिया रहनेवाला है। भारत की जो आयु है और जो आगे युवा वर्ग कीजनसंख्या है उससे हमगौरोंदुनिया पर छाने वाले हैं, इसकी पूरी तैयारी होनी चाहिए। मैं भी आश्वस्त हूं कि जो यह नई पीढ़ी आ रही है इसमें छटपटाहट है अपने लिए भी तथा अपने देश की उन चीजों के प्रति भी।आजभारत अंगडाई ले रहा है और विश्वगुरु भारत जिसने पूरी दुनिया का मार्गदर्शन किया तथा ज्ञान, विज्ञान, अनुसंधान और नवाचार में उस विश्वगुरु भारत की उस थाती को आगे बढ़ाने के संकल्प के साथ आज हम यहां पर एकत्रित हुए हैं। हमारे चाहे वैज्ञानिक हैं,तकनीशियन हैं और चाहे वो कुलपतिगण हैं चाहे विद्वत वर्ग के लोग है, चाहे संस्कृत के क्षेत्र के लोग हैं सभी को समन्‍वय बनाकर काम करना है।

अभी मैं पीछे के दिनों पेरिस में गया था वहां पर वेदों पर शोध और अनुसंधान हो रहा हैं। इसका मतलब यह है कि वेद, पुराण और उपनिषदों जैसे प्राचीन ग्रंथ हैं जिनमें ज्ञान, विज्ञान तथासब कुछ समाया हुआ है,उनका लोग अध्ययन कर रहे हैं। उनकी आवश्यकता इस देश को है, दुनिया को है और आप उस परम्परा को आगे बढ़ाएंगे, ऐसा मेरा विश्वास है। एक बार फिर आपको बहुत-बहुत शुभकामनाएं देता हूं।

 

 

बहुत-बहुत धन्‍यवाद!

 

कार्यक्रम में गरिमामयी उपस्‍थिति:-

 

  1. डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’, माननीय शिक्षा मंत्री, भारत सरकार
  2. श्री संजय शामराव धोत्रे, माननीय शिक्षा राज्‍य मंत्री, भारत सरकार
  3. श्री अमित खरे, सचिव, उच्‍चतर शिक्षा, शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार
  4. प्रो. वीरेन्‍द्र कुमार तिवारी, निदेशक, आईआईटी खड़गपुर
  5. प्रो. सीमान्‍त भट्टाचार्य, उप-निदेशक, आईआईटी खड़गपुर
  6. श्री अतुल कोठारी, राष्‍ट्रीय सचिव, शिक्षा संस्‍कृति उत्‍थान न्‍यास
  7. प्रो. राज शेखर, डीन, आईआईटी खड़गपुर

एनईपी 2020 के कार्यान्‍वयन पर अमिटी विश्‍वविद्यालय की राष्‍ट्रीय संगोष्‍ठी

एनईपी 2020 के कार्यान्‍वयन पर अमिटी विश्‍वविद्यालय की राष्‍ट्रीय संगोष्‍ठी

 

दिनांक: 06 नवम्‍बर, 2020

 

 

माननीय शिक्षा मंत्री, डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’

 

राष्‍ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के कार्यान्‍वयन की दृष्‍टि से आज इस महत्‍वपूर्ण कार्यक्रम में उपस्‍थिति विश्‍व विद्यालयअनुदान आयोग के अध्‍यक्ष प्रो. डी.पी. सिंह जी, भारतीय विश्‍वविद्यालय संघ के अध्‍यक्ष और गोविन्‍द बल्‍लभ पंत कृषि और प्रौद्योगिकी विश्‍वविद्यालय के कुलपति डॉ. तेज प्रताप सिंह जी, यूजीसी के उपाध्‍यक्ष डॉ. भूषण पट्टवर्धन जी,अमिटीके संस्‍थापक अध्‍यक्ष डॉ. अशोक कुमार चौहान जी, कुलाधिपति डॉ. अतुल चौहान जी, कुलपति डॉ. बलविन्‍दर शुक्‍ला जी, अन्‍य विश्‍वविद्यालयों के सभी कुलपति गण, कुलाधिपतिगण, सभी आईआईटी,एनआईटी तथा सभी संस्‍थाओं के निदेशक, सभी छात्र, अध्‍यापकगण, शोध छात्रऔरउपस्‍थित देश और विदेश से जुड़ने वाले हजारों भाइयो और बहनों जिनके मन में नई शिक्षा नीति के क्रियान्‍वयन के लिए छटपटाहट है ऐसे जो आप इस महत्‍वपूर्ण कार्यक्रम में जुड़े हैं, मैं आप सबका स्‍वागत कर रहा हूं।

मुझे लगता है कि जैसा अभी कुलपति जी ने कहा है कि यह शिक्षा ही है जो जीवन के तमाम लक्ष्‍यों के लिए रास्‍ता देती है और उस शिक्षा के लिए आज हम सब लोग यहां पर एकत्रित हुए हैं इसलिए मैं आप सबका अभिनन्‍दन कर रहा हूं और विशेष करके डॉ. अशोक चौहान जी का जो विन्रमता और प्रखरता की पराकाष्‍ठा हैं।

मैं जब-जब भी इनसे मिलता हूं तो आपने बहुत ही विन्रम स्‍वभाव से अपने विजन को और भारतीयता के साथ विज्ञानको जोड़कर के देश और विदेशमें शिक्षाका प्रसार करने का जो काम किया है उसके लिए मैं आपका और आपकी पूरी टीम का अभिनन्‍दन कर रहा हूं और मैंबधाई भी देता हूं कि इस नई शिक्षा नीति के प्रति  पूरे देश में जागरूकता, उत्साह, उमंग और उल्लास है और न केवल देश में बल्कि पूरी दुनिया में बहुत उत्सुकता भरी दृष्टि से देख रही है।

नई शिक्षा नीति के क्रियान्वयन के लिए आज बहुत ही महत्वपूर्ण आपने सम्मेलन किया है यह दो दिवसीय जोसम्मेलन है यह अपने आप में नयी शिक्षा नीति के क्रियान्वयन की दिशा में एक आधारशिला बनेगाऐसा मेरा भरोसा है। और इसलिए मैं सोचता हूं कि दो दिन तक लगातार जो आपके सभी देश-विदेश से उपस्थित शिक्षक हैं,शिक्षाविद हैं, वैज्ञानिक हैं, शोधार्थी हैं वो सभी मिलकर के विचार-विमर्श और परामर्श करेंगे जिससे ज्ञान का पुंज निकलेगा औरवहहमारे देश को ज्ञान आधारित महाशक्ति के रूप में न केवल स्थापित करेगा बल्कि पूरे विश्व में ज्ञान के महाशक्ति के रूप में भी स्थापित करने की दिशा में एक मील का पत्थर साबित होगा, ऐसा मेरा भरोसा है।

मैं देख रहा था कि अभी दो दिन तक जो आपकी यहगोष्ठी चलने वाली है उसमेंतमाम प्रकार के बहुत खास सत्र आपने शुरू किए हैं। इन सत्रों में वंचितों तक गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की पहुंच सुनिश्चित करने की दिशा में आपविमर्श कर रहे हैं और जोनई शिक्षा नीति है उसके क्रियान्वयन का रास्ता क्या होगा इसपर चर्चा करनेवाले हैं।

वहीं उच्‍चशिक्षा को समावेशी और उसको वहनयोग्य करने का जो विषय है इस पर भी चर्चा करने के लिए आपने एक सत्र रखा है।सीखनेके लिए सम्पूर्ण परिवेश निर्माण की बात करनी चाहिए कि अंततोगत्वा परिवेश कैसे करके सृजित होगा, निर्मित होगा। नई शिक्षा नीति में भी हमव्यावसायिक शिक्षा व वोकेशनल शिक्षा को लेकर आ रहे हैं।हर प्रणाली में शिक्षक ही तो मूल आधार है इसी कोयोद्धा के रूप में नीचे तक ले जाने का जो काम करना है उसको किस तरीके से पुनर्गठन करने की बात हुई है और उसका क्रियान्वयन कैसे होगा। उच्च शिक्षा और अनुसंधान की दिशा में भी विमर्श करने वाले इन सत्रों में शिक्षा के डिजिटलीकरण की दिशा में भी आपएक सत्र चला रहे हैं और एक सत्र आप औद्योगिकिकरण एवं समाज कल्याण तथा गुणवत्तापूर्ण शैक्षिकअनुसंधान पर भी सत्र चला रहे हैं क्‍योंकि  शोध और अनुसंधान पर ही अधिकांशविकास टिका हुआ है।

किसी चीज को अनुसंधान करके उसे नवाचार के रूप में परिणति तक लाकर उसको अर्थतंत्र से और जीवन से जोड़ने का चुनौतीपूर्ण काम है तथा वो बड़ा काम है।मुझे खुशी है कि आप नवाचार उत्प्रेरण का भी एक सत्र ले रहे हैं। उच्च शिक्षण संस्थानों के लिए प्रभावी प्रशासन और नेतृत्व का विकास जिसकी हमारी बहुत चिंता रही है क्‍योंकि आपको शिक्षण संस्थानों को लीडरशिप देनी है। जो लीड कर रहे हैं अन्ततोगत्वा उनको किस तरीके से कर रहे हैं, इस पर भी चर्चा करने की जरूरत है अब यूजीसी के चेयरमैन बताएंगे कि उनके नेतृत्व में लीपप्रोग्राम और अर्पित प्रोग्राम शिक्षण संस्‍थानों में किस तरह से आगे बढ़ रहे हैं। नई शिक्षा नीति में लीडरशिप के विषय को विशेष ध्यानरखा गया है। लीडरशिप बहुत जरूरी है क्‍योंकि लीडरशिप के अभाव में बहुत सारी चीजें बिखर जाती है और स्वरूप भी बदल जाता है तो यह भी बहुत महत्वपूर्ण है।

भारतीय ज्ञान प्रणाली का एकीकरण जिसके बारे में आपसबको पता है कि अंततोगत्‍वा भारतीय ज्ञान जिसकी हमलोग चर्चा कर रहे हैं क्‍योंकि हमारा देश को विश्व गुरु को कहा गया है। इसके बारे में हमेशा से एक उक्‍ति प्रचलित थी ‘एतद् देश प्रसूतस्य शकासाद् अग्रजन्मन : , स्वं-स्वं चरित्रं शिक्षरेन् पृथ्वियां सर्व मानव:’ तक्षशिला, नालंदा औरविक्रमशिला जैसे विश्वविद्यालय तो हमारे यहां थे। विज्ञान, अनुसंधान, कला, जीवन दर्शन और प्रौद्योगिकी सहित कौन-सा क्षेत्र ऐसा था जहां हम आगे नहीं थे। इस समय जो नई शिक्षा नीति आई है।

उसमें सौ डेढ सौ सालों के बाद ऐसा हो रहा है कि जब लार्ड मैकाले की उस शिक्षा नीति के विपरीत जिसने हमारी शिक्षा को जड़ से मिटाने की कोशिश की क्‍योंकि हमारी जड़ें गहरी थीं। जबइन बातों को कहते हैं तो कुछ लोगों को बहुत आश्चर्य होता है। मुझे उनके आश्चर्य होने पर कोई दुख इसलिए नहीं होता कि उनको उस वैभव का ज्ञान नहीं कराया गया तथा लोगों को उनसे दूर रखा गया। भारत की उस ज्ञान परंपरा में जिसमेंसुश्रुत जैसे शल्य चिकित्‍सकइस देश में पैदा हुए आचार्य चाणक्य जैसे विधि तथानीतिवेताइस देश में पैदा हुए, कणाद जैसे अणुओं औरपरमाणुओं का विश्लेषण करने वाले भी इसी धरती पर पैदा हुए हैं। आयुर्वेद जो आुय का विज्ञान है जिस आयुर्वेद के पीछे आज पूरी दुनिया खड़ीहै, उसके महान् ज्ञाता चरक ऋषि की ‘चरक संहिता’ की रचना भी इसी देश में हुई है। मेरा देश ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ की बात करने वाला है।

हमने हमेशा से कहा है औरहमारा विचार हमेशा बहुतविशाल रहा हैतथाउसमें हमने कहा है कि अयं निज: परो वेति गणना लघु चेतसाम्। उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्‍बकम् अर्थात्पूरी वसुधा को हमने अपना कुटुम्‍ब माना है और उसके लिए सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया सर्वे भद्राणी पश्‍यन्‍तु मा कश्‍चिद् दुखभाग्‍भवेत की कामना की है। जब तक धरती पर एक भी प्राणी दुखी होगा तब तक मैं सुख का अहसास नहीं कर सकता यह है हमारा संकल्प, यह है हमारा विचार और उस विचार को पुख्ता करने के लिए जो हमारे प्राचीन वैज्ञानिकों, शिक्षाविदों, भाषाविदों,का कोई सानी हैं।

चाहे बौधायन हो, कौटिल्‍य का अर्थशास्त्र आज भी उन्हीं मुद्दों पर खड़ा है और मैं समझता हूं जो मेरे देश के यशस्‍वी प्रधानमंत्री जी ने नये भारत की बात की है और ऐसा भारत जो स्वच्छ भारत हो,स्वस्थ भारत हो, सशक्त भारत हो, श्रेष्ठ भारत हो, आत्मनिर्भर भारत होऔरएक भारत हो और जो21वीं सदी का स्वर्णिम भारत हो उस स्वर्णिम भारत के लिए यहनई शिक्षा नीति आई है।यह नयी शिक्षा नीति नए आयाम के साथ आयी हैजोकमजोर तबके कोजोड़नेकी बात करेगी और शिखर पर पहुंचने की बात भी करेगी। मैं उन बातों पर पीछे नहीं जाता कि देश की गुलामी के थपेड़ों ने हमको बहुत दूर पटक करके खड़ा किया और हमारी जो शिक्षा है उसका पूरा स्वरूप ही बदल दिया। उसमें चर्चा करके समय गंवाने की जरूरत नहीं है।

अब तो यह है कि जैसे अभी तेजप्रताप जी कह रहे थे कि हम को रूकना नहीं है हमको झुकना नहीं है, हमको जोश के साथ निरंतर आगे बढ़ना है।विवेकानन्‍द जी ने हमेशा कहा है कि उठो जागो और तब तक नहीं रुको जब तक मंजिल प्राप्त ना हो जाए।

हम तो उस संस्कृति के लोग हैं यदि कोई बीड़ा उठाया है तो उसे हर कीमत पर परिणति तक पहुंचाना ही है। हर कीमत जब बोलते हैं तो जीवन-मरण के सवालों से ऊपर गुजरते हैं क्योंकि पहले तो हम निश्चित रूप से हम मानवता के लिए हम दुनिया के लिए हैं, इस पूरी पृथ्वी के लिए हैं। इसलिए इस विजनके साथ हम कोई चीज सोचते हैं तो फिर हम भारत केन्द्रित होते हैं क्योंकि भारत के बारे में कहा गया है कि ‘अरुण यह मधमेय देश हमारा, जहां पहुंच अनजान क्षितिज को मिलता एक सहारा।‘ हम तो पूरी दुनिया को सहारा देने वाले लोग हैं इसकी और मजबूती चाहिए। डॉक्टर अशोक चौहान के प्रति मैं बहुत गदगद रहता हूं क्योंकि वो उन चीजों को पकड़कर आगे बढ़ना चाहते हैं जिन चीजों पर मेरा देश विश्व गुरु रहा है और ऐसे में मैं यह समझता हूं कि यह बड़ा काम है,यहछोटा काम नहीं है और इसीलिए यह जो नई शिक्षा नीति आई हैं इसे बड़े फलक पर देंखें तो यह नेशनल भी है, यह इंटरनेशनल भी है, इम्पैक्टफुल भी है, इन्क्लूसिव भी है और यह इनोवेटिव भी है और यदि आप देखेंगे तो यह इक्‍विटी, क्वालिटी, एक्सेस की आधारशिला पर खड़ी है।

यदि इस नई शिक्षा नीति को देखेंगे तो इसेमातृभाषा में हमशुरू कर रहे हैं।मातृभाषा में जितनी अभिव्यक्ति सामने आ सकती है वहकिसी और भाषा में नहीं आ सकती है इसलिए प्रारंभिक शिक्षा बच्‍चे की अपनी मातृभाषा में होगी और उच्च शिक्षा तक यदि कोई प्रदेश करना चाहता है तो वह भी स्‍वतंत्र है।कुछ लोग कहते हैं कि हमको ग्‍लोबल पर जाना है तो अंग्रेजी सीखनी पड़ेगी। मैंने कहा  हम अंग्रेजी का विरोध नहीं  करते, अंग्रेजी ही नहीं और दो-तीन भाषाएं सीखों,लेकिन अपनी भाषाओं को मत छोड़ो। हमारेसंविधान ने हमें 22 खुबसूरत भाषाएं दी हैं। हिन्दी, तमिल, तेलगू, मलयालम, कन्नड़, गुजराती, मराठी, बंगाली,ओडिया, असमिया, उर्दू,यहहमारी 22 खूबसूरत भाषाएँ हैं।

इनमेंअपना ज्ञान है,जीवंता है,तोक्यों हम अपनी भाषाओं को नहीं अपनाएंगे। हमने अंग्रेजी का कभी विरोध नहीं किया लेकिन अंग्रेजी इस देश की भाषा नहीं है। हमें अंग्रेजीक्या पूरी दुनिया की भाषाओं को पढना है। लेकिन मैं उन लोगों से पूछना चाहता हूं क्या जो देशनीचे से लेकर उच्च शिक्षा तकअपनी मातृभाषा में शिक्षा देते हैं वो किसी से पीछे हैं, क्‍या जापान, फ्रांस, इंग्लैंड और दुनिया के तमाम जो विकसित देश हैं वो अपनी मातृभाषा में शिक्षा देते हैं क्‍या वो किसी से पीछे हैं,फिर ऐसे तर्क दे करके देश को कमजोर करने की बातक्यों की जाती हैं। इसलिए देश के प्रधानमंत्री जीने कहा कि अब व्‍यक्‍ति अपनी मातृभाषा में डॉक्टर भी बन सकता है औरइंजीनियर भी बन सकता है क्‍योंकि  जो बच्‍चा जिस भाषा को बोलता है यदि उसको उसकी भाषा में शिक्षा दी जाए तो वह उसमें ज्यादा अभिव्यक्त कर सकता है।

यह नीति बहुत अच्छी है। हमारे देश में शिक्षा का कितना बड़ा व्‍यापक हैं।मैं समझता हूं यहां एक हजार से अधिक विश्वविद्यालय हैं, 45 हजार से अधिक डिग्री कॉलेज हैं,15 लाख से अधिक स्कूल हैं, 1 करोड़ 9 लाख से अधिक अध्यापक हैंऔर कुल अमेरिका की जितनीजनसंख्या नहीं है उससे भी अधिक 33 करोड़ यहां छात्र-छात्राएं हैं।यह बात बिल्कुल सही है कि यह देश यंग इंडिया रहने वाला है। पूरी दुनिया की सर्वाधिक यंगआबादी भारत में है हमारा देश क्या नहीं कर सकता। इसलिए जो तेज प्रताप ने कहा कि इसको क्रियान्वित कैसे करेंगे हमको इसे जुनूनी मूड में लाना पड़ेगा और एक व्यापक परिवर्तन के साथ देश खड़ा हो रहा है।हमारी नई शिक्षा नीति किसी एक व्‍यक्‍ति या सरकार की शिक्षा नीति नहीं है।यहभारत की शिक्षा नीति है और जिसने विश्व को लीडरशीप दी है। सभी क्षेत्रों में चाहेज्ञान हो, विज्ञान हो, अनुसंधान और प्रौद्योगिकी का क्षेत्र हो, प्रत्‍येक क्षेत्र में भारत ने लीडरशिप दी है लेकिन मैं यह निवेदन करना चाहता हूं कि नीति का जब निर्माण होता है तो लगभग नीतियां हमेशाबहुतअच्छी ही बनती है। लेकिन नीति के निर्माण के बाद जो उसके क्रियान्वयन का पक्ष है वह बहुत महत्वपूर्ण है।

आज इस नीति के निर्माण और नीतियों के क्रियान्वयन के जो महत्‍वपूर्ण कार्य को सम्‍पन्‍न करने वाले हैं, वे हमारे बीच बैठे हैं इस लीडरशिप से पहले नीति को जमीन तक ले जाने का जो महत्वपूर्ण काम है,मिशन है,उसमेंमेरे कुलपतिगण हैं, मेरे निदेशक हैं, इन संस्थानों के प्रमुख लोग हैं,अध्यापकगण हैं और शिक्षाविद् हैं उन्‍हें यह चुनौतीपूर्ण कार्य करना है। चुनौती का मुकाबला यदिडटकर के होता है तोफिर वो अवसरों में तब्दील होती है और वही एक नए सृजन के साथ एक नया निर्माण देती है। इसलिए मुझे लगता है इसके लिए सबको एक मिशन मोड में आना पड़ेगा और मुझे जो वर्तमान में परिस्‍थितियां लग रही हैं उससे औरमैं तेज प्रताप जी की बात से बहुत सहमत हूं किदेश के अंदर बहुत उत्साह है। उस उत्साह से लोग काम करनाशुरू कर रहे हैं।इस शिक्षा नीति के घोषित होने से पूर्व बहुत बड़ा विचारविमर्श हुआ है। ग्रामप्रधान से लेकर आदरणीय प्रधानमंत्री जी तक परामर्श हुआ,शिक्षकोंसे लेकर शिक्षाविदों तक, वैज्ञानिकों से लेकर विशेषज्ञों तक और एनजीओ से लेकर के राजनीतिज्ञों तक परामर्श हुआ है। 33 करोड़ छात्र छात्राओं के अभिभावकों से परामर्श हुआ है तथा अध्यापकों से परामर्श हुआ है एवं ढाई लाख ग्राम समितियों तक से परामर्श हुआ है।

उसके बाद भी पब्लिक डोमेन में डालने के बाद सवा दो लाखसुझाव आये हैं। दुनिया का पहला ऐसा उदाहरण होगा और उन एक-एक सुझाव पर व्यापक विश्लेषण के बाद यह नीति बनी और इसलिए नीति बहुत खूबसूरत है। प्रारंभिक अवस्था से ही अब कक्षा छह से वोकेशनलस्ट्रीम के साथ हम शिक्षा ला रहेहैं। हम शिक्षण एवं शिक्षेणेतर जिसमें सभी गतिविधियां होंगी, सांस्कृतिक गतिविधियां होंगी, योग होगा, खेलकूद होगा, विभिन्न प्रकार की गतिविधि होंगी, शिक्षणेत्तर गतिविधियां और वोकेशनल स्‍ट्रीम वो भी इंटर्नशिप के साथ होगा तो जब बच्‍चा स्कूल से बाहर निकलेगा तो एक योद्धा की तरह निकलेगा और अब उसका मूल्यांकन भी बिल्कुल नयी पद्वति से होगा। अब 360 डिग्री होलिस्टिक उसका मूल्यांकन होगा जिसमें वो अपना स्वयं का मूल्यांकन भी करेगा, उसका अभिभावक भी उसका मूल्यांकन करेगा और उसके अध्यापकगण भी उसका मूल्यांकन करेंगें, उसका साथी भीउसका मूल्यांकन करेगा।

नई शिक्षा नीति के तहत स्‍कूली शिक्षा से ही आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पढ़ाने वाले शायद हम दुनिया का पहला देश होंगे। स्कूली शिक्षा से ही हम कृत्रिम बुद्धिमत्ता को ला रहे हैं और अब बच्‍चे के मूल्यांकन की जोमैंने बात की है उसको रिपोर्ट कार्ड नहीं मिलेगा, उसको प्रोग्रेस कार्ड मिलेगा और उच्च शिक्षा में भी देखेंगे तो यह नीति कितना व्यापक परिवर्तन लाई हैं।

अब विद्यार्थी किसी भी विषय को चुन सकता है वो साईंस के साथ साहित्य को भी ले सकता है एवं तकनीकी के साथ संगीत को लेसकता है। जिसक्षेत्र में तथाजिस विषय में महारत हासिल कर सकता है तथा उसके अंदर की ऊर्जा अब बाहर निकल निकल सकती है और वो अपनेजीवन में प्रगति कर सकता है। अब बच्‍चे के लिए पूरा मैदान खाली है और इतना ही नहीं इस शिक्षा नीति के अंतर्गत यदि कोई 4 वर्ष का कोर्स है और यदि कोई छात्र दो साल में परिस्‍थितिवश छोड़के जा रहा है तो पहले उसका पैसा एवं समय दोनों खराब हो जाते थे लेकिन अब उसको निराश नहीं होना पड़ेगा,यदि आप परिस्‍थितिवश एक वर्षमें छोड़ कर जा रहे हैं तो उसको सर्टिफिकेट देंगे, दो साल में छोड़ कर जा रहा है तो डिप्लोमा देगें, तीन साल में छोड़कर जा रहा है तो उसको डिग्री देंगे लेकिन यदि फिर वह लौट कर अपना भविष्य को संवारना चाहता है तो फिरवह जहां से उसने छोड़ा था वहीं से शुरू कर सकता है। उसके लिए हम एक ऐसा क्रेडिट बैंक बनायेंगे जहां उसके सारे क्रेडिट जमा होंगेइसलिए उसके लिए आगे बहुत आपार संभावनाएं है।पूरी दुनिया में अपने तरीके से नए अभिनव प्रयोग के साथ हम इसको ला रहे हैं।

शोध और अनुसंधान की जैसे अभी आपने चर्चा भी की है तो मुझे लगता है मेरी संस्थान कहां कमजोर हुए हैं जबकि हमारे पास व्यापकता है। मुझे ऐसा लगता है कि हमेंशोधऔर अनुसंधान के क्षेत्र में तेजी से थोड़ा आगे बढ़ना पड़ेगा और हमको पेटेंट भी करना पड़ेगा।अभी भी ऐसा नहीं हैं किहमनहीं कर रहे हैं। हम ‘स्‍पार्क’के तहतदुनिया के 127 शीर्ष विश्वविद्यालयों के साथ हमलोग शोध और अनुसंधान कर रहे हैं,हम‘ज्ञान’ के तहत जहां  बाहर की फैकल्टी को यहां बुला रहे हैं वहीं‘ज्ञान प्लस’में हमारी भी फैकल्‍टी बाहर पढ़ाने के लिए जाएंगी।इसलिए फैकल्टी को आने और जाने का इतनाहीनहीं बल्‍कि भविष्य में ‘स्टडी इन इंडिया’और ‘स्‍टे इन इंडिया’ की अभीबातचीत हुई है, स्टडी इन इंडिया को एकब्रांड बनायेंगे।मुझे इस बात को कहते हुए खुशी है कि दुनिया के देशों में अब भारत में पढ़ने के लिए हौड़ सी लगती है।

हमने जब ‘स्टडी इनइंडिया’ अभियान लिया और उसमें हजारों नामांकनहो रहे हैं और अब हमारा दूसरा महत्वपूर्ण कदम‘स्‍टे इन इंडिया’ है।अभीहमने ‘स्टेइन इंडिया’कीभी बात कीक्‍योंकि हमारे देश से 7-8 लाख छात्र प्रतिवर्ष विदेशों में पढ़ने के लिए जा रहे हैं। हमारे देश का पैसा और प्रतिभा दोनों बाहर चली जाती हैं तो वापस वह हमारे देश में नहीं आती है।हमने  छात्रों को भरोसा दिलाया कि हमारे आईआईटी, एनआईटी, आईएसर, केन्‍द्रीय विश्‍वविद्यालयों में योग्‍यता है, क्षमता है आपको  बाहर जाने  की जरूरत नहीं है,अब लोगों की समझ में आ गया है।

मुझे इस बात की भी खुशी है कि दो लाख से भी अधिक छात्रों ने जो विदेश में जा रहे थे वे जेईई और नीट की परीक्षाओं में सम्‍मिलित हुए।  हम ‘स्‍टे इन इंडिया’ के तहत दुनिया के शीर्ष सौविश्वविद्यालयों को अपनी धरती पर आमंत्रित कर रहे हैं, आपकोकहीं जाने की जरूरत नहीं है और यहां के जो शीर्ष विश्वविद्यालय हैं वेभीबाहर जा रहे हैं।मुझेइस बात की खुशी हैकि जब दुनिया के उन परिसरोंके बारे में मैं अध्ययन करता हूं तो हमारे संस्‍थानोंको अधिकांश क्षेत्रों में शीर्ष पर देखता हूं। ऐसे ही हम यहां भी उनके कुछ विश्वविद्यालयों को लाएंगे और अपने विश्वविद्यालयों को आईओई सहित हमारे एनआईआरएफ में जो टॉप 100 विश्वविद्यालयों को हम ऑनलाइन भी ले करआ रहे हैं।

नई शिक्षा नीति में हम शोध और अनुसंधान के दिशा में नेशनल रिसर्चफाउंडेशन ला रहे हैं जो प्रधानमंत्री जी के  प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार की अध्यक्षता  होगा, इससे शोध और अनुसंधान की गतिशीलता को बढ़ावा मिलेगा और वही तकनीकी के क्षेत्र में अंतिम छोर तक उसको पहुंचाने के लिए हमनेशनल एजुकेशन टेक्नोलॉजी फोरम का गठन कर रहे हैं। इस शिक्षा नीति के तहत हम मूल्यांकन भी करेंगे उसको आगे भीबढ़ाएंगे। विश्व के शिखर तक संस्थाओं को किस तरीके से आगे बढना है और रैंकिंग  में हमारे संस्थान कैसे करके जंप मार सकते है, इस पर काम करने कीआवश्यकता है। इसीलिए उच्चतर शिक्षा आयोग का गठन कर रहे हैं ताकि शैक्षणिक गुणवत्ता और सशक्तता हमारी बनी रहेगी। मुझे भरोसा है कि जो नई शिक्षा नीति है वो नई शिक्षा नीति जिस स्तर पर विश्वविद्यालय अपना शुरू करना चाहते हैं वो शुरुआत कर सकते हैं। मुझे यह भी कहते हुए खुशी है कि बहुत सारी चीजें जोनई शिक्षा नीति में जोहम लेकरआये हैं उनका हमने पालन करना शुरू कर दिया है।

भारतीय शिक्षण प्रक्रिया के विकेन्द्रीकरण, सशक्तिकरण और स्वायत्तता के हम पक्षधर हैं उसका लाभ लेकर के यह जो नई लहर है शिक्षा की वो अंतिम कोने तक पहुंचेगी क्योंकि हमको इस बात पर भी चिंता है कि अभी हमारा जीईआर 26-27 प्रतिशत है। हमें वर्ष 2035 तक इसको 50 प्रतिशत करने का टारगेट रखा है जिसमें साढ़े तीन करोड़ से भी अधिक छात्र नई और उच्च शिक्षा में नया स्थान प्राप्त कर सकेंगे। मैं सोचता हूं कि व्यापक परामर्श और सुझाव कीअभूतपूर्व प्रक्रिया से होकर हमगुजरे हैं अब यह जो दूसरी प्रक्रिया है जो निश्चित रूप से बहुत ताकत मांगती है, जो समर्पण मांगती है, जो प्रखरता मांगती है, जो विनम्रता मांगती है, जो धैर्य मांगती है इसलिए जो भी हमारे योद्धा जुड़े हुए हैं, मैं उनसे कहना चाहता हूं कि मुझे ऐसा लगता है कि हमको 5 डी मॉडल के साथ आगे बढना पड़ेगा।

डिस्कस, डिबेट, डिसाइड, डिसिमिनेट और डिलिवर इन पांचों कोलेकर हमें आगे बढ़ना पड़ेगा और तब जाकर के हम एक अच्छे मार्गदर्शक के रूप में हो सकते हैं क्योंकि मैं समझता हूं कि छात्र इस नीति का केन्द्र बिन्दु है लेकिन इसका फोकस प्वाइंट हमारे ब्रांड अम्बेसडर हैं।इसनयी शिक्षा नीति में एक ओर छात्र हैं तो दूसरी ओर शिक्षक और शिक्षाविद हैं।

\नई शिक्षा नीति के क्रियान्‍वयन के लिए विश्वविद्यालय और महाविद्यालय को कार्य योजना बनाकर उसको समयबद्ध लागू करना पड़ेगा क्योंकि कितने समय में हम क्या-क्या कर सकते हैं उसमें प्रशासन केविकेंद्रीकरण और सशक्तिकरण के साथ जोड़कर हमकोआगे बढ़ानापड़ेगा। मुझे भरोसा है कि हम स्टडी इन इंडिया और स्‍टे इन इंडिया इन दोनों लक्ष्यों को भी हम प्राप्त कर सकेंगे और ग्लोबल पार्टनरशिप के माध्यम से हम दुनिया को बताना चाहते हैं कि अब जो हमारी संस्कृति है, जो हमारी विविधता है, जो हमारे देश का सॉफ्ट पावर है, वो दुनिया के फलक पर कैसे महक सकता है। मैं समझता हूं कि शोधअनुसंधान के द्वारा हमें टैलेंट को ढूंढना भी है, उसका विकास भी करनाहै औरउसका विस्तार भी करना है तथाटैलेंट को पेटेंट के साथ जोड़नाभी है।मैंदेख रहा था पीछे के समय 10-15 साल पहले जहां चीन हमारे बराबरथा लेकिन उसने जंप मारा है। वहां जमीन-आसमान का अंतर है तो इस बीच हमारा पीछे के समय में जो 10 15 वर्ष पीछे के थे और उनमें हम लोग उस दिशा में और गंभीरता से आगे बढ़ नहीं पाये। अब जरूरत हो गई है और परिवेशभी बनरहा है।

हमारे देश के प्रधानमंत्री जी ने तो जय अनुसंधान का नारा दिया है कि जयअनुसंधान के साथ विश्व फलक पर मेरे देश को आगे बढऩा है। मुझे भरोसा है कि इसके लिए आपविशेषज्ञों को अपने-अपने संस्थानों में, विश्वविद्यालयों में,अपनेप्रोफेसर, शिक्षाविद और विशेषज्ञों की टास्कफोर्स बनाकर इस नीति को नीचे तक ले जाने का तरीका भी बनाएंगेऔर उसको क्रियान्वित भी करेंगे। हर कदम पर व्यवधान आते  हैं जब कोई नई चीज होती है लेकिन हमें व्यवधान से समाधान की ताकत चाहिए और मुझे भरोसा है कि जो टास्कफोर्स आपतैयार करेंगे वो व्यवधान से समाधान की ओर बढ़ने के सभी बिन्दु तैयार करेंगे। राज्य के विश्वविद्यालय हों, चाहेकेन्द्रीय विश्वविद्यालय हो, चाहे प्राइवेट विश्वविद्यालय हों उन सभी में पारस्परिक समन्‍वय हो, इसकी भी हम लोग पूरी कोशिश कर रहे हैं। इसलिए मैं अपने सभी कुलपति गण से, सभी निदेशक से औरसभीशिक्षाविदों से यह आग्रह करूंगा कि मेक इन इंडिया डिजिटल इंडिया स्किल इंडिया स्टार्टअप इंडिया जो भारत की 5 ट्रिलियन डॉलर की आर्थिकी के रूप में सुनिश्चित करेगा।इक्कीसवीं सदी का जो स्‍वर्णिम भारत होगा उसके निर्माता के रूप में आप सारे लोग हमारे देश के प्रधानमंत्री जी के उस विजन को, उस मिशन को, उस संकल्प को पूरा करेंगे।आप निश्चित रूप में दो दिन के इस सेमिनार में ‘सबका साथ सबका विकास और सबका विश्‍वास’ मंत्र को ले करके आगे बढ़ेंगे। टीम इंडिया के रूप में हम ‘इंडिया फर्स्ट’ का नारा ले करके कैसे आगेबढ़ सकते हैं, इसको जुनून के साथ हम करेंगे।मैंएमिटी का आभारी हूं कि उन्होंने यह शुरुआत कर दी है और बहुत खूबसूरत शुरूआत है। मैं देखता हूं सभी प्रदेशों के शिक्षा मंत्रियों से औरमुख्यमंत्रियों से लगातार मेरी बातचीत होती है और मुझे इस बात की खुशी है कि लगभग देश के सभी मुख्यमंत्री एवं सभी शिक्षा मंत्री इस मूड में हैं कि अबमैं अपने प्रदेश में कैसे करके पहले इसको लागू कर सकता हूं, मेरी शुभकामनाएं।

बहुत-बहुत धन्‍यवाद!

 

कार्यक्रम में गरिमामयी उपस्‍थिति:-

  1. डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’, माननीय शिक्षा मंत्री, भारत सरकार
  2. डॉ. अशोक कुमार चौहान, संस्‍थापक, अमिटी विश्‍वविद्यालय
  3. डॉ. बलविन्‍दर शुक्‍ला, कुलपति, अमिटी विश्‍वविद्यालय,
  4. डॉ. अतुल चौहान, कुलाधिपति,अमिटी विश्‍वविद्यालय
  5. प्रो. डी.पी. सिंह, अध्‍यक्ष, विश्‍वविद्यालय अनुदान आयोग,
  6. डॉ. भूषण पट्टवर्धन, उपाध्‍यक्ष, विश्‍वविद्यालय अनुदान आयोग,
  7. डॉ. तेज प्रताप सिंह, कुलपति, गोविन्‍द बल्‍लभ पंत कृषि और प्रौद्योगिकी विश्‍वविद्यालय एवं अध्‍यक्ष, भारतीय विश्‍वविद्यालय अनुदान संघ

श्री श्री विश्‍वविद्यालय में भारतीय ज्ञान प्रणाली में समकालीन शिक्षा एवं व्‍यवहार पर एक संकाय विकास कार्यक्रम का उद्घाटन

श्री श्री विश्‍वविद्यालय में भारतीय ज्ञान प्रणाली में समकालीन शिक्षा एवं व्‍यवहार पर एक संकाय विकास कार्यक्रम का उद्घाटन

 

दिनांक: 04 नवम्‍बर, 2020

 

माननीय शिक्षा मंत्री, डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’

 

आज के इस ऐतिहासिक और प्रेरणाप्रद कार्यक्रम में उपस्‍थित गुरू जी श्री श्री रविशंकर जी और यहां पर उपस्‍थित डॉ. सोनल मानसिंह जी, पद्म भूषण प्रो. कपिल कपूर जी जिनकामार्गदर्शन अभी हमें मिला जो हमारे एडवांस्‍ड स्‍टडी सेन्‍टर के न केवल अध्‍यक्ष हैं बल्‍कि उनका इस क्षेत्र में बहुत लम्‍बा योगदान है, प्रो. अनिल सहस्‍त्रबुद्धे जो एआईसीटीई के चेयरमेन हैं और भारतीय ज्ञान परम्‍परा का जो हमने मंत्रालय में प्रकोष्‍ठ बनाया है इनकेमार्गदर्शन में बहुत अच्‍छा काम हो रहा है और जिसके अध्‍यक्षप्रधानमंत्री जी प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार हैं और डॉ. अनिल सहस्‍त्रबुद्धे सहित कुछ महत्‍वपूर्ण लोग उससे जुड़े हैं जो इस अभियान को सरकार के स्‍तर पर भी बढ़ा रहे हैं। प्रो. पी.सी. जोशी और प्रो. बी.के. त्रिपाठी जी यहां पर उपस्‍थित हैं और यहां के कुलपति प्रो. अजय कुमार सिंह जी एवं डॉ. ऋचा जी, डॉ. रजिता कुलकर्णी जी जो श्रीश्री विश्‍वविद्यालय की अध्‍यक्ष हैं,साथ ही देश और दुनिया से आज हमारे साथ इस महत्‍वपूर्ण कार्यक्रम में जो लोग जुड़े हैं, मैं उनको धन्‍यवाद देना चाहता हूं और मैं गुरू जी को विशेष करके धन्‍यवाद देना चाहता हूं कि आपने पहल की है जो हमारा मन है, जो हमारा विचार है, जो हमारी परम्‍परा है और जब हम इस देश के बारे में सोचते हैं और जब भारतीय ज्ञान परम्‍पराओं के बारे में विचार करते हैं तथा जब हम पीछे देखतेहैं तो तक्षशिला, नालन्‍दा और विक्रमशिला जैसे विश्‍वविद्यालय हमारे देश में थे और अभी जो हमारी संचालिका ने कहा कि ‘एतद् देश प्रसूतस्य शकासाद् अग्रजन्मन : , स्वं-स्वं चरित्रं शिक्षरेन् पृथ्वियां सर्व मानव:’अर्थात् पूरी पृथवी के लोग हमारे ज्ञान, विज्ञान, नवाचार, आचार, विचार को सीखने के लिए आते थे। भारत विश्‍वगुरूकेरूप में जाना जाता था लेकिन जो बीचकाकालखंड आया जिन गुलामी के दिनों के थपेड़ों को भारत ने सहा है और हमें हमारी जड़ों से अलग करने की कोशिश हुई1 हमारे ज्ञान, विज्ञान और उस परंपरा को खत्म करने की कोशिश हुई। लेकिन हम नहीं भूलते कि कियूनान, मिस्र, रोमा सब मिट गए जहां से अब तक मगर है बाकी नामो निशां हमारा और कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी। कुछ तो बात हैजो मिटाने से भी नहीं मिटी है। वो जो कुछ बात है उसी बात को लेकर के हमको आगे बढ़ना है तथा हम बढ़ रहे हैं और बढ़ेंगे। मैं समझता हूँ कि भारत हमेशा विश्वगुरु था, विश्वगुरु है और विश्व रहेगा।इसलिए भी विश्‍वगुरू रहना है कि हम भारत के लोगों ने हमेशा विश्‍वबंधुत्व की बात की है, हमारा विचार बड़ा रहा है। पूरी दुनिया के लिए हमने एक ओर कहा अयं निजः परो वेति गणना लघु चेतसाम् | उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम् हमने यह बात की है। हम पूरी वसुधा को हम अपना परिवार मानते हैं हम उन लोगों में कभी नहीं रहे हैं जिन्होंने पूरी दुनिया को मार्किट माना है, बाजार माना है, हमने बाजार नहीं माना है। इस पूरी दुनिया को हमने परिवार माना है क्योंकि हम जानते हैं कि परिवार में हमेशा प्यार होता है और बाजार में केवल व्यापार होता है।वेदों,पुराणों एवंउपनिषदों के बारे में प्रो. कपिल जीचर्चा कर थे, वे बहुत बड़े ज्ञाता हैं,मैंजब-जब इनको देखता हूँ, सुनता हूँ, मिलता हूं तो मुझे प्रेरणा मिलती है। अभी वे वेद, पुराण,उपनिषदों की बात कर थे तो जहाँ आज यह कहा गया कि यह पूरा विश्व हमारा अपना परिवार है वहीं इससे बड़ी बात क्या हो सकती है किइस पृथ्‍वी पर पैदा होने वाला हर जीव-जन्तु मेरा अंग है। हमारा चिंतन किस सीमा तक का है कि‘सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया सर्वे भद्राणी पश्‍यन्‍तु मा कश्‍चिद् दु:ख भाग्‍भवेत’तब तक मैं सुखका अहसास नहीं कर सकता जब तक कि दुनिया में एक भी प्राणी दुखी होगा, इससे बड़ा विजनकिसका हो सकता है?इसलिए हम बड़े हैं, हम केवल कहने के लिए बड़े नहीं हैं। हमने केवल एक-दो अनुसंधान किये और हम शिखर पर पहुंच गए, ऐसा भी नहीं है। हम हमेशा ही बड़े थे, उदार थे औरहमने बड़प्पन दिखायाहै। हमने अपना पराकाष्ठा तक का समर्पण दिखाया है। हमने किसी को भी किसी सीमा तक जाकर हर चीज का प्रमाण दिया और आज जब हम भारतीय ज्ञान परंपरा की बात करते हैं तो दुनिया क्यों भूल जाएगी? पहले तो हमको याद दिलाना पड़ेगा कि क्या दुनिया भूल जाएगी कि शल्य चिकित्सा का जनक सुश्रुत इसी महान् भारत भूमि पर पैदा हुआ। क्‍या आयुर्वेद के जनक चरक, ज्‍योतिष के महान् ज्ञाता भास्‍कराचार्य, महान् गणितज्ञ आर्यभट्ट को कोई भी नकार सकता है? यह दुनिया तो इधर से लेकर के गई हैसबकुछ। मैं धन्यवाद देना चाहता हूंइस विश्वविद्यालय को किइन्होंने भारतीय ज्ञान परंपरा पर आज जो कार्यशुरू किया है और मैं देख रहा था कि आपने तीनों चीजों कोकिया। पहलाआत्मनिर्भर भारत, भारतीय ज्ञान परंपरा और उसमें भी प्राध्यापक का विकास क्योंकि इन सबके आखिर ध्वज वाहक तो मेरे यह आचार्य ही हैं। इन्होंने ही इसे शिखर तक पहुँचाना है।हमारी संस्‍कृति में गुरु को तो हमेशा सम्मान दिया गया है और इसीलिए हमने गुरू कोभगवानके समान माना है। एक तरफ हमने कहा ‘गुरुर ब्रम्हा गुरुर विष्णु गुरु देवो महेश्वर गुरु साक्षात् परम ब्रह्मा तस्मै श्री गुरुवै नम:।‘ गुरु को तो हमने हमेशा ईश्वर के समान माना है और साधारण भाषामें कहेंगे तो ‘गुरु गोबिन्द दोऊ खड़े काके लागू पाय बलिहारी गुरु आपने गोबिंद दियो बताए।‘ यदि ईश्वर और गुरु दोनों सामने हों तो हमारे को कोई संकोच नहीं होता कि पहले किसकी चरण वंदना करें।यही तो गुरु है जिन्होंने गोविन्द के दर्शन कराए, जीवन के दर्शन कराए। इसलिए मैंपहले चरण वंदना गुरु की करूंगा। हमारे यहां गुरु को सर्वोच्च शिखर पर माना गया है और इसीलिए यह जो नई शिक्षा नीति हम लायेहैं इसमें अध्‍यापक की केन्‍द्रीयभूमिका है और आपने आज जो अध्यापक विकास कार्यक्रम शुरू किया है जिसे आपने भारतीय ज्ञान परम्‍परा एवं आत्‍मनिर्भर भारत के साथ जोड़ा है, जो बहुत ही सराहनीय है। जैसा कपिल जी कह रहे थे कि आज आपने बिल्‍कुल नया रास्‍ता खोला है। क्योंकि कोई भी देश एक नंबर पर अपने विचार के आधारपर ही हो सकता है किसी से चोरी हुई चीजों को लेकर अथवा सीखी हुई चीजों को उधार लेकर कभी नंबर एक नहींहो सकता है और हमारे पास वो सब कुछ है जब हम पूरी दुनिया में नंबर एक थे और नंबर एक अभी भी है और नंबर एक ही रहना है। उस यात्रा को इस नई शिक्षा नीति के आधार पर करना चाहिए। इस योजनाकोभारतीय ज्ञान परंपरा के सूत्र के साथ इसलिए करें कि चरक को हम कैसे भूलसकते हैं। सुश्रुत, शल्य चिकित्सा का जनक आज उस पर शोध और अनुसंधान करके आगे बढाना चाहिए। हमको भास्कराचार्य कीचीजों को आगे बढ़ाना चाहिए। क्या कणादको भूल जाएगी दुनिया, अणु-परमाणुके विश्लेषणकर्ताऋषि कणाद को हम कैसे भूल जाएंगे? इतने बड़े वैज्ञानिकों को कैसे भूल जाएंगे और इसीलिए मैं सोचता हूं चाहे रामानुजन हों, चाहे बौधायन हों,चाहेभाषा विज्ञान में पाणिनी हों, इन सभी लोगों ने दुनिया को अपनी महान् देन से रास्‍ता दिखाया है। आज दुनिया योगकेपीछे खड़ी है। हमारे देश के प्रधानमंत्री जी ने हमारे देश के उस विचार को जब विश्व के मंच पर रखा कि मेरा देश ‘विश्व बंधुत्व’ को चाहता है, मेरा देश पूरी दुनिया की मानवता के कल्याण की बात करता है तब पूरी दुनिया को महसूस हुआ जब उन्होंने योग के बारे में कहा कि मनुष्य ईश्‍वर की सबसे सुंदरतम कृति है, इसकी सुरक्षा कैसे हो सकती है? क्या यह संभव है कि लोग योग को अपनाएं?प्रधानमंत्री श्रीनरेन्द्र मोदी जी की उस बात पर पूरी दुनिया पीछे खड़ी हो गई। आज 21 जून को पूरी दुनिया के 197देशयोग दिवस मनाते हैं। मेरा तो सौभाग्य है कि मैं उस हिमालय से आता हूं जहां वेद, पुराण, उपनिषदों का जन्म हुआ है और जहां आयुर्वेद का जन्म हुआ है एवं योग का जन्म हुआ। हिमालय की धरती आध्यात्मिक परम्पराओं की भी है तो ऋषि मुनियों की वो थाती है जहां से ज्ञान और विज्ञान का और आध्यात्म के जीवन-दर्शन का बेहतर समन्वय होता है। जहां स्वर्ग से अवतरित गंगा विश्व के कल्याण के लिए कलकल निनाद करके तमाम चट्टानों से टकराकरके भी अहर्निश चलती है औरतमाम अपने में गंदगी समाने के बाद भी जो पवित्रता नही खोती है,ऐसी गंगा भी हमारी हो सकती है और इसलिए आज जरूरत है इन सब चीजों पर ध्‍यान देकर कार्य करने की। इन सब चीजों को जो एक पीछे का कार्यकाल कालखंड था उसनेहमारे मन-मस्तिष्क को इस तरीके से दबोच दिया था कि अभी भी हम उससे उभर नहीं पाते हैं तभी हम दुनिया की बातें करते हैंलेकिन अपनी बातें नहीं करते हैं।मैं इस अवसर पर बस सिर्फ इतना कहना चाहता हूं कि यह बहुत अच्छी पहल है। हमारे पास पूरी दुनिया के लिए ऐसी शक्ति की पूंजी है जिससेहिंदुस्तान को ज्ञान की महाशक्ति बनाना है।इसीलिए यहजो नई शिक्षा नीति आई है, वह व्यापक परिवर्तन को लेकर आई है।हमने इतना परामर्श किया है कि शायद पूरी दुनिया की यह पहली नीति होगी जिस पर इतना बड़ा परामर्श हुआ। हमारा देश पूरे विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है। यदि मैंशिक्षा विभाग की बात करूं तो एक हजार यहां पर विश्वविद्यालय हैं,45 हजार से अधिक डिग्री कॉलेज हैं, 15 लाख से अधिक यहां स्कूल हैं, 1 करोड़ 9 लाख से अधिक अध्यापक हैं और कुल अमेरिका की जितनी जनसंख्या नहीं है उससे भी अधिक 33करोड़ छात्र-छात्राएं हैंऔर यह देश  आगे 25 वर्षों तकयंग इंडिया रहने वाला है। क्या नहीं कर सकते हैंहम?हममें विजन भी है, मिशन भी है और जो लोग ये सोचते हैं कि नहीं, मेरे देश में शिक्षा नहीं है। मैं उनसे हाथ जोड़कर के विनम्रता से अनुरोध करता हूंकिआप यह मत बोले कि शिक्षा केवल विदेशों में है।नई शिक्षा नीति में हमने मातृभाषाओं को प्राथमिकता दी है। तमिल, तेलुगू, मलयालम, कन्नड़, गुजराती, मराठी, बंगाली,संस्कृत, हिन्दी, पंजाबी, उर्दू सहित हमारे संविधान की अनुसूची 8 में हमारी 22 भारतीय भाषाएं बहुत ही खूबसूरत हैं। उनके अंदर ज्ञान विज्ञान हैं, संस्कार है, आचार-व्यवहार हैं,हम उनके सशक्तिकरण की बात करते हैं। कुछ लोग यहतर्क देते हैं डॉ.निशंकआप बचपन से ही मातृभाषा में शिक्षा देने की बात कर रहे हैं और उच्चस्तर तक शिक्षा देने की आप बात कर रहे हैं, आप नईशिक्षा नीति में यह क्या लेकर आये हैं। कुछ लोग कहते हैं कि हमको ग्‍लोबल पर जाना है तो अंग्रेजी सीखनी पड़ेगी। मैंने कहा  हम अंग्रेजी का विरोध नहीं  करते, अंग्रेजी ही नहीं और दो-तीन भाषाएं सीखों,लेकिन अपनी भाषाओं को मत छोड़ो। हमने अंग्रेजी का कभी विरोध नहीं किया लेकिन अंग्रेजी इस देश की भाषा नहीं है। हमें अंग्रेजीही क्या पूरी दुनिया की भाषाओं को पढना है लेकिन मैं उन लोगों से पूछना चाहता हूं कि क्या जो देशनीचे से लेकर उच्च शिक्षा तकअपनी मातृभाषा में शिक्षा देते हैं वो किसी से पीछे हैं, क्‍या जापान, फ्रांस, इंग्लैंड और दुनिया के तमाम जो विकसित देश हैं वो अपनी मातृभाषा में शिक्षा देते हैं क्‍या वो किसी से पीछे हैं,फिर ऐसे तर्क दे करके देश को कमजोर करने की बातक्यों की जाती हैं। इसलिए देश के प्रधानमंत्री जीने कहा कि अब व्‍यक्‍ति अपनी मातृभाषा में डॉक्टर भी बन सकता है औरइंजीनियर भी बन सकता है क्‍योंकि  जो बच्‍चा जिस भाषा को बोलता है यदि उसको उसकी भाषा में शिक्षा दी जाए तो वह उसमें ज्यादा अभिव्यक्त कर सकता है। हमारेदेश के प्रधानमंत्री जी ने 21वीं सदी के स्वर्णिम भारत की बात की है।ऐसा भारत जो स्वच्छ भारत होगा, स्वस्थ भारत होगा,समर्थ भारत होगा, सशक्त भारत होगा, श्रेष्ठ भारत होगा, आत्म निर्भर भारत होगा और एक भारत होगा।उसआत्मनिर्भर भारतकीआधारशिला मेक इन इंडिया,डिजिटल इंडिया, स्किल इंडिया,स्‍टार्ट अप इंडिया और स्‍टैंड अप इंडिया से होकर गुजरती है। मेरे देश के अंदर प्रतिभा है जिसकाहमने अभीदर्शन किया। जब देश और दुनिया कोविडकी माहमारी के संकट से गुजर रही थी तोहमारे देश के प्रधानमंत्री जी ने कहा है कि नौजवानों आगे आओ,आपक्या कर सकते हैं मैं इस बात को लेकर बहुतखुशहूं कि तब मेरे छात्रों ने, मेरे अध्यापकों ने प्रयोगशाला में जाकर एक से एक नये अनुसंधान किये। हमनेमास्‍कतैयार किए, हमने ड्रोन तैयार किए, हमने सस्‍ते एवं टिकाऊ वेंटिलेटर तैयार किए, टेस्टिंग किट तैयार किए जो पहले देश में कभी बनता ही नहींथा।यदि आप युक्ति पोर्टल पर जाएंगे तो आपको लगेगा कि इस कोरोना काल में भी इस देश के नौजवानों, अध्यापकों और छात्र-छात्राओंनेबहुत सारे शोध एवं अनुसंधान किये हैं,यह हमारी ताकत है। दुनिया ने हमारी ताकत को देखा है। हम को इस ताकत को बचाकररखने की जरूरत है।जब मैं दुनिया के सब देशों को देखता हूं कि कौन कहां है तथा क्‍या कर रहा है मुझे लगता है अमेरिका में आज चाहे वो गूगल हो, चाहे माइक्रोसॉफ्ट होइन सभी बड़ी-बड़ी कंपनी के सीईओ तो मेरे आईआईटी से पढ़कर के गए हैं और आज वे पूरी दुनिया में लीडरशिप ले रहे हैंतो क्या हमारी शिक्षा कमजोर हैंइसलिए अभी हम‘स्टडी इन इंडिया’को एक ब्राण्ड बना रहे हैं।आज दुनिया के लोग मेरे हिन्दुस्तान में आकर के पढ़ सकते हैं और इस समय 50 हजार से भी अधिक नामांकनहो गए हैं। दुनियाके लोगो में हिन्दुस्तान में पढने के लिए ललक दिखाई पड़ती है। मेरे आसियानदेशों के एक हजार से भी अधिक छात्र आज आईआईटी में शोध और अनुसंधान के लिए यहां आए हैंऔर उनके साथ एमओयू हो गया। अभीहमने ‘स्टेइन इंडिया’कीभी बात कीक्‍योंकि हमारे देश से 7-8 लाख छात्र प्रतिवर्ष विदेशों में पढ़ने के लिए जा रहे हैं। हमारे देश का पैसा और प्रतिभा दोनों बाहर चली जाती हैं तो वापस वह हमारे देश में नहीं आती है और इसलिए हमने‘स्‍टे इन इंडिया’ किया।  हमने  छात्रों को भरोसा दिलाया कि हमारे आईआईटी, एनआईटी, आईएसर, केन्‍द्रीय विश्‍वविद्यालयों में योग्‍यता है, क्षमता है तथा आपको  बाहर जाने  की जरूरत नहीं है,अब लोगों की समझ में आ गया है। मुझे इस बात की खुशी है कि पीछे के समय जब हमने जेईई परीक्षाएं करवाई। दो लाख से भी अधिक छात्र जोविदेश में जा रहे थेवे जेईई और नीट की परीक्षाओं में सम्‍मिलित हुए।  हम ‘स्‍टे इन इंडिया’ के तहत दुनिया के शीर्ष सौविश्वविद्यालयों को अपनी धरती पर आमंत्रित कर रहे हैं। आपकोकहीं जाने की जरूरत नहीं है और यहां के जो शीर्ष विश्वविद्यालय हैं वेभीबाहर जा रहे हैं। यह आदान-प्रदान हम करेंगे।हमारे संस्‍थान अब एनआईआरएफ ही नहीं,अटल रैंकिंग ही नहीं बल्‍कि क्‍यूएस रैंकिंग और टाईम्‍स रैंकिंगमें भीछलांग मार  रहे हैं क्योंकि हममें सामर्थ्य है।हमने नई शिक्षा नीति के तहत बिल्कुल खुला मैदान छोड़ दिया है।अब आप कोई भी विषय ले सकते हैं। आपविज्ञान के साथ साहित्य ले सकते हैं तथा आप इंजीनियरिंग के साथ संगीत ले सकते हैं। आप जो चाहें उस विषय को ले सकते हैं।इसके अतिरिक्‍त इस शिक्षा नीति के अंतर्गत यदि कोई 4 वर्ष का कोर्स है और यदि कोई छात्र दो साल में परिस्‍थितिवशछोड़के जा रहा है  तो पहले उसका पैसा एवं समय दोनों खराब हो जाते थे। लेकिन अब उसकोनिराश नहीं होना पड़ेगा,यदि आप परिस्‍थितिवश एक वर्षमें छोड़ कर जा रहे हैं तो उसको सर्टिफिकेटदेंगे,दो साल में छोड़ कर जा रहा है तो डिप्लोमा देगें, तीन साल में छोड़कर जा रहा है तो उसकोडिग्री देंगे लेकिन यदि फिर वह लौट कर अपने भविष्य को संवारना चाहता है तो फिर जहां से उसने छोड़ा था वह वहीं से शुरू कर सकता है। उसके लिए हम एक ऐसा क्रेडिट बैंक बनायेंगे जहां उसके सारे क्रेडिट जमा रहेंगेइसलिए विद्यार्थियों के लिए आगे बहुत आपार संभावनाएं है।जब मैं अपने संस्थानों की समीक्षा करता हूं तो मुझे लगता है कि हमशोध और अनुसंधान के क्षेत्र में अभी कमजोर हैं।हमारे छात्रों में डिग्री ले करके पैकेजकी होड़ लग गई हैं और इसलिए मैंने आह्वानकिया नौजवानों को कि पैकेज की हौड़ की बजाय पेटेंट की होड़ लगाओ। जिस दिन पेटेंट की होड़ शुरू हो जाएगी उस दिन देश शिखर पर पहुंच जाएगा।मेरे नौजवानों में, मेरे छात्र छात्रों में प्रतिभा की कमी नहीं है और हम जिस दिन शोध और अनुसंधान के क्षेत्र में कार्य करना शुरू कर देंगे उस दिन शिखर पर पहुंचेंगे। एक समय था जब लालबहादुर शास्त्री जी देश केप्रधानमंत्री थे और हमारे देश अंदर खाद्यान का बहुत संकट था तथादेश की सीमाओं पर भीसंकट था। हम दोहरे संकट से गुजर रहे थे, खाद्यान संकट और सुरक्षा का संकट। लेकिन जब लालबहादुर शास्त्री जी ने ‘जय जवान, जय किसान’ का नारा दिया तो आप सबको भी मालूम है कि पूरा देश खड़ा हो गया था और हमने दोनों संकटों पर विजय प्राप्‍त की और रास्ता निकला था। उन्होंने कहा कि एक दिन का उपवास रखना है। लोगों ने एक दिन का उपवास रखना शुरू कर दिया था, पूरा देश खड़ा हो गया था लेकिन आपकेआह्वानमें दम होना चाहिए। उनके बाद जबहमारेदेश के प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी जी आए तो उन्होंने कहा कि एक समय था जब ‘जय जवान, जय किसान’ का नारा लगा लेकिन अब जरूरत है‘जय विज्ञान’ के नारे के साथ हमें आगे बढ़ना चाहिए। अब जरूरत है हमें अपनी ताकत को दिखाने की तथा अपने को और ताकतवर बनाने की, भले ही हमारा देश कभी किसी को छेड़ता नहीं हैं लेकिन ताकतवर तो रहना चाहिए। आदमी जबताकतवर रहता है तभीदूसरे का संरक्षण कर सकता है। कमजोर आदमी दूसरे का संरक्षण करने में समर्थ नहीं होता हैऔरयदि एक आदमी ने थप्पड़ मारा और कहा कोई बात नहीं, मैं तो आदर्शवादी हूं दूसरे गाल को भी मार दो,ऐसी कोई जरूरत नहीं है। आज जरूरत इस बात की है कि यदि किसी ने गाल पर थप्पड़ मारा तो उसके हाथ को पकड़ लिया जाए।हमारे पास ताकत तो इतनी है कि हाथ को तोड़कर के बाहर फेंक सकते थे लेकिन यह हमारा आदर्श है कि हमने आपको छोड़ दिया। जाइए, अब आगे से ऐसा मत करिए,यह है ताकत, इस ताकत की जरूरत है। उस ताकत की जरूरत के लिए अटलबिहारी बाजपेयी ने जैसे ही‘जय विज्ञान’ का नारा दिया आपको सब पता है देश महाशक्ति के रूप में किस तरीके से खड़ा हो गया। परमाणु परीक्षण करने के बाद दुनिया के तमाम देशों ने कहा कि हम भारत पर आर्थिक प्रतिबंध लगा देंगे। लेकिनअटल जी थे और उन्होंने बेहतरीन निर्णय लेते हुए कहा कि हम मजबूत भारत देखना चाहते हैं, हम अपाहिज भारत नहीं देखना चाहते हैं। हम शक्तिशाली भारत देखना चाहते हैं और इसलिए आपको याद होगा कि पूरी दुनिया ने आर्थिक प्रतिबंध लगाने की घोषणा की यहां तक की कई संपादकीय उनके विरोध में लिखे गए थे। उस समय अटल जी ने कहा था कि विकसित देशों के ऋण की भीख हमको नहीं चाहिए और उन्‍होंनेदेश से आयात और निर्यात दोनों बंद कर दिए थे। ना आयात होगा, ना निर्यात होगा।जो चीजें देश में बनती हैं वे चीजें दुनिया में नहीं जाएंगी और दुनिया की चीजें देश में नहीं आएंगी। केवल इसएक सूत्र ने छह महीने के अंदर-अंदर पूरी दुनिया को झुका दिया था और आर्थिक प्रतिबंधों को वापस लेना पड़ा था। यह है ताकत जब आदमी पूरे विजन के साथ काम करता है तो फिर वह आगे बढ़ता है। अब हमारे देश के यशस्‍वी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने जिस तरीके से 2013-14 के बाद जिस ढंग से काम किया है और आज उन्होंने ‘जय अनुसंधान’ का भी नारा दिया। अबहमेंअनुसंधान की जरूरत है।हमारे पास बहुत चीजें हैंजिनके बल पर पूरी दुनिया में हम नंबर एक हो सकते हैंलेकिन उस चीजों को नये अनुसंधान के साथ औरनये नवाचार के साथ सामने लाने की जरूरत है और इसीलिए अभी हम अनुसंधान के क्षेत्र में ‘स्पार्क’ के तहत दुनिया के शीर्ष127विश्वविद्यालयों के साथ शोधऔर अनुसंधान कर रहे हैं, हम स्‍ट्राइडके तहतपारस्परिक शोध कर रहे हैं। हमइम्‍प्रिंट,इम्प्रेस के तहतशोध कर रहे हैं, हम स्टार्स के तहत कर रहे हैं और नई शिक्षा नीति के तहतहमनेशनल रिसर्च फाउंडेशनकी स्‍थापना कर रहे हैं, जो प्रधानमंत्रीजी के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार की अध्यक्षता में होगा।हम इस देश में शोध और अनुसंधान की संस्कृति को तेजी से बढ़ाएंगे और इसके साथ ही हम नेशनल एजुकेशन टेक्‍नोलॉजी फोरम का भी गठन कर रहे हैं ताकितकनीकी दृष्टि से अंतिम छोर के व्‍यक्‍ति तक प्रौद्योगिकी पहुंच सके। हमारा देश तकनीकी एवं वास्तु कला से लेकर के विभिन्न क्षेत्रों में प्रौद्योगिकी के क्षेत्र शिखर पररहा है। यदि इस गुलामी के कालखंड को छोड़ दिया जाएतोजिस भारतीय ज्ञान परंपरा की बात आज हम कर रहे हैं उस भारत का जब दर्शन होता है तब पता चलता है कि दुनिया में तो हम ही शिखर पर थे। और इसलिए मैं समझता हूं आज यह जो परिचर्चा शुरू हुई है वह बहुत ही सुखद है। भारत को ज्ञान की महाशक्ति बनाने का रास्ता जो यह अभियान आपने शुरू किया इसके लिएमैंआपको बधाई देना चाहता हूं तथा शुभकामना देना चाहता हूं। मुझे भरोसा है कि जहां हमने‘नेशनल रिसर्चफाउंडेशन’ किया हैं वहीं हम‘नेशनल एजुकेशन टेक्नालॉजी फोरम’ का भी गठन कर रहे हैं जिसमें तकनीकी दृष्टि से बहुत तेजी से नीचे तक का विकास होगा और इसलिए चाहे शोध हों, अनुसंधान हो हर क्षेत्र मेंयहशिक्षा नीति तोभारत केंद्रित होगी। मुझे याद आता है जब हम इसका पालन कर रहे थे तो कपिल कपूर जी को मैने बुलाया वे मेरे यहां बैठे थे और चार पांच लोग थे। मैंने कहा कि आप एक-एक चीज का सुझाव लो और आपको मालूम है कि हमने33 करोड़छात्र-छात्राओं से विचार-विमर्श किया, यदि उनके माता-पिता को भी देखेंगे तो 99 करोड़ लोगों से परामर्श, शिक्षाविदों से परामर्श यहां तक की ग्रामप्रधान से लेकर के प्रधानमंत्री जी तक और गाँव से लेकर संसद तक एवं वैज्ञानिक से लेकर एनजीओतक कोई नहीं छोड़ा और उसके बाद भी इस शिक्षा नीति को हमने पब्लिक डोमेन में डालकर के कहा था कि अभी भी किसी के मन में किसी कोने पर कोई सुझाव है तो आप दीजिए और मुझे इस बात की खुशी है कि सवा दो लाख सुझाव हमारे पास आए और उनके विश्‍लेषण के लिए हमने तीन-तीन सचिवालय बनाए। कस्तूरीरंगन जी जो हमारी समिति के यशस्वी अध्यक्ष रहे हैं इनके लिए बैंगलोर में सचिवालय बनाया और इधर दो दिल्‍ली में भी सचिवालय बनाए और हमने एक-एक सुझाव का विशेषणकियाऔर इसके बाद यह अमृत निकला है। मुझे इस बात की खुशी है कि देश के अंदर एक उत्सव सा वातावरण है। नई शिक्षा नीति के आने के बाद लोगों को लगा कि अब कुछ होगा,छात्र खुश हैं, अभिभावक खुश है। अब बच्चों को बचपन से ही हम अपनी मातृभाषा में ला रहे हैं और उसके बाद कक्षा 6 से हम वोकेशनल पाठ्यक्रम ला  रहे हैं वो भी इंटर्नशिप के साथ ला रहे हैं। इससे स्कूल से निकलने वाला बच्चा एक योद्धा के रूप में बाहर निकलेगा। और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पढ़ाने वाला हमारा देश दुनिया का पहला देश होगा जिसेस्‍कूली शिक्षा से हम शुरू कर रहे हैं। बच्चों को अबरिपोर्ट कार्ड नहींबल्‍किप्रोग्रेस कार्ड देंगे। अब उसका 360 डिग्री होलिस्टिक मूल्यांकन होगा वो अपना स्‍वयंमूल्यांकन करेगा, उसके अभिभावक उसका मूल्यांकन करेंगे, उसका साथी भी मूल्यांकन करेगा तथा उसका अध्‍यापक भी मूल्यांकन करेगा इसलिए वो जो बच्चा है वो फ्री है। हम चाहते हैं कि उसके अंदर की ऊर्जा पूरी ताकत के साथ बाहर निकले इसलिए बहुत सारे बदलावों के साथ यह नई शिक्षा नीति आई है जिसेन केवल इसदेश में बल्कि दुनिया के तमाम देशों में सराहना मिल रही है।मुझे इस बात को कहते हुए खुशी है कि पूरी दुनिया में ऐसा लगता है कि हिंदुस्तान इस समय बहुत तेजी से आगे बढ़ रहा हैं और आत्मनिर्भर भारत बननेकी दिशा में आगे बढ़ रहा है। हमारे देश को सोने की चिड़िया कहा जाता था और आज भी हमारे पास ज्ञान-विज्ञान की बड़ी सम्‍पदा मौजूद है। मुझे लगता है कि जिस तरीके से वर्तमान परिस्‍थितियोंमें देश के अंदर जो माहौल बना है वो उत्सव जैसा माहौल है। नई शिक्षा नीति का क्रियान्‍वयन हो जाने से अब अध्‍यापक की गरिमा। इसनीति को लागू करने वाला जो योद्धा है वो मेरा अध्यापक है और मुझे उन पर बहुत भरोसा है क्योंकि मैंने देखा है जबकोविड के समयपूरी दुनिया में आम लोग कैद हो गए थे तब मेरे अध्यापक ने कैसे काम किया।33छात्रों को एक साथ ऑनलाइन पर लाना इसके बारे में तोदुनिया सोचभी नहीं सकती और मुझे लगता है कि आप बच्चे को जिसकेअंदर ऊर्जा है, उसे कमरों में कैसे कैद कर देंगे। अगर ऐसे प्रयास नहीं होते तो अवसाद में बच्चे जाते लेकिन हम लोगों ने उस चुनौती को का मुकाबला किया और इसके लिए योद्धा की तरह मेरे अध्यापकने भूमिका निभाई। मुझे भरोसा है अध्यापकों पर क्योंकि मैं अपने संस्थानों की जबसमीक्षा करता हूं तो पाता हूं किविजनरीहैं हमारे अध्यापक। अध्यापकों को कैसे अत्याधुनिक जानकारी मिल सकती है इसलिएहमनेलीप प्रोग्राम भी किया, लीडरशिप काप्रोग्राम भी किया और हमने तो अर्पित प्रोग्राम भी किया। पिछले दिनों जब मैंने अध्यापकों के बारे में बोला तो मैंने कहीं कहा था कि अब आईएएस बनना तो सरल होगा लेकिन अध्यापक बनना कठिन होगा और लोगों में एक बार फिर यह भाषा आएगी किकाश मैंअध्यापक बन जाता तो कितना अच्छा होगामेरा भी सौभाग्य रहा है और मैंने एक सामान्‍य शिक्षक से लेकर शिक्षा मंत्री तक की यात्रा तय की है। मैं जानता हूं कि अध्यापक की कितनी बड़ी ताकत होती है। नेल्सन मंडेला ने कहा था कि शिक्षा ऐसा हथियार है जो कुछ भी कर सकता है। गांधी जी ने भी शिक्षा और शिक्षक के बारे में पूरी ताकत के साथ कहा था। हमारे देश के यशस्वी राष्टपति जिनका मुझे बहुत आशीर्वाद मिला डॉ. कलाम साहब से जबपूछा गया था कि आप क्‍या कहलाना पसंद करेंगे। डॉ. कलाम ने कहा था कि मैं अध्यापक कहलाना पसंद करूंगा। मेरे मरने के बाद कोई मुझे अध्यापक कहकेपुकारे, मुझे वो पसंद है। यह अध्यापक की गरिमा है और मुझे लगता है कि जो विद्या है वोऐसा धन है जिसको आप कहीं बाँट नहीं सकते। सभीदानों में श्रेष्ठ दान है विद्याऔर मुझे भरोसा है कि हम इस अभियान को आगे बढ़ाएंगे। मुझे गुरूजी पर भी भरोसा है मैंने उनको देखा है, सुना है। मुझे याद आता है जब मैं उत्‍तराखंड का मुख्यमंत्री था तब गुरूजी लंदन या अमेरिका से सीधे जहाज को लेकर के मुझसे मिलने के लिए देहरादून आये थे और जब उनसे बातचीत हुई तो मुझे बहुत सुख मिला। मुझे अच्छा लगा और आज उनके सानिध्य में यह जो विश्वविद्यालय निर्मित हुआ है इसमें निश्चित रूप सेभारत की आत्मा प्रवेश करेगी और फिर वही भारत विश्वगुरु भारत के रूप में पुन: स्‍थापित होगा। मुझे भरोसा है कि उसकी शुरुआत आज आपने की है। आपनेआत्मनिर्भर भारत, भारतीय ज्ञान परंपरा और अध्यापक विकास कार्यक्रम को नई शिक्षा नीति से जोड़ करके इस अभियान को आगे बढ़ाया है।मैंएक बार फिर जो लोग जुड़े हुए हैं उन सभी को शुभकामनाएं देता हूं।

 

बहुत-बहुत धन्‍यवाद!

 

कार्यक्रम में गरिमामयी उपस्‍थिति:-

 

  1. डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’, माननीय शिक्षा मंत्री, भारत सरकार
  2. श्री श्री रविशंकर, संस्‍थापक, श्री श्री विश्‍वविद्यालय, कटक, ओडिशा
  3. श्री अजय कुमार सिंह, कुलपति, श्री श्री विश्‍वविद्यालय, कटक, ओडिशा
  4. डॉ. रजिता कुलकर्णी, अध्‍यक्ष शासी मंडल, श्री श्री विश्‍वविद्यालय, कटक, ओडिशा
  5. प्रो. अनिल सहस्‍त्रबुद्धे, अध्‍यक्ष, एआईसीटीई
  6. प्रो. कपिल कुमार, प्रो.बी.सी. जोशी, प्रो. बी.के. त्रिपाठी, संकाय सदस्‍य एवं छात्र-छात्राएं।

एनआईटी आंध्रप्रदेश के फेज-1ए के तहत विविध भवनों का उद्घाटन  

एनआईटी आंध्रप्रदेश के फेज-1ए के तहत विविध भवनों का उद्घाटन

 

दिनांक 27 अक्‍टूबर, 2020

 

माननीय शिक्षा मंत्री, डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’

         

एनआईटी आन्ध्रप्रदेश केभवनों के उद्घाटन कार्यक्रम में उपस्थित आन्ध्रप्रदेश के शिक्षा मंत्री डॉ.सुरेश जी, हमारे अध्यक्ष शासीबोर्ड,एनआईआईटीआन्ध्रप्रदेश सुश्री मृदुला रमेशजी, संस्थान के निदेशक प्रो.सीएसपी रावजी, हमारे मंत्रालय से जुड़े एडीजी श्री मदन मोहन जी, प्रभारी कुलसचिव डॉ.पी. दिनेश शंकर रेड्डी, सभी डीन, विभागाध्यक्ष, फैकल्टी, छात्र-छात्राओं, सभी बीओजी के सदस्यगण और आन्ध्रप्रदेश सेजुड़े तमाम उपस्थित भाइयो-बहनों!मैंइस अवसर पर जब एनआईटी के भव्‍यभवनों का उद्घाटन हो रहा है मैंआपके बीच यहां से जुड़ करके आपको बधाई देने के लिए आपके बीच आया हूं, आपको मेरी शुभकामनाएं और मेरी बहुत-बहुत बधाई। मुझे बहुत खुशी है कि आज एक लंबी श्रृंखला के साथभारत सरकार आंध्र प्रदेश के लिए जैसा अभी सुरेश ने बताया कि आन्ध्र प्रदेश में एक के बाद एकहमारे देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी नेबहुत सारे संस्थान आंध्रप्रदेश को दिए हैं चाहे आईआईटी हो, एनआईटी हो, आईआईआईटी हो और अभी तो आपको तीन और केन्द्रीय विश्वविद्यालय दिए हैं। आन्ध्र प्रदेश केंद्रीय विश्वविद्यालय हाल में ही हमने एक वर्ष के अंदर उसको स्‍वीकृत किया। आन्ध्र प्रदेश जनजाति विश्वविद्यालय भी हमने अभी हाल में एक वर्ष के अंदर-अंदर स्वीकृत किया। अभी आपका तिरुपति में संस्कृत संस्थान था उसको भी हमने केन्द्रीय विश्वविद्यालय के रूप में स्थापित कियाहै मैं समझता हूं कि केन्द्र सरकार द्वारा लगातार शैक्षणिकक्षेत्र में आंध्रप्रदेश को एक महत्वपूर्ण हब के रूप में विकसित किया जा रहा है औरइसके लिए मैं अपने प्रधानमंत्री जी का धन्यवाद देते हुए आन्ध्रप्रदेशकी जनता को बहुत सारी बधाई एवं शुभकामनाएं देना चाहता हूं और मुझे खुशी है कि आज जिन 10 भवनों का आज उद्घाटन हुआ है उनका436करोड़ रूपया की लागत से यहां पर निर्माण हुआ है।चाहे वो शैक्षणिक भवन है,चाहे वो छात्रावास है, चाहेवो अतिथिगृह है, चाहे खेल का मैदान है, चाहे वो छात्रावास बालकों एवंबालिकाओं के छात्रावास हैंऔर मुझे यह भी खुशी है कि उनका नामकरण डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन और डॉ. ए पी जे अब्दुल कलाम जो हमारे देश के राष्‍ट्रपति रहे हैं उनके नाम पर किया गया है जिन्होने भारत का गौरव पूरी दुनिया में फैलाया है। भारतरत्न अब्दुल कलाम के नाम परप्रयोगशाला परिसर का नाम रखा गया है। आज मैं समझता हूँ कि यहबहुतऐतिहासिक काम हुआ है औरआन्ध्र प्रदेश की प्रगति में यह एनआईटी एक आधारशिला का काम करेगा।यहऐसा आधार स्तम्भ बनेगा जब आन्ध्र प्रदेश के छात्र छात्राएं अपने भविष्य को संजो सकेंगे, सवांर सकेंगे और इससे केवल वेआंध्र का ही मान और सम्‍मान नहीं बढ़ाएंगे बल्कि पूरे देश का मान और सम्मान भी बढ़ाएंगे और इसलिए मुझे खुशी है और इस अवसर पर मैं आपको बहुत बधाई देना चाहता हूँ।मैं समझता हूँ कि यहनाम है और जब किसी बड़े व्यक्तियों के नाम पर हम संस्थान का नाम रखते हैं तो उससेहमकोप्रेरणा मिलती है। ऐसे महान् व्‍यक्‍तित्‍वों ने अपने जीवन में जो संघर्ष किये हुए होते हैं और उनके संघर्ष का,दर्शन का, चिन्तन तथा उनके मनन का हमको साक्षात दर्शन होता है और इसीलिए हम अपने महापुरूषों के नाम पर जिन्होंने मानवता के लिए, राष्ट्र के लिए तथालीक से हट करके कुछ विशेष काम किया हो और यह दोनों महापुरुष उसी श्रेणी में आते हैं जिनके नाम पर आपने भवनों का नामकरण किया है। मुझे खुशी है किइसशैक्षणिक सत्र की शुरुआत के साथ अभी केवल आपके पांच वर्ष बीते हैं वर्ष2015 में आरंभ हुआ यह संस्‍थान आज 10 विभागोंइंजिनियरिंग, प्रौद्योगिकी और विज्ञान विषयों के अनुसंधानकार्यक्रमोंमें आठ बी.टेक,छ:एम.टेक और तेरह पीएचडी पाठ्यक्रम आप यहां पर संचालितकररहे हैं।मैंइसके लिए बीओजी की चेयरमैन कोऔर डायरेक्टर को तथा आपकी पूरी टीम को बहुत बधाई देना चाहता हूं। वैसे भी इस संस्थान कीभौगोलिक अवस्थिति बहुतखास है। यहपश्चिमी गोदावरी जिले के ताडेपल्लीगुडमजिले में स्‍थित  होने के कारण शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों से जुड़ा हैएक ओर यह उन्‍नत कृषि के क्षेत्र में कृषि के उत्पादन से जुड़ा है तो दूसरी ओर उद्योग संचार, स्वास्थ्य और शिक्षा की दृष्टि से आन्ध्रप्रदेश के उन्नत जिलों में से यह एक जिला माना जाता है। ऐसे में इस संस्थान की स्थापना में यह क्षेत्र और लाभान्वित होगा और उस क्षेत्र के साथ ही स्‍वयं संस्थान को भी उन्नति के तमाम अवसर प्राप्त होंगे। मुझे लगता है कि किसानों को इस संस्‍थान सेबहुत अच्छी मदद मिलेगी और जो यह लैब स्थापित हुई है उससेमिट्टी, फसल आदि का वैज्ञानिक परीक्षण हो सकेगा जिससे वह अपनी फसल के उत्पादन को और बढ़ाने और फसलों को रोगों से मुक्ति दिलाने के लिए भी उनको सफलता मिलेगी। मैं समझता हूं कि किसी भी संस्थान के लिए यहबहुत जरूरी है कि वो दूसरे विशेषज्ञ संस्थानोंके साथ समन्वय करे, सहयोग के माध्यम से विशेषज्ञता के साथ आप विभिन्न पहलुओं के साथ एक-दूसरे को मिलकरके इन बातों को साझा करें और मुझे इस बात की खुशी है कि आपने जर्मनी के साथ समझौता किया है और ‘इंडो-जर्मन साइंस ऐंड टेक्नोलॉजी सेंटर’ की स्थापना की है।आप यहां पर इस द्विपक्षीय फंडिंग प्रोग्राम की मदद से विभिन्नविषयों पर वेबिनारआयोजित कर रहे हैं। ऐसे कार्यक्रम निश्चित रूप से ‘स्टडी इन इंडिया’ को ओर गति प्रदान करेंगे।आपको मालूम है कि ‘स्‍टडी इन इंडिया’ को हमने ब्रांड बनाया है जब हमपूरी दुनिया के लोगों को यह कह सकेंगे कि आप आइए, भारत में आइए और भारत में शिक्षा ग्रहण कीजिए। और ‘स्टे इन इंडिया’के तहत जो छात्र अभी दुनिया में जा रहे हैं पढ़ने के लिए उनको अनुरोध कर सकें कि आप भारत में पढ़िए। वैसे भी भारत तो पूरी दुनिया के लिए हमेशा से प्रेरणा का केन्द्र रहा है। यहां तक्षशिला, नालंदा और विक्रमशिला जैसे विश्वविद्यालय रहे हैं जिनमें पूरी दुनिया के लोगों ने आकर ज्ञान, विज्ञान, अनुसंधान, प्रौद्योगिकी और नवाचार के रूप में अपने को ऊंचाइयों तक ले करके गए हैं। ऐसेनयेभारत के निर्माण की दिशा में अब पहल हो रही है।हमारे देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी कहते हैं कि हमें 21वीं सदी के स्वर्णिम भारत की जरूरत है, जो स्वच्छ भारत हो, सुंदर भारत हो,सशक्त  भारतहो,आत्मनिर्भर भारत हो और श्रेष्ठ भारत हो, ऐसे श्रेष्ठ भारत की जरूरत है और इस श्रेष्ठ भारत और आत्मनिर्भर भारत का रास्ता इन्हीं संस्थानों से होकर गुजरता है।इसलिए  हमने  कहा कि मेक इन इंडिया,डिजिटल इंडिया, स्टार्ट अप और स्टैंडअप इंडिया कहा है। मेरे नौजवानों मैं आपको आह्वान करना चाहता हूं कि आपमें प्रखरता है, आप विजनरी हैं, आप मिशनरी हैं,पूरा मैदान आपके सामने हैं। अब हम नई शिक्षा नीति को बहुत व्‍यापक तरीके से और बहुत बड़े व्‍यापक परिवर्तनों तथा सुधारों के साथ आपके लिए लाये हैं।अब आप किसी भी विषय को चुन सकते हैं तथा किसी भी विषय के साथ किसी भी दूसरे विषय से जोड़ सकते हैं  और जब चाहे प्रवेश ले सकते हैं और आप चाहे छोड़ना चाहते हैं तो छोड़ सकते हैं लेकिन फिर यदि आपको लगता है कि आप अपने जीवन तथा भविष्‍य को सुधारना चाहते हैं तो आप उसी स्‍थान से शुरू कर सकते हैं, जहां से आपने छोड़ा है। आपका एक क्रेडिट बैंक बनेगा, जिसमें आपके जितने भी क्रेडिट हैं वो उसमें जमा रहेंगे तथा जहां आप छोड़कर के गये हैं वहीं से आप शुरू कर सकते हैं। इसलिए मुझे लगता है कि यह बहुत अच्‍छा अवसर है और वैसे भी आप सबको मालूम हैं कि अंतर्राष्‍ट्रीयकरण की दिशा में हम दुनिया के शीर्ष 127 विश्‍वविद्यालयों के साथ‘स्‍पार्क’के तहत शोध और अनुसंधान कर रहे हैं और अब हमारी जो नई शिक्षा नीति आई है उसके तहतनेशनल रिसर्चफाउंडेशन के माध्‍यम से जिससे प्रधानमंत्री के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार की अध्यक्षता में शोध और अनुसंधान के लिएएक उन्‍नत परिवेश बनाया जाएगा वहीं टेक्नालॉजी को अंतिम छोर तक पहुंचाने के लिए और विकसित करने के लिए नेशनल एजुकेशन टेक्नोलॉजी फोरम का गठन भी किया जाएगा जहां से मेरे विद्यार्थी बहुत समृद्ध हो के बाहर निकल सकते हैं। चाहे ‘स्‍ट्राइड’ के तहत पारस्परिक अनुसंधान का विषय हो या इम्‍प्रिंट हो, इम्प्रेस हो, चाहे स्टार्स हों विभिन्न क्षेत्रों में हम लोग शोध कर रहे हैं और निश्चित रूप में नई शिक्षा नीति आने के बाद हम पेटेंट के क्षेत्र में भी और आगे बढ़ेंगे।मैंअभी देख रहा था कि आपने विभिन्न क्षेत्रों में अपना पेटेंट किया है। बहुत सारे शोध पत्र भी आपने छापें हैं जिसकी जरूरत है।मैंटाइम्स रैंकिंग तथा अन्‍य रैंकिंग की जब समीक्षा करता हूं तो मुझको महसूस होता है कि शोध और अनुसंधान के क्षेत्र में गैप को तेजी से पाटने की जरूरत है और मुझे खुशी है कि आप इस दिशा में भी अच्‍छा काम कर रहे हैं। आपने सामाजिक जिम्‍मेदारी की दिशा में भी बहुत अच्छा काम किया है और राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण के साथ आपने जो एमओयू किया है ताकि उस क्षेत्र में भीआप बहुत अच्छा काम कर सकें। इसके लिए मैं संस्थान के छात्र और शिक्षकों को बधाई देना चाहता हूं कि क्षेत्रकी जो विशेषताएं हैं,संसाधन हैं,स्त्रोत हैं, उन पर आप शोध कार्य कर रहे हैं। मैं समझता हूं मेरे इस एनआईटी है आंध्रप्रदेश  को एक मॉडल बनाना है ताकि हम आन्ध्र प्रदेश को शिखर पर पहुंचा सकें और निश्चित रूप से आपमें वो क्षमता है। मुझे भरोसा है कि जिस तरीके से संस्थान ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, मशीन लर्निंग और सिग्नल प्रोसेसिंगएंडकंट्रोल जैसे क्षेत्रों में अनुसंधान और विकास संबंधी काम शुरू किया है, यह बहुत अच्छा है।मुझे लगता है कि दुनिया का हम पहला देश होगें जो स्कूली शिक्षा से हीआर्टिफिशल इंटेलिजेंस को पढ़ाएंगे और कक्षा 6 से ही हम वोकेशनलस्ट्रीम के साथ इंटर्नशिप के साथ वहां वोकेशनलट्रेनिंग देंगे ताकि हमारा बच्‍चा स्कूल से ही निकल कर के समृद्ध तरीके से,सशक्‍त तरीकेसेबाहर निकल सकेगा और जब वो आपके पास आएगा तो वो आपके पास आते-आते काफी आगेबढ़ गया होगा और जब आप उसके आइडियाज को, उसकी जो प्रतिभा को ओर निखार कर के राष्ट्र की प्रगति में बहुत महत्वपूर्ण योगदान उससे करवा सकते हैं। मुझे इस बात की खुशी है कि नई शिक्षा नीति के आने से पूरे देश में एक उत्सव का माहौल है और पूरी दुनिया में भी उत्सुकता है।हमारी जो राष्ट्रीय शिक्षा नीति है यह ग्लोबल माइंडसेट के साथ इंडियन भी है,इंटरनेशनल भी है, यह इम्पैक्टफुल भी है, यह इंटरएक्टिव भी है, यह इन्क्लूसिव भी है और साथ हीसाथ यह इक्विटी, क्वालिटी और एक्सेस की आधारशिला पर खड़े होकर आगे बढ़रही है और इसलिए मुझे लगता है किअंतिम छोर के छात्र को भी जिसके पास अभी कोई साधन नहीं, कोई संसाधन नही है हम कैसे  करके उसकोसमर्थ बना सकते हैं। हमें इस दिशा में भी कार्य करने की आवश्‍यकता है। शिक्षा को मूल कड़ी में लाकर के उसका कैसेविकास कर सकते हैं यह हमारा लक्ष्य है और इसीलिए अभी ‘वन क्लास वन चैनल’ का भी ‘वन नेशनवन डिजिटल प्लेटफॉर्म’ की तरह हमने आरम्‍भ किया है।प्रधानमंत्री जी के आशीर्वाद से पीएम ई-विद्या के तहत हम अंतिम छात्र तक पहुँचने के लिए रास्ता बना रहे हैं और जहां तक टैलेंट की बात हैहम आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस में न केवल टैलेंट को पहचानेंगे बल्कि उसका विकास भी करेंगे और उसका विस्तार भी करेंगे। टैलेंट तो है लेकिन उसका यदिकहीं उपयोग नहीं हो रहा है अथवाउसका विस्तार नहीं हो रहा है और उसका विकास हो रहा है तो सब कुछ व्‍यर्थ हैहम इस नई शिक्षा नीति के माध्‍यम से जो नेशनल रिसर्च फाउंडेशन और नेशनल एजुकेशन टेक्नोलॉजी फोरम इन दोनों की स्थापना से निश्चित रूप में हम रिफॉर्मभी करेंगे, ट्रांसफॉर्म भी करेंगे और परफॉर्म भी करेंगे। हम इन तीनों चीजों को करेंगे और नई शिक्षा नीति के तहत हम आगे बढ़ेंगे तथाजो भी जन कल्याणकारी विषय हमारे पास हैं, उनको लेकर हम तेजी से आगे बढ़ते चले जाएंगे। मुझे लगता है कि जो आपके पूर्व छात्र होंगे क्‍योंकि वर्ष 2015 से आपकी स्‍थापना से लेकर वर्ष2020 हो गया है। इन पांच सालों में जो आपके छात्र निकले हैं वे आपकी ब्रैंडिंग करेंगे।यह जो छात्र-छात्राएंबाहर निकल रहे हैं वे एक योद्धा के रूप में होने चाहिए। ऐसा लगना चाहिए कि यह एनआइटी आन्ध्रप्रदेशका जो छात्र है वो बहुत प्रखर है तथावह किसी भी स्थान पर अपने को साबित करने में सक्षम है। मुझे भरोसा है कि आपकी फैकल्टी रात-दिन यह कर रही होगी। क्‍योंकियही आपकी ब्रांडिंग करेंगे और यह केवलआन्ध्र कीहीब्रांडिंग नहीं करेंगे बल्‍कि मेरे देश की ब्रांडिंग करेंगे और मुझे खुशी है कि इसके क्रियान्वयन के लिए हमारे सुरेश जी काफी उत्सुक रहते हैं और मैं देखता हूँ की नयी शिक्षा नीति को लेकर के जब-जब भी मेरी उनसे बात होती है, वे जब भी शिक्षा मंत्री के साथ मिलते हैं तब-तब मुझे भरोसा है कि आन्ध्र पहले कदम पर आकर के उस शिक्षा नीति को अंतिम छोर तक पहुँचाने का यत्न करेगा क्योंकि यहदेश की आधारशिलाहै। एक बार फिर निदेशक जी को मैं बधाई देना चाहता हूं और कहना चाहता हूं कि आपके नवाचारी कदम संस्थान को एक ब्रांड के रूप में  स्थापित करेंगे जब चुनौती होती है और ताकत के साथ यदि उसका मुकाबला होता है तो वह अवसरों में तब्दील होती है। मुझे भरोसा है कि जो वर्तमान चुनौतियां हैं आप उन चुनौतियों का मुकाबला करेंगे और उनको अवसरों में तब्दील करेंगे। यहां का छात्र समर्थ हो कर के, सशक्त हो करके, एक विजनरी तथा मिशनरी के भाव में वो काम करेगा और इस संस्थान का नाम देश औरदुनिया में आगे बढ़ाएगा।मैंएक बार पुन:निदेशक को और जो शासी बोर्ड की हमारी चेयरमैन हैंउनकोभी बधाई देना चाहता हूँ और कहना चाहूंगा कि आपकी यह जो टीम है इसको ले कर एक विजन के साथ आगे बढ़िए। एकउदाहरण के रूप में मेरा यह एनआईटी शिखर पर रहे और मदनमोहनजी को मैं कहना चाहता हूं कि अपने डीजी के रूप में जो-जो भी सम्भव हो सकता है इस एनआईटी को पूरी मदद करें।यहदेश के उभरते हुए ऐसे सितारे के रूप में चमक सके जब इसकी चमक पूरे देश ही नहीं दुनिया तक भी जा सके। मैं आप सब को बहुत बधाई देता हूं। बहुत शुभकामनाएं।

 

बहुत-बहुत धन्‍यवाद!

 

 

कार्यक्रम में गरिमामयी उपस्‍थिति:-

 

  1. डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’, माननीय शिक्षा मंत्री, भारत सरकार
  2. श्री औदिमुलापु सुरेश, माननीय शिक्षा मंत्री, आंध्र प्रदेश सरकार
  3. सुश्री मृदुला रमेश, अध्‍यक्ष, शासी बोर्ड, एनआईटी आंध्र प्रदेश
  4. श्री सी.एस.पी. राव, निदेशक, एनआईटी आंध्र प्रदेश
  5. श्री मदन मोहन, एडीजी, शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार
  6. श्री पी. दिनेश शंकर रेड्डी, प्रभारी कुलसचिव, एनआईटी आंध्र प्रदेश

आईआईईएसटी शिवपुर के डीएसटी-आईईएसटी सोलर पीवी हब का उद्घाटन

आईआईईएसटी शिवपुर के डीएसटी-आईईएसटी सोलर पीवी हब का उद्घाटन

 

दिनांक : 27 अक्‍टूबर, 2020

 

 

माननीय शिक्षा मंत्री, डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’

 

आपके इस उद्घाटन कार्यक्रम के अवसर पर उपस्‍थितिभारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी के सचिव श्रीआशुतोष शर्मा जी,अध्‍यक्षबोर्ड ऑफ गवर्नर डॉ.वासुदेव जी, संस्थान के निदेशक डॉ.पार्थसारथी चक्रवर्ती,प्रबंध निदेशकविक्रमसोलर लिमिटेड, श्री ज्ञानेश चौधरी जी,कुलसचिवडॉ.बिमान बंदोपाध्याय और प्रो.हीरा मंड्या शाहजी,मंत्रालयसे जुड़े हमारे साथ डीजी मदनमोहनजी, सभी डीन, विभागाध्यक्ष, फैकल्टी, बीओजी के सदस्यगण और छात्र-छात्राओं!मैं इस अवसर पर जबकि आप एक बहुत महत्वपूर्ण काम को आज यहां पर कर रहे हैं मैं आपको बहुत बधाई देना चाहता हूं और मैं शुभकामनाएं देने के लिए आपके बीच आया हूं। मुझे छात्रों को भी और फैकल्टी को भी विशेष करके इस अवसर पर बहुत बधाई देनी है। भारतीय अभियान्त्रिकी विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी,शिवपुरआज का नहीं बल्कि यह सबसे पुराने संस्थानों में से दूसरे नंबर का संस्थान है।देश की आजादी के समय सन् 1956 में स्‍थापित इस संस्‍थान ने बहुत लम्‍बी यात्रा तय की है। जो पहले बंगाल इंजीनियरिंग कॉलेज के नाम से विख्यात था और अपनी इतनी लंबी यात्रा में इस संस्‍थान ने देश को बहुत सारी ऐसी प्रतिभाओं को दिया है जिन पर हम नाज कर सकते हैं। मुझे खुशी है की कि आज जिस सोलर हब के उद्घाटन के अवसर पर हम डिजिटल माध्‍यम से एकत्रित हुए हैं उसमें भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग का भी महत्वपूर्ण योगदान है और सौर ऊर्जा अथवा हरित ऊर्जा या इको फ्रैंडली ऊर्जाके क्षेत्र में, अनुसंधान विकास एवं प्रशिक्षण महत्त्वपूर्ण निर्माण कार्य को निश्चित रूप से पूरा करेगा। पूर्वी और उत्तर पूर्वी क्षेत्र में जो ऊर्जा की गतिविधियांहैं वो कई उद्योगों और अनुसंधान संगठनों को प्रत्यक्ष रूप में निश्चित मदद कर सकेंगे और नई तथाव्यावहारिक तकनीकी में जो कुशलता प्राप्त प्रशिक्षण होना है तथाजिसकी बारबार कमी कई बार महसूस होती है उसकी निश्चित रूप से यह संस्थान पूर्ति कर सकेगा और जैसे कि आप जानते ही हैं कि विश्व जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग जैसीबहुत विकट परिस्थितियों का सामना पूरी दुनिया कर रही है और ऐसे समय में सबको लगता है कि पर्यावरण और प्रकृति से जुड़ी चीजों के साथ जुड़कर हम कैसे आगे बढ़ सकते हैं।मुझे भरोसा है कि जो यह हब जो आपके द्वारा प्रस्तावित हुआ है जिसकाआज हमनेशिलान्यास किया है इसके माध्यम से ऊर्जा संबंधित सभी जरूरतों को हम निश्चित रूप से पूरा करेंगे और न केवल पूरा करेंगे बल्कि पर्यावरण की सुरक्षा और सतत विकास के लक्ष्यों जिसको लेकर के हमेशा युनेस्‍को चिंतित रहा है। इस तकनीकी के माध्‍यम से हम आत्मनिर्भर भारत के निर्माण में भी सहयोग देंगे और जैसे कि आप सबको मालूम है कि हमारेदेश के प्रधानमंत्री चाहते हैं कि जो 21वीं सदी का भारत है वो स्वर्णिम भारत हो और वो स्वर्णिम भारत आत्मनिर्भर भी हो, वो सुंदर भी हो, वो स्वच्छ भी हो और स्वस्थ भी हो तथावो सशक्त भी हो,वो समर्थ भी हो और वो श्रेष्ठ भी हो तो यह जो आत्मनिर्भर तथाश्रेष्ठ एवंसशक्त भारत होगा जिसे वर्ष 2024 तक फाइवट्रिलियन डॉलर की आर्थिकी के रूप में हिन्दुस्तान को पूरे विश्व में एक और जहां बड़ी शक्ति के रूप में उभारना है वहीं अभी जो हमनयी शिक्षा नीति को लेकर के आये हैं जिसकेमाध्यम से हमतकनीकी के क्षेत्र में और विभिन्न ज्ञान, विज्ञान, अनुसंधान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भारत को पूरे विश्व का ज्ञान का हब एवं महाशक्ति बनाने की दिशा में हम आगे बढ़ेंगे। आपको मालूम होगा कि हमारे देश के प्रधानमंत्री जी ने पीछे के समय में विश्व में लीडरशीप दी है तो उसमें एक लीडरशिप यह भी थी किजहां उन्होंने पूरे आतंकवाद के खिलाफ पूरे विश्व को एक मंच पर खड़ा किया,वहीं उन्होंने पर्यावरण के क्षेत्र में जोचिंता है जो वैश्विक मौसम परिवर्तन की चिंता हैं, उसमें भी सारे विश्व को एक करके सौर ऊर्जा के क्षेत्र में भारत की लीडरशिप को आगे बढ़ाने का काम किया और मैं आपको याद दिला दूं की पीछे के समय में एशियाका सबसे बड़ा सौलर प्‍लांट जब शुरू किया था तब मोदी जी ने कहा था कि देश के किसानों को गरीब परिवारों को और आदिवासियों को जिस तरीके से सस्तीबिजली, साफ सुथरी बिजली और पर्यावरण अनुकूल ऊर्जा की जरूरत थी, वह आज पूरी होने जा रही है। हमारी संस्कृति में सदैव सूर्य का वंदन किया गया है। सूरज की ऊर्जा को अपने अंदर समाहित करने की हमनेहमेशाबात की है,उसके महत्व को समझा हैऔर उसको उपासना के योग्य भी समझा है।सूर्य को हमने पवित्र समझा और उसकी जो ऊर्जा है उस ऊर्जा को चाहे वो आध्यात्म की ऊर्जा है,चाहेउसकी अद्भुत रोशनी आपकी ऊर्जा है, वो हमारी शक्ति मैंकिस तरीके से समाहित होकर के नए प्रकाश के रूप में बाहर निकल सकता है,यह हमारी भारतीय संस्‍कृति का चिंतन रहा है हमारेसूर्य देव की इस ऊर्जा को महसूस कर इस नये चिन्तन है उस चिन्तन के आधार पर पूरी दुनिया को इस संकट से उबरने के लिए निश्चित रूप से यह सौर ऊर्जा केन्द्र एक अभियान के तहतआगे बढ़ाएगा। आपका संस्थान बहुत पुराना संस्थान है वह निश्चित रूप से हमारे देश के प्रधानमंत्री के इन सपनों को साकार करेगा। उ हमारेदेश के प्रधानमंत्री नरेन्द मोदी जी ने कहा कि बिजली पर हमारी आत्मनिर्भरता बढ रही है। उन्होंने कहा कि यदि यह देखा जाए तो सोलर एनर्जी में हम दुनिया के टॉप फाइव में हैं जिसमें अभी हमको नंबर एक पर आना है और आपका संस्थान जिस गति से और लगनसे कार्य कर रहा है तो निश्चित रूप में भले ही हम अभी दुनिया के टॉप फाइव देशों में पहुंचे हैं लेकिन हमें नंबर एक पर आना है। यह हमारा टारगेट है। एलईडी बल्बों के उपयोग से साढ़े चार करोड़ टन कार्बन डाई आक्साइड पर्यावरण में घुलने से अभी रुकी है, यह छोटी बात नहीं है।यदि इसका आंकलन करेंगे तो पर्यावरण के दुष्प्रभावों को रोकने में हमें सफलता पाई है, यह बहुत जरूरी है इसलिए भारत को तो इस पावर का निर्यात करना है। हमारा देश130करोड़ लोगों का देश है। दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्रिक देश मेरा भारत है और इसलिए भविष्य में जब हम सौर ऊर्जा का उत्पादन करेंगे तो हम विश्व के लिए बहुत बड़ा प्लेटफॉर्म बनेंगे और वैसे भी हमारे देश के प्रधानमंत्री बार बार कहते हैं कि आखिर ‘मेक इन इंडिया’ क्यों नहीं हो सकता?क्‍योंहमेशामेक इन चाइना और मेक इन जापान ही होता रहेगा मेक इन इंडिया हो अथवाडिजिटल इंडिया हम इन दोनों को जोड़कर के स्किल की जहां भी कमी रहेगी,उसको पूरी करेंगे। हमारे पास प्रतिभा  की भीकमी नहीं है और विजन की भी कमी नहीं हैतथा मिशन की भी कमी नहीं है। यदि हमारे पास विजन, मिशन, प्रतिभा एवं आईडियाज की कोई कमी नहीं है तो फिर कहां कमी है, उस कमी को ही दूर करने के लिए आप जैसे संस्थानों को ताकत के साथआगे आने की जरूरत है और आपके पास लंबा अनुभव भी है। आपबहुतबड़े धैर्यपूर्वक तथा बड़े विजन के साथ आगे बढ़ें। इसलिए पूरे विश्व को जोड़ने की ताकत चाहिए आज हमको इसकी जरूरत भी है और जब हम घर से बाहर निकले तो किस तरीके से इस बात को सोचें और आगे बढ़ने के लिए कह सकें। हमारे प्रधानमंत्री जी भी हमारे पर्यावरण, हमारी हवा, हमारे पानी,इन सबको साफ बनाए रखने की दिशा में यह जो सौर ऊर्जा की नीति है यह सबसे जल्द सफल होगी। यदि पानी गंदा है तो फिर जिन्दगी बेकार है। यदि वायु दुषित है तो जिन्दगी कहां सुरक्षित है।सम्‍पूर्ण दुनिया की मानवता के लिए अच्छी हवा और शुद्ध पानी यहदोनों महत्वपूर्ण हैं और यह तभी संभव हो सकता है जब हम ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोतोंकी दिशा में सशक्त तरीके से आगे बढ़ सके। प्रधानमंत्री जी ने अंतरराष्ट्रीय सौर ऊर्जा गठबंधन पूरी दुनिया में एकजुट करने के मकसद से शुरू किया। उसके पीछे वन वर्ल्ड, वन सन, वन ग्रिड की भावना थी और हमने तो सदैव वसुधैव कुटुंबकम की बात की है। हम तो एक ओर कहते हैं कि‘अयं निजः परो वेति गणना लघुचेतसाम्। उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम्।।‘अर्थात् पूरी वसुधा को हमने कुटुम्ब माना है और हम वो लोग हैं जिन्होंने कहा कि यहभूमि मां है और हम इस पृथ्वी के सब पुत्र-पुत्रियां हैं। यदि हमने‘वसुधैव कुटुम्बकम’ की बात की हैतो उस कुटुम्ब को संरक्षित रखने के लिए भी हमेशा ईश्‍वरसे प्रार्थना की  है‘सर्वे भवन्तु सुखिनः, सर्वे सन्तु निरामया, सर्वे भ्रदाणी पश्‍यन्‍तु मा कश्‍चिद् दु:ख भाग्‍भवेत’ कि धरती पर एक भी व्यक्ति दुःखी नहीं होना चाहिए तब जाकर के मैंसुख का अहसास कर सकता हूं। हम लोग केवल अपने सुख के लिए नहीं जीते हैं, हम लोग केवल अपनी सुविधा के लिए नहीं जीते हैं बल्‍किहम विश्‍व के कल्याण के लिए जीतेहैं। यह हमारा विचार रहा है और इसी विचार ने हमको विश्वगुरू बनाया है। इसी विचार ने तक्षशिला, नालंदा और विक्रमशिला जैसे विश्वविद्यालयोंके माध्‍यम से सम्‍पूर्ण दुनिया को शिक्षा दी है। ‘एतद्देशप्रसूतस्य सकाशादग्रजन्मनः स्वं स्वं चरित्रं शिक्षेरन्पृथिव्यां सर्वमानवाः’यहां सारी दुनिया के लोग ज्ञान, विज्ञान, अनुसंधान और नवाचार को सीखने के लिए आये हैं। ऐसेसंस्थान हमारी धरती पर थे और इसलिए मैं समझता हूं अब अवसर आ गया है। ये अब हमें ज्ञान, विज्ञान को नवाचार के साथ तथा तकनीकी को नवाचार के साथ आगे बढ़ने की जरूरत है। मुझे इस बात की खुशी है कि जो नई शिक्षा नीति हमारी अभी आई है उस नई शिक्षा नीति के तहत हम लोग इन तमाम क्षेत्रों में बहुत तेजी से आगे बढने की दिशा में सक्रिय हैं। आपने ज्ञान, विज्ञान, और शोध तथाअनुसंधान की दिशा में श्रेष्‍ठता से कार्य करते हुएकुल 250 फैकल्टी मेम्बर्स और 4000 छात्रों के साथ एनआईआरएफ रैंकिंग में पूरे भारत में 20वां स्थान प्राप्त किया है। यहबहुतबड़ी बात हैक्‍योंकिमेरे देश के अन्दर अब एक हजार विश्वविद्यालय हैं,45हजार डिग्री कॉलेज हैं, 15 लाख से अधिक स्कूल हैं,करोड़ 9 लाख से अधिक अध्यापक हैं और कुल जितनी अमेरिका की आबादी नहीं है उससे भी ज्यादा 33 करोड़ छात्र-छात्राएं हैं।यहभारत का वैभव है और इससे प्रतिस्पर्धा में अपने को बनाए रखना यह छोटी बात नहीं हैऔर मुझे खुशी है कि आप वास्तुकला में भी छठे नंबर पर आये हैं। मुझे भरोसा है कि क्‍यूएसरैंकिंग और टाइम्स रैंकिंग के लिए भी आप और तैयारी करेंगे क्योंकि आपका संस्थान बहुतपुराना संस्थान है, एक मार्गदर्शक संस्थान है और इससे भविष्य में हमारे को टारगेट चाहिए वो क्युएस रैंकिंग के लिए चाहिए। मुझे भरोसा है क्‍योंकि आपकेनिदेशक को जितना मैं समझ पाता हूं और आपकी टीम भी बहुतअच्छी है और उसको आप जो टारगेट देंगे तो निश्चित हीहमउस टारगेट को पा सकेंगे। अभी बौद्धिक संपदा के क्षेत्र में मैं देख रहा था कि आपने 60 के करीब पेटेंट फाइल किए हैं और मेरी चिंता सिर्फ यही रही है कि जब मैंदुनिया के संस्थानों के साथ अपनेसंस्‍थानों की तुलनाकरता हूं तो मुझको महसूस होता है कि अभी शोध तथा अनुसंधान और पेटेंट में कहीं न कहीं हमसे चूकहुईहै इसलिए उस गड्ढे को भी पाटने की जरूरत है। इसलिए नयी शिक्षा नीति में हम नेशनल रिसर्च फाउंडेशन लायें हैं जो प्रधानमंत्री जी के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार की अध्यक्षता में होगी। अब हम शोध और अनुसंधान का परिवेश बनाएंगे। आपको याद होगा एक समय था जब देश सीमाओं पर बहुत संकट से गुजर रहा था और देश के अंदर खाद्यान्‍नका संकट भी था, ऐसे वक्त में हमारे देश के प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री जी ने‘जय जवान जय किसान’ का नारा दिया था और पूरा देश उनके साथ खड़ा हो गया था और हमने दोनों संकटों को पार किया था। उसके बाद जब अटल बिहारी वाजपेई जी आये और बाजपेयी जी को महसूस हुआ कि देश को विज्ञान की जरूरत है और उन्हें ‘जय विज्ञान’ का नारा दिया और आपको याद होगा कि भारत नेपरमाणु परीक्षण करके पूरी दुनिया में देश को महाशक्ति के रास्ते पर बहुतताकत के साथ आगे बढ़ाया और अब जब हमारे देश के प्रधानमंत्री नरेन्द मोदी जी को लगा किअब एक कदम और आगे जा करके देश को विश्व के शिखर पर पहुंचाने की जरूरत है तब उन्होंने ‘जयअनुसंधान’ का नारा दिया और निश्चित रूप से ‘जय अनुसंधान’ के साथ देश आगे बढ़ेगा। तकनीकी दृष्टि से भी हम पूरी दुनिया में कैसे छा सकते हैं इसलिए हम‘नेशनल एजुकेशन टेक्नोलॉजी फोरम’ का भी गठन कर रहे हैं ताकि दोनों चीजें समर्थ और सशक्त तरीके से आगे बढ़ सकें। अभी भी हम ‘स्टार्स’ के साथ एवं ‘स्‍पार्क’ के माध्‍यम से दुनिया के 127 शीर्ष विश्वविद्यालयों के साथ पारस्परिक अनुसंधान कर रहे हैं।स्‍ट्राइड,इम्‍प्रिंट, इम्‍प्रेस और स्‍टार्स के माध्‍यम से लगातार शोध और अनुसंधान कर रहें हैं लेकिन इसको जुनून के साथ करना पडेगाक्योंकि मुझे लगता है पीछे के समय हमारे पेटेंट में कमी रही है। जब मेंचीन का विश्लेषण करता हूं तो दस या पंद्रह साल पहले वह पेटेंट मेंलगभग हमारे साथ थे और आज उसने इस सीमा तक छलांग मारी है कि उसको पकड़ने के लिए हमेंतेजी से भागना पड़ेगा। मेरा भरोसा है कि मेरी फैकल्टी इस बात को महसूस करेगी और मेरा जो संस्थान है वह शोध, अनुसंधान और रिसर्च के माध्यम से पेटेंट करेगा। अब पैकेज की यह होड़पैकेज से हट के पेटेंट की ओर जानी चाहिए और उस दिन काया पलट हो जाएगी हिन्दुस्तान की।हमने‘स्टडी इन इंडिया’ के तहत इस समय आह्वान किया है कि पूरी दुनिया के लोग भारत में आकर के सीखें, जानें तथा भारत को महसूस करें। आपको इस बात को लेकर खुशी होगी की जहां आज आसियानदेशों के एक हजार से भी अधिक छात्र हमारेआईआईटीज में अनुसंधान के लिए आरहेहैंजबकि ‘स्‍टडीइन इंडिया’ के तहत अभी तक50 हजार से भी अधिक छात्रों ने अपना रजिस्ट्रेशन किया है और ‘स्टे इन इंडिया’ के तहतहम चाहते हैं कि हमारे यहां जो बच्‍चों को विदेश में पढ़ाने की होड़ लगी है, वह कम होनी चाहिए क्या मेरी धरती पर अच्छे संस्थान नहीं हैं? क्या कोई कमी है?नहींकोई कमी नहीं है लेकिन पता नहीं हम लोगों ने अपने को क्यों कम आंका है। यदि हमारे संस्थानों में कोई कमी होती तो दुनिया में चाहे वो गूगल हो, चाहे माइक्रोसॉफ्ट जैसी जो कंपनियां हैं उसका यदि सीईओहै तो वो हमारी धरती से पढ़ने वाला छात्र है जो आज भी दुनिया को लीडरशिप दे रहे हैं। मैंने तो हमारे जितने भी आईआईटी और आपके अन्‍य संस्थान हैं सबके पूर्व छात्रों की सूची बनाई हैंमैं आपसे भी अनुरोध करूंगा। कि आप भीसूची बनाइए और पता किजिए कि आपकेपूर्व छात्रकहां-कहां हैं?जब मैं देखता हूं कि मेरे पूर्व छात्र पूरी दुनिया में फैले हुए हैं ऐसा कौन सा देश है जहां वो लीडरशिप नहीं दे रहा है। इसका मतलब स्‍पष्‍ट है कि हमारी धरती पर बहुत महत्वपूर्ण प्रतिभाएं हैं, हमें उनको परिवेशदेना है।आजलगभग 8 लाख छात्र विदेशों में पढ़ रहे हैं और हमारा लगभग डेढ लाख करोड़ रुपया प्रतिवर्ष हिन्दुस्तान से बाहर जाता है।मेरेदेश का पैसा भी एवं हमारे देश की प्रतिभा भी यह दोनों ही हमारे काम नहीं आते। हमारे संस्‍थानों मेंकौन सी कमी है उस कमी को हमपाटेंगे।अब नई शिक्षा नीति के तहत दुनिया के टॉप 100विश्‍वविद्यालयोंको हम हिन्दुस्तान के अंदर आमंत्रित करने जा रहे हैं तथा हम भी अपनेविश्‍वविद्यालयोंको दुनिया में भेज रहे हैं।जहां‘ज्ञान’ में हमने बाहर की फैकल्‍टी को अपने यहां आमंत्रित किया हैं वहीं‘ज्ञान प्लस’ में अब हमारी भी फैकल्‍टी बाहर पढ़ाने के  लिए जाएगी। हमारे जो अध्‍यापकयौद्धा हैं उनमें विजन और मिशन की कमी नहीं है और इसीलिए उनको ताकतवर बनाने के लिए प्रशिक्षण और समय-समय पर अनुसंधान के साथ आगे बढ़ाना है। मेरा भरोसा है कि एक दिन पूरी दुनिया में हमारी फैकल्टी जाएगी और वहां दुनिया को भी पढ़ाएगी।लेकिन हम इस गैप को भरना चाहते हैंकिहमारा बच्चा बाहर नहीं जाना चाहिए। हम पर भरोसा होना चाहिए हमारे ‘आत्‍मनिर्भर भारत’ और ‘मेक इन इंडिया’ जैसे विजन को गति देने की जरूरत है आखिरअखिरक्यों नहीं हो सकता मेक इन इंडिया?इसके लिए ज़रूरत है वातावरण बनाने की आजहमारे छात्र उन दूसरेदेशों की प्रगति में अपना आमूल चूल योगदान दे रहे हैं और इसलिए इसमें वातावरण निर्माण की जरूरत है कि किस तरीके से इसको बढ़ाया जाए। मुझे इस बात की भी खुशी है कि आपने इस दिशा में आगे बढ़ते हुए बहुत सारे विशेषज्ञ संस्थाओं के साथ समझौते किए हैं।मैंदेख रहा था कि आपने वर्ल्‍ड बैंक, वन एवं पर्यावरण मंत्रालय, विज्ञानप्रौद्योगिकी एवं इनफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी रिसर्च अकेडमी, सर्वे माइनिंग इत्यादि बहुत सारे संस्‍थानोंके साथ पारस्परिक समझौता करके विभिन्न क्षेत्रों में मिलकर आपकुछ अनुसंधान करने काम कर रहें हैं। मुझे बहुत खुशी है इसकी जरूरत थी इसी की बदौलत हमारी बौद्धिक संपदा बाहर निकलेगी जिसको आप पेटेंट कर सकेंगे। इसी दिशा में और आगे बढ़ते हुए आपने शोध परामर्श प्रकोष्ठ का भी एककेन्द्र बनाया है। उसके लिए भी मैं आपको बधाई देना चाहता हूं। यह भी बहुत अच्छा प्रयासहै।आपकेइस संस्थान को मैंने बहुत निकटता से देखा है भले ही मैं वहाँ नहीं आया हूँ लेकिनमेरे को सब मालूम है और मुझे पताहै कि आपकी फैकल्टी बहुत मेहनतीहै।अभी आपने जो चर्चा की है कि सरकार के आप कुछमदद चाहतेहैं और सरकार उस मदद को देने को तैयार है। आपने 300 से भी अधिकरिसर्च प्रोजक्ट 550 परामर्शी परियोजनाओं के माध्यम से इंडस्ट्रीज और अकादमिक के बीच गैप को कम करने का काम किया है। इंडस्ट्रीज और मेरे संस्थानों के बीच गैप था। इंडस्ट्रीज को क्या चाहिए और मैं क्या पढ़ा रहा हूं इसमें गैप था। इस समय हमने इंडस्ट्री और संस्थानों के गैप को भरने की कोशिश की हैजो इण्डस्ट्रीज है उसको क्या चाहिए वही पाठ्यक्रम हमबनाएंगे। हमारे फिफ्टी परसेंट छात्र यदि उन उद्योगों में काम करेगातो वे उद्योग बढ़ेंगे और इसका विजनभी प्रेक्‍टिकल रूप में बाहर आएगा। अभी जो अभी युक्ति पोर्टल हमने बनाया था और उसके बाद ‘युक्‍ति-2’जिसमें हजारों-हजारों, लाखों-लाखों छात्रों के आईडियाजएक बड़े प्लेटफॉर्म पर आये हैं। मेरे देश का कोई भी व्यक्ति, गांव का व्यक्ति इनआईडियाजको लेकर जा सकता है।हमारेदेश में लगभग छह करोड़ लघु उद्योग हैं। यदि इन छह करोड़ लघु उद्योगों में मेरे छात्र ठान ले कि सारे लघुउद्योग को मैं नीचे से ऊपर उठाऊंगा और एक लघु उद्योग में यदि मेरा एक छात्र भी जाएगा तो उस दिन व्‍यापक परितर्वन होगा। वो छात्र अपनी मेहनत से चार लोगों को भी रोजगार देगा तो चौबीसकरोड़ लोगों को उस दिन रोजगार हासिल होता है। इस पैमाने पर हमकोचलना पड़ेगा। इस टारगेट को अपने पास रखना पड़ेगा और मुझे भरोसा है कि पूरे देश में परिवर्तन हो रहा है हमारे प्रधानमंत्री जी ने 21वीं सदी का स्वर्णिम भारत कहा है उस स्वर्णिम भारत की ओर तेजी से आशान्वित होकर के मेरा नौजवान भी आज जा रहा है। वैसे भी हिन्दुस्तान आगे पच्चीस सालों तक यंग इंडिया रहने वाला है। उसको हम किस तरीके से आगे बढ़ा सकते हैं। मुझे भरोसा है कि आप इस दिशा में बहुत अच्छा काम कर रहे हैं।स्किल डेवलपमेंट के क्षेत्र में आप जो नित नए काम कर रहे हैं उसको देखते हुए बच्चों के बीच कहना पड़ेगा कि नौकरी के लिए तलाश करने की बजाय नौकरी देने वाला बनो।जिस दिन यहआत्‍मविश्‍वासहम उसमें डालेंगे उस दिन नयाभारत खड़ा हो जाएगा।यह जो नई शिक्षा नीति आई हैं यह बहुत खूबसूरत है तथापूरे देश के अंदर एक उत्सव एवंउल्लास का माहौल है। मैं जरूर चाहूंगा किआपइस नीति को लेकर हर विभाग में एक गोष्ठी करें। नई शिक्षा नीति को कैसे करके मेरा संस्थान सबसे पहले उसको क्रियान्वन की दिशा में आगे आ सकता है, इस विषय परचर्चा हो एवं क्रियान्वन की दिशा तय हो। लेकिन मैं आपको कहूंगा कि इसशिक्षा नीति से पूरी दुनिया में तथादेश के अंदर उल्लास और उत्सव का वातावरण बना है। दुनिया के तमाम देशों ने यह कहा है कि हमको भी भारत की एनईपी चाहिए। हमारी नई शिक्षा नीति छात्रों को खुला मैदान प्रदान करती है।अबछात्र चाहे जिस विषय को ले सकता है तथा किसी भी विषय के साथ किसी अन्‍य विषय को ले सकता है। अब उसकी कोई मजबूरी नहीं और जब चाहे वो प्रवेश ले सकते हैं और आप जब छोड़ना चाहते हैं तो छोड़ सकते हैं। लेकिन फिर यदि आपको लगता है कि आप अपने जीवन को तथा भविष्‍य को सुधारना चाहते हैं तो आप उसी स्‍थान से शुरू  कर सकते हैं जहां से आपने छोड़ा है। आपका एक क्रेडिट बैंक बनेगा जिसमें जितने भी आपके क्रेडिट हैं वो उसमें जमा रहेंगे कि जहां पर उसने छोड़ा है वो लौट करके उसको आगे बढ़ा सकता है और इसलिए शोध और अनुसंधानके क्षेत्र मेंभी हम बहुत तेजी से आगे बढ़ रहे हैं। हमने नई शिक्षा नीति में यह भी कहा है कि स्‍कूली शिक्षा में विद्यार्थी अपनी मातृभाषा में सीखे और किसी भी प्रदेश पर भाषा थोपी नहीं जाएगी लेकिन हां,हमारे संविधान की जो 22 भाषाएं हैं इनमें ज्ञान है,विज्ञान है, परम्‍पराएं हैं इनको हम कैसे छोड़ सकते हैं?हमें याद रखना होगा कि कोई भी देश अपनी ही भाषा पर ही आगे बढ़ा है। जो लोग तर्क देते हैं भाषा का मैं उनसे अनुरोध करता हूं कि भाषा माध्‍यम हो सकता है, भाषा ज्ञान नहीं हो सकता है। जो लोग भाषा की बात करते हैं मैं उन लोगों से कहना चाहता हूं कि जो देश अपनी मातृभाषा में पढ़ाते हैं क्‍या वो किसी से पीछे हैं? जापान, इटली, जर्मनी, अमेरिका, इजरायल सहित विभिन्‍न देश अपनी मातृभाषा में ही नीचे से लेकर ऊपर तक शिक्षा देते हैं क्‍या वो किसी से पीछे हैं?तो इसलिए यह बात करनेवाले लोगों को समझना चाहिए कि जो यह नई शिक्षा नीति है इसमें पूरा मैदान खाली है आप कहीं भी जाओ कोई भी भाषा को पढ़ों, तथा आगे बढ़ो। ग्‍लोबल माइंडसेट के साथ हमारी जो नई शिक्षा नीति आई है यह इंडियन भी होगी, इंटरनेशनल भी होगी, इम्‍पैक्‍टफुल भी होगी, इन्‍कलुसिव भी होगी, इटरेक्‍टिव भी होगी और यह क्‍वालिटी, इक्‍विटी ओर एक्‍सेस इन तीनों की आधारशिला पर खड़ी होगी। मुझे भरोसाहै कि हमारे संस्‍थान टैलेंट की पहचान भी करेंगे, टैलेंट का विस्‍तार भी करेंगे और टैलेंट का विकास भी करेंगे। इसलिए मैंने कहा कि नेशनल रिसर्चफाउंडेशन एवं नेशनल एजुकेशन टैक्‍नोलॉजी फोरम इन दोनों के गठन के माध्‍यम से रिफार्मभीकरेंगे, ट्रांसफॉर्म भी करेंगे और परफॉर्म भी करेंगे और ताकत के साथ करेंगे। इसलिए जो एनईपी है वह तमाम सुधारों के साथ आई है और मुझे भरोसा है कि आपका संस्‍थान आगे बढ़ेगा तथा जो अवस्‍थापनाओंका आपने शिलान्‍यास किया है वह आपको और शिखर पर पहुंचायेगा और आपकी संस्‍था पर मेरा देश गौरव कर सकेगा। एक बार फिर मैं आपको शुभकामनाएं देता हूं।

 

बहुत-बहुत धन्‍यवाद!

 

कार्यक्रम में गरिमामयी उपस्‍थिति:-

 

  1. डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’, माननीय शिक्षा मंत्री, भारत सरकार
  2. प्रो. आशुतोष शर्मा, सचिव, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय, भारत सरकार
  3. डॉ. पार्थसारथी चक्रवर्ती, निदेशक, आईआईईएसटी शिवपुर
  4. डॉ. वासुदेव के. आतरे, अध्‍यक्ष, बोर्ड ऑफ गर्वनर, आईआईईएसटी शिवपुर,
  5. श्री ज्ञानेश चौधरी, प्रबंध निदेशक, विक्रम सोलर लिमिटेड, भारत
  6. डॉ. बीमान बंदोपाध्‍याय, कुलसचिव, आईआईईएसटी, शिवपुर,
  7. श्री मदन मोहन जी, डीजी, शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार

एनआईटी अरूणाचल प्रदेश के यांत्रिक एवं रासायनिक बॉयोटेक शैक्षणिक ब्‍लॉक, केन्‍द्रीय उपकरण सुविधा एवं प्रतिक्रिया इंजीनियरिंग लैब का उद्घाटन

 

एनआईटी अरूणाचल प्रदेश के यांत्रिक एवं रासायनिक बॉयोटेक शैक्षणिक ब्‍लॉक, केन्‍द्रीय उपकरण सुविधा एवं प्रतिक्रिया इंजीनियरिंग लैब का उद्घाटन

 

दिनांक: 26 अक्‍टूबर,2020

 

 

 

माननीय शिक्षा मंत्री, डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’

 

अरुणाचल प्रदेश में आज केइसमहत्‍वपूर्णउत्सव में सम्‍मिलितप्रदेश के बहुत ही जुझारू और यशस्वी मुख्यमंत्री आदरणीय श्री पेमा खांडू जी, केन्द्र में मेरे बहुत ही अभिन्न मित्र और यशस्वी केन्द्रीय मंत्री और जो इस क्षेत्र के यशस्वी सांसद भी हैं आदरणीय किरेन रिजीजू जी, अरुणाचल प्रदेश केयशस्‍वीशिक्षामंत्री श्री तबा तादिर जी,इस एनआईटी के निदेशक पिनाकेश्‍वर महंत जी,हमारे एडीजी श्री मदनमोहनजी, रजिस्टार, सभी विभागाध्यक्ष, डीन, फैकल्टी, बीओजी के सभी सदस्यगण, एनआईटी परिवार और अरुणांचल प्रदेश के शिक्षा विभाग तथा विभिन्न क्षेत्रों से जुड़े सभी उपस्थित भाइयो और बहनों! मैं इस खुशी के अवसर पर आपके बीच उपस्‍थित हो करके अपने को सौभाग्यशाली समझता हूं कि आज अरुणाचल को सौगातके रूप में एक राष्ट्रीय महत्व के स्‍थाई परिसर का शुभारंभ हो रहा है। यहराष्ट्रीय महत्व का जो संस्थान है जोअरुणाचल प्रदेश की युवा पीढी को न केवल अरुणाचल प्रदेश को गौरव दिलाएगा बल्कि मेरे देश को भी पूरी दुनिया में गौरव दिलाएगा, ऐसा मेरा विश्वास है। लंबे समय के बाद प्रतीक्षा थी जैसे किरण भाईने भी चर्चा की कि वो लगातार इस बात को कहते रहे कि इसका रिवाइज एस्टीमेट होना है और मुझे याद है कि पेमाजी जोहमारे बहुतयंग मुख्यमंत्री हैं और इनकी जिजीविषा और छटपटाहट को मैंबहुत अच्छे से जानता हूं क्‍योंकि वे टेलीफोन पर भी लगातार संपर्क करते हैं, तो पत्राचार में भी कभी कोई कमी नहीं रखते और मैंने इनके पत्र को तब भी देखा था और मुझे खुशी है कि जो 2009-10तक रुका हुआ काम था वो अब बहुत तेजी से आगे बढ़ रहा है और इसका जो रिवाइज एस्टीमेट हुआ है वो 868.36 करोड़ रुपये का इसका रिवाइज एस्टीमेट हुआ है। अभी 33.80 करोड़ का काम हमारे निदेशक श्री अग्रवाल जी के नेतृत्‍व में बहुत तेजी से वहां पर चल रहा है। जिसको अतिरिक्त 430.56करोड़ रूपए की और ज़रूरत है। मैं पेमाजी को और उनके जो शिक्षा मंत्री हैं क्योंकि शिक्षा मंत्री जी भी मेरे साथ लगातार जुड़े हुए हैं और पिछले हर महीने सेलगभग मैं देश के सभी शिक्षा मंत्रियों की जबमीटिंगकरता हूं तो मुझे पेमा जी आपको बधाई देनी है कि आपके शिक्षा मंत्री बहुत अच्छा काम कर रहे हैं और आपके नेतृत्व में टास्कफोर्स गठित हो गई जिससेलगभग हम लोग हर 15 दिन में चर्चा करतेहैं। मैं नई शिक्षा नीति की नीचे तक समीक्षा करने की कोशिश करता हूं तो अपने देश के सभी शिक्षा मंत्रियों से जब मेरी बातचीत होती है तो मुझे इस बात को कहते हुए खुशी होती है कि मेराअरुणाचल प्रदेश बहुत तेजी से नई शिक्षा नीति के क्रियान्वयन की दिशा में बहुत ही गंभीरता से पहल कर रहा है, सक्रियता से पहल कर रहा है और मुझे भरोसा है कि जो आपकी पहल होगी मुख्यमंत्री जी यह अरुणाचल प्रदेश ने पूरे देश के नक्शे को एक नए सिरे से मेरे देश के यशस्‍वीप्रधानमंत्री जी ने जो 21वीं सदी के स्वर्णिम भारत की परिकल्पना की है जो उनका संकल्प है कि ऐसा भारत जो सुंदर भारत हो, ऐसा भारत जो स्वस्थ भारत हो, जो स्वच्छ भारत हो,जोसक्षम भारत हो,जो समृद्ध भारत हो,जो आत्मनिर्भर भारत हो और जो श्रेष्ठभारत हो,ऐसे भारत के निर्माण की यह नई शिक्षा नीति आधारशिला बनेगीऔरउसमें अरुणाचल प्रदेश पीछे नहीं है। मैं मुख्यमंत्री जी आपको इसके लिए बधाई देना चाहता हूं, शुभकामना देना चाहता हूँ कि आपके नेतृत्व में बहुत तेजी से प्रदेश आगे बढे। मुझे इस बात की भी खुशी है कि जो आज एनआईटी के स्थाई कैम्पस की शुरूआतहुई है और जब मैं लगातार अपने राष्ट्रीय महत्व के संस्थानों की समीक्षा करता हूँ तो मुझे खुशी होती है कि एनआईटी अरुणाचल ने बहुत कम समय में काफी तेजी से आगे बढ़ना शुरू किया है और एनआईआरएफ रैंकिंग में इंजीनियरिंग श्रेणी में 200 स्थान बनाने में तथा अटल रैंकिंग में 11वां स्थान प्राप्‍त कर बहुत ही शानदार प्रयास किया है। मैं देख रहा हूं कि इस संस्‍थान में पांचबैचस्नातक एवं परास्नातक शिक्षा के पूरी कर चुके हैं और 53 संकाय सदस्यों एवंलगभग 800 बच्चों के साथ यह संस्‍थान निरन्‍तर आगे बढ़ने के लिए प्रयासरत है। मैं इसके निदेशक को और उनकी फैकल्टी को बहुत शुभकामना देना चाहता हूं क्योंकि यह जो पर्वत है, यह हिमालय है और यहाँ की आवाज बहुत दूर तक जाती है। हिमालय सामान्य पहाड़ नही है, हिमालय में देश की आत्मा बसती है और निश्चित रूप से जब वहां से कोई चीज बाहर निकलती है तो वो विश्व फलक पर देश की ताकत बन करके जाती है और इसको मैं एहसास कर सकता हूँ क्योंकिमैं भी हिमालय से आता हूँ। मुझे याद है कि वर्ष2010 में जब मैं मुख्यमंत्री उत्तराखंड था तो हम लोगों ने शिमला में एक कॉन्क्लेव किया था। हिलचीफ मिनिस्टर का कॉन्क्लेव किया था और बहुत सारे विषयों पर तब भी यह बात की थी कि यहहिमालय सामान्य नहीं है, देश की सीमाओं पर तैनात हिमालय  देश की रक्षा भी करता है, यह एशिया का वाटर टावर भी है, यह आध्यात्म की शक्ति भी है औरयहां का जो व्यक्ति है वो बेहद अकलुषित भी है। यहां का निवासी सहजभी है,शालीन भी है, संवेदनशील भी है औरउतना ही पराक्रमी भी है। पराकाष्ठा तक का धीरज उसके अंदर है तो उसके बिलकुल अलग गुण हैं। पूरी दुनिया में यह हिमालय का व्यक्ति मेरे देश कीपूंजी है और इसलिए यह जो हिमालय के संस्थान  हैं,जितने भी मेरे विश्वविद्यालय हैं, मेरे राष्ट्रीय महत्व के यह संस्थान हैं, उन सब से बार-बार लगातार आग्रह भी करता हूं कि वे पूरी ताकत झोंक करके पहाड़ पर जन्‍म लेने वाली हमारी प्रतिभाओं की प्रखरता को सामने लायेंगे और उनकी प्रखरता एक बार जब सामने आती है तो वो राष्ट्र के लिए एक बहुत बड़ी धरोहरके रूप में आगे खड़ी होती है।मुझे भरोसा है कि मेरा यह एनआईटी उन अपेक्षाओं को, उन आशाओं को पूरा करेगा और वो इस प्रदेश की शिक्षा की दिशा में, उसकी चेतना के विकास की दिशा में, उसकी प्लानिंग की दिशा में, उसके तमाम जो परिवर्तन होने तथा विकास की दिशा में एक मील का पत्थर साबित होगा। मेरे मुख्यमंत्री जी को उस पर गर्व होगा की वोप्रदेश के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।मुझे लगता है कि जब भी अकादमी और उद्योगों के बीच गैप होता है तब कठिनाई होती है। इस समय हमने कोशिश की है कि मेरे जो यहआईआईटीहैं, मेरे एनआईटी हैंइनके और उद्योगों के बीच गैप न रहे अब उद्योगों को क्या जरूरत है,वहां पर स्थानीय आवश्यकता क्या है औरउसको पाठ्यक्रम से जोड़ करके उसको ऊपर उठाने का काम हम कर रहे हैं और इसीलिए नयी शिक्षा नीति में हम तमाम परिवर्तन लेकर के आये हैं। इस समय बहुत व्यापक परिवर्तन और सुधारों के साथ इस नई शिक्षा नीति को हम लाए हैं जो नीचे से स्कूली शिक्षा ही नहीं बल्कि तीन वर्ष के बच्चे से लेकर के अर्थात् प्री-प्राइमरी से लेकर के एवंआँगनवाड़ी से लेकर के उच्च शिक्षा एवंशोध और अनुसंधान तक व्यापक तरीके से हम परिवर्तन लाएं हैं। पुराने 10+2 को हटा करके 5+3+3+4 किया है और आज इस नई शिक्षा नीति के तहत बच्चे का भी पूरी ताकत के साथ 360 होलिस्टिक मूल्यांकन होगा। वह अपना भी मूल्यांकन करेगा, उसके माता-पिता भी मूल्यांकन करेंगे और उसका साथी भी मूल्यांकन करेगा तथा अध्यापक भी उसका मूल्यांकन करेगा। यह360 डिग्री जो होलिस्टिक मूल्यांकन होगा उससे बच्‍चा एक योद्धा के रूप में सर्वस्व गुणों कोनिखार कर के वह बाहर निकलेगा। शायद दुनिया का पहला हम ऐसा देश होंगे जो छठी कक्षासे हीआर्टिफिशल इंटेलिजेंस शुरू करेंगे और वो भी वोकेशनल स्ट्रीम के साथ इंटर्नशिप के साथ हम शुरू करेंगे। हम शैक्षणिक,शिक्षणेत्तर और वोकेशनल इन तीनों केबीच गैप हम खत्म कर रहे हैं। यह तीनों एक साथ जुड़ेंगे वो शिक्षणेत्तर गतिविधियां भी करेंगे, उसमें सामाजिक हावभाव होंगे, सांस्कृतिक भी होंगे।शिक्षणेत्तर गतिविधियों के माध्‍यम से जहां अक्षर ज्ञान के साथ ही वोकेशनल स्ट्रीम के द्वारा इंटर्नशिप के माध्‍यम से विद्यार्थी कुछ दिनों क्लास में रहेगा तो कुछ दिन वो प्रैक्टिकल में खेतों में जाएगा। मुझे इस बात की खुशी है कि अभी आपने कई लोगों के साथ समन्वय किया है और यहां परआप इनकोट्रेनिंग दे रहे हैं।आपदूसरी संस्थाओं के साथ समझौता, समन्वय एवं सहयोग के माध्यम से विशेषज्ञताके पहलुओं को आप आगे बढ़ाने का काम कर रहेहैं चाहे आईआईटी गुवाहाटीहै,भुवनेश्‍वरपावर ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट है और चाहे भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण है, चाहे वो असम साइंस एंड टेक्नोलॉजी यूनिवर्सिटी हैआपबहुत सारे संस्‍थानोंके साथ मिलकर के रिसर्च से कर रहें हैं। अभी हम दुनिया के सर्वश्रेष्‍ठ127 विश्वविद्यालयों के साथ ‘स्‍पार्क’ केशोध और अनुसंधान कर रहे हैं। वैसे ‘स्‍ट्राइड’ के तहत एवं‘स्टार्स’ के साथ देश में अंतर विषयक शोधों में भी हमारे बच्चे आगे बढ़ रहे हैं और मुझे खुशी है कि जापान कीयूनिवर्सिटी के साथ भी इस संस्था ने एमओयू किया है। हमलोग तो ‘स्टडी इन इंडिया’को एक ब्रांड बनाना चाहते हैं तथा आह्वान करना चाहते हैं कि पूरी दुनिया के लोगो आओ और हिंदुस्तान में आकर सीखों, पढ़ो क्‍योंकिहिन्दुस्तान तो विश्वगुरु रहाहै।हिन्‍दुस्‍तान में तक्षशिला और नालंदा जैसे विश्वविद्यालय रहे हैं जब हम इस देश में कहते थे कि‘एतद्देशप्रसूतस्य सकाशादग्रजन्मनः स्वं स्वं चरित्रं शिक्षेरन्पृथिव्यां सर्वमानवाः’पूरी दुनिया के लोगों ने तो ज्ञान, विज्ञान, अनुसंधान, नवाचार, प्रौद्योगिकी हिंदुस्तान की धरती पर आकर सीखा है और इसलिए देश एक बार फिर अंगड़ाई ले रहा है। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द मोदी जी कीअगुआई में देश विश्व की महाशक्ति के रूप में और विज्ञान की महाशक्ति के रूप में बहुत तेजी से उभरने का प्रयास कर रहा है। इसीलिए ‘स्टडी इन इंडिया’ के तहत पूरी दुनिया के लोग अब यहां पर आकर के पढ़ेंगे। पिछली बार जब हमने ‘स्टडी इन इंडिया’कायह अभियान शुरू किया था तो 50 हजार से भी अधिक दुनिया के बच्चों ने रजिस्ट्रेशन किया था। मुझे भरोसा है कि जहां हमने ‘स्टडी इन इंडिया’किया है वहीं हमने ‘स्‍टे इन इंडिया’ भी किया है।अभी देश से बाहर जाने की एक होड़ लगी हुई है। लोग कहते हैं कि बच्चा अमेरिका में पढ़ रहा है।हमारेसात से आठ लाख छात्र विदेशों में पढ़ रहे हैंऔर मेरे देश काएक से डेढ लाख करोड़ रुपया प्रति वर्ष दुनिया में जाता है। मेरे देश का पैसा भी और मेरे देश की प्रतिभा भी देश के काम नहीं आती। जो लोग वहां प्रतिभाशाली होते हैं उनको तो अच्छे खासे पैकेज देते हैं और वो प्रतिभा उस देश को सशक्त करने में आगे बढ़ती है। अब हमने ‘स्टे इन इंडिया’ कहा है, कि नहींमेरे छात्रों को अब बाहर जाने की ज़रूरत नहीं है। मेरे आईआईटीज, मेरे एनआईटी हैं, मेरे केंद्रीय विश्वविद्यालय हैं और राष्ट्रीय महत्व के तमाम संस्थान हैं। हम इंटरनेशनल स्तर उसका जो पाठ्यक्रम है, जो उसका फलक है, उसको बढ़ा रहे हैं और इसलिए सभी छात्रों को कहा है कि बाहर जाने कीकोई जरूरत नहीं है। जो आपको बाहर मिल सकता है वो इसके अंदर भी मिलेगा और वैसे भी हम इस नई शिक्षा नीति के तहत दुनिया की जो टॉप 100यूनिवर्सिटीज हैं, उन सभी यूनिवर्सिटी को भारती धरती पर आमंत्रित कर रहे हैं,वोआएं और हमारे भी बड़े विश्वविद्यालय, बड़े संस्थान वो पूरी दुनिया में जाएं।हम आदान-प्रदान करना चाहते हैं और हमारे बच्चे को भी इसमें जाने की ज़रूरत है। एक समय था जब इस बात की होड़थी कि मेरा बच्चा विदेश में पढ़े। लेकिन अब आपने देखा कि ऐसा नहीं है कि केवल दुनिया के दूसरेदेशों की पढ़ाई बहुत अच्छी है और हमारी पढ़ाई अच्छी नहीं है। यदि ऐसा हीहोता तो अमेरिका की जो शीर्षकंपनियां हैं चाहे गूगल हो, चाहे माइक्रोसॉफ्ट हो वहां हिंदुस्तान की धरती से पढ़ने वाले आईआईटी, एनआईटी, आईसर,आईआईएम के छात्र आज वहां पर लीडरशिप दे रहे हैं। मैं जब सभी आईआईटीके आंकड़े निकालता हूं तो मैं कह सकता हूं कि पूरी दुनिया में इस समय हिंदुस्तान का नौजवान हर क्षेत्र और हर देश में लीडरशिप ले रहा है और इसलिए अब जरूरत होगई है कि वो अपने देश में लौटें। हिंदुस्तान पूरी दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है। हिंदुस्तान का जो शिक्षा का व्‍याप है। उसमेंएक हजार से अधिक विश्वविद्यालय हैं, पैंतालीस हजार से भी अधिक डिग्री कॉलेज  हैं, एक करोड़ से अधिक अध्यापक हैं,15 लाख से भी अधिक यहांस्कूल हैं और कुल अमेरिका की जितनी आबादी नहीं है उससे ज्यादा 33 करोड़ छात्र-छात्राएं इस देश के अंदर हैं और यह देश यंग इंडिया रहनेवाला है और इसलिए मैंनवयुवकों से आह्वान करताहूं। मेरे यहएनआईटीजिस दिन और यह हमारा अरुणाचल प्रदेश जिस दिनपूरे यौवन पर आएगा पूरे देश के कोने-कोने का बच्चा भी मेरी एनआईटी अरुणाचल में पढने के लिए यहां आएगा और इसके अंतर्राष्ट्रीय स्तर के अवस्थापना को भी हम खड़ा कर रहे हैं। मैं इसका विश्लेषण करता हूं जैसे कि अभी मैं शोध देख रहा था तोमेरे डीजी नेमुझे बताया की एक ही वर्ष के अंदर तीन सौ से भी अधिक शोध पत्र उन्होंने जमा किए हैं और पेटेंट्स का भी होना इसकी जरूरत हैं। अभी हम लोग केवल शोध और अनुसंधान में पीछे थे क्‍योंकि पेटेंट में भीहम पीछे थे। अभी तक हमारी होड़ थी पैकेज की।हम कहते थे इंजीनियरिंग करने के बाद कितना पैकेज मिल जाएगा?आज उस पैकेज की दौड़ को बदलकर केपेटेंट की दौड़ में परिवर्तित करने की ज़रूरत है। हम ही तो हैं दुनिया में जो कुछ भी कर सकते हैं और वो इतिहास इस बात का साक्षी है कि हिन्दुस्तान जब खड़ा होता है, हिंदुस्तान की प्रतिभा जब एक साथ एक जुट होकर के देश के बारे में सोचती है तो दुनिया का मार्गदर्शन करती है। वो वक्तइस समय आ गया इसलिए मेरा भरोसा है कि चाहे मेक इन इंडिया हो, डिजिटल इंडिया हो, स्किल इंडिया हो, स्टार्ट अप इंडिया हो और स्टैंड अप इंडिया हो और क्‍यों मेक इन जापान हो, क्‍योंमेक इन चाइना हो हमारे पास क्षमता है हमारे पास सब कुछ करने की जगह प्रतिभा की भी कमी नहीं है और मिशन की कमी नहीं है तथा विजन की भी कमी नहीं है। अब हमें समन्‍वयकरने की जरूरत है और जरूर हम इसका समन्‍वय करेंगे। अभी मैं देख रहा था कि यहांस्किल डवलपमेंट में भी आपने बहुत तेजी से काम किया है और आत्मनिर्भरकाअभियान शुरू किया हमारे देश के प्रधानमंत्री ने आत्मनिर्भर भारत में जो मेरा युवा है वह एनआईटी में एक बार आजाता है तो वोआत्मनिर्भर भारत की आधारशिला रखेगा। मेरा विद्यार्थी जबयहांसेबाहरनिकलेगा तोएक योद्धा के रूप में जाएगा और वोतमाम मुद्दों को लेकर के गांव-गांव के विकास को लेकर के एक नई आधारशिला खड़ा करने का काम करेगा। आपके स्टार्ट अप सेल ने संज्ञानात्मक कौशल, डिजाइन थिंकिंग एवं क्रिटिकल थिंकिंग, अरुणाचल हैकाथॉनजैसे विभिन्न कार्यक्रमों आपने कृषि और ग्रामीण विकास, नवीकरणीय ऊर्जा आईटी मैनजमेंट और हेल्थ केयर रोबोटिक्स ड्रोन और इलेक्ट्रॉनिक्स वाहनजैसे तमाम विषयों में आप काम कर रहे हैं। आपके निदेशक अच्‍छे एवंविजनरीहैं। मैं कहूंगा कि आपके जो छात्र तथा फैकल्टी हैं वेकभी मुख्यमंत्री जी को आमंत्रित करें तथा अपने विभागों के साथ ग्रामीण विकास विभाग के साथ तथा अन्‍य तमाम विभागों के साथ अपनी इसप्रतिभा को इनको दीजिए। जो समस्याएं बिखरी हुई हैं, उनके समाधान की दिशा में उनको टास्क दीजिए। मुझे भरोसा है कि वह इस प्रदेश के विकास में एक बेहद बड़ी धुरी बन कर के काम कर सकते हैं। मुझे भी खुशी है कि अक्षय ऊर्जा औरप्रौद्योगिकी, खाद्य सुरक्षा, पर्यावरण विज्ञान, आर्टिफिशल इंटेलिजेंस, मशीन लर्निंग तथा रोबोटिक्स जैसे क्षेत्रों में कई अनुसंधान परियोजनाओं पर आप लोग काम कर रहे हो। मुझे खुशी है और आप ने 23 पेटेंट भी दायर किया और 12 को आपकी स्वीकृति मिली है। इसी में आपको और छलांग मारनी है। मैं जब समीक्षा करता हूं तो पाता हूं कि चीन हमारे साथ 15 साल पहले वहीं पर खड़ा था। लेकिन इन्होंने शोध और अनुसंधान में छलांग मारी। हमारे यहां तो शोधअनुसंधान की संस्कृति बीच मेंखत्म सी हो गयी अथवासुस्त सी पड़ गई और उसके कारण बड़ा झटका हमको लगा। लेकिन हम उस खाई को तेजी से पाटेंगे और शोध तथाअनुसंधान की संस्‍कृति को विकसित करने के लिए अब नेशनल रिसर्च फाउंडेशन होगा जो प्रधानमंत्री जीके प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार की अध्यक्षता में होगा और प्रति वर्ष लगभग 20 हजार करोड़ से भी अधिक का व्‍यय उस पर होगा।मेरे छात्र शोध और अनुसंधान करेंगे और दूसरी ओर तकनीकी की दृष्टि से मेरे देश के अंतिम छोर पर बैठे रहने वाले व्यक्ति को कैसे समृद्ध किया जाएगा वे इसका उपयोग कैसे करें इसके लिए नई शिक्षा नीति के तहत नेशनल एजुकेशन टेक्नोलॉजी फोरम का भी गठन किया जा रहा है।नई शिक्षा नीति के तहत मुझे लगता है इन दोनों के बनने से बहुत तेजी से काम होगा और शोध तथा अनुसंधान में जो बिखरी हुए समस्याएं हैं, उनकासमाधान भी होगा और पलायन भी रुकेगा। मेरे देश में ‘मेक इन इंडिया’ और जो आत्‍मनिर्भरभारत है इसकी भी आधारशिला मजबूत होगी। पर्यटन का भी अच्छा क्षेत्र है, तमाम उत्पाद जो पर्वतीय क्षेत्र के जो यह राज्य हैं यह तो भारत के लिए वरदान साबित हो सकते हैं और आपने प्रौद्योगिकी की मदद से स्टार्टअप एवंपांच वर्षीय प्रोजक्ट भी कुछ प्रारम्भ किए हैं जैसे खिलौना निर्माण। अब आप देखिए कम से कम 15 हजार करोड़ से भी अधिक के खिलौने बाहर से आते हैं। जिस दिन खिलौने की आप मेकिंग करना शुरु कर देंगे। मुझे लगता है कि उस दिन बहुत बड़ी इंड्रस्टी हमारी इन खिलौने पर होगी। मूल्य वर्धित उत्पादों जैसे कि भी इलायची अचार मुझे लगता है कि आप ऐसी जगह बैठे हैं जहां हमने कहा है कि जो आयु का विज्ञान है वो आयुर्वेद है और हमारे पास इस हिमालय में संजीवनी बूटियां भी हैं जो जीवन देती हैं और इसीलिए उन जड़ी बूटियों पर और अन्‍य उतपदों पर शोध और अनुसंधान होना चाहिए। पूरी दुनिया की स्वास्थ्य की रक्षा करने का अकेला माद्दाइस हिमालय के क्षेत्र में हैं और इसलिए इसकी जरूरत है। मुझे लगता है कि वैसे भी अपने बॉर्डर के क्षेत्र के यह राज्य हैं तो आपने सैटेलाइट डेटा कलेक्शन सेंटर, सेंटर फॉर एनर्जी,सेंटर फॉर हर्बल मेडिसन यह आपने शुरू किया। मैं एनआईटी को इस बात की भी बधाई देना चाहता हूं कि जब कोरोना की महामारी से पूरी दुनिया संकट से गुजर रही थी और हमारा देश भी उससे अछूता नहीं था ऐसी परिस्थिति में आपकोविडकी क्षणोंमें भी अपनी प्रतिभा को निखार कर लायें हैं और आपने ऑनलाइन डिजिटल क्लासरूम शुरू किए हैं,ऑनलाइनके माध्यम से आपने पढ़ाना शुरू किया है। मुझे लगता है पूरी दुनिया का शायद ही ऐसा उदाहरण होगा जब 25 करोड़ से भी अधिक छात्रों को हम एक साथ ऑनलाइनपर लाए। दुनिया में इतनी बड़ी संख्या में छात्रों को एकसाथ ऑनलाइनपर लाना कोई सोच भी नहीं सकता लेकिन हम लोगों ने उसको किया। इन संस्थानों ने सब मिलकर के किया। राज्यों ने भी कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। अंतिम छोर का बच्चा भी जिसके पास स्मार्ट टेलीफोन नहीं है और नेट की सुविधा नहीं है उस तक भी हम कैसे पहुंच सकते हैं। इसलिए स्टेट गवर्नमेंट के साथ मिलकर के आप इन सब चीजों को भी करिए। मुझे भरोसा है कि आपने पीछे के समय भी बहुत अच्छा किया औरसामाजिक दायित्वोंके तहत आपने पांच गांवों को गोद लिया और उनके जीवन स्तर को सुधारने और जागरूकता फैलाने के लिए भी काम कर रहे हैं। यह जो पांच गांव हैं आपके इन पांच गांवों में आपकी पूरी सूरत दिखनी चाहिए। मैं निदेशक से और फैकल्टी से अनुरोध करूंगा कि एनआईटी में आनेवाले बच्‍चों के माध्यम से उन पांच गांवों का पूरा कायापलट कर दीजिए। एक मॉडल तैयार कर दीजिए आप मेरे अरुणाचल के लिए ताकि मेरे मुख्यमंत्री कहीं भी जाकर के कह सकें कि जाओ, उस गांव में जाओ देखो  कि कितना विकास और साफ-सफाई है तथा यह आत्‍मनिर्भरगांव है। इसकी शर्त है और यह आपके लिए टास्क भी है। उन्नत भारत अभियान में सभी राष्ट्रीय महत्व की संस्थाओं को एक टास्क दें कि जहां पर आप हैं आपकी खुशबू आसपास में दिखाई देनी चाहिए। इसएनआईटीकी छाया उन गांवों में दिखाई दे। मुझे भरोसा है आप यह काम  ज़रूर कर रहे होंगे। आप पारंपरिक भाषाओं जैसे आपा, तानी, माचो,मसान, गालों, तंगसा और निशी के संवर्धन की दिशा में भी आप काम कर रहे हैं और आपको तो पता है किमैंने नई शिक्षा नीतिमें मातृभाषाओं को विशेष महत्व दिया है। जब बच्‍चा मातृभाषा में बोलेगा तो उसके अंदर से वह ज्यादा अभिव्यक्ति कर सकता हैऔर इसलिए वैसे भी हमारेदेश के संविधान की अनुसूची 8 में हमारी22 भारतीय भाषाएं हैं। इनके संवर्धन की, उनके संरक्षण की जिम्मेदारी भी हमारे ही ऊपर है।हमने तो यह भी तय किया है कि यदि कोई प्रदेश अपनी मातृभाषा में उच्च शिक्षा तक भी करना चाहता है तो जरुर करें। कुछ लोगों का यह तर्क को होता है कि अब आपको ग्लोबल पूरी दुनिया में जाना है तो अंग्रेजी के बिना तो आप दुनिया में छा ही नहीं सकते हैं, आप मातृभाषा की बात क्यों कर रहे हैं? मैं उनको बहुत विनम्रता से हाथ जोड़ता हूं। हम अंग्रेजी के विरोध में कभी भी नहीं गए। हमने तो कहा कि राज्य भाषाओं के मामले में बच्चों को सीमितन करें, खुला मैदान दो और बच्चे को अधिकतम भाषाएं सीखने का अवसर दो। किसी प्रदेश पर कोई भाषा थोपी नहीं जाएगी लेकिन हां, जिन लोगों ने अपनी मातृभाषा में शिक्षा दी क्या वो हमसे पीछे हैं। मैं पूछता हूं जापान अपनी मातृभाषा में शिक्षा देता है तो क्‍या जापान किसी से पीछे हैं। फ्रांस अपनी मातृभाषा में शिक्षा देता है यहां तक कीअमेरिका अपनी मातृभाषा में शिक्षा देता और और जर्मनी भी अपनी मातृभाषा में ही उच्च शिक्षा तक शिक्षा देता है क्या वे देश पीछे हैं? इजरायल जो हमारे बाद स्वाधीन हुआ जो बिल्कुल ध्वस्त हो गया था औरउसकी भाषा खत्म हो गई थी यहां तक की पूरा समाज खत्म हो गया था और उसने केवल अपनी मातृभाषा में अपने को जिन्दा किया। आज इजरायल अपनी मातृभाषा में शिक्षा देता है वो किसी से पीछे है?जो लोग बिना सोच-विचार के हल्‍के स्‍तर की बातें करते हैं, मैं उनसे हाथ जोड़कर विनम्रता से अनुरोध करता हूं कि इस प्रकार की भ्रांतियां न फैलायें।  हालांकि मुझे इस बात की खुशी है कि इसके बाद उन्होंने कुछ कहा नहीं और आज लोग महसूस कर रहे हैं।इसनई शिक्षा नीति से जो उत्साह एवंउल्लास पूरे देश के अंदर दिखाई  दिया उसे एक उत्सव जैसा मनाया जा रहा है और मुझे इस बात को कहते खुशी है कि दुनिया के दर्जनों देश अब भी कह रहे हैं कि हम भारत की एनईपी को अपने देश के अंदर भी लागू करेंगे क्योंकि  हमने इस नीति को अंतर्राष्‍ट्रीयबनाया और साथ ही भारत केन्द्रित भी बनाया। यह नीति भारत की जड़ों पर खड़ी होगी क्‍योंकि हमारी जड़ें कमजोर नहीं बल्‍कि हमारी जड़ें बहुत मजबूत हैं। हमारे पास सबकुछ  है।शल्य चिकित्सा का जनक सुश्रुत यहीं पर पैदा हुआ, आयुर्वेद का जनक चरक यहां पैदा हुआ,आर्यभट्टगणितज्ञ यहां पैदा हुआ, ऋषि कणाद जिन्‍होंनेअणु और परमाणु का विश्‍लेषण किया तथा भास्कराचार्य जो ज्योतिष विज्ञान के महान् ज्ञाता और गणितज्ञ थे, नागार्जुन जैसे रसायन शास्त्री किस देश में में पैदा हुए तो इसलिए जब हम पीछे मुड़कर के देखते हैं तो यह देश कितना समृद्धता थातभी तो आज भी यह देश विश्वगुरु है। दुनिया का यह योग जिसके बारे में आज हमारे देश के यशस्वी प्रधानमंत्री जी ने मानव की सुरक्षा की बात अंतर्राष्ट्रीय मंच पर क्योंकि मेरा भारत विश्व की बात करता है,‘वसुधैव कुटुम्बकम’ की बात करता है। इसलिए उस परिवार के हर सदस्य की चिंता करने का काम भी भारत जैसे उदार चरित्र के मन ही कर सकता है और जब उन्होंने इस मनुष्य की संरक्षण की बात की और योग की बात की तो दुनिया के 199देश आज योग के पीछे खड़े हो गए, अपने तन और मन को ठीक करने के लिए इसी हिमालय से योग एवं आयुर्वेद पैदाहुआ है और इसलिए मैं यह समझता हूं कि अब नई शिक्षा नीति के तहत आपके लिए पूरा मैदान खाली है। उच्च शिक्षा में भी विषयों की छूट दी गई है। नई शिक्षा नीति में आप विज्ञान के साथ संगीत ले सकते हैं।इस शिक्षा नीति के अंतर्गत यदि कोई 4 वर्ष का कोर्स है और यदि कोई छात्र दो साल में परिस्‍थितिवशछोड़के जा रहा है  तो पहले उसका पैसा एवं समय दोनों खराब हो जाते थे लेकिन अब उसकोनिराश नहीं होना पड़ेगा,यदि आप परिस्‍थितिवश एक वर्षमें छोड़ कर जा रहे हैं तो उसको सर्टिफिकेटदेंगे,दो साल में छोड़ कर जा रहा है तो डिप्लोमा देगें, तीन साल में छोड़ेकर जा रहा है तो उसकोडिग्री देंगे लेकिन यदि फिर वह लौट कर अपने भविष्य को संवारना चाहता है तो फिर जहां से उसने छोड़ा था वहीं से शुरू कर सकता है। उसके लिए हम एक ऐसा क्रेडिट बैंक बनायेंगे जहां उसके सारे क्रेडिट जमा होंगेइसलिए उसके लिए आगे बहुत आपार संभावनाएं है।पीछे की दिनों में यूनेस्को की डीजी जब मुझसे मिलने के लिए आई थी तो उन्होंने कहा कि अनुशासनहीनता बढ़ रही हैं डॉ.निशंक,हिंसा बढ़ रही है,एक दूसरे के प्रति सम्मान भी कम हो रहा है। मैंने उनको कहा आपको पता है यह क्यों हो रहा है? जब तक हम जीवन मूल्यों की शिक्षा नहीं देंगे, हमने आदमी को मनुष्य नहीं मशीन बना दिया है और अब उसे पहले मानव बनाना पड़ेगा तब जाकर इन संकटों से मुक्‍त हो सकते हैं। हम किसी भी क्षेत्र में जाएंगे लेकिन अपने मूल्यों को नहीं छोड़ेंगे। हमारी जो मनुष्यता हमारे अंदर है, उसे नहीं छोड़ेंगे। इसलिए हमारे देश के प्रधानमंत्री नरेन्‍द्रमोदी जी कहते हैं कि हमें एक अच्छा नागरिक भी बनाना है और हमको एक मनुष्य एक मानव तो बनानाहीहै। हमें विश्व मानव बनाना है जो विश्व के फलक पर हो तथा जिसकी संवेदनाएं सम्‍पूर्ण विश्‍व को देखती हों, जिसकी दृष्टि पूरे विश्व में व्याप्त हो,जिसकेमन में विश्व को अपने मन में समाने का विचार हो ऐसेविश्‍व मानव कीआज जरूरत है।इसीलिये यह जो नयी शिक्षा नीति है तमाम परिवर्तनों को लेकर के लिए आयी है।यह जो नयी शिक्षा नीति है यहनेशनलभी है, यह इंटरनेशनल भी है, यह इम्पैक्टफुल भी है, तो यहइंटरेक्‍टिवभी है और इन्क्लूसिव भी है। इसमे क्वालिटी भी है, इक्विटी भी है और इसमें एक्सेस भी है। इन तीनों की आधारशिला पर यह खड़ी है और यह सामान्य नहीं है। यह नयी शिक्षा नीति भारत को पूरी ताकत के साथ दुनिया में ज्ञान की महाशक्ति बनाने की क्षमता रखती है। मुझे भरोसा है कि आज बहुत तेजी से आप काम कर रहे हैं और मुझे मुख्यमंत्री जी को भी इस बात की बधाई देनी है कि उनके प्रदेश में मैं शिक्षा मंत्री जी से जब-जब बात करते हैं तो यह जिस तरीके से पूरा विवरण रखते हैं उससे मुझे और आशा जगती है कि नहीं, अरुणांचल प्रदेश काफी गंभीर है। इस नई शिक्षा नीति के प्रति और अपने बच्चों के प्रतिअपने भविष्य के प्रति अपने भावी पीढ़ी के प्रति पेमा जी विजनरी व्यक्ति हैं, मिशनरी व्यक्ति हैं और उनके नेतृत्व में मुझे भरोसा है कि हमारा अरुणाचल बहुत आगे बढेगा।किरेन जी भी लगातार चिंतित रहते हैं और स्वभाविकहैकि यहां पर जब केन्द्र में कोई बात आती है तो वो भी लगे रहते हैं और उधर आपका जो नेतृत्व है वो चौमुखी नेतृत्व है।हर दिशा में आपका विजन है, आप जुझारूभी हैं औऱ विजनरी भी हैं तो मुझे भरोसा है कि मेरा यह जो एनआईटी जिसपर आज हम सब लोग बैठे है, यह केवल एक भवन उद्घाटन का ही विषय नहीं है बल्कि आज यहएनआईटी मेरे अरुणांचल प्रदेश के विकास की आधारशिला में एक मजबूत कदम होगा, ऐसी मैं आपको शुभकामना देता हूं।

 

बहुत-बहुत धन्‍यवाद!

 

 

कार्यक्रम में गरिमामयी उपस्‍थिति:-

 

  1. डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’, माननीय शिक्षा मंत्री, भारत सरकार
  2. श्री किरेन रिजीजू, माननीय युवा कलयाण एवं खेल मंत्री, भारत सरकार
  3. श्री पेमा खांडू, माननीय मुख्‍यमंत्री, अरूणाचल प्रदेश
  4. श्री तबा तादिर, माननीय शिक्षा मंत्री, अरूणाचल प्रदेश
  5. श्री पिनाकेश्‍वर महंत, निदेशक, एनआईटी अरूणाचल प्रदेश
  6. श्री मदन मोहन, एडीजी, शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार
  7. रजिस्‍ट्रार, संकाय सदस्‍य, अध्‍यापगण, डीन एवं बीओजी के सदस्‍य।