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इंडियन चैम्‍बर्स ऑफ कॉमर्स ‘आत्‍मनिर्भर भारत, उद्यमिता और रोजगार कौशल का विकास’

इंडियन चैम्‍बर्स ऑफ कॉमर्स ‘आत्‍मनिर्भर भारत, उद्यमिता और रोजगार कौशल का विकास’

 

दिनांक: 19 जनवरी, 2021

 

 

माननीय शिक्षा मंत्री, डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’

 

          आईसीसी के इस वर्चअल सत्र में बहुत ही महत्‍वपूर्ण विषय पर जो आज यह परामर्श हो रहा है ‘आत्‍मनिर्भर भारत, उद्यमिता और रोजगार कौशल का विकास’ वर्तमान परिस्‍थितियों में बहुत ही जीवंत विषय आपने लिया है जिसकी आज जरूरत है। ऐसी परिस्‍थिति में जरूरत है जब देश बहुत तेजी से अंगड़ायी ले रहा है, इसलिए मैं आपके इस कार्यक्रम के लिए आपको धन्‍यवाद देना चाहता हूं और आईसीसी के जो अध्‍यक्ष है श्री विकास अग्रवाल जी उनकी पूरी टीम को मैं शुभकामना देना चाहता हूं कि आप इसी तरीके से गतिविधियां करके देश के नव-निर्माण में बहुत महत्‍वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करेंगे। डॉ. राजकुमार जी भी यहां पर उपस्‍थित हैं, जो बहुत विजनरी हैं, प्रखर हैं, शालीन हैंऔर मैं राजकुमार जी को भी बहुत बधाई देना चाहता हूं कि यह जो हमारी हिन्‍दी है, यह हिन्‍दी पूरी दुनिया की सबसे बड़ी शब्‍द शक्‍ति हैं। इसमें लगभग 10 लाख शब्‍द हैं और यदि आप इस पर शोध और अनुसंधान करें तो इसमें अपार संपदा है। वैसे तो दुनिया की तमाम भाषाएं हैं जो संस्‍कृत और हिन्‍दी से निकलती हुई आपको लगेंगी और पूरी दुनिया में 67.5 करोड़ लोग हिंदी बोलते हैं जो अभी विश्‍व में तीसरे नंबर पर है। लेकिन मुझे लगता है कि कुछ ही दिन के बाद वह नंबर एक होगी क्‍योंकि हिन्‍दुस्‍तान की पहचान कहीं न कहीं हिंदी भाषा से है और इसकी जरूरत है। वैसे तो हमारा सौभाग्‍य है कि हमारे देश में इतनी खूबसूरत भाषाएं हैं और हमारे संविधान ने हमको 22 भारतीय भाषाओं को दिया है। इसमें तमिल है, तेलगू है,मलयालम है,गुजराती है, बंगाली है, उड़िया है, हिन्दी है, उर्दू है, असमिया है, ये सभीऐसी खूबसूरत भाषाएं हैं जिनमें ज्ञान भी है, विज्ञान भी है, अनुसंधान भी है,परंपराएं है और उनके सूत्र के रूप में हिंदी सबको पिरोते हुए चलती है।हमारा देश इन 22 भारतीय भाषाओं का सुंदर गुलदस्ता है जो इस देश कीविविधता में एकता का सबसे बड़ा सूत्र खड़ा करता है।इन भाषाओं के अंदर साहित्य है,इनकेअंदरजीवनदर्शन है, इसलिए मेरे देश के प्रधानमंत्री जी ने कहा ‘एक भारत श्रेष्ठ भारत’। हम एक दूसरे को जिस दिन जान जाएंगे उस दिन दुनिया में सबसे समृद्धतम हो जाएंगे और वैसे भी दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश हैहिंदुस्तान। यह 135 करोड़ लोगों का देश है।हम आज जिस बात की चर्चा कर रहे हैं और जिस बात की चिंता कर रहे हैं और जिस बात को लेकर आगे बढ़ना चाहते हैं उसके सन्‍दर्भ में देश के प्रधानमंत्री जीने एक बार कहा था कि यदि हम एक कदम भी आगे बढ़ते हैं अर्थात् हिंदुस्तान का एक व्यक्ति केवल एक कदम भी आगे बढ़ाएगा तो उसके एक कदम आगे बढ़ने से एक सौ पैंतीस करोड़ कदम बढ़ते हैं, कई देश तो 135 करोड़ कदम रखने पर पार भी हो जाते हैं। यहभारत का वैभव है और इसीलिए यह जो हमारी शक्तिहै,हमारी कमजोरी नहीं हो सकती है।जिस तरीके से हम लोग कभी-कभी खो जाते हैं औरउस खोये जाने में और अति-आत्मविश्वास करने में और अति-उदारता की भी सीमा परे होने में हम लोगों ने बहुत ज्यादा कीमत चुकाई है जिसे हम गुलामी के रूप में देखते हैं। आखिर यह भारत तो विश्‍वगुरूभारत था, क्या कमी थी?जब मैं भारत की बात करता हूं जो विश्वगुरु भारत था। अगर राजकुमार जी, आपने तक्षशिला नालंदा और विक्रमशिला जैसे विश्वविद्यालयों की बात की तब दुनिया में आप तो ऑक्‍सफोर्ड से पढ़े हुए हैं, दुनिया के शीर्ष विश्वविद्यालयों में आपकी दखल है। अभी कुछ दिन पहले कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के प्रबंध निदेशक रॉड स्मिथ एक वेबीनार में मुझे मिले और उसके बाद उन्‍होंने मुझे मेल भेजा तो मुझे खुशी हुई। उन्होंने कहा कि सात सौ आठ सौई. पूर्व हिन्दुस्तान में जो विश्वविद्यालय थे और जो भारत ज्ञान का समर्थ केन्द्र था। इस नयी शिक्षा नीति ने उसको जीवंत कर दिया जो सारी दुनिया का मार्गदर्शन देने में सक्षम है। यहबातअब दुनिया के लोग हमारे साथ बोलने लगे हैं। आजजरूरत है,अपने आप को खड़े रखने की। मुझे खुशी है कि आपने इस विषय पर आज चर्चा की है। मैं जिस भारत की बात कर रहा हूं उस भारत को 24 घंटा हमको अपने मन और मस्तिष्क में जीवित रखना पड़ेगा, वो विश्व गुरु है और जिसके बारे में ‘‘एतद् देश प्रसूतस्य शकासाद् अग्रजन्मन:, स्वं-स्वं चरित्रं शिक्षरेन् पृथ्वियां सर्व मानव:’’कहा गया है। जब सारी दुनिया के लोग ज्ञान, विज्ञान, अनुसंधान, नवाचार सब कुछ सीखने के लिए हमारे पास आते थे और जब हम उसके बाद सोचते हैं कि मेरे देशको विश्वगुरु कहा गया और मेरे देशको सोने की चिड़िया कहा गया जो धनधान्य और वैभव से इतना संपन्न देश थाइसकोदुनिया सोने की चिड़िया के नाम से जानतीथी। आजकहाँ है वो सोने की चिड़िया,जरूरत है इस पर विचार करने की बल्कि एक कदम आगे बढ़ने की। मुझे भरोसा है क्योंकि इसदेश की 135 करोड़ लोगों की आबादी है। हमारे पास प्रतिभा की कमी नहीं है, हमारे पास विजनकी कमी नहीं है, अब थोड़े से समन्‍वयकी जरूरत है। आप जैसे संस्थान जब आगे आते हैं तो उम्मीदें और बढ़ती हैं। राजकुमार जी जैसे युवा जो शिक्षाविद्हैंऔर जिनके मन में विचार है, ललक है तथा जिनके मन-मस्तिष्क में देश भी पलता हैऔर जिनमें भारत के संस्कार भी पलते हैं और जिसमें भारत का विजनभी पलता है, इसकी जरूरत है। एक समय बीच में था जब हमने पैकेज की दौड़ लगाई थी,आज उसको रोक करके पैकेज नहीं बल्कि पेटेन्ट कीदौड़की जरूरत है। हमारे पास सब कुछ है, हमको केवल शोध और अनुसंधान के साथ उस चीज को आगे बढ़ाने की जरूरत है और इसीलिए मैं आलोक जी, जो मैनेजिंग ट्रस्टी हैं और श्रीप्रदीप अग्रवाल जी जोसीईओहैं,श्रीसिमरनप्रीत सिंह जी जो निदेशक हैं और प्रो.ध्रुव ज्योति चटोपाध्याय जी और आपके सभी जो सह-अध्यक्ष भी हैं, उपाध्यक्ष भी है और कुलपति सिस्टर निवेदिता विश्वविद्यालय की भी हैं, सभी विशेषज्ञ समिति के सदस्य और शिक्षा उद्योग बिरादरीके गणमान्य जितने भी लोग जुड़े हैं जिनके सन्‍दर्भ में मुझे बताया गया हैकि बहुत बड़ी संख्या में आज सभी लोग जुड़े हुए हैं,मैं उन सबका हृदय की गहराई से अभिनंदन करता हूं। जिस बात को मैं कहता हूं कि स्वभाविक है विश्वगुरु भारत और सोने की चिड़िया भारत और आत्मनिर्भर भारत तथा एक भारत एवं श्रेष्ठ भारत। देश के प्रधानमंत्री जी ने कहा है कि 21वीं सदी का स्वर्णिम भारत चाहिए और उस 21वीं सदी के स्वर्णिम भारत के लिए इस समय हमारी नयी शिक्षा नीति उसके आधारस्‍तम्‍भबन करके आई है। जिस बात की चर्चा हुई है कि अंततोगत्वा जनसंख्या हमारे पास है। हमारे पासमार्किट की कमी नहीं है। प्रतिभा की कमी नहीं है तो फिर यह जनसंख्या और प्रतिभा इन दोनों के जो बीच की समस्याएं हैं और जो उसके तमाम विंगहैं उनका कहां गैप रह गया, इस गैप को भरने की जरूरत है और निश्चित ही जिस दिनये गैप भरा जाएगा,उसी दिन विश्‍वगुरू भारत का रूप साकार हो जाएगा। राज कुमार जी ने जो दस महत्वपूर्ण सुझाव दिए  यह सभी सुझाव बहुत महत्वपूर्ण हैं और उस रास्ते पर हम लोग काम कर रहे हैं। आप तो आईओई संस्थान में आते हैं जो बीस ऐसे संस्थान में आता है जिसे अभी हमने उत्‍कृष्‍ट संस्‍थानों के रूप में चुना है उनमें एक आपका भी संस्थान है।इन बीस संस्‍थानों में दस सरकारी और दस गैर-सरकारी संस्थान हैं और जिनमेंविश्व की रैंकिंग में श्रेष्ठता को अर्जित करने के अभियान के लिए आपको एक योद्धा बना कर के मैदान में भेजा गया है। मुझे भरोसा है अपने संस्थानों पर कि वो ऐसी भूमिका निभाएंगे जैसी देश को उनसे अपेक्षा है और निश्चित रूप से वे पूरे विश्व के शिखर पर पहुंचेगे क्योंकि हममें विजन की कमी नहीं है। स्वामी विवेकानंद ने कहा था कि शिक्षा एक व्यक्ति में पहले से ही अवस्थित उत्कृष्टता की अभिव्यक्ति है और हम चाहते हैं कि शिक्षा के द्वारा चरित्र-निर्माण हो, मन औरबुद्धिका विस्तार हो, जिसके द्वारा व्यक्ति अपने पैरों पर खड़ा हो सके। विवेकानन्द जी कहते हैं कि मेरे लिए शिक्षा का सार मन की एकाग्रता है न कि केवल तथ्यों का संग्रह है। स्‍वामी जी यह भी कहते हैं कि शिक्षा आपके मस्तिष्क में डाली जाने वाली सूचनाओं कि मात्रा नहीं है और न ही आपके जीवन में द्वन्‍द पैदा करने वाली है। हमारे पास जीवन –निर्माण, मानव-निर्माण, चरित्र-निर्माण और विचारों के सार्वभौमिक भाईचारे और अपने विश्वास के विचारों को बढ़ावा देने वाली ही शिक्षाहो सकती है। स्वामी जी ने जिस बात को कहा था और जिस बात को अभी हमारे अध्यक्ष जी ने कहा है और आपनेवोकेशनल एजुकेशन और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की अभी चर्चा की है तो मैं समझता हूं कि स्वामी विवेकानंदजी नेसमाज के बारे में जो कहाहै,मूल्यपरकताकेबारे में जोकहा है,समावेशन के बारे में कहा है, भाषा के बारे में उन्होंने जिस बात को कहाहै, अंतर्राष्‍ट्रीयकरण के बारे में कहा है, महिला सशक्तिकरण के बारे में कहा है, आत्मनिर्भरता के बारे में कहा है, विज्ञान और तकनीकी के बारे में कहा है,शारीरिक शिक्षा और उसके चिंतन के बारे में कहा है और मैंने विवेकानंद जी को परा पढ़ने के बाद एक ऐसी बुकलेट तैयार की है, जिसके मुख्‍यविचारों को हमनेअपनी नयी शिक्षा नीति में समाहित किया है। मुझे कहते हुए गौरव महसूस हो रहा है कि विवेकानंद जी के पूरे विजन को हमने नयी शिक्षा नीति में उडेलाहै और निश्चित रूप में हमारा देशविवेकानन्‍दजी का भारत बनेगा और ऐसाभारत बनेगाजो विश्व गुरू भारत के रूप में फिर विश्व में विख्यात होगा और अपनीउस गरिमा को फिर लौटा करके अपना एक आधार खड़ा करेगा। मुझे बहुत खुशी है कि आजस्वामी जी की इसी भावना से प्रेरित आपने बहुत अच्छे तरीके से यह आयोजन किया है। विवेकानंद जी कीकलकत्ता में 31मई, 1893 को उद्योगपति श्रीजमशेदजी टाटा सेमुलाकात हुई थी और तबविवेकानंद जी अपनी परम्पराओं को लेकर के पूरी दुनिया में जा रहे थे। आपको मालूम होगा किविवेकानंद जी ने जमशेदजी को अपनेअनुभवों को सुनाया और अपनी यात्रा के तहत सत्य की खोज में उन्होंने यह भी कहा था कि जो यह उपनिवेशवाद है और जिनके हाथों में भारतीयता का जो अथक परिश्रम है अब उसका उत्पीडऩ और दमन हो रहा है और उन्होंने कहा था कि ऐसा क्‍या हो सकता है जिससे हमारी प्रतिभा औरहमारा औद्योगिकीकरण हमारी भारत की धरती पर खड़ा हो। उन्होंने जापान की अभूतपूर्व प्रगति और भारत में इस्पात के उद्योग की नीवंरखने की जो बात 1893 में जमशेद जी टाटा से की थी औरजमशेदजी ने उपकरणों तथा प्रौद्योगिकी की खोज में भारत को जो एक मज़बूत औद्योगिक राष्ट्र बनाने की दिशा में काम किया औरआज भी हमारे बीच उसका उदाहरण है और तब भी उन्होंने यह कहा था कि क्या माचिस भी जापान से आयात होगी और यह हमारा इतना बड़ा देश हैजोकुछ भी कर सकता है। मुझे आज भी इस बात की खुशी है कि उन्होंने जिस तरीके से 1909में भारतीय विज्ञान संस्थान की स्थापना की और विवेकानंद जी के विज्ञान और देशभक्ति के विचारों से को औद्योगिक संस्‍थानों के साथ समाहित किया। यदि एक विवेकानंद पूरी दुनिया मेंभारत के आध्यात्म को लेकर के, चिंतन को लेकर के पूरे विश्व को शिखर पर पहुँचा सकता हैं और यदि हमारे जमशेदजी अथक मेहनत और प्रयास करने के बाद एक अद्भुत उदाहरण दे सकते हैं और हमारेविज्ञान संस्थान विश्व के शिखर पर अपनी उपस्थिति को महत्वपूर्ण तरीके से दर्ज कर रहे हैं तो इन तीनों चीजों का आज भी समन्‍वय करने की जरूरत है।मुझे भरोसा है कि जिस समय हम इन तीनों को जोड़ेंगे और जो जुड़ भी रहे हैं तबनिश्चित रूप में से यह कार्य हमको बहुत आगे बढ़ाने में मदद करेगा। जब तक हम गांव को आत्मनिर्भर नहीं करेंगे तब तक देश भी आत्‍मनिर्भर नहीं होगा आपको मालूम है कि हमारे देश केगांव सेबड़ा गणतंत्र कोई नहीं था। प्रत्‍येकगांव इस देश के गणतंत्र के रूप में था। उसकी अपनी अर्थव्यवस्था होती थी न्याय व्यवस्था होती थी, सामाजिक व्यवस्था होती थी और तमाम सारी व्यवस्थाएं होती थी और आज भी गांव वही गांव है। आज गांव के साथ किस तरीके से नए पन के साथ काम करने की जरूरत है, जैसा राजकुमार जी ने कहा कि शहरों सेगांवों की ओर जाने की जरूरत है और जो गांव से शहरों में जाने की होड़ लगी तथा विदेशों में जाने की होड़ लगी लेकिन अब हमें भागने के स्‍थान पर आत्‍मनिर्भर भारत बनाना है। एक समय था जब लोगों को लगा कि नहीं, मेरा बच्चा तो विदेशों में पढ़ रहा है तो दूसरे लोगों में भी विदेशों में पढ़ने की तथा पढाने की होड़ लग गई। शोध और अनुसंधान के लिए हमारा देश पूरीदुनिया में जाना जाता है। पूरी दुनिया हमारर कायल होनी चाहिए लेकिन केवल शौकके लिए लोगों ने हौड़ लगा ली कि मैं विदेश में रह रहा हूं और मेरा बेटा भी विदेश में पढ़ना चाहिए सिर्फ इसलिए आज आठ लाख छात्र विदेशों में हैं और इस देश के दो लाख करोड़ रूपये प्रतिवर्ष विदेशों में जाते हैंनहमारा पैसा हमारे काम आता है नहमारीप्रतिभा हमारे काम आती है,यह सबसे बड़ी चुनौती है और उस चुनौती का मुकाबला हमें करना है। विवेकानंद जी ने कहा था कि जितना बड़ा संकट होता है उतनी बड़ी जीत होती है। हमारे देश के प्रधानमंत्रीजी ने भी कहा है कि जितनी कठिन और जितनी बड़ी चुनौती होती है औरयदिताकत के साथ उससेमुकाबला किया जाए तो अवसरों में तब्दील होती है। मुझे भरोसा है इसमें  हमारे लिए पूरा मैदान खाली है और यह बहुत अच्छा अवसर है। उद्योग जगत का मेरी प्रतिभाओं के साथ मिलन होना चाहिए। पीछे के समय जब मैंने आईआईटीका अध्ययन किया तो मुझे लगता था कि एक तरफ उद्योग है और दूसरी तरफ मेरा पाठ्यक्रम है तथा उद्योगों और पाठ्यक्रम के बीच का कोई तालमेल नहीं है और इसलिए यहां का बच्चा विदेश चला जाता था। हमने कहा कि मेरे आईआईटी, मेरे एनआईटी को उद्योगों के साथ जोड़ करके काम करने की जरूरत है और उसमें भी 50 प्रतिशत मेरा पढ़ने वाला बच्चा यहांके उद्योगों से जुड़कर के अनुसंधान करे और उस उद्योग को अपने पढ़ते हुए ही उसकी ऊंचाई तक ले करके जाए। यह प्रैक्टिकल करने की जरूरत है ताकि हमारी प्रतिभा और जो उद्योगहैं तथा जो हमारे संसाधन हैं उन सभीका मेल हो सके और एक नई चीज शोध और अनुसंधान के रूप में आगे आ सके। हमने एक ट्रिपलआईटी कोपीपीपी मोड में एक किया है। उसमें भारत सरकार 50 प्रतिशत का अनुदान देती है तथा 35 प्रतिशत का संबंधित राज्य करता है एवं 15 प्रतिशत का उद्योग करते हैं और यह एक अद्भुत प्रकार का ट्रिपलआईटी बना है। इसके तहत अब हमारे बच्चे बहुत तेजी से आगे बढ़ रहे हैं। इस समय हमने कहा कि 50 प्रतिशत उद्योगों में जाना चाहिए। उस उद्योग में यदि एक बार बच्चा चला गया और उसने अपना समय उद्योग के ऊँचाइयों पर ले जाने में लगाया तो एक तो उस उद्योग को तथा जो उद्योगपति है उसको वरदान के रुप में उनछात्रों की प्रतिभा मिलेगी तो वह संस्‍थान आगे बढ़ता चला जाएगा और वह छात्र भी पढ़ते-पढ़ते हुए योद्धा के रूप में सामने आएगा और अपने स्टार्टअप के रूप में वह आगे जाएगा तथा नौकरी के लिए नहीं दौड़ेगा बल्कि वह तो नौकरी देने की कवायदकरेगा।  आज परिवेश तेजी से बन रहा है तथा बढ रहा है इसलिएहमें पीछे की बातों को ढोनेकी जरूरत नहींहै क्योंकि वक्त केएक-एक पल को संजोकरहम इतिहास को बदल सकते हैं। अब यदि अर्थनीति की मैं बात करूं तो कौटिल्य से बड़ा अर्थशास्त्री कौन हो सकता है लेकिन जब कौटिल्य को हमने पढ़ाया ही नहीं और जब कौटिल्य को हमने पढ़ा ही नहीं तथा भारत के गांवों को देखा ही नहीं तबभारत के बारे में हमारी प्रतिभा कैसे विचार करेगी। आज जरूरत इस बात की है। मैं सोचता हूंकि हमारे से ज्यादा समृद्धतातो पूरी दुनिया में किसी के पास नहीं थी। आयुर्वेद जो आयु का विज्ञान हैऔर कौन दुनिया का व्यक्ति है जो जीवित नहीं रहना चाहता, सुखी नहीं रहना चाहता, जो शारीरिक रूप से सक्षम और मानसिक रूप से समृद्ध नहीं होना चाहता यदिशरीरसही नहीं है और मन सही नहीं है तो व्यक्ति का तो अस्तित्व हीनहीं रहेगा तो उसको उन संपदाओं से क्या लेना है और इसीलिए मनुष्य जो ईश्वर की सबसे सुंदरतम कृति है इसको ठीक रखने का माद्दाहिंदुस्तान की धरती पर है।आयुर्वेद की बात करने वालाचरकतथाउसकी चरक संहिता आज भी इसदेश के अंदर है। पूरी दुनिया अब यह महसूस करने लग गई किहां यदि शाश्वत चिकित्सा कोई है तो वो आयुर्वेद में है और तमाम व्याधियों कायदिसमाधान हो सकता है तो आयुर्वेद में हो सकता है।क्‍याहमने उनजड़ी-बूटियों के साथ अपना समन्‍वयकिया?क्‍याहमनेसंजीवनी बूटी के साथ समन्‍वयकिया? क्‍या हमने जड़ी-बूटियोंके दोहन और उनकेउत्पादन पर काम किया?क्या आयुर्वेदपरशोध और अनुसंधान हुआ? यदि नहीं हुआ तो अब इसकी जरूरत है।वास्‍तव में यह चीज हमारी है और दुनिया वाले पढ़ रहे हैं तथा हमको बता रहे हैं, यहउल्टा हो रहा है। हमको अपनी चीज को उन्‍हेंबताना चाहिए था कियहचीज हमारे पास है।आज जर्मनी 14-14 संस्कृत के विश्वविद्यालय खोल रहा है औरवहांहोड़ लगी हुई हैक्‍योंकिउनको मालूम है कि संस्कृत में ऐसे ग्रंथ हैं, वेद पुराण हैं, उपनिषद हैं और कृषिसे लेकर योग तथाआयुर्वेदतक ऐसे सूत्र हैं जो पूरी दुनिया में आगे बढ़ा सकते हैं। वो हमारी चीज है हम उस परअध्‍ययन करेंगे लेकिन जब हम इस देश में इस बात को कहेंगे तो लोग हास्यास्पद स्थिति में जाएंगे। अनेक लोग कहेंगे कि अभी अमेरिका ने नहीं बोला है। इसका मतलब जब अमेरिका वालेबोल दें तो हम करेंगे। इसलिए इस मानसिकता को चेंज करने की जरूरत है। मुझे भरोसा है कि जो वर्तमान समय है और उसकी जो युवा पीढ़ी है और जो आप सब लोग हैं वे इस बात को न केवल समझतेहैं बल्कि आप इसमेंलीडरशिप ले रहे हैं। मुझे खुशी होती है। मैं इस देश की सभी आईआईटीज को, ट्रिपलआईटी को,आईसर को, एनआईटी को तथा एनआईआरएफ में जो टॉप हंड्रैड हमारेविश्‍वविद्यालय हैं, जब मैंइन सबकी समीक्षा करता हूं तो मुझे लगता है कि हम क्या नहीं कर सकते हमारा देश तो यंग इंडिया रहने वाला है और आगे 35 सालों तक हम कुछ भी कर सकते हैं। ऐसा नहीं कि शोध और अनुसंधान की कमी है और ऐसा भी नहीं कि प्रतिभा की कमी नहीं है और ऐसा भी नहीं है कि पाठ्यक्रम की कोई कमी है।यदि ऐसाहोता तो मैं समझता हूं कि राजकुमार जी आप और आपकी पूरी टीम जानती है कि चाहे वो गूगल है और चाहे माइक्रोसॉफ्ट है अथवाचाहे दुनिया की कोई भीशीर्षकंपनी है, उसका सीईओ हमारी धरती से पढ़कर के पूरी दुनिया की लीडरशिप ले रहा है। यदि हमारीप्रतिभा ठीक  नहीं थी तो हम कैसे लीडरिशप ले सकते थे,अभीमैंने सारे आईआईटीज को कहा कि आपके छात्र कहां-कहां पढ़ रहे हैं इसकी जानकारी इकट्ठा करो मुझे ख़ुशी होती है हमारे छात्र पूरी दुनिया में छाए हुए हैं। यह हमारी ताकत है औरउस ताकत को हिंदुस्तान की धरती पर हिंदुस्तान के लिए उपयोग करना है। इसलिएमेरे देश के प्रधानमंत्री जी ने आत्मनिर्भर भारत की बात कीहै। ऐसी विषम परिस्थितियों में भी 20 लाख करोड़ रुपया का पैकेजघोषित कर देना जब दुनिया संकट से गुजर रही है और त्राही-त्राही की आवाजआ रही है। हमारे देश के प्रधानमंत्री आत्मनिर्भर भारत के विषय में सोचते हैं और उसके लिए 20 लाख करोड़ कई विधाओं में अलग-अलग करके करना है। आज पूरी दुनिया में इन विषम परिस्थितियों में भी हमआगे बढ़े हैं। हमकोरोनाकाल में हीनई शिक्षा नीति को लाये हैं। हमने कोरोना काल में दुनिया को बताया कि भारत खड़ा है औरहमनेजेईई और नीट जैसी परीक्षाओं को कराया। नीट दुनिया की कोरोना काल की सबसे बड़ी परीक्षाहमने करवाई है। हमने बच्चों का एक वर्ष खराब नहीं होने दिया है। आप समझ सकते हैं कि कुल अमेरिका की जितनी आबादी नहीं है उससे ज्यादा इस देश केछात्र-छात्राएं। हैं उनको हम ऑनलाइनपर लाए हैं। अचानक जब पूरी दुनिया घर में कैद हो गई हो और उसके बाद भी ऐसी परिस्‍थितियांमें जहां ऐसी संभावनाएं हो गई हों वहां हम ऑनलाइन पर जाए। दुनिया का शायद यह रिकॉर्ड होगा कि 33 करोड़  विद्यार्थियों को ऑनलाइन पर एक साथ लाना कोई मजाक कीबात नहीं थी और यह कार्य सहज नहीं था। यह चुनौती भरा कदम था लेकिन उस चुनौती का मुकाबला करके हमने उसको साबित किया है और इसीलिए जब दुनिया के देशों ने अपने को एक-एक, दो-दो साल पीछे कर दिया हो ऐसी चुनौती भरे समय में हमने अपने छात्र-छात्राओं की सुरक्षा भी की तथा उनकी रक्षा भी की और उनके भविष्य को संवारने मेंभी कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। चाहे उच्‍च शिक्षा हो अथवा चाहे हमारी स्कूली शिक्षा हो हमने हर क्षेत्र में कार्य किया। इसलिए मैं समझता हूं कि अभी रोजगार की दिशा में भी मेरेदो-तीननिवेदन है कि यह जो नई शिक्षा नीति आई है, उसके तहत हम कक्षा छह से हीवोकेशनलशिक्षा लाए हैं। यहदेश के इतिहास में पहली बार हो रहा है, जब वोकेशनल एजुकेशन हम छठवीं कक्षा से ही शुरू कर रहे हैं और वो भी इंटर्नशिप के साथ कर रहे हैं। छठवीं में पढ़ने वाला बच्चा अपने अगल-बगल में क्या-क्या कर सकता है, वो खेतों के बीच रहता है तो खेतों में क्या कर सकता है। वो फैक्ट्रियों के बीच में जाकर के क्या कर सकता है। यदि वो बीहड़ क्षेत्र में कहीं रहता है तो वो वहां पर क्या कर सकता है तथा वहां पर क्या संसाधन है। हमारे देश के संसाधन और उसकी आय तथाप्रतिभा इनतीनों का मिश्रण कभी नहीं हुआ और कभी उन्‍हें जोड़ा ही नहीं।इसलिए छठवीं कक्षा से ही केवल कागजी ज्ञान हीनहीं।बल्कि प्रैक्टिकल करेगा हमारा विद्यार्थी।छठवीं, सातवीं, आठवीं और बारहवीं तक आते-आते वह एक योद्धा के रूप में स्‍वयं के पैरों पर खड़ा होगा।हमारी जो शिक्षा नीतिहै उसपर मुझे कोई टिप्पणी नहीं करनी है लेकिन आज परिवर्तन करना है। नई शिक्षा नीति इन्‍हींविशेष आयामों तथाव्यापक परिवर्तन और रिफॉर्म के साथ दुनिया का सबसे बड़ा विचार विमर्श और बड़े रिफॉर्मकेसाथनई शिक्षा नीति आई है। अभी कुछ दिन पहले ब्रिटेन के विदेश मंत्री जी के साथ मेरे आवास पर एक मीटिंग थी तो उन्होंने बहुत खुशी व्यक्त की। उन्होंने कहा किमैंने अब बहुत बड़ा अध्ययन किया लेकिन यह शिक्षा नीति तो पूरे विश्व के लिए संजीवनी है। अभी कल रात को 11 बजे तक नेहरू केंद्र लंदन में शायदराजकुमार जी भी जुड़े रहे होंगे और जॉनसन जी जो वहां के पूर्व-शिक्षा मंत्री रहे हैं और वहां के प्रधानमंत्री जी के छोटे भाई हैं तथाबहुत ही श्रेष्‍ठ पत्रकार भी हैं, वे भी जुड़े थे और उन्होंने कहा कि यह जो शिक्षा नीति है अद्भुत है। मैंने इसकी एक-एक चीज को पढ़ा है। उनसे पहले संयुक्त अरबअमीरात के शिक्षा मंत्री तथा तमाम दुनिया केदेश आज हमारी नई शिक्षा नीति के लिए लालायित हैं। वेचाहते हैं कि हम हिन्दुस्तान के साथ आएं और उनसेसमन्‍वयकरें और हम भी चाहते हैं कि हम दुनिया के श्रेष्ठ विश्वविद्यालयों को अपनी धरती पर लाएं। इसलिएआठ लाख छात्र जो हमारे पढ़ रहे हैं विदेशों में, उनके लिए हमने ‘स्‍टडी इन इंडिया’ को किया है और मुझे खुशी है कि दुनिया के छात्र अबहिंदुस्तान में पढ़ने के लिए तेजी से आ रहे हैं। पीछे के समय कोरोना काल में 50 हजार से भी अधिक विद्यार्थीतो‘स्‍टडी इन इंडिया’के तहत नामांकन हुए, बहुत तेजी से लोगों ने नामांकन किया और मुझे खुशी है कि मैंने जब उससमय कहा कि ‘स्टे इन इंडिया’ अपने छात्रोंऔर अभिभावकों को कहा कि अब जरूरत नहीं है दुनिया में जाने की आपको सब कुछ यहां पर मिलेगा। अब प्रारंभिक शिक्षा से हमने टेन प्‍लस टू को खत्म कर दिया। अब हमने5+3+3+4 कर दिया और फाइव को भी थ्री प्लस टू में बदल दिया। तीन वर्ष का बच्चा सर्वाधिक सोच और विचार रख सकता है और वैज्ञानिकों ने कहा है कि 85 प्रतिशत मस्तिष्क का विकास उसका इसी समय होता है और हम भी जानते हैं कि हमको बचपन कितना याद रहता है। उसके बाद 10वीं तथा 12वीं के बाद तो न जाने कितने थपेड़े हम सहते हैं,कहां याद रहता है। लेकिन हां, इस आयु में जाने के बाद असली जो बचपन की यादें हैंआपभुलाने से वे भूल नहीं सकते।यह समय मस्तिष्क पर एक ऐसी छाप छोड़ जाता है जो सदैव अमिट रहती है। हमें  बच्‍चे के आत्मविश्वास की छाप चाहिए तथा उसकी प्रखरता की छाप चाहिए। उसके विजन की छाप चाहिए, जिधर जाना है उसको वो छाप अंकित रहनीचाहिए और इसीलिए हम उस अवसर को भी चूकना नहीं चाहते। इसलिएतीन वर्ष से ले करके हम और आगे बढ़ रहे हैं तथाछठवीं कक्षा से हीहमवोकेशनल स्ट्रीम इंटर्नशिप के साथ देंगे तथा हम स्कूली शिक्षा से हीआर्टिफिशियलइंटेलिजेंसभी सुनिश्‍चित कर रहे हैं और मुझे लगता दुनिया का हमारा पहला देश होगा जब स्कूली शिक्षा में आर्टिफिशल इंटेलिजेंस को शुरू करेगा और हमको मालूम है कि हमारी प्रतिभाएं किस-किस तरीके की हैं। अभी कुछ दिन पहले राष्ट्रपति भवन में हमारे केन्द्रीय विद्यालय की एक भाषा लैब का उद्घाटन था। महामहिम राष्‍ट्रपति जी की श्रीमती जी जो देश का पहली महिला हैं उन्होंने उसका उद्घाटन किया। बच्चों से पूछा उन्होंने जो-जो एैपतैयार किये। 10वीं और 12वीं के बच्चों ने कहाकिबस हमको एक महीना और दे दीजिएहमबहुत कुछ और बताना चाहते हैं। अभी हमने ‘स्मार्ट इंडिया हैकाथन’ किया और जब देश के प्रधानमंत्री जी5ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था की बात कर रहे हैं तो हमें विचार करना होगा कि अभीछोटी-छोटी चीजें कैसे संयोजित हो सकती हैं। अभी हमने पीछे के दिनों में ‘टॉयहैकाथान’किया था। इस देश में 10 हजार करोड़ के तो खिलौने आरहे हैं बाहर से और वो भी 80 प्रतिशत बाहर से आ रहे हैं। जबकि इस देश में इतनी सामर्थ्‍यहै और 7 लाख करोड़ का विश्व का मार्केट हैखिलौनों का,हमक्या नहीं कर सकते। हम तो पूरे विश्व के इस मार्केट पर छा सकते हैं। यहां से बाहर खिलौने जाएंगे तो हम कैसे करके खिलौनों को पर्यावरण के अनुकूल तथा हमारे सांस्कृतिक के अनुरूप निर्मित करके विश्‍व के सामने रख सकते हैं, इस सन्‍दर्भ में काम करने की जरूरत है। इसीलिए हम लोगों ने अभी इसकाहैकाथान किया है जब पीछे की समय में हमने हैकाथनकिया था, मुझे याद आता है कि प्रधानमंत्री जी उसके समापन पर आए थे और बाद में उन्होंने देखा कि 83 स्टार्ट अपहैकाथनसे निकले।मैं समझता हूं कि जिस दिन यह माहौल हमारा बनेगा उस दिन हम लोग बहुत आगे बढ़ेंगे। अभी आपको मालूम है कि इस बीच इस तरीके का परिवेश बना है, आज टाइम्स का जो सर्वे आया हैजो पहले रोज़गार की दिशा में भारत23वें स्थान पर था इस समय उसकी रैंकिंग 15वें स्थान पर आ गई है। हमनेविषम परिस्‍थितियों में भी छलांग मारी है। अब मैं समझता हूँ जब नयी शिक्षा नीति आ गयी हो है और नई शिक्षा नीति वोकेशनल ट्रेनिंग औरआर्टिफिशल इंटेलिजेंस के साथ 360 डिग्री का होलिस्टिक मूल्यांकन भी करेगी। इस नीति के तहत बच्चा अपना स्वयं मूल्यांकन करेगा, अभिभावक भी उसका मूल्यांकन करेगा, अध्यापक भी करेगा, उसका साथी भी करेगा और इस प्रकार 360 डिग्री उसका होलिस्टिक मूल्यांकन होगा। जिससे उसका आत्मविश्वास आगे बढ़ेगा।इस शिक्षा नीति के अंतर्गत यदि कोई 4 वर्ष का कोर्स है और यदि कोई छात्र दो साल में परिस्‍थितिवशछोड़के जा रहा है  तो पहले उसका पैसा एवं वर्ष खराब हो जाते थे लेकिन अब उसकोनिराश नहीं होना पड़ेगा।यदि आप परिस्‍थितिवश एक वर्षमें छोड़ कर जा रहे हैं तो उसको सर्टिफिकेटदेंगे,दो साल में छोड़ कर जा रहा है तो डिप्लोमा देगें, तीन साल में छोड़कर जा रहा है तो उसकोडिग्री देंगे लेकिन यदि फिर वह लौट कर अपने भविष्य को संवारना चाहता है तो फिरउसने जहां से छोड़ा था वहीं से शुरू कर सकता है। उसके लिए हम एक ऐसा क्रेडिट बैंक बनायेंगे जहां उसके सारे क्रेडिट जमा होंगे,इसलिए उसके लिए आगे बहुत आपार संभावनाएं है।वह कहां जाना चाहता है,क्‍या वह शोध और अनुसंधान के क्षेत्र में जाना चाहता है।वहां हमने ‘नेशनलरिसर्च फाउंडेशन’ की स्थापना की है,जो कि प्रधानमंत्री जी के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार की अध्यक्षता में होगी, जो शोध की संस्कृति को तेजी से आगे बढ़ाएगी। वहींहमनेतकनीकी के क्षेत्र मेंअंतिम छोर के व्यक्ति तक कैसे पहुंचा सकते हैं इसके लिए ‘नेशनल एजुकेशन टैक्‍नोलॉजीफोरम’का भी गठन कर रहे हैं,जिससेतकनीकी दृष्टि से भी देश समृद्ध हो सके। अभी आप चर्चा कर रहे थे कि ‘वोकल फोर लोकल’ और ‘लोकल फोर ग्लोबल’ उसको भी हम लोकल से ग्लोबल तक लेकर जाएंगे। यहहैरास्ता और इस रास्ते में हमकोतेजी से काम करना है।यहबात सही है कि देश के प्रधानमंत्री जी ने एक नये भारत को बनाने की बात की है।वह नया भारत सुन्दर भारत हो, स्वस्थ भारत हो,सक्षम भारत हो, समर्थ भारत हो, आत्मनिर्भर भारत हो,श्रेष्ठ भारत हो क्योंकि भारत केजीवन-मूल्य उसकी श्रेष्ठता रही है। हम ज्ञान-विज्ञानमें आगे बढ़ें हैं। सुश्रुत शल्य चिकित्सा का जनक इसी देश में पैदा हुआ है। रॉड स्मिथ ने जब अपने मेल में पत्र लिखा था तो उन्होंने कहा था कि हम भारत के ऋणी हैं जिन्होंने आज पूरी दुनिया को गणित दिया है। पूरी दुनिया को आर्यभट्ट और भास्कराचार्य जैसेवैज्ञानिक हमने दिए हैं। आज भी उनकी थातीहमारे पास है और उसको आगे बढ़ाने की ज़रूरत है। इसलिए मैं समझता हूँ चाहे जितने भी पीछे के लोगों को आप देखेंगे तो आपकी समृद्धता बढ़ती जाएगी। आपको लगेगा इन सूत्रों को क्यों पीछे छोड़ दिया हालांकि परिस्‍थितिथी और उसपर अबज्यादा चिंता करने की ज़रूरत नहीं है। हमारा इतना बड़ा देश गुलाम हुआ हालांकि आज इस पर बात करने का अवसर नहीं है लेकिन विचार जरूरत है हमारे पास प्रखरता की कमी नहीं थी लेकिन आखिर कौन सा कारण था कि इतना बड़ा देश जब चाहे तब गुलाम हो जाता है और तब सैकड़ों लोग अपनी कुर्बानी को देकर देश को आजाद करते हैं और इसीलिए यह हमारा जो आर्थिक तंत्र है यहमजबूत होना चाहिए।हमारी तकनीकी शिक्षा मजबूत होनी चाहिए। हमारे संस्कार भी उतने ही प्रखर  और मज़बूत होने चाहिए। नई शिक्षा नीति बोलती भी है औरदेश के प्रधानमंत्री भी कह रहे हैं कि इस देश को एक अच्छा नागरिक चाहिए लेकिन साथ ही विश्व मानव भी चाहिए क्योंकि हमने कहा है कि यह पूरा विश्व हमारा कुटुम्ब है। हमारा विचार कितना बड़ा हैदुनिया के देशों ने इस संसार को बाजारबोला है लेकिन हमारे लिए वह बाजार नहीं है। हमारे लिए बाजार और परिवार में बहुत अंतर हैऔर उस परिवार के लिए हमने ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया सर्वे भद्राणी पश्‍यन्‍तु मा कश्‍चिद् दु:ख भाग्‍भवेत’की प्रार्थना की है अर्थात्धरती पर जब तक एक इन्सान भी दुखी होगा तब तक में सुख का एहसास नहीं कर सकता। इससे बड़ा विचार दुनिया में किसका हो सकता है। इस विचार को लेकर जब दुनिया के सामने खड़े होते हैं तो दुनिया नतमस्तक होती हैं। इसलिए मुझे लगता है कि आज दुनिया को हिन्दुस्तान की जरूरत है, पूरी दुनिया में सुख शांति और समृद्धि का रास्ता हिन्‍दुस्‍तानसे होकर गुजरता है। यूएनओ ने भी कहा है कि जो सतत विकास के लक्ष्य 2030 है इसका रास्ता भारत से ही होकर के जाता है और यह बात सही है कि भारत से हीकरके गुजरेगा। इसलिए भारत को कम आंकना पूरी दुनिया के लिए एक भूल होगी। मुझे इस बात को कहते हुए गौरव महसूस होता है कि देश के प्रधानमंत्री ने पूरी ताकत के साथ लीडरशिप लेकर केहर क्षेत्र में आगे बढ़ने का जो मन बनाया है पूरा देश आजखड़ा हो रहा है। आप देखिए ना वैक्सिन को लेकर पूरी दुनिया में हाहाकार मचा है। हमने टीकाकरण परिदृश्यों का कीर्तिमान स्थापित किया। यह हमारी ताकत है। कमजोर आदमी एक दूसरे पर लांछन लगाता है, काम नहीं करता। आपने देखा होगा जो आदमी जितना कामचोर होता है उतना बड़ा आलोचक हो जाता है। जो करता है वो बोलता नहीं है क्‍योंकि वो उसको करके दिखाते हैं। मैं देश का शिक्षा मंत्री जरूर हूं लेकिन मैंने बहुतकठिनरास्ते से यात्रा की है। मैंने एक सामान्य शिक्षक से लेकर के देश के शिक्षा मंत्री तक की यात्रा तय की है। इसलिए मैं महसूस कर सकता हूं उन कठिनाइयों को, उन बातों को, उन पीड़ाओं को और उस संघर्ष को औरइसलिए मुझमें भरोसा भी है। मुझे भरोसा है कि यह देश खड़ा हो रहा है बहुत तेजी से। हमने पीछे के सौ डेढ़ सौ सालों की गुलामी के थपेड़ों के सहा है लेकिन आज हम फिर आत्मबल के साथ खड़े होंगे। सारी दुनिया भी महसूस करती हैकिहिन्दुस्तान विश्वगुरु के रूप में बढ़ रहा है। अभी दो-तीन दिन पहले कनाडा से जुड़ा हुआ था और कनाडा ने एक सम्मान मेरे साहित्य पर दिया। लेकिन जब कनाडा के लोग जुड़े तो उनकी जो भावनाएँ थीवोसमझ में आईकि पूरी दुनिया किस तरीके से हिन्दुस्तान के साथ जुड़ रही है। मुझे भरोसा है कि जिस तरीके से परिवेश अभीबन रहा हैं और जिस तरीके से हम आगे बढ़ने की कोशिश कर रहे हैं और जिस इनोवेशन के साथ और विश्व स्तरीय पाठ्यक्रम के साथ हमने भारतीय विश्वविद्यालयों को एक नया मॉडल देने का काम किया है आत्मनिर्भरता के समन्वय के साथ हमने कहा है कि सभी विश्‍वविद्यालय‘उन्नत भारत अभियान’ के तहत गांव में जाओ औरचार-पांच गांवों को चुनो और मॉडल तैयार करो। हम देखना चाहते हैं कि हममेंकितनीक्षमता है। यह मेरे विश्वविद्यालय कुछ डिग्री के लिए नहीं है, विश्वविद्यालयों को भी यह ताकत के साथ साबित तो करना पड़ेगा कि उसकी जो क्षमता है वो जमीन पर कितनी उभरकर आती है और इसकी जरूरत है। मैं जबविश्वविद्यालयों के साथ बातचीत करता हूं तो मुझे आशा होती है क्योंकि परिवेश बनरहा है। वे भी चाहते हैं और ऐसा नहीं हैकि नहींचाहते हैं, सब चाहते हैं और ताकत के साथ चाहते है। इसलिए जो यह नयी शिक्षा नीति है, निश्चित रूप में नये भारतकी आधारशिला बन करके बहुत तेजी से आगे बढ़ रही है। प्राथमिक शिक्षा हम मातृभाषा में कर रहे हैं इससेकिसी काविरोध करने का कोई सवाल नहीं उठता है। अपनी मातृभाषा में अभिव्यक्ति बाहर निकल सकती है औरनिकलनी भी चाहिए। देश के प्रधानमंत्री जी ने कहा है कि हम मातृभाषा में इंजीनियर भी और डॉक्टर भी देंगे। कितनी खुशी है गांव के बच्चों को आप समझ नहीं सकते। मेरे पास मेल आते हैं, मेरे पास संदेश आते हैं, इतने खुश है कि हमभी डॉक्टर बन सकते हैं इंजीनियर बन सकते हैं क्योंकि उनको भाषाकी मार पड़ती थी और इसलिएउभर नहीं पाते थे। भाषा कभी किसी के विकास में अवरुद्ध नहीं होनी चाहिए।दुनिया के तमाम देश जापान, इंग्लैण्ड, जर्मनी, चीन, रूस, इजराइल सभी देश अपनी मातृभाषा में पढ़ाते है। यहसभी देश किसी से पीछे तो नहीं है। हमारी यह तो तो खूबसूरती है, हमारी ताकत है। हमारी उन मातृभाषाओं में वहांका जो ज्ञान है, विज्ञान हैं उसे अनुसंधान के द्वारा लोकल से जोड़ेंगे औरफिर भारत खड़ा होगा। सदा देदीप्यमान ऐसा राष्ट्र बन जाएगा जिसमें विचार भी होगा व्यवहार भी होगा संस्कार भी होंगे प्रखरता भी होगी ज्ञान भी होगा विज्ञान भी होगा नवाचार भी होगा क्योंकि लोगों मेंनवाचार हो सकता है और एक श्रेष्ठता तक विज्ञान में भी बढ़ सकते हैं लेकिन जो हमारी आधारशिला हमारे जीवन मूल्यों की है, वो सहज नहीं हो सकती है। जीवन मूल्य हमारी संस्‍कृति हमको देती है। इसकी आधारशिला पर खड़े होकर के हम विश्व में आगे बढ़ सकते हैं। हमारी एआईसीटीई ने बहुत सारे कार्यक्रमों को चाहे वह आत्मनिर्भर भारत हो,चाहे वह नवाचार एवं स्टार्टअप की नीति हो, कपिला हो, योजनाओं के क्रियान्वयन का विषय हो, उच्च शिक्षण संस्थान में नवाचार करने का विषय हो,मुझे लगता है कि इतने सारे कार्यक्रम इस बीच हम लोगों ने दिए है और दे रहे हैं। हमारे केंद्रीय विश्वविद्यालय भी अपनी ताकत के साथ उभररहे हैं और जो नई शिक्षा नीति है उसमें पूरा मैदान खाली है। नयी शिक्षा नीति भारतीय ज्ञान परंपरा के आधार पर भी खड़ी है। यहनेशनल भी है, इंटरनेशल भी है, यह इनोवेटिव भी है और इन्क्लूसिव भी है  तथा यह सामान्य नहीं है।यह नीति अपने दृष्टिकोण एवं विचार-विमर्श में सबको समाहित करने वाली है औरइनोवेटिव नवाचारों के लिए किसी भी शिखरतातक पहुंचाने की इसमें क्षमता है।यह इम्पैक्टफुल भी है और इन्क्लूसिव भी है तथा यह नीतिबिना किसी भेदभाव के प्रत्‍येक वर्ग तक पहुंचती है और यह इक्विटी,क्‍वालिटी और एक्सेस कीआधारशिला पर खड़ी है। यह इसकी खूबसूरती है और इसीलिए हम अपने कंटेंट औरटैलेंट को भी खोजेंगे तथा उसेविकसित भी करेंगे। टैलेंट का विस्तार भी करेंगे और इस टैलेंट के साथ उत्कृष्ट कोटि का कंटेंट देंगे और उसको जोड़ करके और नया पेटेंट निकालेगें, यही है इसका सूत्र और मुझे लगता है इसपर बहुत तेजी से काम शुरू हो गया है। हम निश्चित रूप में आगे बढ़ेंगे मुझे भरोसा है और जो आपने यहवेबिनारकिया है, मुझे खुशी है और जो यह स्वायतता की बात हमने कही है विश्वविद्यालयों को हम भी इसके पक्ष में हैं और जिस दिन जवाबदेही सुनिश्चित हो जाएगी उस दिन स्वायत्तता हर हालत में होगी। स्वायत्तता तो चाहिए क्‍योंकिजब तक आप किसी को खुला मैदान नहीं देंगे तब तक वह कैसे दौड़ेगा। जैसे राजकुमार जी आप जैसे 20 लोगों को हमने स्वायतता दी है और हम चाहतें आप दौड़े तथा हम आपके पीछे हैं। आप विश्व के शिखर पर ले करके चले जाएं कि यहहैमेरे देश की शिक्षा और यह हैहमारी अर्थव्यवस्था तथा यह है हमारा सामाजिक संबंधन। हम पूरी दुनिया में बिल्कुल अलग हैं। हम हर दृष्टि से श्रेष्ठ है यहीहमारा सूत्र है। हम इस देश को अर्थ की महाशक्ति भी बनाएंगे और हम ज्ञान की महाशक्ति भी बनाएंगे और हम व्यवहार की और अपनी इस समृद्धता की भी महाशक्‍तिबनाएंगे। हम अपने आचार-विचार और व्यवहार और जो हमारेजीवन मूल्य हैं, उसकी आधार शिला पर भी खड़ा करेंगे।हमें मनुष्य को मनुष्य बनाना है मशीन नहीं बनाना हैऔर इसलिए मुझे लगता है कि यह जो आपने आज वेबिनार किया है, इसके लिए मैं आपको तथाआपकी पूरी टीम को बधाई देना चाहता हूं।

 

बहुत-बहुत धन्‍यवाद!

 

कार्यक्रम में गरिमामयी उपस्‍थिति:-

 

  1. डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’, मानननीय शिक्षा मंत्री, भारत सरकार
  2. श्री विकास अग्रवाल, अध्‍यक्ष, आईसीसी
  3. डॉ. राजकुमार

 

 

 

 

शिक्षा संवाद: केन्‍द्रीय विद्यालयों के विद्यार्थियों के साथ संवाद

शिक्षा संवाद: केन्‍द्रीय विद्यालयों के विद्यार्थियों के साथ संवाद

दिनांक: 18 जनवरी, 2021

 

माननीय शिक्षा मंत्री, डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’

केन्‍द्रीय विद्यालय संगठन के इसशिक्षा संवाद में पूरे देश से जुड़े मेरे सभी केंद्रीय विद्यालयों के छात्र-छात्राएं, सभी अध्‍यापकगण,सभी अभिभावकगण, यहां पर उपस्थित हमारे साथ केन्द्रीय विद्यालय संगठन की आयुक्त सुश्री निधि पाण्‍डे जी, केंद्रीय विद्यालय संगठन के उपाध्यक्ष और संयुक्‍त सचिव श्री राम चंद्र मीना जी, भारत सरकार की संयुक्त सचिव स्‍वीटी जी,अपर आयुक्त लक्ष्मीजी, यहां के सभी प्राचार्यगण,अध्यापकगण और छात्र-छात्राओं! इस अवसर पर मैं आप सबको बहुत बधाई और शुभकामनाएं देना चाहता हूं।मेरेप्रियछात्र-छात्राओंआपसब लोगों को और आपकेअभिभावकगण को भी।अभी केंद्रीय विद्यालय की आयुक्त जब बोल रही थी तो उन्होंने कहा कि अचानक कोरोना का संकट आया तथापूरी दुनिया इससे गुजरी और किसी को पता नहीं था, यहां तक की पूरी दुनिया को औरहमारे देश को भी पता नहीं था। हमको भी पता नहीं था, ना हमारे अध्यापकगण को पता था, ना अभिभावकको पता था, नाहमारे छात्र-छात्राओं को पता था लेकिन यह संकट अचानक आया और पूरी दुनिया संकट के गहरे बादल छा गए औरदेखते ही देखते पूरी दुनिया जैसे कैद हो गई। ऐसे समय में जब चुनौती होती है तो उस समय असली परीक्षा होती है जीवन की।किसी के भी महान जीवन को हम जबलिखते-पढ़ते हैं तो उन चीजों को अपने जीवन में ग्रहण करते हैं। व्‍यक्‍ति को साहसी भी होना चाहिए, पुरुषार्थी भी होना चाहिए, शालीन भी होना चाहिए, प्रखर भी होना चाहिए, आत्मविश्वासी भी होना चाहिए, विनम्र भी होना चाहिए और इनका समन्वय भी होना चाहिए। यह समन्‍वय हम कई प्रकार के माध्यम से करते हैं। यथा पाठ्यक्रम के माध्यम से, संवाद के माध्यम से, विचार-विमर्श के माध्यम से, प्रतियोगिताओं के माध्यम से से, परीक्षाओं के माध्यम से हम इन सब चीजों को करते हैं।लेकिनजब पढ़ाई पूरी होती है तो फिर मैदान खाली होता है और उस समय असली परीक्षा जीवन की वहां से शुरू होती है। जब अपनी पढ़ाई को पूरा करने के बाद उसको प्रदर्शित करने का आपको मौका मिलता है और इस समय इस कोरोना काल ने आपको वो मौका पहले ही दे दिया। इस समय सब की परीक्षाएं थी और स्वतः स्फूर्त परीक्षाएं थी। यह कोई अध्यापक नहीं ले रहा था तथाकोई शिक्षक नहीं ले रहा था या कोई माता-पिता आपकी परीक्षा नहीं ले रहे थे। आपके माता पिता की भी परीक्षा थी, तो आपकी भी थी, तो आपके जो इधर बैठे लोग हैं इनकी भी थी,तो मेरी भी थी, मेरे देश के प्रधानमंत्री की भी थी,पूरी दुनियाकी थी। सबकी परीक्षा थी सबको अपनी-अपनी परीक्षाएं देने में एक-एकक्षण,बल्कि एक-एक श्‍वांसक्योंकि जब संकट की घड़ी होती है तब दिन नहीं होता,महीनेनहीं होते, सप्ताह भी नहीं होता बल्कि घंटे भी नहींहोते हैं वो क्षण होते हैं। अगला क्षण ताकत के साथ संजोना है औरउसका मुकाबला करना है। एक-एक क्षण का मुकाबला करते हुए हम लोगों ने इस कोरोना काल में अपने को भी बचाया है, अपने परिवारिक जनों को भी बचाया है तथा अपने अड़ोस-पड़ौस को भी बचाया है और मैं लगातार आपसे संवाद करता रहा हूं। मैंने आपसे लगातार यहनिवेदन किया और आपका आह्वानकिया कि न केवल आप अपने को बचाएंगे बल्‍कि आपको अपने परिवार की लीडरशिप भी लेनी है। आपको अपने अगल बगल केपरिवारतथाजो निकटवर्तीहैं, उनकी भी लीडरशिप लेनी हैं और यह आपको साबित करना है कि हां, हम छात्र-छात्राएं न केवल अपने को सुरक्षित रखेंगे बल्‍कि अपने अगल-बगल को भी सुरक्षित रखने की आपमें ताकत है और वोआपने किया। मैं आपको बधाई देना चाहता हूं एवं शुभकामनाएं देना चाहता हूं कि आपमेंबहुत अच्छे तरीके से हर परीक्षा को किया। जब मैंने संवाद में कहाथा आप अकेले पड़ रहे हैं तब भी मैंने कहा था कि आप अकेले कभी नहीं पड़ेंगे। आपने‘माई बुक, माई फ्रेंड’ एक अभियान लिया था और बहुत सारे छात्र-छात्राओं ने मुझसे अपने अनुभवों को बांटा और कहा कि यह तो पहली बार हमने ऐसी पुस्तक पढ़ी और यह पुस्‍तक ही हमारी असली मित्र थी। अब बातचीत भले ही नहीं हो पा रही है लेकिन वो पुस्‍तक न केवल मित्रबनकर आपके साथ आई बल्कि उससे आपका ज्ञान एवं मित्रता भी बढ़ी ऐसी पुस्‍तकें ही जीवन में हमेशा आपकी ताकत बन करके चट्टान की तरह आपके साथ खड़ी होती है क्योंकि आपने देखा होगा दोअवसर ऐसे होते हैं जीवन में जब सबसे संकट का समय होता है और जीवन में जब बहुत परेशानी में व्यक्ति रहता है तब उसको याद रहते जब दुख की घड़ी रहती है तो वो समय उसको याद रहता है या जबप्रसन्नता शिखरतापर होती है और बहुत खुशी का कोई समय आ गया। यह दो अवसर मनुष्य को हमेशा ही याद रहते हैं और जो यह संकट का समय था उससेपूरी दुनिया कराह रही थी, मानवता कराह रही थी तब उसमानवता कोबचाने के लिए आगे आने का यह अभियान और संकल्प बड़ाथा, यह कभी जीवन में न भूलने वाले क्षण हैंऔर मुझे भरोसा है कि जिन-जिन लोगों ने भी जिन-जिन छात्रों ने अपने विशिष्‍ट क्षेत्रों में दायित्व निभाने वाले लोगों ने इन क्षणों को आत्मसात करके पूरी ताकत के साथ उसका मुकाबला किया मेरे देश के प्रधानमंत्री कहते हैं कि जब बड़ा संकट होता है और चुनौती बड़ी होती है तब उसका मुकाबला किया जाता है तो वही चुनौतियां अवसरों में तब्दील हो जाती है। ऐसा अवसर मिल जाता है जो हमारे जीवन को एक नई उपलब्धि हो जाती है और निश्चित रूप सेमैं कह सकता हूं कि जिन-जिन लोगों ने इन क्षणों को संजोया होगा, एक एक में मिनट को जियाहोगा वे क्षण निश्चित रूप में उनकी जिन्दगी में एक उपलब्धि बनकर के वे क्षण रहे हैं।हमारा देश दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है और यहां शिक्षा काबड़ा व्याप है। एक हजार से भी अधिक विश्वविद्यालय हैं औरहमारे देश के अंदर जब हम अपनी शिक्षा के बारे में महसूस करते हैं तो सीना ऊँचा हो जाता है। एक हजार से अधिक विश्वविद्यालय हैं, 50 हजार से अधिक डिग्री कॉलेज हैं, 15-16 लाख स्कूल हैंएक करोड़ 10 लाख से भी अधिक अध्यापक हैं और छात्रों की संख्या देखेंगे तो कुल अमेरिका की जितनी जनसंख्या नहीं हैं उससेभी ज्यादा 33 करोड़ छात्र छात्राएं हैं यह है हिन्दुस्तान की ताकत,हमक्या नहीं कर सकते। 135 करोड़ लोगों का यहदेश है और एक कदम भी एक व्यक्ति जाएगा तो एक कदम आगे बढ़ने से यह देश 135 करोड़ कदम आगे बढ़ता है। हमेंइस ताकत को हमेशा महसूस करना चाहिए। मेरे देश की ताकत ऐसी है कि अभी आपको मालूम है कि इसी बीच इस कोरोनाकाल में हम नयी शिक्षा नीति भी लेकर आए। अब हम 10+2 को समाप्‍त कर देंगे और अब हम5+3+3+4 करेंगे। नई शिक्षा नीति में हमने मातृभाषा को प्राथमिकता दी है क्‍योंकि मातृभाषा में ही अभिव्यक्ति ज्यादा हो सकती है। यूनेस्को का भी हमेशा कहना है और सभी भाषा वैज्ञानिकों का भी यही मत है कि जो मातृभाषा में ही सशक्‍त अभिव्‍यक्‍ति  हो सकती हैतथादूसरी सीखी हुई भाषा में नहीं हो सकती और इसलिए हमअभिव्यक्ति को पूरी तरीके से बाहर लाना चाहते हैं। मातृभाषा में प्रारंभिक शिक्षा तो होगी ही और उच्च शिक्षा तक भी कोई राज्‍य करना चाहे तो कर सकता है। हम कक्षा 6 से ही वोकेशनल एजुकेशन ला रहे है और वह भी इन्टर्नशिप के साथ। अब केवल अंक ज्ञान और अक्षर ज्ञान नहीं बल्‍कि व्यावहारिक ज्ञान होगा। अब विद्यार्थी केवल कक्षा कक्ष में नहीं रहेंगे बल्‍कि अपने रूचि के क्षेत्रों जैसे उद्यानिकी के क्षेत्र में, वानिकी के क्षेत्र में, मशीन को बढ़ाने के क्षेत्र में जिसक्षेत्र में आपका मन जहां ज्यादा लग रहा है उसको आप प्रेक्टिकल करेंगे और छठवीं से लेकर कर 12वींतक यदि आपको वह मौका मिलेगा तो जिस समय आप जिस विधा में विज्ञता लेना चाहते हैं और आपकी रूची है, आपको 12वीं कक्षा पास करते एकऐसा आधार देगा जब आप किसी के कदमों पर खड़े न हो करके स्‍वयंआत्म बल पर खड़े होकर के और आत्म निर्भर भारत की कल्पना को पूरा कर सकते है। यह है शिक्षा, हम स्कूली शिक्षा से आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस ला रहे हैं क्योंकि अब इंटर करने के बाद याफिर बीए करने के बाद या फिरबीएससी करने के बाद फिरइंजीनियरिंग में जाएंगे तो कोई विषय चुनेंगे या दूसरे विधा में जाएंगे तब इसे चुनेंगे लेकिन नहीं,विषय अभी चुनना है हमको कि किस क्षेत्र में हम आगे बढ़ना चाहते हैं और आगे की क्लास में आपके लिए पूरा मैदान खाली है और आप कोई भी विषय ले सकते हैं तथा किसी भी विषय के साथ कोई भी विषय जोड़ सकते हैं। अब वो बंधन नहीं रहेगा कि आपको यही विषय लेने ही पड़ेंगे। जिस क्षेत्र में आप अच्छा करना चाहते  हैं जो आपका मन है उसेकरियेजरूर औरजिस क्षेत्र में आप जाना चाहते हैं जाओ, पूरा मैदान खाली छोड़ा है।इस शिक्षा नीति के अंतर्गत यदि कोई 4 वर्ष का कोर्स है और यदि कोई छात्र दो साल में परिस्‍थितिवशछोड़के जा रहा है  तो पहले उसका पैसा एवं वर्ष दोनों खराब हो जाते थे लेकिन अब उसकोनिराश नहीं होना पड़ेगा।यदिवह परिस्‍थितिवश एक वर्षमें छोड़ कर जा रहे हैं तो उसको सर्टिफिकेटदेंगे,दो साल में छोड़ कर जा रहा है तो डिप्लोमा देगें, तीन साल में छोड़कर जा रहा है तो उसकोडिग्री देंगे। लेकिन यदि फिर वह लौट कर अपने भविष्य को संवारना चाहता है तो फिर जहां से उसने छोड़ा था वहीं से शुरू कर सकता है। उसके लिए हम एक ऐसा क्रेडिट बैंक बनायेंगे जहां उसके सारे क्रेडिट जमा होंगेइसलिए उसके लिए आगे बहुत आपार संभावनाएं है।वह कहां जाना चाहता है, शोध और अनुसंधान के क्षेत्र में जाना चाहता है।अब हम बच्चे को रिपोर्ट कार्ड नहींदेंगे बल्‍किप्रोग्रेस कार्ड देंगे कि वह क्‍या प्रगति कर रहा है। अब हम उसका360 डिग्री होलिस्टिक मूल्यांकन करेंगे,बच्‍चा स्‍वयं भी अपना मूल्यांकन करेगा, उसका अध्यापक भीमूल्यांकन करेगा, उसका अभिभावक भीमूल्‍यांकन करेगा और उसका साथी भी उसका मूल्यांकन कर सकेगा।आप जितना दौड़ना चाहते हों, उतना दौड़ों आपको कोई रोक नहीं सकेगा।अभी जो हमारी नई शिक्षा नीति आई है पूरी दुनिया ने इस नई शिक्षा नीति को माना है। अभी कैम्ब्रिज ने अपना एक मेल भेजकर हमको कहाहै  कि दुनिया का सबसे बड़ा जो ज्ञान का भंडार था वो हिन्दुस्तान था। कैम्ब्रिज जो दुनिया के शीर्षत्तम विश्वविद्यालयों में एक है। उसने हमको मेल भेज करके कहा है कि जो नयी शिक्षा नीति आयी है, यह बात खूबसूरत है और यह पूरे विश्व के फलक पर है। यह नेशनल भी है,इंटरनेशनल भी है, इम्पैक्टफुलभी है,इनोवेटिव भी है, इन्क्लूसिव भी है और यह इक्विटी,क्‍वालिटी और एक्‍सेसकी आधारशिला पर खड़ी है। यहसमावेशी है तथा अंतिम छोर तक केछात्र को भी पकड़ करके रखेगी और उसको शिखर तक ले करके जाएगी। पूरी दुनिया आज हमारी शिक्षा नीति से प्रभावित है और वो भी चाहते हैं कि जैसे हिंदुस्तान के बच्चे खुश हैं,अभिभावकखुश है, अध्यापक खुश हैं वे भीइस खुशी को बांटना चाहते हैं, पूरी दुनिया में और हमारा देश तो खुशियों का ही देश है।जबमैं कहता हूँ कि खुशियों का देश है तो कैसे पता चलता है कि यह खुशियों का देश है क्योकि 365दिनों में हम366उत्‍सवमनाते हैं। ये हमारे देश था 365 दिनों में 366उत्सव मनाने वाला दुनिया का पहला हमारा देश है। हमारा देश विश्वगुरु रहा है और सारी दुनिया के लोग हमसे ज्ञान विज्ञान अनुसंधान नवाचार तथा तकनीकी सीखने के लिए आते थे। आज तो आप मुझसे प्रश्न पूछेंगे, मैं उत्तर दूंगा। लेकिन यदि मैं यह सवाल पूछूं कि क्या मेरे देश के नवयुवकों को मेरे देश के छात्र छात्राओं को जिसके आधार पर मेरा देश सारे विश्‍वमेंविश्वगुरु रहा है और जिसके आधार पर हमने पूरी दुनिया में हर क्षेत्र में लीडरशिप दी है। क्या उस देश को उस भारत को जानते हैं कि नहीं उसके तक्षशिला नालंदाऔर विक्रमशिला जैसे विश्वविद्यालयों के बारे में जानकारी है कि नहीं। यदि नहीं तो कोई बात नहीं अबशुरू करेंगे क्योंकि अब नई शिक्षा नीति आई है। मेरे देश के प्रधानमंत्री जी ने बोला है कि 21वीं सदी का स्वर्णिम भारत लाना है और यहनई शिक्षा नीति नया भारत बनाएगीऔर ध्‍वजवाहकआपबनेंगे, आप से होकर के गुजरेगा वो जो नयास्वर्णिम भारत बनेगा। 21वीं सदी का स्वर्णिम भारत हमको बनाना है। हमारे जीवन मूल्य क्‍या थे,यह जानना भी ज़रूरी है। हमें हर क्षेत्र में आगे बढ़ना है ज्ञान के विज्ञान के अनुसंधान के और ऐसा नहीं कि यह देश पीछे था। सुश्रुत को पढ़िए,इस देश में शल्य चिकित्सा का जनक सुश्रुतइसदेश में पैदा हुआ, आयुर्वेद का जन्मदाता भी इस देश में पैदा हुआ। अभी मुझे खुशी हुई जब यहां पर सरस्वती वंदना हुई। मैंने निधि से पूछा कि आपके बच्‍चे बहुत अच्‍छा संगीत गा रहे हैं। निधिने बताया कि केन्द्रीय विद्यालय में संगीत सर्वोच्च स्तर पर है। मैं बधाई देना चाहता हूं संगीत के अध्यापक को भी और मैं देख रहा था जब सरस्वती बंदना हो रही थी तो आप भी झूम रहे थे। संगीत में बहुत ताकत है। संगीत में मन को बदलने की ताकत है विचारों को बदलने की ताकत है। प्राचीन भारत का जो संगीत है और जो उसकी नाट्य विधाएं हैं तथा जो उसकी कलाएंहैं, उन सभी 64 कलाओं से युक्त होना है, मेरे हर विद्यार्थी को। इसलिए अभी जब संगीत के बारे में हम देख रहे थे तब हम मां सरस्वती से क्या प्रार्थना कर रहे थे।हमकोइतना ताकतवर बना दो मां कि मैं दुनिया को ठीक कर दूं, मैं दुनिया को दिशा दिखा दूं।ऐसीताकत चाहिए कि मैं अपने देश कोविश्व के स्तर पर खड़ा कर सकूं। इसके लिए मां से प्रार्थना हम करते हैंक्योंकि कमजोर आदमी क्या परिवर्तन कर पाएगा। जो अपने आप ही रोता है वह दूसरो को क्‍या हंसा पाएगा। जब हम बड़ा लक्ष्य लेकर के चलते हैं तो हर हालत में फिर जो चीज हमारे सामने आती है हमउसको करते हुए आगे बढ़ते हैं। हम ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ की बात करते हैं पूरी वसुधा को हम अपनापरिवार मानते हैं  जब हमारे परिवार में कोई दुखी रहता है तो हम चुपचाप उसके सामने से निकल जाते हैं। क्या कोई संकट परिवारमें रहता है तो हम चुपचाप खुशियां मनाते हैं क्या करते हैं। हम सब कुछ छोड़ के पहले उसके संकट को दूर करने की कोशिश करते हैं तो हम पूरे विश्व को एक परिवार मानते हैं तो विश्व पर आने वाले किसी भी प्रकार केसंकट को भी हम दूर करेंगे। ऐ इसलिए मेरे देश के प्रधानमंत्री बोलते हैं एक अच्छा नागरिक, अच्छा शिक्षित होने के साथ साथ विश्व मानव होना चाहिए और यह जो नई शिक्षा नीति है यह विश्व मानव बनायेगी। आचार व्यवहार संस्कार ज्ञान विज्ञान अनुसंधान नवाचार से युक्त विश्‍व मानव जो विश्व के बारे में न केवल सोचे बल्कि विषमपरस्थितियों में रास्ता निकालकरके हमें दें क्योंकि हमने तो हमेशा सर्वे भवन्तु सुखिनः कीबात की है। इसधरती पर सभी सुखी रहने चाहिए और यदिकोई दुखी है तो मैं सबसे पहले उसके दुख का निवारण करूंगा। यह ताकत होनी चाहिए इसलिए जो केन्द्रीय विद्यालय हैं वे हमारे देश की शान है। जब इसमें प्रवेश होता है तब इसकी शक्ति कामुझको भी अहसास होता है हमारे पास कितना दबाव रहता है एक प्रवेश के लिए,एक एडमिशन के लिए हजारों लोग लाइन पर खड़े रहते हैं। केंद्रीय विद्यालयों में लोग प्रवेश चाहतेहैं। उनको लगता है कि यदि मेरे बच्‍चेंकाकेंद्रीय विद्यालय में एक बार प्रवेश हो गया तो उसके जोआचार्यगण हैं,अध्यापकगण हैं उनके सानिध्‍य में मेरा बेटा पूरी दुनिया का नंबर एक हो जाएगा और यही केन्द्रीय विद्यालय की पहचान है। मुझे खुशी होती है और मैं इसलिए आपको कहनाचाहता हूं कि आपको भी यह महसूस होना चाहिए कि आप यहां उस केन्द्रीय विद्यालय में पढ़ रहे हैं जहां से हमें खुशी, ताकत एवं प्ररेणा मिलती है। हम कोशिश करेंगे कि इस केन्द्रीय विद्यालय की शिक्षा को नीचे तक ले करके जाएंगे। हमने जो नई शिक्षा नीति में परिवेश बनाने की कोशिश की हैउसमें हर बच्चा केन्द्रीय विद्यालय के बच्चे की तरह बन सकेगा आपके लिए तो सौभाग्‍य का क्षण हैं, आप तो केन्द्रीय विद्यालय तक पहुँचे हैं,इस क्षण को खराब मत होने देना। यह जो समय हैं आपकेलिए, यही समय आपको योद्धा बनानेकाहैऔर इसलिए इस कोरोना काल में भी हमने आपके लिए ‘मनोदर्पण’तैयार किया है आपको मालूम है यदिकोई दिक्कत है, मानसिक परेशानी है, तो चाहे अध्यापक हो,चाहे वो अभिभावक हो। वे सभी ‘मनोदपर्ण’ के तहत मनोवैज्ञानिकों सेचौबीसों घंटे ऑनलाइन परामर्श ले सकते हैं।हमनेआपका पाठ्यक्रम भी कम किया है। हमने हरसप्ताह में आपसे संवाद किया और आज भी उसी ‘शिक्षा संवाद’ के तहत हम आपसे जुड़े हुए है। कोविड के दौर में स्‍वयं ही भी सुरक्षा जरूरी है। जिन-जिन लोगों ने सुरक्षा का अनुशासनबद्ध तरीके से कार्य किया, उन राज्यों में अच्छा काम हुआ है।हमने कोराना काल में दुनिया की सबसे बड़ी परीक्षा नीट कराई है,यह हमारी ताकतहै। हम दुनिया की सबसे बड़ी परीक्षा भी इसी काल में करते हैं क्योंकि हमारे छात्र अनुशासित होते हैं। उनको मालूम है कि जो हमारे गृह मंत्रालय और स्वास्थ्य मंत्रालय ने निर्देश जारी किए हैं, वे उनका पालन करते हैं। जिन राज्यों ने भी अपने स्कूलों को खोला है और जिन्होंने उस गाइडलाइन का पालनकिया है वो राज्‍य दिक्कत में नहीं आया है। आपको तो मालूम ही है कि  हमारे देश के यशस्‍वीप्रधानमंत्री श्री नरेन्द मोदी जी ने दुनिया में कई अभूतपूर्व उदाहरणप्रस्तुत किए हैं जो दुनिया के लिए प्रेरणा का स्रोत बने हैं। हमारा देश दुनिया का पहला देश है जो दुनिया का सबसे बड़ा वैक्सीन अभियान चला रहा है। अब चिंता की कोई बात ही नहीं है। औरमैं आपको शुभकामनाएं देना चाहता हूं कि आप अच्छे से रहिए तथा खूब मस्ती के साथ रहिए। बस इतना करिए कि अपनी सुरक्षा का ध्यान जरूर रखेंगे और दूसरों की भी सुरक्षा करेंगे। अभी बच्‍चे योग कर रहे थे। देश के प्रधानमंत्री जी ने विश्व के मंच पर ईश्वर की सबसे सुंदरतम कृति मनुष्य को सुरक्षित रखने के उसके तन मन को ठीक करने के लिए योग के बारे में बात की थी। सयुक्त राष्ट्र संघ के मंच पर तो पूरी दुनिया के 197 देशों ने एक साथ उस प्रस्ताव को मंजूर करके दुनिया का बहुत बड़ा उदाहरण पेश किया और आज दुनिया के 197 देश योग कर रहे हैं। जैसे अभी हमारे छात्र-छात्राओं यहां पर योग का अद्भुतप्रदर्शन किया इसके लिए योग के अध्यापक जो होंगे उनको भी मैं बधाई देना चाहता हूं। दो प्रदर्शन तो अभी हुए हैं संगीत और योग के केन्‍द्रीय विद्यालय का छात्र पढ़ाई के अतिरिक्त गतिविधियों में जिस तरीके से जो सक्रिय रहता है, उससे उसकी प्रतिभा का विकास होता है। मेरा अपना निजी अनुभव है कि विभिन्‍न गतिविधियों में संलग्‍न छात्र प्रखर होते है। जब मन की एकाग्रता होगी तो उतना ही जल्दी से सीखने का भी मनहोता है। योग मन की एकाग्रता का सबसे बड़ा सूत्र है। योगशरीर को भी ठीक रखता है तथा मन को भी ठीक रखता है। आज इस विद्यालय मेंसंगीत और योग का प्रदर्शन हुआ है। इन दोनों को जोड़ करके समझ सकता हूं कि इस विद्यालय के प्राचार्य और उनके अध्यापकगण कितनीअथक मेहनत कर रहे होंगे। मैं उनको शुभकामनाएं एवं बधाई देना चाहता हूं औरमुझे भरोसा है कि दूसरेविषयोंमें भी इसी तरीके से यह विद्यालय अपनी प्रगति के आयामों को बढ़ा रहा होगा। हमने तो पिछला वर्ष भी खराब नहीं जाने दिया और बहुत सारे देशों ने तो एक साल पीछे अपनी परीक्षाओं को कर दिया। दुनिया ने भले ही एक साल खराब कर दिया लेकिन हमने अपना साल खराब नहीं होने दिया और यह साल भी बेहद खराब नहीं होने देंगे। हम कोरोना कोदौड़ाएंगे औरकहेंगे कि तुम हमको छू नहीं सकते हम जो करेंगे वह ज़रूर करेंगे और स्वस्थ्य रहते हुए सुरक्षित रहते हुए अपने जीवन को संवारेंगेऔर दुनिया को भी बताएंगे। आपको शुभकामनाएं कि आज आप सब लोग पूरे देश के विभिन्न प्रदेशों से और देश के कोने-कोने से जुड़े हुए हैं।मैंअभिभावकों सेनिवेदन करना चाहता हूँ कि यह जो छात्रहैंइनकोआपने पीछे के समय में बहुत अच्छी मदद की है और यह भी दुनिया का पहला उदाहरण है कि 33करोड़ छात्रों को एक साथ आनलाइन पर हमलेकर आएहैं।यहदुनिया का अपने में एक उदाहरण है। मेरे अध्यापकगणका और अभिभावकगण का,छात्रों के साथ समन्‍वय रहा है। मैं अध्यापक और अभिभावक दोनों लोगों का अभिनंदन करता हूँ। मुझे भरोसा है कि यह संकट का समय जो अभी गया नहीं है हालांकित कम हो रहा है और तेजी से कम होगा। इस संकट के समय में निश्चित रूप से हम रास्ता निकालेंगे और हम अपनीपढ़ाई भी पूरी करेंगे। जिस फोन को हम केवल अपने मित्र से बात करने के लिए अब तक प्रयोग करते थे अबवो पढ़ाई के लिए प्रयोग आ रहा है, परिवेश बदला है और कोरोना काल ने नयी दुनिया को तैयार कियाहै, हम उसमें भी आगे बढ़ेंगे।

 

बहुत-बहुत धन्‍यवाद!

 

कार्यक्रम में गरिमामयी उपस्‍थिति:-

  1. डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’, माननीय शिक्षा मंत्री, भारत सरकार
  2. सुश्री निधि पाण्‍डेय, आयुक्‍त, केन्‍द्रीय विद्यालय संगठन
  3. श्री रामचन्‍द्र मीना, उपाध्‍यक्ष, केन्‍द्रीय विद्यालय संगठन,
  4. श्रीमती लामचोघांई स्‍वीटी चांगसन, संयुक्‍त सचिव, शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार
  5. देश भर से जुड़े छात्र-छात्राएं, अध्‍यापकगण, अभिभावकगण।

 

योजना एवं वास्‍तुकला स्‍कूल, भोपाल का भूमि पूजनएवं शिलान्‍यास कार्यक्रम

योजना एवं वास्‍तुकला स्‍कूल, भोपाल का भूमि पूजनएवं शिलान्‍यास कार्यक्रम

दिनांक: 18 जनवरी, 2021

 

माननीय शिक्षा मंत्री, डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’

योजना एवं वास्‍तुकला विद्यालय भोपाल के शैक्षणिक भवन के शिलान्‍यास के अवसर पर मैं इस पूरे परिवार को बधाई देने के लिए आपके बीच आया हूं। इस अवसर पर जो हमारे साथ दूर से ही जुड़े हैं इस क्षेत्र की बहुत ही लोकप्रिय सांसद साध्‍वी प्रिया ठाकुर जी, इस क्षेत्र के विधायक श्री रामेश्‍वर शर्मा जी,और संस्‍थान के निदेशक जी,संकाय सदस्‍य और डी.जी. श्री मदन मोहन जी। मुझे बहुत खुशी है कि आपके संस्‍थान के इस भवन का अभिकल्‍प मांडु स्‍थित महादेव मन्‍दिर से प्रेरित है और मुझे लगता है कि इस भवन के निर्माण के माध्‍यम से न केवल आपकेसंस्‍थान के वर्तमान की जरूरतें पूरी होंगी बल्‍कि राष्‍ट्रीय शिक्षा नीति  2020की जो भविष्‍य की परिकल्‍पनाएं हैं उसको भी आपका यह संस्‍थान सफल करेगा और साथ ही वास्‍तुकला स्‍टूडियो के निर्माणमें भी सहायता प्रदान करेगा। यह शैक्षणिक ब्‍लॉक जिसका इस समय यहां पर शिलान्‍यास किया गया इस पूरे एसपीए के सभी संकाय, विभागाध्‍यक्ष, सभी छात्र-छात्राएं और हमसे जुड़े भाइयो और बहनों जब अभी पूजा अर्चना हो रही थी तब मैं भी आपके साथ सम्‍मिलित था। हमारे विद्वान आचार्य अपने श्‍लोकों के उद्बोधन से हमको अभिप्रेरित कर रहे थे और इस शैक्षणिक ब्‍लॉक के इस शिलान्‍यास अवसरपर मैं आप सबका अभिनन्‍दन करता हूं। मुझे लगता है कि जो भारतीय वास्‍तुकला की श्रेष्‍ठता है उससे मेरे छात्र-छात्रएं परिचित हैं। भारत विश्‍वगुरू रहा है और विश्‍व गुरू रहने के पीछे जो उसकी प्राचीन कलाएं थीं, ज्ञान था, वास्‍तुकला थी वो पूरी दुनिया में श्रेष्‍ठ थी और मुझे खुशीहै कि उस श्रेष्‍ठता को अर्जित करने के लिए एसपीए भोपाल लगातार प्रयासरत है। ऐतिहासिक प्रभावों के माध्‍यम से निश्‍चित रूप में भारतीय वास्‍तुकला पर गहरा असर पड़ा है। हमारे जो स्‍मारक हैं उनकी भव्‍यता उस समय की गाथा को हमको  महसूस कराती है जो हमारी स्‍थापत्‍य कला की शैलियां थी उनको पुन: प्रतिष्‍ठित करने का यह हमारे सामने अवसर भी है और हमारे सामने चुनौतियां भी हैं क्‍योंकि जो वास्‍तुकलाउस समय की है आज भी हजारों-हजार साल पहले का जो शिल्‍प है, जो वास्‍तुकला है, जो शैली है, मुझे भरोसा है कि उस स्‍थापत्‍य कला की शैली को निश्‍चित रूप में एसपीए भोपाल एक मिशन के रूप में अंगीकार करके आगे बढ़ायेगा। मैं छात्रों से कहना चाहता हूं कि जब चुनौती होती है और उन चुनौतियों का डटकर मुकाबला किया जाता है तो वह अवसरों में तब्‍दील होती है। विश्‍वगुरू भारत जिसके बारे में  कहा गया‘एतद् देश प्रसूतस्य शकासाद् अग्रजन्मन:, स्वं-स्वं चरित्रं शिक्षरेन् पृथ्वियां सर्व मानव:’ अर्थात्पूरी दुनिया के लोगों ने हमारे वास्‍तुकलाव स्थापत्य कला से आकर के सीखकरके गए हैं। मैं दुनिया के तमाम देशों में जाता हूं और आप कभी इंडोनेशिया के प्रवास पर जाएंगे तो आपको हमारी शैली की भव्‍यता के दर्शन होंगे। हमारी प्राचीन स्‍थापत्‍य कला की समृद्धि को आज विकसित करने की आवश्‍यकता है। आप तो बिखरे हुएको जोड़ते हैं और कल्पना को धरती पर साकार रूप देते हैं और मैं सोचता हूं कि आप जिस कल्पना को साकार रूप देते हैं उसमें कितनी खूबसूरती होगी। जब हम किसी चीज की कल्पना करते हैं तो कल्पना करने से ही मन में उसकी खूबसूरती, उसकी भव्यता और उसकी जो विशालताहमारे मन में समाती है। हम पहले किसी चीज की कल्पना करते हैं औरफिर उसको नीचे उतारते हैं और उसको पहले एक नक्शे के रूप में लाते हैं और जब वो जमीन पर भवन के रूप में खड़ा होता है तो उसकी जो खूबसूरती होती है, उसका जो जुड़ाव होता है, उसके अंदर की जो खुशबू है जिसके संरक्षण में कुछ चीजें ऐसी पनपेंगी जो पूरे विश्व में भारत को ज्ञान की महाशक्ति के रूप में स्थापित करेंगी। आपको मालूम है कि जोनई शिक्षा नीति आई है वो इन्हीं चीजों को ले लेकर आई है।वोभारत केन्द्रित होगी, वो नेशनल भी होगी,वोइंटरनेशनल भी होगी,वो इम्‍पैक्‍टफुल भी होगी, वो इन्‍क्‍लुसिव भी होगी, वो इनोवेटिव भी होगी और इन्‍टरैक्‍टिव भी होगी और वोभारतीय ज्ञान परंपरा के आधारशिला पर खड़े होकर पूरे विश्व में एक बार फिर मेरे भारत को ज्ञान की महाशक्ति के रूप में उठाएगी। यह ज्ञान की महाशक्ति के रूप में जो उसकी आधारशिला हैं वो आपसे हो करके गुजरती है। मुझे भरोसा है कि जब मैं देख रहा था कि चाहेइससंस्थान की एनआईआरएफ में रैंकिंग हो या कोई अन्‍य क्षेत्र, सभी जगह श्रेष्‍ठ प्रदर्शन किया है। आपके संस्थान ने देश के महत्वपूर्ण संस्थानों के साथ पारस्परिक अनुबंध करके शोध और अनुसंधान किया है। मैं देख रहा था कि आज एसपीएभोपाल ने अपनी योग्यता का प्रदर्शन किया है और यहां के अध्यापकगण को मैं बधाई देना चाहता हूं और इस अवसर पर यह भी अपेक्षा करना चाहूंगा कि जो नयी शिक्षा नीति यह पूरी दुनिया के सबसे बड़े रिफार्म के रूप में आई है जो भारत केन्द्रित है। लेकिन ज्ञान, विज्ञान, अनुसंधान और नवाचार को लेकर के पूरे विश्व के फलक तक तथा शिखर पर पहुँचने के लिए कटिबद्ध है। शिक्षा नीति और उसके क्रियान्‍वयनके बीच जो समन्वयकयोद्धा हैं, वे हमारे शिक्षक हैं,आप निश्चित रूप से आज जितने भी मेरे शोध छात्र हैं,मेरे प्रोफेसरगण हैं मेरे शिक्षक और जो मेरे छात्र-छात्राएं हैं, वे समाज की जोजिज्ञासा है, जो उसकी भावनाएं हैं, जो संभावनाएं हैंउस सबकी पूर्ति करेंगे। वास्तुकला योजना और डिजाइन के अनुशासनके माध्यम से सार्वभौमिक डिजाइन संरक्षण और पर्यावरण जीविका को साथ में रख कर के एवं सांस्कृतिकता का समन्वय करके हमको वो हमको सभी दिशाओं में प्रयास करने हैं। इसीलिए आपने देखा कि जो पहले हमारी वास्तुकला थी उसमें बहुत सशक्तता थी। उसमें सभी प्रकार का ज्ञान और विज्ञान तथासंस्कृति यह सब कुछ समाहित था। आज पूरी दुनिया उसका लोहा मानती है कि भारत की जो ज्ञान परंपरा थी, जो भारत की वास्तुकला थी वो बेजोड़ नमूना था और वो आज भी हमारे पास है। मुझे भरोसा है कि आप उसका उपयोग करेंगे। मुझे इस बात की खुशी है कि 2008 में जब 102 छात्रों के साथ यह संस्‍थानशुरू हुआ था और आज 66संकाय सदस्यों के साथ 863 से भी अधिकयहां पर छात्र हैं और वर्ष 2014आपको राष्ट्रीय महत्व केसंस्थान का दर्जा मिला। इस संस्थान के अंदर पढने वाला हर छात्र राष्ट्रीय महत्व के संस्थान में पढ़ता है उस पर ठप्पा लगता है कि राष्ट्रीय महत्व के संस्‍थान का वह विद्यार्थी है और वह सामान्य नहीं हो सकता। यदि भारत को देखें आपतो भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिकदेश है और यदि इसके शिक्षा के वैभव को देखें तो एक हजार से भी अधिक विश्वविद्यालय हैं, 45 हजार से भी अधिक डिग्री कॉलेज हैं, एक करोड़ 9 लाख से भी अधिक अध्यापक हैं, 15 से 16 लाख स्कूल हैं और यदि छात्र शक्ति को देखें तो कुल अमेरिका की जितनी आबादी नहीं है उससे भीज्यादा 33 करोड़ छात्र-छात्राएं हिंदुस्तान की धरती पर हैं।यह वैभव हिंदुस्तान का ही हो सकता है और जैसे कि आप सबको मालूम है कि आगे 25-30 वर्षों तक मेरा हिंदुस्तान यंग इंडिया रहने वाला है और पूरी दुनिया में हमकुछ भी कर सकते हैं। हममें विजन की कमी नहीं है, हम मिशन और विजन दोनों कोजोड़ेंगे। नई शिक्षा नीति में हमउत्कृष्ट कोटि का कंटेंट लेंगे। यहशिक्षा नीति अब कंटेंट को आपके टैलेंट के साथ जोड़ करके और एक नये पेटेंट को तैयार करना चाहती है। मैं आपसे अनुरोध करना चाहता हूं किमेरे प्रिय छात्र-छात्राओं इस अवसर पर कि एक दौर था जब पैकेजकी होड़ लगी थी। आज समय बदल गया है और हिन्दुस्तान अंगडाईले रहा है, नये भारत की शुरूआत हो रही है, अब पैकेज की जरूरत नही है बल्कि पेटेंट की ज़रूरत है,होड़ अब पेटेंट के लगेगी। हमशोध और अनुसंधान करेंगे। आप नौकरी के लिए नहीं जाएंगे बल्कि नौकरी देने वाले लोगों में आपकी पहचान होगी। आपकीगिनती नौकरी देने वाले लोगों में होगी, नौकरी लेने वाले लोगों में नहीं। इसलिए मुझे भरोसा है कि आप अपने मन में इस बात को संकल्प के साथ खड़ा करेंगे। यदि इस देश के प्रधानमंत्री फाइवट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था की बात करतेहैंऔर संकल्प लेते हैं तो उस सपने को साकार हमको करना है। 21वीं सदी का स्वर्णिम भारत ऐसा होगा जो सुंदर भारत, सशक्त भारत, समृद्ध भारत, आत्मनिर्भर भारत, श्रेष्ठ भारत होगा। यह आत्मनिर्भर भारतऔरश्रेष्ठ भारत यहीं से होकर गुजरेगा। मेरा अकेले यह विश्वविद्यालय राष्ट्रीय महत्व का संस्थान हैयह कुछ भीकर सकता है। यहां से निकलने वाला मेरा एक हीराएक ब्रांडके रूप में अपना नाम कमा सकता है और उसकी तरफपूरी दुनिया देख रही है। मुझे भरोसा है कि आप स्‍मार्टशहरोंमें और गांवों में क्षेत्रीय विकास से जो ग्रामीण विकास है आपउसको मिशन पूर्वक करेंगे। आदिवासियों और स्वदेशी से संबंधित परियोजनाएं जो प्रधानमंत्री जी के नये भारत के दृष्टिकोण में समाहित हैं, मैं जरूर चाहूंगा कि आप उस भारत की भव्यता को सामने लायेंगे। दुनिया आज उसके लिए तरसती है और वो सब हमारे पास है। मैं देखता हूं कि हमारे पहाड़ों में हिमालय के क्षेत्रों में ऐसे-ऐसे मकान बने हैं जो भारी भयंकर भूकंप आने के बाद भी वो मकान कभी ढहते नही है। 1991 का जो उत्तरकाशी और उस क्षेत्र का भीषण भूकंप आया था उसको मैंने प्रत्‍यक्षदेखा था तब मैं उत्तर प्रदेश की विधान सभा में होता था। इसलिएजो हमारी वास्तु कला थी उस वास्तु कला में हमारी भव्‍यता के दर्शन होते हैं। इस पर शोध और अनुसंधान करकेइसको आगे बढ़ाने की जरूरत है। राष्ट्रीय एजंसियों और विश्वविद्यालयों के साथ आप सहयोगात्मक सहभागिता कर रहे है साथ ही आपसंयुक्‍तराष्ट्र हैबिटेट और यूरोपीययूनियन जैसे अंतरराष्ट्रीय संगठनों के साथ भी आप काम कर रहे हैं जिसके लिए मैं निदेशक और उनकेपूरे सहयोगियों को बधाई देना चाहता हूं। मुझे भरोसा है कि आप एक नया इतिहास रचेंगे इस भोपाल के एसपीएमेंऔर निश्‍चित रूप में  वास्तु कला को संरक्षण देने की आज ज़रूरत है। इसीलिए हमने नई शिक्षा नीति लाई है जिसका उत्सव आज पूरे देश में मनाया जा रहा है। इस नई शिक्षा नीति को हमने भारत केंद्रित किया है।भारत की जो ज्ञान-विज्ञान परंपरा थी जो उसका शोध और अनुसंधान था उसको हम किसी तरीके से बाहर लाकरके पूरे विश्व में बांटना चाहते हैं। अभी आपको मालूम होगा कि कैम्ब्रिज ने बहुत खुशी व्यक्त की और उन्होंने कहा किपहले हिंदुस्तान पूरे विश्व का ज्ञान का बहुत बड़ा केंद्र था और नईशिक्षा नीति 2020  के माध्‍यम से हम उसको पुनर्जीवित कर रहे हैं जो विश्व के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है। य ब्रिटेन के विदेश मंत्री जी जब मुझसे मिलने के लिए आए थे औरउनसेभी इस सन्‍दर्भ में विचार-विमर्श हुआ था। अभी संयुक्त अरब अमीरात ने कहा कि हम एनईपी चाहते हैं। तमाम देशों के लोग नई शिक्षा नीति के प्रति न केवल आकर्षित हैं बल्‍कि उसको क्रियान्वित करना चाहते हैं। पूरी दुनिया फिर भारत को जानना चाहती है। हमारे पास सब कुछ है,जरूरत है उसको समझने की, उस पर अनुसंधान और शोध करके नवाचार के रूप में आगे बढ़ाने की और यह आपसे हो करके गुजरता है। आपने भोपाल औरमैसूर में सिटी डवलपमेंट और पारंपरिक ज्ञान प्रणालियों के साथ लचीलापन और आपदा प्रबंधन का उपयोग करते हुए जीरो वैलीअरुणांचल प्रदेश और जोधपुर में पर्यावरणका महत्‍वपूर्ण काम आपने किया है।इसके लिए भी मैं आपको बधाई देना चाहता हूं।आपनेअटल मिशन के तहत शहरी परिवर्तन के कायाकल्प को ध्यान में रखते हुए इम्फाल मणिपुर में भी काम किया है, मैं उसकी भी सराहना करना चाहता हूं। आपने स्वच्छ भारत अभियान के संचालन में भी काम किया है और अभी कोविड के समय में भी आपने बहुत अच्छा काम किया है। आपके छात्रों ने नए-नए शोध और अनुसंधान किए हैं और जो भोपाल का सौर ऊर्जा का जोपैनल 250 किलोवाट लगभग का है उसको स्थापित करके आपने आत्मनिर्भर भारत जो मेरे देश के प्रधानमंत्री ने कहा है उसका एक उदाहरण भी दिया है। मुझे अच्छा लगा है कि आपने कैम्पस की झीलों का जीर्णोद्धार किया और बांस का वृक्षारोपण करके सघन जल संचयन का भी काम किया। हम जो ज्ञान अर्जित कर रहे हैं उसको साथ-साथ में देने की भी अभिलाषाहमारे मन के अंदरहोनी चाहिए और मुझे भरोसा है किआप जो अर्जन कर रहे हैं उसकोसाथ-साथ देने की भी प्रक्रिया आपने की है। मुझे भरोसा है कि उन्नत भारत अभियान के तहत इस संस्था ने जिन गांवों को गोदलिया होगा उसके सन्‍दर्भ में मैंमध्यप्रदेश की सरकार से जरूर कहना चाहूंगा। मैं अपने मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान जी जो हमारे बड़े भाई और हमारे मित्र भी हैं उनसे कहूंगा किजो गांव एसपीए भोपाल ने गोदलिए हैं, उन गांवों का दर्शन करिए ताकि वो गांव दिखने चाहिए। वो आदर्श गांव होने चाहिए, मैं यह अपेक्षा कर रहा हूं। इस संस्थान से मुझे इस बात की भी खुशी है कि आपके पूर्व छात्रों ने भारत के पारंपरिक और समकालीन मूल्यों का प्रतिबिंब बन करके विकास किया है। अभी अभिनव अग्रवाल आज जिनको  सामाजिक उद्यमिता के तहत ‘फोर्ब्‍स30’ के रूप में चुना गया है, मैं उनको भी बधाई देना चाहता हूं। पीयूष वर्मा उन्होंने एमआईटी मानुष लैब स्थापित किया है,मैं उनको भी बधाई देना चाहता हूं। निपुण प्रभाकर हो ,चाहे नवजीत गौरव हो और चाहे प्रीतम पटनायक हो,चाहे उदित सरकार हों ऐसे बहुत सारे लोग हैं जो आपके यहां से पढ़कर के अपना अच्छा नाम कमा रहे हैं औरसंस्थान का गौरव बढ़ा रहे हैं। आपके छात्र शोध और अनुसंधान के साथ आगे निकलेंगे और एक उदाहरण के रूप में देश के सामने प्रकट होंगे ताकि देश और दुनिया आपके शोध और अनुसंधान को आगे बढ़ा सके और आपकी इस प्रतिभापर गौरव कर सके। मुझे भरोसा है कि जो पूर्व छात्र हैं वो जहां-जहां भी हैं इस संस्‍थान के साथ जुड़ाव रखेंगे।इस संस्‍थान ने सार्वभौमिक डिजायन और सामाजिक सशक्‍तिकरणकी दिशा में भी आज जो आलोकिक कार्य वास्तुकला के क्षेत्र में काम किया है उसको हमारे जो छात्र पढ़ रहे हैं, वो तो करेंगे हीकरेंगे लेकिन मैं पूर्व छात्रों से भी अनुरोध करूंगा कि वो भी इसमें अपनीसहभागिता दें इससे आपको खुशी होगी। मैंनिदेशक महोदय से ज़रूर कहूंगा कि यह अवसर ऐसा आया है और मैं यहां के सभी पूर्व छात्रों के साथ में संवाद करना चाहूंगा कि वो जिन-जिन स्थानों पर हैं उनको भी एक वर्ष में एक बार इस संस्थान के साथ जुड़ना चाहिए और बताना चाहिए किवो क्‍या कर रहे हैं और क्या करना चाहते हैं। यहसंस्थान उनको क्या सहयोग कर सकता है और वो क्या कर रहे हैं, उनका अनुभव मेरे नये छात्रों को मिल सकेगा। आपनेराष्ट्रीय शिक्षा नीति को क्रियान्वित करने की दिशा में अपनी प्रतिबद्धता जताई है और इसदिशा में भोपाल एसपीएआगेकरके काम कर रहा है, मुझे इसके लिए भी मुझे खुशी है। भोपाल एक सांस्कृतिक नगरी है और भोपाल की देश में तथापूरी दुनिया में एक अलग पहचान है। उस कला को, संस्कृति को, भारत की ज्ञान परंपराएं हैं उनको, हम संजो करके संवार करके आगे बढ़ा सकते हैं। इसका भी आप संकल्प लेंगे और इस दिशा में आप काम कर रहे  हैं। मेरे प्रिय छात्र-छात्राओं भारत की विभिन्न परंपराओं और सांस्कृतिक मेंबौद्धिक संपदा है उससंपदा को हमको संजो करके रखना होगा और जो हमारी बौद्धिक संपदा है उसे हमें हीसुरक्षित रखना है। यदि किसी परिवारके व्यक्ति के पास कहीं कोई संपत्ति होती है और उसके संरक्षण करने का उसमें दमनहीं होता है तो वो उसको ऊपर भी उठा करके ले करके जाता है। हमारी संपदाए बिखरी हुई थी,देश गुलाम था और  हमारी उन संपदाओं को पूरी दुनिया उठाकर करके ले गई है। लेकिन आज हम स्‍वाधीन हैं हम उन परंपराओं को, उन संपदाओं को, जो बिखरी हुई है तथा जो परस्थितियों का शिकार हुई हैं उनको उभार करके  हम निश्चित रूप में आगे ला सकते हैं। उस बौद्धिक संपदा को निश्चित रूप में आगे बढ़ाने की दिशा में हम एक महत्वपूर्ण पहल को कर सकते हैं। मुझे लगता है कि जितने भी वास्तुकार हैं, योजनाकार हैं,डिजायनर हैं उन्‍हेंहमारी बस्तियों में भी जाना चाहिए। मेरा देश इतना बड़ा देश हैं, गांव का देश है। अभी भी हमारे पास अवस्थापना है उसेकिस तरीके से आगे व्यवस्थित और विकसित किया जा सकता है। उसका क्या रास्ता निकल सकता है। कम स्थान में, कम पैसे से तथा अधिक और टिकाऊ क्या चीजें निकल सकती हैं। जिससेमेरे देश के अंतिम छोर के व्यक्ति को भी उसका लाभ मिल सकता है और भारत सरकार भी आप पर गौरव कर सकें।मैं इस अवसर पर जबकि आज शैक्षणिक भवन का शिलान्यास हो रहा है, मैं निदेशक को, उनके इस पूरे परिवार को बहुत-बहुत  बधाई देता हूं। आज बहुत खुशी का दिन है कि आपकीशैक्षणिक गतिविधियोंको तेजी से बढ़ाने के लिए एक भव्य भवन का शिलान्यासहो रहा है। मैं इस सब अवसर पर आपकी खुशी मेंसम्‍मिलितहोने के लिए मैं आया हूं। मैं आपको बधाई देने केलिए आया हूं।मैंनौजवानों आपका आह्वानकरने के लिए आपके बीच आया हूं कि मौका है इस वक्त पूरी दुनिया हमको निहार रही है, देख रही है। अब अवसर है और पूरा मैदान खाली है, हमको बहुत तेजी आगे बढ़ने की जरूरत है। मैं एक बार फिर बहुत सारी शुभकामनाएं  देता हूं।

 

बहुत-बहुत धन्‍यवाद!

 

कार्यक्रम में गरिमामयी उपस्‍थिति:-

  1. डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’, माननीय शिक्षा मंत्री, भारत सरकार
  2. सम्‍मानित साध्‍वी प्रज्ञा ठाकुर, संसद सदस्‍य, लोक सभा
  3. श्री रामेश्‍वर शर्मा, विधायक, मध्‍यप्रदेश विधानसभा
  4. डॉ. एन. श्रीधरन, निदेशक, एसपीए भोपाल,
  5. श्री मदन मोहन, डीजी, शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार

 

 

हिंदी राइटर्स गिल्‍ड, कनाड़ा द्वारा साहित्‍य गौरव सम्‍मान, 2021

हिंदी राइटर्स गिल्‍ड, कनाड़ा द्वारा साहित्‍य गौरव सम्‍मान, 2021

 

दिनांक: 16 जनवरी, 2021

 

 

माननीय शिक्षा मंत्री, डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’

 

          इस कार्यक्रम में उपस्थित भारत वर्ष, कनाडा और दुनिया के लगभग 50 देशों से भी अधिक देशों के सभी भाई और बहनों का मैं हृदय की गहराइयों से अभिनंदन करता हूं और आज इस कार्यक्रम में हमारे देवभूमि उत्तराखंड कीमहामहिम राज्यपाल श्रीमती बेबी रानी मौर्य जी जो साहित्य के प्रति बहुत ही लगाव रखती हैं और जिन्होंने जीवन में विभिन्न स्थानों से होते हुए आज महामहिम राज्यपाल के दायित्व को निभा रही हैं मैंउनका पूरेविश्व हिन्‍दी परिवार की ओर से भी अभिनंदन कर रहा हूं। मुझे खुशी है कि श्रीअजय बिसारिया जी जोभारत के हाई कमिश्नर हैंकनाडा में, उन्होंने हिन्दी को सम्मान दिलाने कीहमेशा कोशिश की है और आज भी संकल्पित हैं। मुझे खुशी है श्रीमती अपूर्वा श्रीवास्‍तवजी जो भारत की कौंसिलाधीश कनाडा हैं, इन दोनों लोगों के संयुक्त प्रयास से और बिसारिया जी आप के प्रोत्साहन से मैं समझ सकता हूं कि जो कनाडा में मेरे हिंदी लेखक हैं उनको कितना गौरव महसूस होता होगा और उनके अंदर ऊर्जा है जिससे उन्होंने वहांपर हिंदी का एक बड़ा संसार बना दिया है। मुझे भरोसा है कि आपका यह प्रयास कनाडा काएक नया इतिहास लिखेगा। जब मैं शैलजा जी को बोलते हुए सुन रहा था औरमैंने उनको पहली बार सुना है लेकिन उनके वाणीमें सरस्‍वती विराजमान है।

मैं समझ सकता हूं कि कितने अकलुशित लोग इस अभियान में जुटे हुए हैं। आदरणीय विजय विक्रांत जी हैं, श्री सुमन जी है जिनके बारे में लगातार बोला गया है और शैलजा सक्सेना जी, आप लोगों ने जो यहां पर हिंदी लेखकों का समूह बनाया है, यहबहुत अच्छी पहलहै। पूरी दुनिया में हिन्दी अब केवल कुछ कहानियों के लिए, कुछ कविताओं के लिए, कुछ उपन्यासों के लिए और केवल संवाद के लिए नहीं है बल्‍कि हिन्दी जीवन है और मानवता की आधार है और इसीलिए हिन्दी पूरी दुनिया के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है।

मुझे इस बात की भी खुशी है कि श्रीअनिल जोशी जी, जो वर्तमान में केन्द्रीय हिन्दी संस्थान के हमारे उपाध्यक्ष हैं  लेकिन जब वे विदेश सेवा में थे तब मैं उत्तराखंड का मुख्यमंत्री था 2009-10 में तब भी दुनिया के तमाम देशों से हिंदीसीखने वाले बच्चों को वे लाते थे और उन्‍हें पूरे हिन्दुस्तान का दर्शन कराते थे। मुझे याद आता है कि इसी राजभवन में हमारे राज्यपाल जी के साथ हम लोगों ने यहां पर बहुत अच्छा कार्यक्रम करवाया था और बच्चों का अभिनंदन कराया था तथा आज उन्होंने सारे विश्‍व में हिंदी परिवार बनाया है मुझे खुशी है और मुझे भरोसा है कि जिस संस्थान की बागडोर आज इनके हाथों में गई है, केन्द्रीय हिन्दी संस्थान की उसेये विश्‍व स्‍तर पर लेकर जाएंगे क्योंकि अभी भी हमारे 25-30 देशों के बच्चे वहां पर रेगुलर पढ़ते हैं, डिग्रियाँ प्राप्त करते हैं और पूरी दुनिया में वो हिंदीके ब्राण्ड एम्बेसडर बन कर के काम कर रहे हैं।

मुझे भरोसा है कि अनिल जोशी जी ने जो अभियान तब से लेकर के जब वे विदेश सेवा में रहे हैं और आज वो विदेश सेवा से निवृत होने के बाद तुरंत हमने इनको एक बहुत बड़ी जिम्मेदारी सौंपी हैं और कम समय में इन्होंने बेहद व्यापक तरीके से काम करना शुरू किया है। हमारे पूज्य गुरुजी जो बहुतप्रसिद्ध साहित्यकार हैं और जो शिक्षाविद् हैं उस ज़माने के डीलिट हैं और एक कॉलेज के प्रधानाचार्य हुआ करते थे और मैंगुरूजी का भी अभिनंदन करना चाहता हूं। प्रोफेसर योगेन्‍द्रनाथ अरुण जी का और रमा जी आप तो धाराप्रवाह बोलती है। जिस तरीके से आप ने पीछे भी मैंने देखा था कि‘निशंक का रचना संसार: देश के पार’ आपने जिस तरीके से विश्व के लगभग 30-40 देशों के साहित्यकारों से लिखवाया है मैंउन सभी लेखकों के प्रति भी आभारी हूं।

आपके माध्यम से उनका मैं आभार प्रकट करना चाहता हूं।आप बहुत सक्रिय रहती हैं और हिन्दी में आप जैसे लोग जब सक्रियरहते हैं तो हिन्दी का भविष्‍यपूरी दुनिया में कोई रोक भी नहीं सकेगा ऐसा मेरा भरोसा है। डॉ. तोमियो मिजोकामी जीजो जापान से हैंऔर निदेशक मंडल केसदस्य हैं आपनेजापान में हिन्दी का बहुत अच्छा माहौल बना दिया है। जैसे कनाडा में आप माहौल बना रहे हैं ऐसे ही जापान में भी बहुत अच्छे तरीके से हिन्‍दी पर काम-काज हो रहा है।

पीछे के समय मैं जापान गया था तो मुझे बहुत खुशी हुईऔर मुझे बहुत आनंद आता है। हमारे पद्मश्री कल्याण रावतजी इन्होंने जिस तरीके से पर्यावरण की दिशा में काम किया हैं,हम इन पर बहुत ही गर्व करते हैं और स्कूली बच्चों के साथ मिलकर के जो काम कर रहे हैं, वह बहुत बड़ा काम कर रहे हैं। पद्मश्री लीलाधर जगूड़ी जी विख्‍यातसाहित्यकार और हमारे मार्गदर्शक तथा हमारे बड़े भाई हैं और मुझे याद आता है कि जब मैं पहली बार1991 में उत्तर प्रदेश की विधान सभा में विधायक बन करके गया था तब जगूड़ीजी उत्तर प्रदेश सूचना निदेशालय में संयुक्त निदेशक के पद पर होते थे और हमारा सबका संरक्षण करते थे तथा तब से लेकर के आज तक इनका भी मार्गदर्शन हमको मिलता है, मैं इनके प्रति भी बहुत आभार प्रकट कर रहा हूं।

डॉ. योगी जी बहुत ही विश्वविख्यात चिकित्सक हैं जिन्होंने अपना जीवन लोगों की सेवाकेलिए दिया है और ऐसे सर्जन हैं जो बिगड़ी हुई चीज को सुधारते हैं, रचना करते हैं, खूबसूरत बनाते हैं।मैं आपको विगत 25-30 सालों से जानता हूं कि दुनिया का कोई भी व्यक्ति हो, योगी जी निशुल्‍कतरीके से सेवा करते हैं तथा बहुत ही बड़े सर्जन हैं तो पद्म श्री योगी जी का भी मैं इस अवसर पर बहुत धन्यवाद देना चाहता हूं।

मुझे इस बात की खुशी है किहमारे इसरो के पूर्व अध्यक्ष पद्मभूषण राधाकृष्णन जी को भीमैं भीदेख रहा हूं और राधाकृष्णन जी को लोगों ने इसरो के अध्यक्ष के रूप में जाना होगालेकिन वो आईआईटी परिषद के भी अध्यक्ष हैं। राधाकृष्णन जी बहुत अच्छे नर्तक भी हैं, मैं आपको बधाई देना चाहता हूं पूरी दुनिया के लोग इस बात से परिचित होंगे कि राधाकृष्णन जी केवल बहुतविश्वविख्यात वैज्ञानिक की नहीं है बल्कि कला के प्रति उनमेंजो समर्पिततामैं बहुत खुश हूं,मैं बहुतगदगद हूं और आपका हम अभिनंदन कर रहे हैं। सम्‍पूर्ण हिन्दी परिवार आपका अभिनंदन करता है।

मुझे इस बात की भी खुशी है कि कस्‍तूरीरंगन जी अभी जुड़ नहीं पा रहे हैं लेकिन कस्तूरीरंगन जी जो इसरो के पूर्व अध्यक्ष रहे हैं और नई शिक्षा नीति के लिए उनके मार्गदर्शन में हमने बहुत बड़ा काम किया है वो भी आज जुड़ेंगेंऔर उनका भी आशीर्वाद मिलेगा।पद्मभूषण चंडी प्रसाद भट्ट जी जो हिमालय के पुत्र हैं और आज भी हिमालय केगोपेश्वर से जुड़े हैं भट्ट जी आपका स्वास्थ्य भी ठीक नहीं है और इसके बाद भीआप जुड़े हुए हैं, मैं आपका भी अभिनंदन करता हूं तथा आपका स्वागत कर रहा हूं।

मुझे मालूम है कि पद्म भूषण श्रद्धेय नरेंद्र कोहली जी, पद्म भूषण लोकेश चंद्र जी और पद्म भूषण और पद्मश्री अनिल जोशी जी भी लखनऊ से सीधे हमारे साथ जुड़े हैं, मैं आपका भी ह्रदय की गहराई से अभिनंदन कर रहा हूँ। हम सबके लिए जो प्रेरणा देतेहैं वो श्यामसिंह  शशि जी जिनको देखते ही बहुत आनंद आ जाता है और मुझे लगता है आज सेतीस-चालीस वर्ष पहले पद्मश्रीसेविभूषित औरआज भी आपयुवाओं की भाँति सक्रिय रहते हैं।

अटल जी ने उनकीपुस्‍तकका लोकार्पण किया था। मेरा सौभाग्य है कि आज हमारे साथ बहुत सारे लोग जुड़े हुए पद्मश्री आलोक मेहता जी जुड़े हैं, पद्मश्री अशोक चक्रधर जी जुड़े हैं, पद्मश्री प्रकाश सिन्‍हाजी हैं, पद्म श्री और बहुत विख्यात पत्रकार मेरे मार्गदर्शक रामबहादुर राय जी भी जुडे हुए हैं। उधर से मैं देखता हूं कि पद्मश्री मालिनी अवस्थी जी लखनऊ से जुडी हुई हैं, पद्मश्री प्रसून जोशी जी मैं आपका बहुत धन्वाद देना चाहता हूँ कि आपके गीतों से हम अभिप्रेत होते हैं और पद्मश्री प्रसून जोशी जी जो फिल्म सेंसर बोर्ड के अध्यक्ष भी हैं, वो जुड़े हैं, आचार्य बालकृष्ण जी मैं आपका भी अभिनंदन करता हूँ तथा प्रणाम करता हूँ और पद्मश्री पुष्पेश पंत जी, पद्म श्री ब्रजेश शुक्ल जी, पद्म श्री बीवीआर मोहन रेड्डी जी,सुभाष घई जी जुड़े हुए हैं, अनुपम खेर साहबजुड़े हुए हैं,महेन्‍द्र सिंह धोनी जी, मैरीकॉम जी जो हमारे एमपी भी हैं और जिन्होंने पूरे विश्व में भारत का नाम रोशन किया है, पीटी उषा जी मैं आपको भी धन्यवाद देना चाहता हूँ, दीपा मलिक जी मैं आपको भी धन्‍यवाद देना चाहता हूँ और मुझे लगता है कि आज मेरा सौभाग्य है कि पद्मेश गुप्त जी सहित तमाम लोग जुड़े हुए हैं।

मैं यदि बहुत सारे लोगों का नाम नहीं ले पा रहा हूँ क्योंकि अबसमय भी हो गया है लेकिन मैं कुछ देशों के नाम, जिनके बहुत से लोग हमारे साथ जुड़े हैं, जो मेरे पास सूचना आई है जो इस कार्यक्रम में जुड़े हैं, जो हिन्दी के लिए समर्पित हैं,मैं आज जितने भी देशों के लोग जुड़े हैं जितने मेरे पद्मश्री तथा पद्म भूषण और विभिन्न पुरस्कारों से युक्त और हिन्‍दीके प्रति समर्पित सभी व्‍यक्‍तियों को इस सम्मान को मैं उनको समर्पित कर रहा हूं। चाहेओमान से जुड़े हैं, फिजी से जुड़े हैं,साउथ अफ्रीका से जुड़े हैं, त्रिनिदाद से जुड़े हैं,गुयानासे जुड़े हैं, सिंगापुर से जुड़े हैं,इंडोनेशिया से जुड़े हैं, ताइवान से जुड़े हैं, साउथ कोरिया से  जुड़े हैं, जापान, हॉलैंड, मलेशिया, भूटान, संयुक्त अरब अमीरात, कतर, सउदी अरब,पोलैण्ड, अमेरिका, स्विटजरलैण्ड, नार्थ तंजानिया, आयरलैंड, कीनिया, इंग्लैण्ड, थाईलैंड, वियतनाम,आस्‍ट्रेलिया,इजरायल, सिंगापुर, यमन, कुवैत, मॉरीशस, नेपाल, बेल्जियम, श्रीलंका, युगांडा, यूक्रेन सहित लगभग 55 देशों के लोग जो आज इस कार्यक्रम में जुड़े हैं, मैं आप सभी का अभिनंदन करता हूं और आज 55 देशों से भी अधिकलोगों के जुड़ाव ने यह साबित कर दिया है कि हिंदी अंतरराष्ट्रीय भाषा है और पूरी दुनिया में हिन्दी का बोलबाला है। हिंदी का भविष्‍यकोई रोक नहीं सकता तथाउसको कोई टोक नहीं सकता और वैसे भी मैं यह समझता हूं कि 67करोड़ से भी अधिक लोगों द्वारा बोली जाने वाली हिन्दी पूरे विश्व की सबसे बड़ी तीसरी भाषा है। लेकिन यदि आज सब लोगों ने यह संकल्प ले लिया है तो हिन्दी पूरे विश्व की नंबर एक भाषा होगी,नंबरदो नहीं होंगी। जिस तरीके से कनाडाकेलोगों ने इस अभियान को शुरू किया पीछे की समय में मैं जब इंग्लैंड से जुड़ा था वो कार्यक्रम ‘वातायन’ का कार्यक्रम था तब भीमुझे बहुत खुशी हुई और मैं यह निवेदन करना चाहता हूं कि हताशा और निराशा होने की कोई ज़रूरत नहीं है।हिंदी केवल भाषा नहीं है बल्‍कि हिन्दी हमारा जीवन है।

हमको कभी नहीं भूलना है कि हम दुनिया के लिए पैदा हुए है। यही मेरे भारत की संस्कृति का प्राण है। हिंदी और संस्कृत संस्कृति की सोहदरी है हिन्दी। हिन्दी के किसी भी शब्द को लीजिए दुनिया की भाषा आपकिसी भी भाषा को ले लीजिए और उसका वैज्ञानिक विश्लेषण कर लीजिए आप पायेंगे कि हिन्दी पूरी दुनिया की सबसे समृद्घ भाषा है। लगभग 10 लाख शब्दों वाली पूरी दुनिया की सबसे समृद्धतमभाषा हिन्दी है।इसको कोई रोक ही नहीं सकता है,यह है इसका वैभव। इसमें संवेदना भी है, इसमें लालित्य भी है, इसमें विज्ञान भी है, इसमें समाज भी है, इसमें अंतरआत्मा भी है,इसमें संघर्ष भी है, इसमें संवेदना भी है और कौन सी विधा है जो मेरी हिन्दी में नहीं है तथा कौन सा ऐसाक्षेत्र है जो मेरी हिंदी के लेखकों ने स्पर्श नहीं किया हैं।

हिंदी उस भारत की संस्कृति का ध्‍वजवाहक है जिसमें जो पूरे विश्व में मेरे भारत को कहा था‘‘एतद् देश प्रसूतस्य शकासाद् अग्रजन्मन:, स्वं-स्वं चरित्रं शिक्षरेन् पृथ्वियां सर्व मानव:’’ पूरी दुनिया ने हमसे आकर के सीखा था। तक्षशिला और नालंदा जैसे विश्वविद्यालय, विक्रमशिला जैसे विश्वविद्यालय पूरी दुनिया में तब हमारे ही देश में होते थे और आज भी सुख, शांति और समृद्धि का रास्ता यदि पूरी दुनिया में जाएगा तो उसका रास्ता हिंदुस्तान से होकर के गुजरता है, भारत की संस्कृति से होकर के गुजरता है। इस बात को दुनिया जानती है, मानती भी है, महसूस भी करती है और पहचानती भी है। इस देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी ने जिस लाइनपर काम किया,जिस ढंग से काम किया, जिस विजनके साथ काम किया, जिस संकल्प एवंजिस संदर्भ के साथ काम किया है, जिस बड़े निर्णय और कड़े निर्णयों के साथ काम किया है वो इस बात को प्रदर्शित करती है कि मेरा भारत विश्वगुरु था वो ऐसे ही नहीं था।

इसलिए आज दुनिया के जितने देशों का नाम मैंने आज लिया है ये सभी देश हिंदुस्तानी मूल के नहीं हैं बल्‍कि दुनिया के तमाम देशों के भी लोग हैं जो हिन्दी से अनुप्राणित हैं और जो चाहते हैं कि हिन्दी होनी चाहिए। क्यों होनी चाहिए हिन्दी?‘‘अयं निजः परो वेति गणना लघु चेतसाम्। उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम्’’अर्थात्पूरी वसुधा को कुटुम्ब मानने वाली, अपना परिवार मानने वाली यही हिंदी हो सकती है और किसी भाषा में दम नहीं है कि वह इन सबको अपनी बाहों में समेटकरके आगे ले जाए और फिर वह संस्कृत की उक्ति ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया, सर्वे भद्राणी पश्‍यन्‍तु, मा कश्‍चिद् दु:ख भाग्‍भवेत’अर्थात् हर व्यक्ति सर्वे भवन्तु सुखिनः मतलब सभी के सुख की कामना करते हैं और संकल्प यह लेते हैं कि जब तक धरती पर एक प्राणी भी दुखी होगा तब तक मैं सुख का एहसास नहीं कर सकता। पहले मैं उसके दुःख को दूर करूंगा। यह ताकत हिन्दी में ही हो सकती है और किसी भी भाषा में यह ताकत हो नहीं सकती। हम सभी भाषाओंको साथ लेकर के चल रहें हैं लेकिन हिन्दी एक ऐसे सूत्र की भाषा है जो हृदय की भाषा है, जिसमें लालित्‍य है। पूरी दुनिया में हिन्दी की गतिशीलता बढ़ रही है और जिस सीमा तक और जिस ढंग से हिन्दी का वैभव बढ़ रहा है, निश्चित रूप में यह हिन्दी केवल भाषा नहीं है। हिन्दी संस्कार भी है, संस्कृति भी है, अभियान भी है औरजीवन भी है। उसमें संवेदना भी है, उसमें वेदना भी है और उसमें आगे बढ़ने के ताकत भी है। इसीलिए इस खूबसूरती को हमको संजोने की ज़रूरत है।

मैं समझता हूं हम सब लेखकगण हैं और लेखक के भीतर कोई रचना तभी पैदा होती है जब अंदर से आदमी छटपटाता है। कोई भी चीज जब तक उसके मन के अंदर जो कहीं नकहीं किसी छोर पर उसने एक ऐसा स्थान बनाया हैकि जब तक वो बाहर नहीं निकलती आप चैन से बैठ नहीं सकते हैं औरयह आपकी संवेदना हैं। संवेदनहीन व्यक्ति चाहे राजनीति में है, चाहे वो प्रशासन में है, चाहे वो व्यवसाय में हैअथवाकिसी भी क्षेत्र में क्यों न हो,संवेदनहीन व्यक्ति हमेशा समस्याओं का पूंज होता है और संवेदनशील व्यक्ति समस्याओं के निदान का मुखर नेतृत्व करता है और इसीलिए यह जो संवेदना है वह बहुत जरूरी है क्‍योंकि व्यक्ति की संवेदना नहीं है तो कुछ भी नहीं है।

यदि एक व्यक्ति है, हाड़ मांस का है उसके नाक,आंख, कान सब उसी तरीके से हैं लेकिन जब कहते हैं कि यह मर गया है, तो मरा क्या है? संवेदनाएं ही तो मरी हैं, वे ही तो खत्म हुई हैं। बाकी तो सब आदमी यदि मरा हुआव्यक्ति है तो नाक भी है, कान भी है, सभी कुछ तो है,केवलप्राण चले गए हैं। सब कुछ खत्म हो गया यदि संवेदनाएं समाप्त हो गई। इसीलिए मुझे लगता है कि हिंदी के लेखकों की बड़ी जिम्मेदारी है कि शालीनताके साथ इस संवेदना को सरसायाजा सकता है, विकसित किया जा सकता है, अपनी भावनाओं मेंअपने शब्द सबसे बड़ी शक्ति हैं। अभी जो हम कह रहे हैं, वह बात हमारे ह्रदय तक पहुंचती है, बात होती है तो ह्रदय में अपना स्थान बनाती हैं और वैसे ही आदमी करनेलग जाता है।

दुनिया की सबसे बड़ी ताकत हैशब्‍दजो कुछ भी कर सकते हैं। अभी यदि कोई किसी को गाली दे देगा तो वहीं पर महाभारत शुरू हो जाएगा। जबकि केवल शब्द ही तो निकले हैं। उन शब्दों ने संस्कार भी दिए हैं, उन शब्दोंने प्रकृति के अनुरूप संस्कृति भी दी है। शब्द ठीक नहीं तो विकृति का रूप होगा औरविकृतीहमेशा विनाश का कारण होती है। जब शब्द सही होते हैं और धैर्यपूर्वक होते हैं तथा शालीनता होती है एवं उसमें संवेदनाएं होती हैं तो संस्कृति के रूप में विकसित होते हैं। संस्कृति हमेशारचना का काम करती है, सृजन का काम करती है।

इसलिए मेरा भरोसा है कि हमारा जो अभियान है वो छोटा अभियान नहीं है। हमारा अभियान कविता, कहानी और उपन्यास तक का अभियान नहीं है। हमारा अभियानउस जीवन का अभियान है जिसमें हमारी गीता भी आती है, हमारी रामायण भी आती है, जिसमें हमारी गीता जीवन मूल्य सिखाती है। हमारा एक ओर तो हमारी गीता कहती है कि आत्मा परमात्मा को जोड़ती है। हमारी गीता ने हमको बताया तभी तो हम सारे विश्व में महान रहे हैं, बड़े रहे हैं क्योंकि हमने शरीर का अस्तित्व कुछ नहीं माना। शरीर तो हमारा केवल माध्यम है जबकि हमारा लक्ष्य कुछ ओर है।हमने कहा कि शरीर से ज्यादा मोह मत पालो क्‍योंकियह शरीर तो नश्‍वर है। यह हमारा साथ कभी भी छोड़ जाएगा, अभी इधर बैठे हुए हैंमगर अगला क्षण किसका है, कौन जानता है?इसका मतलब जब तक मैं बोल रहा हूं तब तक ही वो मेरा है यह गीता ने हमको समझाया है कि जो जीवन है उसको अच्‍छे से जियो। यदि यह  क्षण अच्‍छा होगा तोपूराजीवनअच्छा होगा,यदियह क्षण ठीकनहीं है तो आपकाअगला क्षण कहां से अच्छा हो जाएगा और इसीलिए यह जो गीता का उपदेश है इसेपूरी दुनिया ने माना है और कहाकि आत्मा हमको परमात्मा से जोड़ती है।

शरीर तो चला जायेगा लेकिन जो जाता नहीं है वह आत्मा है। जो आत्मा है वो तो मरती नहीं है।फिर किस बात की चिंता है,फिरशरीर से क्यों मोह है? जो आत्मा है वो तो जैसे हम वस्‍त्र बदलते हैं, उसी प्रकार आत्‍मा भी हमारा शरीर छोड़कर दूसरे शरीर में प्रवेश करती है।इसका मतलब आत्मा की शुद्धि चाहिए आत्मा की पवित्रता चाहिए वो आत्मा हमारी संवेदनशील चाहिए और इस संवेदनशील आत्मा को बचाये रखना हीसबसे बड़ी चुनौती है और यहकाम मेरा लेखक हीकर सकता है।

वही कर सकता है जिसके मन में संवेदना की गूंज अंदर से उसको चैन से न बैठने दे रही हो।यदि किसी करुणा के समय में जिसकी आँखों में आँसू न आ जाए, यदि किसी परअन्याय होगा जिसकी भुजाएं नाफड़कने लग जाएं,जो परिस्‍थितिजन्‍य अपनेको देख नहीं पा रहा है,उस मिशन को बढ़ा नहीं पा रहा है, ऐसे तटस्थ लोग दुनिया के लिए अच्छे नहीं होते और इसीलिए आज जरूरत है कि कैसे करके हिन्दी केवैभव को पूरी दुनिया के लिए विकसित करें।

हम लोग तो वो रहे हैं जैसेअभी गुरूजी कह रहे थे कि धरती को हमने मांमाना है।कौन देश हमारा विरोध कर सकता है क्‍योंकि हमने तो पूरी पृथ्वी को अपनी मांकहाहै और इस पृथ्वी में पैदा होने वाला हरजीव जंतु मेरा अंग है, जैसे परिवार होता है। इसलिए दुनिया के उन देशों पर जो पूरी दुनिया को मार्किट के नाम से जानते हैं, मार्किट बताते हैं हम उनसे इत्तफाक नहींरखते हैं। हम उनकी बातों से सहमत नहीं होतेहैं। हम पूरी दुनिया को परिवार मानते हैं।

लोग उस दुनिया को मार्किट मानते हैं। बाजार में हमेशा व्यापार होता है। परिवार में हमेशा प्यार होता है। बहुत अंतर है उनके और हमारे विचार में। हम प्यार से इस पूरे संसार के इस परिवार को आगे बढ़ाना चाहते हैं, उसकी भावनाओं को विकसित करना चाहते हैं, हर समस्या का समाधान करने के लिए मिलकर के कामकरना चाहते हैं,यहहमारा संकल्प है।हमअसत्य से सत्य की ओर जाएंगे क्‍योंकि हम जानते हैं कि अंततोगत्वा सत्य की ही जीत होगी तो उस असत्य को क्यों ढोंएंगे।हमें ताकत चाहिए उन शब्दों के माध्यम से उससत्‍य को फैलाने की।‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’ इस अंधकार को मिटाने का ही तो हमने संकल्प लिया है। अंधकार कहीं भी हो सकता है किसी के दिल में हो सकता है। अज्ञान का अंधकार हो सकता है, भावनाओं का अंधकार हो सकता है, विकास का अंधकार हो सकता है, परिस्थितियों का अंधकार  हो सकता है लेकिन उस अंधकार को मिटाने के लिए ही तो हमने यह अभियान लिया है। मैं समझता हूं कि यदि कोई व्यक्ति है औरवो सो हो रहा है तो सोए हुए को तो जगाया जा सकता है और  जिस समय वह जगता है उसी समय उसका सबेरा है।

यदि कोई भावनाएं हमारे मन और मस्तिष्क में आती हैं और आपने देखा होगा क्‍योंकिआपसभी लोग लेखक गण हैं तो वे व्‍यस्‍त होने का रास्‍ता भी खोजते हैं। पद्मश्री दीपक पाठक जी और मनींद्र अग्रवाल जी भी अभी जुड़े हैं तथा बहुतसारे लोग जुड़े हुए हैं और मुझे खुशी इस बात की है कि इसका मतलब यह है कि हमारे विचारों में ताकत है, भारत के विचारों में ताकत है, हमारे समाज में ताकत है, हमारी उस गतिशीलता में ताकत है और इसीलिए हमारा विचार है कि हमअंधकार को मिटाएंगे।

उस अंधकार को मिटाने की ताकत हैं हममें, हम शब्दों से, भावनाओं से, विचारों से, कविताओं से, कहानियों से, उपन्यासों से,संवाद से, जो-जो, जिस-जिस समय, जिस-जिस ढंग से परिस्‍थितियांहमारे सामनेआएंगी, हम उन परिस्थितियों का मुकाबला करके अपने उस लक्ष्य कोसहज बनाकर उसे प्राप्‍त करने का काम करेंगे। मुझे बहुत खुशी है कि आज विश्वविद्यालयोंके बहुत सारे कुलपति भी जुड़े हैं।प्रो. रजनीश शुक्‍ल, महात्‍मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय वर्धा के कुलपति हैं, मैं आपसे अनुरोध करूंगाकि गांधी जी ने कहा था कि जिसकी अपनी भाषा नहीं होती वो तो गूंगा राष्ट्र है और आपकी जिम्मेदारी है कि आप गांधी जी के सत्य, प्रेम और अहिंसाकेसंदेश को हिंदी के माध्यम से पूरी दुनिया में सरसाएंगे।पीछे के दिनों में यूनेस्को में जब मीटिंग हुई तो वहां की डी.जी. ने पूछा किजीवन मूल्यों में गिरावट आई है इसके क्या कारण हो सकते हैं?

मैंने उनको कहा कि हमने मनुष्य को मनुष्य बनाया कहां है, हमने तो मशीन बनाये हैं। केवल अंक ज्ञान और अक्षर ज्ञान मनुष्य नहीं बना सकता वह तोमशीनों में भी है। अभी हम जिस नयी शिक्षा नीति 2020 को लेके आए हैं मुझे इस बात की भी खुशी है कि उससेपूरे देश में आज उत्सव का वातावरण है। अभी कैम्ब्रिज ने कहा है कि इस तरीके की जो शिक्षा नीति है, वह वास्‍तव में अद्भूत है। अभी संयुक्‍तअरब अमीरात के शिक्षा मंत्री जी से बात हुई, उधर मॉरीशस हो, चाहे आस्ट्रेलिया हो तमाम दुनिया के देशों ने कहा है कि इस एनईपी को हम भी लेना चाहते हैं। हमने आमूल चूल परिवर्तन किया है लेकिन उसकी आधारशिला भारतीयता पर है।हमउस भारत की बात करते हैंजहां सुश्रुत पैदा  हुआ जो शल्य चिकित्सा के जनक थे।

उस भारत की बात करते हैं जिसने आयुर्वेद की बात की, पूरी दुनिया के तन और मन को ठीक करने के लिए हमारे पास आयुर्वेद था, हम उस भारत की बात करते हैं।आज दुनिया के 197देश योग के पीछे खड़े हो गए हैं क्योंकि भगवान की सबसे सुंदरतम कृतिमनुष्य को हमको बचाना है। भाषा विज्ञानमें हमारे पाणिनी से बड़ा भाषा वैज्ञानिक दुनिया में कौन हो सकता है,रसायनशास्त्र में नागार्जुन से बड़ा कौनहो सकता है?अणु और परमाणु कीचर्चा करनेवाले और उस विचार को आगे बढ़ाने वालेऋषि कणाद से बड़ा कौन हो सकता है? मुझे खुशी है कि कैम्ब्रिज ने जबइस नयी शिक्षा नीति पर मुझे चिट्ठी भेजी थी, मेल किया था और अनिल जोशी जी उस दिन थे। उनका जो मेल आया था उन्होंने कहा कि भारत पहले भी विज्ञान का केन्द्र रहा है, भारत ने ही पूरे विश्व को गणित दिया।

पूरी दुनिया जानती है कि हमारे पास बहुत कुछ है देने के लिए। हमारे पास वेद है, पुराण है,उपनिषद है। हम दुनिया के लोगों का तन और मन ठीक कर सकते हैं और इसीलिए जो तन और मन को ठीक कर रहे हैं। खूबसूरत दुनिया होगी हमारा विचार बड़ा है। हमारे विचार संकीर्णनहीं है। हम तो पूरी दुनिया के लिए सोचते हैं और इसीलिए दुनिया का जो मनुष्य है और इस मनुष्य के बारे में सोचते हुए मुझे हमारे विचार पर  मुझे भरोसा है। दुनिया को जरूरत है मेरे भारत की, भारत के विचारों की और इन विचारों के ध्‍वजवाहक के रूप में हिंदी के जो लेखक है ये आगे आ रहे हैं, मुझे बहुत खुशी है। अभी जगूड़ी जी ने चिंता जरूर व्यक्त की है लेकिन भाईसाब को मैं कहना चाहूंगा कि निराशा जैसी कोई बात नहीं है।

आप देखिए,बहुत तेजी से  परिवर्तन हो रहा है। हमारे इसरो के चेयरमैन यहांबैठे हुए हैं और हमारे आईआईटी परिषद के चेयरमैन भी हैं लेकिन जब हम लोग मीटिंग करते हैं तो शायद राधाकृष्णन जी ने कभी हिन्दी में नहीं बोला होगा,लेकिन वे बहुत खूबसूरत हिन्दी बोलते हैं, बधाई राधाकृष्णन जी,हमारेजितने आईआईटी के प्रोफेसर हैं, निदेशक हैं खूबसूरत हिन्दी बोलतेहैं,उनको बहुत अच्छालगता है। हिन्दी में लालित्य है, हिन्दी में इतने शब्द हैं कि आप किसी भी शब्द के माध्‍यम से अपनी भावना को व्यक्त कर सकते हैं।यह सामर्थ्य हिन्दी के पास है जोछोटा सामर्थ्‍य नहीं,बहुतबड़ा शब्द सामर्थ्य है। अभिव्यक्ति का इससे बड़ा साधन क्या हो सकता है?

हम सौभाग्यशाली है क्‍योंकि तमिल, तेलुगू, मलयालम, गुजराती, मराठी, बंगाली, उड़िया, उर्दू, हिन्दी, संस्कृत, असमिया सहित 22 ऐसी खूबसूरत भाषाएं हमारे संविधान ने हमको दी हैं और हम उन सभी भाषाओं की खूबसूरती लेना चाहते हैं। उसके अंदर उसका ज्ञान, विज्ञान, आचार, व्यवहार जो उसकी परंपराएं हैं हम उन सब कोलेना चाहते हैं। हम दुनिया को इस खूबसूरती को बांटना चाहते हैं।हमहर क्षेत्र में ज्ञान विज्ञान अनुसंधान नवाचार में बहुत आगे थे और आगे  हैं आज भी है और इसलिए मुझे भरोसा है कि यह एक अभियान के रूप में चलना चाहिए। यह रुकना नहीं चाहिए इस अभियान की लोगों को जरूरत है,लोग तड़प रहें हैं, पूरी दुनिया तड़परही है, मैं दुनिया के देशों में जब-जब भी जाता हूं तब मुझे लगता है कि हिन्दी और संस्कृत के प्रति लोगों में बहुत रुझान है क्‍योंकिउसमें जीवंतता मिलती है,उनमें अपनी भावनाएं व्यक्त करने की आत्मीयता मिलती है,जीवन को आगे बढ़ाने की प्रेरणा मिलती है और इसलिए यह जो हिन्दी है इसकी खूबसूरती बरकरार रखनी चाहिए। श्रीरमेश कुमार पाण्डे जी कुलपति लालबहादुर शास्त्री संस्कृत विद्यापीठ, प्रो. सुधा रानीपांडे जी पूर्व कुलपति, पद्मश्री श्याम सिंह जी, कुलपति राजकुमार जी पंजाबविद्यालय, प्रो. अवनीश कुमार अध्यक्ष वैज्ञानिक एवं तकनीकी शब्दावली आयोग, आपको काफी मेहनत करनी पड़ेगी क्योंकि अभी मेरे देश के प्रधानमंत्री ने कहा कि इंजीनियर एवं डॉक्‍टर दोनों अपनी मातृभाषा में हो सकेंगे। प्रो. गोपाल शर्मा जी,विजिटिंगप्रोफेसर, इथोपिया आपका भी अभिनंदन हैं।श्रीऋषभदेव शर्मा जी आपका भी बहुत अभिनंदन है। मोहनकांतगौतम जी, श्वेता दीप्ति जी, सोमा बंद्योपाध्याय जी कुलपति बहुत अच्छा गाती हैं। सोमा जी आप बंगाल की धरती पर बहुत अच्‍छी कविताएँ लिखती हैं, अच्छा गाती हैं।

प्रो.रंजन प्रसाद सिंह जी भी जुड़े हैं, प्रो. सूर्यप्रताप दीक्षित जी हमारे सबके बहुत ही पूजनीय हैं। डॉ.राकेश कुमार शर्मा जी संपादक केन्‍द्रीय हिन्‍दी निदेशालय, डॉ. पंकज चतुर्वेदी जी, युवराज मलिक जो डायरेक्टर हैं एनबीटी के, मुझे खुशी होती है कि इतना बड़ा परिवार है और वरिष्‍ठस्थानों पर हम लोग बैठे हैं कोईकमी नहींहो सकती है और इसलिए हमआपने महामहिम राज्यपाल जी को यह आश्‍वस्‍त कर ही सकते हैं कि आज हमारा संकल्प का दिन है कि हम पूरी दुनिया में हिन्दी को लेकर केजाएंगे और हिन्दी पूरे विश्व की भाषा बनेगी।

मैं आभारी हूं आपने मुझे याद किया औरमैंबहुतहृदय की गहराईयों से आपके प्रति आभार प्रकट करता हूं और मुझे भरोसा है कि यह संवेदना रूकेगी नहीं बिल्कुल यहअभियान के रूपमें चलेगी और ‘अभी भी है जंग जारी’ जो अभी हमारे भारत के पूर्व-राष्‍ट्रपति भारत रत्न अब्दुल कलाम जी के बारे मेंगुरूजी ने उनकके शब्द पढ़े जब मैं उनको मिलने के लिए गया तो उन्होंने कहा कि आपकी तो 1983से ही रेडियो पर देशभक्ति के गीत आते हैं। मेरे को जानकारी मिली है कि क्या यह सारे देशभक्ति के गीत इकट्ठा नहीं हो सकते, मैंने कहा कि क्यों नहीं हो सकते, आप बताइये उन्होंने ही उसकिताब का शीर्षक भी दिया था।‘ऐ वतन तेरे लिए’इसकायह नाम होगा तो मैंने उनके आदेश का पालन किया और वे सभी देशभक्ति के गीत एक जगह आए।

जब उन्होंने लोकापर्ण किया तो इस संग्रह की एक कविता- ‘‘अभी भी है जंग जारी वेदना सोई नहीं है मनुजता होगी धरा पर,संवेदना खोई नहीं है, किया है बलिदान जीवन, निर्बलता ढोई नही है और कह रहा हूंऐवतन तुझसे बड़ा कोई नहीं है।’’और लास्‍ट की पंक्‍ति कहते-कहते उनकी आंखों से आंसू छलक आये थे और तब मुझे लगा था कि उनके मन में संवेदनाएं और जागरूकता किस सीमा तक की है।उस दिन मैंने संकल्‍प लिया था कि मैं उनके विचारों पर कुछ अवश्‍य लिखूंगा। उनके  जीते जी  तो नहीं लिख पाया लेकिन मैंने  उन्‍हीं  के शब्‍दों को उधार लेकर‘सपने जो  सोने ना दें’ शीर्षक पुस्‍तक लिखी थी,जिसका तमाम  भाषाओं में अनुवाद भी  हुआ और वह बहुत लोकप्रिय  हुई आज मैं उस किताब  को  आपको  समर्पित कर रहा हूं क्‍योंकि हम सबने बहुत अच्‍छे सपने देखें हैं लेकिन कलाम साहब के सपने जो सोने न दें और जब तक हमारे सपने पूरे नहीं हो जाते हम भी चैन से नहीं बैठेगें और आज हम इस संकल्‍प के साथ यहां से जाएंगे। एक बार मैं पुन: आपके प्रति बहुत आभारी हूं।

 

बहुत-बहुत धन्‍यवाद!

 

कार्यक्रम में गरिमामयी उपस्‍थिति:-

 

  1. डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’, माननीय शिक्षा मंत्री, भारत सरकार
  2. श्रीमती बेबी रानी मौर्य, महामहिम राज्‍यपाल, उत्‍तराखण्‍ड
  3. प्रो. रजनीश कुमार शुक्‍ल, कुलपति, महात्‍मा गांधी अंतर्राष्‍ट्रीय हिंदी विश्‍वविद्यालय, वर्धा
  4. श्री युवराज मलिक, अध्‍यक्ष, राष्‍ट्रीय पुस्‍तक न्‍यास
  5. श्री रमेश कुमार पाण्‍डे, कुलपति,लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय
  6. प्रो. राजकुमार, कुलपति, पंजाब विश्‍वविद्यालय, पंजाब
  7. प्रो. अवनीश कुमार, अध्‍यक्ष, वैज्ञानिक एवं तकनीकी शब्‍दावली आयोग

 

 

 

 

हिंदी राइटर्स गिल्‍ड, कनाड़ा द्वारा साहित्‍य गौरव सम्‍मान, 2021  

हिंदी राइटर्स गिल्‍ड, कनाड़ा द्वारा साहित्‍य गौरव सम्‍मान, 2021

 

दिनांक: 16 जनवरी, 2021

 

 

माननीय शिक्षा मंत्री, डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’

 

          इस कार्यक्रम में उपस्थित भारत वर्ष, कनाडा और दुनिया के लगभग 50 देशों से भी अधिक देशों के सभी भाई और बहनों का मैं हृदय की गहराइयों से अभिनंदन करता हूं और आज इस कार्यक्रम में हमारे देवभूमि उत्तराखंड कीमहामहिम राज्यपाल श्रीमती बेबी रानी मौर्य जी जो साहित्य के प्रति बहुत ही लगाव रखती हैं और जिन्होंने जीवन में विभिन्न स्थानों से होते हुए आज महामहिम राज्यपाल के दायित्व को निभा रही हैं मैंउनका पूरेविश्व हिन्‍दी परिवार की ओर से भी अभिनंदन कर रहा हूं। मुझे खुशी है कि श्रीअजय बिसारिया जी जोभारत के हाई कमिश्नर हैंकनाडा में, उन्होंने हिन्दी को सम्मान दिलाने कीहमेशा कोशिश की है और आज भी संकल्पित हैं। मुझे खुशी है श्रीमती अपूर्वा श्रीवास्‍तवजी जो भारत की कौंसिलाधीश कनाडा हैं, इन दोनों लोगों के संयुक्त प्रयास से और बिसारिया जी आप के प्रोत्साहन से मैं समझ सकता हूं कि जो कनाडा में मेरे हिंदी लेखक हैं उनको कितना गौरव महसूस होता होगा और उनके अंदर ऊर्जा है जिससे उन्होंने वहांपर हिंदी का एक बड़ा संसार बना दिया है। मुझे भरोसा है कि आपका यह प्रयास कनाडा काएक नया इतिहास लिखेगा। जब मैं शैलजा जी को बोलते हुए सुन रहा था औरमैंने उनको पहली बार सुना है लेकिन उनके वाणीमें सरस्‍वती विराजमान है।

मैं समझ सकता हूं कि कितने अकलुशित लोग इस अभियान में जुटे हुए हैं। आदरणीय विजय विक्रांत जी हैं, श्री सुमन जी है जिनके बारे में लगातार बोला गया है और शैलजा सक्सेना जी, आप लोगों ने जो यहां पर हिंदी लेखकों का समूह बनाया है, यहबहुत अच्छी पहलहै। पूरी दुनिया में हिन्दी अब केवल कुछ कहानियों के लिए, कुछ कविताओं के लिए, कुछ उपन्यासों के लिए और केवल संवाद के लिए नहीं है बल्‍कि हिन्दी जीवन है और मानवता की आधार है और इसीलिए हिन्दी पूरी दुनिया के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है।

मुझे इस बात की भी खुशी है कि श्रीअनिल जोशी जी, जो वर्तमान में केन्द्रीय हिन्दी संस्थान के हमारे उपाध्यक्ष हैं  लेकिन जब वे विदेश सेवा में थे तब मैं उत्तराखंड का मुख्यमंत्री था 2009-10 में तब भी दुनिया के तमाम देशों से हिंदीसीखने वाले बच्चों को वे लाते थे और उन्‍हें पूरे हिन्दुस्तान का दर्शन कराते थे। मुझे याद आता है कि इसी राजभवन में हमारे राज्यपाल जी के साथ हम लोगों ने यहां पर बहुत अच्छा कार्यक्रम करवाया था और बच्चों का अभिनंदन कराया था तथा आज उन्होंने सारे विश्‍व में हिंदी परिवार बनाया है मुझे खुशी है और मुझे भरोसा है कि जिस संस्थान की बागडोर आज इनके हाथों में गई है, केन्द्रीय हिन्दी संस्थान की उसेये विश्‍व स्‍तर पर लेकर जाएंगे क्योंकि अभी भी हमारे 25-30 देशों के बच्चे वहां पर रेगुलर पढ़ते हैं, डिग्रियाँ प्राप्त करते हैं और पूरी दुनिया में वो हिंदीके ब्राण्ड एम्बेसडर बन कर के काम कर रहे हैं।

मुझे भरोसा है कि अनिल जोशी जी ने जो अभियान तब से लेकर के जब वे विदेश सेवा में रहे हैं और आज वो विदेश सेवा से निवृत होने के बाद तुरंत हमने इनको एक बहुत बड़ी जिम्मेदारी सौंपी हैं और कम समय में इन्होंने बेहद व्यापक तरीके से काम करना शुरू किया है। हमारे पूज्य गुरुजी जो बहुतप्रसिद्ध साहित्यकार हैं और जो शिक्षाविद् हैं उस ज़माने के डीलिट हैं और एक कॉलेज के प्रधानाचार्य हुआ करते थे और मैंगुरूजी का भी अभिनंदन करना चाहता हूं। प्रोफेसर योगेन्‍द्रनाथ अरुण जी का और रमा जी आप तो धाराप्रवाह बोलती है। जिस तरीके से आप ने पीछे भी मैंने देखा था कि‘निशंक का रचना संसार: देश के पार’ आपने जिस तरीके से विश्व के लगभग 30-40 देशों के साहित्यकारों से लिखवाया है मैंउन सभी लेखकों के प्रति भी आभारी हूं।

आपके माध्यम से उनका मैं आभार प्रकट करना चाहता हूं।आप बहुत सक्रिय रहती हैं और हिन्दी में आप जैसे लोग जब सक्रियरहते हैं तो हिन्दी का भविष्‍यपूरी दुनिया में कोई रोक भी नहीं सकेगा ऐसा मेरा भरोसा है। डॉ. तोमियो मिजोकामी जीजो जापान से हैंऔर निदेशक मंडल केसदस्य हैं आपनेजापान में हिन्दी का बहुत अच्छा माहौल बना दिया है। जैसे कनाडा में आप माहौल बना रहे हैं ऐसे ही जापान में भी बहुत अच्छे तरीके से हिन्‍दी पर काम-काज हो रहा है।

पीछे के समय मैं जापान गया था तो मुझे बहुत खुशी हुईऔर मुझे बहुत आनंद आता है। हमारे पद्मश्री कल्याण रावतजी इन्होंने जिस तरीके से पर्यावरण की दिशा में काम किया हैं,हम इन पर बहुत ही गर्व करते हैं और स्कूली बच्चों के साथ मिलकर के जो काम कर रहे हैं, वह बहुत बड़ा काम कर रहे हैं। पद्मश्री लीलाधर जगूड़ी जी विख्‍यातसाहित्यकार और हमारे मार्गदर्शक तथा हमारे बड़े भाई हैं और मुझे याद आता है कि जब मैं पहली बार1991 में उत्तर प्रदेश की विधान सभा में विधायक बन करके गया था तब जगूड़ीजी उत्तर प्रदेश सूचना निदेशालय में संयुक्त निदेशक के पद पर होते थे और हमारा सबका संरक्षण करते थे तथा तब से लेकर के आज तक इनका भी मार्गदर्शन हमको मिलता है, मैं इनके प्रति भी बहुत आभार प्रकट कर रहा हूं।

डॉ. योगी जी बहुत ही विश्वविख्यात चिकित्सक हैं जिन्होंने अपना जीवन लोगों की सेवाकेलिए दिया है और ऐसे सर्जन हैं जो बिगड़ी हुई चीज को सुधारते हैं, रचना करते हैं, खूबसूरत बनाते हैं।मैं आपको विगत 25-30 सालों से जानता हूं कि दुनिया का कोई भी व्यक्ति हो, योगी जी निशुल्‍कतरीके से सेवा करते हैं तथा बहुत ही बड़े सर्जन हैं तो पद्म श्री योगी जी का भी मैं इस अवसर पर बहुत धन्यवाद देना चाहता हूं।

मुझे इस बात की खुशी है किहमारे इसरो के पूर्व अध्यक्ष पद्मभूषण राधाकृष्णन जी को भीमैं भीदेख रहा हूं और राधाकृष्णन जी को लोगों ने इसरो के अध्यक्ष के रूप में जाना होगालेकिन वो आईआईटी परिषद के भी अध्यक्ष हैं। राधाकृष्णन जी बहुत अच्छे नर्तक भी हैं, मैं आपको बधाई देना चाहता हूं पूरी दुनिया के लोग इस बात से परिचित होंगे कि राधाकृष्णन जी केवल बहुतविश्वविख्यात वैज्ञानिक की नहीं है बल्कि कला के प्रति उनमेंजो समर्पिततामैं बहुत खुश हूं,मैं बहुतगदगद हूं और आपका हम अभिनंदन कर रहे हैं। सम्‍पूर्ण हिन्दी परिवार आपका अभिनंदन करता है।

मुझे इस बात की भी खुशी है कि कस्‍तूरीरंगन जी अभी जुड़ नहीं पा रहे हैं लेकिन कस्तूरीरंगन जी जो इसरो के पूर्व अध्यक्ष रहे हैं और नई शिक्षा नीति के लिए उनके मार्गदर्शन में हमने बहुत बड़ा काम किया है वो भी आज जुड़ेंगेंऔर उनका भी आशीर्वाद मिलेगा।पद्मभूषण चंडी प्रसाद भट्ट जी जो हिमालय के पुत्र हैं और आज भी हिमालय केगोपेश्वर से जुड़े हैं भट्ट जी आपका स्वास्थ्य भी ठीक नहीं है और इसके बाद भीआप जुड़े हुए हैं, मैं आपका भी अभिनंदन करता हूं तथा आपका स्वागत कर रहा हूं।

मुझे मालूम है कि पद्म भूषण श्रद्धेय नरेंद्र कोहली जी, पद्म भूषण लोकेश चंद्र जी और पद्म भूषण और पद्मश्री अनिल जोशी जी भी लखनऊ से सीधे हमारे साथ जुड़े हैं, मैं आपका भी ह्रदय की गहराई से अभिनंदन कर रहा हूँ। हम सबके लिए जो प्रेरणा देतेहैं वो श्यामसिंह  शशि जी जिनको देखते ही बहुत आनंद आ जाता है और मुझे लगता है आज सेतीस-चालीस वर्ष पहले पद्मश्रीसेविभूषित औरआज भी आपयुवाओं की भाँति सक्रिय रहते हैं।

अटल जी ने उनकीपुस्‍तकका लोकार्पण किया था। मेरा सौभाग्य है कि आज हमारे साथ बहुत सारे लोग जुड़े हुए पद्मश्री आलोक मेहता जी जुड़े हैं, पद्मश्री अशोक चक्रधर जी जुड़े हैं, पद्मश्री प्रकाश सिन्‍हाजी हैं, पद्म श्री और बहुत विख्यात पत्रकार मेरे मार्गदर्शक रामबहादुर राय जी भी जुडे हुए हैं। उधर से मैं देखता हूं कि पद्मश्री मालिनी अवस्थी जी लखनऊ से जुडी हुई हैं, पद्मश्री प्रसून जोशी जी मैं आपका बहुत धन्वाद देना चाहता हूँ कि आपके गीतों से हम अभिप्रेत होते हैं और पद्मश्री प्रसून जोशी जी जो फिल्म सेंसर बोर्ड के अध्यक्ष भी हैं, वो जुड़े हैं, आचार्य बालकृष्ण जी मैं आपका भी अभिनंदन करता हूँ तथा प्रणाम करता हूँ और पद्मश्री पुष्पेश पंत जी, पद्म श्री ब्रजेश शुक्ल जी, पद्म श्री बीवीआर मोहन रेड्डी जी,सुभाष घई जी जुड़े हुए हैं, अनुपम खेर साहबजुड़े हुए हैं,महेन्‍द्र सिंह धोनी जी, मैरीकॉम जी जो हमारे एमपी भी हैं और जिन्होंने पूरे विश्व में भारत का नाम रोशन किया है, पीटी उषा जी मैं आपको भी धन्यवाद देना चाहता हूँ, दीपा मलिक जी मैं आपको भी धन्‍यवाद देना चाहता हूँ और मुझे लगता है कि आज मेरा सौभाग्य है कि पद्मेश गुप्त जी सहित तमाम लोग जुड़े हुए हैं।

मैं यदि बहुत सारे लोगों का नाम नहीं ले पा रहा हूँ क्योंकि अबसमय भी हो गया है लेकिन मैं कुछ देशों के नाम, जिनके बहुत से लोग हमारे साथ जुड़े हैं, जो मेरे पास सूचना आई है जो इस कार्यक्रम में जुड़े हैं, जो हिन्दी के लिए समर्पित हैं,मैं आज जितने भी देशों के लोग जुड़े हैं जितने मेरे पद्मश्री तथा पद्म भूषण और विभिन्न पुरस्कारों से युक्त और हिन्‍दीके प्रति समर्पित सभी व्‍यक्‍तियों को इस सम्मान को मैं उनको समर्पित कर रहा हूं। चाहेओमान से जुड़े हैं, फिजी से जुड़े हैं,साउथ अफ्रीका से जुड़े हैं, त्रिनिदाद से जुड़े हैं,गुयानासे जुड़े हैं, सिंगापुर से जुड़े हैं,इंडोनेशिया से जुड़े हैं, ताइवान से जुड़े हैं, साउथ कोरिया से  जुड़े हैं, जापान, हॉलैंड, मलेशिया, भूटान, संयुक्त अरब अमीरात, कतर, सउदी अरब,पोलैण्ड, अमेरिका, स्विटजरलैण्ड, नार्थ तंजानिया, आयरलैंड, कीनिया, इंग्लैण्ड, थाईलैंड, वियतनाम,आस्‍ट्रेलिया,इजरायल, सिंगापुर, यमन, कुवैत, मॉरीशस, नेपाल, बेल्जियम, श्रीलंका, युगांडा, यूक्रेन सहित लगभग 55 देशों के लोग जो आज इस कार्यक्रम में जुड़े हैं, मैं आप सभी का अभिनंदन करता हूं और आज 55 देशों से भी अधिकलोगों के जुड़ाव ने यह साबित कर दिया है कि हिंदी अंतरराष्ट्रीय भाषा है और पूरी दुनिया में हिन्दी का बोलबाला है। हिंदी का भविष्‍यकोई रोक नहीं सकता तथाउसको कोई टोक नहीं सकता और वैसे भी मैं यह समझता हूं कि 67करोड़ से भी अधिक लोगों द्वारा बोली जाने वाली हिन्दी पूरे विश्व की सबसे बड़ी तीसरी भाषा है। लेकिन यदि आज सब लोगों ने यह संकल्प ले लिया है तो हिन्दी पूरे विश्व की नंबर एक भाषा होगी,नंबरदो नहीं होंगी। जिस तरीके से कनाडाकेलोगों ने इस अभियान को शुरू किया पीछे की समय में मैं जब इंग्लैंड से जुड़ा था वो कार्यक्रम ‘वातायन’ का कार्यक्रम था तब भीमुझे बहुत खुशी हुई और मैं यह निवेदन करना चाहता हूं कि हताशा और निराशा होने की कोई ज़रूरत नहीं है।हिंदी केवल भाषा नहीं है बल्‍कि हिन्दी हमारा जीवन है।

हमको कभी नहीं भूलना है कि हम दुनिया के लिए पैदा हुए है। यही मेरे भारत की संस्कृति का प्राण है। हिंदी और संस्कृत संस्कृति की सोहदरी है हिन्दी। हिन्दी के किसी भी शब्द को लीजिए दुनिया की भाषा आपकिसी भी भाषा को ले लीजिए और उसका वैज्ञानिक विश्लेषण कर लीजिए आप पायेंगे कि हिन्दी पूरी दुनिया की सबसे समृद्घ भाषा है। लगभग 10 लाख शब्दों वाली पूरी दुनिया की सबसे समृद्धतमभाषा हिन्दी है।इसको कोई रोक ही नहीं सकता है,यह है इसका वैभव। इसमें संवेदना भी है, इसमें लालित्य भी है, इसमें विज्ञान भी है, इसमें समाज भी है, इसमें अंतरआत्मा भी है,इसमें संघर्ष भी है, इसमें संवेदना भी है और कौन सी विधा है जो मेरी हिन्दी में नहीं है तथा कौन सा ऐसाक्षेत्र है जो मेरी हिंदी के लेखकों ने स्पर्श नहीं किया हैं।

हिंदी उस भारत की संस्कृति का ध्‍वजवाहक है जिसमें जो पूरे विश्व में मेरे भारत को कहा था‘‘एतद् देश प्रसूतस्य शकासाद् अग्रजन्मन:, स्वं-स्वं चरित्रं शिक्षरेन् पृथ्वियां सर्व मानव:’’ पूरी दुनिया ने हमसे आकर के सीखा था। तक्षशिला और नालंदा जैसे विश्वविद्यालय, विक्रमशिला जैसे विश्वविद्यालय पूरी दुनिया में तब हमारे ही देश में होते थे और आज भी सुख, शांति और समृद्धि का रास्ता यदि पूरी दुनिया में जाएगा तो उसका रास्ता हिंदुस्तान से होकर के गुजरता है, भारत की संस्कृति से होकर के गुजरता है। इस बात को दुनिया जानती है, मानती भी है, महसूस भी करती है और पहचानती भी है। इस देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी ने जिस लाइनपर काम किया,जिस ढंग से काम किया, जिस विजनके साथ काम किया, जिस संकल्प एवंजिस संदर्भ के साथ काम किया है, जिस बड़े निर्णय और कड़े निर्णयों के साथ काम किया है वो इस बात को प्रदर्शित करती है कि मेरा भारत विश्वगुरु था वो ऐसे ही नहीं था।

इसलिए आज दुनिया के जितने देशों का नाम मैंने आज लिया है ये सभी देश हिंदुस्तानी मूल के नहीं हैं बल्‍कि दुनिया के तमाम देशों के भी लोग हैं जो हिन्दी से अनुप्राणित हैं और जो चाहते हैं कि हिन्दी होनी चाहिए। क्यों होनी चाहिए हिन्दी?‘‘अयं निजः परो वेति गणना लघु चेतसाम्। उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम्’’अर्थात्पूरी वसुधा को कुटुम्ब मानने वाली, अपना परिवार मानने वाली यही हिंदी हो सकती है और किसी भाषा में दम नहीं है कि वह इन सबको अपनी बाहों में समेटकरके आगे ले जाए और फिर वह संस्कृत की उक्ति ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया, सर्वे भद्राणी पश्‍यन्‍तु, मा कश्‍चिद् दु:ख भाग्‍भवेत’अर्थात् हर व्यक्ति सर्वे भवन्तु सुखिनः मतलब सभी के सुख की कामना करते हैं और संकल्प यह लेते हैं कि जब तक धरती पर एक प्राणी भी दुखी होगा तब तक मैं सुख का एहसास नहीं कर सकता। पहले मैं उसके दुःख को दूर करूंगा। यह ताकत हिन्दी में ही हो सकती है और किसी भी भाषा में यह ताकत हो नहीं सकती। हम सभी भाषाओंको साथ लेकर के चल रहें हैं लेकिन हिन्दी एक ऐसे सूत्र की भाषा है जो हृदय की भाषा है, जिसमें लालित्‍य है। पूरी दुनिया में हिन्दी की गतिशीलता बढ़ रही है और जिस सीमा तक और जिस ढंग से हिन्दी का वैभव बढ़ रहा है, निश्चित रूप में यह हिन्दी केवल भाषा नहीं है। हिन्दी संस्कार भी है, संस्कृति भी है, अभियान भी है औरजीवन भी है। उसमें संवेदना भी है, उसमें वेदना भी है और उसमें आगे बढ़ने के ताकत भी है। इसीलिए इस खूबसूरती को हमको संजोने की ज़रूरत है।

मैं समझता हूं हम सब लेखकगण हैं और लेखक के भीतर कोई रचना तभी पैदा होती है जब अंदर से आदमी छटपटाता है। कोई भी चीज जब तक उसके मन के अंदर जो कहीं नकहीं किसी छोर पर उसने एक ऐसा स्थान बनाया हैकि जब तक वो बाहर नहीं निकलती आप चैन से बैठ नहीं सकते हैं औरयह आपकी संवेदना हैं। संवेदनहीन व्यक्ति चाहे राजनीति में है, चाहे वो प्रशासन में है, चाहे वो व्यवसाय में हैअथवाकिसी भी क्षेत्र में क्यों न हो,संवेदनहीन व्यक्ति हमेशा समस्याओं का पूंज होता है और संवेदनशील व्यक्ति समस्याओं के निदान का मुखर नेतृत्व करता है और इसीलिए यह जो संवेदना है वह बहुत जरूरी है क्‍योंकि व्यक्ति की संवेदना नहीं है तो कुछ भी नहीं है।

यदि एक व्यक्ति है, हाड़ मांस का है उसके नाक,आंख, कान सब उसी तरीके से हैं लेकिन जब कहते हैं कि यह मर गया है, तो मरा क्या है? संवेदनाएं ही तो मरी हैं, वे ही तो खत्म हुई हैं। बाकी तो सब आदमी यदि मरा हुआव्यक्ति है तो नाक भी है, कान भी है, सभी कुछ तो है,केवलप्राण चले गए हैं। सब कुछ खत्म हो गया यदि संवेदनाएं समाप्त हो गई। इसीलिए मुझे लगता है कि हिंदी के लेखकों की बड़ी जिम्मेदारी है कि शालीनताके साथ इस संवेदना को सरसायाजा सकता है, विकसित किया जा सकता है, अपनी भावनाओं मेंअपने शब्द सबसे बड़ी शक्ति हैं। अभी जो हम कह रहे हैं, वह बात हमारे ह्रदय तक पहुंचती है, बात होती है तो ह्रदय में अपना स्थान बनाती हैं और वैसे ही आदमी करनेलग जाता है।

दुनिया की सबसे बड़ी ताकत हैशब्‍दजो कुछ भी कर सकते हैं। अभी यदि कोई किसी को गाली दे देगा तो वहीं पर महाभारत शुरू हो जाएगा। जबकि केवल शब्द ही तो निकले हैं। उन शब्दों ने संस्कार भी दिए हैं, उन शब्दोंने प्रकृति के अनुरूप संस्कृति भी दी है। शब्द ठीक नहीं तो विकृति का रूप होगा औरविकृतीहमेशा विनाश का कारण होती है। जब शब्द सही होते हैं और धैर्यपूर्वक होते हैं तथा शालीनता होती है एवं उसमें संवेदनाएं होती हैं तो संस्कृति के रूप में विकसित होते हैं। संस्कृति हमेशारचना का काम करती है, सृजन का काम करती है।

इसलिए मेरा भरोसा है कि हमारा जो अभियान है वो छोटा अभियान नहीं है। हमारा अभियान कविता, कहानी और उपन्यास तक का अभियान नहीं है। हमारा अभियानउस जीवन का अभियान है जिसमें हमारी गीता भी आती है, हमारी रामायण भी आती है, जिसमें हमारी गीता जीवन मूल्य सिखाती है। हमारा एक ओर तो हमारी गीता कहती है कि आत्मा परमात्मा को जोड़ती है। हमारी गीता ने हमको बताया तभी तो हम सारे विश्व में महान रहे हैं, बड़े रहे हैं क्योंकि हमने शरीर का अस्तित्व कुछ नहीं माना। शरीर तो हमारा केवल माध्यम है जबकि हमारा लक्ष्य कुछ ओर है।हमने कहा कि शरीर से ज्यादा मोह मत पालो क्‍योंकियह शरीर तो नश्‍वर है। यह हमारा साथ कभी भी छोड़ जाएगा, अभी इधर बैठे हुए हैंमगर अगला क्षण किसका है, कौन जानता है?इसका मतलब जब तक मैं बोल रहा हूं तब तक ही वो मेरा है यह गीता ने हमको समझाया है कि जो जीवन है उसको अच्‍छे से जियो। यदि यह  क्षण अच्‍छा होगा तोपूराजीवनअच्छा होगा,यदियह क्षण ठीकनहीं है तो आपकाअगला क्षण कहां से अच्छा हो जाएगा और इसीलिए यह जो गीता का उपदेश है इसेपूरी दुनिया ने माना है और कहाकि आत्मा हमको परमात्मा से जोड़ती है।

शरीर तो चला जायेगा लेकिन जो जाता नहीं है वह आत्मा है। जो आत्मा है वो तो मरती नहीं है।फिर किस बात की चिंता है,फिरशरीर से क्यों मोह है? जो आत्मा है वो तो जैसे हम वस्‍त्र बदलते हैं, उसी प्रकार आत्‍मा भी हमारा शरीर छोड़कर दूसरे शरीर में प्रवेश करती है।इसका मतलब आत्मा की शुद्धि चाहिए आत्मा की पवित्रता चाहिए वो आत्मा हमारी संवेदनशील चाहिए और इस संवेदनशील आत्मा को बचाये रखना हीसबसे बड़ी चुनौती है और यहकाम मेरा लेखक हीकर सकता है।

वही कर सकता है जिसके मन में संवेदना की गूंज अंदर से उसको चैन से न बैठने दे रही हो।यदि किसी करुणा के समय में जिसकी आँखों में आँसू न आ जाए, यदि किसी परअन्याय होगा जिसकी भुजाएं नाफड़कने लग जाएं,जो परिस्‍थितिजन्‍य अपनेको देख नहीं पा रहा है,उस मिशन को बढ़ा नहीं पा रहा है, ऐसे तटस्थ लोग दुनिया के लिए अच्छे नहीं होते और इसीलिए आज जरूरत है कि कैसे करके हिन्दी केवैभव को पूरी दुनिया के लिए विकसित करें।

हम लोग तो वो रहे हैं जैसेअभी गुरूजी कह रहे थे कि धरती को हमने मांमाना है।कौन देश हमारा विरोध कर सकता है क्‍योंकि हमने तो पूरी पृथ्वी को अपनी मांकहाहै और इस पृथ्वी में पैदा होने वाला हरजीव जंतु मेरा अंग है, जैसे परिवार होता है। इसलिए दुनिया के उन देशों पर जो पूरी दुनिया को मार्किट के नाम से जानते हैं, मार्किट बताते हैं हम उनसे इत्तफाक नहींरखते हैं। हम उनकी बातों से सहमत नहीं होतेहैं। हम पूरी दुनिया को परिवार मानते हैं।

लोग उस दुनिया को मार्किट मानते हैं। बाजार में हमेशा व्यापार होता है। परिवार में हमेशा प्यार होता है। बहुत अंतर है उनके और हमारे विचार में। हम प्यार से इस पूरे संसार के इस परिवार को आगे बढ़ाना चाहते हैं, उसकी भावनाओं को विकसित करना चाहते हैं, हर समस्या का समाधान करने के लिए मिलकर के कामकरना चाहते हैं,यहहमारा संकल्प है।हमअसत्य से सत्य की ओर जाएंगे क्‍योंकि हम जानते हैं कि अंततोगत्वा सत्य की ही जीत होगी तो उस असत्य को क्यों ढोंएंगे।हमें ताकत चाहिए उन शब्दों के माध्यम से उससत्‍य को फैलाने की।‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’ इस अंधकार को मिटाने का ही तो हमने संकल्प लिया है। अंधकार कहीं भी हो सकता है किसी के दिल में हो सकता है। अज्ञान का अंधकार हो सकता है, भावनाओं का अंधकार हो सकता है, विकास का अंधकार हो सकता है, परिस्थितियों का अंधकार  हो सकता है लेकिन उस अंधकार को मिटाने के लिए ही तो हमने यह अभियान लिया है। मैं समझता हूं कि यदि कोई व्यक्ति है औरवो सो हो रहा है तो सोए हुए को तो जगाया जा सकता है और  जिस समय वह जगता है उसी समय उसका सबेरा है।

यदि कोई भावनाएं हमारे मन और मस्तिष्क में आती हैं और आपने देखा होगा क्‍योंकिआपसभी लोग लेखक गण हैं तो वे व्‍यस्‍त होने का रास्‍ता भी खोजते हैं। पद्मश्री दीपक पाठक जी और मनींद्र अग्रवाल जी भी अभी जुड़े हैं तथा बहुतसारे लोग जुड़े हुए हैं और मुझे खुशी इस बात की है कि इसका मतलब यह है कि हमारे विचारों में ताकत है, भारत के विचारों में ताकत है, हमारे समाज में ताकत है, हमारी उस गतिशीलता में ताकत है और इसीलिए हमारा विचार है कि हमअंधकार को मिटाएंगे।

उस अंधकार को मिटाने की ताकत हैं हममें, हम शब्दों से, भावनाओं से, विचारों से, कविताओं से, कहानियों से, उपन्यासों से,संवाद से, जो-जो, जिस-जिस समय, जिस-जिस ढंग से परिस्‍थितियांहमारे सामनेआएंगी, हम उन परिस्थितियों का मुकाबला करके अपने उस लक्ष्य कोसहज बनाकर उसे प्राप्‍त करने का काम करेंगे। मुझे बहुत खुशी है कि आज विश्वविद्यालयोंके बहुत सारे कुलपति भी जुड़े हैं।प्रो. रजनीश शुक्‍ल, महात्‍मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय वर्धा के कुलपति हैं, मैं आपसे अनुरोध करूंगाकि गांधी जी ने कहा था कि जिसकी अपनी भाषा नहीं होती वो तो गूंगा राष्ट्र है और आपकी जिम्मेदारी है कि आप गांधी जी के सत्य, प्रेम और अहिंसाकेसंदेश को हिंदी के माध्यम से पूरी दुनिया में सरसाएंगे।पीछे के दिनों में यूनेस्को में जब मीटिंग हुई तो वहां की डी.जी. ने पूछा किजीवन मूल्यों में गिरावट आई है इसके क्या कारण हो सकते हैं?

मैंने उनको कहा कि हमने मनुष्य को मनुष्य बनाया कहां है, हमने तो मशीन बनाये हैं। केवल अंक ज्ञान और अक्षर ज्ञान मनुष्य नहीं बना सकता वह तोमशीनों में भी है। अभी हम जिस नयी शिक्षा नीति 2020 को लेके आए हैं मुझे इस बात की भी खुशी है कि उससेपूरे देश में आज उत्सव का वातावरण है। अभी कैम्ब्रिज ने कहा है कि इस तरीके की जो शिक्षा नीति है, वह वास्‍तव में अद्भूत है। अभी संयुक्‍तअरब अमीरात के शिक्षा मंत्री जी से बात हुई, उधर मॉरीशस हो, चाहे आस्ट्रेलिया हो तमाम दुनिया के देशों ने कहा है कि इस एनईपी को हम भी लेना चाहते हैं। हमने आमूल चूल परिवर्तन किया है लेकिन उसकी आधारशिला भारतीयता पर है।हमउस भारत की बात करते हैंजहां सुश्रुत पैदा  हुआ जो शल्य चिकित्सा के जनक थे।

उस भारत की बात करते हैं जिसने आयुर्वेद की बात की, पूरी दुनिया के तन और मन को ठीक करने के लिए हमारे पास आयुर्वेद था, हम उस भारत की बात करते हैं।आज दुनिया के 197देश योग के पीछे खड़े हो गए हैं क्योंकि भगवान की सबसे सुंदरतम कृतिमनुष्य को हमको बचाना है। भाषा विज्ञानमें हमारे पाणिनी से बड़ा भाषा वैज्ञानिक दुनिया में कौन हो सकता है,रसायनशास्त्र में नागार्जुन से बड़ा कौनहो सकता है?अणु और परमाणु कीचर्चा करनेवाले और उस विचार को आगे बढ़ाने वालेऋषि कणाद से बड़ा कौन हो सकता है? मुझे खुशी है कि कैम्ब्रिज ने जबइस नयी शिक्षा नीति पर मुझे चिट्ठी भेजी थी, मेल किया था और अनिल जोशी जी उस दिन थे। उनका जो मेल आया था उन्होंने कहा कि भारत पहले भी विज्ञान का केन्द्र रहा है, भारत ने ही पूरे विश्व को गणित दिया।

पूरी दुनिया जानती है कि हमारे पास बहुत कुछ है देने के लिए। हमारे पास वेद है, पुराण है,उपनिषद है। हम दुनिया के लोगों का तन और मन ठीक कर सकते हैं और इसीलिए जो तन और मन को ठीक कर रहे हैं। खूबसूरत दुनिया होगी हमारा विचार बड़ा है। हमारे विचार संकीर्णनहीं है। हम तो पूरी दुनिया के लिए सोचते हैं और इसीलिए दुनिया का जो मनुष्य है और इस मनुष्य के बारे में सोचते हुए मुझे हमारे विचार पर  मुझे भरोसा है। दुनिया को जरूरत है मेरे भारत की, भारत के विचारों की और इन विचारों के ध्‍वजवाहक के रूप में हिंदी के जो लेखक है ये आगे आ रहे हैं, मुझे बहुत खुशी है। अभी जगूड़ी जी ने चिंता जरूर व्यक्त की है लेकिन भाईसाब को मैं कहना चाहूंगा कि निराशा जैसी कोई बात नहीं है।

आप देखिए,बहुत तेजी से  परिवर्तन हो रहा है। हमारे इसरो के चेयरमैन यहांबैठे हुए हैं और हमारे आईआईटी परिषद के चेयरमैन भी हैं लेकिन जब हम लोग मीटिंग करते हैं तो शायद राधाकृष्णन जी ने कभी हिन्दी में नहीं बोला होगा,लेकिन वे बहुत खूबसूरत हिन्दी बोलते हैं, बधाई राधाकृष्णन जी,हमारेजितने आईआईटी के प्रोफेसर हैं, निदेशक हैं खूबसूरत हिन्दी बोलतेहैं,उनको बहुत अच्छालगता है। हिन्दी में लालित्य है, हिन्दी में इतने शब्द हैं कि आप किसी भी शब्द के माध्‍यम से अपनी भावना को व्यक्त कर सकते हैं।यह सामर्थ्य हिन्दी के पास है जोछोटा सामर्थ्‍य नहीं,बहुतबड़ा शब्द सामर्थ्य है। अभिव्यक्ति का इससे बड़ा साधन क्या हो सकता है?

हम सौभाग्यशाली है क्‍योंकि तमिल, तेलुगू, मलयालम, गुजराती, मराठी, बंगाली, उड़िया, उर्दू, हिन्दी, संस्कृत, असमिया सहित 22 ऐसी खूबसूरत भाषाएं हमारे संविधान ने हमको दी हैं और हम उन सभी भाषाओं की खूबसूरती लेना चाहते हैं। उसके अंदर उसका ज्ञान, विज्ञान, आचार, व्यवहार जो उसकी परंपराएं हैं हम उन सब कोलेना चाहते हैं। हम दुनिया को इस खूबसूरती को बांटना चाहते हैं।हमहर क्षेत्र में ज्ञान विज्ञान अनुसंधान नवाचार में बहुत आगे थे और आगे  हैं आज भी है और इसलिए मुझे भरोसा है कि यह एक अभियान के रूप में चलना चाहिए। यह रुकना नहीं चाहिए इस अभियान की लोगों को जरूरत है,लोग तड़प रहें हैं, पूरी दुनिया तड़परही है, मैं दुनिया के देशों में जब-जब भी जाता हूं तब मुझे लगता है कि हिन्दी और संस्कृत के प्रति लोगों में बहुत रुझान है क्‍योंकिउसमें जीवंतता मिलती है,उनमें अपनी भावनाएं व्यक्त करने की आत्मीयता मिलती है,जीवन को आगे बढ़ाने की प्रेरणा मिलती है और इसलिए यह जो हिन्दी है इसकी खूबसूरती बरकरार रखनी चाहिए। श्रीरमेश कुमार पाण्डे जी कुलपति लालबहादुर शास्त्री संस्कृत विद्यापीठ, प्रो. सुधा रानीपांडे जी पूर्व कुलपति, पद्मश्री श्याम सिंह जी, कुलपति राजकुमार जी पंजाबविद्यालय, प्रो. अवनीश कुमार अध्यक्ष वैज्ञानिक एवं तकनीकी शब्दावली आयोग, आपको काफी मेहनत करनी पड़ेगी क्योंकि अभी मेरे देश के प्रधानमंत्री ने कहा कि इंजीनियर एवं डॉक्‍टर दोनों अपनी मातृभाषा में हो सकेंगे। प्रो. गोपाल शर्मा जी,विजिटिंगप्रोफेसर, इथोपिया आपका भी अभिनंदन हैं।श्रीऋषभदेव शर्मा जी आपका भी बहुत अभिनंदन है। मोहनकांतगौतम जी, श्वेता दीप्ति जी, सोमा बंद्योपाध्याय जी कुलपति बहुत अच्छा गाती हैं। सोमा जी आप बंगाल की धरती पर बहुत अच्‍छी कविताएँ लिखती हैं, अच्छा गाती हैं।

प्रो.रंजन प्रसाद सिंह जी भी जुड़े हैं, प्रो. सूर्यप्रताप दीक्षित जी हमारे सबके बहुत ही पूजनीय हैं। डॉ.राकेश कुमार शर्मा जी संपादक केन्‍द्रीय हिन्‍दी निदेशालय, डॉ. पंकज चतुर्वेदी जी, युवराज मलिक जो डायरेक्टर हैं एनबीटी के, मुझे खुशी होती है कि इतना बड़ा परिवार है और वरिष्‍ठस्थानों पर हम लोग बैठे हैं कोईकमी नहींहो सकती है और इसलिए हमआपने महामहिम राज्यपाल जी को यह आश्‍वस्‍त कर ही सकते हैं कि आज हमारा संकल्प का दिन है कि हम पूरी दुनिया में हिन्दी को लेकर केजाएंगे और हिन्दी पूरे विश्व की भाषा बनेगी।

मैं आभारी हूं आपने मुझे याद किया औरमैंबहुतहृदय की गहराईयों से आपके प्रति आभार प्रकट करता हूं और मुझे भरोसा है कि यह संवेदना रूकेगी नहीं बिल्कुल यहअभियान के रूपमें चलेगी और ‘अभी भी है जंग जारी’ जो अभी हमारे भारत के पूर्व-राष्‍ट्रपति भारत रत्न अब्दुल कलाम जी के बारे मेंगुरूजी ने उनकके शब्द पढ़े जब मैं उनको मिलने के लिए गया तो उन्होंने कहा कि आपकी तो 1983से ही रेडियो पर देशभक्ति के गीत आते हैं। मेरे को जानकारी मिली है कि क्या यह सारे देशभक्ति के गीत इकट्ठा नहीं हो सकते, मैंने कहा कि क्यों नहीं हो सकते, आप बताइये उन्होंने ही उसकिताब का शीर्षक भी दिया था।‘ऐ वतन तेरे लिए’इसकायह नाम होगा तो मैंने उनके आदेश का पालन किया और वे सभी देशभक्ति के गीत एक जगह आए।

जब उन्होंने लोकापर्ण किया तो इस संग्रह की एक कविता- ‘‘अभी भी है जंग जारी वेदना सोई नहीं है मनुजता होगी धरा पर,संवेदना खोई नहीं है, किया है बलिदान जीवन, निर्बलता ढोई नही है और कह रहा हूंऐवतन तुझसे बड़ा कोई नहीं है।’’और लास्‍ट की पंक्‍ति कहते-कहते उनकी आंखों से आंसू छलक आये थे और तब मुझे लगा था कि उनके मन में संवेदनाएं और जागरूकता किस सीमा तक की है।उस दिन मैंने संकल्‍प लिया था कि मैं उनके विचारों पर कुछ अवश्‍य लिखूंगा। उनके  जीते जी  तो नहीं लिख पाया लेकिन मैंने  उन्‍हीं  के शब्‍दों को उधार लेकर‘सपने जो  सोने ना दें’ शीर्षक पुस्‍तक लिखी थी,जिसका तमाम  भाषाओं में अनुवाद भी  हुआ और वह बहुत लोकप्रिय  हुई आज मैं उस किताब  को  आपको  समर्पित कर रहा हूं क्‍योंकि हम सबने बहुत अच्‍छे सपने देखें हैं लेकिन कलाम साहब के सपने जो सोने न दें और जब तक हमारे सपने पूरे नहीं हो जाते हम भी चैन से नहीं बैठेगें और आज हम इस संकल्‍प के साथ यहां से जाएंगे। एक बार मैं पुन: आपके प्रति बहुत आभारी हूं।

 

बहुत-बहुत धन्‍यवाद!

 

कार्यक्रम में गरिमामयी उपस्‍थिति:-

 

  1. डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’, माननीय शिक्षा मंत्री, भारत सरकार
  2. श्रीमती बेबी रानी मौर्य, महामहिम राज्‍यपाल, उत्‍तराखण्‍ड
  3. प्रो. रजनीश कुमार शुक्‍ल, कुलपति, महात्‍मा गांधी अंतर्राष्‍ट्रीय हिंदी विश्‍वविद्यालय, वर्धा
  4. श्री युवराज मलिक, अध्‍यक्ष, राष्‍ट्रीय पुस्‍तक न्‍यास
  5. श्री रमेश कुमार पाण्‍डे, कुलपति,लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय
  6. प्रो. राजकुमार, कुलपति, पंजाब विश्‍वविद्यालय, पंजाब
  7. प्रो. अवनीश कुमार, अध्‍यक्ष, वैज्ञानिक एवं तकनीकी शब्‍दावली आयोग

 

 

 

 

विश्‍व हिन्‍दी सचिवालय,मॉरीसशमें आयोजित विश्‍व हिन्‍दी दिवस-2021

विश्‍व हिन्‍दी सचिवालय,मॉरीसशमें आयोजित विश्‍व हिन्‍दी दिवस-2021

 

दिनांक: 11 जनवरी, 2021

 

 

माननीय शिक्षा मंत्री, डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’

 

विश्‍व हिन्दी दिवस के इस अवसर पर मैं आज मॉरीशस की धरती से जुड़े तथा पूरे विश्व में फैले हिन्दी के सभी प्रेमियों का और जो हिन्दी के प्रचार और प्रसार के लिए पूरी दुनिया में जुटे हुए हैं उन सभी लोगों का मैं हृदय की गहराइयों से हिंदुस्तान की धरती से आपका अभिनंदन करता हूं। इस अवसर पर मॉरीशस के महामहिम राष्ट्रपति श्रीपृथ्वीराज सिंह रूपन जी, मॉरीशस में भारत की उच्चायुक्त श्रीमती के. नंदनी सिंगला जी, विश्व हिन्दी सचिवालय के महासचिव प्रो.विनोद कुमार मिश्र जी, मास्को राज्य विश्वविद्यालय के प्राध्यापक,उपस्थित सभी विद्वतगण और विश्व हिन्दी दिवस के अवसर पर पूरी दुनिया से जुड़े सभी भाइयोऔर बहनों का मैंइस दिवस के अवसर पर और नववर्ष के आगमन पर सबका अभिनंदन करता हूं, आपको हार्दिक शुभकामनाएं देता हूं। मैंसबसे पहले तो मॉरिशस का अभिनन्दन करना चाहता हूं औरमॉरीशस इस अभिनंदन का अलग से इसलिए भी पात्र है क्‍योंकि सैकड़ों वर्ष पहले हिन्दुस्तान की धरतीसे लोग मॉरीशस गए और उन्होंने अपने खून पसीने से जिस तरीके से मॉरीशसको सींचा, उससे आज मॉरीशस दुनिया के अच्छे और सुंदरतम देशों में स्थापित है। उस निर्जन द्वीप को अपनी मेहनत से हरा-भरा करने वाले उन सभी लोगों को जिन्होंने बहुत सारी यातनाएं भी सही उन्‍हें इस अवसर पर याद कर रहा हूं और मुझे यह कहना है कि दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक बंधुत्व और लंबे ऐतिहासिक संबंधों ने एक मजबूत कड़ी के रूप में भारत और मॉरीशस को जोड़ करके रखा है। भारत और मॉरीशस दोनों में अनेक सांस्कृतिक-ऐतिहासिक,भाषाईऔर साहित्यिक दृष्टिसे समरूपता है। कोई भारत का व्यक्ति मॉरीशस की धरती पर जाता है तो वो टैक्सी में बैठे हुए एफएम पर हिन्दी के गानों को गुनगुना सकता है, सुन सकता है, आम भारतीय व्यंजनों का आनंद उठा सकता है।यहांके कण-कण में भारतीयता की सुगंध आती है और सही मायने में भारत और मॉरीशस एक दूसरे के प्रतिबिम्‍बनज़र आते हैं। मुझे याद है किजब मैं उत्तराखंड के स्वस्थ्य मंत्री के रूप में था तब मॉरीसश के तत्कालीन राष्‍ट्रपतिश्री अनिरुद्ध जगन्नाथ जीमेरी पुस्तक का लोकार्पण करने के लिए देहरादून आए थे। उस समय उन्होंने कहा था कि आज हमारे में भारतीयताका खून बहता है और हमारे संस्कारों में भारतीय संस्कृति की सुगंध समाई हुई है  तथा उनके इन शब्दों को सुनकर पूरा देश अभिभूत हुआ था। उसके बाद मुझे याद आता है कि मैं जब वर्ष 2010 में उत्तराखंड के मुख्यमंत्री के रूप में था तबमैंगंगोत्री केगंगातालाब से गंगा जल लेकर मॉरीशस तक गया और मुझे याद है कि तब मॉरीशस में गंगा तालाब पर उत्‍सवहुआ था जिसमें तत्कालीन राष्‍ट्रपति तथा तत्कालीन प्रधानमंत्री दोनों सहित पूरेमॉरिशस का मंत्रिमंडल उपस्थित था और हजारों-हजारों लोगों की उपस्थिति उस ऐतिहासिक क्षण की गवाह बनी। आज मुझे खुशी होती है कि मॉरीशस की जो संस्‍कृतिहै वो भारत की संस्कृति से ओत-प्रोत है और इसीलिए हम दोनों देश एक-दूसरे के अभिन्न अंग हैं बल्कि एक-दूसरे की संस्कृति, भाषा, परिवेश से बहुत अंदर तक जुड़े हुए हैं। मॉरीशस केवलदुनिया के सबसे खूबसूरत देशो में सेएक ही नहीं बल्‍किउसमें कई प्रकार की सुंदरता भी है और उसकी इस सफलता एवं सुन्‍दरता काकारण उसकी जड़ों में निहित है जिसने संकट के दिनों में भी अपनी भाषा तथा अपनी संस्कृति कोछोड़ा नहीं, भूला नहीं है। मुझे लगता है कि संघर्ष के दिनों में यहां के हमारे भारतवंशी भाई-बहनों ने गोस्वामी तुलसीदास की रामचरितमानस, गीता और गंगापर उन्होंने अपने को जीवंत रखा था। मॉरिशस से लौटने के बाद मैंने अपनी एक कृति ‘मॉरीशस की स्वर्णिम यात्रा’ को लिखा था, जिसमें मैंने उस समय के कालखंड को भी कुछ चित्रित किया था तथा साथ ही वर्तमान के उदयीमान होते मॉरिशस का भी जिक्र किया था और मुझे खुशी है कि आज उसको मॉरीशस में बेहतर लोकप्रियता मिली। मॉरीशस मेंपूरे विश्व का हिन्दी सचिवालय स्थापित होना अपने आप में यह दर्शाता है कि मॉरीशस का हिन्दी के प्रति किस सीमा तक का लगाव तथाजुड़ाव है और आज हम दोनों देश मॉरीशस औरहिंदुस्तान संयुक्त रूप से इस सचिवालय को आगे बढ़ा रहे हैं और अब सचिवालय के शासी परिषद के सदस्य के नाते मैं कह सकता हूं कि यह सचिवालय रात-दिन खप करके हिन्दी को पूरे वैश्विक पटल पर ले जाने के लिए जुटा हुआ है। मैं उस पूरी टीम को और जो महासचिव हैं विनोद मिश्रा जी उनकाभी अभिनन्दन करना चाहता हूं कि वो लोग को पूरी ताकत के साथ इस हिन्‍दी की खूबसूरती को निखारने का काम कर रहे हैं। हिन्‍दी की लगभग नौ से दस लाख शब्दों कीसंपदा पूरे विश्व में एक अलग प्रकार का वैभवखड़ा करती है। हिन्‍दी में लालित्य भी है, उसमें साहित्य भी है, उसने संस्कार भी हैं, उसमें जीवन मूल्य भी हैं, उसमे ज्ञान भी है, तो उसमें विज्ञान भी है, उसमें अनुसंधान भी है,उसमेंनवाचारभी है। यदि हिंदी को देखें तो बहुत सारी खूबसूरती उसमें भरी पड़ी हुई है जिसकी सुगंध पूरे विश्व के लोग लेना चाहते हैं और विश्वहिन्‍दीसचिवालय मॉरीशस इस दिशा में लगातार आगे बढ़ रहा है। मुझे खुशी है मेरे देश के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी जब विश्व के किसी भी देश में जाते हैं तो हिंदी में भाषण दे करके, हिन्दी में अपनी अभिव्यक्ति को पूरे विश्व के पटल पर ला करके केवल हिन्दी को मान और सम्मान हीनहीं देते बल्कि उस हिन्‍दीकी खूबसूरती को विश्व पटल पर प्रसारित करने में भी हमको मार्गदर्शन देते हैं। मैं इस अवसर पर जहां भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी के प्रति बहुत आभार प्रकट करना चाहता हूं वहींमैं मॉरीशस की सरकार को भीजिन्होंने मॉरीशस में रह कर के और हिन्दी के लिए प्रतिबद्ध तथासमर्पित हो करके रात-दिन खप करके वर्ष2008से इस सचिवालय को बहुत ताकत के साथ कर आगे बढ़ाया है। वर्ष1973 में जब वर्धा समिति द्वारा हिन्दी को विश्व फलक पर लाने के लिए चर्चा हुई थी और1975 में पहला विश्व हिन्दी सम्मेलन नागपुर में हुआ था तब से लगातार अभी तक ग्‍यारहसम्मेलन हो चुके हैं और यह ग्‍यारह सम्‍मेलन विश्‍व के जितने भी देशों में हुए हैं उनमें से सर्वाधिक सम्मेलन इस मॉरीशस की धरती पर हुए हैं। हिन्‍दीएक भाषा नहीं है। आज हिन्दी जीवन शक्ति है और प्राण वायु है।उसका एक-एक शब्द जीवन को उदिप्‍तकरता है, भावनाओं को, विचारों को प्रज्जवलित करता है और इसीलिए हिन्दी सिर्फ हमारे लिए भाषा नहीं हो सकती है। यहहमें एक-दूसरे से जोड़ती है और यह अहसास भी कराती हैकि जब मन और आत्मा मिले हुए हों तो भौगोलिक दूरी कोई मायने नहीं रखते हैं। मुझे प्रसन्नता है कि पीढी दर पीढी हिन्दी अब लगातार आगे बढ़ रही है और हिन्दी नेदेश की सीमाओं को पार करके भीपूरे विश्व में एक बहुत खूबसूरत परिवारबनाया है। हिंदी उस विचार का प्रतिनिधित्व भी करती है जो ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ की बात करता है।‘अयं निजः परो वेति गणना लघु चेतसाम्।उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम्’ हमारी भाषा एवं संस्‍कृति ऐसी है जोपूरे विश्व को अपना कुटुंब मानतीहैऔर उसको ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः, सर्वे सन्तु निरामया’ के माध्यम से अपने कृतित्व और व्यक्तित्व के माध्यम से धरती के हर इंसान के कष्ट को दूर करने की कामना करती है इसलिए मैं समझता हूँ कि हिन्दी विचार प्रवाह है और उसका एक-एक शब्द जीवंत है और वो जीवन में जीने की प्रेरणा भी देता है। मैं मॉरीशस के प्रधानमंत्री श्रीप्रवीण जगन्नाथ जी को धन्यवाद देना चाहता हूं। मुझे याद आता है कि वर्ष2018 में जब हम मॉरीशस की धरती पर विश्‍वहिन्दी सम्मेलन के आयोजन में व्यस्त थे उसी समय अटल जी का देहांत हुआ था और उस समय सांस्कृतिक कार्यक्रमों को निरस्त करके अटल जी पर एक विशेष सत्र रखा गया था और मुझे याद आता है कि मॉरीशस के वर्तमान प्रधानमंत्री श्री प्रवीण जगन्नाथ जी ने मंच पर खड़े होकर के उनके नाम पर साइबरटावर का नाम ही अटल टावर रखा था और अटल जी ने जो विश्व हिन्दी सचिवालय और हिंदी के बारे में जो कुछ कहा था मॉरीशस में आज भी हमारे लिए एक पाथेय है। आज पूरी दुनिया में हिन्दी के लालित्य से अभिभूत होने वाले जितने भी लोग हैं वो आज संकल्प ले रहे होंगे कि हां, हिन्दी में सामर्थ्य है। हिन्दी में न केवल शब्द संपदा हैबल्कि ज्ञान है, विज्ञान है, अनुसंधान है,नवाचार है, व्‍यवहार है और जीवन मूल्य हैं। सभी गुणों से युक्त हिन्दी की पूरे विश्व में खुशबू बहुत तेजी से फैलनी चाहिए। मुझे इस बात की भी खुशी है कि मॉरीशस में सैकड़ों भारतीय छात्र पढ़रहे हैं और मॉरीशस के भी छात्रहिन्दुस्तान में पढ़ रहे हैं। अभी ‘स्टडी इन इंडिया’ हमारा कार्यक्रम है जिसके तहत आज हजारों दुनियाके छात्र भारत में पढऩे के लिए आ रहे हैं और मुझे भरोसा है कि हिंदी पूरे विश्व को एकसूत्र में जोड़ने और उस मानवता के व्यापक विचार को फलीभूत करने की एक महत्वपूर्ण कड़ी साबित होगी। आज मैं इस अवसर पर पूरे विश्व के उन लोगों को बधाई देना चाहता हूं और आपसबको मालूम है कि विश्व की आज सबसे महत्त्वपूर्ण भाषा यह हिन्दी है। इसमें ई-मेल है, एमएमएस है, ई-कॉमर्स है, ई-बुक है,इंटरनेट पर भी हिन्दी को स्‍वीकार्यताहै। ग्लोबल विश्व में हिंदी का बहुत बड़ा बाजार खड़ा हुआ है और चाहेगूगल हो और वो माइक्रोसॉफ्ट हो और चाहेआईबीएम जैसी बहुराष्ट्रीय और समर्थ कम्‍पनी हो, सभी ने आज हिंदी को बढ़ावा दिया है। यह हिन्दी की ताकत है और इसीलिए हिन्‍दीतेजी से तकनीकी की भाषा बन रही है। सम्पूर्ण विश्व में हिन्दी के शिक्षण एवं प्रचार-प्रसारके लिए विविध विश्‍वविद्यालय माध्‍यम बन रहे हैं। चाहे ब्रिटेन हो, जर्मनी हो, चीन हो, अमेरिका हो सभी तमाम बड़े देशों मेंहिन्दी को स्कूलोंसे लेकर कालेजों तक पढ़ायाजा रहा है और वो आकर्षण की भाषा बनी है।आज जो विश्व हिन्दी सचिवालय और भारत के हाई कमीशन की ओर से यह आयोजन आयोजित हुआ है, इस आयोजन के अवसर पर मैंजोभारत के उच्चायुक्त हैं उनको भी बधाई देना चाहता हूँ।विश्‍वहिंदी सचिवालय मॉरीशस को भी बधाई देना चाहता हूं और मुझे भरोसा है कि हम इस सचिवालय को और सशक्त करेंगे तथाबहुत ताकत के साथ इसको सशक्त करेंगे ताकि हिंदी की खुशबू पूरी दुनिया में प्रसारित हो सके। आओ, हम सबलोग एक बार संकल्प लें कि हिन्‍दी ऐसी लालित्यमयी और बोधमयी तथा सुगम एवंआम लोगों तक पहुंचाने वाली, एक-दूसरे को जोड़ने वाली, ऐसी समर्थ और सशक्त भाषा हो जिसे हम जन-जन तक पहुंचाएं। मैं इस अवसर पर एक बार पुनः पूरे विश्व के हिन्दी परिवार को अभिनंदन करता हूँ और स्वागत करता हूं।

 

बहुत-बहुत धन्‍यवाद

 

कार्यक्रम में गरिमामयी उपस्‍थिति:-

 

  1. डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’, माननीय शिक्षा मंत्री, भारत सरकार
  2. श्री पृथ्‍वीराज सिंह रूपन, राष्‍ट्रपति, मॉरीसश गणराज्‍य
  3. श्रीमती के. नंदनी सिंगला, उच्‍चायुक्‍त, विश्‍व हिन्‍दी सचिवालय
  4. प्रो. विनोद कुमार मिश्र, महासचिव, विश्‍व हिन्‍दी सचिवालय

         

विश्‍व हिन्‍दी दिवस के अवसर पर अंतर्राष्‍ट्रीय संगोष्‍ठी कोरिया में हिन्‍दी: दशा एवं दिशा

विश्‍व हिन्‍दी दिवस के अवसर पर अंतर्राष्‍ट्रीय संगोष्‍ठी कोरिया में हिन्‍दी: दशा एवं दिशा

 

दिनांक: 06 जनवरी, 2021

 

 

माननीय शिक्षा मंत्री, डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’

 

आज विश्‍व हिन्‍दी दिवस के सुअवसर पर मैं विवेकानन्द सांस्कृतिक केन्द्र केअधिकारियों एवं हमारे साथ जुड़े सभी लोगों को शुभकामना देना चाहता हूं। आपको तो मालूम है कि स्वामी विवेकानंद भारतीय ज्ञान परंपरा के ऐसे ब्रांड एम्‍बेस्‍डर थे जिन्होंने पूरी दुनिया में यह बतायाकि जीवन क्‍या है और ईश्वर की सबसे सुंदरतम कृति जोमनुष्य है, इसके जीवन का क्या दर्शन होना चाहिए।उस मनुष्य को किस तरीके से पूरी दुनिया में रहना चाहिए। स्‍वामी विवेकानन्‍द जी ने पृथ्वी को मां कहकर के पूरी दुनिया को अपने परिवार के रूप मानने को कहा है।‘अयं निजः परो वेति गणना लघु चेतसाम्।उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम्’ अर्थात् पूरी वसुधा को अपना कुटुम्ब मानने वाली उस संस्कृति के वाहक बनने का आह्वान किया है।पूरी दुनिया में इसमनुष्य के लिए हमने कहा है-‘सर्वे भवन्तु सुखिनः, सर्वे सन्तु निरामया’ कि दुनिया में कोई भी व्यक्ति जब तक दुखी रहेगा तब तक हम सुख का एहसास नहीं कर सकते। हम पहलेउसके दु:खों का निवारण करेंगे और ऐसी संस्कृति के ध्वजवाहक बनकर के विवेकानंद जी पूरी दुनिया में गए थे और आज यह सांस्कृतिक केन्द्र उन्हीं की स्‍मृति में बना है वह निश्चित रूप से कोरिया में उस विचार को और सशक्त करने का काम करेगा ऐसा मेराभरोसा है। मैं समझता हूं कि जो यह आज की गोष्ठी इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि भारत में नई शिक्षा नीति 2020 आई है।यह शिक्षा नीति जीवन मूल्यों के धरातल पर खड़े हो करके नेशनल, इंटरनेशनल, इम्पैक्टफुल, इंटरएक्टिव, इनोवेटिव और इनक्लूसिव है और इसका लक्ष्‍य अंतिम छोर तक के बच्चों को शिक्षा से समृद्ध करना और तकनीकी से समृद्ध करना तथा ज्ञान, विज्ञान, अनुसंधान से समृद्ध करना लेकिन जीवन मूल्यों से भी युक्त रखना है। इस नई शिक्षा नीति को विश्‍व के बहुत से राष्‍ट्रअपनाने के लिए उत्‍सुक हैं तथा हमारे देश में भी इसको लेकर उत्‍साह का माहौल है। इस शिक्षा नीति में हमने बहुभाषिक बहु-विषयक पक्षों पर विशेष बल दिया है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जहां ‘स्पार्क’ के तहत हम दुनिया के शीर्ष 127 विश्वविद्यालयों के साथ शोध और अनुसंधान कर रहे हैं,वहीं‘ज्ञान’के तहत हमबाहरकी फैकल्‍टी को भी अपने देश के अंदर आमंत्रित कर रहे हैं। जबकि ‘ज्ञान प्लस’ में अब हमारे देश की फैकल्टी भीदुनिया में जाएगी।मुझे लगता है कि कोरिया और हिन्दुस्तान के बहुत अभिन्न संबंध हैं और इस दिशा में अब यह और भी आगे सशक्त तरीके से बढेगा। अभी हमने एनईपी 2020 के तहत दुनिया के शीर्ष सौ विश्वविद्यालयों को अपने यहां आमंत्रित कर रहे हैं। यहां के शीर्षविश्वविद्यालय दुनिया की धरती परजाएंगे तो मैं समझता हूं कि कोरिया और हिन्दुस्तान इस दिशा में दोनों परस्पर मिल कर के आगे और भी अच्छा काम करेंगे और हिन्दी इसमें एक बहुत बड़ा मील का पत्थर साबित हो सकता है और इसलिए जो आपने यह शुरुआत की है यहबहुत ही स्तुत्य प्रयास है।वर्तमान में देखा जाय तो कोरिया में हिन्दुस्तान से हजारों बच्चे पढ़ रहे हैं और कोरिया से भी हिन्दुस्तान में छात्र आरहे हैं।अभी हमारे आईआईटीज में एक हजार से भी अधिक आसियान देशों के छात्र शोध और अनुसंधान के लिए आ रहे हैं।हमने‘स्टडी इन इंडिया’ के साथ-साथ ‘स्टे इन इंडिया’भी किया है।मुझे भरोसा है कि ‘स्टडी इन इंडिया’ के तहत कोरिया से जो भी छात्र हिन्दुस्तान में आकर के हिन्दी का अध्ययन करना चाहते हैं, यहबहुतअच्छा प्रयास होगा औरवैसे भी हिन्दी का बहुत व्यापक प्रचार प्रसार हो रहा है। मुझे लगता है दुनिया में लगभग दूसरी या तीसरी नंबर की जो भाषा है जो सर्वाधिक बोली जाने वाली तथासमझी जाने वाली भाषा है और उसको आम आदमी ग्रहण करता है ऐसी हिन्दी का बहुत बड़ा व्‍याप है और अभी जो हमारे यशस्वी कुलपति महात्मा गाँधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के प्रोफेसर रजनीश शुक्ला जो जुड़े हैं हमसेवेपूरी दुनिया में हिन्दी को लेकर के जायेंगे और इनके यहाँ भी दुनिया के तमाम छात्र हिन्दी का अध्ययन करने के लिए तथाहिन्‍दी में शोध और अनुसंधान करने के लिए इस धरती पर आ रहे हैं। आज हिन्‍दी का अध्‍ययन करने के लिए विद्यार्थीवर्धा में भीआरहे हैं और जो हमारा केन्द्रीय हिन्दी संस्थान आगरा में है, वहां भी विदेशी बच्चों कोलंबे समय से पढ़ाया जा रहा है।मैं अभी कुछ दिन पहले गया था तो मुझे पता चला अट्ठाईस देशों के वहां पर सैकड़ों छात्र-छात्राएँ हिन्दी का अध्ययन कर रहे हैंऔर अभी तक हजारों-हजारों छात्रों को केन्द्रीय हिन्दी संस्थान नेहिन्दी की शिक्षा, हिन्दी मेंडिप्लोमा, हिन्दी मेंडिग्री और हिन्दी मेंअध्ययन और शोध तथाअनुसंधान कराने की दिशा में सफलता उसने पाई है और लगातार वो उस अभियान में जुटा हुआ है।मुझे लगता है कि हम दोनों संस्‍थानों के सामूहिक प्रयासों से मिलकर के इस दिशा में आगे बढ़ सकते हैं और मुझे इस बात की खुशी है कि कोरिया के विश्वविद्यालय में भी हिन्दी को बढ़ावा देने के लिए लगातार सराहनीय प्रयास कर रहे हैं। कोरिया गणराज्य के राष्‍ट्रपतिजी द्वारा वर्ष 2016 में हिन्दी को एक विशिष्ट विदेशी भाषा के रूप में चिह्नित करना, यह बहुत बड़ी उपलब्धि है और आज जो विदेशी भाषाएं हैं उनमें हिन्दी प्रमुख तरीके से वहां पर पढ़ाई जारही है उसका प्रशिक्षण दिया जा रहा है। यह उत्साह वर्धक है और मैंविश्वविद्यालय के कुलपति को, कुलाधिपति को और उन सभी लोगों को धन्यवाद देना चाहता हूं।वर्ष2018 से ही हमारे यह संस्‍थान विशिष्ट विदेशी भाषा शिक्षा केन्द्र के रूप में काम कर रहे है और हिन्दी को शीर्ष प्राथमिकता दे रहे हैं।आज यह मेरे लिए बहुत सुखद है और आप जानते हैं कि हिंदुस्तान में शिक्षा का बहुत बड़ा व्याप है। इस देश में एक हजार से भी अधिक यहां विश्वविद्यालय हैं, 50 हजार से भी अधिक डिग्री कॉलेज हैं और यदि शिक्षकों को देखेंगे तो 1 करोड़ 9 लाख से भी अधिक अध्यापक हैं और यहां 15-16 लाख स्कूल हैं और यहां के कुल छात्रों की संख्‍या देखी जाए  तो कुल अमेरिका की आबादी से भी अधिक 33 करोड़ छात्र-छात्राएं हिंदुस्तान की धरती पर पढ़ रहे हैं और इसलिए मैं समझता हूं कि यह उनके लिए भी बहुत अच्छा है और जो कोरिया से आनेवाले छात्र इधर हैं उनके लिए यह बहुत सुखद क्षण होंगे कि वो मेरे हिन्दुस्थान को समझें और हिन्दी के माध्यम से यहां की संस्कृति को, यहां के रहन-सहन को, यहां के व्यापार को, यहां के सामाजिक जीवन को निकटता से देखें और समझें और उसका ज्ञान अर्जन करें।वैसे भी भारत ज्ञान का केन्द्र है। तक्षशिला, नालंदा और विक्रमशिला जैसे विश्वविद्यालय इस देश के अंदर थे। पूरी दुनिया के लोग कहीं न कहीं ज्ञान, विज्ञान, अनुसंधान और जीवन दर्शन को पाने के लिए हिन्दुस्तान की धरती पर आते थे और आज भी वही हिन्‍दुस्‍तान, चाहेयोग कीदिशा में होआज पूरे विश्व के 197 देश ‘योग दिवस’ मनाकर के अपने स्वास्थ्य की चिंता करते हैं,उस योग का भी जन्म इस धरती पर होता है तथा आयुर्वेद का भी जन्‍म हिंदुस्तान की धरती पर होता है जिसकी पूरी दुनिया को जरूरत है।आध्यात्म की सांस्कृतिक दृष्टि से देखें तो हिंदुस्तान के पास तन और मन को ठीक करने के लिए तमाम उपाय हैं।मैंहिमालय से आता हूं और मुझे लगता कि हिमालय एक ऐसा क्षेत्र है जो आध्‍यात्‍म की शक्ति भी देता है इसहिन्दुस्तान में तमाम प्रकारऐसी बहुआयामी आपको शक्तियां भी मिलेंगी और परिवेश भी मिलेगा। हिन्दी इस संस्‍कृति को जाननेके लिए एक बहुत अच्छा माध्यम है। आपके विश्वविद्यालय द्वारा कोरियन मैसिव ओपन ऑनलाइनकोर्स भी कराया जा रहा है जो बहुत ही सराहनीय कदम है इसलिए मैं इसकी भी प्रशंसा करना चाहता हूं।आपआसानी से विदेशी भाषाओं को भी सिखा रहे हैं यह भी बहुत अच्छी बात हैऔर साथ ही पठन-पाठन की सामग्री भी उपलब्ध करा रहे हैं।मुझे बस इस बात को भी लेकर की खुशी है वर्ष 2020 में आपने हिन्दी को लेकर टेस्ट भी आयोजित करवाया और यह भी पहली बार अपने ढ़ंग का है। मैं आपके केन्द्र को बहुत बधाई देना चाहता हूं और आपकी जो निदेशक हैं उनको भी बधाई देना चाहता हूं। आप वर्ष 2021 से इस तरह के टेस्ट का आयोजन वर्ष में दो बार कर रहे हैं। हिन्दी के साथ ही विदेशी भाषाओं के क्षेत्र में काम करने के लिए कोरिया सरकार द्वारा जो यह कदम उठाया गया है। मैं इसके लिए कोरिया सरकार को बहुत बधाई देना चाहता हूँ, धन्यवाद देना चाहता हूं।मैं भी एक शिक्षक से शिक्षा मंत्री के रास्ते से यहाँ तक पहुँचा हूँ तो मुझे लगता है कि शिक्षा एक ऐसा तंत्र, एक ऐसा केन्द्र है जो आपको सबसे ज्यादा सशक्त बनाता है और पूरी दुनिया की अंतिम पहुँच तक आपको पहुँचाने में समर्थता देता है। जब हम आपस में मिलते हैं तो चाहे शोधार्थी हैं, चाहे व्यवसाय से जुड़े लोग हैं,यदि वे हिन्दी में राजनीति समझेंगे, समाज को समझेंगे, संस्कृति को समझेंगे तो भारतीय सभ्यता की गहराई को भी और निकटता से समझ सकेंगे।मुझे लगता है कि यह भाषा से हीसंभव हो सकता है और मुझे इस बात की खुशी है कि इससेदोनों देशों के बीच एक बेहतर सामंजस्य स्थापित होता है और इसके लिए कोरिया अपनी नयी दक्षिणी पॉलिसी और भारत एशिया ईस्ट पॉलिसी के माध्यम से आपसी संबंधों में शिक्षा, रणनीतिक साझेदारी, व्यवसाय और साझी संस्कृति के अनेक क्षेत्रों में मिलकर के आगे बढ रहे हैं।यह हमारे लिए बहुत ही सुखद है।मुझे लगता है कि बौद्ध दर्शन का कोरिया में आगमन इन दोनों देशों के संबंधों को और मजबूत करता है और साथ ही जो महात्मा गांधी जी और गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर के जो लिखित दस्तावेजों में कोरिया के प्रति जो समर्थन की बातें मिलती हैं वो इस बात को स्थापित करते हैं कि भारत और कोरिया के बीच बहुत ही अभिन्न संबंध रहे हैं और हमारे देश के यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी की अगुआई में जिस तरीके से 2015 में विशेष रणनीतिक साझेदारी को बढ़ा करके दोनों देशों ने एक-दूसरे के हित में परस्पर सहयोग की भावना को आगे बढ़ाने का संकल्प लिया है यह भी हमारे लिए बहुत सुखद है और हिन्दी दोनों देशों के बीच एक सेतु का काम करेगी। हिन्दी की वर्तमान स्थिति को देखें तो जैसे मैंने कहा कि यह हिन्दी विश्व की तीसरी सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है। वैश्वीकरण तथा वैश्विक अर्थव्यवस्था के दौर में हिन्दी बाजार अर्थव्यवस्था की जरूरतों को पूरा करने के लिए वैज्ञानिक और तकनीकी रूप से पूर्णतः सक्षम भाषा है और इसीलिए मुझे लगता है कि इस भाषामैं बहुत सामर्थ्य है।आज दोनों देशों के बीच भाषा सशक्तिकरण के रूप में ज्ञान आधारित समाज के निर्माण के रूप में निश्चित रूप से हिंदी बहुत महत्वपूर्ण और कारगर साबित होगी और यह ऐसा वक्त है जब दोनों देश एक सूत्र में हिन्दी के माध्यम से अपने दोनों देशों की संस्कृति को साझा कर सकते हैं और उनकी गतिविधियों को आगे बढा सकते हैं और जो हमारे सांस्कृतिक संबंध हैं वे इससे औरमजबूत होंगे। मैं इस गोष्ठी में जो इसके आयोजकहैंजो सियोल स्थित भारतीय दूतावास के सम्मुख एकदंत सांस्कृतिक केन्द्र और विश्वविद्यालय के विशिष्ट विदेशी भाषा शिक्षा केन्द्र को विशेषकर बधाईदेना चाहता हूं। मुझे खुशी है मैं जब उत्तराखंड का मुख्यमंत्री थातब भी मैंने देखा कि कोरिया से उत्तराखंड तक हिमालय तक बच्चे जो हिन्दी को पढने के लिए आते थे और हिन्दी को समझने के लिए पूरे देश में प्रवास करते थे। मुझे भरोसा है कि कोरिया ने हिन्दी के सशक्तिकरण की दिशा में कदम उठाए हैं तथा उसके विश्वविद्यालय में हिन्दी का पठन-पाठन तेजी से आगे बढा है। निश्चित रूप से यह दोनों देशों के विकास की आधारशिला को खड़ा करेगा। मैं एक बार फिर पूरी दुनिया के सभी हिन्दी प्रेमी भाई और बहनों का अभिनंदन करना चाहता हूं जो इस अंतर्राष्‍ट्रीयसंगोष्ठी में जुड़े हैं और एक बार फिर कोरिया सरकार को भी धन्यवाद देना चाहता हूं। इन दोनों संस्थानों के लोगों को जिन्होंने इस गोष्‍ठी को आयोजित किया उनका मैं हृदय से आभार प्रकट करते हुए प्रो.रजनीश शुक्ल जो हमारे कुलपति हैं उनसे अनुरोध करूंगा कि निकट भविष्य में कोरिया के साथ और मजबूती के साथ हिन्दी की सशक्तता, सबलता तथाउसकी प्रखरता एवं विस्‍तार कैसे करके हो इस पर जरूर गौर करके अच्छे तरीके से एक योजना बनाएंगे ताकि इस दिशा में हम और तेजी से आगे बढ़ सकें।

 

बहुत-बहुत धन्यवाद!

 

कार्यक्रम में गरिमामयी उपस्‍थिति:-

  1. डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’, माननीय शिक्षा मंत्री, भारत सरकार
  2. प्रो. रजनीश शुक्‍ल, कुलपति, महात्‍मा गांधी अंतर्राष्‍ट्रीय हिन्‍दी विश्‍वविद्यालय, वर्धा

 

टॉयथान का शुभारम्‍भ

टॉयथान का शुभारम्‍भ

 

दिनांक 05 जनवरी, 2021

 

 

माननीय शिक्षा मंत्री, डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’

 

भारत सरकार में हमारी यशस्‍वी मंत्री स्‍मृती जी और आत्‍मनिर्भरभारत के निर्माण की ओर जो हमारे प्रधानमंत्री जी की मंशा है, उस आत्‍मनिर्भरभारत की दिशा में मैं धन्‍यवाद देना चाहता हूं स्‍मृति जी को। खिलौना उद्योगका भारत सहित सम्‍पूर्ण दुनिया में बहुत बड़ा मार्केट है। 7 लाख करोड़ खिलौनों का मार्केट है पूरी दुनिया में और अभी हमारे देश में जो दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है, जो 130 करोड़ लोगों का देश है और वहां 80 प्रतिशत जो खिलौना है, वह भी बाहर से आता है तो आज इस दिशा में हैकाथॉनकरने की कोशिश है क्‍योंकि मोदी सरकार  ने हमेशा लोगों से विचार-विमर्श और परामर्श करने का रास्‍ता अपनाया है। चाहे नई शिक्षा नीति का विषय हो, चाहे तमाम नीतियों का हो, जहां दुनिया के सबसे बड़े नवाचार के साथ हम ठोस चीजों को निकालते हैं और आज मुझे इस बात की खुशी है कि महिला एवं बाल विकास मंत्रालय को आप लीड कर रही है और यह सारे प्रोजेक्‍ट भी आपके मार्गदर्शन में आगे बढ़ रहे हैं। वाणिज्‍य और उद्योग मंत्रालय तथा लघू और कुटीर उद्योग मंत्रालय से जुड़े अधिकारीतथाएआईसीटीई केचैयरमैन भी यहां पर है उनसे मैं कहना चाहता हूं कि हमारे देश में 1000 से तो अधिक विश्‍वविद्यालय हैं, 45 हजार डिग्री कॉलेज हैं, 15 लाख से भी अधिक स्‍कूल हैं और 1 करोड़ 9 लाख से भी अधिक अध्‍यापक हैं और छात्र-छात्राओं को यदि देखेंगे तो जितनी अमेरिका की कुल जनसंख्‍या नहीं होगी उससे भी अधिक हमारे देश में 33 करोड़ छात्र-छात्राएं हैं। तमाम संस्‍थान हैं देश के अन्‍दर, विश्‍वविद्यालयों में इतनी सामर्थ्‍यहै कि पीछे के समय में ही हमने इसका प्रमाण दिया है। यदि युक्‍ति पोर्टल का आप विजिट करेंगे तो कोविड के दौरान आईआईटी ने जो तमाम शोध एवं अनुसंधान किये हैं, जिसकी खुशुबु आज दुनिया में गई है और ‘युक्‍ति-2’ हजारों आईडियाज हमारे छात्रों के हैं  जो पूरे देश को आत्‍मनिर्भर बनाने की दिशा में आगे बढ़ा सकते हैं। सबसे बड़ी बात जब हम इतना बड़ा देश हैं और हमारे प्रधानमंत्री जी का विजन है कि  5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्‍यवस्‍था चाहिए जहां हम देश को ज्ञान की महाशक्‍ति बनाने चाहते हैं वहीं आर्थिकी की महाशक्‍ति की दिशा में भीहम अग्रसर हैं। खिलौना उद्योग का 7 लाख करोड़ का मार्केट है और अभी तो हम अपने ही देश की आपूर्ति नहीं कर पा रहे हैं तो इसलिए यह अभियान याहैकाथॉन किया  है। इससे भी पहले हमने स्‍मार्ट इंडिया हैकाथान किया है जिससे तमाम स्‍टार्टअप निकले हैं जिन्‍होंने बहुत ऊंचाइयां प्राप्‍तकी है। अभी हमने पीछे के दिनों में ‘सिंगापुर-इंडिया हैकाथान’ किया और भविष्‍य में हम आसियान देशों के साथ हैकाथॉनकरेंगे। अभी हमने औषधी के लिए भी कोविड के दौरान हैकाथॉन किया था।आपको याद होगा जब प्रधानमंत्री जी ने कहा था कि जो स्‍कूली छात्र हैं उनके साथ हमने ‘ध्रुव’ कार्यक्रम किया था  तो नवाचार के साथ हमारे उद्योग खिलौनो के क्षेत्र में भारत लीड कैसे कर सकता है इस दिशा में काम करने की जरूरत है। जैसा कि स्‍मृति जी ने कहा है कि यह जो मंशा है और भारत की संस्‍कृति के साथ जोडना है। हम जिन खिलौने के साथ खेलते हैं उसकी स्‍मृति आज भी बनी रहती है। उस खिलौने के माध्‍यम से ज्ञान का अर्जन कराना सबसे सशक्‍त माध्‍यम है और इसलिए हम भारत केन्‍द्रित शिक्षा नीति को लाये हैं। हम स्‍कूली शिक्षा में नवाचार के साथ वो भी इंटर्नशिप के साथ छठवीं कक्षासे ही हम वोकेशनल स्‍ट्रीम के साथ लेकर आ रहे हैं और शायद हमारा देश पूरी दुनिया में पहला देश होगा जो स्‍कूली शिक्षा में छठवीं से वोकेशनल पढ़ाएगा।स्‍मृति जी ने अभी भारत की संस्‍कृति की बात की वो हमारीताकत है। हम खिलौनो के माध्‍यम से जैसेअभी आपको मालूम है कि हमारे देश के प्रधानमंत्री जी ने मन की बात में कहा था कि भारत की समृद्ध संस्‍कृति, इतिहास और नवाचार को अपने खेलों और खिलौनों में समाहित करने का यह समय आ गया है। जो हमारी संस्‍कृति है जिस पर यह देश विश्‍वगुरू रहा है, ज्ञान, विज्ञान, अनुसंधान, नवाचार और तकनीकी में हमने पूरे विश्‍व को लीडरशिप दी है तो वो पूरी दुनिया को लीडरशिप बच्‍चों को स्‍वदेशीखिलौनों के माध्‍यम से कैसे करके हम लोग कर सकते हैं इसलिए यह टॉय हैकाथान आज आयोजित हो रहा है और इसमें स्‍वदेशी खिलौनों में जो भारत की विरासत एवं सांस्‍कृति संदर्भ हैं जिसमें बच्‍चों को सीखने के साथ कुछ ऐसी भी चीज निश्‍चित हो जिसमें गर्व की भावना हों। हमारे बच्‍चों मेंडीआरडीओ के बारे में आईआईटी, आईएसर, आईआईआईटी, एनआईटी के बारे में, राष्‍ट्र नायकों के बारे में चाहे हमारे छत्रपतिशिवाजी हों, महाराणा प्रताप हों, झांसी की रानी हों इन सबके बारे में जानकारी प्राप्‍त हो सके इसलिए उसको एआईसीटीई के साथ जोड़ा है कि जो हमारे छात्रों, अध्‍यापकों के आईडिजायज है वो कैसे करके आगे बढ़ सकते हैं जिससे हमारा देश फिर से विश्‍व गुरू के रूप में स्‍थापित हो सके और जो ‘मेक इन इंडिया’ और ‘स्‍किल इंडिया’ है इन दोनों को जोड़करके एक नई चीज कैसे निकल सकती है, यह इसका हेतु है। इसका शुभारम्‍भ करते हुए मुझे खुशी हो रही है कि निश्‍चित हीयह आत्‍मनिर्भर भारत की दिशा में नींव का पत्‍थर साबित होगा।

 

 

बहुत-बहुत धन्‍यवाद!

 

कार्यक्रम में गरिमामयी उपस्‍थिति:-

 

  1. डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक, माननीय शिक्षा मंत्री, भारत सरकार
  2. श्रीमती स्‍मृति ज़ुबिन ईरानी, माननीय महिला एवं बाल विकास मंत्री, भारत सरकार
  3. श्री अभय जेरे, मुख्‍य नवाचार अधिकारी,एआईसीटीई नई दिल्‍ली।

जेएनयू में अकादमिक कॉम्‍प्‍लेक्‍सभवन का शिलान्‍यास समारोह

जेएनयू में अकादमिक कॉम्‍प्‍लेक्‍सभवन का शिलान्‍यास समारोह

 

दिनांक: 04 जनवरी, 2021

 

 

माननीय शिक्षा मंत्री, डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’

 

आज के इस अवसर पर जेएनयू परिवार और उससे जुड़े पूर्व छात्र तथा सभी लोगों का मैं नये वर्ष पर अभिनन्‍दन कर रहा हूं और इस नये वर्ष की शुरूआत में ही जो कुलपति जी ने शुरूआत की है उसके लिए भी मैं उनको बधाई देना चाहता हूं। इस विश्‍वविद्यालय के कुलपति प्रो. जगदीश कुमार जी, जिन्‍होंने पीछे 5 वर्षों में तामम अभिनव प्रयोग करके अपने कुलपति होने का एक महत्‍वपूर्ण इतिहास का दस्‍तावेज यहां संचित किया है मैं बहुत बधाई देना चाहता हूं आपको। प्रो. चिन्‍तामणि महापात्रा जी आपने जिन बिन्‍दुओं को कहा है, प्रो. सतीशचन्‍द्र घटकोटे जी, जिनको बहुत लम्‍बे समय से मैं जानता हूं और प्रो. राणा प्रताप जीमुझे इस बात की खुशी है कि आप तीनों पीवीसी ने और इस विश्‍वविद्यालय के कुलसचिव डॉ. प्रमोद ने मिलकर के जिस तरीके से एकजुटता, प्रखरता और कुलपति के साथ कंधा से कंधा मिलाकर इस विश्‍वविद्यालय को ऊंचाईयों पर पहुंचाया है इसलिए मैं इनको शुभकामनाएं देना चाहता हूं। यहां के अन्‍य जितने भी संकायसदस्‍य है, कमर्चारी वर्ग है, मैं सबको ऐसे अवसर पर जबकि दो बहुत महत्‍वपूर्ण संस्‍थानों का शिलान्‍यास हो रहा है वो भी एक ऐसा संस्‍थान जो प्रबंधन से जुड़ा है , वो भी अटल बिहारी वाजपेयी जी के नाम पर है, जिसकी आधारशिला रखी जा रही है तथा दूसरा इंजीनियरिंग क्षेत्र का संस्‍थान है। मुझे लगता है कि आगे आने वाले समय में निश्‍चित रूप में यह 21वीं सदी के  स्‍वर्णिम भारत की आधारिशला बनेगा, ऐसा मेरा भरोसा है। पीछे पांच वर्षों में जिस तरीके से प्रो. जगदीशजीने यहांपर काम किया है, वह सबके संज्ञान में है, मैं आपको बधाई देता हूं। नये वर्ष में आपको ऐसी सौगात मिली है जो भावी भारत के निर्माण की आधारशिला होगी। मेरे साथ हमारे अपर सचिव है डॉ. विनीत जोशी जो विश्‍वविद्यालयों के काम को देखते हैं वो भी हमारे साथ जुड़े हुए हैं और डॉ. अंशु जो अच्‍छा संयोजन करती हैं और यह अच्‍छी लेखिका के रूप में भी प्रतिष्‍ठित है, मैं इनको पढ़ रहा हूं, इनको भी मैं बहुत शुभकामनाएं देना चाहता हूं। मुझे बहुत खुशी है कि जब मेरे सामने यह प्रस्‍ताव आया तो जेएनयू जो हमारीशीर्ष संस्‍था है, मैंने हमेशा से यह कहा है चाहे पीछे के समय में लोकसभा में था जब मैं संसदीय कमेटी का अध्‍यक्ष था, उस रूप में भी जब-जब जेएनयू के बारे में चर्चा हुई तो मैंने इस संस्‍थान के बारे में लोगों को अवगत कराया है कि यह देश के अन्‍दर अपने ढंग का मेरा संस्‍थान है जो विश्‍व फलक पर आगे बढ़ने की ताकत रखता है और इस संस्‍थान को बहुत तेजीसेआगे बढ़ाने की जरूरत है। उस तेजी से आगे बढ़ाने के रास्‍ते की दिशा में आज यह दो एवं इससे भी पहले बहुत अभिनव प्रयोग किये हैं। नई शिक्षा नीति आने के बाद दो चीजें तो आपने तत्‍काल शुरू कर ही दी हैं। मुझे लगता है कि इसमें चाहेमेरे शोधार्थी हों, अध्यापक हों, इसका बहुत अच्छा उपयोग कर सकेंगे और इनको लगेगा कि हां, यह दोनों संस्थान जैसा कि अभी हमारे प्रति-कुलपति साहब कह रहे थे कि आत्मनिर्भर भारत बनाने की दिशा में प्रबंधन एवं इंजीनियरिंग के यह दोनों संस्‍थानबहुत आगे बढ़कर जाएंगे। यहां उच्च गुणवत्ता वाली सुविधाओं से युक्त  और प्रबंधन और प्रौद्योगिकी पर जो शैक्षणिक माहौल बनेगा उसका एक अपना अलग सा संदेश जाएगा। अब मैनेजमेंट संस्थान का नामकरण जो आपने किया है इस देश के पूर्व प्रधानमंत्री भारतरत्न और जिनको अजातसत्रु कहा जाता था अटल जी की प्रखरता और उनकी मुखरता दुनिया ने बहुत निकटता से जाना है। कुलपति जी,आपने ऐसे व्‍यक्‍तित्‍व के नाम पर इस अकादमिक भवन को रखा जिसका नाम लेते ही श्रद्धा से केवल सिरनत नहीं होता, आज झुकता नही बल्कि अन्दर से प्रेरणा भी बाहर निकलती है, देश के लिए कुछ कर गुजरने की अभिलाषा मन में पैदा होती है। अटल बिहारी वाजपेयीजीहमेशा कहते थे किछोटे मन वाला कभी बड़ा नहीं हो सकता और टूटे तने वाला कभी खड़ा नहीं हो सकता।छोटी-छोटी बातों में उलझा हुआकोई व्यक्ति, संस्था, राष्ट्र कभी शिखर को प्राप्त नही कर सकता। उसेबड़ा बनना है तो उसके लिए बड़ा मन चाहिए, बड़ा दिल चाहिए, बड़ा दिमाग चाहिए,बड़ा धैर्य चाहिए, पराकाष्ठा एवंप्रखरता चाहिए तब ही आदमी बड़ा बन सकता है। कोई संस्था भी तभी बड़ी हो सकती है तभी कोई समाज उन्नति कर सकता है और तभी कोई राष्ट्र भी शिखर पर पहुँच सकता हैयह बहुत प्रबल धारणा रही है उनकी हमेशा औरहमेशा। अटलजी जहाँ इस बात को बोलते थे, वहीं अटल जी इस बात को भी बोलते थे जोउनकी एक छोटी सी कविता का अंश है कि पेड़ के ऊपर चढ़ा आदमी ऊँचा दिखाई देता है और पेड़ की जड़ पर खड़ा आदमी छोटा दिखाई देता है। न आदमी छोटा होता है न बड़ा होता है। आदमी सिर्फ आदमी होते है और उन्होंने कहा कि इस बात का फर्क नहीं पड़ता कि आदमी कहां खड़ा है, रथ पर या पथ पर। उनकी यदिरचनाओं को पढ़ेंगे तो आपकोलगेगा कि क्या जीवंतता है। जो मरा हुआ भी आदमी होगा वह भी खड़े होकरके दौड़ना शुरू कर देगा। कितना ही स्वार्थी आदमी है वो भी कहेगा कि नहीं, मुझे राष्ट्र के लिए, समाज के लिए कुछ करने की अभिलाषा मेरे मन में रहनी चाहिए। ऐसे व्‍यक्‍ति के नाम पर आपने इस भवन का नाम रखा है मुझे बहुतखुशी है। आपको तो मालूम है यदि आप अटल जी के उससमय के कामों को देखें जब वो प्रधानमंत्री थे तो उन्होंने देश को एक साथ जोड़ने के लिए चाहे स्वर्णिम चतुर्भुज योजना हो और चाहे वो गांव-गांव को जोड़ने वाली प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना हो, क्या विज़न था उनके पास। उसी समय उन्होंने शिक्षा के उन्नतिकरण के लिए एजुकेशन सेस लागू किया था और आज भी वो जारी है कि और सारे संस्थानोंएवं जितनी कम्‍पनियांहैंउनसेटैक्स ले करके शिक्षा का उत्थान कैसे करके करसकते हैं। सर्व शिक्षा अभियान जोआज समग्र शिक्षा के रूप में विकसित हो रहा है। अंतिम छोर तक का बच्चा भी अनपढ़ नहीं रहना चाहिए उस तक कैसे करके शिक्षा जा सकती है यह उनका विजन था। आज हम उनके विजनको लेकर के आगे जारहे हैं। टेलीकॉम की क्रांति होचाहे वो कनेक्टिविटी का सवाल हो मुझे लगता है कि अटल जी का जो मानस था वो अद्भुत था। मुझे भरोसा है इस संस्थान के अंदर घुसते ही छात्र-छात्रा और मेरे अध्यापक गण के मन के अंदर एक नई स्फूर्ति का संचार होगा, एक नए विचार का संचार होगा, उसेताकत मिलेगी, ऊर्जा मिलेगी। एक समय था जब हमारे देश के प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री थे और देश दो संकटों सेएक साथ गुजर रहा था। सीमाओं पर हम सुरक्षा के संकट से गुजर रहे थे और आंतरिक रूप से हम खाद्यान्‍न के संकट से गुजर रहे थे। ऐसे वक्त में हमारे देश के तत्कालीनप्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने ‘जय जवान जय किसान’ का नारा दिया था। जवान और किसान ने साथ खड़ा होकर के देश की इन दोनों समस्याओं पर विजय प्राप्त की थी और सब को मालूम है उनके बाद जब अटल बिहारी बाजपेयी जी भारत के प्रधानमंत्री बने। उनको लगा कि अब विज्ञान का समय है, हमको और तेजी से दुनिया में आगे बढ़ना है तो उन्होंने ‘जय विज्ञान’ का नारा दिया थाऔर आपको याद होगा कि जैसे ही परमाणु परीक्षण की उन्होंने घोषणा की थी तोपूरी दुनिया के लोगों ने किस-किस तरीके से संपादकीय तक लिखे थे। अटलजी पर जब दबाव पड़ा कि नहीं आप इस निर्णय को वापस लीजिए तो अटल जी ने कहा था कि हम देश को ताकतवर बनाना चाहते हैं। हम किसी को छेड़ने के लिए नहीं,किसी को परेशान करने के लिए नहीं, किसी को हड़पने के लिए नहीं बल्कि अपनी सुरक्षा के लिए हम अपना परमाणु परीक्षण करना चाहते हैं। हम भारत को महाशक्ति के रूप में स्थापित करना चाहते हैं। वो जानते थे कि पूरी दुनिया में सुख-शांति और प्रगति का रास्‍ता कहीं से गुजरता है तो वह हिंदुस्तान की धरती से गुजरेगा तब तक दुनिया में शांति सुरक्षित नहीं रह सकती जब तक हिन्दुस्तान का वो मानस जो ‘वसुधैव कुटुम्बकम’कोकहता है और‘अयं निजः परो वेति गणना लघुचेतसाम्। उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम्।।‘पूरी वसुधा को अपना परिवार मानने वाला विजनयदि है तो मेरे भारत का है। अटल जी के मन और मस्तिष्क में तो स्वयं भी भारत उनके अंदर दिखाई देता था और इसलिए ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया’ की इस कल्पना को ले करके उन्होंने कहा था किहमदुनिया में सुख चाहते हैं, शांति चाहते हैं, पूरी दुनिया मेरा परिवार है एवं इस परिवार की खुशहाली के लिए हम यह ज़रूर करेंगे और तब पूरी दुनिया ने कहा था कि हम तो आप पर आर्थिक प्रतिबंध लगा देंगे और अटल जी ने ताकत के साथ खड़े होकर कहा था हम मुकाबला कर लेंगे उन्‍होंने एक सूत्र दिया था उस समय किदेश में न तो कोई चीज आयात होगी और न हीकोई चीज निर्यात होगी। न बाहर से इस देश के अंदर कोईवस्तु आएगी औरन ही यहां से निर्मित चीज बाहर जाएगी। छह महीने के अंदर-अंदर दुनिया हिल गई थी। अंततोगत्वा दुनिया को अपने निर्णय वापस लेने पड़े थे,यह ताकत थी अटल बिहारी बाजपेयी कीजिन्‍होंने पूरा देश खड़ा कर दिया और मुझे इस बात की खुशी है कि उसअभियान को आज बढ़ाते हुए हमारे वर्तमान प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने एक कदम आगे जाकर अब‘जय अनुसंधान’ की बात की है। अब अनुसंधान कीजरूरत है। हमनवाचार और अनुसंधान तथाशोध के साथ आगे बढ़ना चाहते हैं और तेजी से जाना चाहते हैं और उसी ‘जय अनुसंधान’ के साथआपको तो मालूम है कि आज पर हम ‘स्‍पार्क’ के तहत दुनिया के 127 शीर्ष विश्वविद्यालयों के साथ अनुसंधान कर रहे हैं। हम ‘स्‍ट्राइड’के तहत अंतर-विषयक शोध कर रहे हैं। हम स्‍पार्क और स्‍ट्राइड ही नहीं हम इम्‍प्रिंटऔर इम्प्रेस इनदोनों अभियानों को भीआगे बढा रहे हैं।हम‘स्टार्स’ में वैज्ञानिक क्षेत्र में कार्य कर रहे हैं। हमने ‘ज्ञान’ में बाहर के अध्यापकों को यहां बुलाकर के परामर्श करना शुरू किया तो ‘ज्ञान प्लस’ में हमारे भीअध्‍यापकदुनिया में जा कर के पढ़ाएंगे। यह हम लोगों ने शुरू किया है।हमलोगों ने उसी आधार पर ‘स्टडी इन इंडिया’ अभियान लिया और आह्वान किया किदुनिया के लोगों, भारत में आओ और स्टडी करो। उसअभियान के अंदर 50 हजार से भी अधिक अभी रजिस्ट्रेशन हुए हैं। पूरी दुनिया लालायित है अब हिंदुस्तान में आने के लिए। अभी एक हजार से अधिक आसियान देशों के मेरे छात्र आईआईटी में शोध और अनुसंधान के लिए आ रहे हैं। अब तो हमने ‘स्टे इन इंडिया’ कर दिया, मेरे इन संस्थानों ने पूरी दुनिया में हमारा मान-सम्मान बढ़ाया है। यदि मैं जेएनयू को ही देखता हूं तो कितने लोग निकले हैं यहां से पद्म श्री, पद्म विभूषण,वैज्ञानिक,तमाम राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय सम्मानों से प्राप्त राजनैतिक क्षेत्र में हो, प्रशासनिक क्षेत्र में हो, सामाजिक क्षेत्र में हो कौन सा क्षेत्र ऐसा है जहां जेएनयू ने अपनी महत्त्वपूर्ण उपस्थिति दर्ज नहीं की है।आज फिर समय आ गया। अब तो हमारा नेतृत्व भी ताकतवर नेतृत्व है। पूरी दुनिया हमको देख रही है और तब जबकि नई शिक्षा नीति को लेकर के हम आए हैं। नई शिक्षा नीति 2020 जो हमारीराष्ट्रीय शिक्षा नीति है यह बहुत खूबसूरत शिक्षा नीति है। नई शिक्षा नीति पूरी दुनिया में लोकल भी है और ग्लोबल भी है। हम अपनी हम अपनी प्रारंभिक शिक्षा को बच्‍चे की मातृभाषा में शुरू करेंगे और उसके बादअंतरराष्ट्रीय फलक पर हम ज्ञान, विज्ञान, अनुसंधान एवं नवाचार के क्षेत्र में और तेजी से आगे बढ़ेंगे। हम स्कूली शिक्षा में वोकेशनल स्ट्रीम के साथ इंटर्नशिप भी साथ ला रहे हैं। अभी जो यह मेरा इंजीनियरिंग संस्थान बन रहा है, इस इंजीनियरिंग संस्थान में निश्चित रूप में वो बच्‍चा जो छठवींसे वोकेशनल औरइंटर्नशिप के साथ आएगा वो आप तक पहुँचते-पहुँचते एक योद्धा बन कर जाएगा और जब आप उसको उभारेंगेतो वह विश्‍व के फलक पर चमकता सितारा साबित होगा। हम लोग पूरी दुनिया का पहला ऐसा देश बन रहे हैं जो आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस कोस्कूली शिक्षा से ला रहे हैं। हम लोगों ने इस नई शिक्षा नीति में मूल्यांकन का भी तरीका बदल दिया है। नई शिक्षा नीति में हम अब बच्‍चे को रिपोर्ट कार्ड नहीं देंगे। अब हम उसको प्रोग्रेसकार्डदेंगे और छात्र स्‍वयंअपना मूल्‍यांकन भी करेगा, अध्यापक भी उसका मूल्यांकन करेगा, उसके अभिभावक भी मूल्‍यांकनकरेंगे औरउसका साथी भी उसका मूल्यांकन कर सकेगा।इस शिक्षा नीति के अंतर्गत यदि कोई चार वर्ष का कोर्स है और यदि कोई छात्र दो साल में परिस्‍थितिवशछोड़के जा रहा है  तो पहले उसका पैसा एवं वर्ष दोनों खराब हो जाते थे। लेकिन अब उसकोनिराश नहीं होना पड़ेगा,यदि आप परिस्‍थितिवश एक वर्षमें छोड़ कर जा रहे हैं तो उसको सर्टिफिकेटदेंगे,दो साल में छोड़ कर जा रहा है तो डिप्लोमा देगें, तीन साल में छोड़कर जा रहा है तो उसकोडिग्री देंगे लेकिन यदि फिर वह लौट कर अपने भविष्य को संवारना चाहता है तो फिर जहां से उसने छोड़ा था वहीं से शुरू कर सकता है। उसके लिए हम एक ऐसा क्रेडिट बैंक बनायेंगे जहां उसके सारे क्रेडिट जमा रहेंगे।इसलिए उसके लिए आगे बहुत आपार संभावनाएं है।वह कहां जाना चाहता है,यदिशोध और अनुसंधान के क्षेत्र में जानाचाहता है तो हमने ‘नेशनलरिसर्च फाउंडेशन’ की स्थापना की है,जो कि प्रधानमंत्री जी के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार की अध्यक्षता में होगीयह फाउन्‍डेशन शोध की संस्कृति को तेजी से आगे बढ़ाएगा। वहींहमतकनीकी के क्षेत्र मेंकोशिश कर रहे हैं कि हमतकनीकी को नीचे स्‍तर तक, अंतिम छोर के व्यक्ति तक कैसे पहुंचा सकते हैं इसके लिए ‘नेशनल एजूकेशन टेक्‍नोलॉजीफोरम’का भी गठन कर रहे हैं। जिससेतकनीकी दृष्टि से भी देश समृद्ध हो सके। ये अद्भुत और अभिनव प्रयोग हम कर रहे हैं। नई शिक्षा नीति को को यदि आप देखेंगे तो इसको लेकर पूरी दुनिया के अंदर खुशी का माहौल है औरदुनिया के कई देश इसको अपने यहां लागू करना  चाहते  हैं। भारत ने दुनिया को लीडरशिप दी है हर क्षेत्र में। वहभारत जोज्ञान, विज्ञान, अनुसंधान के क्षेत्र में शिखर पर रहा है औरतक्षशिला तथानालंदा जैसे विश्वविद्यालय इस देश के अंदर थे।जहां पूरी दुनिया के लोग ज्ञान, विज्ञान, अनुसंधान और नवाचार के लिए शिक्षा ग्रहण करने के लिए आते थे, तब दुनिया में कौन सा विश्वविद्यालय था और इसीलिए मैं यह समझता हूं कि सुश्रुत, शल्‍य चिकित्‍सा काजनक इस धरती पर पैदा हुआ है औरमैंमेडिकल कॉलेजों के छात्रों का आह्वान करना चाहता हूं कि सुश्रुत को पढ़ो, उस पर शोध और अनुसंधान करो। चाहेआयु के विज्ञान आयुर्वेद के जनक हों, रसायनशास्‍त्री नागार्जुन हों,पाणिनी हों, भास्‍कराचार्य हों, महान गणितज्ञ आर्यभट्ट हों सभी इसी धरती पर ही तो पैदा हुए। आज जरूरत है नई शिक्षा नीति पर ताकत देते हुए, बल देतेहुए भारत केन्द्रित लेकिन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहुँचने वाली यह जोशिक्षा नीति है यहसामान्य नहीं है। यह नेशनल भी है, इंटरनेशनल भी है, यह इंटरेक्‍टिवभी है, इम्पैक्टफुल भी है,इनोवेटिवभी है और यहइक्विटी, क्वालिटी और एक्सेस की आधारशिला पर खड़ी होती है।हम इसमें कंटेंट भी पैदा करेंगें और उसको टैलेंट केसाथ भीजोड़ेगें और उसका पेटेंट भी करायेंगे। आज भी देश के अन्‍दर छात्रों में केवल पैकेज की होड़लगीहै।इस पैकेज की होड़ को खत्म करके पेटेंट के होड़को तैयार करना होगा तभी देश प्रगति के पथ पर आगे बढ़ सकता है और वो दिन दूर नहीं है। अभीकुछ दिन पूर्व कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय ने भी हमारी नई शिक्षा नीति की तारीफ की है, हमारे देश के अन्‍दर उत्साह का वातावरण है, वहीं पूरी दुनिया भी इस नई शिक्षा नीति के साथ जुड़ना चाहती है। मुझे इस बात की खुशी है किआपने नयी शिक्षा नीति  को पकड़ा है औरदोनों संस्थाओं ने नयी शिक्षा नीति के क्रियान्वन की दिशा में यह बहुत अच्‍छा आयोजन किया है, उसके लिए मैं आपको बधाई देना चाहता हूं, आपकी टीम को बधाई देना चाहता हूं और पूरे जेएनयू को बधाई देना चाहता हूं। मुझे भरोसा है कि जेएनयू नई शिक्षा नीति के क्रियान्वित करने की दिशा में लीडरशिप लेगा, उसे लेनी ही चाहिए। अभी देखिये हमारे देश के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्‍व में 2014 के बाद शिक्षा का किस तरीके से व्‍याप हुआ है। पूरी दुनिया में यह कमजोर देश नहीं है। हमारे जो छात्र हैं आईआईटी से निकलने वाले वो दुनिया मेंअमेरिका से लेकर के तमाम जो विकसित देश हैं उनके चाहे वो गूगल हो, माइक्रोसॉफ्ट हो जैसीश्रेष्ठ कम्‍पनियोंकेसीईओमेरीधरती से पढकर जानेवाला नौजवान हीहै। पीछे के समय प्रधानमंत्री जी जितने भी शिक्षा-संवाद हुए उनमें आपके साथ जुड़े थे और जब विवेकानंद जी की मूर्ति का अनावरण किया तब भी वे हमसे जुड़े थे विवेकानंद एक मॉडल है दुनिया के लिए,केवलदेश के लिए हीनहीं। वो ऐसे आदर्श हैं जो हमें ज्ञान, विज्ञान, अनुसंधान के शिखर पर पहुंचाते हैं और साथ हीउनके आदर्श जीवन मूल्यों की आधार शिला पर खड़े होते हैं। यह हमारी ताकत है और इसलिए विवेकानंद जी ने कहा था ‘रुको नहीं, जब तक लक्ष्य नहीं मिलता। तब तक रात-दिन खपो।नेल्‍सन मंडेला जैसे व्‍यक्‍ति ने भी यह कहा है कि शिक्षा एक ऐसा हथियारहै जो कुछ भी कर सकता है। मुझे भरोसा है कि जेएनयू से ऊर्जावान, आदर्शवादी, साहसी और सकारात्मक सोच के हमारे नौजवान आगे आएंगे और इसका लाभ पूरी तरीके से लेंगे। इंजीनियरिंग के क्षेत्र में भी औरवास्‍तुकला के क्षेत्र में भी हम बहुत शिखर पर थे। अब हमें नवाचार के साथ आगे बढ़ाना है औरउसको लोगों को दिखाना हैकिहमारे पास पीछे के समय में क्‍या था इसके भी दर्शन कराने की ज़रूरत हैंक्‍योंकि तभी जा करके हमारी पीढी को पता चलेगा, अन्‍यथा वो तो अमेरिका की ओर एवं दूसरे देशों की ओर देखती है। यही देश तो विश्वगुरु रहा है। आखिर विश्व गुरु क्यों रहा है भारत? यह अचानक नहीं रहा है औरकेवलजीवन मूल्यों में ही नहीं रहा है। यह देश विश्‍वगुरूज्ञान में रहा है, विज्ञान मेंरहा है औरकौन सा ऐसा क्षेत्र है, जिसमें भारत नेविश्व को लीडरशिप नहीं दी हो और वो चीज तो आज भी हमारे पास इस धरती पर है और इसलिए मुझे भरोसा है कि हमारे देश के प्रधानमंत्री जी ने जो आत्मनिर्भर भारत की बात की है और 21वीं सदी के स्वर्णिम भारत की बात की है। यह आत्मनिर्भर भारत जो 5 ट्रिलियन डॉलर की आर्थिकी को ले करके ज्ञान की महाशक्ति के रूप में उभरेगा और वहीं आर्थिक दृष्टि से भी एक मजबूत तंत्र विकसित होगा। आपके प्रबंधन के क्षेत्र से निकल कर आने वाले छात्र-छात्राएं, इंजीनियरिंग एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्र से आने वाले विद्यार्थियों में अब पैकज की दौड़ और होड़ नहीं होगी क्योंकि अब नई शिक्षा नीति टैलेंट को ढूंढेंगी भी तथा टैलेंट को विकसित भी करेगी और उसका विस्तार भी करेगी और टैलेंट के साथ उत्कृष्ट कोटि का केंटेंटभी देगी और टैलेंट तथाकंटेंट को मिला कर के पेटेंट करेगी, अब दौड़ होगी पेटेंट की। इस देश में नौकरी की दौड़ और होड़ नहीं होगी बल्‍कि अब नौकरी देने की होड़ और दौड़ होगी। मुझे भरोसा है कि मेरे देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने जो आत्मनिर्भर भारत का जो एक सूत्र दिया है वो इस देश को और शिखर तक ले करके जाएगा। मेरे नौजवान और मेरे छात्र-छात्राओं में बहुत ताकत है। हमारा देश तो आगामी 25-30 वर्षों तक और पूरी दुनिया में केवल हिंदुस्तान छाने वाला है।हमारे में क्षमता की कमी नहीं है, उसमें विजनकी कमी नहीं है, उसमें मिशन की कमी नहीं है। इस समय हमारी लीडरशीप है उसमें मजबूती है, ताकत है औरजब हमारी युवा पीढ़ी कोताकत मिलेगी तो वह छलांग मारेगा और मुझे भरोसा है कि हम पूरी दुनिया में एकआगाज के साथ आगे बढ़ेंगे। मुझे इस बात की खुशी है कि इस नई शिक्षा नीति आने के बाद संयुक्‍तअरब अमीरात के शिक्षा मंत्री के साथ मेरी द्विपक्षीय मीटिंग हुई। उन्होंने कहा हमअपने देश में भी इस नीति को लागू करना चाहते हैं। मुझे इस बात को कहते हुए खुशी है किआजएनईपी केक्रियान्वयन की दिशा में जेएनयू आगे बढ़ रहा है। मुझे लगता है कि जो हमारी संस्कृति और जो प्रकृति है वो हमको जीवन जीने की दृष्टि भी देती है और उद्यमिता भी देती है और इसको भी आप खुबसूरती से वहां आगे जोड़ रहे हैं। आप जानते हैं इस बात को कि प्रकृति का यदि संरक्षण नहीं होता और उसके विपरीत जाया जाता है तो वो प्रकृति विकृति में चली जाती है और विकृति विनाश का कारण होती है और जब संस्कृति संस्कारों से युक्त नहीं होती है तब वो विनाश का कारण हो जाती है। इसलिए यह जो संस्कृति है यदि वो प्रकृति के अनुसार चलते हैं तो संस्कृति में तब्दील हो करके और शिखर के मार्ग को प्रशस्त करती है। मनुष्य को मनुष्य बनाती है लेकिन जब प्रकृति के विपरीत जाते हैं तो यह संस्कृति में तब्दील नहीं होती और वह फिर विकृति में तब्दील हो जाती है और उससे विनाश के सिवाय कुछ नहीं होता है। मुझे खुशी है कि आपने भाषा प्रौद्योगिकी, प्रबंधन, उद्यमिता और आर्थिक विषयों के बहु-वैकल्पिक शिक्षा के पाठ्यक्रम को आज यहां पर लागू कर दिया यह भीखुशी का विषय है कि जिसको हम चाहते थे और जो बहु-अनुशासनात्मक संस्थानों की स्थापना की दिशा में हमारे प्रयास हैं, उससे उनको ओर गति मिलेगी। हमने इस शिक्षा नीति में बहु-भाषिकता को भी प्राथमिकता दी है। भाषा का कोई  मुद्दा नहीं है, किसी पर कोई  भाषा नहीं थोपी जाएगी। इस नीति में हमने कहा है कि प्राथमिक शिक्षा बच्‍चे की मातृभाषा में ही होनी चाहिए।कुछ लोग कहते हैं कि हमको तो ग्‍लोबल पर जाना है इसलिए अंग्रेजी सीखनी पड़ेगी। मैंने कहा  हम अंग्रेजी का विरोध नहीं  करते, अंग्रेजी ही नहीं और दो-तीन भाषाएं सीखों,लेकिन अपनी भाषाओं को मत छोड़ो। हमारेसंविधान ने हमें 22 खुबसूरत भाषाएं दी हैं जिनमें हिन्दी, तमिल, तेलगू, मलयालम, कन्नड़, गुजराती, मराठी, बंगाली,ओडिया, असमिया, उर्दू,यह सबहमारी 22 खूबसूरत भाषाएँ संविधान में उल्‍लेखित हैं।इनमेंअपना ज्ञान है,जीवंता है,तोक्यों हम अपनी भाषाओं को खोयेंगे।हमने अंग्रेजी का कभी विरोध नहीं किया लेकिन अंग्रेजी इस देश की भाषा नहीं है। हमें अंग्रेजीक्या पूरी दुनिया की भाषाओं को पढना है लेकिन मैं उन लोगों से पूछना चाहता हूं कि क्या जो देशनीचे से लेकर उच्च शिक्षा तकअपनी मातृभाषा में शिक्षा देते हैं वो किसी से पीछे हैं? क्‍या जापान, फ्रांस, इंग्लैंड और दुनिया के तमाम जो विकसित देश हैं वो अपनी मातृभाषा में शिक्षा देते हैं क्‍या वो किसी से पीछे हैं?फिर ऐसे तर्क दे करके देश को कमजोर करने की बातक्यों की जाती हैं। इसलिए देश के प्रधानमंत्री जीने कहा कि अब व्‍यक्‍ति अपनी मातृभाषा में डॉक्टर भी बन सकता है औरइंजीनियर भी बन सकता है क्‍योंकि  जो बच्‍चा जिस भाषा को बोलता है यदि उसको उसकी भाषा में शिक्षा दी जाए तो वह उसमें ज्यादा अभिव्यक्त कर सकता है। फिर ऐसे  कुतर्क क्‍यों दिऐ जाते हैं मैं उन सभी लोगों से निवेदन करना चाहता हूं  कि प्‍लीज भाषा का कोई  मुद्दा नउठाया जाए,देश की ताकत को समझें इन सभी भाषाओं में हमें काम को आगे बढ़ाना है। हम विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश हैं और मुझे भरोसा है किलोग इस बात को समझ रहे हैं। मुझेभरोसा है कि जो नयी शिक्षा नीति है वो एक नया आयाम स्थापित करेगी। मैं एक बार पुन:संस्थान के सभी फैकल्टी को, इस पूरे परिवार को और पूर्व छात्रों को तथावर्तमान छात्र-छात्राओं को भीबधाई और शुभकामनाएं देना चाहता हूं और साथ ही कुलपति जी आपको भी शुभकामना कि आपके नेतृत्व में पांच साल में इस संस्थान ने बहुत ऊंचाइयों को छुआ है। मेरा जेएनयू पूरे देश और दुनिया में शिखर पर पहुंचे ऐसी शुभकामना के साथ मैं आपको एक बार फिर बधाई देता हूं।

 

बहुत-बहुत धन्‍यवाद!

 

कार्यक्रम में गरिमामयी उपस्‍थिति:-

 

  1. डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’, माननीय शिक्षा मंत्री, भारत सरकार
  2. प्रो. जगदीश कुमार, कुलपति, जे.एन.यू.
  3. जेएनयू के संकाय सदस्‍य एवं पूर्व-छात्र

तिहान आईआईटी हैदराबाद

तिहान आईआईटी हैदराबाद

 

दिनांक: 29 दिसम्‍बर, 2020

 

माननीय शिक्षा मंत्री, डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक

 

          तिहान-नेवीगेशन टेस्‍ट बैड भारतीय प्रौद्योगिकी संस्‍थान, हैदराबाद के शिलान्‍यास के अवसर पर मैं आपको शुभकामनाएं देना चाहता हूं और इस अवसर पर हमारे साथ जुड़े मेरे सहयोगी शिक्षा राज्‍य मंत्री आदरणीय श्री संजय धोत्रे जी, इस संस्‍थान के अध्‍यक्ष बीओजी बी.वी. आर. मोहन रेड्डी जी,श्री मोहन रेड्डी जी आईआईटी रूड़की के बीओजी के भी चैयरमैन हैं एवं बहुत विजनरी हैं एवं विभिन्‍न आयामों के धनी हैं, इस संस्‍थान के बीओजी के अध्‍यक्ष के रूप में भी मैं आपका स्‍वागत कर रहा हूं।इस संस्‍थान के निदेशक प्रो. वी.एस. मूर्ति जिनके नेतृत्‍व में यह संस्‍थान तेजी से आगे बढ़ रहा है एवं शोध तथा अनुसंधान के क्षेत्र में नित नया इतिहास गढ़ रहा है। हमारे मिशन डायरेक्‍टर श्री आर.के. मुरली मोहन जी जिन्‍होंने अभी अपना उद्बोधन दिया है और मिशन डायरेक्‍टर के रूप में जिन्‍होंने अपने विजन को बढ़ाने का सराहनीय कार्य किया है। डीन आरएंडी हैदराबाद, डीन योजना आईआईटी हैदराबाद, डीन पीसीआरप्रो. राजलक्ष्‍मी जी, कुलसचिव, सभी संकाय सदस्‍य, सभी अधिकारी वर्ग, कर्मचारीवर्ग, प्रिय छात्र-छात्राओं और मेरे साथ शासन में जो आईआईटी को देखते हैं अपर सचिव श्री राकेश रंजन जी और सभी जो देश और दुनिया में पूर्व छात्र आज इस सुखद अवसर पर हमारे साथ जुड़ेहैं तो मैं इस अवसरपर आप सभी को बधाई देना चाहता हूं। एक ऐतिहासिक काम आज शुरू हो रहा है, उसका शिलान्‍यास हो रहा है, जो देश की प्रगति एवं विकास की आधारशिला बनेगा जो देश को आत्‍मनिर्भर बनाने की दिशा में, प्रौद्योगिकी की दिशा में एक नया कीर्तिमान स्‍थापित करेगा ऐसा मेरा भरोसा है।मैं कहना चाहता हूं कि वैसे तो हैदराबाद ने ज्ञान-विज्ञान, शोध एवं पारिस्‍थितिकी तंत्र को बढ़ाने में बहुत ही समृद्धशाली भूमिका निभाई है। हैदराबाद शहर आईआईटी के लिए मॉडल के रूप में उभरा है। इसलिए लोग अब इसे साइबर सिटी कहने लगे हैं। हैदराबाद में आईआईटी से जुड़ी गतिविधियां बहुत तेजी से बढ़ रही है और हैदराबाद में स्‍थापित साफ्टवेयर टैक्‍नोलॉजी पार्कऑफ इंडिया, सूचना प्रौद्योगिकी के विकास हेतु लगातार प्रयासरत है और ऐसे स्‍थान पर जो हमारा यंग आईआईटी है वो छलांग लगाने को तैयार है।हमारा यह संस्‍थान शोध, अनुसंधान एवं नवाचार के क्षेत्र में आगे बढ़ रहा है और इसी दिशा में बढ़ते हुए आज जो शिलान्‍यास हो रहा है,‘स्‍वायत्‍त नेवीगेशन सिस्‍टम’ का मैं उसके लिए आपको बधाई देना चाहता हूं। यह सिस्‍टम अगली पीढ़ी की गतिशीलता के लिए महत्‍वपूर्ण परिवर्तक साबित  होगा यह भारत एवं विश्‍व के कई देशों के प्राथमिक तकनीकी लक्ष्‍यों  में से एक है।यदि आसान शब्‍दों में कहूं तो ऑटोमेशन नेवीगेशन सिस्‍टम 21वीं सदी में एक शक्‍तिवर्धक की तरह होगा जो नये भारत एवं आत्‍मनिर्भर भारत की आधारशिला बनेगा। मेरे देश के प्रधानमंत्री ने कहा कि 21वीं सदी का भारत तकनीकी का भारत होगा,प्रौद्योगिकी का भारत होगा, ऐसा भारत होगा जो स्‍वस्‍थ होगा, सशक्‍त होगा, समृद्ध होगा, आत्‍मनिर्भर होगा, श्रेष्‍ठ होगा और एक भारत होगा। इसलिए उस आत्‍मनिर्भर भारत की दिशा में आज आप एक ऐसा मील का पत्‍थर रख रहे हैं जिसके लिए मैं आपको शुभकामना देना चाहता हूं। भारत के पास विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार के क्षेत्र में समृद्ध विरासत है। विज्ञान का यह ज्ञानप्रयोग एवं परीक्षण की आधारशिला है इसलिए विज्ञान के क्षेत्र में आगे बढ़ना हमारी सर्वोच्‍च प्राथमिकता रही है। यदि देखा जाए तो आजादी के बाद से ही भारत विज्ञान एवं तकनीकी के क्षेत्र में तेजी से आगे बढ़ रहा है। इसका श्रेय भारत के प्रतिभाशाली वैज्ञानिकोंकोजाता है जिन्‍होंने भारत में विज्ञानएवं प्रौद्योगिकी की नींवरखी है। चाहे वह नोबल पुरस्कार विजेता भौतिक विज्ञानी सी.वी. रमन हों, चाहे आधुनिक विज्ञानके जनक डॉ. जगदीश चन्‍द्र बसु हों, चाहे देश के ऊर्जा एवं परमाणु कार्यक्रम के वास्‍तुकार डॉ. होमी जहांगीर भाभा हो, भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के जनक डॉ. विक्रम साराभाई हो, मिसाइलमैन ऑफ इंडिया डॉ. कलाम हों, सभी ने अपनेक्षेत्रों में महत्‍वपूर्ण कार्यकिया है। इसी प्रकार हैदराबाद शहर में पैदा हुए डॉ. एस.सी. रामकृष्‍ण हों, राम गोविन्‍द राजन हों, रफी अहमद हों, बहुत लंबी श्रृंखला है जिन्‍होंने इसको आगे बढ़ाया है। अभी मैं देख रहा था कि आपके संस्‍थान ने एनआईआरएफ रैंकिंग में 10वां स्‍थान प्राप्‍त किया है। अटल रैंकिंग में भी आपने शीर्ष 20 में अपनीजगह बनाई है और जिस तरीके से आप 200 अत्‍याधुनिक प्रयोगशालाएं, 5 उद्यमिता केंद्र चला रहे हैं और संस्‍थान को 500 करोड़ से भी अधिक की स्‍वीकृति मिली है और उसमें भी बहुत बड़ा काम होगा। पीएचडी के विद्वानों की कुल छात्र संख्‍या लगभग 30 प्रतिशतआपके यहां हैं और 1500 से भी अधिक शोध प्रकाशनोंकेलिए मैं आपको बधाई देना चाहता हूं और पेटेन्‍ट कार्य भी आपने किया है। 300 प्रायोजित परियोजनाओं एवं उद्योग सहयोगियों के साथ नवाचार में आप लगातार आगे बढ़रहें हैं, यहबहुत अच्छी बात है। आप प्रेक्टिकल रूप में ज्वाइन करकेउसको आगे बढ़ा रहे हैं और यह भी मेरे लिए खुशी है कि जिस तरीके से नवाचार के साथ आप पूरी दुनिया के लोगों के साथ चाहे अमेरिका है,जापान है, आस्टेलिया है, ताइवान हैऔरयूरोप के लगभग 50 से अधिक दुनिया के विश्वविद्यालयों के साथ आप पारस्परिक शोध एवंअनुसंधान और कई प्रोजेक्ट पर काम कर रहे हैं।यहमेरे लिए खुशी का विषय है और वैसे भी आपको मालूम है कि आज भी हम लोग स्पार्क के तहत दुनिया के शीर्ष 128 विश्वविद्यालयों के साथ अनुसंधान कर रहे हैं।अब हमनयी शिक्षा नीति लेकर के आएं  हैं जो नये आयाम और नये ऊंचाइयों को ले करके पूरे देश में आमूल चूल परिवर्तन के साथ आगे आ रहीहैं।शोध एवं अनुसंधान को बढ़ावा देने के लिए नेशनल रिसर्चफाउंडेशन जो प्रधानमंत्री जी के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार की अध्यक्षता में होगा और अपने तरीके से शोध और अनुसंधान के क्षेत्र में वो एक नया आयाम स्थापित करेगा दूसरीओरतकनीकी को अंतिम व्यक्ति तक ले जाना और शीर्ष तक पहुंचाना भी हमारा लक्ष्‍य है। इसके लिए नेशनल एजुकेशन टेक्नोलॉजी फोरम का भी गठन किया जा रहा है। मैं सोचता हूं नेशनल रिसर्च फाउण्डेशन और नेशनल एजुकेशन टेक्नोलॉजी फोरम इन दोनों कीस्थापना इस देश को अन्तराष्ट्रीय शिखर पर बढाएगी। मैं जरूर इस अवसर पर मैं कहना चाहूंगा औरअपने निदेशक साहबको हमारे छात्रों  की ओर से निवेदन करना चाहूंगा कि प्लीज पीछे का जो कार्यकाल आया है, उसमें पैकेज की दौड़ लगी है लेकिन पेटेंट की दौड़ने नहींलगी है। जिस दिन हम पेटेंट की दौड़ शुरू कर देंगे उस दिन यह आत्मनिर्भर भारत दुनिया के लिए नई आधारशिला पर खड़ा होगा। नई शिक्षा नीति भारत केन्द्रित होगी, यह हमने कहा है क्योंकि हम सोचते हैं कि हमारे इस पीढ़ी को उस ज्ञान पर भी शोध और अनुसंधान करके आगे जाना चाहिए। यदि इस देश में शल्य चिकित्सा का जनक सुश्रुत पैदा हुआ है तो वो जो थातीहैंउसको आगे कहां तक बढ़ा सकते हैं इस पर काम करने की जरूरत है। दुनिया के लिए यदि रसायन शास्त्री नागार्जुन हैंतो उनके ज्ञान कैसे करके आगे बढ़ा सकते हैं।हमारीतमाम पीछे की चीजों को शोध और अनुसंधान के साथ कैसेव्यापक रूप में आगे बढ़ा सकते हैं, इसकी जरूरत है। आर्थिकी के क्षेत्र में भी हमारादेश बहुत आगे रहा है। मैं सोचता हूं कि लार्ड मैकाले के आने से पहले के भारत को आप देखेंगे तो तकनीकी के क्षेत्र में हो, ज्ञान के क्षेत्र में, विज्ञान के क्षेत्र में, नवाचार की चेतना के क्षेत्र में पूरी दुनिया को भारत ने मार्गदर्शन दिया है। हमारे पास सामर्थ्य भी है,विजन भी है औरविजनको तब्दील करके जमीन पर निर्मित करने का मिशन भी है, क्षमता भी है।हमेंवो विश्व गुरु भारत चाहिए जिसने ज्ञान, विज्ञान अनुसंधान, टेक्नोलॉजी और नवाचार में शीर्ष अपनीपराकाष्ठा को प्राप्त किया, दुनिया ने उसको जाना है, महसूस किया है। मुझे लगता है कि आज वहवक्त फिर आ गया है जब हम अपनी प्रतिभा को उनके साथ निखार सकते हैंयह देश 135 करोड़ लोगों का देश है। इस देश में बिखरीतमाम समस्याएं और विषयों को शोध और अनुसंधान के साथ हमें समाधान की दिशा में बढ़ाना है। इन 135 करोड़ के लिए जब हम खड़े होंगे तो सारा विश्व आपके पीछे खड़ा होगा।यह आत्मनिर्भर भारत खड़ा होगा जो मेरे देश के प्रधानमंत्री 5 ट्रिलियन डॉलर की आर्थिकी की की बात करते हैं, यह संस्थान इसकी आधारशिला बनेंगे। यदि हमारे प्रधानमंत्री जी21वीं सदी के आत्मनिर्भर भारत की बात करते हैं तो उसका रास्ता भी मेक इन इंडिया, डिजिटल इंडिया,स्‍किल इंडिया, स्‍टार्ट अप इंडिया, स्‍टैंड अप इंडिया से होकर के जाता है। अभी मुझे अच्छा लगा कि हमारे निदेशक महोदय ने भी कहा है कि हमारे बीओजी के चेयरमैन ने जिन बिन्‍दुओं को कहा है चाहे मौसम परिवर्तन की चुनौतियां हों और चाहे समाज में बिखरी तमाम चुनौतियों हों, चाहे कृषि के क्षेत्रमें हो तमाम क्षेत्रों में जो बिखरीहुईचुनौतियां हैं, उन चुनौतियों का यदिमुकाबला होता है तो एक नई चीज सामने आती है। विवेकानन्‍द जी कहते थे कि जितना गहरा संकट होता है और जितनी बड़ी कठिनाई होती हैं उतनी बड़ी सफलता भी होती है तो आप यदि रखें कि जितनी बड़ी कठिनाई होगी उतनी बड़ी आपकी सफलता भी होगी। मुझे भरोसा है कि नए शोध और अनुसंधान के साथ मेरा आईआईटी बहुत तेजी से काम कर रहा है। उस सोच के साथ पूरी ताकत के साथनवाचार के साथ नए प्रमाणिक तौर तरीकों के साथ आगे बढ़ रहा है निश्चित हीआपएक नया आयाम स्थापित करेंगे, ऐसा मेरा भरोसा है। मैं समझता हूं कि आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस और कोविड-19 परीक्षण जो आपने विकसित किया है] आज इस तरह का नवाचार निश्चित रूप में अभूतपूर्व है और आप इसको आगे बढ़ा रहे हैं। आपने देखा है कि हम नई शिक्षा नीति में शायद दुनिया का यह पहला देश होगा जो स्कूली शिक्षा से ही आर्टिफिशल इंटेलिजेंस को लेकर के आ रहा है। तकनीकी और व्यावसायिक शिक्षा को छठवीं से ही इंटर्नशिप के साथ वोकेशनल स्ट्रीम को हम ला रहे हैं। दुनिया का पहला ऐसा देश होगा जो व्‍यावहारिक रूप से इस पीढ़ीको खड़ा करना चाहता है। मुझे बहुत खुशी होती है कि आईआईटी हैदराबाद ने कोविड-19के परीक्षण और श्वसन मास्‍कके क्षेत्र में जो काम किया है, जो हमारे देश के प्रधानमंत्री जी कीआत्मनिर्भर भारत की जो सोच है उसको आपने बहुत तेजी से करने की दिशा में आगे काम किया है। आपने अभी चर्चा की है कि आप नवाचार से जो इजऑफ लिविंग है, इज ऑफ बिजनेसहै,इज ऑफ डिसिजन मैकिंग है और इजऑफ गवर्नेंस है इसका माहौल भी इसी से शुरू करना होगा और इसी की आज देश को जरूरत भी है। निश्चित रूप सेजो नए नवाचार आप अनुसंधान के साथ कर रहे है उससेएक माहौल सृजित होगा क्‍योंकिप्राध्यापक तो सबसे बड़ी ताकत होती है किसी भी देश की मुझे लगता है कि जिस तरीके से नित नए विषयों की खोज और अनुसंधान आप कर रहे हैं और बहुत तेजी से उसको बढ़ा रहे हैं तोहमारे विज्ञान की जो चीजें हैं उनको भी नवाचार के रूप में हम आगे लाने में निश्चित रूप से सफल होंगे। नयी शिक्षा नीति कोहम बिल्कुल नए परिवेश के साथ लाये हैं।नई शिक्षा नीति लागू होने से पहले यदि आप शिक्षण पद्धति में देखेंगे तो विज्ञान, मानविकी और वाणिज्य की धाराओं के बीच एकलाइन खींची हुई थी। अपने पसंद का छात्र जो है वो अध्‍ययन नहीं कर सकता था,मनचाहेविषय को नहीं प्राप्त कर सकता था। उन्हें उन्हीं विषयों का आकलन करने के लिए मजबूर होना पड़ता था जो उसको दिया जाता था लेकिन अब नई शिक्षा नीति आने के बाद तो ज्ञान, मानविकी, वाणिज्य के जो बीच की धाराएं हैं तथा जो बाधाएं हैं, उनकोअब खत्म कर दिया है। अब विद्यार्थीकिसी भी विषय को ले सकता है औरकिसी भी विषय के साथ किसी विषय को जोड़ सकता है और बिल्कुल नई दिलचस्पी के साथ और पूरे नये आयाम के साथ बहु-विषयक व्‍यवस्‍था, अब हमने निर्मित की है।इस शिक्षा नीति के अंतर्गत यदि कोई 4 वर्ष का कोर्स है और यदि कोई छात्र दो साल में परिस्‍थितिवशछोड़के जा रहा है  तो पहले उसका पैसा एवं वर्ष दोनों खराब हो जाते थे लेकिन अब उसकोनिराश नहीं होना पड़ेगा।यदिवह परिस्‍थितिवश एक वर्षमें छोड़ कर जा रहा है तो उसको सर्टिफिकेटदेंगे,दो साल में छोड़ कर जा रहा है तो डिप्लोमा देगें, तीन साल में छोड़कर जा रहा है तो उसकोडिग्री देंगे। लेकिन यदि फिर वह लौट कर अपने भविष्य को संवारना चाहता है तो फिर जहां से उसने छोड़ा था, वहीं से शुरू कर सकता है। उसके लिए हम एक ऐसा क्रेडिट बैंक बनायेंगे जहां उसके सारे क्रेडिट जमा होंगे,इसलिए उसके लिए आगे बहुत आपार संभावनाएं है।वह कहां जाना चाहता है, शोध और अनुसंधान के क्षेत्र में जाना चाहता है।छात्रोंमैं आपसे कहना चाहता हूं कि आपके लिए पूरा मैदान खाली है। ऐसा अवसर है जब आप किसी भी क्षेत्र में जा सकते हैं और कुछ भी करने के लिए आपके लिए पूरा मैदान खाली है। पूरी ताकत के साथ शोध अनुसंधान और नवाचार आपके पीछे दौड़ रहे हैं। आपको आगे दौड़ना है औरमुझे लगता है कि ऐसा अवसर आएगा यहतो नए भारत का स्वर्णिम भारत का नवोदय है और इसका पूरा उपयोग हम लोगों को करना है। मुझे भरोसा है कि चाहेराष्ट्रीय अनुसंधान परिषद हो, चाहे उच्च शिक्षा होहम लोगों ने तमाम प्रकार के नए-नए प्रयोग करने की जो बात की है। मैं पीछे की समय से जब देखता हूं तो पीछे दस या पंद्रह साल में जो देश पेटेंट में हमारे साथ थे उन देशों ने छलांग मारी है। पीछे दसऔर पंद्रह सालों में हम पेटेंट और शोध तथा अनुसंधान की जो संस्कृति हैउससे हम थोड़ा दूर गए हैं और इसी का परिणाम है कि हमारे बच्चों में विदेश में जाने की होड़ लग गई। इसलिए नईशिक्षा नीति में दुनिया के शीर्षस्थ विश्वविद्यालयों कोअपनी जमीन पर हमआमंत्रित करना चाहते हैं। लेकिन ‘ज्ञान’ और ‘ज्ञान प्लस’ में जो अध्यापक बाहर से आते हैं उनको तो हम आमंत्रित कर ही रहें हैं।‘ज्ञान प्लस’ में हमारे अध्यापक और फैकल्टी दुनिया में जा सकते हैं, उनको भी दुनिया में जाना चाहिए। कुछ तो चीजें हमारी ऐसी हैं जिसको  हम दुनिया को दे सकते हैं। ऐसा नहीं है हम दुनिया में ज्यादा केवल लेने के लिए ही हम हैं, जबकि हमारी समता एवं सामर्थ्‍य देने की है और इसलिए देने की स्थितियां अबआनी चाहिए।मुझे इस बात की खुशी है कि ‘स्टडीइन इंडिया’ में इस समय 50 हजार से भी ज्यादा नामांकनहुए हैं। आईआईटी में आसियान देशों के एक हजार से भी अधिक छात्र शोध और अनुसंधान के लिए आ रहे हैं। जिनके साथ अनुबंध हो गया वो औरआगे बढ़ेगा। लोगों को भरोसा हैहमारे आईआईटी पर औरऐसा नही है कि हमारे जो आईआईटीहैंवहसमर्थ नहींहैं। आज पूरी दुनिया में यदि आप प्रबंधन और टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में देखें तो आपके जितने छात्र हैं जितने मेरे देश के पूर्व छात्र हैं वो पूरी दुनिया में बिखरे हुए हैं। चाहे वो गूगल हो, चाहे माइक्रोसॉफ्ट होइसके भी प्रबंधन के शीर्ष क्षेत्र में सीओओ जो हैं इन आईआईटी से निकलने वाला मेरा छात्र पूरी दुनिया को रोज सीख दे रहे हैं और इसलिए हमने‘स्‍टे इन इंडिया’ किया।  हमने अपने  छात्रों को भरोसा दिलाया कि हमारे आईआईटी, एनआईटी, आईएसर, केन्‍द्रीय विश्‍वविद्यालयों में योग्‍यता है, क्षमता है आपको  बाहर जाने  की जरूरत नहीं है और यहअब लोगों की समझ में आ गया है। मुझे इस बात की खुशी है कि पीछे के समय जब हमने जेईई परीक्षाएं करवाई तो दो लाख से भी अधिक छात्रों ने जोविदेश में जा रहे थे,वे जेईई और नीट की परीक्षाओं में सम्‍मिलित हुए।  हम ‘स्‍टे इन इंडिया’ के तहत दुनिया के शीर्ष सौविश्वविद्यालयों को अपनी धरती पर आमंत्रित कर रहे हैं आपकोकहीं जाने की जरूरत नहीं है और यहां के जो शीर्ष विश्वविद्यालय हैं वेभीबाहर जा रहे हैं। ये आदान-प्रदान हम करेंगे।हमारे संस्‍थान अब एनआईआरएफ ही नहीं,अटल रैंकिंग ही नहीं बल्‍कि क्‍यूएस रैंकिंग और टाईम्‍स रैंकिंगमें भीछलांग मार  रहे हैं क्योंकि हममें सामर्थ्य हैऔर मुझे भरोसा है कि आप जिस तरीके से काम कर रहे हैं आप इसको आगे बढ़ाएंगे। जलवायु परिवर्तन की दिशा में दूर संचार प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में जो काम कर रहे हैंमैंउसकी भी सराहना करना चाहता हूं। आईआईटी हैदराबाद द्वारा फाइव जी तकनीकी पर भारत का पेटेंट हमारे लिए बहुत बड़ी उपलब्धि है और मैं उसकी भी बधाई देना चाहता हूं। मुझेभरोसा होता है जब मैं आपके आईआईटी के बारे में अध्ययन करता हूं और समय-समय पर मैं बातचीत करता रहता हूं तो मुझे खुशी मिलती है कि नहीं, मेरा आईआईटी बहुत अच्छा काम कर रहा है। मानवता की भलाई के लिए अभी हम लोगों ने कृषिऔर फसलों के विकास और जलवायु परिवर्तन की दिशा में भी बेहतरीन कार्य करने का प्रयास किया है।मेरा भारत है वह विश्वगुरु के रूप में रहा है। इसके बारे में हमेशा कहा गया है कि ‘एतद् देश प्रसूतस्य शकासाद् अग्रजन्मन:, स्वं-स्वं चरित्रं शिक्षरेन् पृथ्वियां सर्व मानव:’हम विश्व बंधुत्व वाले लोग हैं। हम पूरी दुनिया को अपना परिवारमानते हैं, परिवार वहीमान सकता हैं जिसमें ताकत होगी। उस परिवार को समझने की क्षमता और ताकत मेरे हिंदुस्तान के अंदर है और इसीलिए हमने हमेशा ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः’ की बात की है। धरती पर हर व्यक्ति खुश रहना चाहिए यदि एक प्राणी भी दुखी रहेगा तो मैंसुख अहसास नहीं कर सकता यह हमारी ताकत है। हमारी भारतीयता का जो संस्कार है, जो मिशन है इसको लेकर चलना है और हर क्षेत्र में हमको इसको कभी भूलना नहीं है क्‍योंकि यही भारत की आत्मा है। यदि भारत विश्व गुरू के रूप में रहा है तो केवल ज्ञान और विज्ञान और तकनीकी के क्षेत्र में नहीं जो देश केवल तकनीकी के क्षेत्र और आर्थिकी के क्षेत्र में श्रेष्ठ है वह विश्व गुरू नहीं कहलाए। विश्वगुरु मेरा भारत कहलाया है क्योंकि ज्ञान,विज्ञान, तकनीकी के क्षेत्र में नहीं बल्‍कि जीवन दर्शन के क्षेत्र में भी और जीवन मूल्यों के क्षेत्र में भी वह हमेशापूरी दुनिया की मानवता को ले करके चला है। अंततोगत्वाशोध जितने भी हो रहे मनुष्य के लिए हो रहे हैं, दुनिया के किसी भी छोर में रहने वाला मूल केन्द्र तो व्यक्ति है, प्राणी है तो इसीलिए उस प्राणी को केन्द्रित करके सदैव हमारा विचार रहा है और इसीलिए इस विचार को हम आगे बढ़ाने के लिए निरन्‍तर कार्य करेंगे ऐसा मेरा विश्वास है। भारत वर्तमान में कृषि,ऊर्जा और उद्योगों के क्षेत्र में शोध एवं अनुसंधान की आवश्‍यकता है, जिसके लिए आज यहां शिलान्‍यास भी हो रहा है और इसके लिए मैं शुभकामना देना चाहता हूं। मुझे भरोसा है कि इसके होने से नकेवलइस देश को बल्कि पूरी दुनिया को मार्गदर्शन मिलेगा और हम पूरी ताकत के साथ इसको आगे बढ़ा सकेंगे।वर्ष 2008 में आपके इस संस्‍थान की स्‍थापना हुई है और 2008 से लेकर के आज 12 बरसों की इस आयु में आपने छलांग मारी है और मैं आपकीपूरीफैकल्टी को भी बधाई देना चाहता हूं।आज का दिन न केवल आईआईटी हैदराबाद के इतिहास में बल्कि देश के इतिहास में और दुनिया के इतिहास में एक महत्वपूर्ण दिवस साबित होगा। इस शुभकामना के साथ मैं आपको एक बार फिर बधाई देता हूँ।

 

बहुत-बहुत धन्यवाद।!

 

 

कार्यक्रम में गरिमामयी उपस्‍थिति:-

 

  1. डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’, माननीय शिक्षा मंत्री, भारत सरकार
  2. श्री संजय शामराव धोत्रे, माननीय शिक्षा राज्‍य मंत्री, भारत सरकार
  3. श्री बी.वी. आर. मोहन रेड्डी, अध्‍यक्ष बीओजी, आईआईटी हैदराबाद,
  4. प्रो. वी.एस. मूर्ति, निदेशक, आईआईटी हैदराबाद
  5. श्री आर.के. मुरली मोहन, मिशन डायरेक्‍टर,
  6. श्री राकेश रंजन, अपर सचिव, शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार