नई शिक्षा नीति 2020 पर राष्ट्रीय सम्मेलन
दिनांक: 17 फरवरी, 2021
माननीय शिक्षा मंत्री, डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’
आज इस अवसर पर आयोजित इस महत्वपूर्ण बेवीनार में जो नई शिक्षा नीति को लेकर के दो दिन तक लगातार चलने वाला है इसमें उपस्थित सभी अतिथि गण, इस विश्वविद्यालय की प्रबंधन समिति के सभी पदाधिकारियों का और देश तथा दुनिया से जुड़े सभी छात्र-छात्राएं हैं, अभिभावक हैं, उन सभी का मैं अभिनंदन करता हूं, मैं स्वागत करता हूं। मुझे बहुत खुशी है कि नयी शिक्षा नीति 2020 को लागूकरने के लिए विश्वविद्यालयों ने जिस तरीके से पहल की है और एक संकल्पके साथ आज इस राष्ट्रीय सेमिनार का आयोजन किया है जिसमें हमारे साथ जुड़े हैं विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के अध्यक्ष प्रो. डीपी सिंह जी जिनकेके बारे में हम सभी लोग जानते हैं कि वे विभिन्न विश्वविद्यालयों के न केवल कुलपति रहे हैं बल्कि विभिन्न दायित्वों से होकर करके और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की अध्यक्ष के रूप में उच्च शिक्षा का मार्गदर्शन कर रहे हैं। अभी जिनका मार्गदर्शन हमको मिला प्रो. अनिल सहस्त्रबुद्धे एआईसीटीई के चेयरमैन हैं। हमारे के.के अग्रवाल, अध्यक्षराष्ट्रीय प्रत्यायन बोर्ड जो विभिन्न पदों पर भी रहे हैं। श्री रामगोपाल जी निदेशक हैं आईआईटी दिल्ली के, उनके मार्गदर्शन में भी बहुत काम हो रहा है। मैं देख रहा था कि प्रो. विनय पाठक, डॉ. अश्विनी जो क्यू एस रैंकिंग वाले हैं, वे सभी लोग भी जुड़े हुए हैं और बहुत सारे देश और दुनिया के शिक्षाविद् इस महत्वपूर्ण सेमीनार से जुड़े हुए हैं और मुझे खुशी है कि इस गलगोटिया विश्वविद्यालय के कुलाधिपति श्री सुनील गलगोटिया जी और उनके साथ उनके मुख्य कार्यपालक अधिकारी हैं श्री ध्रुव गलगोटिया जी, वे जब पीछे के दिनों में आये थे और उन्होंने कहा कि इतनी सुन्दर शिक्षा नीति बनी है जिसको लेकर उनके मन में विचार आया कि वो पहले से ही इस तरीके का मन करते हैं और उसी मन से इस विश्वविद्यालय को चला रहे हैं तो हमने विचार किया है कि हम इस संकल्प के साथ जायेंगे जहां यह विश्वविद्यालय शत-प्रतिशत नई शिक्षा नीति को लागू करेगा और देश के लिए एक ऐसा उदाहरण बनने के लिए आगे आया है जिसका परिणाम यह सेमिनार है तथा उसकी परिणति के रूप में हम सभी एकत्रित हुए हैं और इसलिए मैं विश्वविद्यालय की कुलपति डॉ. प्रीति बजाज को भी शुभकामना देना चाहता हूं। इन तीनों लोगों कुलाधिपति और सीईओ तथा कुलपति और आपकी पूरी टीम जिन्होंने यह इच्छा प्रकट की और यह संकल्प लिया और उस संकल्प के समाधान की दिशा में आज वो कार्य शुरू कर दिया है जो पीछे के समय से वो काम कर रहे थे, उसको ताकत के साथ आगे बढाने की उनकी मंशा हैं जिसके लिए मैं बहुत शुभकामनाएं देने के लिए आया हूं। आप जितने भी विद्वतगण हैं, मैंआप सबके पीछे एक सहयोगी के रूप में हूँ क्योंकि इस नई शिक्षा नीति को निश्चित रूप से आपको ही क्रियान्वित करना है लेकिन मुझे खुशी है कि पूरे देश के शिक्षाविद्, अभिभावक, छात्र और सभी लोगों का ऐसा मानस बना है। इस बीच पूरे देश के अंदर लोगों को लगता है कि हां, उनकी अपनी नीति आ गई है। जो भारत विश्व गुरु था उस विश्व गुरु भारत की जो जड़ें थी उनको उखाड़ कर फेंकने की कोशिश हुई वो फिर अपनी जमीन पर आज पुन: पल्लवित होंगे, पुष्पित होंगे और फिर एक बार मेरा वही भारत बनेगा जो विश्व गुरु था। जिसके बारे में हमेशा से कहा गया है ‘एतद् देश प्रसूतस्य शकासाद् अग्रजन्मन:, स्वं-स्वं चरित्रं शिक्षरेन् पृथ्वियां सर्व मानव:’ अर्थात् जिससे पूरी दुनिया आकर के सीखती थी, ज्ञान लेती थी, ज्ञान, विज्ञान, अनुसंधान, नवाचार जीवन मूल्य क्या-क्या नहीं सीखते थे यहां से, विश्व में लीडरशिप ली है मेरे देश ने और आज हमको इस बात की खुशी है कि ऐसा वक्त आ गया जब हमारे देश के यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी के नेतृत्व फिर देश उसी ताकत के साथ बढ़ता जा रहा है। आज उसी विचार को ताकत मिल रही है तथा जो हमारा खोया हुआ ज्ञान, विज्ञान एवं अनुसंधान था जिसे हमने छोड़ा नहीं था बल्कि हमसे छुड़वाया गया था। जिस तरीके से देश को गुलामी की जंजीरों द्वारा उन सब चीजों को हमसे दूर रखने के जो प्रयास हुए थे, अब देश स्वाधीन हो गया है और जब हमको मालूम है कि हमारी जड़ें गहरी हैं उनमें ताकत है, उसमें मानवता है, उसमें सहिष्णुता है, उसमें सौम्यता है, ज्ञान है, विज्ञान है, उसमें जीवन मूल्य हैं और उसमें हर चीज समाई हुई है क्योंकि हमारा जोजीवन-दर्शन है वो यी कहता है कि मनुष्य ईश्वर की सबसे सुंदरतम कृति है और मैं यह समझता हूं कि मनुष्य तो सब जगह एक ही है और इसीलिए वो जो मनुष्य है उसके सुख एवं शांति और समृद्धि के लिए उसके उज्ज्वल जीवन और भविष्य के लिए जो हमारा विजन था, जो हमारा मिशन था वो फिर हम ताकत के साथ बढ़ाएंगे, उठाएंगे और जैसे अभी सुनील जी चर्चा कर रहे थे कि तक्षशिला, नालंदा और विक्रमशिला जैसे विश्वविद्यालय इस देश के अंदर थे और कोई कमी नहीं थी इसदेश में, और यह देश विश्वगुरु कहलाता था। उसी दृष्टि से यह देश इतना सक्षम था और सोने की चिड़िया भी हिंदुस्तान को कहते थे। देश को सोने की चिड़िया बनाने के लिए मेरे देश के प्रधानमंत्री जी ने आत्मनिर्भर भारत की बात की है और जो विश्व भारत है उस विश्वगुरु भारत के लिए फिर नई शिक्षा नीति लेकर के आए हैं जो भारत को ज्ञान की महाशक्ति के रूप में स्थापित करेगी और यह नई शिक्षा नीति जिसके लिए आपने संकल्प लिया है जो बहु आयामी तथा बहु व्यापक परिवर्तनों के साथ विभिन्न नए आयामों के साथ जो भारत केन्द्रित होगी और जो तीन वर्ष के बच्चे से शुरू होगी तथा जो मातृभाषा पर खड़ी होगी और वही शिक्षा नीति स्कूली शिक्षा में आगे बढ़ती हुई चली जाएगी। पहले तोयह नीति 5+3+3+4 की संरचना के तहत व्यक्तित्व का विकास करेगी और क्षमाताओं को बाहर निकालेगी औरजो विजनके साथ मिशन में तब्दील कर उसको नया आयाम प्रदान करेगी, उसके लिए यह नयी शिक्षा नीति लेकर आये हैं। जब हम मातृभाषा की बात करते हैं तो यूनेस्को सहित दुनिया के सभी वैज्ञानिकों का भी कहना है किजो अभिव्यक्ति बच्चा अपनी भाषा में कर सकता है, वह दूसरी थोपी हुई भाषा में नहीं कर सकता तो उसकी जो पूरी अंदर की ऊर्जा है, वह तरीके से स्वयं की भाषा में प्रकट हो इसलिए उस अवसर को खोने नहीं देना चाहिए। यूनेस्को ने भी बार-बार इस बात की चिंता की है कि प्रारंभिक शिक्षा मातृभाषा में होनी चाहिए और फिर हमारा तो देश विविधताओं से युक्त है। हमारे देश के संविधान ने हमको तमाम भाषाएं दी हैं। हिन्दी, तमिल, गुजराती, मराठी, असमिया, संस्कृत, सारी ऐसी भाषाएं हैं जो बहुत खूबसूरत हैं। संविधान द्वारा प्रदत्त इन 22 भारतीय भाषाओं को और सशक्त करने की जिम्मेदारी हमारी ही है क्योंकि वो केवल भाषा नहीं है। उसमें आचार है, व्यवहार हैं परंपराएं हैं और उसमें वो चीज है जो देश की विविधता में एकता का प्रकटीकरण करती है और इसलिए पीछे के दिनों में भी हमने ‘एक भारत श्रेष्ठ भारत’ का अभियान लिया था जिसके तहत हमने तय किया था कि एक प्रदेश दूसरे प्रदेश की भाषा और संस्कृति को तथा खान-पान को एवं रहन-सहन को और विचारों को तथा उसके जीवन मूल्यों को आदान-प्रदान करे एवं एक दूसरे से सीखे। हमारा देश तमाम विविधता का देश है लेकिन अनेकता में एकता ही हमारी विशेषता है जो पूरी दुनिया में न्यारी भी है और सम्पूर्ण दुनिया में यह प्यारी भी है तथा ऐसा दृष्टिकोण कहीं नहीं मिल सकता और इसलिए हमारा जो विचार था वो बड़ा विचार था जिसको हमने ताकत के साथ बनाया क्योंकि पूरी दुनिया में हमारा अपने ढंग का विचार रहा है। पूरी वुसधा को हमने अपना परिवार माना है और ऐसा विचार केवल मेरे हिन्दुस्तान का हो सकता है और न केवल यह विचार है बल्कि यह भी कहा है कि जो यह पृथ्वी है यह हमारी मां है और इस मां के हम बस पुत्र-पुत्रियां हैं। यह जो हमारा मां का रिश्ता है धरती से वो हमको ऊंचाइयों तक पहुंचाता है और इसीलिए हमने ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया, सर्वे भ्रदाणी पश्यन्तु मा कश्चिद् दु:ख भाग्भवेत’ की प्रार्थिना की है कि धरती पर जब तक एक भी प्राणी दु:खी रहेगा तब तक मैं सुख का अहसास कैसे कर सकता हूं। इसका मतलब है कि केवल उतना ही रखो जितनी आपको जरूरत है बाकी दूसरों में बांट दो। हमने कहा कि हम साथ-साथ चलेंगे, साथ-साथ पुरुषार्थ करेंगे। यदि कोई पीछे छूटता है तो उसको पकड़कर साथ चलेंगे। यह है हमारा विचार, हमने अपने लिए कभी सोचा भीनहीं है। हम तो समग्रता में सोचते हैं तथा हमारा जीवन मूल्यों का बिल्कुल अलग दृष्टिकोण रहा है जिससे दुनिया अनुप्राणित होती है। पूरी दुनिया आज भी गीता को अपने साथ लेकर के जिंदा रहना चाहती है, जीवित रहना चाहती है तथा आगे बढ़ना चाहती है एवं उसको समझना चाहती है। गीता कहती है कि यह जो शरीर है, इससे ज्यादा मोह नहीं करना चाहिए क्योंकि आत्मा को परमात्मा से मेरी गीता ने जोड़ा है। आत्मा तो अजर-अमर है, इसको तो कोई खत्म कर ही नहीं सकता इसलिए इसकी चिंता नहीं करनी चाहिए वो आत्मा अच्छी रहनी चाहिए। पवित्र काम होना चाहिए सब कुछ साथ मिलके चलना चाहिए। आज दुनिया में क्यों ऐसी परिस्थितियां आ गई है, क्यों सार्वभौमिकता की भावना नहीं है। इसलिए कि जो विचार हमारा था, वो विचार आज कमजोर हुआ है। दुनिया को जो हम देते थे वो हमारी धरती पर भी थोड़ा सा कमजोर हुआ देश की गुलामी के कारण लेकिन हां, हमारी जड़ें खत्म नहीं हुई हैं। हम तेजी से बढ़ेंगे और दौड़ेंगे तथा हम उस आसमान को छू लेंगे, जिस आसमां की जरूरत पूरी दुनिया के लोगों को है और प्राणी मात्र है।इसलिएयह नई शिक्षा नीति भारत केंद्रित है लेकिन साथ ही ज्ञान, विज्ञान, अनुसंधान और नवाचार से युक्त भी है। यह नेशनल भी है, इंटरनेशनल भी है, ये इम्पैक्टफुल है, यह इंटरेक्टिव भी है, यह इनोवेटिव भी है और यदि इसकी आधारशीला देखें तो यह इक्विटी, क्वालिटी और एक्सेस की आधार शिला पर खड़ी है। यह जो नई शिक्षा नीति आई है वो निश्चित रूप में बहुत अच्छी है, यह बहुत खूबसूरत नीति है, जिसकी देश में ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में इस समय बहुत प्रशंसा ही नहीं हो रही है बल्कि लालायित है दुनिया के लोग भारत की नीति को अपने देश में ही लागू करने के लिए और आपने देखा कि कैंब्रिज विश्वविद्यालय ने कहा है कि जो यह नई शिक्षा नीति भारत की आई है यह बहुत व्यापक परिवर्तन के साथ आई है और यह बहुत बड़े रिफॉर्म के रूप में आई है। आप को याद होगा उन्होंने मेल भेजकर के यह भी कहा है कि हम भारत के आभारी हैं, जिसने गणित और बीजगणित को दुनिया को दिया है। हमने केवल गणित को हीनहीं दिया यदि आप पीछे से देंखें तो आपको पता लगेगा कि हमारी पीढ़ी को उस पीछे के ज्ञान से काट दिया गया। हमको उस ज्ञानका दर्शन नहीं कराया गया तथा उसको शोध और अनुसंधान के साथ आगे बढ़ाने के लिए परिवेश नहीं दिया गया। अन्यथा ऋषि कणाद अणु और परमाणु का विश्लेषण करने का जो उनका अपना रास्ता था कौन उसको नकार सकता है ऋषि कणाद के ज्ञानको आखिर उस पर शोध और अनुसंधान के साथ हमें आगे बढ़ाना चाहिए था। जो आयु का विज्ञान है आयुर्वेद, उसके जनक ऋषि चरक की चरक संहिता आज भी हमारे पास है। आज भी पूरी दुनिया उस आयुर्वेद के पीछे खड़ी है। रसायनशास्त्री नागार्जुन को कौन नकार सकता है। गणितज्ञ रामानुज जी को कौन नकार सकता है, आर्यभट्ट को कौन नकार सकता है, भास्कराचार्य जैसे व्यक्तित्व को दुनिया में कौन नकार सकता है सुश्रुत शल्य चिकित्सा का जनक भी तो मेरे देश में पैदा हुआ है और इसीलिए जितने भी लोगों को बौधायन से लेकर के, बारह मीहिर से लेकर के यदि मैं उसकी श्रृंखला को यहां पर कहूंतो आप कह सकते हैं आज दुनिया को उनकी ज़रूरत है और इसलिए यह जो नयी शिक्षा नीति आई है हम उसमें इस ज्ञान को भी लेकर आगे बढ़ेंगे जिस पर हम दुनिया को दे सकते हैं। नये परिवेश के साथ दुनिया को दे सकते हैं और इसलिए मैं सोचता हूं की चाहे वो कृषि के क्षेत्र में हो और चाहे वो नीति के क्षेत्र में हो विदुर नीति हो, चाणक्य नीति हो, चाहे वो हमारे अर्थशास्त्र कौटिल्य का अर्थशास्त्र हो, भाषा विज्ञान के क्षेत्र में,मैं यह समझता हूं कि पाणिनी से बड़ा भाषा वैज्ञानिक कौन हैं,आप अध्ययन तो करें और उस अभियान को आगे बढ़ाएं और यदि देखेंगे तो जो पतंजलि है और जो पातंजलि का योग है इसने तो पूरी दुनिया में तहलका मचा दिया है। हमारे देश के प्रधान मंत्री जी जब विश्व के सबसे बड़े फलक पर कहते कि हां, यह मनुष्य ईश्वर की सबसे सुंदरतम कृति है। मेरे भारत का विचार है किइस मनुष्य को स्वस्थ रहना चाहिए। इसकी खुशी में हम क्या कर सकते हैं, क्या योग इसके लिए महत्वपूर्ण साबित हो सकता है। दुनिया ने स्वीकारा और शायद दुनिया का पहला उदाहरण है कि जब इतने कम समय में 197 देशों ने उस प्रस्ताव पर हस्ताक्षर हीं नहीं किए बल्कि 21 जून को पूरे विश्व में योग दिवस मनाया जाता है। अपने स्वास्थ्य की चिंता की दृष्टि से उस अभियान को आगे बढ़ाना है और इसीलिए चाहे वास्तु कला हो, चाहे ज्ञान हो, विज्ञान हो और चाहे ज्योतिष विज्ञान हो और खगोल शास्त्र हो किसी भी क्षेत्र में मेरा हिंदुस्तान कभी पीछे नहीं रहा है और इसीलिए अनुसंधान और नवाचार के साथ इस शिक्षा नीति को जोड़कर चल रहे हैं। हम कक्षा 6 से ही वोकेशनल एजुकेशन ला रहे हैं, हम बच्चे को केवल अंक ज्ञान और शब्द ज्ञान नहीं देना चाहते बल्कि उसके हाथों को मजबूती देना है उसका जो कौशल है वो भी विकसित हो तो इसलिए उसको इंटर्नशिप के साथ ला रहे हैं और उसके विकास के लिए तीन चीजों के तहत अलग-अलग थीम कि एक साथ ही उसका अंक ज्ञान, अक्षर ज्ञान, प्लस उसका वोकेशनल एजुकेशन वो भी इंटर्नशिप के साथ करेगा। अब हमारा बच्चा केवल किताबों में नहीं पढ़ेगा और उसके अलावा जो खेलकूद है,उसके सांस्कृतिक कार्यक्रम में तमाम जीवन की जो गतिविधियां है और उसके साथ ही स्कूली शिक्षा से ही आर्टिफिशल इंटेलिजेंस को भीला रहें हैं। मुझे लगता है हिन्दुस्तान दुनिया का पहला देश होगा जो स्कूली शिक्षा से आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस ला रहा है और उसी भावना के साथ उसी मिशन के साथ ला रहा है कि यह जो बच्चा है, यह एक अच्छा नागरिक भी बनना चाहिए। यह विद्यार्थी इस देश का अच्छा नागरिक ही नहीं बनना चाहिए बल्कि उससे भी ऊपर उठ करके विश्व मानव बनना चाहिए क्योंकि विश्व की लीडरशिप चाहिए और उतना ही बड़ा विजन चाहिए तथा उतना ही बड़ा मिशन चाहिए और हर क्षेत्र में चाहिए। इसीलिए बहुत अच्छे तरीके से यह शिक्षा नीति में विद्यार्थी का 360 डिग्री मूल्यांकन करने का भी तरीका टोटली बदल गया। अब हम उसको रिपोर्ट कार्ड नहीं दे रहे हैं बल्कि प्रोग्रेस कार्ड दे रहे हैं कि उसकी क्या प्रगति हो रही है तो इस नीति के तहत छात्र स्वयं अपना मूल्यांकन करेगा, जब आदमी स्वयं का मूल्यांकन करता है तो उसको पता होता है कि उसकी कमजोरी क्या है। जिस दिन वो अपना मूल्यांकन करना शुरू कर देगा, तभी से वह अपने अंदर की कमजोरियों को ताकत के साथ दूर करेगा इस नीति में वह स्वयं भी मूल्यांकन करेगा और स्वयं केमूल्यांकन के साथ-साथ उसका अभिभावक भी मूल्यांकन करेगा। यदि अभिभावक मूल्यांकन करेगा तो अध्यापक भी मूल्यांकन करेंगे और इतना ही नहीं उसका साथी भी उसका मूल्यांकन करेगा। नई शिक्षा नीति में विषयों के चुनाव के लिए तो पूरा मैदान खाली छोड़ा है। अब आप कोई भी विषय लो और किसी भी विषय के साथ कोई भी विषय ले सकते हो, कोई प्रतिबंध नहीं है।इस शिक्षा नीति के अंतर्गत यदि कोई 4 वर्ष का कोर्स है और यदि कोई छात्र दो साल में परिस्थितिवश छोड़के जा रहा है तो पहले उसका पैसा एवं वर्ष दोनों खराब हो जाते थे। लेकिन अब उसको निराश नहीं होना पड़ेगा। यदि वह परिस्थितिवश एक वर्षमें छोड़ कर जा रहा है तो उसको सर्टिफिकेट देंगे,दो साल में छोड़ कर जा रहा है तो डिप्लोमा देगें, तीन साल में छोड़कर जा रहा है तो उसको डिग्री देंगे लेकिन यदि फिर वह लौट कर अपने भविष्य को संवारना चाहता है तो फिर जहां से उसने छोड़ा था वहीं से शुरू कर सकता है। उसके लिए हम एक ऐसा क्रेडिट बैंक बनायेंगे जहां उसके सारे क्रेडिट जमा होंगे इसलिए उसके लिए आगे बहुत आपार संभावनाएं है। मुझे अच्छा लगा जब ध्रुव ने अपने विश्वविद्यालय के 12 संकल्पों को बताया और मैं बहुत आनंदित हूं। मुझे भरोसा है कि यह विश्वविद्यालय जिसने यह तय किया है कि इस नई शिक्षा नीति को शत प्रतिशत लागू करने वाला पहला विश्वविद्यालय बनेगा और जब देश के अंदर सारे आप जैसे लोग जब खड़े हो जाएंगे तो दुनिया की कोई ताकत मेरे देश को भविष्य बनाने से रोक नहीं सकती। जब आप संकल्प के साथ जब आगे आएंगे तो देखिए शोध और अनुसंधान की दिशा में कैसे आगे बढ़ेंगें और ऐसा नहीं हैकि आज भी हम अनुसंधान की दिशा में पीछेहैं। हमारे यूजीसी के चेयरमैन एवं हमारे ए आई सी टी ई के अध्यक्ष यहां पर हैं। हम ‘स्पार्क’ के तहत दुनिया के शीर्ष127 विश्वविद्यालयों के साथ शोध एवं अनुसंधान कर रहे हैं। हम ‘स्टार्स’ के तहत कार्य कर रहे हैं। जब देश के प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी थे तो आपको याद होगा कि सीमा पर हम संकट से जूझ रहे थे और देश में भी खाद्यान का बहुत संकट था। उस समय लालबहादुर शास्त्री जी ने ‘जय जवान, जय किसान’ का नारा दिया था और पूरा देश इकट्ठा हो गया और हमने दोनों संकटों कोमात किया। उसके बाद मेरे देश के यशस्वी प्रधानमंत्री भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी जी आए तो उनको लगा कि अब विज्ञान की जरूरत है और उन्होंने ‘जय विज्ञान’ का नारा दिया तथा परमाणु परीक्षण करके उन्होंने हिंदुस्तान को पूरे विश्व की महाशक्ति के रूप में आगे बढ़ाने का काम किया। विज्ञान में भी हम कभी पीछे नहीं रहे और अब हमारे देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने कहा कि एक कदम और आगे जाने की जरूरत है और उन्होंने ‘जय अनुसंधान’ का नारा दियाऔर यह जो अनुसंधान है आज इसकी जरूरत है। इसलिए हम अब नेशनल रिसर्च फाउंडेशन के माध्यम से शोध एवं अनुसंधान की संस्कृति को विकसित कर रहे हैं, प्रधानमंत्री जी के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार की अध्यक्षता में हम लोग ‘नेशनल रिसर्च फाउंडेशन’ की स्थापना कर रहे हैं। तकनीकी को अंतिम छोर तक कैसे लेकर के जा सकते हैं इसके लिए भी हम ‘नेशनल एजुकेशन टेक्नोलॉजी फोरम’ का गठन कर रहे है।‘नेशनल एजुकेशन टेक्नोलॉजी फोरम’ का गठन करके इन दोनों को साथ जोड़कर हम शोध की संस्कृति को आगे बढ़ा रहे हैं क्योंकि जब अश्विनी जी यहां पर जुड़े हैं जो क्यूएस रैंकिंग के दक्षिणी एशिया के हैड हैं, इनके साथ भी मैं जब-जब परामर्श करता हूं तो मैं देखता हूं कि आखिर हमारे संस्थान शीर्ष संस्थान हैं, कहां कमी है तो थोड़ा सा यह लगा कि अभी शोध और अनुसंधान की दिशा में कमी रह गई है, उसको भी हम पांटेंगे क्योंकि अभी तक पैकेज की होड़ लगी थी। कहां पैकेज मिलेगा, देश-विदेश में जहां भीअच्छा पैकेज मिले उसके लिए होड़ थी। इस समय में अब छात्रों के मन में भी आगया, पूरे देश के मन में आ गया और विशेषकर युवाओं के मन में आ गया कि नहीं, अब हमारी दौड़ पैटेंट की होनी चाहिए और इसलिए जो नई शिक्षा नीति है, यह टैलेंट की खोज भी करेगी, उसका विकास भी करेगी और उसका विस्तार करेगी और टैलेंट को उत्कृष्ट कोटि का कंटेंट देगी और टैलेंट प्लस कंटेंट बराबर पेटेंट को तैयार करेगी और जिस दिन पेटेंट की होड़ लगेगी तो हम दुनिया के शिखर पर होंगे।यह देश तो दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है जिसमें मैं बार-बार यह कहता हूं कि जहां एक हजार से अधिक विश्वविद्यालय हों, पचास हजार से अधिक डिग्री कॉलेज हों, पंद्रह सोलह लाख स्कूल हों, एक करोड़ दस लाख से भी अधिक अध्यापक हैं, और अमेरिका की कुल जितनी जनसंख्या नहीं है उससे भी अधिक 33 करोड़ छात्र-छात्राएं हैं। हम क्या नहीं कर सकते और हमने किया भी है। अभी कोरोना काल में जिस तरीके से हमने शोध और अनुसंधान किया और रामगोपाल जी हमारे साथ जुड़े हुए हैं जब देश के प्रधानमंत्री जी ने युवाओं का आह्वान किया कि ऐसी विषम परिस्थितियों में जब पूरी दुनिया इस कोरोना की महामारी से गुजर रही थी, संकट से गुजर रही थी और देश भी अछूता नहीं था तब देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने आह्वान किया था कि युवाओं आप क्या कर सकते हो यह छोटी बात नहीं है कि जब लोग अपने घरों में सुरक्षा की दृष्टि से कैद रहे होंगे, ऐसे वक्त पर हमारे शोध छात्रों ने और हमारे प्राध्यापकों ने अपनी प्रयोगशालाओं में एक से बढ़कर एक चीज को किया। यदि मैं केवल दिल्ली आईआईटी का आधार लूं तो जो टेस्टिंग किट मुझे याद है जब रामगोपाल जी ने इसकी शुरूआत कराई और उसके बाद जब वो तैयार हो करके उसको स्टार्टअप के साथ जोड़ा। आज तो वो बहुत ही कम समय में और बहुत अच्छा रिजल्ट देने वाला टेस्टिंग किट बन चुका है। हमने तकनीकी ड्रोन बनाए, मास्क बनाए, वेंटीलेटर बनाए, टेस्टिंग किट बनाए और उन्हें पूरी दुनिया को दिया। यह है हमारी ताकत और इसलिए हमारे देश के प्रधानमंत्री जी ने कहा कि आज अनुसंधान की जरूरत है और हमको बढ़ना है पूरी दुनिया में, छलांग मारकर शिखरपर पहुँचना है। हमको ‘वोकल फॉर लोकल’ और ‘लोकल फॉर ग्लोबल’ तक पहुँचना है और इसीलिए अनुसंधान की दिशा में ‘नेशनल रिसर्चफाउंडेशन’ का भी गठन किया जा रहा है और इससे प्रधानमंत्रीजी के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार की अध्यक्षता में शोध की संस्कृति आगे बढ़ेगी। तकनीकी दृष्टि से अंतिम छोर तक के व्यक्ति को कैसे तकनीकी का ज्ञान हो सकता है, वो तकनीकी से युक्त हो करके कैसे ग्लोबल तक पहुंच सकता है इसके लिए‘नेशनल एजुकेशन टेक्नोलॉजी फोरम’ का भी गठन किया जा रहा है। नई शिक्षा नीति के तहत मैं समझता हूं कि हम शोध और अनुसंधान की दिशा में भी तेजी से आगे बढ़ रहे हैं इसलिए मैं कह रहा था कि जिस तरीके से इस विश्वविद्यालय ने यह पहल की है और मुझे यहभी खुशी है कि देश के सभी मुख्यमंत्रियों से, सभी शिक्षा मंत्रियों से, सभी शिक्षाविदों से मेरी लगातार बातचीत होती रही है और तभी नई शिक्षा नीति भी लेकर हम आए थे। यह दुनिया का सबसे बड़ा नवाचार होगा कि 33 करोड़ छात्रों से, छात्र-छात्राओं के माता-पिता से, शिक्षक से लेकर शिक्षाविद, वैज्ञानिकों से लेकर, ग्राम प्रधान और प्रधानमंत्री जी तक, गांव से लेकर संसद तक किसी भी क्षेत्र में हमने परामर्श छोड़ा नहीं था। मैंने यूजीसी के चेयरमैन साहब और ए आई सी टी ई के चेयरमैन को यह अनुरोध किया है कि कोई भी इंजीनियरिंग कॉलेज, कोई भी विश्वविद्यालय अछूता न रहे जहां टास्क फोर्स न बन गई हो। इस बीच तेजी से सभी राज्यों के शिक्षा मंत्रियों से संवाद करते हुए उन्होंने बताया कि अधिकांश शिक्षा मंत्रियों ने और मुख्यमंत्रीगण ने अपने अपने राज्य में टास्कफोर्स बना दिए हैं। कौन-कौन से बिंदुपर, राज्य को क्या-क्या करना है और केन्द्र सरकार को क्या करना है इस दिशा में युद्ध स्तर पर काम हो रहा है। बहुत सारे राज्यों ने भी यह कहा है कि हम पहला राज्य होंगे जो इस शिक्षा नीति को शत प्रतिशत क्रियान्वित करेंगे और मुझे आज खुशी है कि आज यह जो विश्वविद्यालय हैं इस संकल्प के साथ आगे बढ रहा है कि हम आज तो हमनई शिक्षा नीति को शत प्रतिशत क्रियान्वित करने वाला पहला विश्वविद्यालय होने का सौभाग्य प्राप्त करेंगे। इसलिए मैं आज आपको शुभकामना देने के लिए आया हूं। मुझे भरोसा है कि नीति और उसके क्रियान्वयन के बीच की जो महत्वपूर्ण कड़ी यह लीडरशिप है जो यहांसब बैठी हुई हैं जो अध्यापक हैं, जो कुलपति हैं यह सारे लोग नेतृत्व करने वाले लोग हैं जिनके नेतृत्व में ही यह शिक्षा नीति अंतिम छोर तक जाएगी और देश में एक नया वातावरण पैदा होगा। पूरी दुनिया ने भी देखा था कि पीछे के दिनों ब्रिटेनकी पूर्व शिक्षा मंत्री जी हमारे साथ जुड़ी थी और अभी वहां के विदेश मंत्री जी यहां आए तो उनसे मुलाकात होने का अवसर मिला तथा अभी कुरूसाओ के प्रधानमंत्री जी ने भी कहा कि आपकी शिक्षा नीति बहुत अच्छी लगी, मॉरीशस ने भी कहा हमको भी यह नीति बहुत अच्छी लगी, संयुक्त अरब अमीरात के शिक्षा मंत्री जी ने बाकायदा संवाद स्थापित करके कहा कि हम इस चीज को आगे बढ़ाना चाहते हैं। सारी दुनिया में एक उत्साह और उमंग है। हमारे देश के प्रधानमंत्री जीने 21वीं सदी के स्वर्णिम भारत की बात की है जो स्वच्छ भारत होगा, स्वस्थ भारतहोगा, सशक्त भारत होगा, आत्मनिर्भर भारत होगाजो उन्होंने हमे मेक इन इंडिया, डिजिटल इंडिया, स्टार्ट अप इंडिया और स्टैंडअप इंडियाका मार्ग दिखाया है और उस मार्ग की आधारशिला यह एनईपी 2020 आई है। मुझे भरोसा है कि हम ज्ञान में, भी विज्ञान में भी और अनुसंधान में भी आगे बढ़ेंगे। मैं सीबीएसई के स्कूलों के ढाई करोड़ छात्रों के साथ भी लगातार जुड़ता हूं। यूजीसी के चेयरमैन के साथ और इनके एक हजार विश्वविद्यालयों के साथ में लगातार जुड़ता हूं। मुझे बहुत खुशी होती यह देखकर कि इस समय शिक्षा का वातावरण तेजी से बढ़ रहा है। ऐसे समय में जब विकसित देशों ने भीअपने को इस कोरोना काल में पीछे धकेल दिया था और स्वयं को एक साल पीछे कर दिया था लेकिन हमने बच्चे का एक साल बर्बाद नहीं होने दिया हमने समय पर परीक्षा करवाई तथा समय पर रिजल्ट दिया। हमने जेईई की परीक्षाएं करवाई, नीट जोदुनिया की कोरोना काल की सबसे बड़ी परीक्षा थी, उसका भी परिणाम जारी कराने में हम सफल रहे। कोई सोचता भी नहीं था कि हिन्दुस्तान के 33 करोड़ छात्र-छात्राओं को ऑनलाइन शिक्षा मिल पायेगी और उनके घर ही स्कूलों में तब्दील हो जाएंगे लेकिन हम बच्चे के पीछे चट्टान की तरह खड़े रहें। हम शैक्षणिक कलेंडर लगातार बदलते रहे तथा लगातार बच्चों को सामग्री भी देते रहे। भारत की शिक्षा व्यवस्था सुदृढ़ तरीके से खड़ी रही है और आज भी हमारी अपनी शिक्षा व्यवस्था सुदृढ़ता से आगे बढ़ रही है। मुझे भरोसा है कि देश के प्रधानमंत्री के नेतृत्व में हम इस नई शिक्षा नीति को तेजी से लागू करेंगे। इसके बाद सुखद परिणाम पूरी दुनिया के सामने होंगे। देश मजबूती से खड़ा होगा। आत्म निर्भर भारत और विश्वगुरु भारत यह दोनों उभर करके आ रहे हैं, बच्चे के मन में भी यह दोनों चीजें हैं। मैं एक बार पुन: जो लोग मुझसे जुड़े हैं उन सभी लोगों का मैं अभिवादन करता हूं और मैं विशेष करके सुनील जी को धन्यावद देना चाहता हूं क्योंकि आपका बहुत मधुर व्यवहार है लेकिन उतनी ही प्रखरता और उतनी ही आप में संकल्पशीलता है। ऐसे ही लोग परिवर्तन का कारण भी बनते हैं और ध्रुव ने जिस तरीके से अभी जिन बातों को कहा है मुझे भरोसा है आप इस आधार पर निश्चित रूप से इस विश्वविद्यालय को एक उदाहरण के रूप में सबके सामने रखेंगे कि हां, जब इच्छा शक्ति हो तो सब कुछ होसकता है, कोई दिक्कत नहीं है। मेरी शुभकामनाएं और आप जो सभी लोग जुड़े है उनको मेरा अभिवादन।
बहुत-बहुत धन्यवाद!
कार्यक्रम में गरिमामयी उपस्थिति:-
- डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक, माननीय शिक्षा मंत्री, भारत सरकार
- श्री सुनील गलगोटिया, कुलाध्यक्ष, गलगोटियस विश्वविद्यालय
- श्री ध्रुव गलगोटिया, सीईओ, गलगोटियस विश्वविद्यालय
- डॉ. प्रीति बजाज, कुलपति गलगोटियस विश्वविद्यालय
- प्रो. डी.पी. सिंह, अध्यक्ष, यूजीसी
- प्रो. अनिल सहस्त्रबुद्धे, अध्यक्ष, एआईसीटीई
- श्री के.के. अग्रवाल, अध्यक्ष, राष्ट्रीय प्रत्यायन बोर्ड,
- प्रो. वी. रामगोपाल राव, निदेशक, आईआईटी दिल्ली