कला उत्सव का समापन समारोह
दिनांक: 28 जनवरी, 2021
माननीय शिक्षा मंत्री, डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’
कला उत्सव 2020 के इस अवसर पर देश और पूरी दुनिया से जुड़े हमारे सभी कला प्रेमी शिक्षाविद् और विशेषज्ञ, छात्रगण तथा इस संपूर्ण आयोजन से जुड़े सभी अधिकारी वर्ग मैं सबसे पहले तो इस बेहतर आयोजन के लिए आयोजक सहित सभी सम्मिलित होने वाली टीमों को बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं देना चाहता हूं। इस अवसर पर हमारे साथ जुड़ी हैं हमारी स्कूली शिक्षाकी सचिव सुश्री अनिला करवल जी, एनसीईआरटी के निदेशक श्रीधर श्रीवास्तव जी, एनसीईआरटी के सचिव मेजर हर्ष और प्रो. बहेरा, हमारे कला उत्सव केसभी निर्णायक सदस्यगण और यहां पर केंद्रीय संयोजक पवन सुधीर जी और श्रीमती ज्योत्सना जी और आपकी पूरी टीम तथा हमारे साथ जुड़ी संयुक्त सचिव सुश्री स्वीटी जी एवं नीतू जी उपस्थित सभी राज्यों के इन छात्रों को तैयार करने वाले अध्यपक गण और उपस्थित विजेताओं, सभी स्कूलों के प्राचार्य और सभी प्रदेशों के शिक्षा विभाग! आज सभी बहुत हर्ष का अनुभव कर रहे होंगे कि हां, यह वो भारत है जिसको पूरी दुनिया पूछती है। यह वो भारत है जिसमें विभिन्न कलाओं की एक ऐसी सुंदर और बेजोड़ परम्परा है, एक ऐसी निधि है जो पूरी दुनिया को न केवल विस्मित करती है बल्कि प्रेरित भी करती है और मेरे देश के प्रधानमंत्री ने जिस ‘एक भारत और श्रेष्ठ भारत’ की बात की है उस उत्सव के10-12 दिनों के इस कार्यक्रम ने बहुत कुछ साबित कर दिया है जबकि बहुत ही विषम परिस्थितियों से होकरपूरी दुनिया गुजर रही है। इस कोरोना काल की ऐसी परिस्थितियों में हमारे देश भर के सभी 33 राज्यों के जिन छात्र-छात्राओं ने अद्भूत प्रस्तुतियां दी हैं यह इस बात को भी साबित करता है कि हिन्दुस्तान ऐसा देश है जो विषम चुनौतियों में भी आनन्द का उल्लास लेकर के, साहस के साथ आगे बढ़ने की चाहत रखता है। यह इस बात को साबित करता है कि जिस देश को विश्व गुरू कहते हैं वह ऐसे ही विश्व गुरू के रूप में नहीं है उसके अंदर क्षमता है, प्रतिभा है, जिजीविषा है, उसमें जिज्ञासा है उसमें विजन भी है और उस विजन को क्रियान्वित करने का मिशन भी है और वो भारत औरउसकी संस्कृति का प्राण है जिसके आधार पर पूरी दुनिया को भारत ने ऊंचाइयों तक पहुंचाया है, वो उसकी कला और संस्कृति है और इसीलिए हमने हमेशा इस बात को कहा है कि अनेकता में एकता हमारी विशेषता है। विभिन्न राज्यों के कला, संगीत और तमाम प्रकार के नृत्य वादन विभिन्न प्रकार से हमारे सामने ऐसा शक्ति का पुंज सामने लाते है जिसके आधार पर हम कह सकते हैं कि यह विविधता में एकता वाला देश है। पूरी दुनिया में न्यारी है। अनेकता में एकता विशेषता हमारी पूरी दुनिया में हमारी संस्कृति और कला बहुत अद्भुत है, न्यारी है। पूरी दुनिया के लिए प्यारी है, संसार में न्यारी है और यह विशेषता हमारी है। यह हमारी ही विशेषता हो सकती है दुनिया में और इसीलिए तो हम गर्व से माथा ऊँचा करके कहते हैं कि मेरा हिंदुस्तान जो विविधताओं में एकता का देश है और जिसमें पूरी दुनिया को समानेकी क्षमता है और इसका प्रदर्शन ‘एक भारत श्रेष्ठ भारत’ के रूप में यहां पर हुआ है,मैं बहुत बधाई देना चाहता हूं। आज सुधीर जी आपने जैसे बोला कि पारंपरिक खेल-खिलौनों के साथ अस्त्र कला से लेकर के बहुत सारी ऐसी कलाएं जो हमारी विलुप्त होती जा रही हैं। जो हमारा वैभव था, जो हमारे पास हमारा पारंपरिक ज्ञान और विज्ञान था वो जिस तरीके से लुप्त हो रहा था लेकिन फिर एक बार पूरा देश जग गया है। इन्हीं बिंदुओं पर और इन्हीं गतिविधियों पर देश खड़ा हो करके एक बार पुन: विश्वास दिलाता है कि हां, जो चीज हमारी है और जो सारी दुनिया में विख्यात रही है, जिसने दुनिया को जीवन दिया है आज उस जीवंतता और जीवन दर्शनता को हम फिर मुखर करके अपनी कलाओं के माध्यम से, अपनी संस्कृति के माध्यम से, अपने अभिनय, वादन, गीत, संगीत, नृत्य, नाट्य आदि तमाम विधाओं के माध्यम से हम फिर उसको जीवित करके पूरी दुनिया में उस खुशी को सजाएंगे। कई बार हम लोग कहते हैं यह जो भारत है, यह उत्सवों का देश है और उत्सव माने उल्लास, हर्ष, खुशी और 365 दिनों में यहां 366 उत्सव होते हैं। उल्लास और हर्ष कौन मनाएगा? जिसमें खुशियां होंगी जो खुशियों को बांट सकता है, दे सकता है, जिसमें अभिलाषा होगी कुछ देने की कुछ करने की, कुछ बाँटने की वो ही मना सकता है। वो देश है मेरा ये हिन्दुस्तान जो खुशियों का देश है। मुझे याद आता है कि मुझे 4 साल पहले भूटान ने बुलाया था और मेरी एक पुस्तक पर उन्होंने सम्मान दिया था लेकिन साथ ही उन्होंने मुझे खुशियों का राजदूत बनाया था तो मुझे लगा कि खुशियों का देश तो भूटान है ही, जो उनका मानक है उसको नापने का एवं प्रगति का सूचकांक खुशी ही है। वहां भूटान में बैठ करके मैं सोच रहा था कि यह दोनों देश खुशियों के भंडार हैं। हिन्दुस्तान के लोग 365दिनों में 366 उत्सव मनाते हैं, खुशियां बांटते हैं। हम हरेक मौके पर कोई न कोई खुशियां बांटते हैं और खुशियों को देने की ताकत एवं क्षमता हमारे भीतर है। हम पूरी दुनिया को हर्षित करना चाहते हैं, खुशियां बांटना चाहते हैं। हम दुःख में रह करके भी खुशियां बांटना चाहते हैं और इसीलिए पूरी दुनिया को हम अपना परिवार मानते हैं। हम प्रत्येक परिवार को खुशियां बांटना चाहते हैं और प्रत्येक परिवार में किसी को भी दुखी नहीं देखना चाहते हैं। ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया’ यह है हमारी संस्कृति। इस संस्कृति को हम अपनी कला के माध्यम से जैसा अभी अनीता जी ने बताया कि हम अभिव्यक्त करते हैं। अभी हम नई शिक्षा नीति लाए हैं उसमें हमअपने इस पारंपरिक ज्ञान, संस्कारों एवं हमारी पारंपरिक रीति-नीतियोंको समाहित करना चाहते हैं। हम फिर वही देश चाहते हैं जिसने विश्व का मार्गदर्शन किया। हमारे देश के प्रधानमंत्री बार-बार कहते हैं कि 21वीं सदी भारत की सदी है,यह विवेकानंद जी ने भी तब कहा था जिस समय उन्होंने दुनिया में जाकर इसका उद्घोष किया था कि 20वीं सदी हो सकता है दुनिया की होगी लेकिन 21वीं सदी हिंदुस्तान की होगी और आज 21वीं सदी की शुरुआत में ही यह पूरा विश्व इस भारत का वैभव देखने लगा है। मैं यह समझता हूं कि यह जो उत्सव हैं उसी की एक कड़ी है, मेरे ‘एक भारत श्रेष्ठ भारत’ की कड़ी है और मैं सभी विजेताओं कोजो इसके साथ जुड़े हैं, उनको बहुत बधाई देना चाहता हूं। मुझे भरोसा है कि अब आपका अभियान रुकेगा नहीं, थकेगा नहीं, झुकेगा नहीं, झुकने का तो कोई नाम ही नहीं है और इसीलिए मैं देख रहा था कि मणिपुर, मिजोरम, त्रिपुरा, नागालैंड, अरुणांचल, हिमाचल और उत्तराखंड तथा उधर जम्मू-कश्मीर, लद्दाख, तमिलनाडु, केरल, तेलंगाना, आंध्रप्रदेश, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, गुजरात, राजस्थान, पंजाब दिल्ली जिधर मेरी नजर जा रही थी, मुझे पूरा देश एक साथ दिखाई दे रहा था। मैं आपको बधाई देना चाहता हूं क्योंकि यह देश के एकता का रूप में संजोने का एक अभियान है। यह हमारी ताकत है और इस ताकत को हमको बढ़ाना है। इस ताकत का एहसास भी कराना है कियह मेरी ताकत है। हमारा मन अकलुषित है तभी तो हमने पूरी दुनिया को अपना परिवार माना है। हमें विचार करना चाहिए कि हमारा ज्ञान क्या है, हमारा विज्ञान क्या है और जो महत्वपूर्ण हमारी परंपराओं के हमारे संस्कार, हमारी संस्कृति क्या है क्योंकि संस्कार किसी भी व्यक्ति के, किसी भी परिवार के, किसी भी राष्ट्र के जीवनदाता होते हैं, प्राण होते हैं। जिस तरीके से संस्कार विहीन व्यक्ति का जैसे प्राण चला जाता है तो वो एक लाश हो जाती है। अभी तक तो वह जीवित था तो व्यक्ति था और व्यक्ति के बाद वो जैसे प्राण उसके निकलते हैं,उससे कोई चीज हटती है तो वह केवल लाश के रूप में परिवर्तित हो जाता है। ऐसे ही किसी व्यक्ति के परिवार, समाज और राष्ट्र की अपनी संस्कृति होती है। संस्कार विहीन समाज हो, परिवार हो, व्यक्ति हो,वो लाश की तरह है। वह जरूर अपने को ढ़ोता होगा लेकिन जिंदा नहीं हो सकता है। और इसलिए यह हमारी परंपरा रही है हमारे संस्कार हमारी आत्मा है। हमारी तो गीता ने भी आत्मा और परमात्मा को जोड़ा है। हमारे पास विजन है,हमारे पास दर्शन है। हमारे पास आचार, हमारे पास व्यवहार है। हमारे पास संस्कृति, हमारे पास संस्कार है। दुनिया महसूस करती है इस बात को कि भारत की जो संस्कृति थी वह गौरवान्वित करने वाली थी प्रकृति के साथ जब जुड़ाव होता है तो संस्कृति होती हैऔर संस्कृति हमेशा रचना का काम करती है, निर्माण का काम करके सृजनात्मक होती है। लेकिन जब कोई प्रकृति के विपरीत जाता है और कोई इंसान विकृति का रूप लेता है तो विकृति विनाश का कारण होती है। इसीलिए यह जो संगीतज्ञ रहते हैं, जो कलाओं से जुड़े होते हैं उसके चेहरे पर नजर डालेंगे तो कभी उसके चेहरे पर तनाव नज़र नहीं आएगा क्योंकि वो अपनी अभिव्यक्ति को बाहर निकालता है और वह कुंठा में नहीं जी सकता और इसीलिए यह जो कला है वो अपने आप जीवंत व्यक्तित्व अपने को रखता ही है और साथ ही जीवंतता बिखेरता भी है। वो लोगों के उस दबाव को और तनाव को केवल कम ही नहीं करता बल्कि हर्ष और उल्लास को बांटता है। जब आदमी हर्षित होता है उस समय उसको महसूस होता है कि हां, असली जीवन तो यह है उसका, जो उसको आनंद के क्षण मिल रहे हैं। जब आप किसी संगीत अथवा वाद्य को सुनते हैं तो कैसे उसके स्वर कानों में पड़ते ही आप कहीं न कहीं ठहर जाते हैं। चाहे कोई अच्छा गीत हो, चाहे कोई अच्छा सा संगीत हो तथा चाहे उसकी अच्छी सी कंपोजिंग हो और चाहे उसके शब्द अच्छे हों लेकिन सुनते ही चलता हुआ आदमी भी ठहर जाता है। ठहरने का मतलब कुछ उसको मिल जाए तो फिर उसके अंदर जो भाव जा रहे हैं, उसके आधार पर वह सर्जन ज़रूर करेगा। वो क्षण खराब नहीं हो सकता है। क्या आपका जो वादन है, चाहे वो गायन है, जो उसका स्वर है वो स्वर आपके अंदर घुस करके नई चीज को सृजित करता है, पैदा करता है। मैं सोचता हूं चाहे तमिलनाडु का भरतनाट्यम हो, चाहे ओडिशा नृत्य हो, इसको देखते ही जैसे भाव भंगिमाएं बदल जाती है एक नृत्य में सारा जीवन दर्शन होता है। ये कलाएं केवल हिंदुस्तान की ही हो सकती है और हमें इसी को तो जीवंत रखना है, इसी को तो जिन्दा रखना है और इसीलिए हमारे देश के प्रधानमंत्री जी ने 2015 में इसका एक कला उत्सव पूरे देश के कोने-कोने से कलाओं के लिए समर्पित किया है। हमारे उस छात्र के अन्दर जो है, उसको कैसे करके बाहर निकालकर के वो बिखेर सकते हैं, लोगों को बांट सकते हैं और उस प्रतिभा को और कैसे निखार सकते हैं तो मैं जितने भी विशेषज्ञ जुड़े हुए हैं मेरे साथ उनका अभिनंदन करता हूं। मुझे लगता है भारत का गीत, संगीत, नृत्य और कला पूरे विश्व के लिए एक जीवंतता का प्रमाण है, इसकी जरूरत है। मैं विदेशी संगीत और कलाओं की उसका आलोचना नहीं करता हूं लेकिन मैं अकलुषित तरीके से इस बात को कह सकता हूं कि दोनों की तुलना होगी तो भारत का गीत-संगीत, नृत्य-नाट्य तथा शास्त्रीय संगीत, इसमें जीवंतता है और यह नई सृजन शक्ति को पैदा करते हैं। यह जो स्वयं के सुप्त तत्त्व हैं, उनको भी विश्लेषित करता है, नई ऊर्जा देता है और यह केवल मेरे भारत के गीत-संगीत में हो सकता है तो इसलिए मैं यह समझता हूँ कि चाहे भरत मुनि का ग्रंथ हो अथवा चाहे तमाम हमारे उन लोगों के शास्त्र में जिन लोगों ने ईश्वर की दी हुई विधाएं, रचनाएं तथा शक्तियां हैं जिनको संजोकर के बिखेरने के लिए हम को दिया है। मैं एनसीईआरटी को उसके शैक्षिक कैलेण्डर और ‘स्वयं प्रभा’ जैसे चैनल के लिए हार्दिक बधाई देना चाहता हूं। आपने किस तरीके से कला, साहित्य, संगीत इनसभी चीजों को बच्चों के साथ जोड़ करके आगे बढ़ने की कोशिश की है। मुझे इस बात की भी ख़ुशी है कि कोविड19 के दौरान ही इस देश में आमूलचूल बड़े-बड़े परिवर्तन हुए हैं और जब पूरी दुनिया ऐसे संकट से गुजर रही थी तब हम नयी शिक्षा नीति को लेकर के आए। हम विद्यार्थियों की काउंसलिंग के लिए ‘मनोदर्पण’ तथा ऑनलाइन शिक्षा को लेकर आए। कोई सोच भी नहीं सकता था कि 33 करोड़ छात्रों को इन विषम परिस्थितियों में ऑनलाइन शिक्षा मिल पाएगी। यह हिन्दुस्तान की ही ताकत हो सकती है और पूरी दुनिया ने उसको महसूस किया है। हमारे यहां नवोदय विद्यालय के कमिश्नर होंगे, सीबीएसई के चेयरमैन होंगे, एनसीईआरटी के डायरेक्टर होंगे, एनआईओएस के चेयरमैन होंगे मैं सबसे निवेदन कर रहा हूं कि आप तेजी से इस नई शिक्षा नीति की दिशा में कार्य करिये जो टैलेंट की खोज भी करेगी और टैलेंट के साथ उत्कृष्ट कोटी काकंटेंट भी सुनिश्चित करेगी और तब पेटेंट को लेकर के बात संभव होगी। हमको अपनी हर विधा को पेटेंट करना है। हम टैलेंट को खोजेंगे भी, उसका विकास भी करेंगे और उसका विस्तार भी करेंगे। हम कटेंट के स्तर पर उत्कृष्ट कोटि के पाठ्यक्रम को भी सुनिश्चित करेंगे। पूरी दुनिया में हमको दिखाना है कि हम शोध और अनुसंधान में भी कहीं पीछे नही हैं और इसलिए हमारी नई शिक्षा नीति मातृभाषा में आरम्भिक शिक्षा पर बल देती है ताकि बच्चे की सभी सृजनात्मक क्षमताओं को अपनी ही भाषा में कैसे करके बाहर निकाल सकता है, उसे ऊपर उठा सकता है,आगे बढ़ा सकता है और उसको आगे ले करके दौड़ सकता है। इसलिए हमने नई शिक्षा नीति में 10+2 की पद्धति को खत्म कर दिया है, उसके स्थान पर हमने 5+3+3+4 किया है तथा आरम्भिक 5 को भी हमने 3+2 किया है। हम एक पल भी खोना नहीं चाहते हैं। हम हमारे शिशु का, हमारे छात्र का, बालक व बालिका का जीवन संजोने के लिए हैं और इसलिए जो नयी शिक्षा नीति है यदि आप देखें तो स्कूली शिक्षा से ही वोकेशनल एजुकेशन और वो भी इंटर्नशिप के साथ आरम्भ किया है। अभी हमने इसके साथ खेलों और खिलौनों को भी जोड़ा है और अभी अनीता आपको बताएंगी कि किस तरीके से ये लोग उसको भी पाठ्यक्रम में सम्मिलित करेंगे। हमारे देश में खिलौनों का दस हजार करोड़ से भी बड़ा बाजार है। हमारे देश के प्रधानमंत्री जी का ‘आत्मनिर्भर भारत’ का विजन है, जिसे हम विविध हैकाथॉन के माध्यम से साकर करेंगे। मेरे बच्चों के नन्हें हाथों से बने खिलौनों को भी आपने इस कला उत्सव से जोड़ा है, उनके द्वारा निर्मित खिलौने कैसे होंगे जो संस्कार पैदा कर सकते हैं, एक नई दिशा दे सकते हैं, किसी महापुरुष के बारे में बता सकते हैं, अपनी संस्कृति का ज्ञान करा सकते हैं तथा उस कला के माध्यम से उसके अंदर टूटे हुए को जोड़ सकते हैं और जोड़ करके दिशा दे सकते हैं। इस तरीके की कला चाहिए, खिलौने चाहिए तो यह जो आपने किया है यह भी बहुत अच्छा है तथा वर्तमान परिस्थितियों में इसकी जरूरत है और मैं शुभकामना देना चाहता हूं। कला के दिशा में शांति, एकता और प्रेम हमारा मुख्य ध्येय है जिससे पूरी दुनिया भारत से अनुप्राणित होती है। प्रेम, सत्य और अहिंसा यह तीन ऐसी ताकतें हमारे पास हैं, जो हमारी पहचान भी है और हमारे संस्कार भी हैं। हमारे जीवन मूल्य हमारी पहचान हैं। हम प्रत्येक क्षेत्र में आगे बढ़ते हैं लेकिन अपने को खोकरके नहीं बढ़ते औरअपने अस्तित्व को खो करके नहीं करते। हम अपने अस्तित्व को, भारत की संस्कृति में समाहित करते हुए दुनिया को बताना चाहते हैंकि हमने मनुष्य को मशीन नहीं बनाया है। हमने मनुष्य को मनुष्य बनाया है और इसीलिए यह जो नई शिक्षा नीति है वो नेशनल भी है, वो इंटरनेशनल भी है, इंटरएक्टिव भी है, वो इम्पैक्टफुल भी है, वो इनोवेटिव भी है और वो इक्विटी, क्वालिटी और एक्सेस की आधारशिला पर खड़ी है। हम अंतिम छोर के बच्चे को भी नहीं छोड़ना चाहते। इसलिए वोकेशनल एजुकेशन छठवीं से शुरू कर रहे हैं। स्कूल से बाहर निकलते ही बच्चा एक ऐसे व्यक्तित्व के रूप में मानवीय मूल्यों के आधार पर खड़ा हो जो अपनी संस्कृति के ध्वजवाहक के रूप में भी काम करे और जो अपनी परंपराओं को साथ लेकर के ज्ञान, विज्ञान अनुसंधान के साथ पूरी दुनिया में आगे बढने की ललक रख सके। इस कला उत्सव के माध्यम से आपने है ये इसका एक नमूना प्रस्तुत किया है। मैं देख रहा था कि आपने नौ कलाओं को किया है। आपने भारतीय कलात्मक अनुभव को पहचाने का अभ्यास करने,उसका प्रदर्शन करने की सम्पूर्ण प्रक्रिया को आपने अपनी प्रस्तुति में समाहित किया है। मुझे विश्वास है कि जो प्रतिभागी विद्यार्थी हैं, वो अपनी जीवंत कला शैली को प्रस्तुत करने के साथ-साथ उस सांस्कृतिक अनुभव और मूल्यों के आधार पर जीवन भीजीएंगे। जब हम कुछ कहते हैं तो उसको जीना भी चाहते हैं। जब कहते हैं तो शब्द आपको कहीं बाध्य करते हैं, उस दिशा में आगे बढ़ने के लिए। लेकिन जिसके मन में सोच ही ना हो तो आगे कैसे बढ़ेगा क्योंकि कोई अचानक तो आगे नहीं बढ़ सकता। पहले मन में विचार आता है और विचार आने के बाद आदमी तय करता है तथा उसको लेकर फिर आगे बढता है उसके बाद जो चुनौती आती है, उसका मुकाबला करता है और फिर उसका रास्ता तय होता है। मुझे भरोसा है कि कला और संस्कृति से जुड़े जितने भी विभिन्न क्षेत्रों में जिन भी छात्र-छात्राओं ने अपनी अभिव्यक्ति को प्रस्तुत किया है, वो जरूर उस अभिव्यक्ति को रोज़ जिएंगे और उसको एक मिशन रूप में तथा एक जुनूनी स्वभाव के साथ उस काम को आगे बढ़ायंगें। मैं उनको शुभकामना देना चाहता हूं आपको मालूम है कि कला तो व्यक्तियों में संस्कृति का प्रचार प्रसार करती है। यह उत्सव शिल्पकार, कलाकार और संस्थाओं तथा विद्यालयों को आपस में जोड़कर एक सेतु का काम करेगा। यह जो संस्थाएं तथाजो कलाकार हैं तथा जो विभिन्न क्षेत्रों के ऐसी प्रतिभाएं हैं उनके समन्वय का काम करेगा और आपको तो मालूम है कि भारत की जो सांस्कृतिक कला है, उसकी विश्व में सबसे समृद्ध विरासत रही है और इस विरासत को ही संभाले रखने की आज जरूरत है। मेरे छात्र-छात्राओं! मुझे भरोसा है कि आप इस विरासत को संभालेंगे भी, संरक्षित भी करेंगे और उसको आगे भी बढ़ाएंगे। यदि देखा जाए तो जो कला के विद्यार्थी हैं वो रचनात्मक दिशा में और संज्ञानात्मक दिशा में इन दोनों दिशाओं में आगे बढ़ने के लिए आपकी यह कला हमेशा आपके साथ खड़ी होती है। आपकी जो विविध संस्कृतिक विरासत है इसके अन्वेषण तथा उसके आदान-प्रदान एवं अनुभव के लिए यह मंच, हर वर्ष एक उत्सव के रूप में आपको मिल रहा है, आपके लिए इससे बड़ा मंच क्या हो सकता है। यह दुनिया का सबसे बड़ा 33 करोड़ छात्र-छात्राओं का मंच है। मैं बार-बार यह कहता हूं कि इस देश के अंदर जितनी विद्यार्थियों की संख्या है, अमेरिका की कुल आबादी उतनी नहीं है। उनकी 32 करोड़ कुछ आबादी होगी जबकि हमारे 33 करोड़ छात्र-छात्राएं हैं और इसलिए जब हम किसी बात को बोलते हैं तो वो33 करोड़ परिवारों में जाती है और वो 33 करोड़ के छात्र के माता और पिता को भी गिने तो सौ करोड़ होता है और इसलिए यह भारत का जो शिक्षा विभाग है यह पूरे देश का प्रतिनिधित्व करता है और हमको अपना वही श्रेष्ठ भारत बनाना है। इसलिए यह हमारे लिए बहुत बड़े अभियान के रूप में है तथा हमें लोगों को एक भारत, श्रेष्ठ भारत एवं आत्मनिर्भर भारत का दर्शन कराना है। हमको हमारी सांस्कृतिक धरोहरों को पहचानने एवं उसको आगे बढ़ाने की जरूरत है हमें पारंपरिक ज्ञान और उसको समृद्ध करने की भी जरूरत है। गायन में और संगीत में आप शास्त्रीय संगीत कर रहे हों तो उसकी अपनी ताकत है। हमारी पारंपरिक लोक और संगीत परम्परा बहुद समृद्ध है। हमें भारत की पारंपरिक लोक संस्कृति और गायन की लोगों को जानकारी देना है पहले तो देश को एक दूसरे से परिचित होना है। चाहेपारंपरिक लोक संगीत के और चाहे वो शास्त्रीय संगीत हो, चाहे वीणा हो, चाहे तबला हो, चाहे बांसुरी हो, जैसे ही हम बजाते हैं तो दूर रहने वाला व्यक्ति भी खड़ा हो जाता है औरवो सब कुछ भूल जाता है तथा वो आपमें आकर के समाहित हो जाता है। यदि आप में कुछ देने की उत्कृष्ट इच्छा हो तो आप पूरी दुनिया और मानवता को बहुत कुछ दे सकते हैं, उनकी छिपी हुई उन संवेदनाओं को उभार सकते हैं क्योंकि गीत-संगीत और कला छिपी हुई संवेदनाओं को उठाते हैं और आप सब जानते हैं कि जिस व्यक्ति में संवेदना न होउसको हम पत्थर से भी परे मानते हैं। इसलिए इन संवेदनाओं को खड़ा करने का यह जो हमारा अभियान जैसे नृत्य है, चाहे लोकनृत्य किया है चाहे दृश्य कला, चित्र कलाएं मूर्ति कला जो त्रिआयामी है उसमें भी मूर्ति कला है। इसीलिए कभी हमारीछोटी-छोटी बातें ही दुनिया में बड़े बदलाव का कारण होती हैं। हमेशा ही हमने देखा है किबड़ी-बड़ी बातों को करके बड़े काम नहीं होते। छोटी-छोटी बातें और प्रयास बड़े बदलाव का कारण होते होती है और मुझे भरोसा है कि स्कूली शिक्षा से ही यह बदलाव अपने देश की संस्कृति को उसकी नई उंचाईयों पर पहुंचाएगाऔर मानवता को भारतीयता का पाठ पढ़ाएगा। इसलिए अब मुझे लगता है कि ये 9विधाएं आपने की हैं जो बहुत खूबसूरत विधाएंहै। मैं आपको शुभकामना देना चाहता हूं और मैं बधाई देना चाहता हूं। यह बात सही है कि हमें टेक्नोलॉजी और कला तथा मानवीय मूल्य दोनों का संगम करना है। हमने गीत-संगीत को अपनी तकनीक की दृष्टि से ओरउभारना है और इसीलिए आपको मालूम है कि जहां हम लोगों ने इस नई शिक्षा नीति में पूरा मैदान खाली छोड़ दिया है।मेरे प्रिय छात्र-छात्राओं, यदिआप मुझे सुन रहे हैं तो आपको कितनी खुशी होगी कि आप किसी भी विषय को ले सकते हैं, आप परकोई बंधन नहीं है और इतना ही नहीं इस शिक्षा नीति के अंतर्गत यदि कोई 4 वर्ष का कोर्स है और यदि कोई छात्र दो साल में परिस्थितिवशछोड़के जा रहा है तो पहले उसका पैसा एवं वर्ष दोनों खराब हो जाते थे। लेकिन अब उसकोनिराश नहीं होना पड़ेगा, यदिकोई छात्र परिस्थितिवश एक वर्षमें छोड़ कर जा रहा है तो उसको सर्टिफिकेट देंगे,दो साल में छोड़ कर जा रहा है तो डिप्लोमा देगें, तीन साल में छोड़कर जा रहा है तो उसकोडिग्री देंगे। लेकिन यदि फिर वह लौट कर अपने भविष्य को संवारना चाहता है तो फिरउसनेजहां से छोड़ा था, वहीं से शुरू कर सकता है। उसके लिए हम एक ऐसा क्रेडिट बैंक बनायेंगे जहां उसके सारे क्रेडिट जमा होंगे इसलिए उसके लिए आगे बहुत आपार संभावनाएं है।वह कहां जाना चाहता है, शोध और अनुसंधान के क्षेत्र में जाना चाहता है। जहां हमने ‘नेशनलरिसर्च फाउंडेशन’ की स्थापना की है, जो कि प्रधानमंत्री जी के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार की अध्यक्षता में होगी जो शोध की संस्कृति को तेजी से आगे बढ़ाएगा। वहीं हम तकनीकी को निचले स्तर तक, अंतिम छोर के व्यक्ति तक कैसे पहुंचा सकते हैं इसके लिए ‘नेशनल एजूकेशन टैक्नोलॉजीफोरम’का भी गठन कर रहे हैं। जिससेतकनीकी दृष्टि से भी देश समृद्ध हो सके। चाहे वो शिक्षा हो, चाहे वो परंपराएं हों, चाहे वोकलाएँ हों उससे अंतिमछोर के व्यक्ति को तकनीकी का लाभ कैसे मिल सकता है जहां ‘वोकल फोर लोकल’ है वहां ‘लोकल फोर ग्लोबल’ भी है। हम ग्लोबल पर जाएंगे,अंतर्राष्ट्रीयस्तर पर जाएंगेइसीलिए मैंने कहा कि यह नीति केवल नेशनल ही नहीं बल्कि इंटरनेशनल भी है। तभी तो पूरी दुनिया के देशों के शीर्ष विश्वविद्यालय इस शिक्षा नीति को अपनाने के लिए हमसे संवाद कर रहे हैं। बहुत सारे देशों के शिक्षा मंत्री लगातार हमसे संवाद कर रहे है। दुनिया के बहुत सारे शीर्ष विश्वविद्यालयों के लोग जो उनके कुलपति हैं, हमसे संवाद कर रहे कि दुनिया के सबसे बड़े रिफॉर्म के रूप में भारत की एनईपी आई है और इसीलिए उस एनईपी को ले करके आपने यह शुरुआत की है। मैं आपको इसकी भी बहुत बधाई देना चाहता हूं और मुझे भरोसा है कि आपके इस बारह दिवसीय उत्सव में और भीबहुत सारी चीजें होंगी। इस कार्यक्रम के माध्यम से आपस में लोग मिले होंगे, बातचीत की होगी और आज भी पूरे देश इकट्ठा होकर के और यह महसूस कर रहे हैं कि जहां हम एक जिम्मेदार नागरिक तैयार करेंगे, वहीं हम उस जिम्मेदार नागरिक कोयोद्धाकी तरह हर दिशा में आगे बढ़ने वाला बनाकर उसकी संपूर्ण क्षमताएं विकसित करेंगे जिससे वो देश को अपना योगदान दे सकता है। इस देश के निर्माण में मुझे भरोसा है कि आप इस दिशा में काम कर रहे होंगे और जो राज्य इसमें सम्मिलित हुए हैं उनको मैं बधाई देना चाहता हूं।विशेषकरके अपने कला क्षेत्र के आप विशेषज्ञ रहे हैं,आपनेबहुत अच्छे तरीके से इन छात्र-छात्राओं की प्रतिभाओं काआंकलन किया है और जो आज यहां पर सम्मानित हो रहे हैं। प्रियछात्रों! आपके जीवन में कितना सुखद क्षण हैं आप महसूस कर सकते हैं। यही खुशी आपके जीवन में आपकी आधारशिला बनेगी। जब भी आप कष्टों में होंगे यहीखुशी आपको ताकत देगी। जब भी आपको दिशाओं में बाधाएं आएंगी तब उन बाधाओं को तोड़ने के लिए यह खुशी आपका बहुत बड़ा काम करेंगी और इसलिए इस खुशी को संजो करके रखने की जरूरत है, इस खुशी को बढ़ाने की जरूरत है। आपकी जो यात्रा यहां तक आई है और राष्ट्रीय स्तर पर आप सम्मानित हो रहे हैं। मुझे भरोसा है कि लगातार यह जो पड़ाव है आपका अब यह और तेजी से बढ़ने का एक अभियान होगा और इस जुनून के साथ आप उच्च शिखर तक पहुंचेंगे जब देश आप पर गर्व कर सकेगा। पूरी दुनिया नाज से आपका नाम ले सकेगी और भारतीय कीसंस्कृति और कलापूरे विश्व को एक नया जीवन दे सकेगी। मैं एक बार अपने सभी आयोजकों को और जुड़े हुए सभी भाई और बहनों को इस अवसर पर जब हम कला और संस्कृति से जुड़े हुए हैं, मैं एक बार फिरहृदयकी गहराइयों से आपका अभिनंदन करता हूं।
बहुत-बहुत धन्यवाद!
कार्यक्रम में गरिमामयी उपस्थिति:-
- डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’, माननीय शिक्षा मंत्री, भारत सरकार
- सुश्री अनिला करवल, सचिव, स्कूली शिक्षा एवं साक्षरता, शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार
- डॉ. श्रीधर श्रीवास्तव, निदेशक, एनसीईआरटी, नई दिल्ली
- श्री मनोज आहूजा,अध्यक्ष, केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड, नई दिल्ली