इंडियन चैम्बर्स ऑफ कॉमर्स ‘आत्मनिर्भर भारत, उद्यमिता और रोजगार कौशल का विकास’
दिनांक: 19 जनवरी, 2021
माननीय शिक्षा मंत्री, डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’
आईसीसी के इस वर्चअल सत्र में बहुत ही महत्वपूर्ण विषय पर जो आज यह परामर्श हो रहा है ‘आत्मनिर्भर भारत, उद्यमिता और रोजगार कौशल का विकास’ वर्तमान परिस्थितियों में बहुत ही जीवंत विषय आपने लिया है जिसकी आज जरूरत है। ऐसी परिस्थिति में जरूरत है जब देश बहुत तेजी से अंगड़ायी ले रहा है, इसलिए मैं आपके इस कार्यक्रम के लिए आपको धन्यवाद देना चाहता हूं और आईसीसी के जो अध्यक्ष है श्री विकास अग्रवाल जी उनकी पूरी टीम को मैं शुभकामना देना चाहता हूं कि आप इसी तरीके से गतिविधियां करके देश के नव-निर्माण में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करेंगे। डॉ. राजकुमार जी भी यहां पर उपस्थित हैं, जो बहुत विजनरी हैं, प्रखर हैं, शालीन हैंऔर मैं राजकुमार जी को भी बहुत बधाई देना चाहता हूं कि यह जो हमारी हिन्दी है, यह हिन्दी पूरी दुनिया की सबसे बड़ी शब्द शक्ति हैं। इसमें लगभग 10 लाख शब्द हैं और यदि आप इस पर शोध और अनुसंधान करें तो इसमें अपार संपदा है। वैसे तो दुनिया की तमाम भाषाएं हैं जो संस्कृत और हिन्दी से निकलती हुई आपको लगेंगी और पूरी दुनिया में 67.5 करोड़ लोग हिंदी बोलते हैं जो अभी विश्व में तीसरे नंबर पर है। लेकिन मुझे लगता है कि कुछ ही दिन के बाद वह नंबर एक होगी क्योंकि हिन्दुस्तान की पहचान कहीं न कहीं हिंदी भाषा से है और इसकी जरूरत है। वैसे तो हमारा सौभाग्य है कि हमारे देश में इतनी खूबसूरत भाषाएं हैं और हमारे संविधान ने हमको 22 भारतीय भाषाओं को दिया है। इसमें तमिल है, तेलगू है,मलयालम है,गुजराती है, बंगाली है, उड़िया है, हिन्दी है, उर्दू है, असमिया है, ये सभीऐसी खूबसूरत भाषाएं हैं जिनमें ज्ञान भी है, विज्ञान भी है, अनुसंधान भी है,परंपराएं है और उनके सूत्र के रूप में हिंदी सबको पिरोते हुए चलती है।हमारा देश इन 22 भारतीय भाषाओं का सुंदर गुलदस्ता है जो इस देश कीविविधता में एकता का सबसे बड़ा सूत्र खड़ा करता है।इन भाषाओं के अंदर साहित्य है,इनकेअंदरजीवनदर्शन है, इसलिए मेरे देश के प्रधानमंत्री जी ने कहा ‘एक भारत श्रेष्ठ भारत’। हम एक दूसरे को जिस दिन जान जाएंगे उस दिन दुनिया में सबसे समृद्धतम हो जाएंगे और वैसे भी दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश हैहिंदुस्तान। यह 135 करोड़ लोगों का देश है।हम आज जिस बात की चर्चा कर रहे हैं और जिस बात की चिंता कर रहे हैं और जिस बात को लेकर आगे बढ़ना चाहते हैं उसके सन्दर्भ में देश के प्रधानमंत्री जीने एक बार कहा था कि यदि हम एक कदम भी आगे बढ़ते हैं अर्थात् हिंदुस्तान का एक व्यक्ति केवल एक कदम भी आगे बढ़ाएगा तो उसके एक कदम आगे बढ़ने से एक सौ पैंतीस करोड़ कदम बढ़ते हैं, कई देश तो 135 करोड़ कदम रखने पर पार भी हो जाते हैं। यहभारत का वैभव है और इसीलिए यह जो हमारी शक्तिहै,हमारी कमजोरी नहीं हो सकती है।जिस तरीके से हम लोग कभी-कभी खो जाते हैं औरउस खोये जाने में और अति-आत्मविश्वास करने में और अति-उदारता की भी सीमा परे होने में हम लोगों ने बहुत ज्यादा कीमत चुकाई है जिसे हम गुलामी के रूप में देखते हैं। आखिर यह भारत तो विश्वगुरूभारत था, क्या कमी थी?जब मैं भारत की बात करता हूं जो विश्वगुरु भारत था। अगर राजकुमार जी, आपने तक्षशिला नालंदा और विक्रमशिला जैसे विश्वविद्यालयों की बात की तब दुनिया में आप तो ऑक्सफोर्ड से पढ़े हुए हैं, दुनिया के शीर्ष विश्वविद्यालयों में आपकी दखल है। अभी कुछ दिन पहले कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के प्रबंध निदेशक रॉड स्मिथ एक वेबीनार में मुझे मिले और उसके बाद उन्होंने मुझे मेल भेजा तो मुझे खुशी हुई। उन्होंने कहा कि सात सौ आठ सौई. पूर्व हिन्दुस्तान में जो विश्वविद्यालय थे और जो भारत ज्ञान का समर्थ केन्द्र था। इस नयी शिक्षा नीति ने उसको जीवंत कर दिया जो सारी दुनिया का मार्गदर्शन देने में सक्षम है। यहबातअब दुनिया के लोग हमारे साथ बोलने लगे हैं। आजजरूरत है,अपने आप को खड़े रखने की। मुझे खुशी है कि आपने इस विषय पर आज चर्चा की है। मैं जिस भारत की बात कर रहा हूं उस भारत को 24 घंटा हमको अपने मन और मस्तिष्क में जीवित रखना पड़ेगा, वो विश्व गुरु है और जिसके बारे में ‘‘एतद् देश प्रसूतस्य शकासाद् अग्रजन्मन:, स्वं-स्वं चरित्रं शिक्षरेन् पृथ्वियां सर्व मानव:’’कहा गया है। जब सारी दुनिया के लोग ज्ञान, विज्ञान, अनुसंधान, नवाचार सब कुछ सीखने के लिए हमारे पास आते थे और जब हम उसके बाद सोचते हैं कि मेरे देशको विश्वगुरु कहा गया और मेरे देशको सोने की चिड़िया कहा गया जो धनधान्य और वैभव से इतना संपन्न देश थाइसकोदुनिया सोने की चिड़िया के नाम से जानतीथी। आजकहाँ है वो सोने की चिड़िया,जरूरत है इस पर विचार करने की बल्कि एक कदम आगे बढ़ने की। मुझे भरोसा है क्योंकि इसदेश की 135 करोड़ लोगों की आबादी है। हमारे पास प्रतिभा की कमी नहीं है, हमारे पास विजनकी कमी नहीं है, अब थोड़े से समन्वयकी जरूरत है। आप जैसे संस्थान जब आगे आते हैं तो उम्मीदें और बढ़ती हैं। राजकुमार जी जैसे युवा जो शिक्षाविद्हैंऔर जिनके मन में विचार है, ललक है तथा जिनके मन-मस्तिष्क में देश भी पलता हैऔर जिनमें भारत के संस्कार भी पलते हैं और जिसमें भारत का विजनभी पलता है, इसकी जरूरत है। एक समय बीच में था जब हमने पैकेज की दौड़ लगाई थी,आज उसको रोक करके पैकेज नहीं बल्कि पेटेन्ट कीदौड़की जरूरत है। हमारे पास सब कुछ है, हमको केवल शोध और अनुसंधान के साथ उस चीज को आगे बढ़ाने की जरूरत है और इसीलिए मैं आलोक जी, जो मैनेजिंग ट्रस्टी हैं और श्रीप्रदीप अग्रवाल जी जोसीईओहैं,श्रीसिमरनप्रीत सिंह जी जो निदेशक हैं और प्रो.ध्रुव ज्योति चटोपाध्याय जी और आपके सभी जो सह-अध्यक्ष भी हैं, उपाध्यक्ष भी है और कुलपति सिस्टर निवेदिता विश्वविद्यालय की भी हैं, सभी विशेषज्ञ समिति के सदस्य और शिक्षा उद्योग बिरादरीके गणमान्य जितने भी लोग जुड़े हैं जिनके सन्दर्भ में मुझे बताया गया हैकि बहुत बड़ी संख्या में आज सभी लोग जुड़े हुए हैं,मैं उन सबका हृदय की गहराई से अभिनंदन करता हूं। जिस बात को मैं कहता हूं कि स्वभाविक है विश्वगुरु भारत और सोने की चिड़िया भारत और आत्मनिर्भर भारत तथा एक भारत एवं श्रेष्ठ भारत। देश के प्रधानमंत्री जी ने कहा है कि 21वीं सदी का स्वर्णिम भारत चाहिए और उस 21वीं सदी के स्वर्णिम भारत के लिए इस समय हमारी नयी शिक्षा नीति उसके आधारस्तम्भबन करके आई है। जिस बात की चर्चा हुई है कि अंततोगत्वा जनसंख्या हमारे पास है। हमारे पासमार्किट की कमी नहीं है। प्रतिभा की कमी नहीं है तो फिर यह जनसंख्या और प्रतिभा इन दोनों के जो बीच की समस्याएं हैं और जो उसके तमाम विंगहैं उनका कहां गैप रह गया, इस गैप को भरने की जरूरत है और निश्चित ही जिस दिनये गैप भरा जाएगा,उसी दिन विश्वगुरू भारत का रूप साकार हो जाएगा। राज कुमार जी ने जो दस महत्वपूर्ण सुझाव दिए यह सभी सुझाव बहुत महत्वपूर्ण हैं और उस रास्ते पर हम लोग काम कर रहे हैं। आप तो आईओई संस्थान में आते हैं जो बीस ऐसे संस्थान में आता है जिसे अभी हमने उत्कृष्ट संस्थानों के रूप में चुना है उनमें एक आपका भी संस्थान है।इन बीस संस्थानों में दस सरकारी और दस गैर-सरकारी संस्थान हैं और जिनमेंविश्व की रैंकिंग में श्रेष्ठता को अर्जित करने के अभियान के लिए आपको एक योद्धा बना कर के मैदान में भेजा गया है। मुझे भरोसा है अपने संस्थानों पर कि वो ऐसी भूमिका निभाएंगे जैसी देश को उनसे अपेक्षा है और निश्चित रूप से वे पूरे विश्व के शिखर पर पहुंचेगे क्योंकि हममें विजन की कमी नहीं है। स्वामी विवेकानंद ने कहा था कि शिक्षा एक व्यक्ति में पहले से ही अवस्थित उत्कृष्टता की अभिव्यक्ति है और हम चाहते हैं कि शिक्षा के द्वारा चरित्र-निर्माण हो, मन औरबुद्धिका विस्तार हो, जिसके द्वारा व्यक्ति अपने पैरों पर खड़ा हो सके। विवेकानन्द जी कहते हैं कि मेरे लिए शिक्षा का सार मन की एकाग्रता है न कि केवल तथ्यों का संग्रह है। स्वामी जी यह भी कहते हैं कि शिक्षा आपके मस्तिष्क में डाली जाने वाली सूचनाओं कि मात्रा नहीं है और न ही आपके जीवन में द्वन्द पैदा करने वाली है। हमारे पास जीवन –निर्माण, मानव-निर्माण, चरित्र-निर्माण और विचारों के सार्वभौमिक भाईचारे और अपने विश्वास के विचारों को बढ़ावा देने वाली ही शिक्षाहो सकती है। स्वामी जी ने जिस बात को कहा था और जिस बात को अभी हमारे अध्यक्ष जी ने कहा है और आपनेवोकेशनल एजुकेशन और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की अभी चर्चा की है तो मैं समझता हूं कि स्वामी विवेकानंदजी नेसमाज के बारे में जो कहाहै,मूल्यपरकताकेबारे में जोकहा है,समावेशन के बारे में कहा है, भाषा के बारे में उन्होंने जिस बात को कहाहै, अंतर्राष्ट्रीयकरण के बारे में कहा है, महिला सशक्तिकरण के बारे में कहा है, आत्मनिर्भरता के बारे में कहा है, विज्ञान और तकनीकी के बारे में कहा है,शारीरिक शिक्षा और उसके चिंतन के बारे में कहा है और मैंने विवेकानंद जी को परा पढ़ने के बाद एक ऐसी बुकलेट तैयार की है, जिसके मुख्यविचारों को हमनेअपनी नयी शिक्षा नीति में समाहित किया है। मुझे कहते हुए गौरव महसूस हो रहा है कि विवेकानंद जी के पूरे विजन को हमने नयी शिक्षा नीति में उडेलाहै और निश्चित रूप में हमारा देशविवेकानन्दजी का भारत बनेगा और ऐसाभारत बनेगाजो विश्व गुरू भारत के रूप में फिर विश्व में विख्यात होगा और अपनीउस गरिमा को फिर लौटा करके अपना एक आधार खड़ा करेगा। मुझे बहुत खुशी है कि आजस्वामी जी की इसी भावना से प्रेरित आपने बहुत अच्छे तरीके से यह आयोजन किया है। विवेकानंद जी कीकलकत्ता में 31मई, 1893 को उद्योगपति श्रीजमशेदजी टाटा सेमुलाकात हुई थी और तबविवेकानंद जी अपनी परम्पराओं को लेकर के पूरी दुनिया में जा रहे थे। आपको मालूम होगा किविवेकानंद जी ने जमशेदजी को अपनेअनुभवों को सुनाया और अपनी यात्रा के तहत सत्य की खोज में उन्होंने यह भी कहा था कि जो यह उपनिवेशवाद है और जिनके हाथों में भारतीयता का जो अथक परिश्रम है अब उसका उत्पीडऩ और दमन हो रहा है और उन्होंने कहा था कि ऐसा क्या हो सकता है जिससे हमारी प्रतिभा औरहमारा औद्योगिकीकरण हमारी भारत की धरती पर खड़ा हो। उन्होंने जापान की अभूतपूर्व प्रगति और भारत में इस्पात के उद्योग की नीवंरखने की जो बात 1893 में जमशेद जी टाटा से की थी औरजमशेदजी ने उपकरणों तथा प्रौद्योगिकी की खोज में भारत को जो एक मज़बूत औद्योगिक राष्ट्र बनाने की दिशा में काम किया औरआज भी हमारे बीच उसका उदाहरण है और तब भी उन्होंने यह कहा था कि क्या माचिस भी जापान से आयात होगी और यह हमारा इतना बड़ा देश हैजोकुछ भी कर सकता है। मुझे आज भी इस बात की खुशी है कि उन्होंने जिस तरीके से 1909में भारतीय विज्ञान संस्थान की स्थापना की और विवेकानंद जी के विज्ञान और देशभक्ति के विचारों से को औद्योगिक संस्थानों के साथ समाहित किया। यदि एक विवेकानंद पूरी दुनिया मेंभारत के आध्यात्म को लेकर के, चिंतन को लेकर के पूरे विश्व को शिखर पर पहुँचा सकता हैं और यदि हमारे जमशेदजी अथक मेहनत और प्रयास करने के बाद एक अद्भुत उदाहरण दे सकते हैं और हमारेविज्ञान संस्थान विश्व के शिखर पर अपनी उपस्थिति को महत्वपूर्ण तरीके से दर्ज कर रहे हैं तो इन तीनों चीजों का आज भी समन्वय करने की जरूरत है।मुझे भरोसा है कि जिस समय हम इन तीनों को जोड़ेंगे और जो जुड़ भी रहे हैं तबनिश्चित रूप में से यह कार्य हमको बहुत आगे बढ़ाने में मदद करेगा। जब तक हम गांव को आत्मनिर्भर नहीं करेंगे तब तक देश भी आत्मनिर्भर नहीं होगा आपको मालूम है कि हमारे देश केगांव सेबड़ा गणतंत्र कोई नहीं था। प्रत्येकगांव इस देश के गणतंत्र के रूप में था। उसकी अपनी अर्थव्यवस्था होती थी न्याय व्यवस्था होती थी, सामाजिक व्यवस्था होती थी और तमाम सारी व्यवस्थाएं होती थी और आज भी गांव वही गांव है। आज गांव के साथ किस तरीके से नए पन के साथ काम करने की जरूरत है, जैसा राजकुमार जी ने कहा कि शहरों सेगांवों की ओर जाने की जरूरत है और जो गांव से शहरों में जाने की होड़ लगी तथा विदेशों में जाने की होड़ लगी लेकिन अब हमें भागने के स्थान पर आत्मनिर्भर भारत बनाना है। एक समय था जब लोगों को लगा कि नहीं, मेरा बच्चा तो विदेशों में पढ़ रहा है तो दूसरे लोगों में भी विदेशों में पढ़ने की तथा पढाने की होड़ लग गई। शोध और अनुसंधान के लिए हमारा देश पूरीदुनिया में जाना जाता है। पूरी दुनिया हमारर कायल होनी चाहिए लेकिन केवल शौकके लिए लोगों ने हौड़ लगा ली कि मैं विदेश में रह रहा हूं और मेरा बेटा भी विदेश में पढ़ना चाहिए सिर्फ इसलिए आज आठ लाख छात्र विदेशों में हैं और इस देश के दो लाख करोड़ रूपये प्रतिवर्ष विदेशों में जाते हैंनहमारा पैसा हमारे काम आता है नहमारीप्रतिभा हमारे काम आती है,यह सबसे बड़ी चुनौती है और उस चुनौती का मुकाबला हमें करना है। विवेकानंद जी ने कहा था कि जितना बड़ा संकट होता है उतनी बड़ी जीत होती है। हमारे देश के प्रधानमंत्रीजी ने भी कहा है कि जितनी कठिन और जितनी बड़ी चुनौती होती है औरयदिताकत के साथ उससेमुकाबला किया जाए तो अवसरों में तब्दील होती है। मुझे भरोसा है इसमें हमारे लिए पूरा मैदान खाली है और यह बहुत अच्छा अवसर है। उद्योग जगत का मेरी प्रतिभाओं के साथ मिलन होना चाहिए। पीछे के समय जब मैंने आईआईटीका अध्ययन किया तो मुझे लगता था कि एक तरफ उद्योग है और दूसरी तरफ मेरा पाठ्यक्रम है तथा उद्योगों और पाठ्यक्रम के बीच का कोई तालमेल नहीं है और इसलिए यहां का बच्चा विदेश चला जाता था। हमने कहा कि मेरे आईआईटी, मेरे एनआईटी को उद्योगों के साथ जोड़ करके काम करने की जरूरत है और उसमें भी 50 प्रतिशत मेरा पढ़ने वाला बच्चा यहांके उद्योगों से जुड़कर के अनुसंधान करे और उस उद्योग को अपने पढ़ते हुए ही उसकी ऊंचाई तक ले करके जाए। यह प्रैक्टिकल करने की जरूरत है ताकि हमारी प्रतिभा और जो उद्योगहैं तथा जो हमारे संसाधन हैं उन सभीका मेल हो सके और एक नई चीज शोध और अनुसंधान के रूप में आगे आ सके। हमने एक ट्रिपलआईटी कोपीपीपी मोड में एक किया है। उसमें भारत सरकार 50 प्रतिशत का अनुदान देती है तथा 35 प्रतिशत का संबंधित राज्य करता है एवं 15 प्रतिशत का उद्योग करते हैं और यह एक अद्भुत प्रकार का ट्रिपलआईटी बना है। इसके तहत अब हमारे बच्चे बहुत तेजी से आगे बढ़ रहे हैं। इस समय हमने कहा कि 50 प्रतिशत उद्योगों में जाना चाहिए। उस उद्योग में यदि एक बार बच्चा चला गया और उसने अपना समय उद्योग के ऊँचाइयों पर ले जाने में लगाया तो एक तो उस उद्योग को तथा जो उद्योगपति है उसको वरदान के रुप में उनछात्रों की प्रतिभा मिलेगी तो वह संस्थान आगे बढ़ता चला जाएगा और वह छात्र भी पढ़ते-पढ़ते हुए योद्धा के रूप में सामने आएगा और अपने स्टार्टअप के रूप में वह आगे जाएगा तथा नौकरी के लिए नहीं दौड़ेगा बल्कि वह तो नौकरी देने की कवायदकरेगा। आज परिवेश तेजी से बन रहा है तथा बढ रहा है इसलिएहमें पीछे की बातों को ढोनेकी जरूरत नहींहै क्योंकि वक्त केएक-एक पल को संजोकरहम इतिहास को बदल सकते हैं। अब यदि अर्थनीति की मैं बात करूं तो कौटिल्य से बड़ा अर्थशास्त्री कौन हो सकता है लेकिन जब कौटिल्य को हमने पढ़ाया ही नहीं और जब कौटिल्य को हमने पढ़ा ही नहीं तथा भारत के गांवों को देखा ही नहीं तबभारत के बारे में हमारी प्रतिभा कैसे विचार करेगी। आज जरूरत इस बात की है। मैं सोचता हूंकि हमारे से ज्यादा समृद्धतातो पूरी दुनिया में किसी के पास नहीं थी। आयुर्वेद जो आयु का विज्ञान हैऔर कौन दुनिया का व्यक्ति है जो जीवित नहीं रहना चाहता, सुखी नहीं रहना चाहता, जो शारीरिक रूप से सक्षम और मानसिक रूप से समृद्ध नहीं होना चाहता यदिशरीरसही नहीं है और मन सही नहीं है तो व्यक्ति का तो अस्तित्व हीनहीं रहेगा तो उसको उन संपदाओं से क्या लेना है और इसीलिए मनुष्य जो ईश्वर की सबसे सुंदरतम कृति है इसको ठीक रखने का माद्दाहिंदुस्तान की धरती पर है।आयुर्वेद की बात करने वालाचरकतथाउसकी चरक संहिता आज भी इसदेश के अंदर है। पूरी दुनिया अब यह महसूस करने लग गई किहां यदि शाश्वत चिकित्सा कोई है तो वो आयुर्वेद में है और तमाम व्याधियों कायदिसमाधान हो सकता है तो आयुर्वेद में हो सकता है।क्याहमने उनजड़ी-बूटियों के साथ अपना समन्वयकिया?क्याहमनेसंजीवनी बूटी के साथ समन्वयकिया? क्या हमने जड़ी-बूटियोंके दोहन और उनकेउत्पादन पर काम किया?क्या आयुर्वेदपरशोध और अनुसंधान हुआ? यदि नहीं हुआ तो अब इसकी जरूरत है।वास्तव में यह चीज हमारी है और दुनिया वाले पढ़ रहे हैं तथा हमको बता रहे हैं, यहउल्टा हो रहा है। हमको अपनी चीज को उन्हेंबताना चाहिए था कियहचीज हमारे पास है।आज जर्मनी 14-14 संस्कृत के विश्वविद्यालय खोल रहा है औरवहांहोड़ लगी हुई हैक्योंकिउनको मालूम है कि संस्कृत में ऐसे ग्रंथ हैं, वेद पुराण हैं, उपनिषद हैं और कृषिसे लेकर योग तथाआयुर्वेदतक ऐसे सूत्र हैं जो पूरी दुनिया में आगे बढ़ा सकते हैं। वो हमारी चीज है हम उस परअध्ययन करेंगे लेकिन जब हम इस देश में इस बात को कहेंगे तो लोग हास्यास्पद स्थिति में जाएंगे। अनेक लोग कहेंगे कि अभी अमेरिका ने नहीं बोला है। इसका मतलब जब अमेरिका वालेबोल दें तो हम करेंगे। इसलिए इस मानसिकता को चेंज करने की जरूरत है। मुझे भरोसा है कि जो वर्तमान समय है और उसकी जो युवा पीढ़ी है और जो आप सब लोग हैं वे इस बात को न केवल समझतेहैं बल्कि आप इसमेंलीडरशिप ले रहे हैं। मुझे खुशी होती है। मैं इस देश की सभी आईआईटीज को, ट्रिपलआईटी को,आईसर को, एनआईटी को तथा एनआईआरएफ में जो टॉप हंड्रैड हमारेविश्वविद्यालय हैं, जब मैंइन सबकी समीक्षा करता हूं तो मुझे लगता है कि हम क्या नहीं कर सकते हमारा देश तो यंग इंडिया रहने वाला है और आगे 35 सालों तक हम कुछ भी कर सकते हैं। ऐसा नहीं कि शोध और अनुसंधान की कमी है और ऐसा भी नहीं कि प्रतिभा की कमी नहीं है और ऐसा भी नहीं है कि पाठ्यक्रम की कोई कमी है।यदि ऐसाहोता तो मैं समझता हूं कि राजकुमार जी आप और आपकी पूरी टीम जानती है कि चाहे वो गूगल है और चाहे माइक्रोसॉफ्ट है अथवाचाहे दुनिया की कोई भीशीर्षकंपनी है, उसका सीईओ हमारी धरती से पढ़कर के पूरी दुनिया की लीडरशिप ले रहा है। यदि हमारीप्रतिभा ठीक नहीं थी तो हम कैसे लीडरिशप ले सकते थे,अभीमैंने सारे आईआईटीज को कहा कि आपके छात्र कहां-कहां पढ़ रहे हैं इसकी जानकारी इकट्ठा करो मुझे ख़ुशी होती है हमारे छात्र पूरी दुनिया में छाए हुए हैं। यह हमारी ताकत है औरउस ताकत को हिंदुस्तान की धरती पर हिंदुस्तान के लिए उपयोग करना है। इसलिएमेरे देश के प्रधानमंत्री जी ने आत्मनिर्भर भारत की बात कीहै। ऐसी विषम परिस्थितियों में भी 20 लाख करोड़ रुपया का पैकेजघोषित कर देना जब दुनिया संकट से गुजर रही है और त्राही-त्राही की आवाजआ रही है। हमारे देश के प्रधानमंत्री आत्मनिर्भर भारत के विषय में सोचते हैं और उसके लिए 20 लाख करोड़ कई विधाओं में अलग-अलग करके करना है। आज पूरी दुनिया में इन विषम परिस्थितियों में भी हमआगे बढ़े हैं। हमकोरोनाकाल में हीनई शिक्षा नीति को लाये हैं। हमने कोरोना काल में दुनिया को बताया कि भारत खड़ा है औरहमनेजेईई और नीट जैसी परीक्षाओं को कराया। नीट दुनिया की कोरोना काल की सबसे बड़ी परीक्षाहमने करवाई है। हमने बच्चों का एक वर्ष खराब नहीं होने दिया है। आप समझ सकते हैं कि कुल अमेरिका की जितनी आबादी नहीं है उससे ज्यादा इस देश केछात्र-छात्राएं। हैं उनको हम ऑनलाइनपर लाए हैं। अचानक जब पूरी दुनिया घर में कैद हो गई हो और उसके बाद भी ऐसी परिस्थितियांमें जहां ऐसी संभावनाएं हो गई हों वहां हम ऑनलाइन पर जाए। दुनिया का शायद यह रिकॉर्ड होगा कि 33 करोड़ विद्यार्थियों को ऑनलाइन पर एक साथ लाना कोई मजाक कीबात नहीं थी और यह कार्य सहज नहीं था। यह चुनौती भरा कदम था लेकिन उस चुनौती का मुकाबला करके हमने उसको साबित किया है और इसीलिए जब दुनिया के देशों ने अपने को एक-एक, दो-दो साल पीछे कर दिया हो ऐसी चुनौती भरे समय में हमने अपने छात्र-छात्राओं की सुरक्षा भी की तथा उनकी रक्षा भी की और उनके भविष्य को संवारने मेंभी कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। चाहे उच्च शिक्षा हो अथवा चाहे हमारी स्कूली शिक्षा हो हमने हर क्षेत्र में कार्य किया। इसलिए मैं समझता हूं कि अभी रोजगार की दिशा में भी मेरेदो-तीननिवेदन है कि यह जो नई शिक्षा नीति आई है, उसके तहत हम कक्षा छह से हीवोकेशनलशिक्षा लाए हैं। यहदेश के इतिहास में पहली बार हो रहा है, जब वोकेशनल एजुकेशन हम छठवीं कक्षा से ही शुरू कर रहे हैं और वो भी इंटर्नशिप के साथ कर रहे हैं। छठवीं में पढ़ने वाला बच्चा अपने अगल-बगल में क्या-क्या कर सकता है, वो खेतों के बीच रहता है तो खेतों में क्या कर सकता है। वो फैक्ट्रियों के बीच में जाकर के क्या कर सकता है। यदि वो बीहड़ क्षेत्र में कहीं रहता है तो वो वहां पर क्या कर सकता है तथा वहां पर क्या संसाधन है। हमारे देश के संसाधन और उसकी आय तथाप्रतिभा इनतीनों का मिश्रण कभी नहीं हुआ और कभी उन्हें जोड़ा ही नहीं।इसलिए छठवीं कक्षा से ही केवल कागजी ज्ञान हीनहीं।बल्कि प्रैक्टिकल करेगा हमारा विद्यार्थी।छठवीं, सातवीं, आठवीं और बारहवीं तक आते-आते वह एक योद्धा के रूप में स्वयं के पैरों पर खड़ा होगा।हमारी जो शिक्षा नीतिहै उसपर मुझे कोई टिप्पणी नहीं करनी है लेकिन आज परिवर्तन करना है। नई शिक्षा नीति इन्हींविशेष आयामों तथाव्यापक परिवर्तन और रिफॉर्म के साथ दुनिया का सबसे बड़ा विचार विमर्श और बड़े रिफॉर्मकेसाथनई शिक्षा नीति आई है। अभी कुछ दिन पहले ब्रिटेन के विदेश मंत्री जी के साथ मेरे आवास पर एक मीटिंग थी तो उन्होंने बहुत खुशी व्यक्त की। उन्होंने कहा किमैंने अब बहुत बड़ा अध्ययन किया लेकिन यह शिक्षा नीति तो पूरे विश्व के लिए संजीवनी है। अभी कल रात को 11 बजे तक नेहरू केंद्र लंदन में शायदराजकुमार जी भी जुड़े रहे होंगे और जॉनसन जी जो वहां के पूर्व-शिक्षा मंत्री रहे हैं और वहां के प्रधानमंत्री जी के छोटे भाई हैं तथाबहुत ही श्रेष्ठ पत्रकार भी हैं, वे भी जुड़े थे और उन्होंने कहा कि यह जो शिक्षा नीति है अद्भुत है। मैंने इसकी एक-एक चीज को पढ़ा है। उनसे पहले संयुक्त अरबअमीरात के शिक्षा मंत्री तथा तमाम दुनिया केदेश आज हमारी नई शिक्षा नीति के लिए लालायित हैं। वेचाहते हैं कि हम हिन्दुस्तान के साथ आएं और उनसेसमन्वयकरें और हम भी चाहते हैं कि हम दुनिया के श्रेष्ठ विश्वविद्यालयों को अपनी धरती पर लाएं। इसलिएआठ लाख छात्र जो हमारे पढ़ रहे हैं विदेशों में, उनके लिए हमने ‘स्टडी इन इंडिया’ को किया है और मुझे खुशी है कि दुनिया के छात्र अबहिंदुस्तान में पढ़ने के लिए तेजी से आ रहे हैं। पीछे के समय कोरोना काल में 50 हजार से भी अधिक विद्यार्थीतो‘स्टडी इन इंडिया’के तहत नामांकन हुए, बहुत तेजी से लोगों ने नामांकन किया और मुझे खुशी है कि मैंने जब उससमय कहा कि ‘स्टे इन इंडिया’ अपने छात्रोंऔर अभिभावकों को कहा कि अब जरूरत नहीं है दुनिया में जाने की आपको सब कुछ यहां पर मिलेगा। अब प्रारंभिक शिक्षा से हमने टेन प्लस टू को खत्म कर दिया। अब हमने5+3+3+4 कर दिया और फाइव को भी थ्री प्लस टू में बदल दिया। तीन वर्ष का बच्चा सर्वाधिक सोच और विचार रख सकता है और वैज्ञानिकों ने कहा है कि 85 प्रतिशत मस्तिष्क का विकास उसका इसी समय होता है और हम भी जानते हैं कि हमको बचपन कितना याद रहता है। उसके बाद 10वीं तथा 12वीं के बाद तो न जाने कितने थपेड़े हम सहते हैं,कहां याद रहता है। लेकिन हां, इस आयु में जाने के बाद असली जो बचपन की यादें हैंआपभुलाने से वे भूल नहीं सकते।यह समय मस्तिष्क पर एक ऐसी छाप छोड़ जाता है जो सदैव अमिट रहती है। हमें बच्चे के आत्मविश्वास की छाप चाहिए तथा उसकी प्रखरता की छाप चाहिए। उसके विजन की छाप चाहिए, जिधर जाना है उसको वो छाप अंकित रहनीचाहिए और इसीलिए हम उस अवसर को भी चूकना नहीं चाहते। इसलिएतीन वर्ष से ले करके हम और आगे बढ़ रहे हैं तथाछठवीं कक्षा से हीहमवोकेशनल स्ट्रीम इंटर्नशिप के साथ देंगे तथा हम स्कूली शिक्षा से हीआर्टिफिशियलइंटेलिजेंसभी सुनिश्चित कर रहे हैं और मुझे लगता दुनिया का हमारा पहला देश होगा जब स्कूली शिक्षा में आर्टिफिशल इंटेलिजेंस को शुरू करेगा और हमको मालूम है कि हमारी प्रतिभाएं किस-किस तरीके की हैं। अभी कुछ दिन पहले राष्ट्रपति भवन में हमारे केन्द्रीय विद्यालय की एक भाषा लैब का उद्घाटन था। महामहिम राष्ट्रपति जी की श्रीमती जी जो देश का पहली महिला हैं उन्होंने उसका उद्घाटन किया। बच्चों से पूछा उन्होंने जो-जो एैपतैयार किये। 10वीं और 12वीं के बच्चों ने कहाकिबस हमको एक महीना और दे दीजिएहमबहुत कुछ और बताना चाहते हैं। अभी हमने ‘स्मार्ट इंडिया हैकाथन’ किया और जब देश के प्रधानमंत्री जी5ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था की बात कर रहे हैं तो हमें विचार करना होगा कि अभीछोटी-छोटी चीजें कैसे संयोजित हो सकती हैं। अभी हमने पीछे के दिनों में ‘टॉयहैकाथान’किया था। इस देश में 10 हजार करोड़ के तो खिलौने आरहे हैं बाहर से और वो भी 80 प्रतिशत बाहर से आ रहे हैं। जबकि इस देश में इतनी सामर्थ्यहै और 7 लाख करोड़ का विश्व का मार्केट हैखिलौनों का,हमक्या नहीं कर सकते। हम तो पूरे विश्व के इस मार्केट पर छा सकते हैं। यहां से बाहर खिलौने जाएंगे तो हम कैसे करके खिलौनों को पर्यावरण के अनुकूल तथा हमारे सांस्कृतिक के अनुरूप निर्मित करके विश्व के सामने रख सकते हैं, इस सन्दर्भ में काम करने की जरूरत है। इसीलिए हम लोगों ने अभी इसकाहैकाथान किया है जब पीछे की समय में हमने हैकाथनकिया था, मुझे याद आता है कि प्रधानमंत्री जी उसके समापन पर आए थे और बाद में उन्होंने देखा कि 83 स्टार्ट अपहैकाथनसे निकले।मैं समझता हूं कि जिस दिन यह माहौल हमारा बनेगा उस दिन हम लोग बहुत आगे बढ़ेंगे। अभी आपको मालूम है कि इस बीच इस तरीके का परिवेश बना है, आज टाइम्स का जो सर्वे आया हैजो पहले रोज़गार की दिशा में भारत23वें स्थान पर था इस समय उसकी रैंकिंग 15वें स्थान पर आ गई है। हमनेविषम परिस्थितियों में भी छलांग मारी है। अब मैं समझता हूँ जब नयी शिक्षा नीति आ गयी हो है और नई शिक्षा नीति वोकेशनल ट्रेनिंग औरआर्टिफिशल इंटेलिजेंस के साथ 360 डिग्री का होलिस्टिक मूल्यांकन भी करेगी। इस नीति के तहत बच्चा अपना स्वयं मूल्यांकन करेगा, अभिभावक भी उसका मूल्यांकन करेगा, अध्यापक भी करेगा, उसका साथी भी करेगा और इस प्रकार 360 डिग्री उसका होलिस्टिक मूल्यांकन होगा। जिससे उसका आत्मविश्वास आगे बढ़ेगा।इस शिक्षा नीति के अंतर्गत यदि कोई 4 वर्ष का कोर्स है और यदि कोई छात्र दो साल में परिस्थितिवशछोड़के जा रहा है तो पहले उसका पैसा एवं वर्ष खराब हो जाते थे लेकिन अब उसकोनिराश नहीं होना पड़ेगा।यदि आप परिस्थितिवश एक वर्षमें छोड़ कर जा रहे हैं तो उसको सर्टिफिकेटदेंगे,दो साल में छोड़ कर जा रहा है तो डिप्लोमा देगें, तीन साल में छोड़कर जा रहा है तो उसकोडिग्री देंगे लेकिन यदि फिर वह लौट कर अपने भविष्य को संवारना चाहता है तो फिरउसने जहां से छोड़ा था वहीं से शुरू कर सकता है। उसके लिए हम एक ऐसा क्रेडिट बैंक बनायेंगे जहां उसके सारे क्रेडिट जमा होंगे,इसलिए उसके लिए आगे बहुत आपार संभावनाएं है।वह कहां जाना चाहता है,क्या वह शोध और अनुसंधान के क्षेत्र में जाना चाहता है।वहां हमने ‘नेशनलरिसर्च फाउंडेशन’ की स्थापना की है,जो कि प्रधानमंत्री जी के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार की अध्यक्षता में होगी, जो शोध की संस्कृति को तेजी से आगे बढ़ाएगी। वहींहमनेतकनीकी के क्षेत्र मेंअंतिम छोर के व्यक्ति तक कैसे पहुंचा सकते हैं इसके लिए ‘नेशनल एजुकेशन टैक्नोलॉजीफोरम’का भी गठन कर रहे हैं,जिससेतकनीकी दृष्टि से भी देश समृद्ध हो सके। अभी आप चर्चा कर रहे थे कि ‘वोकल फोर लोकल’ और ‘लोकल फोर ग्लोबल’ उसको भी हम लोकल से ग्लोबल तक लेकर जाएंगे। यहहैरास्ता और इस रास्ते में हमकोतेजी से काम करना है।यहबात सही है कि देश के प्रधानमंत्री जी ने एक नये भारत को बनाने की बात की है।वह नया भारत सुन्दर भारत हो, स्वस्थ भारत हो,सक्षम भारत हो, समर्थ भारत हो, आत्मनिर्भर भारत हो,श्रेष्ठ भारत हो क्योंकि भारत केजीवन-मूल्य उसकी श्रेष्ठता रही है। हम ज्ञान-विज्ञानमें आगे बढ़ें हैं। सुश्रुत शल्य चिकित्सा का जनक इसी देश में पैदा हुआ है। रॉड स्मिथ ने जब अपने मेल में पत्र लिखा था तो उन्होंने कहा था कि हम भारत के ऋणी हैं जिन्होंने आज पूरी दुनिया को गणित दिया है। पूरी दुनिया को आर्यभट्ट और भास्कराचार्य जैसेवैज्ञानिक हमने दिए हैं। आज भी उनकी थातीहमारे पास है और उसको आगे बढ़ाने की ज़रूरत है। इसलिए मैं समझता हूँ चाहे जितने भी पीछे के लोगों को आप देखेंगे तो आपकी समृद्धता बढ़ती जाएगी। आपको लगेगा इन सूत्रों को क्यों पीछे छोड़ दिया हालांकि परिस्थितिथी और उसपर अबज्यादा चिंता करने की ज़रूरत नहीं है। हमारा इतना बड़ा देश गुलाम हुआ हालांकि आज इस पर बात करने का अवसर नहीं है लेकिन विचार जरूरत है हमारे पास प्रखरता की कमी नहीं थी लेकिन आखिर कौन सा कारण था कि इतना बड़ा देश जब चाहे तब गुलाम हो जाता है और तब सैकड़ों लोग अपनी कुर्बानी को देकर देश को आजाद करते हैं और इसीलिए यह हमारा जो आर्थिक तंत्र है यहमजबूत होना चाहिए।हमारी तकनीकी शिक्षा मजबूत होनी चाहिए। हमारे संस्कार भी उतने ही प्रखर और मज़बूत होने चाहिए। नई शिक्षा नीति बोलती भी है औरदेश के प्रधानमंत्री भी कह रहे हैं कि इस देश को एक अच्छा नागरिक चाहिए लेकिन साथ ही विश्व मानव भी चाहिए क्योंकि हमने कहा है कि यह पूरा विश्व हमारा कुटुम्ब है। हमारा विचार कितना बड़ा हैदुनिया के देशों ने इस संसार को बाजारबोला है लेकिन हमारे लिए वह बाजार नहीं है। हमारे लिए बाजार और परिवार में बहुत अंतर हैऔर उस परिवार के लिए हमने ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया सर्वे भद्राणी पश्यन्तु मा कश्चिद् दु:ख भाग्भवेत’की प्रार्थना की है अर्थात्धरती पर जब तक एक इन्सान भी दुखी होगा तब तक में सुख का एहसास नहीं कर सकता। इससे बड़ा विचार दुनिया में किसका हो सकता है। इस विचार को लेकर जब दुनिया के सामने खड़े होते हैं तो दुनिया नतमस्तक होती हैं। इसलिए मुझे लगता है कि आज दुनिया को हिन्दुस्तान की जरूरत है, पूरी दुनिया में सुख शांति और समृद्धि का रास्ता हिन्दुस्तानसे होकर गुजरता है। यूएनओ ने भी कहा है कि जो सतत विकास के लक्ष्य 2030 है इसका रास्ता भारत से ही होकर के जाता है और यह बात सही है कि भारत से हीकरके गुजरेगा। इसलिए भारत को कम आंकना पूरी दुनिया के लिए एक भूल होगी। मुझे इस बात को कहते हुए गौरव महसूस होता है कि देश के प्रधानमंत्री ने पूरी ताकत के साथ लीडरशिप लेकर केहर क्षेत्र में आगे बढ़ने का जो मन बनाया है पूरा देश आजखड़ा हो रहा है। आप देखिए ना वैक्सिन को लेकर पूरी दुनिया में हाहाकार मचा है। हमने टीकाकरण परिदृश्यों का कीर्तिमान स्थापित किया। यह हमारी ताकत है। कमजोर आदमी एक दूसरे पर लांछन लगाता है, काम नहीं करता। आपने देखा होगा जो आदमी जितना कामचोर होता है उतना बड़ा आलोचक हो जाता है। जो करता है वो बोलता नहीं है क्योंकि वो उसको करके दिखाते हैं। मैं देश का शिक्षा मंत्री जरूर हूं लेकिन मैंने बहुतकठिनरास्ते से यात्रा की है। मैंने एक सामान्य शिक्षक से लेकर के देश के शिक्षा मंत्री तक की यात्रा तय की है। इसलिए मैं महसूस कर सकता हूं उन कठिनाइयों को, उन बातों को, उन पीड़ाओं को और उस संघर्ष को औरइसलिए मुझमें भरोसा भी है। मुझे भरोसा है कि यह देश खड़ा हो रहा है बहुत तेजी से। हमने पीछे के सौ डेढ़ सौ सालों की गुलामी के थपेड़ों के सहा है लेकिन आज हम फिर आत्मबल के साथ खड़े होंगे। सारी दुनिया भी महसूस करती हैकिहिन्दुस्तान विश्वगुरु के रूप में बढ़ रहा है। अभी दो-तीन दिन पहले कनाडा से जुड़ा हुआ था और कनाडा ने एक सम्मान मेरे साहित्य पर दिया। लेकिन जब कनाडा के लोग जुड़े तो उनकी जो भावनाएँ थीवोसमझ में आईकि पूरी दुनिया किस तरीके से हिन्दुस्तान के साथ जुड़ रही है। मुझे भरोसा है कि जिस तरीके से परिवेश अभीबन रहा हैं और जिस तरीके से हम आगे बढ़ने की कोशिश कर रहे हैं और जिस इनोवेशन के साथ और विश्व स्तरीय पाठ्यक्रम के साथ हमने भारतीय विश्वविद्यालयों को एक नया मॉडल देने का काम किया है आत्मनिर्भरता के समन्वय के साथ हमने कहा है कि सभी विश्वविद्यालय‘उन्नत भारत अभियान’ के तहत गांव में जाओ औरचार-पांच गांवों को चुनो और मॉडल तैयार करो। हम देखना चाहते हैं कि हममेंकितनीक्षमता है। यह मेरे विश्वविद्यालय कुछ डिग्री के लिए नहीं है, विश्वविद्यालयों को भी यह ताकत के साथ साबित तो करना पड़ेगा कि उसकी जो क्षमता है वो जमीन पर कितनी उभरकर आती है और इसकी जरूरत है। मैं जबविश्वविद्यालयों के साथ बातचीत करता हूं तो मुझे आशा होती है क्योंकि परिवेश बनरहा है। वे भी चाहते हैं और ऐसा नहीं हैकि नहींचाहते हैं, सब चाहते हैं और ताकत के साथ चाहते है। इसलिए जो यह नयी शिक्षा नीति है, निश्चित रूप में नये भारतकी आधारशिला बन करके बहुत तेजी से आगे बढ़ रही है। प्राथमिक शिक्षा हम मातृभाषा में कर रहे हैं इससेकिसी काविरोध करने का कोई सवाल नहीं उठता है। अपनी मातृभाषा में अभिव्यक्ति बाहर निकल सकती है औरनिकलनी भी चाहिए। देश के प्रधानमंत्री जी ने कहा है कि हम मातृभाषा में इंजीनियर भी और डॉक्टर भी देंगे। कितनी खुशी है गांव के बच्चों को आप समझ नहीं सकते। मेरे पास मेल आते हैं, मेरे पास संदेश आते हैं, इतने खुश है कि हमभी डॉक्टर बन सकते हैं इंजीनियर बन सकते हैं क्योंकि उनको भाषाकी मार पड़ती थी और इसलिएउभर नहीं पाते थे। भाषा कभी किसी के विकास में अवरुद्ध नहीं होनी चाहिए।दुनिया के तमाम देश जापान, इंग्लैण्ड, जर्मनी, चीन, रूस, इजराइल सभी देश अपनी मातृभाषा में पढ़ाते है। यहसभी देश किसी से पीछे तो नहीं है। हमारी यह तो तो खूबसूरती है, हमारी ताकत है। हमारी उन मातृभाषाओं में वहांका जो ज्ञान है, विज्ञान हैं उसे अनुसंधान के द्वारा लोकल से जोड़ेंगे औरफिर भारत खड़ा होगा। सदा देदीप्यमान ऐसा राष्ट्र बन जाएगा जिसमें विचार भी होगा व्यवहार भी होगा संस्कार भी होंगे प्रखरता भी होगी ज्ञान भी होगा विज्ञान भी होगा नवाचार भी होगा क्योंकि लोगों मेंनवाचार हो सकता है और एक श्रेष्ठता तक विज्ञान में भी बढ़ सकते हैं लेकिन जो हमारी आधारशिला हमारे जीवन मूल्यों की है, वो सहज नहीं हो सकती है। जीवन मूल्य हमारी संस्कृति हमको देती है। इसकी आधारशिला पर खड़े होकर के हम विश्व में आगे बढ़ सकते हैं। हमारी एआईसीटीई ने बहुत सारे कार्यक्रमों को चाहे वह आत्मनिर्भर भारत हो,चाहे वह नवाचार एवं स्टार्टअप की नीति हो, कपिला हो, योजनाओं के क्रियान्वयन का विषय हो, उच्च शिक्षण संस्थान में नवाचार करने का विषय हो,मुझे लगता है कि इतने सारे कार्यक्रम इस बीच हम लोगों ने दिए है और दे रहे हैं। हमारे केंद्रीय विश्वविद्यालय भी अपनी ताकत के साथ उभररहे हैं और जो नई शिक्षा नीति है उसमें पूरा मैदान खाली है। नयी शिक्षा नीति भारतीय ज्ञान परंपरा के आधार पर भी खड़ी है। यहनेशनल भी है, इंटरनेशल भी है, यह इनोवेटिव भी है और इन्क्लूसिव भी है तथा यह सामान्य नहीं है।यह नीति अपने दृष्टिकोण एवं विचार-विमर्श में सबको समाहित करने वाली है औरइनोवेटिव नवाचारों के लिए किसी भी शिखरतातक पहुंचाने की इसमें क्षमता है।यह इम्पैक्टफुल भी है और इन्क्लूसिव भी है तथा यह नीतिबिना किसी भेदभाव के प्रत्येक वर्ग तक पहुंचती है और यह इक्विटी,क्वालिटी और एक्सेस कीआधारशिला पर खड़ी है। यह इसकी खूबसूरती है और इसीलिए हम अपने कंटेंट औरटैलेंट को भी खोजेंगे तथा उसेविकसित भी करेंगे। टैलेंट का विस्तार भी करेंगे और इस टैलेंट के साथ उत्कृष्ट कोटि का कंटेंट देंगे और उसको जोड़ करके और नया पेटेंट निकालेगें, यही है इसका सूत्र और मुझे लगता है इसपर बहुत तेजी से काम शुरू हो गया है। हम निश्चित रूप में आगे बढ़ेंगे मुझे भरोसा है और जो आपने यहवेबिनारकिया है, मुझे खुशी है और जो यह स्वायतता की बात हमने कही है विश्वविद्यालयों को हम भी इसके पक्ष में हैं और जिस दिन जवाबदेही सुनिश्चित हो जाएगी उस दिन स्वायत्तता हर हालत में होगी। स्वायत्तता तो चाहिए क्योंकिजब तक आप किसी को खुला मैदान नहीं देंगे तब तक वह कैसे दौड़ेगा। जैसे राजकुमार जी आप जैसे 20 लोगों को हमने स्वायतता दी है और हम चाहतें आप दौड़े तथा हम आपके पीछे हैं। आप विश्व के शिखर पर ले करके चले जाएं कि यहहैमेरे देश की शिक्षा और यह हैहमारी अर्थव्यवस्था तथा यह है हमारा सामाजिक संबंधन। हम पूरी दुनिया में बिल्कुल अलग हैं। हम हर दृष्टि से श्रेष्ठ है यहीहमारा सूत्र है। हम इस देश को अर्थ की महाशक्ति भी बनाएंगे और हम ज्ञान की महाशक्ति भी बनाएंगे और हम व्यवहार की और अपनी इस समृद्धता की भी महाशक्तिबनाएंगे। हम अपने आचार-विचार और व्यवहार और जो हमारेजीवन मूल्य हैं, उसकी आधार शिला पर भी खड़ा करेंगे।हमें मनुष्य को मनुष्य बनाना है मशीन नहीं बनाना हैऔर इसलिए मुझे लगता है कि यह जो आपने आज वेबिनार किया है, इसके लिए मैं आपको तथाआपकी पूरी टीम को बधाई देना चाहता हूं।
बहुत-बहुत धन्यवाद!
कार्यक्रम में गरिमामयी उपस्थिति:-
- डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’, मानननीय शिक्षा मंत्री, भारत सरकार
- श्री विकास अग्रवाल, अध्यक्ष, आईसीसी
- डॉ. राजकुमार