Author: nishankji-user

विश्‍व शान्‍ति के लिए वेद पर आधारित द्वितीय अंतर्राष्‍ट्रीय सम्‍मेलन

विश्‍व शान्‍ति के लिए वेद पर आधारित द्वितीय अंतर्राष्‍ट्रीय सम्‍मेलन

 

दिनांक: 11 दिसम्‍बर, 2020

 

 

माननीय शिक्षा मंत्री, डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’

 

वेद और विश्व शांति के इस अभियान के दूसरे चरण में आज पूरी दुनिया से जुड़े सभी भाई और बहनों का मैं अभिनंदन करना चाहता हूं। दुनिया के एशिया, यूरोप, उत्तरी अमेरिका, दक्षिणी अमेरिका सहित 15 से भी अधिक विश्‍वविद्यालयों से जुड़े हमारे मित्र और काशी हिन्‍दू विश्‍वविद्यालय के कुलपति एवं विश्‍वविद्यालय के वैदिक विज्ञान केन्‍द्र के समन्‍वयक सहित मैं सभी लोगों का इस बहुत ही महत्वपूर्ण कार्यक्रम के लिए अभिनंदन करना चाहता हूं। आज हमारे साथ  सौभाग्‍य से इस अभियान में जो यह दूसरे चरण का अभियान है जो कि टोनी नाडार जी ने शुरू किया है उसमें कुरासाओ के प्रधानमंत्री श्री यूजीन रघुनाथ जी भी जुड़े हैं, मैं आपका भी अभिनंदन कर रहा हूं, स्वागत कर रहा हूं और आपकी अच्छी भावनाओं के लिए आपको साधुवाद देना चाहता हूं। कुरूसाओ की पूर्व-प्रधानमंत्री श्रीमती सूजी जी मैं आपका भी अभिनंदन कर रहा हूं और इस बड़े अभियान में आपका स्वागत कर रहा हूं।

आज बड़े वैश्‍विक परिदृश्य में यह बेबीनार हो रहा है ऐसे समय में जबकि पूरी दुनिया संकट से गुजर रही है। कोविड के ऐसे वक्त में विश्व कल्याण के लिए यह बेबीनार आयोजित हो रहा है। मुझे याद है कि जब मैं पेरिस में था तब आप श्री टोनी नाडार जी मुझसे मिलने आए थे और मुझे आपने विज्ञान के दो ग्रंथ भेंट किये थे मुझे बहुत खुशी हुई थी कि आप मिशन मोड में वेद को पूरे विश्व  में आगे बढ़ाने के लिए उसके शोध और अनुसंधान करने की दिशा में काम कर रहे हैं।मुझे तब भी बहुत अच्छा लगा था और तब से लेकर आज तक निरंतर यह ज्ञान अब पूरे विश्‍व के लिए शुरू हो गया है।

जब शुरू के पहले चरण में दुनिया के 6 देशों के शिक्षा मंत्री जुड़े थे लेकिनआज दुनिया की तमाम शीर्ष शिक्षण संस्थाएं और हमारे प्रधानमंत्री जुड़ रहे हैं। राजा लुईस भी हमारे साथ लगातार शुरू से ही जुड़े रहे हैं और जिस तरीके से अभी उनका जो प्रस्तुतीकरण था वह अद्भुत था। वेद के अंदर जो विज्ञान था उसको उन्होंने हमारे सामने प्रस्तुत किया है। जो उनकी रुचि है, जो उनकी जिज्ञासा है, वो देखने लायक है और वेदों पर जो उनका ज्ञान है और उस ज्ञान को अभियान के रूप में विश्व के लोगों तक ले जाने का जो उनका मिशन है उसके लि मैं उनका भी अभिनंदन करना चाहता हूं। हमारे प्रो. राकेश भटनागर जी, जो हमारे कुलपति हैं, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के आज उनके आतिथ्य में आप पूरी दुनिया के तमाम विश्वविद्यालयों के कुलपति, कुलाधिपति और प्रधानमंत्री गण, पूर्व प्रधानंत्री गण और पूरी दुनिया के शिक्षाविद और वेदों से जुड़ाव रखने वाले तथाविश्व को शांति से आगे बढ़ाने की लालसा रखने वाले दुनिया के लोग जुड़े हुए हैं, आपका भी अभिनंदनकरता हूं।

डॉ. राजेश नैथानी हिमालय यूनिवर्सिटी के पीबीसी हैं और हिमालय में ही वेद का जन्‍म हुआ है तथा वेद पर व्यापक तरीके से उनकी युनिवर्सिटी अभी दान कर रही है। आज श्री कृष्ण मुरारी त्रिपाठी जी जो हमारे बीएचयू के वेद विभाग  के विद्वान हैं और प्रोफेसर उपेन्द्र कुमार त्रिपाठी जो समन्‍वय हैं वैदिक विज्ञान केन्द्र केमैं आपको भी बधाई देना चाहता हूं कि आपकी अगुवाई में जो हमारे प्रधानमंत्री जी का मन था, हमारे देश के यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी की जो छटपटाहट थी,जो उनके मानसमेंपूरे विश्व की मानवता के लिए वेदों के माध्यम से कल्‍याण की जो भावना है मुझे भरोसा है कि आप इस दिशा में आगे  और भी काम कर रहे होंगे। हमारे साथ डा.पूज्‍यस्वामी जी और गोविन्द गिरि महाराज जी भीजुड़े हुए हैं। ऐसी सार्थक गतिविधियों में महाराज जी का बहुत योगदान रहता है।

अभी डॉक्टर रामसागर मिश्रा जी आपके संयोजकत्व में ये काम बढ़ रहा है जिसके लिए आप बहुत बधाई के पात्र हैं। प्रो. अमिताभ भट्टाचार्य जी जो कला प्रदर्शनी विभाग काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से हैं और हमारे चांसलर कुरासाओयूनिवर्सिटी सेकार्ल कमेलिया जी,मैं आपका अभिनन्दन करना चाहता हूं और आपने जो सम्मान मुझे दिया है इसके लिए भी मैं आपका अभिनंदन करता हूं। मैं यह सम्मान उन लोगों को अर्पित करता हूं जो वेदों के माध्यम से विश्व में शांति लाना चाहते हैं।

आपका जो यह सम्मान है। उसे मैं उन सारे मनुष्‍यों को अर्पित करना चाहता हूं जो विश्‍व में शांति एवं सद्भाव का प्रसार करना चाहते हैंमुझे बहुत खुशी है कि आज दुनिया के तमाम लोग हमारे साथ जुड़े हुए हैं और पारंपरिक शाश्वत ज्ञान को आधुनिक ज्ञान विज्ञान से जोड़ने की जो शैक्षणिक क्षेत्र में अपनी मानवीय मूल्यों को विकसित करने की जो सराहनीय पहल है, उसके लिए मैं आपका आभारी हूं, प्रधानमंत्री जी का आभारी हूं, चांसलर साहब मैं आपका  भी आभारी हूं। मुझे लगता है कि विश्व शांति के लिए वेद विषय पर अभी बहुत अच्छे तरीके से राजा लुईस जी ने और टोनी नाडार जी ने अपनी बातों को रखा है जिसके सन्‍दर्भ में मुझे लगता है कि आज यदि आप उस दिशा में सोचें और विश्‍व में अशांति के कारणों पर विचार करें तो क्या कारण है कि जो आतंकवाद, हिंसा, वैमनस्यता, गरीबी, भुखमरी एवं पर्यावरण की तमाम चुनौतियों जैसेमौसम परिवर्तन की चुनौतियां, भू-स्‍खलन या भूकम्‍प तथा अन्‍य जो विभिन्न प्रकार की आपदाएं  हैं जिनके कारण आज विश्‍व में अशांति है एवं जैसा किटोनी नाडार जी ने जिस बात को कहा कि इसके मूल में तो यह व्यक्ति ही है जो ईश्वर की सबसे सुंदरतम कृति है मनुष्य।इस मनुष्‍य से ही यदि इसका मन ठीक है, इसका तन ठीक है तो सब कुछ ठीक हो सकता है इसका मन कैसे ठीक हो तबमुझे लगता है कि इसके सन्‍दर्भ में आज वेदों की जरूरत है। उस वेद की जो सबसे पहले तो पूरे विश्व को अपना परिवार मानता है। यह मेरा है, यह तेरा है यहां से शुरू होती अशांति लेकिन‘अयं निज: परो वेति गणना लघु चेतसाम्। उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्‍बकम्’जबपूरी वसुधा को वह अपना परिवार मानेगा तो यह मेरा और यह तेरे की बात ही खत्म हो जाएगी कि सारा संसार मेरा परिवार है औरवहीवेद कहता है। यह सारी जो धरती है यह मेरी मां है जिस दिन धरती को मैं अपनी मां मानूंगा, समझूंगा, महसूस करूंगा, उस दिन धरती पर पैदा होने वाला हर जीव-जंतु मेरा अपना अंग होगाइस पृथ्‍वी पर पेदा होने वाला प्राणी अपना भाई होता है और उस प्राणी के लिए ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया’की बात हम करते हैं जब तक एक भी प्राणीदुखी रहेगा तबतक मैंसुख का अनुभव नही कर सकता,यह है मेरा वेद,यही है जो सबके सुख की कामना करता है। यह हमारा वेद हर जगह खड़े होकर के मानवता की बात करता है और इसलिए मैं समझता हूं कि यह जो अशांति है, यहअशांति मन की अशांति है। आज यह अशांति तब पैदा हुई है जब कोई न कोई ऐसी परिस्थितियां अत्‍यंत्र हुई हैं और जब व्यक्ति ने अपने को उस शास्‍वत ज्ञान से दूर किया है।

हम सब साथ-साथ चलना चाहते हैं, सब साथ भोजन करेंगे, साथ चलेंगे, साथ पुरूषार्थ करेंगे और किसी के धन का कोई लोभ नहीं है, लालच नहीं है। जो प्रकृति के कण-कण में हमने व्याप देखा है उस ईश्वर का हमारे अंदर जैसा कि अभी टोनी जी ने भी कहा कि यदि मैं ही ब्रह्म हूं और मेरे अंदर सब कुछ समाहित है और पूरी दुनिया में एक-दूसरे से कोई भिन्नता ही नही है तोफिर और कहां से अशांतिहो जाएगी? लेकिन अशांति का कारण यह है कि हम प्रकृति से दूर हो गए। हमारे वेदों में प्रकृति के साथ सामंजस्य की बात कही गई है जब प्रकृति के साथ हमसमन्‍वय करते हैं तो उससे संस्कृति बनती है और संस्कृति रचना का काम करती है, निर्माण का काम करती है और जब हम उस प्रकृति से दूर जाते हैं तब वो वक्रिृति होती है और प्रकृति हमेशा विनाश का कारण होती है और यह बात वेद हमको कहते हैं। हमारे वेदों की तमाम ऋचाओं में हम वृक्षों का वंदन करते हैं, अभिनंदन करते हैं।

हमारे सुख और दु:ख के जो भी क्षण होते हैं उनमें सबसे पहले हम उन पेड़ पौधों का गुणगान करते हैं और उनको नमस्कार करते हैं। उनका पूजन करके उनका बंदन करते हैं धरती मां का वंदन करते हैं। हम जीव-जंतुओं का वंदनकरते हैं। यह जो वेदों की ताकत है आज दुनिया को इसकी ज़रूरत है।आज वेद की जरूरत है क्‍योंकि वेद में विज्ञान भी है औरवेद में जीवन भी है, सब कुछ है। बस वेद केवल को जितना विस्तार देंगे हम जितना शोध और अनुसंधान करेंगे उतना ही हम इस दिशा में आगे बढ़ेंगे। मुझे इस बात को कहते हुए खुशी और गर्व महसूस होता है कि भारत की जो नई शिक्षा नीति है वह भारत केंद्रित होगी। जैसा कि इस केन्‍द्र के उद्घाटन के अवसर पर हमारे आदरणीय प्रधानमंत्रीजी श्री नरेन्‍द्र मोदी जी ने अपना वक्तव्य देते हुए कहा था किहमारे प्राचीन को वर्तमान से जोड़कर नवाचार और अनुसंधान के साथ आगे लेकर के चलना है तभी मानवता का कल्याण होगा। मेरा सौभाग्य है कि जहां वेदों का जन्म हुआ है, मैं उसी हिमालय से आता हूं और इसलिए आज मैं समझता हूं कि वेद तो सारी दुनिया के लिए प्राण हैं। अच्छे समाज, अच्छे इंसान, अच्छी प्रकृति, अच्छी प्रवृति और अच्छे मानव के लिए वेद आज भी एक ऐसे अचूक अस्त्र के समान हैं जिसकी आज दुनिया को जरूरत है।

टोनी नादर जी मैं आपको धन्यवाद देना चाहता हूँ कि आपने इस अभियान को आगे बढ़ाया है और हम तो कहते थेविश्‍वको श्रेष्ठ बनाते चलो आज यह हमने सारे विश्व को आगे बढ़ा करके और‘असतो मा सद्गमय तमसो मा ज्योतिर्गमय’ के मंत्र को लेकर हम चले हैं तथा हम अंधकार को चीर करके प्रकाश लाएंगे। हम असत्य से सत्य की ओर चलेंगे। हम मृत्यु से अमृत्‍व की ओर चलेंगे। हमारे वेदों की एक-एक ऋचाओं में ज्ञान एवं विज्ञान भरा हुआ है जिस पर शोध एवंअनुसंधान की जरूरत है जिस-जिस रूप में जो कुछ ले सकता है वो सब कुछ देने के लिए मेरा वेद आज सक्षम है। मुझे खुशी है कि यह जो अभियान चल रहा है यह अभियान अब रुकने वाला नहीं हैनाडार जी ने मुझसे कहा था कि क्या इस अभियान को लेकर हम दुनिया में जा सकते हैं? मैंने कहा था बिल्कुल जा सकते हैं और जाना भी चाहिए। इसलिए जाना चाहिए क्‍योंकिदुनिया के लोगों को जरूरत है। जब किसी के सामने कोई चित्र रहता है दृश्य रहता है, तो उसके बारे में विश्लेषण करता है देखता है ऊर्जा पैदा होती है उसको मन मस्तिष्क में वह विचार करता है। आदमी के मन-मस्तिष्क में जो कुछ आ जाये बस वही तो आदमी है बाकी यहहाड़-मांस का ढांचा आदमी नहीं हो सकता यह शरीर तो केवल माध्यम है और जो सनातन एवं अजर-अमर है वह तो आत्‍मा है इसलिए हमारी गीता में भी कहा है कि यह शरीर आपका नहीं है, उसके लिए झूठ क्यों बोलना है और जो आपका है वो कभी मर नहीं सकता। वहअजर-अमर है।जो मनुष्य है वह मनुष्य भगवान की सबसे सुंदरतम कृति है। इस कृति को कैसे संजो के रख सकते हैं, कैसे बढ़ा सकते हैं? मुझे भरोसा है कि जो यह अभियान हमारा चल रहा है टोनी नाडारजी यह रुकना नहीं चाहिए। राजा लुईस जीयह रुकना नहीं चाहिए। हमारे प्रधानमंत्री जी ने भीइस बात की घोषणा कर दी है, मुझे खुशी है। भारत और कुरासाओ दोनों देशोंके बीच बहुतअभिन्न संबंध है।

हमारे प्रधानमंत्री जी तो कहते हैं कि‘वसुधैव कुटुम्बकम’ अर्थात् पूरा विश्‍व हीमेरा परिवार है। हम अपने इस परिवार के साथ सुख-दुख में एक साथ रहेंगे और हर कठिनाई का हम लोग सामना करेंगे, मुकाबला करेंगे और इसलिए मैं समझता हूं कि आज का जो यह अभियान हैयहदूसरे चरण का अभियान है जो पूरी तेजी से आगे दौड़ेगा। पूरे विश्व का कोई भी देश, कोई भीव्यक्ति नहीं छूटेगा जब वेद से उसका साक्षात्कार न हो  तब उसका मन बदलेगा। मन बदलेगा तो सब कुछ बदल जाएगा। सब अच्छा होगा जब अच्छा मन रहता है तो सब चीजें अच्छी आती हैं।आज मैं भारत की धरती से दुनिया के जितने भी लोग हमसे जुड़े हैं,उनसबका अभिवादन कर रहा हूं अभिनंदन करता हूं।

भारत तो वसुधैव कुटुम्बकम की गाथा वाला देश हैइसलिए हमारे वेद, पुराण एवं उपनिषद् पूरे विश्व के लिए एक संजीवनी का काम करेंगे। मैं एक बार फिर आप सबका अभिवादन करता हूं कि आपइस अभियान का हिस्सा बन रहे हैं,आप जहां-जहां जो जो भी हैं वे सभी वेदों के संदेश को लेकर के उस अभियान में आगे निकल जाएं। यह केवल बेवीनार तक न रह जाए बल्कि हर व्यक्ति एक संस्था बन करके वेद की उन ऋचाओं को लेकर के विश्व में निकल पड़े किअबविश्व को शांति की जरूरत है। सुख, शांति और प्रगति इस वेद के अंदर समाई हुई है। एक बार फिर आयोजकों को मैं अभिवादन करना चाहता हूं, धन्यवाद देना चाहता हूं और एक बार फिर चांसलर और चांसलर कुरासाओ यूनिवर्सिटी कार्लकमेलिया जी आपका अभिनंदन कर रहा हूं। मैं फिर धन्यवाद देना चाहता हूं जो आपने आज हिन्दुस्तान को यह जो सम्मान दिया है उसके लिए भी मैं आपका अभिनंदन करना चाहता हूं और प्रधानमंत्री जी आपको भी मैं धन्यवाद देना चाहता हूं।

 

बहुत-बहुतधन्यवाद!

 

 

 

कार्यक्रम में गरिमामयी उपस्‍थिति:-

 

  1. श्री नरेन्‍द्र मोदी, आदरणीय प्रधानमंत्री, भारत
  2. श्री रमेश पोखरियाल ‘निशंक’, माननीय शिक्षा मंत्री, भारत सरकार
  3. डॉ. टोनी नाडार, अध्‍यक्ष, महर्षि अंर्तराष्‍ट्रीय विश्‍वविद्यालय
  4. श्री राकेश भटनागर, कुलपति, काशी हिन्‍दू विश्‍वविद्यालय,
  5. श्री यूजीन रघुनाथ, प्रधानमंत्री, कुरासाओ
  6. कुरासाओ की पूर्व-प्रधानमंत्री, विभिन्‍न विश्‍वविद्यालययों के कुलाधिपति, कुलपति एवं 15 से अधिक देशों के शिक्षाविद्।

 

 प्रतियोगी/बोर्ड परीक्षाओं के संबंधमें देश भर के शिक्षकों, अभिभावकगणों और छात्रों के साथ संवाद

 

 प्रतियोगी/बोर्ड परीक्षाओं के संबंधमें देश भर के शिक्षकों, अभिभावकगणों और छात्रों के साथ संवाद

 

दिनांक: 10 दिसम्‍बर, 2020

 

 

 

माननीय शिक्षा मंत्री, डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’

 

मुझे भरोसा है कि आप सभी लोग आनंदित होंगे और इस चुनौती का मुकाबला कर रहे होंगे।जैसे कि आपको पता ही है कि आज मैं शिक्षा के इससंवाद में आपके साथ जुड़ा हूं और इसलिए मैं संवाद में आपका अभिनंदन कर रहा हूं। मुझे याद है कि पिछली बार 11 मई को भी मैं आपके साथ जुड़ा था और ‘आचार्य देवो भव’ हो या ‘जल सुरक्षा’ का हो,वृक्षारोपण का हो,योग का हो,‘फिट इंडिया’ का हो,‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’का हो या परीक्षाओं को लेकर के हो, मनोदर्पण का हो,एक के बाद एक के बाद एक तमाम समय में लगातार मैं आपसे संवादकरता रहा हूं और आपके माता-पिता से भी संवाद करता रहा हूं, अध्यापकगण से भी संवादकरता रहा हूं। अपने छात्र-छात्राओं जैसेकि विश्वविद्यालयों के स्‍तर जहां स्कूली स्तर पर मैंने संवाद किया वहीं विश्वविद्यालय स्तर पर भी लगातार संवाद किया और मानसिक स्वास्थ्य और कल्याण को लेकर भी हमने लगातार चर्चाएं की और इसी श्रृंखला में लगातार संवाद के माध्यम से समाधान की ओर हम गए हैं और इसकोदेश ने भी देखा है दुनिया ने भी देखा है जब हम संवाद की श्रृंखला को और उसके समाधान की ओर ले करके गए हैं। मुझे लगता है कि हम लोगों ने लगातार विमर्श किएहैं पीछेके दिनों में जो हुआ अब काफी समय बदल गया। उस विचार विमर्श के बाद जो बदला वो बोर्ड की परीक्षाएं हो गई हैं उसका रिजल्ट आ चुके हैं। आप अब प्रतियोगी परीक्षाओं में भी बैठ चुके हैं तो उसके भी रिजल्ट आपके पास आ गया है। कॉलेजों की कटआफ लिस्ट भी जारी हो चुकी है और एक नजर अकादमिक सत्र की ओर भी अब हमने शुरूकर दिया है। परिवर्तन प्रकृति का नियम है और इस चुनौतीपूर्ण समय में परिवर्तन को अपनाते हुए जिस सफलतापूर्वक आपने अपने जीवन के इस समय को आगे बढ़ाया है वो अपने आप में एक बहुत ही महत्वपूर्ण विषय है और शिक्षा विभाग लगातार जिस तरीके से आपके साथ लगातार संवाद और विषयों पर जुड़ा रहा है मैं शिक्षा विभाग भारत के शिक्षा मंत्रालय को औरसभी देश के राज्यों के शिक्षा मंत्रियों और उनकी टीम को मैं बधाई देना चाहता हूं कि बहुत विषम परिस्थितियों में भी हमने शिक्षा के इस अभियान को रुकने नहीं दिया है। मेरे प्यारे बच्चों, मैं समझता हूं कि आप सभी अपने दोस्तों के साथ जो दिनचर्या बिताते थे चाहे वह टिफिन में साथ-साथ खाने का विषय हो या मस्ती का विषय हो, प्रोजेक्ट तैयार करने का विषय हो,या प्रयोगशाला में अनूठे आविष्कार को उभारने का विषय हो स्वाभाविकहीहै कि वो आपके अनुभव है और आजकल आप सब इन अनुभवों को, उन खूबसूरत यादों को आप संजो रहे होंगे क्योंकि जो खूबसूरत यादें हैं वो हमारे जीवन की धरोहर होती हैं और हमारी स्मृतियां जीवन के यह पल हमारे मस्तिष्क में सदैवजिन्दा रहते हैं वे हमें आगे बढने की नकेवल प्रेरणा देते हैं बल्‍कि मन को सकून भी देते हैं और जब सुकून प्रदान होता है तो आदमी को आगे बढने का फिर एक मौका मिलता है, आगे बढने का भरोसा मिलता है। मुझे भरोसा है कि बहुत जल्दी हम अपने स्कूली जीवन में लौट आएंगे और जो यहपरिस्‍थितियां हैं,इनका मुकाबला करते हुए क्योंकि बहुत तेजी से परिस्थितियां अभी भी बदल रही हैं। हम फिर इसको निभाएंगे और अपनी पढ़ाई को उसी ढंग से विधिवत जारी रखेंगे। मैं समझता हूं कि जैसे पिछलीबार हम लोगों ने ‘माई बुकमाई फ्रेंड’ अभियान किया था आपको याद होगा तो अब मेरा सुझाव आपके लिए रहेगा किपेन फ्रेंड कल्चर की उस संस्कृति को जो चिट्ठी-पत्री की जो संस्कृति होगी आप जारी रखेंगे। आप अपने मित्र को पत्र लिख रहे होंगे। अपनी भावनाओं को व्यक्त कर रहे होंगे और ऐसे मौके पर जो क्रिएटिव आपने कियाहोगा जैसे आपने पिछली बार लिखा था कि आप कुछ न कुछ विशेष करके आप करेंगे वो आप ने किया भी होगा, कर भी रहे होंगे तो अपने मित्रों के साथ जरूर आप उसको बांट रहें होंगे। पत्र लेखन का आपका यह अभ्यास आपके भविष्य के लिए बहुत बड़ी ताकत बनेगा। अभी कुछ दिन पहले हमारे प्रधानमंत्रीजी को एक छात्र ने पत्र लिखा और हमको भी बहुत सारे इस तरीके के पत्र आए।जब उस छात्र कहा की इस कोविडके संकट के दौरान मेरी मां ने मुझको सिलाई कढ़ाईके गुणसिखलायें हैं और मुझे बहुत खुशी है कि मैं कुछ ऐसी चीजें कर पा रहा हूं जो मैं कभी सोच भी नहीं सकता था। ऐसीभिन्‍न-भिन्‍नपेंटिंग चाहे वो क्रिएटिव तमाम प्रकार के लेखन से कहानियां लिखने से लेकर के कार्टून तक और विभिन्न क्षेत्रों में आपने अलग-अलग तरीके से और प्रयोगात्मक विज्ञान के क्षेत्र में आपने अपने घर की वस्तुओं को जोड़ कर के आपने कई प्रकार के प्रयोग भी किए। मुझे बहुत खुशी है जब आपसंवाद करते हैं तो मेरा भरोसा और बढ़ जाता है कि मेरे देश के पास मेरी भावी पीढी में क्षमता है, प्रतिभा है और हर समस्या में समाधान करने का रास्ता है और उसमें विजन है। आज मुझे लगता है कि यह जो पत्र आपलिखेंगे यह ऐतिहासिक विरासत और परिवर्त्तन के साक्षी भी भविष्‍य में बन सकते हैं। मुझे भरोसा है कि आप इस समय का अच्छे से उपयोग कर रहे होंगे। हमारे प्रधानमंत्री जी ने जब कहा कि पढ़ने की आदत को बनाए रखना चाहिए। आपको याद होगा जब वो हमारे साथ कभी ‘परीक्षा पर चर्चा’ में मिल जाते हैं। कभी ‘ध्रुव तारे’ में मिल जाते हैं। हमारे देश के प्रधानमंत्री श्रीनरेन्द्र मोदी जी का हम से बेहद लगाव है और वो यह महसूस करते हैं कि जो हमारा नया भारतहै जो 21वीं सदी का भारत है, आप उसके शिल्पी है। इसलिए वो कहते हैं कि पढ़ने से बड़ा कोई आनंद नहीं है और ज्ञान से बड़ी कोई ताकत नहीं है। जब आप पढ़ेंगे, रीड करेंगे तो देश को लीड करेंगे। मुझे भरोसा है कि हमारे प्रधानमंत्री जी का जो यह वाक्य है हम इसे मन में संजो करके रखते होंगे। पीछे के समय हमने कहा था कि जब आप अपने जन्मदिन को मनाते हैं तो एक पेड़ का ज़रूर रोपण करेंगे। मुझे यह खुशी है कि न केवल आपने उसको किया बल्कि अपने परिवार के लोगों को भी आपने प्रेरित किया। मेरे पास तमाम ऐसी सूचनाएं है,संदेश है कि जब छात्र-छात्राओं ने कहा कि न केवल हमने बल्कि अपने परिवार के लोगों को भी जन्मदिन पर बजाए बड़े-बड़े होटलों में जाने के हम लोगों ने वृक्षारोपण किया,कुछ रचनात्मक काम किए।जिसका भी जन्मदिन था उसे भीआगे प्रेरित किया कि नहीं वो भी अपने जन्मदिन पर जरूर एक पेड़ लगाएं। मुझे बहुत खुशी है कि आप परिवर्तन के ध्वजवाहक भी बन रहे हैं और आपने एक नयी संस्कृति को भी पैदा किया है। अपने जन्मदिन पर आप पुस्तक भी भेंट कर रहे हैं तो यह भी बहुत अच्छी बात है और यह पठन-पाठन की जो संस्कृति है यह हमारी ताकत है उसको आप और बढ़ाइए। कुछ राज्यों ने पीछे के समय जब हमने राज्यों पर इस बात को छोड़ा तब आप बार-बार पूछ रहे थे कि कब स्कूल खुलेंगे?130 करोड़ लोगों का देश आप समझ सकते हैं औरयह देश दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है और ऐसे में हमने सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियोंसे यह अनुरोध किया था कि वे अपने राज्य की परिस्‍थितियोंको देखते हुए अपने स्कूलों को खोलें। पीछेके समय में 17 राज्यों ने अपनी स्कूलों को खोला है। हालांकि अभी छात्र संख्या बहुत कम आ रही है लेकिन जैसे-जैसे परिस्‍थितियांहोंगी वैसे-वैसे वो आगे बढ़ेंगे क्योंकि हमारे सामने आपकी सुरक्षा और आपकी शिक्षा दोनों बहुत जरूरी है। आपकी सुरक्षा पहले और आपकी शिक्षा फिर उसके साथ चट्टानकी तरह खड़ी रहेगी और इसलिए जो सीखने और सिखाने की प्रक्रिया है उसमेंलॉकडाउनके दौरान थोड़ा-सा व्यवधान आया है। मुझे भरोसा है कि बहुत जल्दी ही यह व्यवधान दूर होगा लेकिन आपका जो उत्साह है और जो ‘आत्मनिर्भर भारत अभियान’ के तहत तो पीएम ई-विद्या जैसे व्यापक पहल जो शुरू हुई है और डिजिटल के माध्यम से ऑनलाइन और रेडियो माध्यम की मदद से 33 करोड़ छात्र-छात्राओं तक को जो पाठ्यक्रम को सुनिश्चित करनेकी कोशिश की है।यह दुनिया में अपने आप में बहुत बड़ा कदम है क्योंकि इस देश को यदि आप देखेंगे तो एक हजार से अधिक यहां विश्‍वविद्यालय हैं, 45 हजार से अधिक डिग्री कॉलेज हैं, एक करोड़ नौ लाख अध्यापक हैं और 15 लाख से भी अधिक इस देश में स्कूल हैं। यदि छात्रों की संख्या को मैं कहूंगा तो जितनी कुल आबादी अमेरिका की नहीं उससे भी ज्यादा 33 करोड़ से भी अधिक इस देश में छात्र-छात्राएँ हैं आप समझ सकते हैं कि दुनिया का आज कितना बड़ा विस्तार लिए हमारा देश है और इसीलिए हमने स्वयं है, दीक्षा है, स्वयं प्रभा है, जैसे ऑनलाइन माध्यमों से शिक्षा प्राप्त करने का कार्य किया है। हमने शिक्षा वाणी,पॉडकास्ट और साइन लैंग्वेज जैसे विभिन्न कार्यक्रमों को आप तक पहुंचाने की कोशिश की है और प्रज्ञागाइडलाइन के माध्यम से समय-समय पर विभिन्न निर्देश भी लगातार स्कूलों को जाते हैं जो आप तक आते रहे हैं। मुझे इस बात की खुशी है कि सीबीएसई द्वारा आयोजित दसवी कक्षा की जो परीक्षा हुई उसमें 91 प्रतिशत छात्रों ने सफलता अर्जित की है। ऐसे समय में भी इस परीक्षा में कुल 17 लाख 50 हजार छात्र बैठे थे और जिसमें 16 लाख से भी अधिक छात्र उत्तीर्ण हुए हैं। 13छात्रों ने दसवीं की परीक्षा में 500 अंकों में से 499 अंक लेकर टॉप किया। कितनी बड़ी बात है। आज केन्द्रीय विद्यालय संगठन के 95 पर्सेंट से अधिक छात्र-छात्राएं इस परीक्षा में उत्तीर्ण हुए हैं उनको भी मैं बधाई देना चाहता हूं और सीबीएसई को भी बधार्इदेना चाहता हूं। आपने शानदार प्रदर्शन किया है और सीबीएसई की  12वीं कक्षा का भी रिजल्ट अद्भुत था। 12 लाख छात्रों में से 10 लाख 50 हजार से अधिक उत्तीर्ण हुए और छात्रों की सफलता का प्रतिशत पिछले वर्ष के मुकाबले 5.38 प्रतिशत ज्यादा रहा है, यह भी बहुत बड़ी बात है।कोविडके इस दौरान भी आप लोगों ने जिस तरीके से, जिस हौंसले के साथ अपनी परीक्षाओं को दिया है वो अद्भुत है। त्रिवेंद्रम, बैंगलोर और चेन्नई जैसे क्षेत्रमें छात्रों ने इन परीक्षाओं में जिस तरीके का अच्छा प्रदर्शन किया है, मैं उन सभी छात्रों को बहुत बधाई देना चाहता हूं मैं शुभकामना देना चाहता हूं।एक यह भी मुझे अच्छा लगा कि अब सीबीएसई ने फेल शब्‍दको ही हटा दिया है। परीक्षण प्रक्रिया से फेल शब्द को हटा दिया है। अब कोई फेल नहीं होगा लेकिन उसकी प्रतिस्पर्धा और आगे तेजी से बढ़ेगी। किस ढंग से उसकी प्रतिस्पर्द्धा आगे बढ़ेंगी, किस तरीके से उसको अब नई चुनौतियों का मुकाबला करना है, आपके लिए पूरा मैदान खाली है। परीक्षा से जुड़े मानसिक और भावनात्मक तनाव दूर करने की दृष्टि से भी बहुत अहम कदम हम लोगों ने उठाए हैं। सीबीएसई की 2021की बोर्ड परीक्षाओं के लिए 30 प्रतिशत पाठ्यक्रम को भी कम किया है। मैं यहसमझता हूं कि जो नीट जेईई की जो परीक्षाओं से जुड़ा विषय है वो भी आपके सामने कई बार लगातार आ रहे हैं और मुझे लगता है अभी भी आपके मन में बहुत सारे सवाल होंगे। इसको करके जेईई और नीट की परीक्षाएं क्या हो,कैसे हो कबहो,बहुत सारे सवाल जरूर आपके मन में उथल पुथल मचा भी रहे होंगे?लेकिन मुझे इस खुशी है कि हमनेजेईई की समय पर परीक्षा आयोजित की। आपका वर्ष खराब नहीं होने दिया।जेईई एडवांस की भी समय पर परीक्षा आयोजित की और नीट की भी समय पर। नीट दुनिया की इसकोरोना काल की सबसे बड़ी परीक्षा साबित हुई है और इन परीआओं का आयोजन बहुत सावधानीपूर्वक बहुत अच्छे तरीके से हुआ और आप सबको मालूम है कि जब जेईई और नीट की परीक्षा हमने करवाई थी तो उसके बाद जिन राज्यों में चुनाव हुए है विशेष  करके जो बिहार में आम चुनाव हुआ था विधानसभाओं का और उसमें चुनाव आयोग ने बाकायदा जेईई और नीट में जिस तरीके से व्यवस्था की गई उसका उदाहरण लेते हुए चुनाव कराया था और वो भी सफलतम चुनाव हुआ था। करोड़ों लोगों ने अपने मतदान का उपयोग किया था, यह छोटी बात नहीं बल्कि पूरी दुनिया के लिए एक देखने लायक बात है, एक समझने वाली बात है जो हमारे प्रधानमंत्री जी की इच्छा शक्ति को प्रदर्शित करती है। जो नीट काएग्जाम है,उसमें पिछले वर्ष के मुकाबले इस वर्ष 5.34 प्रतिशत अधिक बच्चों ने रजिस्ट्रेशन करवाया। यह भी अपने में रिकॉर्ड है और कोरोना के मध्यनजर सोशल डिस्टेंस और सुरक्षा की दृष्टि से हमने परीक्षा केन्द्रों को जरूर बढ़ायाथा। 52प्रतिशत के करीब लगभग-लगभग बडा करके 3862 परीक्षा केन्द्रों को स्थापित किया था तो उसको हमने 52प्रतिशत इसलिए बनाया था कि हमारे लिए आपकी सुरक्षा सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण थी। आज जेईई के लिए भी और जो सेंटर बनाए थे, सबके वो 570 से बढ़ाकर 660 कर दिए थे और 99 प्रतिशत छात्रों को उनकी पहली प्राथमिकता के आधार पर परीक्षा केन्द्र प्रदान किये गये यह भी पहली बार हुआ और एक बार नहीं, दो-दो बार नहीं, तीन बार यदि उसको चेंज करना पड़ा तो अंतिम क्षणतक भी ऐसे अवसर आए यह भी पहली बार हुआ।99प्रतिशत छात्रों को जो जहां अपना केन्द्र चाहते थे उनको उनके अनुरूप केन्द्र मिला उनका जो निकटस्थ केन्द्र था। अब मुझे लगता है कि जैसे आप बार-बार जब मुझे मेल भेजते थे, मेरे ट्वीटर पर चर्चा करते थे कि ऐसा समय है कि जब हम बाहर नहीं निकल सकते और हमको नीट की परीक्षा को देना है तो कैसे हम अभ्यास करें तो मैं एनटीए के डीजी को भी इस अवसर पर बधाई और धन्यवाद देना चाहता हूं कि उन्होंने नेशनल टेस्टिंग ऐप एक नया ऐसा एप बनाया था जिसमें आप लाखों छात्रों ने अपनी परीक्षा को स्‍वयंलिया था और उसी का परिणाम था कि आप में आत्मबल बना। आपके घर पर ही आपको पूरा ऐसा क्षेत्र दे दिया था कि मोबाइल पर जब आपको इस बात का गर्व हुआ होगा और आपको आत्म विश्वास हुआ होगा कि हां, जो परीक्षा आपने दी हैउसमें यह कितना सहायक आपके लिए साबित हुआ है। मुझे खुशी है कि सीबीएसई ने भी एक टोल फ्री शेड्यूलिंग काउंसिलिंग की सुविधा छात्रों को उपलब्ध कराई है और इसके माध्यम से 75काउंसलर भारत में और 22 काउंसर जापान, ओमान अरब, नेपाल, कुवैत जैसे देशों को भी सुविधायें उपलब्ध करवाई हैं। आपको याद होगा और आपको यह जानकर बहुत खुशी होगी कि हमारे सीबीएसई के पूरी दुनिया में स्कूल हैं और सीबीएसई स्कूलों में जाने के लिए कुछ दिन पहले मैंओमान से जुड़ा था और आज ओमान के शिक्षा मंत्री और सब लोगों ने इस बात को स्वीकार किया है कि जो सीबीएसई का पाठ्यक्रम हैउसमेंउत्कृष्टता है।वहांदर्जनों स्कूल हैं और मैं समझता हूँ कि बहुत सारे देश में लगभग 27-28 देशों में यह स्कूल हैं सीबीएसई के। आपको याद होगा कि जब यह बार-बार अभिभावकों से और आप लोगों से यह संदेश आया कि हम बाहर नहीं जा पा रहे हैं और ऐसी स्थिति में मानसिक दबाव बढ़ रहे हैं और अवसाद में जाने की स्थिति होती है तो हम लोगों ने तुरंत आपसी विचार-विमर्श एवं परामर्श करके हम लोगों ने ‘मनोदर्पण’ जैसे महत्त्वपूर्ण कार्यक्रम की योजना को लाये थे और उस ‘मनोदर्पण’ में आज 300 से भी अधिक ऐसे मनोवैज्ञानिक हैं जो लगातार आपसे संवाद कर रहे हैं। उनकी वेबसाइट में जाकर के तमाम प्रकार की वो गतिविधियां हैजब भी कोई परेशानी आपको होती है आप उस वेबसाइट का अध्ययन कर सकते हैं उससे अपनी सूचनाओं को निकाल सकते हैं और ज़रूरत पड़े तो चौबीसों घंटे वो 300 डॉक्टर आपके लिए हेल्पलाइन के साथ जुड़े हुए हैं। आपको यह भीखुशी होगी की जब पूरी दुनिया कोविड के संकट से गुजर रही थी। और अभी भी उस संकट से उबरी नहीं है, ऐसे वक्त में हमारे देश में एक वरदान के रूप में नई शिक्षा नीति का उदय हुआ है। ऐसी राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 जिसको पूरी दुनिया ने, पूरे देश ने बहुत उत्सव के साथ उसको स्वीकार किया है और आप सबको पता है कि यह दुनिया का सबसे बड़ा नवाचार तथा परामर्श था जिसमें ग्रामप्रधान से लेकर के आदरणीयप्रधानमंत्री जी तक, छात्र से लेकर अभिभावकों तक,विभिन्‍न विश्‍वविद्यालयों के कुलपति से लेकर के और अध्यापक तक को शामिल किया गया था। मैं समझता हूं कि देश में जहां चौतरफा इस नई शिक्षा नीति की प्रशंसा हुई है चाहे वो वैज्ञानिक हो, चाहे कोई संस्थाएँ हों, ग्राम सभा से लेकर के पार्लियामेंट तक उसमें बहस हो,उसके बाद भी उसको पब्लिक डोमेन में डाल कर के 2 लाख से भी अधिक उसपर सुझाव मिले हैं और उन सुझावों का विश्लेषण करने के बाद यह शिक्षा नीति बनी है जो आज इस देश के प्रख्यात वैज्ञानिक कस्तूरीरंगन जी की अध्यक्षता में निर्मित हुई है। श्री कस्तूरीरंगन जी पद्म श्री, पद्म विभूषण, पद्म भूषण और इसरो के पूर्व अध्यक्ष रहे हैं और आज पूरी दुनिया के देश यह कह रहें हैं कि हम इस नई शिक्षा नीति को भारत की एनईपी को अपने देश में लागू करना चाहते हैं। अभी कुछ दिन पहले कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय ने इसकी बहुत प्रशंसा की और कहा कि जो भारत अब ज्ञान का केंद्र बनेगा और उन्होंने इस बात के लिए शिक्षा मंत्रालय को और हमारे प्रधान मंत्री जी को बधाई दी है। भारत जो पूरे विश्वमें गुरु था उस भारत के गुरुत्व का पुनरुद्धार इस नई शिक्षा नीति में देखने को मिल रहा है, यह छोटी बात नहीं बल्कि बहुत बड़ी बात है। अभी कल ही जब संयुक्‍तअरब अमीरात के शिक्षा मंत्री जीजिनके साथ डेढ घंटे हमारी वर्चुअल मिटिंग हुई उसमें उन्होंने इस नई शिक्षा नीति की बहुत प्रशंशा की है बहुत सारी चीजों पर दोनों देश किस तरीके से काम कर सकते हैं और शिक्षा को और सुदृढ कर सकते हैं इस दिशा में उन्होंने अपेक्षा की कि क्या-क्या हो सकता है तो मैं समझता हूँ कि यह जो नई शिक्षा नीति है यह नई शिक्षा नीति आपके लिए तमाम अवसरों को लेकर आयी है, व्यापक परिवर्तन और व्यापक सुधारों के साथ आई है। नई शिक्षा नीति यह जो आपके भविष्य का विजन डॉक्यूमेंट होगी और यह जो अभी मैं चर्चा कर रहा था की मेरे देश के प्रधानमंत्री जी ने जो 21वीं सदी के स्वर्णिम भारत की बात की है, ऐसा भारत जो स्‍वच्‍छ भारत हो,सुंदर भारत हो, स्वस्थ भारत हो,सशक्त भारत हो,आत्मनिर्भर भारत हो, श्रेष्ठ भारत हो, उस श्रेष्ठ भारत की, उस स्वर्णिम भारत की आधारशिला यह नई शिक्षा नीति बन करके आई है। मुझे भरोसा है कि यह नईशिक्षा नीति आपको विकल्प भी देगी और अवसर भी देगी। इसकी मदद से आप रिफॉर्म करेंगे, ट्रांसफॉर्म करेंगे और परफॉर्म भी करेंगे।यह जो शिक्षा नीति है यह नेशनल भी है, यह इंटरनेशनल भी, इम्पैक्टफुल भी है,इंटरएक्टिव भी है, इनक्लूसिव भी है, इनोवेटिव भी है और यहइक्‍विटी, क्वालिटी और एक्‍सेसकी आधारशिला पर खड़ी है।यह भारत केंद्रित है,यह जीवन मूल्यों सेजुडी भी है। आज दुनिया जिस संकट से होकर गुजर रही है उसमें लगातार यह महसूस होता है कि भारत की शिक्षा जीवन-मूल्यों से जुड़ी थी जिसमें ज्ञान, विज्ञान, अनुसंधान, नवाचार भी था लेकिन उसकी मूल रीढ़जीवन मूल्यों की शिक्षा होती थी। भारत केंद्रित यह नई शिक्षा नीति नए बदलाव के साथ आपके सामने आई है। आप इस नयी शिक्षा नीति के ब्रांड एम्‍बेडकर है औरआपके माध्यम से ही इसको और आगे बढ़ना है और आज फिर हम एक बार विमर्श के लिए आये हैं। मैंने मोटी-मोटी बातें आपसे कहीं हैं अभी भी आपके मन में क्‍योंकि अभी मैं देखरहा हूं कि बहुत सारे सवाल आपके मन में हैं और मैं लगातार देखता हूं कि एक के बाद एक बहुत सारे प्रश्न सामने आ रहे हैं, तो मैं शुरू करता हूं। मैं आपको शुभकामनाओं के साथ शुरूकरता हूं किआपके मन में इसके बाद भी यदि कोई आपके कुछ सुझाव आए थे उन सुझावों को मैंने निचोड़ करके कुछ चर्चा की और अभी भी लगातार आपके सुझाव आते रहे हैं। अभी भी आपको कुछ प्रश्न करना हो तो आप करिए।

 

प्रश्‍न  – जिग्‍यांस

 

जिग्‍यांस कह रहे हैं कि मैं 12वीं क्लास का छात्र हूँ और हम लोगों को आज स्कूल बंद होने की वजह से लैब में जाने और प्रैक्टिकल करने का ज्यादा मौका नहीं मिल पाया। क्या हम लोगों की सीबीएसई की प्रैक्टिकल परीक्षाएं रद्द या पोस्टपोंड होंगी?

 

 

 

माननीय शिक्षा मंत्री, डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’

 

जिग्‍यांसयह बात बिल्कुल सही है और आपका जो कहना है कि आपको लैब में जाने का मौका नहीं मिल पाया तो क्या यह प्रैक्टिकल स्थगित होंगे या बंद होंगे या आगे केलिए होंगे। मैं आपको कहना चाहता हूँ जिग्‍यांसजो सीबीएसई का जो बोर्ड है उसमें जो प्रैक्टिकल होते हैं वो स्कूली स्तर पर होते है और इसलिए यदि ऐसा लगेगा कि संभावनाएं नहीं दिखेंगी कि आप अपने लैब में नहींजा पा रहे हैं और प्रैक्टिकल नहीं कर पा रहे हैं वैसे तो मुझे भरोसा है कि आगे आने वाले समय में परिस्थितियां अनुकूल होंगी लेकिन यदि ऐसा लगेगा कि अभी भी परिस्‍थितियांअनुरूप नहीं हो रही है या अनुकूल नहीं हो रही हैं तो उसके बारे में विचार किया जाएगा। आपका प्रश्न बिलकुल जायज है कि यदि लैब में प्रैक्टिकल नहीं होगा, अभ्यास नहीं होगा तो परीक्षाएँ कैसे करके दी जाएंगी तो इस दिशा में निश्चित रूप में जो आपका सुझाव है बहुत महत्वपूर्ण सुझाव है जिस पर हमलोग विचार करेंगे।

 

 

प्रश्‍न – अभिशम

आप कह रहे हैं कि यदि हम प्रतियोगी परीक्षाओं से 10 से 20 प्रतिशत पाठ्यक्रम को हटा दें और शेष पाठ्यक्रम पूरा करने के लिए छात्रों को कुछ अतिरिक्त समय दे तो यह सबसे बड़ा अच्छा काम होगा। परीक्षा रद्द नही करें लेकिन छात्रों को अतिरिक्त समय दे?

 

 

माननीय शिक्षा मंत्री, डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’

 

अभिशम यहबिल्कुल सही बात है और आपने जो कहा है कि 10 से 20 प्रतिशत पाठ्यक्रम कम कर दें और थोड़ा सा समय बढा दें। आपका जो विचार है बिल्कुल सही है और आपको मालूम है कि कुछ तो अभी 10 से 20 प्रतिशत पाठ्यक्रम कम किया है। सीबीएसई ने तो 30 प्रतिशत तक अपने पाठ्यक्रम को कम किया है और आपने कहा है कि आगे के समय में थोड़ा सा और मौका मिलना चाहिए।यदि ऐसी ही परिस्थिति रही तो आपको याद होगा कि पिछली बार हमको एक बार, दो बार, तीन बार परिस्थितिजन्य निर्णय लेने पडे थे। कब तो परीक्षा होती थी और परीक्षा के बाद फिर पीछे गए। आम लोग इस आशा में रहे अब क्या होता है लेकिनहमनेदो बार या तीन बार लगभग उन तिथियों को परिवर्तित किया है। यदि कभी ऐसी परिस्थिति होगी कि आपको समय चाहिए तो समय का विस्तार करनाहै तो उन परिस्थितियों पर निर्भर करेगा लेकिन आपकी बात बिल्कुल सही है और आपके बहुत सारे कंसर्न जो आपने इच्छा व्यक्त कि हैऔर मैंने देखा है बहुत सारे लोगों के सुझाव आए हैं जैसे आपने सुझाव दिए हैं।

 

प्रश्‍न–प्रियांशु

 

प्रियांशु कहरहे हैं कि हमारे सिलेबस से हटाए गए चैप्टर्स को ले कर के छात्रों और हमारे शिक्षकों के बीच अभी भी काफी संदेह बना हुआ है। क्‍याहटाए गए चैप्टर्स के विषय में पृष्ठ संख्या के साथ साथ एक डिटेल हमें वीडियो और पीडीएफ के माध्यम से जानकारी प्राप्त हो सकती है?

 

 

माननीय शिक्षा मंत्री, डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’

 

प्रियांशु आप ने जो प्रश्न किया है वो प्रश्न कई और छात्रों का भी है और मुझे लगता है और कुछ छात्रों ने यहकहा है कि जब ये प्रश्न आए तो बहुत सारे छात्रों ने लिखा कि हमारे स्कूल ने सम्पूर्ण जानकारी हमको प्राप्त प्रदान कर दी है। यह जो सीबीएसई का बोर्डहै इसकी आप यदि साईट पर जाएंगे तो उनकी वेबसाइट पर आपको सब कुछ मिल जाएगा। सीबीएसई के चेयरमैन मनोज आहूजा जी ने मुझे बताया और हमारी जो सचिव स्कूलीशिक्षा की अनिता जी ने मुझे बताया कि हमने और ग्रांट दी उस सीबीएसई बोर्ड का जो पेज है जो उसका साइटहै उस साइट पर ऑलरेडी इसको डाला है तो आप उसको निकाल सकते हैं, देख सकते हैं और उन्होंने सभी स्कूलों को भेज दिया। आपके माध्यम से मेरे साथ स्कूलों के सभी प्रधानाचार्य जुड़े हुए हैं मैं उनसे अनुरोध करूंगा कि अपने बच्चे तक, सभी छात्रों तक जो सीबीएसई की ये सूचनाएं हैं जिसमें बहुत स्पष्ट तरीके से क्या हटाया गया है उसमें साफ साफ है कितना हटाया गया किस पृष्ठसे है सब बताया गया है तो उसमें बहुत स्पष्ट जानकारी है यह भ्रम रहना नहीं चाहिए। आज छात्र अध्यापक के बीच भी नहीं रहना चाहिए ये प्राचार्यों को मैं अनुरोध करूंगा। सभी स्कूलों के प्राचार्यों से मैं अनुरोध करूंगा कि वो उसको देखें और अपने अध्यापकगणों को भी उस जानकारी को दें और अपने छात्रों तक हर हालत में इसको पहुंचाएं। लेकिन इसमें कोई भ्रम की स्थिति नहीं रहनी चाहिए।

 

 

प्रश्‍न – अभय सिंह

 

अभय सिंह कह रहे हैं कि सभी बोर्ड की परीक्षाएं अक्सर मार्च की शुरूआत में हो जाती हैं किन्तु हमें नए पेपर पैटर्न को समझने, लिखने और अभ्यास करने के लिए थोड़ा समय चाहिए। क्या परीक्षाओं का आयोजन थोड़ा आगे बढ़ सकता है?

 

 

माननीय शिक्षा मंत्री, डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’

 

आप कह रहे हैं कि परीक्षाएं अक्सर मार्च की शुरूआत में हो जाती हैं और नए पैटर्न को समझने और लिखने के लिए आपको अभ्‍यासकरना पड़ता है। मुझे लगता है कि हमलोगों ने पीछे के समय जब बोर्ड की परीक्षाओं का जो समय होता था वो पहले ही हमलोगों ने निश्‍चित किया है और आपको समय मिलता है तो इतने समय पहले ही घोषित हो जाएंगी तिथियां तो उन घोषित की गई तिथियों में आपको आगे जो पाठ्यक्रम  है,उसकी तैयारी करनेका मौका मिलता है और मुझे लगता इसमें कोई शंका नहीं होनी चाहिए।हमने पहले भी देखा और आपकी जो जिज्ञासा है, जिज्ञासा-पूर्ति के लिए हम समय-समय पर देखेंगे। आपको तैयारी का पूरा मौका मिला अथवा नहीं, हम आपके साथ हैं।

 

प्रश्‍न – सुधा

 

सुधा जी कह रही हैं कि बोर्ड के छात्रों के लिए स्कूल फिर से खुल रहे हैं तो उनकी सुरक्षा कैसे निश्‍चित होगी क्योंकि एसओपी का पालन करने के बावजूद कुछ राज्यों में स्कूल खुलने के बाद छात्रों में संक्रमण की सूचना मिली है?

 

माननीय शिक्षा मंत्री, डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’

 

आपके सवाल के संदर्भ में यदि आप देखें तो यदि कोई स्कूल न भी आये और केवल घर में ही रहे लेकिन नियमों का ठीक से अनुपालन नहीं कर तो वह घर में भी संक्रमित हो सकता है। हम दुनिया की सबसे बड़ी परीक्षा नीट भी करा लेते जब नियमों का पालन ठीक से होता है तो बिहार जैसे राज्य में आम चुनाव भी हो जाते हैं। आपके हाथ पर बहुत कुछ निर्भर करेगा क्योंकि मैं समझता हूं कि परिवार और छात्र दोनों मिलकर अपनी सुरक्षा के लिए मास्‍कका ज्यादा से ज्यादा उपयोग आप करेंगे। जैसे आप बाहर निकलते हैं तो आपस में व्यक्तिगत दूरी बना करके रखेंगे इसका पालन होगा तो मुझे लगता नहीं कि कोई अप्रिय स्थिति आयेगी।यदि आपने ठीक से पालन किया है और यदि ठीक से पालन हुआ है तो हमारे द्वारा आयोजित नीट दुनिया का सबसे बड़ा उदाहरण है।14-15 लाख छात्र परीक्षा में बैठ जाते हों और मुझे लगता है कि शायद ही कोई उदारण होगा तो एकाध उदाहरण ऐसा हो सकता है,अपवाद के लिए लेकिन हमने यह दुनिया की सबसे बड़ी परीक्षा भी कराई। इसलिए सुधा जब भी यह स्कूल खुलेंगे तो स्कूल के प्रबंधकों से भी मेरा अनुरोध रहेगा और अभिभावकों से भी और जो बस में या गाड़ी में जब बच्चे जो आ रहे हैं घर से जैसे ही निकलते हैं तो हर एक कदम पर उन सुरक्षा निर्देशों का जरूर पालन करेंगे और स्कूल यदि सुरक्षानियमों का पालन करेंगे तो कम से कम मैं यह कह सकता हूं कि उससे कोई भी प्रभावित नहीं होगा लेकिन चौकसी हमकोस्कूल में भी रखनी पड़ेगी, यातायात में भी रखनी पड़ेगी,अपने घर से आते समय भी रखनी पड़ेगी और एक-एक कदम पर घर से जाने तक और वापस पहुंचने तक हमको सावधानी रखनी पड़ेगी। यह सावधानियां आपको रखनी हैं, आपके चालकों को भी रखनी है,आपके प्रबंधकों को भी रखनी हैं,आपके अभिभावकगण को भी रखनी हैं,आपकेअध्यापक को भी रखनी हैं, पुलिस बल को तो रखनी ही रखनी हैं। इसलिए हम लोग सब मिलकर के उन सुरक्षा नियमों का पालन करेगें तो काफी कुछ सुरक्षा हमें मिल जाएगी।

 

प्रश्‍न – मनीष

 

मनीष जी कह रहे हैं कि  बोर्ड की परीक्षाओं का सिलेबस और कम करने की जरूरत नहीं है केवल परीक्षा की तिथि आगे बढ़ाएं?

 

माननीय शिक्षा मंत्री, डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’

 

बहुत अच्‍छी बात है मनीष जी,सिलेबस कम करने की कोई जरूरत नहीं है। लेकिन आगे हम लोग बढ़ाते ही हैं और बढ़ाया ही हमने आपको। हमने समय-समय पर जो समस्याएं सामने आई हैं उसके तहत सिलेबस को कम करना पड़ा है, जिसे हमने परिस्थितिवश किया है क्योंकि विद्यार्थियों पर ज्यादा दबाव न हो, तनाव न हो, ज्यादा बोझ न हो और ऑनलाइन पर किस तरीके से अध्यापक और अभिभावक मिल करके जिसमें आपकी सुरक्षा भी होऔर मनःस्थिति भी में कोई दबाव और तनाव न हो इसलिए उसको कम किया है लेकिन जैसे ही सामान्य स्थिति होगी मनीषआपकी तरह बहुत सारे छात्रों ने मुझे अच्छा लगा कि उन्होंने कहा कि यह पाठ्यक्रम पूरा हो तो अच्छा है। मुझे लगता है कि इन सभी बातों के माध्यम से उन सभी छात्रों को मैं कहना चाहता हूं कि यह पाठ्यक्रम को कम करने का जो विषयहै वो परिस्थितिजन्य है और यदि सामान्य स्थिति आएगी तो आपका पाठ्यक्रम आपके साथ-साथ चलेगा,बढेगा और आप उसको पूरा कर लेंगे।

 

प्रश्‍न – अभय

 

अभय जी कह रहे हैं कि जैसेकि सीबीएसई ने बोर्ड के सिलेबस को कम कर दिया है यानि हमारे ऊपर से पढाई का प्रेशर कमहो चुका है ऐसे में जेईई मेन्स में सिलेबस को कम करने की क्या आवश्यकता है?

 

 

 

माननीय शिक्षा मंत्री, डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’

 

आपने बिल्कुल सही पूछा है और आपका शायद तात्पर्य यह है कि यदि इधर का सिलेबस कम हो जाता है तो क्या जेईई का भी पाठ्यक्रम थोड़ा सा कम होगा? इस पर हमलोग लगातार विचार कर रहे हैं और वो जो पाठ्यक्रमकम हुआ है आगे यह कोशिश कर रहे हैं कि कितने प्रश्नों को किस ढंग से पूछा जाएं। यदि कहीं 10% तो कहीं 20 से 30 प्रतिशत जो कम हुआ है और कुछ स्थान ऐसे हैं जिन्होंने पूरा कम नही किया। कुछ बोर्ड ऐसे हैं सीबीएसई बोर्ड नहीं केवल जिन्होंने 30 प्रतिशत कम किया है। बहुत सारे राज्यों के बोर्ड अपना पाठ्यक्रम अपने ढंग से कम करने पर विचार कर रहे हैं। हम यह विचार कर रहे हैं कि किस सीमा तक प्रश्न पूछे जाएं ताकि वहां तक भी कवरहो जाये और जिसने वहां तक किया वो भी कवर हो जाए।इसका मतलब है कि यदि सौ प्रश्न आते हैं तो आपको 120 करने हैं।इन 120 प्रश्नों में वो भी कवरहो जायेंगे जिसने 20 प्रतिशत से 30 प्रतिशत कम पाठ्यक्रम पढ़ा है तो इसमें भी हम विचार कर रहे हैं। इस क्रम में जिसने पूरा पढ़ा होगा जिसे पूरे सिलेबस का यदि नॉलेज है तो वह पूरा का पूरा कर सकता है। लेकिन यदि दस बीस प्रतिशत कम वाला है और उसको पूरा का पूरा नॉलेज है तो वो भी उसको भी कवर कर सकते हैं। ऐसे कोशिश कर रहें हैं।

 

प्रश्‍न – नवीन

नवीन जी  कह रहे हैं हमस्टूडेंट्स के बीच जेईई परीक्षा के आयोजन की तारीखों को लेकर काफी कन्फ्यूजन है, भ्रम है।क्‍या इस परीक्षा के आयोजन एक फिक्स तिथि या तय तारीख नहीं दी जा सकती जिससे कि हम अपनी तैयारी पूरी कर सकते हैं।

 

माननीय शिक्षा मंत्री, डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’

 

मुझे लगता है कि इसकीहम कोशिश कर रहे हैं या आपने जो कहा है कि क्या इसकी तिथि को सुनिश्चित करना यह आपका अच्छा सुझाव है और हम यह कोशिश करेंगे कि हम जेईईकी परीक्षा का जो आयोजन हैजो तारीखें हैं उसको और कैसे करके पहले ही सुनिश्चित कर लें। लेकिन दूसरी बात जो आप जैसेबहुत सारे छात्र छात्राओं ने पूछी है और उसके संदर्भ में मेरे पास जो सूचनाएं आईं  हैं और अभी भी लगातार आ रही हैं किऐसा नहीं हो सकता है कि इसको थोड़ा सा दो बार, तीन बार कर दिया जाए। कुछने यह भी कहा है कि चार बार की जा सकता है यह परीक्षा ताकिछात्र को नए अवसर प्राप्त हो सकें। उसकी समय-समय पर परिस्थितियां बदलती रहती हैं और कठिनाइयों का दौर जारी है तो इस दिशा मेंआपके और आपके सभी साथियों के और सभी छात्र-छात्राओं के जो यह सुझाव हैं इस पर बहुत गंभीरता से विचार हमकर रहे हैं। गंभीरता से विचार कर रहे हैं कि क्या जेईईकी परीक्षा दो बार, तीन बार, यहां तक कि चार बारहो सकती है क्या? यदि संभावनाएं बनेंगी और हो सकने में कोई कठिनाई नहीं होगी तो मैं आपको आश्वस्त करना चाहता हूँ कि बहुत जल्दी ही एक बार हम इस पर डिसीजन भी लेंगे और इस पर भी कुछ सुझाव और लोगों से जो आ रहे हैं और भी हम सुझाव लेंगे। लेकिन आपका अच्छा सुझाव है, और आप स्वस्थ रहिये, जो सुझाव है आपका उसमें ताकत है।

 

प्रश्‍न – कृपा पटेल

 

कृपा जी कह रही हैं कि कृपयाहमेंजेईईके पाठ्यक्रम के बारे में बताएं हमें उस पाठ्यक्रम और परीक्षा की तिथि को जानना है जिसे हम देने जा रहे हैं ताकि हम रिवीजन कर सकें साथ ही सीबीएससी भी उसी अनुसार अपनी अभ्यास परीक्षाओं की व्यवस्था कर सकें। जेईई मेन्सऔर सीबीएसई के प्रैक्टिकल के बीच कोई संघर्ष न हो?

 

माननीय शिक्षा मंत्री, डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’

 

बहुत अच्छा सुझाव हैआपका। एक तो यह कहना है कि आपको पाठ्यक्रम सुनिश्‍चित रूप से मिल जाएं। दूसरे मेंआपका कहना है कि नीट की जो परीक्षाएं हैं आप जैसा प्रश्न बहुत सारे लोगों ने किया है। उन सभी को मैं कहना चाहता हूं कि जो आपने पाठ्यक्रम सुनिश्चित करने की बात की है कि क्या उसके पाठ्यक्रम सुनिश्चित मिल जाएगा तो उसका पाठ्यक्रम को किस तरीके से हम जैसे पिछले वर्ष कुछ बोर्डो के द्वारा जो पाठ्यक्रम में कमी कोदूर भी किया गया था तो 2021 के प्रश्नपत्रों में किस तरीके से भौतिकी, रसायन, गणित में प्रत्येक में कितने कितने अंको होंगे और कितने प्रश्न करने होंगे। यह पाठ्यक्रम  पहले निश्चित करने की हम कोशिश करेंगे। साथ में जो आपने कहा जो प्रेक्टिकल होते हैं और उस प्रैक्‍टिकलमें और जेईई की परीक्षाओं में दोनों में आपस में कोई टकराव न हो। बात तो सही है आपकी क्योंकि फिर आपको यदि बोर्ड की तिथि में जेईई की परीक्षा भी आ गई और आपका प्रैक्टिकल भी हुआ तो वह आपकी कठिनाई का कारण बन सकता है। इसलिए सीबीएसई  को हमने कहा है और सचिव,स्कूली शिक्षा ने मुझे अवगत कराया है कि सीबीएसई बोर्ड के जो चेयरमैन हैं मनोज जी ने आलरेडीइस बात को ध्यान में रखा है और आपके सीबीएसई बोर्ड की जो परीक्षाएं तथा प्रैक्टिकल हैं क्योंकि प्रैक्टिकल स्‍कूलको ही करना होता है तो उनको ये सुनिश्चित करना होगा कि जब जेईई की परीक्षाएं होंगी उन तिथियों में वो अपना प्रेक्टिकल न करें और किन्‍ही परिस्‍थतिवश ऐसा होता है कि वो तिथियां एक समय में आएंगी तो उनको अवसर दिया जाएगा। ऐसे यह निर्देश जारी भी हुए हैं लेकिन बिल्कुल सही हैं यह बातें दोनों जब एक साथ होते हैं तो बहुत कठिनाई होती है और हम यह भी कोशिश करेंगे कि जो यदि सौ प्रश्न हैंतो छात्र 75का उत्तर दे। हम प्रयास करेंगे कि कैसे करके आपको सुविधा दी जा सकती है ताकिआप सुगम तरीके से अपनी उन परीक्षाओं को अच्छे तरीके से कर सकें। यह हमारी कोशिश होगी।

 

प्रश्‍न – केशव राज

 

केशवराज जी कह रहे हैं कि नीट परीक्षा स्थगित कर दी जानी चाहिए और जुलाई के पहले सप्ताह में लिया जाना चाहिए?

 

माननीय शिक्षा मंत्री, डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’

 

नीट परीक्षा को कैंसिल करने का भी कोई विषय नहीं है और आपको तो मालूम है कि नीट की परीक्षाओं पर कितना बड़ा विवाद हो गया था, हो-हल्ला मच गया और हम लोगों ने कहाकि यह तो समझ आता है कि थोड़ा सा पीछे करले और जैसी परिस्‍थितियांबहुत खराब थी उसमें हमने एक बार दो बार और तीन बार परिवर्तन किया और जैसे मैंने अभी कहा कि हमने सेंटर बढ़ा दिए।छात्र को उसी की मनःस्थिति और उसी की परिस्‍थितिऔर उसकी इच्छा के अनुसार 99 प्रतिशत छात्रों को उनका केंद्र दिया। हमने तो ऐसी-ऐसी स्थिति में उसको कैसे करके सुविधा मिल सके और कुछ लोग मुझे कहना नहीं चाहिए लेकिन पतानहीं कौन लोग वो आन्दोलन भी कर रहे थे क्योंकि मेरे छात्र तो जब मैंने उनसेसंवाद किया तो छात्रों ने कहा हर हालत में जब अभिभावकों ने भी कहा कि हर हाल में नीट की परीक्षा होनी चाहिए, हमने बहुत तैयारी कर रखी है तब तक हम तैयारी करते रहेंगे और हम लोगों ने निश्चित किया। हां, आपकी सुरक्षा के लिए हम बहुत चौकस थे और आपके भविष्य के लिए भी उतने ही चौकस हैं। हम चाहते तो कैंसिल भी कर सकते थे। लेकिन यह देश का नुकसान होगा आपके भविष्यका, आपके जीवन का एक-एक पल हमारे देश के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। आप स्वंय अपने लिए, आपके परिवार के लिए, मेरे देश के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं और इसलिए जब हमारे देश के प्रधानमंत्री ने इस बात को कहा कि यदि चुनौतियां बड़ी होती हैं और उसका डटकर के मुकाबला होता है तो उतनी ही बड़ी सफलता भी अर्जित होती है इन कठिनाइयों का हमने मुकाबला किया और बहुत सारे लोग सुप्रीम कोर्टगए,मैंधन्यवाद देना चाहता हूं सर्वोच्च न्यायालय को जिसने कहा कि नहीं, छात्रों के भविष्य को अंधकार में नहीं धकेला जा सकता।इनकी सुरक्षा सुनिश्चित हो लेकिन परीक्षा भी सुनिश्चित हो और हमने कराई। इसलिए जो आपका सुझाव है वो समय आगे बढाने का उसके संदर्भ में पहले अभी यही बिंदु है कि आगे तिथियांपूर्व से घोषित करने की कोशिश करेंगे ताकि उन तिथियों को लेकर आपका मानस पूर्णतः तैयार रहे कि उन तिथियों में आपको परीक्षा देनी है तो उसकी तैयारी आप समय से कर सकते हैं और इसलिए चाहे नीट है, चाहे जेइेईहै आपनिश्चिंत रहिए हम पूरी तरीके से आपके साथ हैं आपके समय-समय पर सुझाव आते रहेंगे और आपके सुझावों पर क्रियान्वयन भी होगा। आपने देखा होगा कि जो भी अब बीच के समय में हम आपके साथ संवाद करते रहें हैं जो-जो भी आपसे सुझाव आया वो हमने किया जो भी व्यावहारिक हो सकता था उस सीमा पर जा कर के किया। हम आपके साथ चट्टान की तरह हमेशा खड़े रहे। पूरामंत्रालय खड़ा रहा। पूरा शिक्षा मंत्रालय एवं पूरा शिक्षा तंत्र खड़ा रहा है और मुझे इस बात की खुशी है कि पूरी ताकत के साथ अध्यापक खड़े रहे हैं और अभिभावकों और अध्यापकों के बीच बेहतर समन्वय रहा है। अन्यथा 33करोड़ छात्रों को अचानक ऑनलाइन मोड़ पर शिक्षा देना कितनामुश्किल हैकोई सोच भी नहीं सकता, कोई कल्पना भी नहीं कर सकता सपना भी नहीं देख सकता जब अचानक कोई ऐसी परिस्‍थिति आ जाए और इसबड़े परिवर्तन के साथ में आपको सुविधा मिल जाए तो आप निश्चिंत रहिएहम आपके सुझावों का समाधान करते रहेंगे।

 

प्रश्‍न–पी.एस. कोहली

 

कोहली जी कह रहे हैं कि नीटपरीक्षा के संचालन की विधि क्या होगी? क्या यह ऑनलाइन या ऑफलाइन मोड में आयोजित किया जाएगा?

 

माननीय शिक्षा मंत्री, डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’

 

मुझे लगता है कि अभी तक तो हम लोगों ने ऑफलाइन ही परीक्षाएं ली हैं और जेईई में हमने ऑनलाइन किया और जो नीट है, नीट में हमनेऑनलाइननहीं किया बल्कि ऑफलाइन किया है क्योंकि नीट की जो परीक्षा है वो जिस प्रेक्टिकल और तमाम चीजों से होकर गुजरती है उसमें बहुत समय भी लगता है और कठिनाई भी बहुत है लेकिन फिर भी जो आपने कहा है उसके बारे में एक बार हम और परामर्श करेंगे। क्या चाहते हैं लोग, आप क्या चाहते हैं? क्या ऑनलाइन की संभावना बन सकती है? और यदि यह विचार ज्यादा लोगों का आया और उसमें बहुत अच्छे तरीके से क्‍या विकल्‍प निकाला जा सकता है। वो आपके हित में ही होगा, हम आपको कहीं निराश नहीं होने देंगे तो मैं आप सबको बहुत शुभकामना देना चाहता हूं। जिस तरीके से आपनेइस समय को बचाया है मुझे इस बात को कहते हुए संतोष होता है कि जहां कोविड ने दुनिया के देशों ने एक-एक साल पीछे कर दिया है, और परीक्षाएं समय पर नहीं हो पायी,वहीं हिन्‍दुस्‍तान जैसे सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश ने अपने बच्‍चों को भी बचाया, वर्ष भी खराब नहीं होने दिया। यह हमारे देश की ताकतहै। मैं इसके लिए अपने प्रधानमंत्री जी को, गृह मंत्री एवं स्‍वास्‍थ्‍य मंत्री का आभार प्रकट करता हूँ हम उनका लगातार मार्गदर्शन ले रहे हैं और विषम परिस्‍थितियों में कैसे रास्‍ता निकल सकता है, गृह मंत्रालय और स्‍वास्‍थ्‍य मंत्रालयने  एक कदम आगे आ आकर हमारा सहयोग किया है। मैं अभिभावकों से इतना अनुरोध जरूर करना चाहूंगा कि बच्‍चों को केवल पढ़ाई पर मत रखिए आप उसको योग भी करायें तथा अन्‍य गतिविधियों में भी उसे हिस्‍सा लेने दीजिए। मैं बहुत जल्‍द ही अभिभावकों के साथ भी परामर्श करूंगा, उनकी भी जो समस्‍याएं हैं। मैं जानता हूं कि उनकी कई प्रकार की समस्‍याएं हैं और मैं अध्‍यापकगण को भी धन्‍यवाद देना चाहता हूं कि मैं जान सकताहूं कि इस देश के 1 करोड 10 लाख अध्‍यापकों ने किस तरीके से मिशन मोड में जूनूनी स्‍वभाव के साथ इस शिक्षा व्‍यवस्‍था की धुरी बनकर के काम किया है। मुझे अध्‍यापकों का भी अभिनन्‍दन करना है और इसलिए मैं अध्‍यापकों के साथ भी बहुत जल्‍द ही संवाद करूंगा। जब हम आपस में चर्चा करेंगे और सुझाव भी लेंगे। एक बार पुन:बहुत सारी शुभकामनाओं के साथ कि आप अपनेस्‍वास्‍थ्‍य का ध्‍यान रखेंगे और आप एक योद्धा की तरह यह जो कोरोना का महासंकट हैं इसका मुकाबला करेंगे। जीत हमारी होगी। मेरे प्रिय छात्र छात्राओं। मुझे आप पर गर्वहोता है और आप तो उस 21वीं सदी के स्‍वर्णिम भारत के शिल्‍पी हैं जिसके बारे में मेरेदेश के प्रधानमंत्री जी बार-बार कहते हैं कि ऐसा भारत जो सशक्‍त भारत हो उस सशक्‍त और श्रेष्‍ठ भारतकेलिए और जैसा कि अब सारीदुनिया कहने लगी है कि अब भारत विश्‍व गुरूबनेगा, ज्ञान की महाशक्‍ति बनेगा और उसके लिए यह जो नई शिक्षानीति आई है वो चाहे उच्‍च शिक्षा हो या स्‍कूली शिक्षाहो सभी में व्‍यापकपरिवर्तनों के साथ आई है। मैं एक बार फिर प्रियछात्र-छात्राओं आप सबको शुभकामनाएं देता हूं और आपके माता-पिता भी मेरे साथ जुड़े  हैं  मैं उनको भी अभिवादन  कर रहा हूं।

 

बहुत-बहुत धन्‍यवाद!

 

 

कार्यक्रम में गरिमामयी उपस्‍थिति:-

 

  1. डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’, माननीय शिक्षा मंत्री, भारत सरकार
  2. देश भर से जुड़े सभी अध्‍यापकगण, अभिभावकगण एवं छात्र-छात्राएं।

 

 

 

 

ई-सेमिनार ऑन एनईपी-2020

 

ई-सेमिनार ऑन एनईपी-2020

 

दिनांक: 03 दिसम्‍बर, 2020

 

 

माननीय शिक्षा मंत्री, डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’

 

अलीगढ़ मुस्‍लिम विश्‍वविद्यालय में राष्‍ट्रीय शिक्षा नीति-2020 परआयोजित इस सेमिनार औरपुस्‍तक के लोकार्पण के अवसर पर मुझसे जुड़े सभी अतिथिगणों, अध्‍यापगणों और छात्र-छात्राओंका मैं अभिनन्‍दन करता हूं।

इस कार्यक्रम में विशेषकर यूजीसी के यशस्‍वी अध्‍यक्ष, प्रो.डी.पी सिंह जी, जिनकी नई शिक्षा नीति के कार्यान्‍वयन में बहुत महत्‍वपूर्ण भुमिका रही है,अलीगढ़ मुस्‍लिम विश्‍वविद्यालय के कुलपति प्रो. तारिक मंसूर जी, जो इस विश्‍वविद्यालय की प्रगति की दिशा में लगातार अग्रसर है, मैं जानता हूं कि जिस तरीके वे काम कर रहे हैं कि मेरा अलीगढ़ मुस्‍लिम विश्‍वविद्यालय देश एवं दुनिया में अपनी अच्‍छी पहचान कैसेबना सकता है, यह जो उनकी चिंता है और जो सहज, सरल व्‍यवहार के धनी है तो ऐसे विश्‍वविद्यालय के यशस्‍वी कुलपति, प्रो. तारिक मंसूर जी, विज्ञान विभाग के डीन, प्रो. कांजी मजहर अली जी, प्रो. नसरीन जी, प्रो. सज्‍जाद अख्‍तर जी और प्रो. एस.के. सिंह जी,आप लोगों ने आज इस सेमिनार को एक अच्छा स्वरूप दिया है और इन्‍होंने आज एक बहुत ही सुंदर पुस्तक का भी लोकार्पण किया है। प्रोफेसर एस.के. सिंह जी को मैं बहुत लंबे समय से जानता हूं उन्‍होंने गढवाल केन्‍द्रीय विश्वविद्यालय के कुलपति के रूप में अपनी सेवाएं दी हैं और यदि उनके पीछे के समय को देखा जाए तो उनके 50 वर्षों केअद्भुत अनुभव और शिक्षा के उत्‍थान की दिशा में उनकी अनवरत साधना का हमनेदर्शन किया है उन्होंने अपने अनुभवों और शिक्षा को अपने छात्रों के बीच बांटने की कोशिश की है, अपने विजन को आगे बढ़ाने की कोशिश की है और उन्‍हींके साथ प्रो. सज्जाद जो 25 वर्षों से अध्यापन एवं शोध के क्षेत्र में कार्यरत हैं,मैं उनको भी बहुत बधाई देना चाहता हूं। प्रो.सज्जादअख्‍तरजी और प्रो.एस.के सिंह जी आपने जो यहखूबसूरत पुस्तक अपने छात्रों के लिए तैयार की है और ऐसी परिस्थितियों में तैयार की है, वह बहुत अद्भुत है और मैं समझता हूं कि यह पुस्‍तक विभिन्‍न विश्‍वविद्यालयों, उच्‍च शैक्षणिक संस्‍थानों में परमाणु भौतिकी एवं खगोल भौतिकी के क्षेत्र में छात्र-छात्राओं के लिए बहुत लाभदायक सिद्ध होगी।

मैं आप दोनों लोगों को बहुत बधाई देना चाहता हूं, शुभकामना देना चाहता हूं कि इस अभियान को आप लगातार आगे बढ़ा रहे हैं। पूरी दुनिया आज हिंदुस्तान की ओर देख रही है उसकेहर एक कदम,हर एक कार्यान्‍वयनकी ओर देख रही है और अब एक योद्धा के रूप में हम इसको चारों तरफ किस तरीके से आगे बढ़ासकते हैं,इसकी जरूरत है। अलीगढ़ मुस्‍लिम विश्‍वविद्यालयके कुलसचिवअब्‍दुल हमीद जी, सभी अध्‍यापक,प्रोफेसर,छात्र-छात्राओं, शोध छात्रों,लेखकगण और जो लोग आज इस बड़े वेबिनारमें जुड़े हैं मैं उन सभी का अभिवादन कर रहा हूं, उनको धन्यवाद देता हूं और यहांआज जो नई शिक्षा नीति की बात हो रही है और भारत की यी राष्ट्रीय शिक्षा नीति,एक तो भारत राष्‍ट्र,दूसरी इसकी शिक्षा और तीसरी उसकी नीति यदि इन तीनों चीजों की बात करें तो जब हम भारत बोलते हैं तो 130करोड़ लोगों की ताकत हमारे अंदर समाहित होती है, जब हम भारत बोलते हैं तो वो भारत जिसकागौरवशाली इतिहास रहा है, अभी सिंह साहबजिस बात को कह रहे थे उस गौरवशाली भारत का हम हिस्सा होते हैं जो पूरी दुनिया में विश्वगुरु रहाहै, जब हम भारत बोलते हैं तब हम उस भारत का प्रतिनिधित्व करते हैं जो ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ की बात करता है।

यह पूरा संसार हमारा है, मेरा परिवार है इस परिवार की रक्षा-सुरक्षा, प्रगति और सुख-शांति हम लोगों की जिम्मेदारी है। यह छोटा विजननहीं है,बहुत बड़ा विजन है जो जात-पंथ, धर्म सबको एकसमान मानकरके मानवता के शिखर को छूता है, यह जो हमारी भावना है यही मेरे देश की ताकत है। यह जो हमारी नई शिक्षा नीति आई है, यह हमारी ताकत है क्‍योंकि नेल्सन मंडेला जी ने भी कहा था कि शिक्षा एक ऐसा अस्त्र है जो दुनिया में कुछ भी कर सकता है। हमारे देश के पहले शिक्षा मंत्री मौलाना साहब ने भी इसी बात को कहा था, गांधी जी ने भी यही कहा था, विवेकानंद जीने भी यही कहा थाऔर यदि मैं दूर की बात नकरूं तो अभी कुछ वर्षपहले इस देश के पूर्व-राष्टपति भारत रत्न अब्दुल कलाम आजाद ने भी इन्हीं बातों को दोहराया था और इसलिए शिक्षा किसी व्यक्ति, परिवार,समाज औरराष्ट्र की रीढ की हड्डी होती है। यदि शिक्षा नहीं तो कुछ भी नहीं है, अंधेरा ही अंधेरा है और शिक्षा है तो उजाला ही उजाला है।

इसीलिए हमने इस बात की परिकल्पना की‘असतो मां सद्गमया’कि हम हमेशा असत्‍यसत्‍यकी ओर जाएंगे, चाहे कोई भी कुर्बानी क्यों न देनी पड़े। हम सच्चाई को नहींछोड़ेंगेऔर यह जो अंधकार है उस अंधकार से प्रकाश की ओर मनुष्‍यता की ले करके जाएंगे। इसको वही लेकर केजा सकता है जिसके अंदर ताकत है। ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’ की बात वह व्‍यक्‍ति ही कर सकता है जिसके मानस के अन्‍दर दीप आंदोलित हो रहा हो, जल रहा हो,जो स्‍वयं बुझा है, वह दूसरों को क्या रास्ता दिखा सकता है,दूसरो को क्या रोशनी दे सकता है। जिसके स्‍वयं के चेहरे पर मुस्कुराहट ना हो वह किसी को क्‍या हंसा सकता है। जो हताश है, निराश है वह दूसरे को क्या मार्ग दिखा सकता है। इसलिए जब मैं अपने भारत की बात करता हूंतो मैं उस भारत की परिकल्पना करताहूंजोभारत जो सारी धरती को अपनी मां के समान मानता है,यह है हमारा विज़न।

इसीलिए जब यह नई शिक्षा नीति आई है वह तमाम व्यापक परिवर्तनों एवं तमाम सुधारों के साथ आई है, मुझे इस बात कीखुशी है। मेरे से पहले वक्ताओं ने सभी बातें बोलीं हैं,मुझे खुशी है और मुझे तो केवल आपको शुभकामना और बधाई देनी है आप तो योद्धा हैं। नीतितोहमेशा बहुत अच्छी बनती है लेकिन नीति को जमीन पर क्रियान्वित करने का जो माद्दाहोता है, वो माद्दा आप लोगों के अन्‍दर होता है।जब तक नीतियों को जमीन पर क्रियान्‍वितकरने वाले लोग सजग नहीं रहेंगे, प्रखर नहीं रहेंगे, मिशन मोड में नहीं आएंगे तब तक उस नीति का फल नहीं मिलता, क्‍योंकि नीतियां तो ढेर सारी बनती हैं, लेकिन उनको क्रियान्‍वित करने वाला होना चाहिए उसके लिए आप लोगों को लीडरशिप लेनी पड़ेगी।

कुछ लोग सपने तो बहुत अच्छे-अच्छे देखते हैं लेकिन उनको क्रियान्‍वित नहीं कर पाते हैं,हर व्यक्ति बहुत अच्छे सपने देखता है लेकिन उन सपनों को साकार करने के लिए जो अपने जीवन को खपाता है,मेहनत करता है उन्‍हीं के सपने साकार होते हैं और इसीलिए मुझे याद है कि कलाम साहब जब मेरी एक पुस्तक का लोकार्पण कर रहे थे,तो उन्‍होंने मुझसे कहा कि मैंने सुना है वर्ष 1983 से आपकेगीत आकाशवाणी पर आते हैं क्‍या वो सब एक जगह संग्रहित हो सकते हैं। उनके कहने पर मैंने, उनकी प्रेरणा से ‘ए वतन तेरे लिए’ जो मेरे कुछ बिखरे हुए गीत थे मैंने उनको एक जगह संग्रहित किया, जबउन्होंने उसका लोकार्पण किया। आप समझ सकते हैं कि वो कितने  बड़े देशभक्‍त थे, उनके अन्‍दर भारत कितना समाया हुआ था, उसमें एक छोटी सी कविता थी जो उन्होंने अपने यहां टाइप करके लगाई हुई थी:-

 

‘‘अभी भी है जंग जारी वेदना सोई नहीं है,

मनुजता होगी धरा पर संवेदना खोईनही है,

किया है बलिदान जीवन, निर्बलता ढोईनहीं है

कह रहा हूं यह वतन तुझसे बड़ा कोई नहीं है’’

 

यह जो अंतिमपंक्ति है उसको बोलते-बोलते उनकी आंखों से आंसू छलक आए थे। उस दिन मैंने उस विराट व्यक्तित्व के दर्शन किए और मुझे लगा कि देशभक्ति का जो अथाह सागर अब्दुल कलाम साहब के मन में हिलोरे ले रहा है यही मेरी देश की ताकत हैं। यही मेरा वहभारत हैजो विश्‍व गुरू रहा है। हम लोग पूरी दुनिया को अपना परिवार समझते हैं जो ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः, सर्वे सन्‍तु निरामया:’ की बात करता है किधरती पर प्रत्‍येक व्यक्ति सुखी होना चाहिए कोई भी व्‍यक्‍ति दु:खी नहो। नई शिक्षा नीति भी उसी से अनुप्राणित है। इसलिए हमने कहा कि यह नीति भारत केंद्रित होगी,जो भारत के लोगों को समझ में आ सके।

वह भारत जो ज्ञान, विज्ञान, अनुसंधान के क्षेत्र में शिखर पर रहा है, तक्षशिला और नालंदा जैसे विश्वविद्यालय इस देश के अंदर थे।जहां पूरी दुनिया के लोग ज्ञान, विज्ञान, अनुसंधान और नवाचार के लिए शिक्षा ग्रहण करने के लिए आते थे, तब दुनिया में कौन सा विश्वविद्यालय था और इसीलिए मैं यह समझता हूं कि सुश्रुत, शल्‍य चिकित्‍सा काजनक इस धरती पर पैदा हुआ,मैंमेडिकल कॉलेजों के छात्रों का आह्वान करना चाहता हूं कि सुश्रुत को पढ़ो, उस पर शोध और अनुसंधान करो।

चाहे आयु के विज्ञान आयुर्वेद के जनक हो, रसायनशास्‍त्री नागार्जुन हो, पाणिनी हो, भास्‍कराचार्य हो, महान गणितज्ञ आर्यभट्ट हो सभी इसी धरती पर ही तो पैदा हुए। मेरे देश के प्रधानमंत्री जी ने कहा किआत्‍मनिर्भरभारत की जरूरत है और जो21वीं सदी का स्‍वर्णिम भारत है जो5 ट्रिलियनकी आर्थिकी के साथ सारे विश्व में अपना वैभव विकसित करेगा, जब हम उसभारत की आत्मनिर्भरता की बात करते हैं तो कौटिल्य के अर्थशास्त्र के सामने कौन सा अर्थशास्त्र टिकता है और इसीलिए मैं सोचता हूं भाषाविज्ञान की दिशा पाणिनीकेभाषा विज्ञान के सामने दूर-दूर तक कोई नहीं टिकता है,यही हमारी ताकत है।

यह नयी शिक्षा नीति उस ताकत को समन्वित करके नवाचार, शोध और अनुसंधान के साथ पूरी दुनिया के शिखर पर पहुँचने की तैयारी है। यहनई शिक्षा नीति अंक ज्ञान और अक्षर ज्ञान और केवल डिग्रीदेने की शिक्षा नीतिनहीं है और इसलिए आपने देखा होगा किहमने इसको मातृभाषा से शुरू कियाहै, तीन वर्ष के बच्चे से शुरू कियाहै। हमने अब10+2को समाप्‍त कर दिया उसको5+3+3+4 और 5को भी 3+2में बांट दिया क्‍योंकि हमारे वैज्ञानिकबतातेहैं कि तीन से छ: वर्ष के बच्‍चे में  मस्तिष्क कासर्वाधिक विकास होता है और इसीलिए हम आंगनबाड़ी से शुरू करके उसका आगे बढ़ाना चाहते हैं और यह शायद दुनिया का पहला देश होगा जो स्कूली शिक्षा सेआर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को पढ़ायेगा और हम इसको वोकेशनल स्ट्रीम के साथ, इंटर्नशिप के साथ आगे बढ़ाएंगे।

अब हम बच्चे को रिपोर्ट कार्ड नहींदेंगे बल्‍किप्रोग्रेस कार्ड देंगे कि वह क्‍या प्रगति कर रहा है। अब हम उसका360 डिग्री होलिस्टिक मूल्यांकन करेंगे,बच्‍चा स्‍वयं भी अपना मूल्यांकन करेगा, उसका अध्यापक भीमूल्यांकन करेगा, उसका अभिभावक भीमूल्‍यांकन करेगा और उसका साथी भी उसका मूल्यांकन कर सकेगा।इसके साथ ही यदि आप उच्च शिक्षा में देखेंगे तो मेरे युवाओं  के लिए पूरामैदान खाली है,आप दौड़ो जहां तक आप दौड़ सकते हो,अबविषय की भी कोई बाध्यता नहीं है,आपजो चाहे विषय ले सकते हो, लेकिन उस विषय को लो जिसमें तुम छलांग मार सकते हो, शिखर पर पहुंच सकते हो।

यदि आप देखेंगे  तो हमारे देश के अंदर शिक्षा का कितना बड़ा व्‍यापहै यहां एक हजार से भीअधिक विश्वविद्यालय हैं, पैंतालीस हजार से भीअधिक डिग्री कॉलेज है,पंद्रह लाख से भी अधिकस्कूल है, एक करोड़ दस लाख से भी अधिक अध्यापक हैं और अमेरिका की कुल जितनी आबादी नहीं होगी उससे भी अधिक33 करोड़ यहांछात्र छात्राएं हैं, यह इस देश का वैभव है।यहदुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है और इसीलिए जो हमारा अतीत था, जो हम वर्तमान में कर रहे हैं एवं जो हम भविष्‍य में करना चाहते हैं हम इन तीनों चीजों को जोड़ रहे हैं क्योंकि जब हम पीछे मुड़कर देखते हैं तो मैं उन पर टिप्पणी नहीं करना चाहता।आप भीसब प्रोफेसरगण हैं, अध्यापकगण हैं,मैंने भी एक सामान्य अध्यापक से लेकर के शिक्षा मंत्री तक की यात्रा तय की है। मैं यहसमझ सकता हूं कि एक अध्यापक की क्या भूमिका हो सकती है और जो अंतिम छोर में बैठा रहनेवाला छात्र है, उसकी क्या अभिलाषाहै,वहदेश इस विकास की दौड़ में कहांजा रहा है और जो देश दुनिया के शिखर पररहा हो वह इस समय कहां पर खड़ा है।

इसलिए हमारे सामने चुनौतियां हैं लेकिन विवेकानंद जी ने कहा था कि जितनी बड़ी चुनौती होती है अगर उनका ताकत के साथ मुकाबला होता है तो उतनी हीबड़ी सफलताएं भीमिलतीहैं। हमारे पूर्व-राष्‍ट्रपति भारत रत्‍न, डॉ.अब्दुल कलाम साहब ने कहा था किसपने वो होते हैं जो सोने न दे।ऐसेसपने बुनो। लेकिन ऐसे सपने जो सोने न दे जब तक कि आपउनको क्रियान्वित नहीं कर देते। यह शिक्षा नीति उन्हीं के सपनों के आधार पर आई है।इसकोविजन के साथ, मिशन के साथ करना है। यह शिक्षा नीति सामान्य नहीं है। यह नेशनल भी है, इंटरनेशनल भी है, यहइंटरेक्‍टिवभी है, इम्पैक्टफुल भी है,इनोवेटिवभी है और यहइक्विटी,क्वालिटी और एक्सेस की आधारशिला पर खड़ी होती है।हम इसमें कंटेंट भी पैदा करेंगें और उसको टैलेंट केसाथ भीजोड़ेगें और उसका पेटेंट भी करायेंगे।

आज भी देश के अन्‍दर छात्रों में केवल पैकेज की होड़लगीहै।इस पैकेज की होड़ को खत्म करके पेटेंट के होड़को तैयार करना होगा तभी देश प्रगति के पथ पर आगे बढ़ सकता है और वो दिन दूर नहीं है। अभीकुछ दिन पूर्व कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय ने भी हमारी नई शिक्षा नीति की तारीफ की है, हमारेदेश के अन्‍दर उत्साह का वातावरण है, वहीं पूरी दुनिया भी इस नई शिक्षा नीति के साथ जुड़ना चाहती है।

इस शिक्षा नीति के अंतर्गत यदि कोई 4 वर्ष का कोर्स है और यदि कोई छात्र दो साल में परिस्‍थितिवशछोड़के जा रहा है  तो पहले उसका पैसा एवं वर्ष खराब हो जाते थे लेकिन अब उसकोनिराश नहीं होना पड़ेगा,यदि आप परिस्‍थितिवश एक वर्षमें छोड़कर जा रहे हैं तो उसको सर्टिफिकेटदेंगे,दो साल में छोड़ कर जा रहा है तो डिप्लोमा देगें, तीन साल में छोड़ेकर जा रहा है तो उसकोडिग्री देंगे लेकिन यदि फिर वह लौट कर अपने भविष्य को संवारना चाहता है तो फिरवह जहां से उसने छोड़ा था वहीं से शुरू कर सकता है। उसके लिए हम एक ऐसा क्रेडिट बैंक बनायेंगे जहां उसके सारे क्रेडिट जमा होगा इसलिए उसके लिए आगे बहुत आपार संभावनाएं है।वह कहां जाना चाहता है, शोध और अनुसंधान के क्षेत्र में जाना चाहता है।जहां हमने ‘नेशनलरिसर्च फाउंडेशन’ की स्थापना की है,जो कि प्रधानमंत्री जी के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार की अध्यक्षता में होगी जो शोध की संस्कृति को तेजी से आगे बढ़ाएगा। वहींहमनेतकनीकी के क्षेत्र में हमतकनीकी को नीचे स्‍तर तक, अंतिम छोर के व्यक्ति तक कैसे पहुंचा सकते हैं इसके लिए ‘नेशनल एजूकेशन टेक्निकली फोरम’का भी गठन कर रहे हैं।

जिससे तकनीकी दृष्टि से भी देश समृद्ध हो सके। मैं जब अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय की समीक्षा करता हूं तो मैं देखता हूं किस विभाग में क्या-क्या हो रहा है, मैं चुपचाप बैठने वाले लोगों में नहीं रहा हूं।मैं हर विभाग के बारे में बता सकता हूं कि उसने क्‍या-क्‍या किया है, क्‍या कर रहा है और भविष्‍य में उसके क्‍या प्‍लान है तो मुझे खुशी होती।

आज जिस तरीके से मुस्लिम यूनिवर्सिटी अलीगढ़आगे बढ़ रही है,इसके फैकल्टी रात-दिन खपकर काम कर रही है तोमुझे भरोसा है कि ये  भविष्‍य में अपना अलग स्थान बनाएगा।अभीहमने ‘स्टेइन इंडिया’कीभी बात कीक्‍योंकि हमारे देश से 7-8 लाख छात्र प्रतिवर्ष विदेशों में पढ़ने के लिए जा रहे हैं। हमारे देश का पैसा और प्रतिभा दोनों बाहर चली जाती हैं तो वापस वह हमारे देश में नहीं आती है। इसलिए हमने‘स्‍टे इन इंडिया’ किया हमने  छात्रों को भरोसा दिलाया कि हमारे आईआईटी, एनआईटी, आईएसर, केन्‍द्रीय विश्‍वविद्यालयों में योग्‍यता है, क्षमता है आपको  बाहर जाने  की जरूरत नहीं है,अब लोगों की समझ में आ गया है। मुझे इस बात की खुशी है कि पीछे के समय जब हमने जेईई परीक्षाएं करवाई।

मुझे इस बात की भी खुशी है कि दो लाख से भी अधिक छात्रों ने जोछात्रोंविदेश में जा रहे थेवेजेईई और नीट की परीक्षाओं में सम्‍मिलित हुए। हम ‘स्‍टे इन इंडिया’ के तहत दुनिया के शीर्ष सौविश्वविद्यालयों को अपनी धरती पर आमंत्रित कर रहे हैं आपकोकहीं जाने की जरूरत नहीं है और यहां के जो शीर्ष विश्वविद्यालय हैं वेभीबाहर जा रहे हैं। ये आदान-प्रदान हम करेंगे।हमारे संस्‍थान अब एनआईआरएफ ही नहीं,अटल रैंकिंग ही नहीं बल्‍किक्‍यूएस रैंकिंग औरटाईम्‍स रैंकिंगमेंभीछलांग मार  रहे हैं क्योंकि हममें सामर्थ्य है।जब देश और दुनिया कोविडकी माहमारी के संकट से गुजर रही थी तोहमारेदेश के प्रधानमंत्री जी ने कहा है कि नौजवानों आगे आओ,आपक्या कर सकते हैं मैं इस बात को लेकर बहुतखुशहूं कि तब मेरे छात्रों ने, मेरे अध्यापकों ने प्रयोगशाला में जाकर एक से एक नया अनुसंधान किये।

हमने मास्‍क तैयार किए, हमने ड्रोन तैयार किए, हमने सस्‍ते एवं टिकाऊ वेंटिलेटर तैयार किए, टेस्टिंग किट तैयार किए जो पहले देश में कभी बनता ही नहींथा।यदि आप युक्ति पोर्टल पर जाएंगे। आपको लगेगा कि इस कोरोना काल में भी इस देश के नौजवानों, अध्यापकों और छात्र-छात्राओंबहुत सारे शोध एवं अनुसंधान किये हैं,यह हमारी ताकत है।

दुनिया ने हमारी ताकत को देखा है। हम को इस ताकत को बचाकररखने की जरूरत है और इसलिए मुझे लगता है जो यह नयी शिक्षा नीति अभी आई है जिस पर हम लोग लगातार परामर्श कर रहे  है,आपने टास्कफोर्स बनाई होगी मुझे इस बात की भी खुशी है। देश के सब शिक्षा मंत्रियों से जब मेरी बात होती है तो प्रदेशों मेंहोड़ लगी हुई हैकि हम शिक्षा नीति को सबसे पहले अपने प्रदेश में क्रियान्वित कराएंगे और मुझे इस बात की आशा है, मुझे संतोष भी है कि वक्त तेजी से बदल रहा है, हमने विभिन्न क्षेत्रों में क्रियान्‍वयनशुरू कर दिया है।

कुछ लोग कहते हैं कि हमको ग्‍लोबल पर जाना है तो अंग्रेजी सीखनी पड़ेगी मैंने कहा  हम अंग्रेजी का विरोध नहीं  करते, अंग्रेजी ही नहीं और दो-तीन भाषाएं सीखों,लेकिन अपनी भाषाओं को मत छोड़ो। हमारेसंविधान ने हमें 22 खुबसूरत भाषाएं दी हैं हिन्दी, तमिल, तेलगू, मलयालम, कन्नड़, गुजराती, मराठी, बंगाली,ओडिया, असमिया, उर्दू,यहहमारी 22 खूबसूरत भाषाएँ हैं इनमेंअपना ज्ञान है,जीवंता है,तोक्यों हम अपनी भाषाओं को खोयंगे।हमने अंग्रेजी का कभी विरोध नहीं किया लेकिन अंग्रेजी इस देश की भाषा नहीं है। हमें अंग्रेजीक्या पूरी दुनिया की भाषाओं को पढना है लेकिन मैं उन लोगों से पूछना चाहता हूं।

क्या जो देश नीचे से लेकर उच्च शिक्षा तकअपनी मातृभाषा में शिक्षा देते हैं वो किसी से पीछे हैं, क्‍या जापान, फ्रांस, इंग्लैंड और दुनिया के तमाम जो विकसित देश हैं वो अपनी मातृभाषा में शिक्षा देते हैं क्‍या वो किसी से पीछे हैं,फिर ऐसे तर्क दे करके देश को कमजोर करने की बातक्यों की जाती हैं। इसलिए देश के प्रधानमंत्री जीने कहा कि अब व्‍यक्‍ति अपनी मातृभाषा में डॉक्टर भी बन सकता है औरइंजीनियरभी बन सकता है क्‍योंकि  जो बच्‍चा जिस भाषा को बोलता है यदि उसको उसकी भाषा में शिक्षा दी जाए तो वह उसमें ज्यादा अभिव्यक्त कर सकता है। अभी जब मैं कल बैठककर रहा था तो मेरे आईआईटी केसारे लोग जुड़े हुए थे, तो आईआईटी मद्रास के निदेशक ने कहा कि सर हम जैसे तमिल बच्‍चाहै तो यदि उसे उसी कीभाषा पढ़ाते हैं तो तुरंत समझजाताहै और अंग्रेजी में पढ़ाते हैं तो समझ में नहीं आपातातो अब भाषा का कोई मुद्दा नहीं होगा, उसी की भाषा में प्रवेश भी होगा, पढ़ाई  भी होगी, परीक्षा भी होगी।

इसलिए जो देश के प्रधानमंत्री जी ने कहा कि21वीं सदी का स्वर्णिम भारत चाहिए जो भारतसुन्‍दर हो,स्वस्थ हो,सशक्त हो,समृद्ध हो,आत्मनिर्भर हो,श्रेष्ठ हो और एक भारत हो,ऐसा भारत जिसका रास्ता ‘मेक इन इंडिया’,‘डिजिटल इंडिया’,‘स्किल इंडिया’,‘स्टार्टअप इंडिया’ और ‘स्टैंडअप इंडिया’ से होकर गुजरता हो और उस भारत की आधारशिला यह नई शिक्षा नीति है और मुझे भरोसा है कि हम एक मिशन मोड में इसको करेंगे। यह शिक्षा नीति दुनिया के सबसे बड़े परामर्श के बाद आई है इस नई शिक्षा नीति में 1000 विश्‍वविद्यालय के कुलपतियों से, 45 हजार डिग्री कॉलेज के प्रिंसिपलगणों से, 33 करोड़ छात्रों से, 33 करोड़ छात्र-छात्राओं के माता-पिता से  विचार-विमर्श किया गया है। इसके साथ ही साथ ग्रामप्रधान से लेकर प्रधानमंत्री तक, गांव से ले करके संसद तकहरक्षेत्र में हमने चर्चा की है और उसके बाद भी इसको पब्लिक डोमेन में डालने के बादसवा दो लाख सुझाव आए और एक-एक सुझाव का विश्लेषण करने के बाद जो अमृत निकाला है,जोशक्ति का पुंज निकला है वह यह नई शिक्षा नीति है।

यहीं शक्ति का पुंज पूरे विश्व में भारत को ज्ञान की महाशक्ति के रूप में स्थापित करेगा। मेरा भरोसा है क्योंकि मैं देख रहा हूं मेरे अध्यापकों के मन के अंदर भी छटपटाहट है,इस कोविड के संकट के समय जब  पूरी दुनिया घरों में कैद हो गई हो तब भारत जैसा देश अपने 33 करोड़ छात्र-छात्राओं को रातों-रातऑनलाइन पर लाता है कोई सोच भी नहीं सकता है।

हमने समय पर परीक्षाएं करवाई,हमने अपने बच्‍चों का वर्ष भी खराब नहीं होने दिया, उसको अवसाद में नहीं जाने दिया। हम पूरी ताकत के साथ अपने शिक्षा परिवार को मिशन मोड में ले करके उस अभियान कोआगे बढ़ायेंगे।मुझे भरोसा है कि इसके क्रियान्वयन में आप योद्धा की भूमिकानिभाएंगे। आजराष्ट्रीय शिक्षा नीति पर जो यहसेमिनार हो रहा है या जो विचार-विमर्श हो रहा है और जिस पुस्तकका लोकापर्ण हुआ है मैं सिंह साहब जी को बधाई देना चाहता हूं कि बहुत खूबसूरत पुस्तक इन्होंने बनाई है और इसका लाभ देश ही नहीं पूरी दुनिया के छात्र उठा सकेंगे। एक बार फिर मैंकुलपति,प्रो. तारिक मंसूर जी को शुभकामना देना चाहता हूंकि आपके नेतृत्व में यह विश्वविद्यालय प्रगति के पथ पर आगे बढ़े। मैं आप सबका अभिनन्‍दन एवं स्‍वागत करता हूं।

 

बहुत-बहुत धन्‍यवाद।!

 

 

कार्यक्रम में गरिमामयी उपस्‍थिति:-

 

  1. डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक’, माननीय शिक्षा मंत्री, भारत सरकार
  2. प्रो. तारिक मंसूर, कुलपति, अलीगढ़ मुस्‍लिम विश्‍वविद्यालय, अलीगढ़
  3. प्रो. कांजी मजहर अली, डीन विज्ञान, विभाग, अलीगढ़ मुस्‍लिम विश्‍वविद्यालय, अलीगढ़
  4. प्रो. नसरीन, अलीगढ़ मुस्‍लिम विश्‍वविद्यालय, अलीगढ़
  5. प्रो. सज्‍जाद अख्‍तर, अलीगढ़ मुस्‍लिम विश्‍वविद्यालय, अलीगढ़
  6. श्री अब्‍दुल हमीद, कुलसचिव,अलीगढ़ मुस्‍लिम विश्‍वविद्यालय, अलीगढ़

 

 

श्री अरबिंदो सोसाइटी और एचडीएफसी बैंक द्वारा आयोजित ‘शून्‍य से सशक्‍तिकरण’विषयपर राष्‍ट्रीय सम्‍मेलन  

श्री अरबिंदो सोसाइटी और एचडीएफसी बैंक द्वारा आयोजित ‘शून्‍य से सशक्‍तिकरण’विषयपर राष्‍ट्रीय सम्‍मेलन

 

दिनांक: 24 नवम्‍बर, 2020

 

 

माननीय शिक्षा मंत्री, डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’

 

आज के इस महत्वपूर्ण कार्यक्रम में उपस्‍थितअरबिंदो सोसाइटी के कार्यकारी सदस्य और हमारे सबके अग्रज और जिनका मार्गदर्शन बहुत लंबे समय से अरबिंदोसोसायटी को मिलरहाहै आदरणीय विजय पोद्दार जी,सीबीएसई बोर्ड के अध्यक्ष श्री मनोज आहूजा जी, हमारे साथ आज कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी के ग्लोबल एजुकेशन के मैनेजिंग डायरेक्टरश्री रॉडस्‍मिथ जी और एचडीएफसी बैंक बिजनेस फायनेंस की ग्रुप हैडश्रीमतीआशिमा भट्ट जी, सुश्री नुसरत पठान जी, सीएसआर एचडीएफसी बैंक और मैनेजिंग डायरेक्टर कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी श्री गोबिन्द तलियन वेदू जी,श्रीसंभ्रांत जी और देश तथा दुनिया से जुड़े अरबिंदो सोसाइटी के सभी सदस्यगण, कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के सभी अधिकारी वर्ग, प्रोफेसर और छात्र, साथ हीजुड़े देश के सभी अधिकारी वर्ग और सभी शिक्षाधिकारी, सभी अध्यापकगण और मेरेछात्र-छात्राओं!यहहम लोगों के लिए बहुत गौरव एवंबहुतआनंदित करने वाले पल हैं जहांहमशिक्षा पर विचार-विमर्श कर रहे हैं क्‍योंकिशिक्षा ही वह चीज है जिसने हमें यहां तक लाने का काम किया है और तभी आज हम सोच करके इस दिशा में अगला कदम बढ़ा पा रहे हैं। मैं सौभाग्यशाली हूं कि महर्षि अरविन्द का नाम लेते ही एक ऐसी ऊर्जा का संचार होता है जो मन में एक विश्‍व मानव के रूप में प्रतिपादित जैसा होता है।महर्षि अरविन्द ने जिस शिक्षा के बारे में बोला था, जिस व्यक्ति के बारे में बोला था, जिस विचार के बारे में बोला था, जिन परिस्थितियों और स्थितियों का व्याख्यान किया था वो यही था कि जैसा रॉड स्‍मिथ जीने कहाहै कि भारत ने पूरी दुनिया को बहुत कुछ दिया है और निश्चितरूप से तक्षशिला, नालंदा और विक्रमशिला जैसे विश्वविद्यालय इस देश के अंदर थे। जहां ‘‘एतद् देश प्रसूतस्य शकासाद् अग्रजन्मन :, स्वं-स्वं चरित्रं शिक्षरेन् पृथ्वियां सर्व मानव:’’पूरी दुनिया के लोग ज्ञान, विज्ञान, अनुसंधान, तकनीकी, जीवन मूल्य और विविध प्रकार की शिक्षाओं को प्राप्त करने के लिए इस धरती पर आते थे। वही हिन्दुस्तान विश्वगुरु के रूप में भी रहा है औरउसहिन्दुस्तान ने पूरी दुनिया को अपना परिवार माना है। ‘‘अयं निजः परो वेति गणना लघु चेतसाम् | उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम्’’पूरी वसुधा को पूरी दुनिया को अपना परिवार मानने वाला यह हिन्दुस्तान है। महर्षी अरविन्द की परिकल्पना थीकि सारे विश्व में शिक्षा का इतना उत्थान हो कि मनुष्‍य जो ईश्वर की सबसे सुंदरतम कृति है, वहआनंदित हो।इस पृथ्‍वी पर क्लेश न रहे।‘‘असतो मा सद्गमया’’असतकी कोई गुंजाइश न हो,‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’ अंधकार कहींनदिखे, अंधकार तभी मिटेगाजब ज्ञान की रोशनी होगी और ज्ञान की रोशनी के बाद जो उजाला होगा उसमें पूरी दुनिया प्रतिबिम्बित होगी। मनुष्य सुख-शांति और समृद्धि केशिखर तक पहुंचेगाऔर इसीलिए आज जो काम हो रहा है अरविन्द सोसायटी, एचडीएफसी बैंक औरकैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के द्वारा उसके लिए मैं आप तीनों संस्‍थानों को बहुत-बहुत बधाई देता हूं।जहां तक भारत की शिक्षा नीति को उसके आधार स्तर पर खड़ा करने की बात की है और वहीं कैम्ब्रिज जैसे विश्वविद्यालय जो आठ सौ वर्ष पुराना है और जो दुनिया को काफी कुछ देने की क्षमता रखता है उसको भी हिन्दुस्तान की इस नई शिक्षा नीति से जोड़ा है और इधरएचडीएफसी बैंक ने आपने सहयोग से इस मिशन को आगे ले जाने का मन बनाया है। इसलिए मेरे जैसे व्यक्ति के लिए आज का क्षण बहुत गौरवान्वित करने वाला क्षण है और मैं आभार प्रकट करना चाहता हूं। आज कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय ने मुझको नई शिक्षा नीति मेंव्‍यापकपरामर्श और नवाचार करने के लिए जो सम्मान दिया है तथारॉड स्‍मिथ कैंब्रिज आपने आज जो शिक्षा नीति की उत्‍कृष्‍टता की जो घोषणा की है जो मुझको सम्‍मानदिया है। उसके प्रति मैं आपका बहुत आभार प्रकट कर रहा हूं और मैं आपको भरोसा दिलाना चाहता हूं कि जो आपके मन में यह विचार आया है किहां,हिन्दुस्तान ने दुनिया को बहुत कुछ दिया है और जो हम यह नई शिक्षा नीति ले करके आए हैं उस नई शिक्षा नीति में वो सारी चीजें हैं जिसकी अपेक्षा आज पूरी दुनिया हिंदुस्तान से करती है। मुझे बहुत खुशी है कि आज अरविन्द सोसाइटी ने शिक्षा के अधिकारियों को और शिक्षकों को जो सम्मान दिया है वो अपने आप मेंअद्भुत है। मुझे इस बात का गौरव है कि हिन्दुस्तान के शिक्षा के अधिकारियों ने और शिक्षकों ने इस नई शिक्षा नीति के उदय में अहम भूमिका निभाई है जब इस कोरोना काल में पूरी दुनिया संकट से हो करके गुजर रही है ऐसे में उन्‍होंने योद्धा की भूमिका निभाई है। मैं इस देश का शिक्षा मंत्री होने के नाते इस परिवार के इन सब लोगों का अभिनंदन करना चाहता हूँ। मैं आभार प्रकट करना चाहता हूं और मुझे खुशी है कि उनकी पहचान अरविन्द सोसायटी ने की है। मुझे याद आता है कि संभ्रांत जी जब पीछे एक साल पहले हम हजारों शिक्षकों के साथ मिले थे तब भी मुझे बहुत खुशी का अनुभव हुआ था और शून्‍यइनवेस्टमेंट पर व्‍यापक परामर्श तथानवाचार हुआ था।बिना किसी खर्च के जो काम कोई सरकारहजारों करोड़ रुपया खर्च करके नहीं कर सकती है वो काम अरविन्द सोसायटी ने मेरे विलक्षण प्रतिभा के धनी अध्यापकों के साथ परामर्श करके किया है। यहछोटी बात नहीं है मेरे लिए गौरव की बात है। मैं तो एक अध्यापक हूं। मैंने सामान्य शिक्षक से लेकर शिक्षा मंत्री तक की यात्रा तय की है इसलिए मैं समझ सकता हूं कि एक अध्यापक की कितनी महत्वपूर्ण भूमिका होती है। एक अध्यापक कितना प्रखर होता है, कितना निष्ठावान होता है कि एकधुरी बन कर के पीढ़ी को खड़ा करने के लिए अपना तिल-तिल खपाता है और यही हिंदुस्तान की परंपरा भी रही है। हमने कहा गुरुर ब्रह्मा, गुरुर विष्णु,गुरु देवो महेश्‍वरा,गुरु साक्षात् पर ब्रह्म,तस्‍मैं श्री गुरूवे नम: हमने ईश्वर के रूप में हमेशा अपने अध्यापक को देखा है। ‘गुरु गोविन्द दोऊ खड़े काकेलागो पाय बलिहारी गुरु आपने गोविन्द दियो बताए।‘ यदि ईश्वर औरमेरे गुरु सामने हों तो किसी को कोई संकोच नहीं कि सबसे पहले अभिवादनगुरु के चरणों में करना है क्योंकि गुरु ने ही गोबिंद तक पहुंचायाहै। यहहमारी धारणा रही है, यह हमारा विचार रहा है, यह हमारा आचार रहा है और इसीलिए हिन्दुस्तान का जो गुरु था वह पूरे विश्व में गया है। आज वही अभियान फिर शुरू हो रहा है। आज हम ‘स्पार्क’ के तहत दुनिया के शीर्ष 127विश्वविद्यालयों के साथ परामर्श कर रहे हैं, शोध और अनुसंधान कर रहे हैं वहीं जो यह नई शिक्षा नीति है और जो आज अध्यापक और शिक्षा अधिकारी यहां पर अभी अभिनन्‍दितहुए हैं इनके बलबूते पर हम उस कल्पना को साकार करेंगे। मैं सबसे पहले तो जिन 40उच्च शिक्षा अधिकारियों को यहां सम्मान मिला है,उनकाअभिनन्‍दनकरता हूं। मैं समझ सकता हूंक्‍योंकि मैंहर प्रदेश के शिक्षा अधिकारियों के सीधे टच में रहता हूं। मैं विश्लेषण भी करता रहता हूं कि कौन से प्रदेश का, कौन सा अधिकारी, कहां तक काम कर पा रहा है और यह मैं बहुत अकलुषित तरीके से विश्लेषण करता हूं। मैं इन 40 अधिकारियों को जिसमें सिक्किम के मुख्य सचिव जो स्वयं शिक्षा सचिव भी हैं और बहुत सारे प्रदेशों के मुख्य सचिव, शिक्षा सचिव प्रमुख सचिव जिनमेंकुछ निदेशक के रूप में हैं आईएएस अधिकारी हैं उन सभी शिक्षा अधिकारियों का मैं अभिनन्‍दनकरता हूं और इन चालीस लोगोंकी जो ठोस टीम बनी है वह हमारे मिशन को बहुत आगे तक लेकर जाएगी। यह देश 130 करोड़ लोगों का देश है। यह दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है और इस देश में एक हजार से अधिक विश्वविद्यालय हैं,45 हजार से अधिक डिग्री कॉलेज हैं,15 लाख से अधिक केस्कूल हैं,1 करोड़ 9 लाख से अधिक अध्यापक हैं, और मुझे लगता है कि जितनी कुल अमेरिका की आबादी नहीं है उससे भी अधिक यहां33 करोड़ छात्र छात्राएं हैं। यहवैभवहै, इस देश का और उनमें से इन40 अधिकारियों का चयन होना और 26 अध्यापकों का चयन होना। जोआज इतने बड़े प्लेटफार्म पर सम्मानित हो रहे हैं, यह सामान्य सम्मान नहीं है, यह आपका अंतर्राष्ट्रीय सम्मान है और यह शिक्षा नीति में आपको अंर्तराष्‍ट्रीय स्तर पर भी गौरवान्वित करेगी ऐसा मेरा भरोसा है। इसलिए मैं आपके प्रदेश को, आपके विभाग को, आपके परिवार को,आपकेअध्यापकगण को और आपके संपूर्ण शिक्षा विभाग को बधाई देना चाहता हूं और जिन प्रदेशों के अधिकारी और अध्यापक आज पुरस्‍कृतहुएहैं, सम्मानित किए गए हैं, मैं उनके मुख्यमंत्री और उनके शिक्षामंत्री जी को भी विशेष करके बधाई दूंगा। मैं समझ सकता हूं कि इस जुनून के मोडमें काम करना कोई साधारण बात नहीं है। इस बीचकोविडकी महामारी आयीतो मैं समझ सकता हूं कि इन33 करोड़ छात्र-छात्राओं को एक साथ ऑनलाइन पर लाना कोई सहज काम नहीं था। यह अपने आप में एक अद्भुत आश्चर्य ही है कि हम रातों-रात ऑनलाइन माध्‍यम लायेऔर आपसमझ सकते हैं कि यदि मेरे यह छात्र छात्राएं ऑनलाइन पर नहीं आतेऔर यदि उन33 करोड़ छात्रों के माता पिता को भीजोड़ेंगे तो यह आंकड़ा सौ करोड़ को पार करता है और जो मेरेएक करोड़ दस लाख अध्यापक हैं इनकी क्या मन:स्थिति होती किस परिस्थिति से हो करके गुजरते, कोई कल्पना नहीं कर सकता।दो दिन, चार दिन, दस दिन तो कोई घर के अंदर रह सकता है लेकिन महीनों तक कोई घर के बाहर न निकलें और वो भी छात्र-छात्राएं क्या परिस्थिति पैदा होती,कोईसोच भी नहीं सकता। किस अवसाद में जाते छात्र-छात्राएं,किस अवसाद में जाते अध्यापक,किस अवसाद में जाते अभिभावक। इसकी कल्पना करने से ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं। लेकिन मुझे खुशी है मेरे देश के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी की अगुआई में हमने पूरी ताकत के साथ इस शिक्षा विभाग के इन लोगों ने रात दिन खप करके उस चुनौती का मुकाबला किया और उस चुनौती का मुकाबला करके हम आजऑनलाइनशिक्षा दे पारहे हैं। अब हमारी दूसरी चुनौती हैजो तकनीक के अंतिम छोर पर बैठा जोछात्र हैउस तक जाना है। हमरात-दिन उसमें भी खपे हुए हैं। कुछ छात्र अभी जिनके पास ऐसे संसाधन नहीं हैं जो ऑनलाइन पर आ सकते हैं उन तक भी तेजी से पहुँच हमारी हो रही है और काफी कुछ  हम तक पहुँच भीगए। कोविडके ही समय जिस तरीके का इन अध्यापक लोगों ने जो शोध किया, अनुसंधान किया, नवाचार किया और उसको फिर अपने बच्चों के साथ बांटा वह आज दुनिया के लिए उदाहरण बन रहा है। नई शिक्षा नीति दुनिया के सबसे बड़े नवाचार के रूप में जानी जाएगी, ऐसा नवाचार शायद दुनिया में आज से पहले कभी नहीं हुआ होगा। किसी नीति पर जहां 33 करोड़ छात्र छात्राओं से विमर्शहुआ हो,66 करोड़ अभिभावकगणसे विमर्श हुआ हो,ग्राम से लेकर के संसद तक, ग्रामप्रधान से ले करके प्रधानमंत्री जी तक, शिक्षक से लेकर शिक्षाविदों तक, विशेषज्ञों से लेकर के वैज्ञानिकों तक और आम आदमी से लेकर राजनैतिक व्यक्तित्वों तक, सरकारों से लेकर केग्राम पंचायतों तक कोई भी स्थान ऐसा नहीं छूटा जिससे परामर्श नहीं हुआ और उसके बाद भी जो हम लोगों ने नई शिक्षा नीति का मसौदा तैयार किया था उसके बाद फिर उसको पब्लिक डोमेन में डाला जिनमें सवा दो लाख सुझाव आए और उसमें भी तीन-तीन विश्लेषण कमेटियों का गठन किया गया।उच्च शिक्षा, तकनीकी शिक्षा और स्कूली शिक्षा के लिए हमने अलग-अलग विश्‍लेषण कमेटियों का निर्माण किया। व्यापक परामर्श के बाद, एक-एक सुझाव के विश्लेषण के बाद यह नयी शिक्षा नीति आई है, जो बहुत खूबसूरत है। पूरे देश के अंदर उत्सव जैसा वातावरण है और दुनिया के तमाम देशों ने भी इसपर कहा है कि हम भी भारत की नयी शिक्षा नीति को अपनाना चाहते हैं हमने इस नीति में5+3+3+4 किया है और अब हमने  10+2 को समाप्‍त कर दिया है और 5 को भी 3+2 किया है। तीन वर्ष के उस बच्चे को कि किस तरीके से वो सोचता है, किस तरीके की उसमें क्षमताएँ हैं उसको लेकर हम आगे बढ़ रहें हैंऔर छठवीं कक्षा से ही वोकेशनल स्ट्रीम, इन्टर्नशिप के साथ ला रहे हैं। स्कूली शिक्षा से ही हमारा विद्यार्थी वोकेशनल से इतना विज्ञहो जाएगा कि स्कूल से बाहर निकलते हुए एक योद्धा के रूप में आएगा। आर्टिफिशल इंटेलिजेंस कोस्कूली शिक्षा से ही शुरू करनेवाला यह दुनिया का पहला देश हो जाएगा। इस नई शिक्षा  नीति के तहत  बच्‍चे का 360 डिग्री होलेस्‍टिक मूल्‍यांकन होगा।वो स्वयं भी अपना विश्लेषण करेगा, उसके अभिभावक भी करेंगे,उसके अध्यापक भीकरेंगे और उसका साथी भी करेगा। उसका चौतरफा जो मूल्‍यांकन होगा  और स्वत: स्फूर्त मूल्यांकन होगा जिससे लगेगा किबच्चा कहां जा रहा है। वैज्ञानिकों ने भी इस बात को कहा है कि अपनी मातृभाषा में अभिव्यक्ति की पुष्टि होती है,जोप्रतिभा बाहर निखर कर आती है वो दूसरी भाषा में नहीं हो सकता। इसलिए जो प्रारंभिक शिक्षा है वो बच्‍चे की अपनी मातृभाषा में ही हो, इसे प्रस्‍तावित किया गया है।प्राइमरी शिक्षा से लेकर के उच्‍च शिक्षा तकआमूल चूल परिवर्तन किया गया है। उच्च शिक्षा में जहां विद्यार्थी कोई भी विषय ले सकता है और वह जब चाहे तब छोड़ सकता है जब चाहे फिर आ सकता है। अब हमारा छात्र संगीत के साथ इंजीनियरिंग ले सकता है, विज्ञान के साथ साहित्‍य ले सकता है उस पर किसी प्रकार की कोई पाबंदी नहीं होगी। वो किसी भी विषय अथवासब्जेक्ट को ले सकता है उसके लिए पूरा मैदान खाली है और इतना ही नहीं यदि वो चार वर्ष का डिग्री कोर्स है और दो वर्ष में विषम परिस्थिति के कारण यदि विद्यार्थी जाना चाहता है तो वो जाए, अबवो हताश एवं निराश नहीं होगा। यदिएक वर्ष में वह छोड़ कर जा रहा है तो उसकोसर्टिफिकेटमिल जाएगा, दो वर्ष में छोड़ कर जा रहा है तो उसको डिप्लोमा मिल जाएगा, तीन वर्ष में छोड़ कर जाता है तो उसको डिग्री मिलेगी। लेकिन यदि दो वर्ष में, एक वर्ष में वह छोड़ कर फिर दुबारा आना चाहता है और वहीं से अपनी पढ़ाई शुरू करना चाहता है तो वह आ सकता है औरअपनीपढ़ाई शुरू कर सकता है एवं अपने भविष्य को संवार सकता है।उसके लिए हम एक ऐसा क्रेडिट बैंक बना रहे हैं जिसमेंउसके सभी क्रेडिट जमा होंगे ताकि वह जहां से छोड़ कर गया है वहां से वो आगे बढ़सके। इसीलिए व्यापक तरीके से शोध और अनुसंधान के क्षेत्र में हम तेजी से जहां‘नेशनल रिसर्चफाउंडेशन का गठन कर रहे हैं वहीं‘नेशनलएजुकेशन टेक्नोलॉजी फोरम’ का भी हम गठन कर रहे हैं।जहांतकनीक को हमनीचे आम आदमी तक ले जाना चाहते हैं, वहीं तकनीकों को शीर्ष स्तर तक भी पहुंचाना चाहते हैंअभी हमने 20 लाख अध्‍यापकों कोप्रशिक्षण देनेका कार्य किया है मुझे खुशी है क्‍योंकि जब हम बच्‍चों को बढ़ाना चाहते हैं तो जब तक यौद्धा के रूप में हम अपने अध्‍यापकों को खड़ा नहीं करेंगे तब तक हम उस लक्ष्‍य को प्राप्‍त नहीं कर सकते हैं और इस लक्ष्‍य की प्राप्‍ति के लिए अरविन्‍द सोसायटी के साथ जुड़कर के जिस तरीके से एचडीएफसी बैंक काम कर रहा है उसके लिए मैं उनकी चैयरमैन को भी बधाई देना चाहता हूं।आप अपने सामाजिक दायित्‍वों के फंड कोऐसे कार्य पर खर्च कर रहे हैंजिससे देश को आप पर गौरव हो सके। आप जो कर रहे हैं वो छोटा नहीं है,आपपीढ़ी का निर्माण कर रहे हैं, विश्‍व का निर्माण कर रहे हैं। हमारे देश के प्रधानमंत्रीजी कहते हैं कि हमको राष्‍ट्र का एक बहुत अच्‍छा नागरिक चाहिए लेकिन हमको विश्‍व नागरिक चाहिए। देश के 300 जिलों में 4000 से ज्‍यादा उत्‍कृष्‍ट विद्यालय बनाने की जो पहल की है इसके लिए भी मैं अरविन्‍द सोसायटी को बधाई देना चाहता हूं। मेरा विश्‍वास है कि अनुभवों के आधार पर शिक्षा को बढ़ाने का जो आधार है और लर्निंग आउटकम का जो हमारा सिस्‍टम है वह भी इस नई शिक्षा नीति की आधारशिला है। यदि छात्रशिक्षा ग्रहण कर रहा है तो आउटकम क्‍या है उसका? इसलिए केवल अक्षर ज्ञान, अंक ज्ञान ही शिक्षा नहीं है बल्‍कि उसका व्‍यावहारिक ज्ञान, उसका प्रयोगात्‍मक ज्ञान, जो उसके मन के अंदर संचार हो रहा है उसको कैसे आगे बढ़ा सकते हैं, इसकीजरूरत है। यह जो हमारी नई शिक्षा नीति है यह भीइन्‍हीं सब चीजों को लेकर के आगे बढ़ रही है। मैं धन्‍यवाद देना चाहता हूं संभ्रांत और आपकी पूरी टीम को कि अरविन्‍द सोसायटी ने नई शिक्षा नीति की उस जड़ को पकड़ा है जिस पर हम खड़ा होना चाहते हैं। हमारी यह नई शिक्षा नीति नेशनल भी है, तो यह इंटरनेशनल भी है, यह इन्‍क्‍लुसिव भी है, इम्‍पैक्‍टफुल भी है, इन्‍टरेक्‍टिव भी है, इनोवेटिव भी है और यह इक्‍विटी, क्‍वालिटी और एक्‍सेस की आधारशिला पर खड़ी है। यह ऐसी नई शिक्षा नीति है इसकी खुशुबु पूरी दुनिया में बिखरेगी। मुझेइस बात की भी खुशीहै कि अरविन्‍द सोसायटी ने जिस तरीके से तमाम प्रकारकेअभी उदाहरण दिये हैं, प्रयोग किये हैं यह निश्‍चित रूप में हमको बहुत आगे बढ़ाएगा और जो स्‍कालरशिप का विषय है जिसमें कैम्‍ब्रिज विश्‍वविद्यालयके सहयोग से 50 लाख से भी अधिक बच्‍चों को जो स्‍कॉलरशिप मिलने वाली है यह भी अपने आप में अद्भुत है। मुझे लगता है कि आपके छोटेसेसहयोग से यह इतना बड़ा काम होगा।जिन बच्‍चों को जरूरत है, जिसको ऑनलाइन शिक्षा के लिए तकनीकी उपकरणों की जरूरत है जो उसके पास नहीं है तो मैं समझता हूं कि आपके इस प्रयास से ऐसे जरूरतमंद बच्‍चों के जीवन में बहुत बड़ा परिवर्तन होगा और जो आपका शिक्षकों को प्रशिक्षित करने का अभियान है मैं इसके लिए भी आपको शुभकामनाएं देना चाहता हूं। महर्षी अरविन्‍द जी का विचार था उन्‍होंने हमेशा कहा है कि मैं इस तरीके का काम करना चाहताहूं या आप ऐसा कुछ करिये जिससे मनुष्‍य की सृजन शक्‍ति बाहर निकलें और मनुष्‍य केवल एक मशीन न रहे। अभी हमने मनुष्‍य को मशीन बना दिया है।  हमारी होड़ है पैकेज की ना कि एक अच्‍छा मनुष्‍य बनाने की और मुझे भरोसा है कि यह नई शिक्षा नीति उस होड़ पर थोड़ा  सा अंकुश लगाकर के मनुष्‍य को एक अच्‍छा नागरिक बनने के लिए प्रेरित करेगी। मुझे भरोसा है किहम महर्षी अरविन्‍द जी के विचारों को लेकर और आज को जो खूबसूरत कार्यक्रम हो रहा है जिसमें अध्‍यापकों को सम्‍मानित किया गया है जिसमें हमने अपने विद्यार्थियों  के लिए स्‍कॉलरशिप का सुनिश्‍चितकरण किया है। अभी आपने जो-जो शोध अनुसंधान किये हैं उससे  संबंधित  जिस बुकलेट का आपने  लोकार्पण करवाया है उसके लिए भी मैं कैम्‍ब्रिज विश्‍वविद्यालय की पूरीटीम को धन्‍यवाद देनाचाहता हूं और अरविन्‍द सोसायटी को धन्‍यवाद देना चाहता हूं और मनोज जी जो सीबीएसई बोर्डकेअध्‍यक्ष हैं, मुझे भरोसा है कि हम उनकी अगुवाई में स्‍कूली शिक्षा में नई शिक्षा नीति के क्रियान्‍वयन की दिशामें सफलता पायेंगे वहीं हम उच्‍च शिक्षा में भी एक बहुत ऊंची छलांग मारकरके शिखर पर पहुंचेंगे। पूरे विश्‍व की ज्ञान की महाशक्‍ति के रूप में हिन्‍दुस्‍तान खड़ा होगा और जैसा कि हमारे देश के प्रधानमंत्री बार-बार कहते हैं कि 21वीं सदी का स्‍वर्णिम भारत चाहिए। जो स्‍वच्‍छ भारत होगा, सशक्‍त भारत होगा, समृद्ध भारत होगा, आत्‍मनिर्भर भारत होगा, एक भारत होगा और श्रेष्‍ठ भारत होगा और जिसको मेक इन इंडिया, डिजिटल इंडिया, स्‍किल इंडिया, स्‍टार्ट अप इंडिया, स्‍टैंड अप इंडिया जैसे रास्‍तों से होकर इस नई शिक्षा नीति को आधारशिला मिलेगी औरनिश्‍चित रूप में यह पूरेविश्‍व के लिए एक सुखद आभास होगा और जो हिन्‍दुस्‍तान पूरे विश्‍व को अपना परिवार मान करके यह कामना करता है कि हम सब साथ चलेंगे, साथ बढेंगे, साथ खायेंगे, साथ पुरूषार्थ करेंगे और पूरे विश्‍व को स्‍वर्ग बनायेंगे यह है हमारी धारणा। मैं एक बार फिर अरविन्‍द सोसायटी को, कैम्‍ब्रिज विश्‍वविद्यालय को और एचडीएफसी के अधिकारियों को बहुत सारीबधाई एवं शुभकामनाएं देता हूं।

 

 

 

बहुत-बहुत धन्‍यवाद!

 

कार्यक्रम में गरिमामयी उपस्‍थिति:-

  1. डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’, माननीय शिक्षा मंत्री, भारत सरकार
  2. श्रीविजय एन पोद्दार, कार्यकारी सदस्‍य,अरबिंदो सोसायटी
  3. श्री मनोज आहूजा, अध्‍यक्ष, सीबीएसई
  4. श्री रोड स्‍मिथ, प्रबंध निदेशक, ग्‍लोबल एजुकेशन, कैम्‍ब्रिज विश्‍वविद्यालय
  5. श्रीमती आशिमा बट्ट, ग्रुप हेड, बिजनेस फायनेंस, एचडीएफसी बैंक,
  6. सुश्री नुसरत पठान, हेड, सीएसआर, एचडीएफसी बैंक
  7. अरबिंदो सोसाइटी के सभी अधिकारी एवं कर्मचारी वर्ग, कैम्‍ब्रिज विश्‍वविद्यालय के सभी अधिकारी वर्ग एवं प्रोफेसर तथा छात्र-छात्राएं।

ब्रिटिश इंस्‍टीट्यूशन ग्रुप, इंग्‍लैंड द्वारा आयोजित वातायन-यूके सम्‍मान समारोह

ब्रिटिश इंस्‍टीट्यूशन ग्रुप, इंग्‍लैंड द्वारा आयोजित वातायन-यूके सम्‍मान समारोह

 

 

दिनांक: 21 नवम्‍बर, 2020

 

 

 

माननीय शिक्षा मंत्री, डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’

 

यूके सम्‍मान समारोह में उपस्‍थित इस परिवार के और इस परिवार से जुड़े देश और दुनिया के सभी भाइयों और बहनों तथा सभी लेखक मित्रों का मैं अभिनन्‍दन कर रहा हूं। आज अतिथि के रूप में यहां पर प्रख्‍यात लेखक, चिंतक, विचारक और हमारे अनुज जो बहु-आयामी प्रतिभा के धनी हैं प्रिय अमिश त्रिपाठी जी, जो भारतीय उच्‍चायोग के  सांस्‍कृतिक मंत्री है और नेहरू केन्‍द्र लंदन के निदेशक भी हैं। आदरणीय और ब्रिटिश सांसद जो हमेशा गौरव बढ़ा रहे हैं श्रद्धेय श्री वीरेन्‍द्र शर्मा जी,  मेरे बहुत ही प्रिय जिनको आज यह सम्‍मान मिला तो मुझे बहुत खुशी हुई है जिनके चेहरे पर मैं हमेशा मुस्‍कुराहट देखता हूं, जो रंगकर्मी, गीतकार,पटकथाकार ऐसे मेरे प्रिय मनोज जी, मैं आज विशेषकर आपको शुभकामना देना चाहता हूं। हम सब लोग आपको बहुत बधाई देना चाहते हैं कि आप उसी गति से और आगे बढ़े, आपके लिए पूरा मैदानखाली है और अभी आपके पास बहुत वक्‍त है। दिव्‍जा जी को भी मैं धन्‍यवाद देना चाहता हूं कि जब आपके मन में यह विचार आया होगा तो मैं समझ सकता हूं और पद्मेश को भी मैं काफी समय से जानता हूं तो उनके पिता जी के बारे में अभी सुना उनकेपास भी मैं यदा कदा जाता था। उनका स्‍नेह, प्‍यार औरगुस्सा सबसेमैं अवगत हूं क्‍योंकि मैं तो अचानक राजनीति में आया था। मेरा राजनीति में आने का न मन था, न संभव था तथान परिवेश था और ऐसे समय में उत्तर प्रदेश जैसे राज्य की विधान सभा में और युवापनमें आना तो उनके पास में यदा-कदा जाकर के उनका आशीर्वाद भी लेता रहा हूं और जैसाउन्होंने कहा किविद्वान सर्वत्र पूजे जाते हैं तो यहजितने विद्वतगण हैं इनका मैं अभिनंदन करता हूं और उनके चरणों में मैं अपना प्रणाम करता हूं। इसलिए दिव्या जी मैं बहुत बधाई एवं शुभकामना दे रहा हूं और उनकी पूरी टीम को जिन्होंने इसको स्थापित किया और जिस तरीके से आप उसको बढ़ा रहे हैं, मैं जान सकता हूं कि किसी संस्था को स्थापित करना तो बहुत सरल होता है लेकिन उसको जिंदा रख करके, उसको दौड़ाते रहना, उसकी भावनाओं पर उसको क्रियान्वित करना कम चुनौती नहीं होती है। बहुत चुनौतियां होती हैं और लगातार इस संस्था के द्वारा हिन्दी को पूरे विश्व के पटल पर प्रसारित किया गया है। अकेले हिन्दी का 9 लाख शब्दों का कोश है और इसलिए हिन्दी पूरे विश्व के लिए एकसंजीवनी का काम करेगी। हिन्दी केवल भाषा नहीं है,हिन्‍दीकेवल विचार है,बल्‍किहिन्दी तोमन की तरंगों का उल्लास है, हिन्दी संस्कार है, हिन्दी सम्मान है जो भी आप हिंदी को कह सकते हैं और उसका जो विपुल साहित्य है,उस साहित्यके निकट आना किसी के लिए भी बहुत अच्छे सौभाग्य का क्षण होता है और इसीलिए उस हिंदी की समृद्धता के लिए आपसब लोग काम कर रहे हैं जब अनिल जोशी जी से मेरी पीछे के दिनों में भी बात हुई और मुझे याद है जब मैं मुख्यमंत्री था, तब वेविदेशों से हिंदी के बच्चों को लेकर आते थे औरतब तेजेन्द्र शर्मा जी सहित सब लोगों से बातचीत होती रहती थी और मुझे अच्छा लगता था कि आप अभियान के तहत बच्चों को लाते हैं और अनिल जी कोमैंनेदेखा और जब मुझे लगा कि हिंदी के प्रति वेकिस सीमा तक लगाव रखते हैं तो अचानक ही यह संयोग है कि फिर इन्हीं के हाथों सेहमने हिंदी की बागडोर हिन्दुस्तान में दे दी है और हिंदी जो संस्थान है उसके यशस्वी उपाध्यक्ष के रूप में वे भारत सरकार के एक महत्त्वपूर्ण स्थान को विराजमान हो गये हैं। पद्मेश जी आपको भी तब से मैं जानता हूं और मुझे मालूम है कि तब आप पत्रिका भी निकालतेथे मुझे याद है कि जब आप लखनऊ में थे तब आपकी हिंदी की पत्रिका होती थी और इस बीच आपसे कुछ समय के लिए संवाद जरूर टूटा लेकिन हमेशा मन जुड़ा रहा हैक्योंकि आप उन स्थानों पर भी रह करके जो काम कर रहे हों वह मेरे लिए बहुत सुखद हैऔर मेरे लिए बहुत सौभाग्य का विषय होता है। इसीलिए पद्मेश जी, दिव्या जी और आपकी पूरी टीम को मैंबधाई देना चाहता हूं।मीराकौशिक जी जो वातायन की अध्यक्ष हैं उनको भी मैं बहुत बधाई देना चाहता हूँ। मैं शुभकामना देना चाहताहूँ अदिति माहेश्वरी जी को जो वाणी प्रकाशन की कार्यकारी निदेशक हैं। अभी कुछ ही दिन पहले हमारी बात हो रही थी अदिति बहुत प्रखर है, शालीन है और मैं देख रहा हूँ क्योंकि मैं 1999के आसपास से अरुण भाई के साथ जुड़ा हुआ हूं और उनका हिंदी को विश्व में ले जाने के लिएकाफी बड़ा योगदान है। हिंदी के लेखकों को उन्होंने हमेशा प्रोत्साहित किया है और अरुण जी यदि मेरी बात सुन रहे हैं तो मैं उनको भी अभिनन्दन करता हूँ और अदिति को जो उन्होंने जिम्मेदारी दी है अब इनके हाथों में काफी कुछ है और इसको नईपीढ़ी को भी बढाना है। हिन्दी को उसके शिखर तक पहुंचाना है। एक अच्छी टीम के रूप में यह लोग आगे काम करेंगे तो मैं सोचता हूं कि अच्‍छा ही होगा। आज रीना भारद्वाजजी का जो गीत है वह मुझे बहुत अच्छा लगा क्‍योंकि विदेशी धरती पर रहकर भी रीना अपने को बनाए हुए हैं और एक-एक शब्द उनका मां सरस्वती का ऐसा झंकार पैदा करता है कि मैं उनकाबहुत अभिनन्दन कर रहा हूं और आदरणीय निखिल जी आपका भी आभार प्रकट करता हूं। मुझे लगता है कि शेखावत जी भी हमारे साथ जुड़े होंगे और शेखावत जी से भी मेरी कल बातचीत हुई थी तो सभी लोग जुड़े हैंऔर मुझे जब बताया गया और जब से आपने घोषणा की तब से पूरे देश और दुनिया के हजारों लाखों संदेश आ रहे हैं। इस समय जो लोग हमसे जुड़े हैं या जिनका संदेश आरहा है वो संयुक्त राज्य अमेरिका है,कनाडा है, कोलंबिया है, त्रिनिनाद है, टौबोगो है, एक्वाडोर है,संयुक्‍तअरब अमीरात है, जापान, नेपाल, अफगानिस्तान, मास्को, यूक्रेन, थाईलैंड, इंडोनेशिया, श्रीलंका, भूटान, रूस, कजाकिस्तान, ओमान, यूनाइटेड किंगडम, जर्मनी डेनमार्क, बुल्गारिया, नार्वे, मॉरीशस, नाइजीरिया, यूगांडा, ट्यूनीशिया, न्यूजीलैंड, सहित लगभग 50-60 देशों के लोग कहीं न कहीं मुझसेसीधे-सीधे जुड़े हैं याजिनके संदेश हमको मिले हैं इसलिए बहुत लोग पूरी दुनिया से और मेरे हिंदुस्तान से आज हमारे साथ जुड़े हैं। मैं उन सभी लोगों का इस अवसर पर जबकि यूकेवातायन एकअंतरराष्ट्रीय शिखर सम्मान का आयोजन कर रहे हैं तो मैंइस सम्मान को उन सभी लोगों को समर्पित करता हूं जिनके मन में छटपटाहट है, वेदना है, पीड़ा है जो कुछ करने का मन रखते हैं, जो विषम और विपरीत परिस्थितियों में भी आगे बढ़ने की छटपटाहट करते हैं, मैं  उन सभी नवोदित लेखकों को और उन सभी लोगों का जो अपने विचारों के साथ अपने संघर्षमय जीवन की ताप और धार पर खड़े होकर आगे बढ़ रहे हैं मैं उन सब का अभिनंदन करता हूं तथा यह जो आपने मुझे सम्मान दिया है मैं इसको प्रत्येक भारतवासी का सम्मान महसूस करता हूं। मैं उन सभी लोगों का विशेषकर युवाओं का सम्मान महसूस करता हूं जो मेरे भारत को विश्व गुरु के रूप में स्‍थापित करना चाहते हैं क्योंकि जो मेराभारत है वो विश्‍व गुरू है‘एतद् देश प्रसूतस्य शकासाद् अग्रजन्मन : , स्वं-स्वं चरित्रं शिक्षरेन् पृथ्वियां सर्व मानव:’यह पूरी दुनिया ने मेरे हिंदुस्तान से आकर सीखाहै। पूरा विश्‍व हमारे से ज्ञान, विज्ञान, अनुसंधान तथा नवाचार को ले कर के गया है और वो विचार जो सारे विषयों में हमको विश्वगुरु के रूप में स्थापित करता है जब हम ‘वसुधैवकुटुम्बकम’ की बात करते हैं। एक ओर हम ‘‘अयं निजः परो वेति गणना लघु चेतसाम् | उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम्’’ अर्थात्पूरी वसुधा को यदि किसी ने परिवार माना है तो केवल मेरे हिन्दुस्तान ने माना है,मेरी संस्कृति ने माना है, मेरे विचार ने माना है और केवल परिवार ही नहीं माना है बल्कि उस परिवार के लिए ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया, सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चित् दुःखभाग् भवेत्’की कामना की है। जब तक धरती पर एक भी प्राणी दुखी होगा तब तक में सुखकाएहसास नहीं कर सकता यह हैहमारा विचार, यह है हमारा विजन। यह हमारा मिशन भी है क्योकि हमने पूरी धरती को माता माना है। हम वो लोग नहीं हैं जो इस विश्व को मार्किट मान रहे हैं। लोगों की नजर में यह जो विश्‍व है,वो एकमार्किट है एक बाजार है। हमने वर्ल्ड को परिवारमाना है। हमने पूरे संसार को परिवार माना है क्योंकि हम जानते हैं कि मार्केट अथवा बाजार में व्यापार होता है और परिवार में प्यार होता है। हम पूरे विश्व कोएक परिवार के रूप में बढ़ाना चाहते हैं।औरउस पूरे परिवार के सुख-दुख और दर्द को मिल करके बांटना चाहते हैं। हमारे इस विचार ने पूरी दुनिया में हमको अलग रखता है और इसीलिए मुझे अच्छा लगा कि अभी चर्चा कर रहे थे, आपने कहा वातायन अर्थात् खिड़की या झरोखा। मुझे भरोसा है कि आपके इस झरोखा से नई ऊर्जा, नई रोशनी, नई उमंग, नए उल्लास तथा नए उत्साह का संचार होगा। हमनेहमेशासर्जनात्मक रूप में प्रकृति से जुड़ करके काम किया है क्योंकि प्रकृति के विपरीत विकृति होती है वो विनाश का कारण होती है और जब प्रकृति एवं संस्कृति का समन्‍वय होता है तो एक रचना होती है, एक कृति निकलती है और हमारी अंधकार को मिटाने के लिए हमेशालालसा रहीहै। एक ओर हम कहते हैं‘असतो मां सद्गमया’ हम असत्य से सत्यकीऔर चलेंगे। ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’ हम तमस को चीरते हुएहम घनघोर अंधेरे को चीरकरके रोशनी लाएंगे।हमदुनिया में अंधेरा देखना ही नहीं चाहते। हम अपने ज्ञान, विज्ञान, अनुसंधान के तहत पूरी दुनिया के अज्ञान को भी मिटाने की बात करते हैं और जो मन के अंदर बसा अंधेरा है उसको भी हटाने की बात करते हैं और इसलिए मैं समझता हूं कि जो हमारी पहचान है उसको हमें खोना नहीं है।हमआज विशेष कर के साहित्य पर तो बहुत सारी चर्चाओं को करेंगे। उपन्यासों को भी पढ़ेंगे, कहानियों को भी पढ़ेंगे, कविताओं को भी पढ़ेंगे, गीत भी सुनेंगे लेकिन जो हमारी जड़ें हैं जो हमारे संस्कार हैं वह पूरी दुनिया के लिए हैं हमारी सांस्‍कृतिकवृक्षफलना-फूलना चाहिए औरउसकी छांव पूरी दुनिया की मानवता को मिलनी चाहिए क्योंकि पूरी दुनिया कीसुख समृद्धि और शांति हिंदुस्तान से होकर गुजरती है। हमारी नई शिक्षा नीति के बारे में अनिल जी ने चर्चा की।नई शिक्षा नीति लॉर्ड मैकाले की पद्धति से हटकर भारतीयता की जमीन पर खड़ी है। हमारी जो वास्‍तविक  शिक्षा नीति थी उस शिक्षा नीति के तहत तक्षशिला, नालंदा औरविक्रमशिला जैसे विश्वविद्यालय हमारेदेश की अंदरथे और तब दुनिया में कोई विश्वविद्यालय नहीं था। इसका मतलब हिन्‍दुस्‍तानज्ञान में, विज्ञान में, अनुसंधान में प्रथम स्‍थान पर था।सुश्रुत शल्‍य चिकित्सा का जनक इस धरती पर पैदा होता है,आयुर्वेद का जनक इस धरती पर पैदा होता है भाषा वैज्ञानिक पाणिनी भीइसी धरती पर होता है और आर्यभट जैसा गणितज्ञ जिसने पूरी दुनिया को  शून्‍य दिया वो भी इसी हिन्दुस्तान धरती पर पैदा होता है नागार्जुन जैसा रसायनशास्त्री भी इसी धरती पर पैदा होता यदि मैं उस श्रृंखला को कहूंगा तो बहुत लंबी होगी। लेकिन मैं कहना चाहता हूं कि हिन्दुस्तान पूरी ताकत के साथ पूरे विश्व का मार्गदर्शन करता रहा है। हम पूरे विश्व को एक परिवार के रूप में देखते हैं। हम विस्तारवादी कभी नहीं रहे हैंऔर इसीलिए अपनी रचनाओं से, अपने कृतित्व से अपने व्यक्तित्व से, अपने कामों से किस तरीके से फिर उस विश्व तक हम अपनी हिन्दुस्तान की इस खूबसूरतियों कोदूर तक ले जा सकते हैं,आज इसकी जरूरत है और मैं जिस संस्कृति की बात कर रहा हूं वो कभी खत्‍म नहीं हो सकती क्योंकि हम कहते हैं कि ‘यूनान, मिस्र, रोमां सब मिट गए जहां से, अब तक मगर है बाकी नामो निशां हमारा और कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी’ कुछ तो बात है जो मिटाने से भी नहीं मिटती है,उसी बात को हमें पकड़े रखना है तथाउसी को आगे बढ़ाने की जरूरत है। मुझे भरोसा है कि हम इस दिशा में आगे बढ़ेंगे जो हम नई शिक्षा नीति लाई हैं वह21वीं सदी का स्वर्णिम भारत होगा, वहस्‍वच्‍छ भारत होगा,सुंदर भारत होगा, सुदृढ भारत होगा, आत्मनिर्भर भारत होगा, श्रेष्ठ भारत होगा और एक भारतहोगा यह नीति उसभारत की है।इसनई शिक्षा नीति को हम व्यापक परिवर्तनों के साथ लाएं हैं। पूरी दुनिया में इस बात की खुशी है औरतमाम देश के लोग कह रहे हैं कि हम भी भारत की इस एनईपी को चाहते हैं। हमारे देश के प्रधानमंत्री जीने कहा है कि हमें मनुष्य को मनुष्य बनाना है, एक अच्छे नागरिक के साथ विश्व मानव बनाना है। हमने मनुष्य को मशीन बना दिया था और इसलिए यहजोनई शिक्षा नीति है यहनेशनल भी है इंटरनेशनल भी है, यह इंटरएक्टिव भी है,इम्पैक्टफुल भी है,इन्‍क्‍लुसिव भी है और इनोवेटिव भी है और यदि इसकी आधारशिला को देखेंगे तो यहइक्विटी, क्वालिटी और एक्सेस की आधार शिला पर खड़ी होकर के आज विश्व का मार्गदर्शन कर रही है। इसीलिए पूरे देश के अंदर उत्साह और उल्लास का माहौल है। मैं आज इस अवसर पर आपको बहुत बधाई देना चाहता हूं। मुझे अच्छा लगा कि आपने इस अभियान लिया है और आज मनोज जी को सम्मानित किया है और मेरी अमिश जी से भी बातचीत हुईमुझे अच्छा लगा और अमिश अच्छा विचारक है तथा उसमें छटपटाहट भी है। मैं अमिश को कहना चाहता हूं कि यह अभियान जो आपने लिया है औरआपशंकर को मानते हैं और मैं तो उस धरती से आता हूं जहां कंकड कंकड में शंकर है,हिमालय से मैं आता हूं और इसलिए जो कंकड़कंकड़ में शंकर है उस पहाड़ की मैंआपको कविता सुनाना चाहता हूं, विशेष करके अमिशआपको सुनाना चाहता हूं कि मैं पहाड़ हूं इसलिए चुप नहीं कि मैं इतना शांत हूं, मैं इसलिए चुप नहीं कि मैं इतना शांत हूं तुम नहीं जानते कि मैं कितना अक्रांत हूं,मौन हूंतो सिर्फ इसलिए कि कहीं मेरे शांत मन में अशांति न आए। कई मंद पवन, मलय समीर स्‍वयंतूफान बन कर न छाए और फिर मुझे हिमालय का अनुपम धैर्य नहीं खोना है। विश्व शांति का ध्‍वज लिए मेरा हर एक कोना है। मुझे तो देश की एकता और अखंडता की चिंता है। मुझे गंगा और यमुना सरसा के जलघूंट भी पीना है और मुझे तो विषवमन करते विषैले सांप मिटाने हैं । मुझे तो विषवमन करते विषैले नाग मिटाने हैं। जन-जन के ह्रदय पटल में समता के बीज उगाने हैं। वैसे तो मेरी एक छोटी सी चीख भी प्रलयला सकती है,दिग्‍-दिंगतक्या यहब्रह्माण्‍डहिला सकती है पर मैं ऐसे नहीं होने दूंगा। मैं तो देश की आत्मा, प्यारा पहाड़ हूं। मैं संकल्प और शांति का प्रतीक देश के सौन्दर्य की अनुपम बहार हूं, मैं पहाड़ हूं।और इसीलिए मैं समझता हूं कि यह बात सही है कि पहाड़ में कठिनाइयां हैं, पहाड़ के लोगों को तो पहाड़ सा जीवन है। मेरे से लोग पूछते हें कि आप कैसे लिखते हैं,इतनीचीजें कैसे कल्पना में आती हैं, कविताएं लिखते हैं, कहानी लिखते हैं, उपन्यासों को लिखते हैं, यात्रा संस्मरण लिखते हैं गीतों को लिखते हैं तो मैं उनको केवल इतना बताता हूं कि यदि कोई लड़का गरीब घर में पैदा हो और नंगे पांव सात-आठ किलोमीटर पैदल कहीं स्कूल पढने के लिए जाए। पहाड़ी गांवसे जाए, भयंकर जंगल को पार करते हुएजाए और जंगली जानवरों का मुकाबला करते हुए जाए और वो वहां से शिक्षक बन जाए और शिक्षक से भारत के शिक्षा मंत्री तक की यात्रा करे। उसके जीवन में क्या-क्या घटा होगा, क्या-क्या हुआ होगा वो यात्रा ही मेरे मेरी कहानियों की यात्रा है, मेरी कविताओं की यात्रा है,मेरे गीतों की यात्रा है मेरे संस्मरणों की यात्रा है। इसलिए मैं समझता हूं कि जो हमने झेला है, देखा है, महसूस किया है, जिससे हो करके गुजरे हैं वही मेरा लेखनहै। आज जिन वेदनाओंसे होकरके हर कदम पर गुजरना पड़ता हैतो स्‍वाभाविक ही है कि वो बातें आपको कहांचैन से बैठने देंगी, जब तक उनको आप बाहर नहीं निकालें और बाहर भी इसलिए नहीं निकालेंगे कि केवल अपने गुबार कोखत्म करना है बल्‍कि मेरे जैसे निशंक तो न जाने कितने पैदा होते हैं और आधे में ही वो कमर तोड़ देते होंगे क्योंकि संघर्षों की ताप अंततोगत्‍वासबको झेलनी होती है और इसीलिए मेरे जैसे निशंक खड़े होकर आगे बढ़ सकें इसलिए उनके लिए मैंटूटे-फूटे शब्दों मेंउनके लिए कहानी छोड़ के जाता हूं,कविता भी छोड़ के जाता हूं। मैं आपका बहुत आभारी हूं और मैं एक बार फिर आप सब लोगों को इस काम के लिए जो यह बहुत अच्छी आपने शुरुआत की मुझे भरोसा है कि यह आपकी छोटी शुरुआत नहीं है, बहुत व्यापक शुरुआत है।इससे बौद्धिक वातावरण बनेगा तथा भारत का  नाम फिर से रोशन होगा। भारत रत्‍न डॉ. अब्‍दुल कलाम जी ने मेरी एक पुस्‍तक ‘ए वतन तेरे लिए’ का लोकार्पण  किया था, उसका एक संस्‍मरण सुनाते हुए मैं अपनी बात समाप्‍त करना चाहूंगा। वे मेरी एक छोटी सी कविता को गुनगुनातेथेजिसमें था ‘‘अभी भी है जंग जारी, वेदना सोई नहीं है,मनुजताहोगीधरा पर, संवेदना खोई नहीं है।‘’ हम बहुत भरोसे वाले लोग हैं। हम भारत के लोग कभी निराश नहीं हो सकते। हम संवेदनाओं को जिंदा रखेंगेक्‍योंकिहमको मालूम है कि ‘‘किया है बलिदानजीवन, निर्बलता ढोई नहीं है, कह रहा हूं ये वतन तुझसे बड़ा कोई नहीं है,तुझसेबड़ा कोई नहीं है।’’ मैं आपका एक बार फिर हिंदुस्तान की धरती से अभिनंदन कर रहा हूं। मुझसे देश और दुनिया के तमाम जो लोग जुड़े हैं, मैं उनको प्रणाम करता हूं।

 

बहुत-बहुत धन्‍यवाद!

 

 

कार्यक्रम में गरिमामयी उपस्‍थिति:-

 

  1. डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’, माननीय शिक्षा मंत्री, भारत सरकार
  2. श्री अमिश त्रिपाठी, निदेशक, नेहरू युवा केन्‍द्र लंदन,
  3. श्री वीरेन्‍द्र शर्मा, संसद सदस्‍य, ब्रिटिश संसद,
  4. वातायन परिवार, यूके के अन्‍य सम्‍मानित सदस्‍य।

 

 

शारदा विश्‍वविद्यालय का चतुर्थदीक्षांत समारोह

शारदा विश्‍वविद्यालय का चतुर्थदीक्षांत समारोह

 

दिनांक: 19 नवम्‍बर, 2020

 

 

माननीय शिक्षा मंत्री, डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’

 

शारदा विश्‍वविद्यालय के चतुर्थ दीक्षांत समारोह में उपस्‍थित मेघालय के यशस्‍वी, युवा, जुझारू, संघर्षशील, सौम्‍य और बहु-आयामी प्रतिभा के धनी प्रिय कोनार्ड संगमा जी, हमारे बीच उपस्‍थित भारत के पूर्व कैबिनेट मंत्री डॉ. महेश शर्मा जी, डॉ. रवि प्रकाश महासचिव, भारतीय गुणवत्‍ता परिषद्, इस विश्‍वविद्यालय के आदरणीय कुलाधिपति  श्री पी. के. गुप्‍ता जी,आदरणीय उप-कुलाधिपति श्री यतेंद्र कुमार गुप्ता जी,इस विश्‍वविद्यालय के कुलपति डॉ. शिवराम खारा जी,  रजिस्‍ट्रार श्री अशोक जी, सभी संकाय सदस्‍य, विभागाध्‍यक्ष, अध्‍यापगण और सभी आदरणीय अभिभावकगण और बाहर से आये हमारे अतिथिगण औरमेरे प्रिय छात्र-छात्राओं! आज एक उत्सव के रूप में आज हम यहां एकत्रित हुए हैं और आपकी खुशी में हम भी सम्मलित होने के लिए आए हैं।हमारी भारत की परंपरा रही है कि जब भी कभी कोई दुख में होता है तो उसको हम मिल करके बांटते हैं और जब कोई खुशी का वक्त होता है तो उसको भी हम मिल करके बांटते हैं। यह कहा जाता है कि जब दुख होता है, कष्ट होता है, संकट होता है तोवो बाँटने से कम होता है और जब खुशी होती है तो खुशी बांटने से बढ़ती है। आप जिस दिन की प्रतीक्षा कई वर्षों से कररहेंहोंगे, आपके माता-पिता, आपके चिर परिचित और जो मेरे से जुड़े हुए आज हजारों आपके अभिभावक और आपके नाते रिश्तेदार हैं, वे सब गौरवान्वित हो रहेहोंगे और आप अनेक प्रकार के प्रश्‍नों और उथल-पुथल से होकरकरके गुजर रहें होंगे। मैं आप सबके उज्ज्वल भविष्य की कामना करते हुए आपको बधाई और शुभकामना देता हूं।मैं यह समझता हूं कि अभी तक आप निश्चित थेकि इतने वर्ष का कोर्स होगा तथा उससे हम यह उपाधि या मैडल प्राप्‍त करेंगे। अभी तक जो भी परीक्षा थी वह एक निर्धारित समय तक के लिए, निर्धारित पाठ्यक्रमकोपढ़कर केआपको रिजल्ट देना होता था। लेकिन अबअसली परीक्षा आरम्‍भ हो रही है और आज आप मैदान में जा रहें हैं जहां आपको हर प्रश्न का उत्तर देना होगा तथा हर समस्या का सामना करना होगा एवं एक योद्धा के रूप में आपके सामने तमाम सवाल खड़े होंगे। तमाम कठिनाइयां एवंपरिस्‍थितियां होंगी और अब आप यह भी नहीं बोल सकेंगे कि मेरे पाठ्यक्रम में मेरे कोर्स में तो इतना ही था और यह कोर्स से बाहर आ गया और इसलिए जो आपकी इतने वर्षों की अनवरतसाधना है उससाधना को लेकर आप एक योद्धा के रूप में आज मैदान में जा रहे हैं तथाहमसब लोग आपको बधाई देने के लिए आज एकत्रित हुए हैं। आप एक योद्धाजिस तरीके से अपने मैदान में जाता है,उसी तरह से आगे बढ़े और उसको सिर्फ और सिर्फ अपनी जीत दिखाई देती है उसकी दृष्टि सफलता पर रहती है, उसकी नज़र अपने टारगेट पर रहती है। मुझे आप पर भरोसा है क्योंकि हम उस देश के लोग हैं जो विश्व में गुरु रहा है। जब हम अभी आए तो यहां वंदना हो रही थी और मां शारदा की प्रार्थना हुई। यह विश्वविद्यालय भी शारदा विश्वविद्यालय है और हमने मां शारदा से हमेशा निवेदन किया है तथा प्रार्थना की है कि हमको ऐसी ताकत दो, हम को क्षमता दो तथा सोचने का बल दो।हमने तो यहां तक भी प्रार्थना की है हम दुनिया की दुख तकलीफ को दूर कर सकें तथा हम किसी की मदद में काम आ सकें, इसलिए शारदा इतना मजबूत करोऔर इतना हमको ताकत दो क्योंकि हम नहीं भूलते कि हम विश्व गुरू रहें हैं।‘एतद् देश प्रसूतस्य शकासाद् अग्रजन्मन:, स्वं-स्वं चरित्रं शिक्षरेन् पृथ्वियां सर्व मानव:’आज के अवसर पर मैं आपसे इतना निवेदन करना चाहता हूं कि अपने जीवन में इसको कभी भूलने की ज़रूरत नहीं है कि हम उस देश के लोग हैं जो सारे विश्व में गुरु रहा है। जिसने हर दिशा में ज्ञान, विज्ञान, अनुसंधान के क्षेत्र में पूरी दुनिया को लीडरशिप दी है।जिसने पूरे विश्व को अपना परिवार माना है।हमने पूरे विश्व को परिवार माना है हमने हमेशा कहा‘अयं निजः परो वेति गणना लघु चेतसाम् | उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम्’अर्थात् पूरी वसुधा को कुटुम्ब मानने वाला पूरी दुनिया में कोई देश है तो वह केवल और केवल मेरा भारत है और कोई सोच भी नहीं सकता।इतना ही नहीं आज मैं टिप्पणी नहीं करना चाहता लेकिन पाश्चात्य संस्‍कृति का अनुकरण करते हुए लोग दौड़ और होड़ में लगकरअब इस पूरे संसार को मार्किट मान रहे हैं और कहते हैं किवर्ल्‍डमार्किट हैं। हमने कहा संसार बाजार नहीं है, हमने संसार को अपना परिवार माना है। उन्होंने संसार को बाजारमाना है तथाबाजार में व्यापार होता है। और परिवार में प्यार होता है इतना अंतर हैहमारी और उनकी सोच में। यह जो प्यार है यह जो परिवार का भाव है। यह केवल परिवार का भाव नहीं है कमजोर आदमी कभी किसी को संरक्षण नहीं दे सकता। संरक्षण वही दे सकता है जिसके चेहरे पर ताकत हो,जिसके चेहरे परस्‍वयं ही हंसी न हो वह दूसरों को क्या हंसा सकता है। जो स्‍वयं ही निराशा के झूले में झूलता हो वह दूसरों मेंआशा का संचार कैसे कर सकता है।पहले तो अपने में ताकत चाहिए, अपने  में विजनचाहिए। इसलिए देश में जब भी हम अच्छा किसी काम सेउठकर के करते हैं तो यह भी हमारा ही विजन है और इसेमैंबांट रहा हूं। आज ऐसे क्षणों में आपके साथ इन बातों को बाँटना चाहता हूं जो आपके जीवन में अनवरत चलती ही रहनी चाहिए हमने सदैव अंतिम क्षणतक कहा ‘‘सर्वे भवन्तु सुखिनः, सर्वे सन्तु निरामया। सर्वे भद्राणी पश्‍यन्‍तु,मां कश्‍चिददुख भाग्‍भवेत’।इस धरती पर मैं तब तक सुखी नहीं हो सकता हूँ जब तक कि धरती पर एक भी प्राणी दुखी होगा, यह है हमारी ताकत।जिसमें ताकत नहीं होगी तथाजो स्वयं ही रो रहा होगा, वहदूसरे को क्या कष्ट से उबार सकेगा। जो स्वयं हीत्रासदी में झूलरहाहोगा वह दूसरे की मदद कैसे कर सकता है।किसव्यक्ति के जीवन में कष्ट नहीं है लेकिन उसकष्‍टको ताकत के साथ एकतरफ करके उसको संघर्ष के साथ दूसरों के लिए समर्पित होने का भाव हमारा हमेशा रहा है। इसलिए हमारा जो मेरा देशहै वो विश्वगुरु अचानक नहीं है। केवल जीवन मूल्यों के आधार पर हम विश्वगुरु नहीं हैं।जब-जब हम विश्वगुरु की बात करते हैं हम भूल जाते हैं कि डेढ़ सौ सालों की गुलामी ने हमको हमारी मूल जड़ों से काटकर अलग किया। लार्ड मैकाले ने कहा था कि इस देश परयदि राज करना है तो इस देश की शिक्षा तथा संस्कृति और भाषा तीनों को बदल देना चाहिए। अपने आप यह देश आपके चरणों में आ जाएगा। डेढ़ सौ साल मेंउन्होंने यह किया लेकिन आज हम स्‍वाधीनहैं। इस देश की आजादी को 70 वर्ष हो गए। आज हमको वही भारत लाना है जो विश्व में गुरूथा जो विश्व का गुरु था। मेरे मित्रो, आप आपपी.एचडीलेकर जा रहे हैं, गोल्ड मैडल लेकर जा रहे हैं जैसा कि आदरणीय डा. रामलाल जी ने कहा ‘नेशन फर्स्ट करेक्टर मस्ट’ हमारे लिए नेशन फर्स्ट है। सारी समस्याओं का समाधान हो जाएगा और आप केवल डिग्री लेकर के कहीं सर्विस करने के लिए नहीं है। हमारा देश वो है जब हम सुश्रुत को याद करते हैं तो पूरी दुनिया में शल्य चिकित्सा का जनक कौन था तो उत्‍तर मिलता है किसुश्रुत था। हम उनके अभियान को कहां आगे बढ़ा पाये हैं। हम चरक के अभियान को भी आगे कहां बढ़ा पाये हैं जबकिआजआयुर्वेद के पीछे पूरी दुनिया खड़ी हो गई।ये रवि यहां बैठे हुए हैं लोगों को आज नहीं तो कल यह बात महसूस होगी कि जो भारत की शास्वत ज्ञान परंपराएं रही हैं वो पूरी दुनिया के लिए मार्गदर्शक हैं। पातंजलि का योग भी इसी धरती पर तो पैदा हुआ। मेरे देश के प्रधानमंत्री पूरे विश्व के मानव की समृद्धता के लिए अपील करते हैं कि इसकी सुरक्षा योग कर सकता है। आज 25 वर्ष का भी नौजवान मधुमेह की रोग से पीड़ित हो रहा है। नौजवान तमाम व्याधियों से ग्रस्त हो रहे हैं और इसीलिए जब उन्होंने अंतरराष्ट्रीय फोरम पर इस बात को कहा था कि क्या पूरी दुनिया के लोग इसके पीछे आ सकते हैं तो पूरी दुनिया योग के पीछे खड़ी होगई। 21 जून को आज पूरी दुनिया योग दिवस के रूप में मनाती है औरआज पूरी दुनिया फिर योग के पीछा करके खड़ी हुई है।हम पहले योग की बात करते थे और लोग हंसते थे। हम आयुर्वेद की बात करते थे औरलोग हमारा मजाक उड़ाते थे।अणु और परमाणु का विश्लेषणकर्ता ऋषि कणाद भी तो इसी धरती पर पैदा हुए। रसायन शास्त्री नागार्जुन से बड़ा रसायनशास्त्री कोई नहींहोसकता है।आर्यभट्टने शून्य दिया आज तमाम दुनिया के वैज्ञानिकइस बात को कहते हैं कि हिन्दुस्तान हमको यदिगणित और शून्‍य नहीं देता तो विज्ञान आगे बढ़ ही नहीं सकता था। इसलिए मैं सोचता हूं कि चाहे किसी दिशा में हो, ज्ञान हो विज्ञान हो, अनुसंधान हो, तकनीकी हो, ऐसा कोई भी क्षेत्र नहीं था जहां हमपीछे थे और इसलिए आज उस पर काम करने की जरूरत है। आज यहां से जाने के बाद योद्धा के रूप में अपने उस अतीत को लेकर के वर्तमान के साथ तथा नवाचार के साथ छलांग लगाने की ज़रूरत है।मुझे भरोसा है कि जब आप बड़ी उम्मीदों के साथ एक लगन के साथ तथा छटपटाहट के साथ एक योद्धा के रूप में मैदान में जाएंगे तो आप हर मुकाम को पाएंगे। आज दीक्षांत समारोह है वैसे तो दीक्षांत जैसे भाईसाहब ने कहा कि कभी दीक्षा का अंत होता ही नहीं यह संभव ही नहीं है। लेकिन हां, हमारे देश की परंपरा रही है। हमारी संस्कृतिरही है कि पहले शिक्षा के बाद दीक्षा और दीक्षा के बाद दीक्षांत तथा उसके बाद गुरुदक्षिणा। दीक्षांत के बाद क्या है गुरुदक्षिणा।यदिगुरुदक्षिणा में आपको कुछ देना हैतोमेरे भारत को विश्वगुरु बना दीजिए। बस यही आपकी गुरुदक्षिणा होगी।पूरी दुनिया आज आपकी ओर देख रही है, पूरी दुनिया निहार रही हिन्दुस्तान को। इस कोविड की महामारी में आपने देखा है कि पूरी दुनिया इस संकट से होकर के गुजरी है। मेरे भारत ने ताकत के साथ इसकोविडकी महामारी का मुकाबला किया। मेरे देश के प्रधानमंत्री ने हर बार कहा है कि यदि चुनौतियां बड़ी होती हैं और उसका ठीक डटकर के मुकाबला होता है तो वही चुनौतियां अवसरों में तब्दील हो जाती हैं और मैंने इसको अपनी आंखों से देखा है। इस देश में एक हजार विश्वविद्यालय हैं, इस देश में 45 हजार डिग्री कॉलेज हैं, इस देश में 15 लाख से ज्यादा स्कूल हैं, इस देश में एक करोड़ दस लाख से अधिक अध्यापक हैं और अमेरिका की कुल जितनी जनसंख्या नहीं होगी उससे भी ज्यादा 33 करोड़ छात्र छात्राएं हमारे देश में हैं।यह इस देश की संपदा है। पूरी दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश हमाराहै और जब कोविडकी महामारी आई तब मेरे देश के प्रधानमंत्री ने नौजवानों से कहा कि आप क्या कर सकते हैं। मैंने देखा, जब लोग अपने घरों में थे तब मेरे प्राध्यापक और मेरे शोध छात्र अपनी प्रयोगशालाओं में थे और हमने करके दिखाया।आज यदि कोविडके समय में चाहे ड्रोन हो, चाहे टेस्टिंग किट हो, चाहे मास्‍क हो, एक के बाद एक जो हिंदुस्तान में था ही नहीं उसे आज हम उत्पादित करके पूरे विश्व को भेज रहे हैं। यह कोविडके समय में हुआ है औरयह हमने किया है।‘युक्‍ति’पोर्टल पर जब कभी आप जाएंगे तो कोविडके समय में कितना अनुसंधान हुआ मेरे आईआईटी ने, एनआईटी ने, आईसर ने, मेरे विश्वविद्यालयों ने क्या-क्या शोध किया है मेरे नौजवानों आप युक्‍ति पोर्टल पर उसे जानने के लिए जाइए। उसके बाद एआईसीटीई ने कहा हम ‘युक्ति-2’ भी चाहते हैं। जितने भी हमारे छात्रों के आइडियाज हैं वो युक्ति पोर्टल परआएं।एक ऐसा प्लेटफॉर्म हो जहां देश और दुनिया के लोग मेरे नौजवानों के आईडियाजको लेके जा सकें। मेरे नौजवान का आइडिया आज पूरी दुनिया में हलचल मचा रहा है। जो कहते हैं कि अमेरिका जाने की बहुत होड़ लगी है जबकि हमने ‘स्‍टडी इन इंडिया’ अभियान को लिया। मेरे को इस बात की खुशी है कि इस विश्वविद्यालय के अंदर 65 देशों के दो हजार से भी अधिक छात्र यहां अध्‍ययन कर रहे हैं। मैं शुभकामना देना चाहता हूं तथा बधाई देना चाहता हूं और इसीलिए हमने ‘स्टडी इन इंडिया’ किया है किपूरी दुनिया के लोग हिन्दुस्तान में पढ़ने के लिए आएं।आप सबको पता है कि तक्षशिला, नालंदा और विक्रमशिला से पहले कौनसा विश्वविद्यालय था दुनिया के अन्‍दर? जब मैं इस बात को पूछता हूं कि दुनिया के लोगों आप बता तो दीजिए कि तक्षशिला, नालंदा और विक्रमशिला से पहले कौन-सा दुनिया में विश्वविद्यालय था?तबवो कोई जवाब देने को तैयार नहीं होते। इसका मतलब है कि तक्षशिला, नालंदा और विक्रमशिला जैसे विश्वविद्यालय मेरे हिन्दुस्तान के अंदर थे जहां पूरी दुनिया के व्यक्ति ज्ञान, विज्ञान और अनुसंधान के लिए आते थे। इसीलिए हम तो पहले से ही पूरी दुनिया को लीडरशिप देते रहे हैं, यह कोई नई बात नहीं है। यह अलग बात है कि गुलामी के थपेड़ों ने हमको हमारी जड़ों से अलग किया। लेकिन फिर भी हम कहते हैं कि यूनान, मिस्र, रोमां, सब मिट गए जहां से, अब तक मगर हैबाकी नामो निशां हमारा और कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी। दुनिया में न जाने कितने देश पैदा हुए और मिट्टी में मिल गए तथाकिसी का इतिहास भी नहीं मिलता लेकिन हम जिन्दा हैं। हमारी रगों में, देशभक्ति का,संस्कारों का मूल्यों का रक्‍त प्रवाहित होता है। कुछ समय पहले यूनेस्को की डीजी मुझे मिलने के लिए आई थी। मेरी एक पुस्तक का उन्होंने कार्यक्रम रखा था तो उसमेंउन्होंने कहा कि आज अनुशासनहीनता बढ़रही है।मैंने कहा कि ऐसा इसलिए हो रहा है कि हमने उनको जड़ों से तो उसको काट दिया हमने उनको मनुष्य नहीं बल्‍कि मशीन बना दिया है।आज पैकजकी होड़ लगी हुई है। पेटेन्‍ट की होड़ नहीं है। मैंने अपने सभी छात्रों को कहा है किपैकेज कीहोड़ को छोड़ के पेटेंट की होड़ जरूरी है।जिससेदुनिया में मेरा देश फिर शीर्ष पर पहुंच जाएगा।आपशोध और अनुसंधान करो। जिस बात को हम भूल गए हैं, उसको कैसे तक हम आगे ला सकते हैं। मुझे भरोसा है कि नई शिक्षा नीतिआमूलचूल परिवर्तनों को ले करके इस देश के अंदर आई है और मुझे इस बात की खुशी है कि जब हम नई शिक्षा नीति को लाये तो शायदइस पर दुनिया कासबसे बड़ा विमर्श हुआहोगा। इससे पहले किसी नीति पर दुनिया में शायद ही इतना विमर्श हुआ होगा।जहां गांव से लेकर के संसद तक, ग्रामप्रधान से लेकर प्रधानमंत्री जी तक,शिक्षक से लेकर के शिक्षाविद् तक,कोई क्षेत्र नहीं छोड़ा। तैतीस करोड़ छात्र-छात्राओं के माता-पिताओं के साथ भी हमने परामर्श किया।आप समझ सकते हैं 33 करोड़ छात्र और उनके माता-पिता को जोड़ेंगे तो 99 करोड़ होता है। गुप्ता जी मैं देख रहा था कि एनआईआरएफ रैंकिंग में आप 200 के अंदर है, मेरी शुभकामनाएं। जब मैं अगली बार आऊं तो आपको छलांग मारते हुए आगे देखना चाहता हूं।मैं कुलपति जीको इसके लिए बधाई देनाचाहता हूं।हम टाइम्स रैंकिंग एवं क्‍यूएस रैंकिंग में भी पीछे नहीं हैं। हमको बोला जाता है कि धारणा ठीक नहीं है बाकी सब अच्छे हैं लेकिनधारणा कौनतय कर रहे हैं। मैं जब आईआईटी में जाता हूं तो पूछता हूं कि पुराने छात्र कहां-कहां हैं? मुझे ढूंढ कर के बताओ तो मुझे लगता पूरी दुनिया में मेरे आईआईटी, मेरे विश्वविद्यालय,तथामेरे एनआईटी काबच्चा छायाहुआहै। यदि अमेरिका के ही शिक्षा बहुत उत्कृष्ट कोटी की होती तो गूगल और माइक्रोसॉफ्ट के सीईओ इसहिन्दुस्तान की धरती से पढ़नेवालाबच्चा नहीं होताऔर इसकी पूरी लंबी श्रृंखला है।ऐसा नहीं कि हम कमजोर हैं और वे ताकतवर हैं। इसलिए यह नयी शिक्षा नीति आई है। मुझे इस बात की खुशी है कि पूरे देश के अंदर एक उत्सव जैसा वातावरण है। ग्राम प्रधान को भी लगता है कि यह मेरी शिक्षा नीति है। अभी कुछ दिन पहले एक वेबिनारकर रहे थे जिसमें बहुत सारे लोगों ने कहा कि निशंक जी प्रधानमंत्री जी को हम आभार व्यक्त करना चाहते हैं। 34 सालों के बाद नई शिक्षा नीति को आप लाये हैं। श्रीश्री रविशंकर जी ने अपने वक्तव्य में कहा कि मुझे ऐसा लगता है कि 34 साल के बाद जो नई शिक्षा नीति आई वह देश की आजादी के बाद पहली बार आई है। लार्ड मैकाले जिस दिन इस देश में आया था उस दिन इस देश की जो साक्षरता थी 97 प्रतिशत थी और उसके बाद देश जिस तरीके से पीछे गया उसमें पीछे जाने की बहुत जरूरत नहीं है। मैं याद दिला रहा हूं केवल क्योंकि आपकोयोद्धा की तरह आगे चलना है, देश की पहचान तो अपने आपबनेगी। इसलिए मैं याद दिला रहा हूं हालांकिआपकोभी पता है लेकिन इन बातों को जेहन में 24 घंटा रखने की ज़रूरत है। इसलिए मैं याद दिला रहा हूं क्‍योंकि मेरे देशके आगे पूरी दुनिया नतमस्तक होती है। मेरे देश के प्रधानमंत्री जी के आह्वान पर सारी दुनिया जब आतंक के ढेर पर खड़ी होती है तोआतंक के खिलाफ एक मंच पर आ जाते हैं। नरेंद्र मोदी जी के पीछे खड़े हो जाते हैं।जब मौसम परिवर्तन की बात आती है और हाहाकार मचता है तो फिर मौसम परिवर्तन के बारे में भी तथा जलवायु परिवर्तन में भी हिंदुस्तान की लीडरशिपपूरी दुनिया पीछे आ जाती है। योग का अभीमैंने उदाहरणदिया, वैकल्पिक ऊर्जा का उदाहरण देरहाहूं। पूरी दुनिया में हिन्दुस्तान लीडरशिप ले रहा है और अब अनुसंधान की मुझेबार-बार जरूरत महसूस होती है एक समय था जब हमारे देश के अंदर और बाहर हम संकट से जूझ रहे थे।जबदेश के प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी थे। आपको याद होगा कि सीमा पर हम संकट से जूझ रहे थे और देश में भी खाद्यान का बहुत संकट था। उस समय लालबहादुर शास्त्री जी ने ‘जय जवान, जय किसान’ का नारा दिया था और पूरा देश इकट्ठा हो गया। हमने दोनों संकटों कोमात किया। उसके बाद मेरे देश के यशस्वी प्रधानमंत्री भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी जी आए तो उनको लगा कि नहीं अब विज्ञान की जरूरत है और उन्होंने ‘जय विज्ञान’ का नारा दिया और परमाणु परीक्षण करके उन्होंने हिंदुस्तान को पूरे विश्व की महाशक्ति के रूप में आगे बढ़ाने का काम किया। विज्ञान में भी हम कभी पीछे नहीं रहे और अब हमारे देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने कहा कि अब एक कदम और आगे जाने की जरूरत है और उन्‍होंने‘जय अनुसंधान’ का नारा दियायह जो अनुसंधान है इसकी जरूरत है। इसलिए हम अबनेशनल रिसर्च फाउंडेशन के माध्‍यम सेशोधएवं अनुसंधान की संस्कृती को विकसित कर रहे हैं,प्रधानमंत्री जी के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार की अध्यक्षता में हम लोग ‘नेशनलरिसर्च फाउंडेशन’ की स्‍थापना कर रहे हैं। तकनीकी कोअंतिम छोर तक कैसे लेकर के जा सकते हैं इसके लिए भी हम ‘नेशनल एजुकेशन टेक्नोलॉजी फोरम’ का गठन कर रहे है।‘नेशनल एजुकेशन टेक्नोलॉजी फोरम’ का गठन करके इन दोनों को साथ जोड़कर हम शोध की संस्कृति कोआगे बढ़ा रहे हैं।मुझे भरोसा है कि जो यह नयी शिक्षा नीति आयी है वो नयी शिक्षा नीति बिल्कुल नए कलेवर के साथ आई है। अब हमने10+2 को पूराखत्म कर दियातथा उसके स्‍थान पर हमने5+3+3+4 किया है एवं 5 को भी 3+2 में किया है क्योंकि 3 से 6 वर्ष के बच्चे में 80 से85 प्रतिशत मस्तिष्क का तेजी से विकास होता है और हम उस अवसर को खोना नहीं चाहते हैं। इसलिए हम खेल-खेल में तीन वर्ष के बच्चे को भीपकड़ करके उसे आगे चलाना चाहते हैं।हमारादेश पहला होगा जो स्कूली शिक्षा मेंआर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को लेकर के आ रहा है। हमको कुछ और सोचने के लिए नहीं बल्‍कि केवल डिग्री लेकरबाबूगिरी करने के लिए कुछ लोगों की परंपरा कर दी थी।अब ऐसा नहीं होगा अब कक्षा 6 से ही हम वोकेशनल स्ट्रीम इंटर्नशिप के साथ ला रहे हैं। छठी से ही बच्चा पूरा इंटर्नशिप के साथ पढ़ाई करेगा। मेघालय के युवा मुख्यमंत्री यहां बैठे हैं। मेघालय में जैसे अभी आदरणीय रामलाल जी ने कहा कि कितनी संपदा है। वहां जड़ी-बूटी हैं, जितनी सुंदरता है, उसकी खनिज संपदा है, वहां का जो छात्र है वो सब कुछ कर सकता है। वहींशोधकरे और उसको उठाए जो प्रधानमंत्री जी ने कहा है कि वोकल फोर लोकल। यह वहां से शुरू होगा और सम्‍पूर्ण विश्व तक जाएगा। जब बच्‍चा स्कूल से निकलेगा तो वह एक योद्धा के रूप में निकलेगा। उसको किसी दूसरेके पैर पर खड़े होने की जरूरत नहीं होगी और जब वो विश्वविद्यालयों में आएगा तोविश्व में आगे किस तरीके से उसको अपनी लीडरशिप पर ले जाना है, वहां से उसका सोचना शुरू होगा। हमने स्कूली शिक्षा में 360 डिग्री होलिस्टिक मूल्यांकन रखा है।जिसमें विद्यार्थी अपना भी मूल्यांकन करेगा, उसका साथी भी उसका मूल्यांकन करेगा तथा उसका अभिभावक भी मूल्यांकन करेगा और अध्यापक भी मूल्यांकन करेगा। अब उसेकोई रिपोर्ट कार्ड नहीं दिया जाएगा बल्कि अब उसे प्रोग्रेस कार्ड दिया जाएगा। इस शिक्षा नीति में हमने मातृभाषाओं को प्राथमिकता दी है क्योंकि जितनी अभिव्यक्ति व्यक्ति अपनी मातृभाषा में दे सकता है अपनी दूसरी भाषाओं में सीखकरके कर ही नहीं सकता। देश के संविधान में भी तो हमको 22 भारतीय भाषाओं को दिया गया है।तमिल, तेलगू, मलयालम, कन्नड़, गुजराती, मराठी, बंगाली, उर्दू, संस्कृत, हिंदी, उडिया, असमिया जितनी 22 भारतीय भाषाएं खूबसूरत हैं, यह केवल शब्द नहीं हैं।इनमें ज्ञान है, विज्ञान है, अनुसंधान है, परंपराएं है,सब कुछ है इनके अंदर। यही तो विविधता में एकता है मेरे देश की औरकुछ लोग कहते हैं किडॉ. निशंक आप अंतरराष्ट्रीय स्‍तरपर जाना चाहते हैं। मैंने कहा किहां, जाना चाहते हैं, छलांग मारेंगे हम। यदि ग्लोबल की बात आप कर रहे हैं तथा विश्व की बात कर रहें हैं तो अंग्रेजी तो नर्सरी से आपको सिस्टम में लाना पड़ेगा। मैंने उनको विनम्रता से पूछा उसके बाद किसी ने जबाब नहीं दिया मैंने पूछा कि जापान, जर्मनी, फ्रांस, इजराइल, अमेरिका  समेत दुनिया के बहुत  सारे देश अपनी मातृभाषा में शिक्षा देते हैं, क्‍या वो किसी से पीछे हैं, फिर क्‍योंऐसे तर्क दिये जाते हैं? किसी प्रदेश पर कोई भाषा थोपी नहीं जाएगी, हां उसकी अपनी मातृभाषा में प्राथमिक शिक्षा और वो राज्य चाहे तो उच्च शिक्षा तक भी दे सकते हैं। अभी देश के प्रधानमंत्री जी ने तो यहां तक कह दिया कि नीट और जेईई की परीक्षाभीबचचेकी मातृभाषा में होनी चाहिए।मेरा गांव का बच्चा भी अब अपनी क्षेत्रीय भाषा में डॉक्टर, इंजीनियर बन सकेगा। इसलिए हम इसकोबहुतखूबसूरती के साथ लाये हैं। जहां तक अंतरराष्ट्रीय का विषय हमने दुनिया के सौ शीर्ष विश्वविद्यालयों को इस हिन्दुस्तान की धरती पर आमंत्रित किया है।हम अपनी शर्तों पर उन्‍हें आमंत्रित करेंगे और हमारी जो शीर्ष संस्थाएं हैं वे भी विदेशों में जाएंगी। हम दुनिया के 127शीर्ष विश्वविद्यालयों के साथ ‘स्पार्क’के तहत अनुसंधान कर रहे हैं। हम ‘स्ट्रॉयड’ के साथ अनुसंधान कर रहे हैं। हमइम्‍प्रिंट, इम्‍प्रेस के साथ अनुसंधान कर रहे है और जहां‘ज्ञान’ में बाहर की फैकल्टी हमारे यहां पढ़ाने के लिए आएंगी तो अब‘ज्ञान प्लस’ में भीहमारी फैकल्टी बाहर पढ़ाने के लिए जाएगी। यह हमने तय किया है और इतनी सामर्थ्य इस देश में होनी चाहिए। इसलिए मैं समझता हूं कियहक्षणहमारे लिए बहुत आनंद के हैं तथा गौरव के हैं, यह उत्साह के हैं तथाउल्लास के हैं एवं भविष्य की आधारशिला के हैं। आज यहां से 3593 छात्र इस दीक्षांत समारोह में स्नातक, एक हजार दो सौ तीन छात्रों ने परास्नातक डिग्री और 51 छात्र पीएचडी,26 छात्र स्वर्ण पदक और 6 छात्र चांसलर पदक और तीन छात्र कुलपति पदक लेकर जा रहे हैं।मैंपदक पाने वालों के चेहरों को देख रहा  था क्‍योंकिमैं भी अध्यापक हूं इसलिएमैंचेहरों को थोड़ा सा पढने की कोशिश करता हूं। आपके चेहरे की आभा कहीं धूमिल नहीं होनी चाहिए। पहले तो किसी स्थान को बनाना बहुत मुश्किल होता है लेकिन उसस्थान को बरकरार रखने की और भी बड़ीचुनौती होती है।मैं आपको शुभकामना देना चाहता हूं किआप उस चुनौती को बरकरार रखतेहुए मुकाम तक जाएं।। मेरी शुभकामनाएं आपको।इतनी डिग्रियों को एक साथ देना इस विश्वविद्यालय की सफलता का बहुत बड़ा परिचायक है। मैं बधाई देना चाहता हूं। आपवैज्ञानिक, इंजीनियरिंग, प्रौद्योगिकी, मैनेजमेंट, मानविकी, वास्तुकला, जनसंचार तमाम विषयों को आप यहां पर पढा रहे हैं और उसकी डिग्री दे रहे हैंऔर 11 वर्षों की आपकी यात्रा ने आशातीत सफलता पाई है। मैं कह सकता हूं और मुझे भरोसा है कि जो उत्साह आप लोगों में हैंउसको बढ़ चढ़कर आगे बढ़ाएंगे। आप उन्‍नतभारत अभियान में भी, स्वच्छता अभियान में भी, एक भारत श्रेष्ठ भारत के अभियान में भी, एक पेड़ एक छात्र जो हम लोगों ने अभियान किया था कि प्रत्‍येक छात्र एक पेड़ को अपने जन्मदिन पर जरूर लगाएं उस अभियान में भी आप लगातार आगे बढ़े हैं और हरित ऊर्जा का जो अपने कैम्पस बनाया है इसकी भी आपको बहुत-बहुत बधाई देना चाहता हूं। मेरे प्रिय छात्र छात्राओं! मैं यह समझता हूं कि यह जो नई शिक्षा नीति है वह आपके लिए बेहतरअवसर लेकर आई है इस अवसर को अपने हाथ से खोने मत दीजिए। अब नई शिक्षा नीति में आप कोई भी विषय आप ले सकते हो। विज्ञान के साथ आपसाहित्य ले सकते हैं, आप इंजीनियरिंग के साथ संगीत ले सकतेहैं और आप जब चाहें तब छोड़ सकते हैं।इस शिक्षा नीति के अंतर्गत यदि कोई 4 वर्ष का कोर्स है और यदि कोई छात्र दो साल में परिस्‍थितिवशछोड़के जा रहा है  तो पहले उसका पैसा एवं वर्ष दोनों खराब हो जाते थे लेकिन अब उसकोनिराश नहीं होना पड़ेगा।यदि आप परिस्‍थितिवश एक वर्षमें छोड़ कर जा रहे हैं तो उसको सर्टिफिकेटदेंगे,दो साल में छोड़ कर जा रहा है तो डिप्लोमा देगें, तीन साल में छोड़कर जा रहा है तो उसकोडिग्री देंगे लेकिन यदि फिर वह लौट कर अपने भविष्य को संवारना चाहता है तो फिर जहां से उसने छोड़ा था वहीं से शुरू कर सकता है। उसके लिए हम एक ऐसा क्रेडिट बैंक बनायेंगे जहां उसके सारे क्रेडिट जमा होंगेइसलिए उसके लिए आगे बहुत आपार संभावनाएं है।वह कहां जाना चाहता है, शोध और अनुसंधान के क्षेत्र में जाना चाहता है।स्‍टडी इन इंडिया के तहत अभी 50 हजार लोग यहां पर आए हैं। उन्होंने रजिस्ट्रेशन किया है। यदि कोविडनहीं होता तो बहुत तेजी से यह बढ़ रहा था लेकिन मैं अनुरोध करना चाहता हूं कि इस विश्वविद्यालय से कि जहां हमने‘स्टडी इन इंडिया’ का अभियान लिया है वहीं हमने ‘स्‍टे इन इंडिया’ अभियान भी लिया है क्‍योंकि हमारे देश से 7-8 लाख छात्र प्रतिवर्ष विदेशों में पढ़ने के लिए जा रहे हैं। हमारे देश का पैसा और प्रतिभा दोनों बाहर चली जाती हैं वो प्रतिभा वापस हमारे देश में नहीं आती है। इसलिए हमने‘स्‍टे इन इंडिया’ किया  हमने  छात्रों को भरोसा दिलाया कि हमारे आईआईटी, एनआईटी, आईसर, केन्‍द्रीय विश्‍वविद्यालयों में योग्‍यता है तथा क्षमता है और आपको  बाहर जाने  की जरूरत नहीं है,अब लोगों की समझ में आ गया है। मुझे इस बात की खुशी है कि पीछे के समय जब हमने जेईई परीक्षाएं करवाई और दो लाख से भी अधिक छात्र जोविदेश में जा रहे थेवे जेईई और नीट की परीक्षाओं में सम्‍मिलित हुए।  हम ‘स्‍टे इन इंडिया’ के तहत दुनिया के शीर्ष सौविश्वविद्यालयों को अपनी धरती पर आमंत्रित कर रहे हैं, आपकोकहीं जाने की जरूरत नहीं है और यहां के जो शीर्ष विश्वविद्यालय हैं वेभीबाहर जा रहे हैं। ये आदान-प्रदान हम करेंगे।हम कोशिश कर रहे हैं कि उनको यहां सारी सुविधाएं दें। इसलिए अब बाहर जाने की जरूरत नहीं है। मेरे देश के प्रधानमंत्री जी ने फाइव ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था की बात की है,साथ ही प्रधानमंत्री जी ने यह भी कहा हैकि21वीं सदी का स्वर्णिम भारतचाहिए। ऐसा भारत जोसुन्‍दर हो,स्वस्थ हो,सशक्त हो,समृद्ध हो,आत्मनिर्भर हो,श्रेष्ठ हो और एक भारत हो।ऐसा भारत जिसका रास्ता ‘मेक इन इंडिया’,‘डिजिटल इंडिया’,‘स्किल इंडिया’,‘स्टार्टअप इंडिया’ और ‘स्टैंडअप इंडिया’ से होकर गुजरता हो और उस भारत की आधारशिला यह नई शिक्षा नीति है और मुझे भरोसा है कि हम इसेमिशन मोड में करेंगे। यह शिक्षा नीति दुनिया के सबसे बड़े परामर्श के बाद आई है। मुझे भरोसा है कि आज का यह दिन आपके जीवन के इतिहास में एक ऐसी इबारत लिखेगा जो आपको हिन्दुस्तान की उंचाइयों पर नहीं बल्कि हिन्दुस्तान को आप पर गर्व हो करके विश्व में आप चमक सकें, आपको मेरी शुभकामनाएं।

 

बहुत-बहुत धन्‍यवाद!

 

कार्यक्रम में गरिमामयी उपस्‍थिति:-

 

  1. डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’, माननीय शिक्षा मंत्री, भारत सरकार
  2. श्री कोनार्ड संगमा, माननीय मुख्‍यमंत्री, मेघालय
  3. डॉ. महेश शर्मा जी, पूर्व कैबिनेट मंत्री, भारत सरकार
  4. डॉ. रवि प्रकाश, महासचिव, भारतीय गुणवत्‍ता परिषद्,
  5. श्री पी. के. गुप्‍ता, कुलाधिपति, शारदा विश्‍वविद्यालय
  6. श्री यतिन्‍द्र कुमार गुप्ता, उप- कुलाधिपति, शारदा विश्‍वविद्यालय
  7. डॉ. शिवराम खारा, कुलपति, शारदा विश्‍वविद्यालय

 

 

महिला सशक्‍तिकरण विषय पर आधारित एआईसीटीई लीलावती पुरस्‍कार का शुभारम्‍भ

महिला सशक्‍तिकरण विषय पर आधारित एआईसीटीई लीलावती पुरस्‍कार का शुभारम्‍भ

दिनांक: 17 नवम्‍बर, 2020

 

माननीय शिक्षा मंत्री, डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’

          मैं सबसे पहले तो ‘लीलावती पुरस्‍कार 2020’ की विधिवत् घोषण कर रहा हूं कि आपने जो यह शुरूआत की है मैं उसके लिए एआईसीटीई को बहुत बधाई देना चाहता हूं। आज एआईसीटीई के अध्‍यक्ष प्रो. अनिल सहस्‍त्रबुद्धे जी, उपाध्‍यक्ष प्रो. एम.पी. पूनिया जी, प्रो. वसुधा कामत जी, प्रो. राजीव कुमार जी, डॉ. अमित कुमार श्रीवास्‍तव जी, एआईसीटीई का पूरा परिवार तथा सभी कॉलेजों के एवं विश्‍वविद्यालयों के संकाय सदस्‍य, कुलपति, अन्‍य सहयोगी भाईयो और बहनों! साथ ही जिन लोगों ने इस योजना को समर्थ बनाया और जिन्‍होंने इसका डिजाईन बनाया प्रो. हीना जी, प्रो.शिखा कपूर जी, डॉ. पी. विनेशा जी, रूचिका जी आप सभी को बहुत सारी शुभकामनाएं देना चाहता हूं कि आज एक अच्‍छा काम हुआ है महिला सशक्‍तिकरण क्‍योंकि हमारे देश में थोड़ा सा पीछे मुड़कर देखते हैं तो जिस व्‍यक्‍ति को, जिस परिवारको, जिस समाज को, जिस राष्‍ट्र को अपने अतीत को देखकर के आगे बढ़ना नहीं आता जिसको अपने अतीत का गौरव महसूस नहीं होता है, वह बहुत आगे नहीं बढ़ पाता है वह कटी हुई पतंग की तरह आसमान में उड़ जाता है और इसलिए जब भी हम अपने देश की बात करते हैं तो हम पीछे देखते हैं कि हम क्‍या हैं क्‍योंकि वो हमारा गौरव है। पूरीदुनिया में हिन्‍दुस्‍तान विश्‍व गुरू के रूप में रहा है जिसने हर क्षेत्र मेंपूरी दुनिया का मार्गदर्शन किया है। ऐसे देश में जब हम अपने ऋषि-मुनियों की, समाजशास्‍त्रियों की, शिक्षाविदों की जब तक बात करते हैं तो उसमें हर क्षेत्र में नारी शक्‍ति शीर्ष पर दिखती है। इसलिए अगर हम शुरू से देखेंगे तो चाहे वो मां सरस्‍वती के रूप में रहा हो, हमने मां सरस्‍वती को हमेशा मां कहा है। यदि सरस्‍वती किसी व्‍यक्‍ति से रूठ जाये तो उसको लोग कहते हैं कि यह पागल हो गया, क्‍योंकि उसे पता नहीं होता है, क्‍या बोलना है और क्‍या नहीं उसकी जिह्वा पर सरस्‍वती न हो तो वह पागलों की तरह भटकता नजर आयेगा इसलिए गायत्री को मां कहा है, सरस्‍वती को मां कहा है, लक्ष्‍मी को भी हमने मां कहा है क्‍योंकि बिना धन के कोई खड़ा नहीं हो सकता है। अभी पूनिया जी 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्‍यवस्‍था की बात कर रहे थे और धरती पर जब-जब भी आसुरी प्रवृत्‍तियां पैदाहुई हैं तब उनका विनाश करने के लिए मां दुर्गा ही सामने आई हैं। यदि आप देखेंगे तो मां पुरूष और महिला की कभी समानता नहीं हो सकती है। मां तो मां है मां समान कैसे हो सकती है। इसलिए यह जो पाश्‍चात्‍य हौड़ लगी कि महिला पुरूष को समान होना चाहिए इसने महिला पुरूष के बीच की खाई को पाटा नहीं है बल्‍कि बांटा है क्‍योंकि  मां का जो दर्जा था,  जिस श्रेष्‍ठता  पर वो थी उसकी श्रेष्‍ठता  को हम कैसे नीचे ला सकते हैं, यह कैसे संभव हो सकता है।हमारे शास्‍त्रों में कहा गया है कि जिस भी समाजमें,राष्‍ट्र में महिला का सम्‍मान होताहै वही प्रगति करता है और जिस परिवार में महिला का सम्‍मान नहीं है, हम अपने अगल-बगल भी देख सकते हैं लंबी बात करने की जरूरत नहीं है जिस परिवार में महिला का अपमान हो रहा होगा आप देखिए वह परिवार  बर्बाद हो जाता है।इसीलिए यह जो मां हैं यह जो नारी शक्ति है हमने तो हमेशाउस शक्ति की पूजा की है।अंततोगत्‍वासारे संसार कोआकर के शक्ति की ही पूजा करनी है। अभी वो प्रगति की दौड़ में, अर्थतंत्र की दौड़ में,भौतिकवाद के रूप में सब कुछ हो रहा है लोगों में मूल्यों को समाप्त करके केवल होड़ लगी है, दौड़ लगी है वो हौड़ और दौड़ कहीं न कहीं जब खत्म हो जाएगी और लगेगा कि कुछ नहीं मिला तब अंत में निराश होकरके उसी स्थान पर शक्ति की पूजा के रूप में होता है, संस्‍कारों के रूप में होता है, विचारों के रूप में होता है, और जो समर्थता के रूप में होता है और अंतत: शक्ति के पास आकर के सबको खड़ा होना पड़ता है। इसीलिए भारत की जो हमारी परंपरा रही है वो सृजन करती है चाहे वो मां केरूप में हो अथवा एक बहन के रूप में। एक मां के रूप में कैसे करके वो उन रिश्तों को निभाती है और हरचुनौती का मुकाबला करकेएक सृजन करती है। इसलिए कहते हैं कि लाख पुरूष एकतरफ और एक महिला दूसरी तरफ दोनों बराबर होते हैं। पुरुष को शिक्षित करना होता है तो केवल एक पुरुष शिक्षित होता है लेकिन महिला शिक्षित होती है तो पीढ़ी दर पीढ़ी शिक्षित होती है, पूरा समाज शिक्षित होता है औरसंस्कारों के साथ खड़े होते हैं और इसलिए मैं समझता हूं कि जो आज यह काम हो रहा है यह बहुत अच्छा काम है और मुझे इस बात को लेकर की खुशी है। जब मैं देश के अन्दर सभी स्थानों पर जाता हूं तोमैं सबसे पहले देखता हूं कि जो दीक्षांत समारोह हैं इसमें पुरस्कार पाने वाले जोहैं उसमें महिलाओं की क्या स्थिति है। मुझे यह कहते हुए बहुत गर्व महसूस होता है कि अभी मैंपीछे के समय में उत्‍तर प्रदेशके एक विश्वविद्यालय में गया। वहां 75 प्रतिशत से अधिक गोल्ड मेडल प्राप्त करने वाली सब बालिकाएं थी। डिग्रियों को प्राप्त करने वाली 60 प्रतिशत से अधिक छात्राएं थी। अभी मैं आईआईएम पंजाब में जुड़ा था। उस आईआईएम के दीक्षांत समारोह में वहां 60 प्रतिशत से भी अधिक बालिकाओं ने डिग्रियों को प्राप्त किया तो मुझे इस बात की खुशी हैऔर मैं आपका भी देख रहा था कि आपने जो पीछे से 2014-15 से लेकर 2020 तक 21430 छात्राओं को स्कॉलरशिप दीऔर पीजी में 2018-19में 141 महिलाओं को फेलोशिप दी। 2015 से 2020 के बीच 14502 छात्राओं को डिग्रीकोर्स हेतू प्रगति और स्कॉलरशिप दी और 9468 छात्राओं को डिप्लोमा कोर्स के लिए प्रगति स्कॉलरशिप दी साथ ही 460 दिव्यांग छात्राओं को आपनेसक्षम स्कॉलरशिप दी। मुझे अच्छा लगा कि इस दिशा में आप यदि पीछे सेदेखेंगे तो आपने छलांग मारी है।यहबात सही है कि अभीपूनियाजीभी कह रहे थे कि हम दौड़ रहे हैं,हम भी कह रहे हैं कि दौड़ो। मुझे इस बात की खुशी है कि पीछे के एक साल सेमैं देख रहा हूं किहमारे चेयरमैन साहब तो यंग होते जा रहे हैं दौड़ते-दौड़ते,हर क्षेत्र में दौड़ रहे हैं। उनके चेहरे औरमुस्कुराहट से साफ लग रहा है वे हर क्षेत्र मेंअव्‍वलआ रहे हैं और क्यों नहीं आएंगे? जब इच्छाशक्ति होती है और टीम अच्छी होती है तथा टारगेट साफ सामने रहता है और दौड़ने की योग्यता भी रहती है तो आपको कोई रोक नहीं सकता।लेकिनकई बार दौड़ने की तो इच्छा हो तथायोग्यता न हो तो भी बहुत मुश्किल हो जाता है। लेकिन यदि योग्यता भी होऔरदौड़ने की इच्‍छा नहो तो भी बेकार हो जाता है और यदि व्‍यक्‍ति अकेला दौड़ रहा हो और टीम तमाशा देख रही होतबभी बेकार हो जाता है।इसलिए यह प्रगति की दौड़ है जिसेसब मिलकर के विजनके साथ इकट्ठा होकर जाने का दम चाहिए।हमारे देश के प्रधानमंत्री जी बार-बार कहते हैं किजो21वीं सदी का स्वर्णिम भारत है उस भारत की ओर हम तेजी से दौड़ रहे हैं। मैं कह सकता हूं कि एआईसीटीईइस दौड़ में काफी आगे दौड़ रहा है, मेरी शुभकामनाएं हैंकि आप हर कदम पर दौड़दिखा भी रहे हैं तथारिजल्ट भी पारहे हैं।मैंपीछे के एक साल, डेढ़ साल से सब कार्यक्रमों में लगभग-लगभग हरजगह जुड़ता हूं। आप नया कुछ न कुछ कर रहे हैं। छात्राओं के बीच, छात्रों के बीच, संस्थाओं के बीच, जो लोग शोध कर रहे हैं उनके बीच,जोअनुसंधान के क्षेत्र में भी बहुत आगे बढ़ रहे हैं।आज लीलावती पर आपने यहपुरस्कार शुरू किया और जैसे वसुधा जीअभी चर्चा कर रही थी कि हमारे भास्कराचार्य जी पूरी दुनिया में अद्भुत वैज्ञानिक थे और उन्‍होंने अपनी बेटी लीलावती को विदुषी बनाने के लिए ‘सिद्धांत शिरोमणि’की रचना की। लीलावती को समझाते हुए उसकी रचना 36 वर्ष की आयु में उन्होंने की थी और जटिल से जटिल जो भी विषय है,गणित जैसा जटिल विषय उसको भी पद्धात्‍मक तरीके से समझाया है। गणित को आम लोग केसेसमझ सकते हैं उसकी टीका उन्‍होंने स्वयं लिखी ताकिजन मानस के पास गणित का ज्ञान पहुंच सके।‘सिद्धांत शिरोमणि’ को पढ़ेंगे तो आपको लगेगा कि एक पिता अपनी बेटी को बात करते-करते पूरी दुनिया समझा देता है तथाज्ञान, विज्ञान, अनुसंधान का उसके अंदर समावेश कर देता है। हमारे एआईसीटीई के चेयरमैन साहब कह रहे थे और इनके यहांहम लोगों ने भारतीय ज्ञान परंपरा का एक प्रकोष्ठ भी शुरू किया है। यही सब चीजें हैं जो हमारी थाती हैं। हमारे देश की गुलामी के कारण हमारी जड़ों से हमको खत्म कर दिया गया तथादूर धकेल दिया गया। इस देश की वोविश्वगुरु भारत की छवि को खत्‍म करने की कोशिश हुई है। आज हम स्‍वाधीन हैं लेकिन लम्‍बे समय की गुलामी ने हमें अपनी जड़ों से दूर किया और आज उसको फिर हरा-भरा करने की छोटी चुनौतीनहीं है, यह बड़ी चुनौती है क्योंकि जो लार्ड मैकाले की शिक्षा नीति थी उसने हमें बहुत नुकसान पहुंचाया है। लेकिन यह जो नई शिक्षा नीति है वसुधा जी यहांपर बैठी हुई है और आज पूरे देश नेनई शिक्षा नीति को स्वीकारा है। इसका मतलब संस्कार में कहीं न कहीं वो भावनाएंजीवित हैं।‘‘यूनान,मिस्र, रोमा सब मिट गए जहां से अब तक मगर है बाकी नामोनिशां हमारा और कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी।’’ यह जो कुछ बात है जो मिटाने से भी मिटती नहीं है वो हमारी रगों में है। हमारा देश विश्‍वगुरू रहा है और हम लोगों ने हमने हमेशा यह कहा है कि‘‘अयं निजः परो वेति गणना लघुचेतसाम्। उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम्॥’’अर्थात् पूरे विश्‍व को हमने अपना परिवार माना हैऔर उसके लिए ‘सर्वे बहुत सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया’ की ईश्वर से प्रार्थना की। धरती पर कोई व्यक्ति दुखी नहीं रहना चाहिए और इसलिएहम पूरी दुनिया को अपना परिवार मानते हैं। हमने पूरी मानवता की सेवा के लिए अपना समर्पण इस सीमा तक किया। इसलिए हम विश्वगुरु रहे हैं और ऐसे ही नहीं केवल सेवा समर्पण की बात नहीं हैं बल्‍किहम ज्ञान, विज्ञान, अनुसंधान, में कहींभीपीछे नहींरहें हैंकहीं पीछे नहीं रहे हैं और हमारी मातृ शक्ति भीकहाँ पीछे रही है। हमारी मातृशक्ति भी बहुत ताकत के साथ हर कदम पर आपदेखेंगे कि हमेशा चट्टान की तरह पीछे खड़ी रही है। परिवार में अच्छे दोनों प्रकार के लोग होतेहैं हमअच्‍छेका ही उदाहरण देते हैं और जो खराब है उसको भी अच्छा करने की कोशिश करते और इसलिए मैं समझता हूँ कि इस समय हमारे देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी ने कितने ही महिला सशक्‍तिकरण से जुड़ी योजनाओं को आरम्‍भ किया है, चाहे बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ का अभियान रहा हो और चाहे वो सुकन्या का कार्यक्रम रहा हो और मुझे लगता है कि कम से कम 14-15 ऐसे कार्यक्रम हैं, जो हमारी मातृशक्‍ति को और मजबूत करते हैं। आप एक के बाद एक यदि देखेंगे तो महिला सशक्तिकरण के लिए देश में इस बीच जिस तरीके से काम हुआ है उसकापरिणाम में सारे आंकड़े जब मैं निकालता हूं तो मुझे खुशी होती है। आज छात्रों से भी आगे हैं छात्राएं तथाहर क्षेत्र में आगे हैं। यदि आप बहुत पीछे भी न जाएं तोअभी जो ‘चंद्रयान-2’ का मिशन था उसकीमिशन डायरेक्टर रितु थी। सारी दुनिया को बताया हमने भले ही चांद पर पहुंचने में थोड़ा फासला रह गया था लेकिन हमने विजय प्राप्त की। उसके साथ मुथैया वनिता, प्रोजेक्ट डायरेक्टर थी। आप सबको मालूम हैं जो मैं अभी आईआईएमरोहतक की बात कर रहा था वहां बहुत बड़ी संख्या में हमारी मातृशक्‍ति है। यदि वैसे भी केवल आईआईटी और एनआईटी में भी यदि देखेंगे तो वर्ष 2017-18 में जो हमारीमहिला छात्र थी वो 1840 थी। वर्ष 2019-20 में वो बढकर के 3411हो गई हैं। यह केवल दो ही साल में आईआईटी तथाएनआईटी की मैं बात कर रहा हूं और आपने तो बता ही दिया कि 25 लाख बालिकाएं हमारी एआईसीटीई में पढ़ रहीं हैं। हमारी बालिकाएं कहीं पीछे नहीं हैं और मैं देख रहा हूं कि पीएचडी कार्यक्रमों में भी कितनी तेजी से महिलाओं की संख्या बढ़ी है। अभी आईआईटी से वर्ष 2015-16 में केवल 1871 महिलाओं ने पीएचडी किया हैंऔर इस समय 2019-20 में 3411अर्थात्लगभग दुगना हो गए।यह तेजी से प्रगति हो रही है। मुझे बहुत खुशी है कि जिस तरीके से हमने बेटी बचाओ, बेटी पढाओ, सुकन्या, उज्ज्वला योजना के माध्‍यम से महिलाओं के उत्‍थान के लिए काम किया है। फाइटर विमान को चलाने वाली जो अवनी चतुर्वेदी है, जो वर्तिका जोशी है, उनकी लीडरशिप में हमारी महिलाएं पूरी दुनिया घूम कर के आ गयी। मुझे लगता है बिछेंद्री पाल अपने जमाने में जब मैंउत्तरकाशी में पढ़ा रहा था तो बिछेंद्रीउत्तरकाशी के पास के गांव की है। वो बहुत साहसी थी जुनूनी थी इसलिए पूरी दुनिया में भारत की पहली एवरेस्ट विजेता बिछेंद्रीपाल बनी।अभी कुछ दिन पहले मैं उत्तर प्रदेश में गया था तो जो हमारी दिव्यांग महिला अरुणिमा है, जिसने दोनों पांव न होने के बावजूद एवरेस्‍ट पर विजय प्राप्‍त की। पीछे के वर्ष में हमने दीपा मलिक को सम्‍मानित किया जो पैरा-ओलम्‍पिककी पहली भारतीय महिला दिव्यांग हुई। यदि हम सुश्री संतोष यादव की बात करें तो उन्‍होंने दो बार एवरेस्‍ट फतह किया। पी.वी. सिंधु और कल्‍पना चावला सहित कितने लोगों की गिनती करें, हर क्षेत्र में हमारी महिलाएं गौरव के शिखर पर हैं। इसीलिए यह जो आपने पुरुस्कार आज शुरू किया है तथा साथ ही महिला स्वास्थ्य के क्षेत्र में भीआप बेहतरीन कार्य कर रहे हैं। उनको सम्मान दे रहे हैं, आत्म रक्षा के क्षेत्र में भी प्रशिक्षण दे रहे हैं। साक्षरता के क्षेत्र में,देश में उद्यमशीलता के क्षेत्र में भी आप उन्‍हें प्रशिक्षित करने का सराहनीय कार्य कर रहे हैं। विधि आयोग औरकानून संबंधी जागरूकता के लिए विभिन्न आयामों को जिन छह क्षेत्रों में आप दे रहे हैं औरवसुधा जी ने जो सुझाव दिया है उसको भी आप यदि इसमें समाहित कर देंगे तो बहुत अच्छा हो जाएगा। लेकिनमुझे इस बात की खुशी है कि कहीं न कहीं चेयरमैन साहब आपके और आपकी टीम के दिमाग में कुछ न कुछ तो चलता रहता है और वो अच्छा लगता है। मैं देखता हूं कि कुछ नए आइडियाज सदैव आपके पास रहते हैं क्‍योंकिजब हमने युक्ति किया तो आपने कहा कि ‘यूक्‍ति-2’कर दीजिए। आपने अध्‍यापकप्रशिक्षण के लिए एक नया कार्यक्रम कर दिया। आपने कहा कि कोविडमें जिन-जिन संस्थाओं ने बहुत अच्छा काम किया तो आपकी नजर आपकी टीम की नजर अंतिम छोर पर हर तरफ है। कौन कहां पर क्या कर रहा है और क्या उनको करना चाहिए।इससेदूसरे लोगों को भी प्रोत्साहन मिलता है और दूसरे लोग भी उसकी प्रतिस्पर्धा में आते हैं। समाज में एक दूसरेको देख करके बहुत सारी चीजें बोलकर ही परिवर्तननहीं होते बल्‍कि करके परिवर्तन होते हैं और बोलने में तथाकरने में अंतर होता है। वहां खोखलापनहोता है वहां केवलबड़ी बातें होती हैं और छोटे-छोटे परिवर्तन बड़े-बड़े परिवर्तन का कारण हमेशा बनते हैं। मुझे लगता है एआईसीटीईजिस तरीके से आप कर रहे हैं मुझे भी खुशी होती है और मैं भी सब काम छोड़ कर के आगे दौड़ता हूं। आप आगे दौड़ते हैं और मैं आपके पीछे दौड़ता रहता हूं। जब आपबुलाते हैं तो मैं भी पहुंच जाता हूं और मुझे इसलिए खुशी है कि आप बहुत अच्छा काम कर रहे हैं। लीलावती पुरस्कार जैसे नवाचारी कदमों को आपने उठाया है और मुझे भरोसा है कि जो नयी शिक्षा नीति आ रही है वो बड़े व्यापक परिवर्तनों के साथ नए आयामों के साथआ रही है। पूरे देश में उत्सव जैसा वातावरण है और आमूल-चूलपरिवर्तन करके जो स्कूली शिक्षा से लेकर कर उच्च शिक्षा तक मुझे भरोसा है कि इसकी जो आधारशिला है वो भारत केन्द्रित है। हम अपने मानवीय मूल्यों के आधार पर शिखर को चूमना चाहते हैं जिस पर यह हिंदुस्तान विश्वगुरु रहा है और इसलिए ज्ञान, विज्ञान, अनुसंधान तथा नवाचारकेक्षेत्रों में हम आगे बढ़ेंगे। मुझे खुशी है कि आपने पीछे हैकाथान किया था और उसमें भी आप लोग बहुत तेजी से अव्‍वलआए तथा अब महिलाओं का भी हैकाथानहोगा, तो युवाओं का भी होगाऔरसंस्थाओं का भी होगा एवं विषयों का भी होगा। अबहर चीज में दौड़ होगी, कुछनयाकरने की जिजीविषा होगी, जिज्ञासा होगी औरउन संकल्पों के साथ उसको आगे बढ़ने का हम मौका देंगे और जब वे स्वयं ही लीडरशिप अपने हाथ में ले करके दौड़ेंगे तो कौन-सा परिवर्तन नहीं होगा, दुनिया तो अब आपके ऊपर देखने लग गई है। देश के प्रधानमंत्री ने जो जैसे 21वींसदी के स्वर्णिम भारत की तथा5ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था की जो बात कही है, उसे आत्मनिर्भर भारत के साथ जोड़ेंगे एवं नई शिक्षा नीति का साथ उसकी आधारशिला बनेगा।मुझे भरोसा है कि जो आज यह कार्यक्रम शुरू हो रहा है यह कार्यक्रम निश्चित रूप में दूसरों को भी प्रेरित करेगा और जो मेरी मातृशक्ति है, जो नारी शक्ति है जिसके अन्दर असीम क्षमता है, असीम इच्छा शक्ति है, वो ममता की भी प्रतिमूर्ति है और विनम्रता की भी है, साथ ही संवेदना, संवेदनशीलता की भी है लेकिन उसी सीमा तक कठोरताकी भी है। यह अत्यंत संवेदनशीलता और शिखर की कठोरता इन दोनों का यदि समावेश है तो वो नारी शक्ति है और इसलिए हर युग ने उसका दर्शन किया है, हर समाज ने उसका दर्शन किया, हर परिवार ने उसका दर्शन किया है। मुझे भरोसा है कि यह अभियान आगे बढ़ेगा और मैं तो स्वयं इस बात को महसूस करता हूं। मेरी तीन बेटियां हैं एक संस्कृति के क्षेत्र में, दूसरी फौज में हैं और तीसरीकानूनके क्षेत्र में हैं।मुझे उनको देखकर प्रेरणा मिलती है कि यदि वह बेटे होते तो शायद इतना नहीं कर पाते जितना यह अपनी मेहनत से कर रही हैं। इसलिए मैं कह सकता हूं कि जितनी मेहनती लड़कियां हैं उतने मेहनती तीन लड़के नहीं हो सकते। जितनी संवेदनशील बालिकाएं होती उतनी संवेदना पुरूषों में नहीं हो सकती।स्‍त्रीप्रकृति की देन है, जो मां है उसमें ममता आती ही आती है, उसमेंधैर्य भी कम नहीं होता। उसमेंअसीम धैर्य है लेकिन जब वो अपने पर आती है तो वह उसी शिखरताकाविकराल रूप भी है इसलिए इस शक्ति को पहचानने की ज़रूरत है तथा इस शक्‍ति को आगे बढ़ाने की जरूरत है एवं इस शक्ति का अभिनंदन करने की ज़रूरत है।मैंएआईसीटीई कोलीलावती पुरस्कार के लिए एक बार फिर बधाई देता हूं।

 

बहुत-बहुत धन्‍यवाद!

 

कार्यक्रम में गरिमामयी उपस्‍थिति:-

  1. डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’, माननीय शिक्षा मंत्री, भारत सरकार
  2. प्रो. अनिल सहस्‍त्रबुद्धे, अध्‍यक्ष, एआईसीटीई
  3. प्रो. एम.पी. पूनिया, उपाध्‍यक्ष, एआईसीटीई
  4. प्रो. वसुधा कामत, प्रो. राजीव कुमार, डॉ. अमित कुमार श्रीवास्‍तव, प्रो. हीना, प्रो.शिखा कपूर, डॉ. पी. विनेशा, प्रो. रूचिकाएवं संकाय सदस्‍य, विभिन्‍न विश्‍वविद्यालयों के कुलपतिगण एवं छात्र-छात्राएं।

 

 

आईआईटी खड़गपुर द्वारा आयोजित भारतीय ज्ञान प्रणाली पर आधारित ‘भारत तीर्थ’ एक अंतर्राष्‍ट्रीय वेबीनार

आईआईटी खड़गपुर द्वारा आयोजित भारतीय ज्ञान प्रणाली पर आधारित ‘भारत तीर्थ’ एक अंतर्राष्‍ट्रीय वेबीनार

 

दिनांक: 06 नवम्‍बर, 2020

 

माननीय शिक्षा मंत्री, डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’

 

          भारत तीर्थ’ को अभी हम लोगों ने देखा है और सच में आज मैं बहुत अभिभूत हूं कि आईआईटी खड़गपुर ने देश की आत्‍मा को पहचानने की कोशिश की है। विश्‍व गुरू भारत के उस दर्द को महसूस किया है और आज यह बड़ा कदम उठाया है।

मुझे कुछ विशेष नहीं कहना है क्‍योंकि मेरे से पूर्व सभी वक्‍ताओं ने और आपकी जो दो-तीन मिनट की जो प्रस्‍तुती है वह पूरा व्‍याख्‍यान स्‍वयं ही करती है मेरे भारत का, मेरे ज्ञान, विज्ञान, विचार, दर्शन का। मंत्रालयमें मेरे अनन्‍य सहयोगी और जिन्‍होंने इस नई शिक्षा नीति में रात-दिन खप करके इसकी परिणति तक पहुंचाया है उन्‍होंने भी बहुत सारी बातें यहां पर कही हैं मेरे सचिव, अमित खरे जो इस शिक्षा नीति में चौबिसों घंटे इसकी परिणति तक पहुंचानेके लिए रात-दिन यत्‍न किया वो भी हमसे जुड़े हुए हैं और तिवारी जी मेरा मन कहता है कि आपकी जो यह पहल है आज का यह बेविनार सामान्‍य वेबिनार नहीं है। यह भारत के मूल्‍यों की, ज्ञान की, विज्ञान की, उस विश्‍वगुरू भारत की यह आत्‍मा है।आपकी टीम में विजनरी लोग हैं और क्यों न हों क्‍योंकि देश की आजादी के साथ इस संस्‍थानकाजन्म हुआ है। देश ने तमाम सैकड़ों वर्षों तक की गुलामी के थपेड़ों को झेला है। उस दर्द को हम भूल नहीं सकते हैं। सब कुछ होते हुए भी इस देश में ना प्रतिभा की कमी थी, न संघर्ष की कमी थी,न विजन की कमी थी, न मिशन की कमी थी, न ज्ञान की कमी थी, न विज्ञान की कमी थी। सभी कुछ तो था फिर भी हम गुलाम रहे और हमारे उस ज्ञान विज्ञान को किस तरीके से तहस-नहस करने की कोशिशें हुई हैं यह जरूर मेरी पीढ़ीकोजाननेकी जरूरतहै क्योंकि दुर्भाग्य से देश के आजादी के बाद हमने कभी अपने भारत को जानने की कोशिश ही नहीं की। हम दौड़ में लग गए।

हमारी दौड़ एक अच्छे पैकेज तक क्यों हो गई? हमने न तो अपने को जाना तथा न ही अपने अतीत को महसूस किया और न ही पीछे को और महसूस किया न पीछे को अपने से जोड़ करके आगे बढ़ाने की कोशिश की।आप पीछे क्या हुआ उस पर न जाएं तो आज जो हो रहा है वो आशा भरा दिन है। बहुत दूर तक जाने वाला विजन है, पूरी दुनिया को एक नई ऊर्जा देने वाला कदम है और इसीलिए मैं आपको शुभकामनादेना चाहता हूं। प्रो.तिवारी जीसोचते तो बहुत सारे लोग हैं लेकिन उसको सामूहिक रूप सेअपनी टीम के साथ आगे बढ़ाने का माद्दाकुछेक लोगों में हीहोता है।

हमारे अतुल भाई जो शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के राष्ट्रीय मंत्री हैं और बहुत लंबे समय तक से जो शिक्षा के क्षेत्र में अपने जीवन को देरहे हैं, उन्होंने बहुत महत्वपूर्ण विषयों पर हमारा ध्यान केन्द्रित किया है। आपके प्रो.एस.के.भट्टाचार्य जो उप-निदेशकहैं, वे भीबहुतशालीन हैं हमने इनको भी बहुत निकटता से देखा है और मुझे अच्छा लगा जब-जब मिलते हैं और बोलते हैं तो इनकी शालीनता उसमें झलकती है और आपके जो प्रो. सोमेश जी हैं उनको भी मैं धन्यवाद देना चाहता हूं।

हां, यह बात सही है कि जब मैं आया था खड़गपुर में और उसके बाद जब निदेशक के कमरे में पहुँचा था तो प्रो. जॉयसेन ने अपनी वास्तु कला के दो पुस्तकों को मुझे भेंट किया था और मुझे उनके शब्द याद है कि उन्होंने कहा कि आप दस-बीस साल पहले क्यों नहीं आ गए उस समय अनुराधा चौधरी जो संस्कृत की आपकी प्रोफेसर हैं वो भी थी और इन दोनों से मैंने विनती की थी। जब मैंने डॉ.सेन के दोनों ग्रंथों को देखा था तो मेरी जो आशाएं थीं वो बहुत आगे बढी और उसी दिन मुझे लगा कि जो मैं सोच रहा था वो हो रहा है,जो मैं करना चाहता था, उसकी दिशाएँ बनी हुई है। मेरे देश के प्रधानमंत्री जी चाहते हैं कि मेरा देश 21वीं शताब्दी का स्वर्णिम भारत हो जो ज्ञान और विज्ञान तथाअनुसंधान और नवाचार के शीर्ष पर हो और जो भारत केन्द्रित हो जो भारत की उस ज्ञान, विज्ञान, अनुसंधान की परम्‍परा को आगे बढ़ाने वाला हो। जोभारत स्वच्छ भारत, स्वस्थ भारत, सशक्त भारत, समर्थ भारत,आत्मनिर्भर भारत और श्रेष्ठ भारत हो उस श्रेष्ठ भारत की आधारशिला इस संस्‍थान में कहीं मुझे दिखतीहै।

उसके बाद नई शिक्षा नीति आई और नई शिक्षा नीति में जो लोग इस मिशन में जुटे हुए थे, जो छटपटा रहे थे जो इस बात को जानते थे, जानते हैं और जिन्होंने अपने जीवन का कण-कण खपा कर के उस भारत की ज्ञान विज्ञानमयी और जीवनमयी उन सब विधाओं को आगे बढ़ाने की दिशा में अपना संकल्प लिया है उन लोगों की भावना को इसमें समाहित किया गया और यह डेढ़ सौ वर्षों के बाद लार्ड मैकाले के जाने के बाद क्योंकि लार्ड मैकाले सेयदि पहले के हमभारत को देखें और लार्ड मैकाले के बाद किस तरीके से मेरे देश के उन विचारों को और उस विजन को तथा उस ज्ञान को एवंविज्ञान को और तकनीकी को किस सीमा तक कुचलकरके और एकतरफ राख के ढेर में लाकर के खड़ा कर दिया गया।

उसमें हमें पीछे जाने की जरूरत नहींलेकिन उसको याद करने की जरूरत है औरआगे बढ़ने के लिए काम करना है। क्या पूरी दुनिया भूल जाएगी कि शल्य चिकित्सा का जनक सुश्रुत इस देश में पैदा हुआ और उन्होंने क्या-क्या नहीं किया?क्या दुनिया इस बात को भूल जाएगी कि आयुर्वेद का जनक चरक ऋषि इस देश में पैदा हुआ?आजपूरी दुनिया महसूस कर रही है कि यदि जीवन को बचाना है तो आयुर्वेद का रास्ता हमको अपनाना है और अभीअतुल ने कहा कि पहले ही जो व्यवस्थाएं थी वह हमारे विज्ञान में थी, हमारे शास्त्रों में थी,हमारे ज्ञान में थी और इसलिए आयुर्वेद मेंकहा गया है किचिकित्सा का विषय तो बाद में आएगा लेकिन यदि आदमी के स्वास्थ्य की पहले ही रक्षा हो तो चिकित्सा की तो जरूरत ही नहीं है। मुझे अच्छा लगा कि डॉ. तिवारी ने हमारे भास्कराचार्य जी को किस सीमा तक पढ़ा है और अपनी बेटी से किस तरीके से भास्‍कराचार्यने संवाद किया और उस संवाद को उन्‍होंने ‘सिद्धांत शिरोमणि’ 11वीं शताब्दी में लिखा जिसमें छठवें श्‍लोक में यहां तक लिख दिया कि धरती पर किस तरीके से गुरुत्वाकर्षण है।

यह उस जमाने में लिखा हुआ आज भी ग्रंथ हैहमारे पास।क्या बौधायन को हम भूल जाएंगे? क्या भरत जो नाट्यशास्त्र का जन्मदाता है उनकोहम भूल जाएंगे? क्‍या ऋषि कणाद जिसने अणु और परमाणु का विश्लेषण किया, क्या उस ऋषि कणाद को कोई भूल सकता है?क्‍या शून्‍य को देने वाले आर्यभट को पूरी दुनिया भूल सकती है? जब तक्षशिला, नालंदा, विक्रमशिला जैसे तमाम दर्जनों विश्वविद्यालय जब इस देश के अंदर थे तब दुनिया में कहांविश्वविद्यालय थे? कृषि के क्षेत्र में पाराशर जी काजोयोगदान है और जो उनका चिंतन था वो आज भी उस ग्रंथ को देखा जा सकता है। मैं यह समझता हूं कि कौटिल्य के अर्थशास्त्र से बड़ा अर्थशास्त्र का कौन-सा ग्रन्‍थ है? भाषा विज्ञान में पाणिनी से बड़ा कौन भाषा वैज्ञानिक हो गया? लेकिन हमने पीछे का दर्शन नहीं कराया तो जब हम इस बात को कहते हैं तो लोग हंसते हैं, जिनको इस दर्शन का पता ही नहीं।

इसलिए उनको इस देश की भव्यता का पता नहीं,इसविश्वगुरु भारत का मालूम नहीं है।आज पहली तो चुनौती हमारे सामने यह है कि हमउस भारत का दर्शन कराएं अपनी पीढ़ी को अपने युवाओं और उससे पहले जो हम लोग हैं जो योद्धा के रूप में पहली पंक्ति में खड़े हो करके देश के बारे में विचार करते हैं, शिक्षा के बारे में विचार करते हैं, देश की उन्नति तथा प्रगति और उसको उच्च शिखर तक ले जाने का मिशन ले करके चल रहे हैं, सबसे पहले तो हमको देश की आत्मा को आत्मसात करना पड़ेगा।

मैं सोचता हूं कि योग के बारे में जैसे हमारे माननीय मंत्री जी ने कहा कि योग के पीछे आज पूरी दुनिया खड़ी है।

हमारा विचार कभी कमजोर नहीं रहा है। हमने एक तरफ‘अयं निजः परो वेति गणना लघुचेतसाम्। उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम्॥’ कहा अर्थात्पूरी दुनिया मेरा कुटुम्ब है, मेरा परिवार है। हमने मार्किट नहीं माना इस दुनिया को और हमारे विचार और दुनिया के लोगों के विचार में जमीन आसमान का अंतर है। यह दुनिया पूरे विश्व को एक ग्लोबल मार्केट मानती है और हमने पूरे विश्व को अपना परिवार माना है क्योंकि सबको पता है कि मार्किट में तो व्यापार होगा लेकिन परिवार में प्यार भी होगा,यह हमारी मान्यता रही है‘सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया’ कि जब तक कुटुम्‍ब का एक भी व्‍यक्‍तिएक भी प्राणी जब तक दु:खी होगा।तब तक मैं सुख का अहसास नहीं कर सकता।

आज मेरे साथ देश और विदेश से आपके पूर्व-छात्र जुड़े हैं तथा मुझे इस बात का गौरव होता है कि आज खड़गपुर से निकलने वाला छात्र वो चाहे गूगल हो और चाहे माइक्रोसॉफ्ट होतमाम क्षेत्रोंमें हमारे आईआईटीसे निकलने वाले छात्र दुनिया में तकनीकी के क्षेत्र में और विज्ञान के क्षेत्र में तथा अनुसंधान के क्षेत्र में पूरी दुनिया का मार्गदर्शन कर रहे हैं और इसलिए यहवोभारत है जो हमारी रगों में बसता है क्योंकि हमपूरी दुनिया के लिए जीते हैं। हमने‘असतो मां सद्गमया’ की बात की है हजारों साल पहले। चाहे गांधी जी कोदेंखे जब उन्होंने कहा कि ‘असतो मा सद्गमया’ की बात हुई और ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’ अर्थात् हम अंधेरे को चीरकर प्रकाश जलाएंगे। हमें चाहे तिल-तिल क्यों न खपनापड़े।

इसलिए जो हमारा जीवन दर्शन हैं जहां ज्ञान, विज्ञान, अनुसंधान में वह पूरी दुनिया में श्रेष्‍ठ हैं। हमारी गीता को दुनिया क्यों देख रही है और हर देश गीता को ले के उसके पीछे पागल है।हमारीगीता काजो हमारे कृष्ण कादर्शन है उसमें कहा गया है कि यह शरीर नश्‍वर है लेकिन आत्‍मा अजर-अमर है।जैसे पुराने कपड़ों को छोड़ देते हैं और नए कपड़ों को पहनते है उसी तरह यह शरीर आपको कभी भी छोड़ सकता है।

अभी मैं इधर बैठा हूं अगला चरण मेरा नहीं है। हां यहशरीर कभी भी छोड़ सकता है आपको, लेकिन जो आत्मा है वो अजर अमर है। संसार में आतंक है, चाहे भुखमरी है, चाहे बेरोजगारी है और चाहे चरित्रहीनता है क्योंकि हमने उन चीजों को जीवन दर्शन नहींदिया।हमारे वेद,पुराण,उपनिषदों ने कहा है कि उतना ही ग्रहण करो जितनी आपको जरूरत है। इन ग्रंथों नेसंग्रह करने वाले आदमी को खराब माना है।जिसको जितनी जरूरत है, वह उतना ही उपयोग करेगा और सब मिल बांटकर खायेंगे। हमने कहा कि हम सब साथ खाएंगे और साथ चलेंगे तथामिलकर रहेंगे। हमारा पुरुषार्थ मिलकर होगा, यह हमारी एकता है। हमने कभी भी इस दिशा में सोचा ही नहीं।

मैं पीछे के समय में जब इंडोनेशिया गया था वहां रविन्‍द्रनाथ टैगोर को कितना मानते हैं और वहां के मंत्री जी ने कहा कि जहां गुरूदेव नेशांतिनिकेतन की स्थापना की है वहांहमको बुलाइए,हमकुछ करना चाहते हैं।जब दुनिया को सत्य, प्रेम और अहिंसा की बात आती है तो हम तो शुरू से ही उसके पुजारी रहे हैं और इसलिए मैं यह कहना चाहता हूं कि यह सामान्य नहीं है। यह विचार केवल एक क्लास में पूरा नहीं होगा तथा यह केवल एक सेमिनार में पूरा नहीं होगा क्‍योंकियहपूरी दुनिया के जीवन को बचाने काअभियान होगा।

पूरी दुनिया को सुख-शांति और समृद्धि का यह महत्वपूर्ण रास्ता  होगा।इसी रास्ते से पूरी दुनिया को सुख शांति और समृद्धि का लक्ष्य मिलेगा।मुझे भरोसा है कि जिस चीज के लिए आज हम लोग यहां पर बैठे हैं निश्चित रूप में हम उसको आगे बढ़ाएंगे। चाहे वो हमारे श्रीनिवास रामानुजन हों, चाहे भारद्वाज हों और चाहे रसायनशास्त्री नागार्जुन हों आखिर क्यों नहीं बात होगी इन पर। आज जर्मनी 14 संस्कृत विश्वविद्यालयों को बना कर के भारत के ग्रंथों पर शोध एवं अनुसंधान करना चाहता है। अब बदलाव आ गया श्री नरेन्‍द्र मोदी जी की अगुवाई में देश ताकत के साथ अपनी बातों को साबित करने के लिए आगे बढ़ रहा है। हमारा सौभाग्य है कि श्रीनरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में विश्‍व फलक पर आतंकवाद के खिलाफ पूरी दुनिया को एक मंच पर एकत्रित हो रहा है।

चाहे वैकल्पिक ऊर्जा का विषय रहा हो, और चाहे पर्यावरण का विषय रहा हो या हर दिशा में पूरी दुनिया की लीडरशिपभारत ने लेना शुरू कर दिया है। हमारीनई शिक्षा नीति भारत केन्द्रित है तथा यहपूरी दुनिया की मानवता के कल्याण के लिए है। नई शिक्षा नीति में हम जो तीन वर्ष का बच्‍चा है, उसकी भी चिंता कर रहे हैं। तीन वर्ष से ही बच्चे की शिक्षा हम उसकी मातृभाषा में करेंगे। अपनी मातृभाषा में जो बच्‍चे की अभिव्यक्ति होगी औरवो अपनी अभिव्यक्तियों को बाहर निकालेगा। यदि कोई राज्‍य उच्च शिक्षा तक अपनी मातृभाषा में करना चाहता है तो वह कर सकता है। प्रधानमंत्रीजी ने कुछ दिन पहले बोला है किइंजीनियरिंगऔर डॉक्‍टरीकी भी जो परीक्षा होगी वो विद्यार्थी अपनी मातृभाषा में दे सकता है। हमने स्‍पष्‍ट कहा है कि किसी पर भी कोई भाषा थोपी नहीं जाएगी।

मैंने लोगों से भी आग्रह किया है कि भाषा के नाम पर राजनीति न करें। हमने कहाहै कि मातृभाषा के लिए कौन राजनैतिक व्यक्ति होगा, कौन ब्यूरोक्रेट होगा, कौन समाज का व्यक्ति होगा जो अपने बच्चों को मातृभाषा नहीं सिखाना चाहता है। इसलिए जब यूनेस्को ने यह कहा है और देश के मनोवैज्ञानिकों ने कहाहै कि मातृभाषा में प्रारंभिक शिक्षा से ही बच्‍चे का भरपूर विकास होगा।क्या जो देशनीचे से लेकर उच्च शिक्षा तकअपनी मातृभाषा में शिक्षा देते हैं वो किसी से पीछे हैं, क्‍या जापान,फ्रांस, इंग्लैंड और दुनिया के तमाम जो विकसित देश हैं वो अपनी मातृभाषा में शिक्षा देते हैं क्‍या वो किसी से पीछे हैं,फिर ऐसे तर्क दे करके देश को कमजोर करने की बातक्यों की जाती हैं।मुझे लगता है कि हालांकिमैं इस बात को लेकर बहुत संतुष्ट और खुश हूं कि अबलोग इस बात को लेकर जो कभी ऐसे विवाद पैदा करने की कोशिश करते थे वो भी समझे हैंमैं उनका अभिनंदन करता हूं। नई शिक्षा नीति आने से पूरे देश के अंदर एक उत्सव का वातावरण हैलेकिनक्रियान्वयन की आवश्यकता है।जैसे आज आईआईटी खड़गपुर ने एक-एक विधा को आगे बढ़ाने का बीड़ा उठाया है।

यह अच्छा है और इसी तरीके से हम लोग फ्रंट पर आकर इसको क्रियान्‍वयन की दिशा में उपयोग करना ही करना है। हम अपनी प्राचीन चीजें पर अनुसंधान करके अब कहीं भी दुनिया में जा सकते हैं लेकिन वे सारे ग्रंथ संस्‍कृत भाषा में हैं। आज दुनिया जानती है कि संस्कृतएक साइंटिफिक भाषा है और उससे बड़ी कोई  साइंटिफिक भाषा है ही नहीं क्‍योंकिजो बोली जाती है वही उच्चरित होतीहै और वही लिखी भी जाती है और इसलिए पूरी दुनिया संस्कृत को पढ़ रही है। मैंपीछे के समय में तीन-चार साल पहले पौलेण्‍डकीवारसा यूनिवर्सिटी में गया था।

उन्होंने बताया कि हम तो लगभग दो सौ साल से संस्‍कृत को पढ़ा रहे हैं।पूरी दुनिया में लगभग ढाई सौ से भी अधिक शीर्षविश्वविद्यालय संस्कृत और हिंदी को पढ़ाते हैं। संस्कृत मेंवो ज्ञान और विज्ञान है तथाहम उसका अनुसंधान करेंगेऔर इसलिए मैं समझता हूँ आज यह बहुत अच्छा अवसर हैऔरयह भी मुझे अच्छा लगा कि आपने इसको भारत तीर्थ नाम दिया है। तीर्थ पुध्‍य, पावन एवं पवित्र होता है जो दूसरों के संकटों को खत्म कर दे, दूसरों के दुखों को खत्म कर दे जिसमें ताकत होती है वो तीर्थ होता है और इसलिए आपने बहुत सोच-समझ कर इसे भारत तीर्थनाम दिया है।

भारत तीर्थ जो अंतर्राष्ट्रीय वेबिनार आपने भारतीय ज्ञान परम्‍परा पर किया है उसके लिए मैं आपको साधुवाद देता हूंऔरयह अभियान अब रुकना नहीं चाहिए।हमारे विवेकानंद जी हमेशा कहते थे कि बढ़ोजितनीतेजी से आगे बढ़ सकते हो। उठो, जागो और तब तक नहीं रुको जब तक मंजिल प्राप्त नहीं हो जाए।हमको विवेकानन्‍द जी को साथ लेकर चलना पड़ेगा और मुझे खुशी है कि यहां पर अभी आपनेजर्मन के प्रसिद्व विद्वान मैक्समूलर के बारे में भी चर्चा की। मैक्‍समूलर कहते हैं कि यदि मुझसे पूछा जाता है कि आकाश तले कौन सा मानव मन सबसे अधिक विकसित है।

इसके कुछ मनचाहे उपहार क्या हैं। जीवन की सबसे बड़ी समस्याओं पर सबसे अधिक गहराई से किसने विचार किया है और इसके समाधान पाए हैं तो मैं कहूंगा इसका उत्तर केवल और केवल भारत है। यहजो शब्द मैंने पढ़े हैं वो मैक्समूलर के हैं। यह इस देश के किसी व्यक्ति के नहीं है और इतना ही नहीं अलबर्ट आइंस्‍टाइन ने भी कहा कि हम सभी भारतीयों का अभिनंदन करते हैं जिन्होंने गिनती करना सिखाया, जिसके बिना विज्ञान की कोई भी खोज संभव नही थी। यह तो पूरी दुनिया मान रही है। यदि दुनिया बोल रही है तथा मान रही है तो फिर दिक्कत क्या है।

यह जो सप्त ऋषियों ने शोध और अनुसंधान किया है, उसी को तो आगे बढाने की जरूरत है। अब वक्‍त आ गया है दुनिया हमारी ओर देख रही है। हमने ‘स्टडी इन इंडिया’ को ब्रांड बना दिया है।पूरी दुनिया के लोग इधर आ रहे हैं औरअभी हमारे आईआईटी में एक हजार आसियान देशों के बच्चे शोधके लिए आये हैं। हम बहुत तेजी से विश्व के फलक पर उभरते जा रहे हैं। हम दुनिया के 127 शीर्षविश्वविद्यालयों के साथशोध और अनुसंधान कर रहे हैं।

हम जहां ‘ज्ञान’ में बाहर की फैकल्टी को ला रहे हैं, वहीं अब ‘ज्ञान प्लस’ में हमारी फैकल्टी भी बाहर जाएगी। हम इस नई शिक्षा नीति के तहत कक्षा छ: से ही वोकेशनल स्ट्रीम इंटरर्नशिप के साथ ला रहे हैं। जब भी बच्चा स्‍कूलसे बाहर निकलेगा तो आपकी आईआईटी के पास हीरा बन करके आएगा। हमविद्यार्थी का मूल्यांकन भी अद्भुत तरीके से कर रहे हैं।अब बच्‍चेका 360 डिग्री होलस्‍टिक मूल्‍यांकन होगा। वह स्‍वयं भी अपना मूल्यांकन करेगा,उसकासाथी भी उसका मूल्‍यांकनकरेगा, उसका अभिभावक भी मूल्‍यांकन करेगा, अध्यापक भी मूल्यांकन करेगा तो वह एक योद्धा के रूप में उभरता चला जाएगा। इसलिए यह शिक्षा नीति हम आमूल चूल परिवर्तन के साथ ला रहे हैं। मुझे भरोसा है कि जिस तरीके से पूरे देश ने इस शिक्षा नीतिको स्वीकारा हैअब पूरी दुनिया में हम हीहोंगे जो आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस को स्कूली शिक्षा से लायेंगे।

यह आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और मेरे संस्कृत के ग्रंथ, मेरी तकनीकी के लोग और मेरे वैज्ञानिक जिस दिन यह सब एक जगह इकट्ठा हो जाएंगे उस दिन मेरा भारत पूरे विश्व में नंबर एक होगा। इसीलिए हमने मंत्रालय के स्तर पर भी पीछे के समय में भारतीय  ज्ञान प्रकोष्ठ अलग से बनाया है जो यही समन्वय करेगा। जितने हमारे प्राचीन विद्वान और वैज्ञानिकहैंउनके ग्रंथों परजिस दिन शोध होना शुरू हो जाएगा,हालांकि हमारे पास हजारों लाखों ग्रंथ अभी नहीं मिले हैं और वे सब नष्ट कर दिए गए हैं लेकिन जो हैं उन पर तो हम शोध और अनुसंधान करके आगे बढ़ सकते हैं।

आज जर्मनी के पास हमसे ज्यादा ग्रंथ हैं हमारे। पीछे के समय में यहतय हुआ है कि उनसे हम अपने कुछग्रंथों को लें,वो अब शोध एवंअनुसंधान कर रहे हैं। इसलिए यह जो भारतीय ज्ञान प्रकोष्ठ है इसको प्रधानमंत्री जी के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार की अध्यक्षता में बनाया गया है। मुझे खुशी है कि इस संस्‍थान ने भी भारतीय ज्ञान परम्‍परा पर बहुत ही श्रेष्‍ठता से कार्य किया है। आपके यहां तिवारी जी, सेन साहब सभी लोग बहुत अच्‍छा काम कर रहे हैं।

इसलिए मैं सोचता हूं यह जो अभियान आज आपने शुरू किया है यह बहुत अच्छा अभियानहै। हम शोध और अनुसंधान की दिशा में जहां ‘नेशनल रिसर्चफाउंडेशन’ की स्थापना कर रहे हैं वहीं तकनीकी के क्षेत्र में ‘नेशनल एजुकेशन टेक्नोलॉजी फोरम’ का भी गठन कर हैं। हम लोगों ने नई शिक्षा नीति के आधार पर जो प्रशासनिक स्तर पर और जो सामान्य स्तर पर चेंज हो सकते हैं वो बहुत तेजी से कर रहे हैं। हमारे माननीय मंत्री आदरणीय संजय धोत्रे जी लगातार उसकी समीक्षा भी करते रहते हैं और बहुत तेजी से लोगों में बदलाव आ रहा है। स्कूली शिक्षा हो चाहे उच्च शिक्षा हो, अब उच्‍च शिक्षा में आपकोई भी विषय ले सकते हैं, इस शिक्षा नीति के अंतर्गत यदि कोई 4 वर्ष का कोर्स है और यदि कोई छात्र दो साल में परिस्‍थितिवशछोड़के जा रहा है  तो पहले उसका पैसा एवं वर्ष दोनों खराब हो जाते थे लेकिन अब उसकोनिराश नहीं होना पड़ेगा।

यदि आप परिस्‍थितिवश एक वर्षमें छोड़ कर जा रहे हैं तो उसको सर्टिफिकेट देंगे,दो साल में छोड़ कर जा रहा है तो डिप्लोमा देगें, तीन साल में छोड़कर जा रहा है तो उसकोडिग्री देंगे लेकिन यदि फिर वह लौट कर अपने भविष्य को संवारना चाहता है तो फिर जहां से उसने छोड़ा था वहीं से शुरू कर सकता है। उसके लिए हम एक ऐसा क्रेडिट बैंक बनायेंगे जहां उसके सारे क्रेडिट जमा रहेंगे।हम अपना स्तर बढ़ाने के लिए बहुत तेजी से काम कर रहे हैं। हम विश्व स्तर की उन सारी चीजों को तथा उन अवस्थापना को कर रहे हैं लेकिन मुझे इस बात का दुख है कि बीच में विदेश जाने की लोगों में होड़ लग गई थी लेकिन अब मुझे इस बात की खुशी है यह होड़ खत्म हो गई है।

यह जो पैकेज की होड़थी, अब पेटेंट की होड़ बन रही है। हम पेटेंट करेंगे हर चीज को पेटेंट करेंगे तथाहमदुनिया को बताएंगे कि यह हम ही कर सकते हैं और तभी तो मेक इन इंडिया, डिजिटल इंडिया, स्टार्टअप इंडिया,स्‍टैंड अप इंडिया जैसी आधारशिला खड़ी होगी। मुझे भरोसा है कि यह होगा और इसलिए हमने ‘स्टडी इन इंडिया’ शुरु किया है उसके ब्रांड बनायेंगेअभीहमने ‘स्टेइन इंडिया’ कीभी बात की क्‍योंकि हमारे देश से 7-8 लाख छात्र प्रतिवर्ष विदेशों में पढ़ने के लिए जा रहे हैं।

हमारे देश का पैसा और प्रतिभा दोनों बाहर चली जाती हैं तो वापस वह हमारे देश में नहीं आती है। इसलिए हमने‘स्‍टे इन इंडिया’ किया और  हमने  छात्रों को भरोसा दिलाया कि हमारे आईआईटी, एनआईटी, आईएसर, केन्‍द्रीय विश्‍वविद्यालयों में योग्‍यता है, क्षमता है आपको  बाहर जाने  की जरूरत नहीं है औरअब लोगों यह की समझ में आ गया है। मुझे इस बात की खुशी है कि पीछे के समय जब हमने जेईई परीक्षाएं करवाई तो दो लाख से भी अधिक छात्रों ने जोविदेश में जा रहे थे, वे जेईई और नीट की परीक्षाओं में सम्‍मिलित हुए।

हम ‘स्‍टे इन इंडिया’ के तहत दुनिया के शीर्ष सौविश्वविद्यालयों को अपनी धरती पर आमंत्रित कर रहे हैं। आपको कहीं जाने की जरूरत नहीं है और यहां के जो शीर्ष विश्वविद्यालय हैं वे भीबाहर जा रहे हैं। यह आदान-प्रदान हम करेंगे।मुझे भरोसा है कि जिस तरीके से कोरोनाकाल में इस चुनौती का मुकाबला मेरे नौजवानों ने किया और मैं देखता था कि आईआईटी खड़गपुर के हमारे प्राध्यापकों ने और हमारे शोध छात्रों ने क्या किया। हमारे देश के प्रधानमंत्री जीबोलते हैं यदि चुनौती काडटकर मुकाबला हो तो वह अवसर में तब्दील होती है यही बातविवेकानन्‍द जी कहते थे और वो हम कर रहे हैं। हमारी शिक्षा है,हमारा देश है, हमारी संस्कृति है, हमारे आचार-विचार हैं,जो पूरी दुनिया में महकते हैं।

मैं हिमालय से आता हूं मैं देखता हूं कि पूरी दुनिया के लोग बद्री केदार और हरिद्वार में आते हैं। पीछे  के समय में वर्ष 2010 मेंजब मैं मुख्यमंत्री था तब महाकुंभ कराया था। दुनिया के 100 से भी अधिक देशों के लोग गंगा का स्पर्श करने के लिए आए थे।हमने कहा था कि यूनान, मिस्र, रोमा, सब मिट गए जहां से अब तक मगर है बाकी नामो निशां हमारा और कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी। सब लोगों ने मिटाने की कोशिश की लेकिन कुछ तो है हमारे पास जो मिटने से भी नहीं मिटी है।

हम शोध और अनुसंधान करेंगे। मैंने इस एक-डेढ वर्ष में देखा है जब मैं अपने छात्रों के बीच जाता हूं और जब हमने स्मार्ट इंडिया हैकाथॉनकिया तो मुझे यह देखकर खुशी होतीहै किजोमेरे देश का नौजवान है,अध्यापक हैवहबहुत विजनरीहै। मुझे भरोसा है कि जो आपका यह आज अभियान शुरू हो रहा है आप इसको आगे बढ़ाएंगे। मैं बहुद गदगद हूं और आपने जिस तरीके से शुरू किया है, आप चट्टान की तरह खड़े रहिए और मैं इस अवसर पर कहता हूं कि यदि आईआईटीखड़गपुरने यह संकल्प लिया है तो निश्चित रूप में भविष्य में यह सेंटर ऑफ एक्सीलेंस फॉर इंडियन नॉलेज सिस्टम के रूप में जाना जाए इसकीमैं आज घोषणा कर रहा हूं।यह भारतीय ज्ञान परंपरा का एक उत्कृष्‍ट केंद्र होगा।जब भी लोग जाएंगे और कहेंगे कि मुझे भारतीय ज्ञान परंपरा के किसी उत्कृष्ट केंद्र में जाना है तो तब खड़गपुर में उसका दर्शन होगा।आज इस संकल्प के साथ बैठक शुरू हो रही है और पूरी ताकत के साथ हो रही है तो मैं समझता हूं आज इसका संकल्प लेने की जरूरत है।

आज आपने संकल्प ले लिया तो आप नई पीढ़ी को समझा सकते हैं कि हमारा विजन क्या है,हमारा मिशन क्या है, जुनून क्या है उसके साथ आगे बढ़ने की आवश्‍यकता है। आने वाले समय में पूरी दुनिया में भारत यंग इंडिया रहनेवाला है। भारत की जो आयु है और जो आगे युवा वर्ग कीजनसंख्या है उससे हमगौरोंदुनिया पर छाने वाले हैं, इसकी पूरी तैयारी होनी चाहिए। मैं भी आश्वस्त हूं कि जो यह नई पीढ़ी आ रही है इसमें छटपटाहट है अपने लिए भी तथा अपने देश की उन चीजों के प्रति भी।आजभारत अंगडाई ले रहा है और विश्वगुरु भारत जिसने पूरी दुनिया का मार्गदर्शन किया तथा ज्ञान, विज्ञान, अनुसंधान और नवाचार में उस विश्वगुरु भारत की उस थाती को आगे बढ़ाने के संकल्प के साथ आज हम यहां पर एकत्रित हुए हैं। हमारे चाहे वैज्ञानिक हैं,तकनीशियन हैं और चाहे वो कुलपतिगण हैं चाहे विद्वत वर्ग के लोग है, चाहे संस्कृत के क्षेत्र के लोग हैं सभी को समन्‍वय बनाकर काम करना है।

अभी मैं पीछे के दिनों पेरिस में गया था वहां पर वेदों पर शोध और अनुसंधान हो रहा हैं। इसका मतलब यह है कि वेद, पुराण और उपनिषदों जैसे प्राचीन ग्रंथ हैं जिनमें ज्ञान, विज्ञान तथासब कुछ समाया हुआ है,उनका लोग अध्ययन कर रहे हैं। उनकी आवश्यकता इस देश को है, दुनिया को है और आप उस परम्परा को आगे बढ़ाएंगे, ऐसा मेरा विश्वास है। एक बार फिर आपको बहुत-बहुत शुभकामनाएं देता हूं।

 

 

बहुत-बहुत धन्‍यवाद!

 

कार्यक्रम में गरिमामयी उपस्‍थिति:-

 

  1. डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’, माननीय शिक्षा मंत्री, भारत सरकार
  2. श्री संजय शामराव धोत्रे, माननीय शिक्षा राज्‍य मंत्री, भारत सरकार
  3. श्री अमित खरे, सचिव, उच्‍चतर शिक्षा, शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार
  4. प्रो. वीरेन्‍द्र कुमार तिवारी, निदेशक, आईआईटी खड़गपुर
  5. प्रो. सीमान्‍त भट्टाचार्य, उप-निदेशक, आईआईटी खड़गपुर
  6. श्री अतुल कोठारी, राष्‍ट्रीय सचिव, शिक्षा संस्‍कृति उत्‍थान न्‍यास
  7. प्रो. राज शेखर, डीन, आईआईटी खड़गपुर

एनईपी 2020 के कार्यान्‍वयन पर अमिटी विश्‍वविद्यालय की राष्‍ट्रीय संगोष्‍ठी

एनईपी 2020 के कार्यान्‍वयन पर अमिटी विश्‍वविद्यालय की राष्‍ट्रीय संगोष्‍ठी

 

दिनांक: 06 नवम्‍बर, 2020

 

 

माननीय शिक्षा मंत्री, डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’

 

राष्‍ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के कार्यान्‍वयन की दृष्‍टि से आज इस महत्‍वपूर्ण कार्यक्रम में उपस्‍थिति विश्‍व विद्यालयअनुदान आयोग के अध्‍यक्ष प्रो. डी.पी. सिंह जी, भारतीय विश्‍वविद्यालय संघ के अध्‍यक्ष और गोविन्‍द बल्‍लभ पंत कृषि और प्रौद्योगिकी विश्‍वविद्यालय के कुलपति डॉ. तेज प्रताप सिंह जी, यूजीसी के उपाध्‍यक्ष डॉ. भूषण पट्टवर्धन जी,अमिटीके संस्‍थापक अध्‍यक्ष डॉ. अशोक कुमार चौहान जी, कुलाधिपति डॉ. अतुल चौहान जी, कुलपति डॉ. बलविन्‍दर शुक्‍ला जी, अन्‍य विश्‍वविद्यालयों के सभी कुलपति गण, कुलाधिपतिगण, सभी आईआईटी,एनआईटी तथा सभी संस्‍थाओं के निदेशक, सभी छात्र, अध्‍यापकगण, शोध छात्रऔरउपस्‍थित देश और विदेश से जुड़ने वाले हजारों भाइयो और बहनों जिनके मन में नई शिक्षा नीति के क्रियान्‍वयन के लिए छटपटाहट है ऐसे जो आप इस महत्‍वपूर्ण कार्यक्रम में जुड़े हैं, मैं आप सबका स्‍वागत कर रहा हूं।

मुझे लगता है कि जैसा अभी कुलपति जी ने कहा है कि यह शिक्षा ही है जो जीवन के तमाम लक्ष्‍यों के लिए रास्‍ता देती है और उस शिक्षा के लिए आज हम सब लोग यहां पर एकत्रित हुए हैं इसलिए मैं आप सबका अभिनन्‍दन कर रहा हूं और विशेष करके डॉ. अशोक चौहान जी का जो विन्रमता और प्रखरता की पराकाष्‍ठा हैं।

मैं जब-जब भी इनसे मिलता हूं तो आपने बहुत ही विन्रम स्‍वभाव से अपने विजन को और भारतीयता के साथ विज्ञानको जोड़कर के देश और विदेशमें शिक्षाका प्रसार करने का जो काम किया है उसके लिए मैं आपका और आपकी पूरी टीम का अभिनन्‍दन कर रहा हूं और मैंबधाई भी देता हूं कि इस नई शिक्षा नीति के प्रति  पूरे देश में जागरूकता, उत्साह, उमंग और उल्लास है और न केवल देश में बल्कि पूरी दुनिया में बहुत उत्सुकता भरी दृष्टि से देख रही है।

नई शिक्षा नीति के क्रियान्वयन के लिए आज बहुत ही महत्वपूर्ण आपने सम्मेलन किया है यह दो दिवसीय जोसम्मेलन है यह अपने आप में नयी शिक्षा नीति के क्रियान्वयन की दिशा में एक आधारशिला बनेगाऐसा मेरा भरोसा है। और इसलिए मैं सोचता हूं कि दो दिन तक लगातार जो आपके सभी देश-विदेश से उपस्थित शिक्षक हैं,शिक्षाविद हैं, वैज्ञानिक हैं, शोधार्थी हैं वो सभी मिलकर के विचार-विमर्श और परामर्श करेंगे जिससे ज्ञान का पुंज निकलेगा औरवहहमारे देश को ज्ञान आधारित महाशक्ति के रूप में न केवल स्थापित करेगा बल्कि पूरे विश्व में ज्ञान के महाशक्ति के रूप में भी स्थापित करने की दिशा में एक मील का पत्थर साबित होगा, ऐसा मेरा भरोसा है।

मैं देख रहा था कि अभी दो दिन तक जो आपकी यहगोष्ठी चलने वाली है उसमेंतमाम प्रकार के बहुत खास सत्र आपने शुरू किए हैं। इन सत्रों में वंचितों तक गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की पहुंच सुनिश्चित करने की दिशा में आपविमर्श कर रहे हैं और जोनई शिक्षा नीति है उसके क्रियान्वयन का रास्ता क्या होगा इसपर चर्चा करनेवाले हैं।

वहीं उच्‍चशिक्षा को समावेशी और उसको वहनयोग्य करने का जो विषय है इस पर भी चर्चा करने के लिए आपने एक सत्र रखा है।सीखनेके लिए सम्पूर्ण परिवेश निर्माण की बात करनी चाहिए कि अंततोगत्वा परिवेश कैसे करके सृजित होगा, निर्मित होगा। नई शिक्षा नीति में भी हमव्यावसायिक शिक्षा व वोकेशनल शिक्षा को लेकर आ रहे हैं।हर प्रणाली में शिक्षक ही तो मूल आधार है इसी कोयोद्धा के रूप में नीचे तक ले जाने का जो काम करना है उसको किस तरीके से पुनर्गठन करने की बात हुई है और उसका क्रियान्वयन कैसे होगा। उच्च शिक्षा और अनुसंधान की दिशा में भी विमर्श करने वाले इन सत्रों में शिक्षा के डिजिटलीकरण की दिशा में भी आपएक सत्र चला रहे हैं और एक सत्र आप औद्योगिकिकरण एवं समाज कल्याण तथा गुणवत्तापूर्ण शैक्षिकअनुसंधान पर भी सत्र चला रहे हैं क्‍योंकि  शोध और अनुसंधान पर ही अधिकांशविकास टिका हुआ है।

किसी चीज को अनुसंधान करके उसे नवाचार के रूप में परिणति तक लाकर उसको अर्थतंत्र से और जीवन से जोड़ने का चुनौतीपूर्ण काम है तथा वो बड़ा काम है।मुझे खुशी है कि आप नवाचार उत्प्रेरण का भी एक सत्र ले रहे हैं। उच्च शिक्षण संस्थानों के लिए प्रभावी प्रशासन और नेतृत्व का विकास जिसकी हमारी बहुत चिंता रही है क्‍योंकि आपको शिक्षण संस्थानों को लीडरशिप देनी है। जो लीड कर रहे हैं अन्ततोगत्वा उनको किस तरीके से कर रहे हैं, इस पर भी चर्चा करने की जरूरत है अब यूजीसी के चेयरमैन बताएंगे कि उनके नेतृत्व में लीपप्रोग्राम और अर्पित प्रोग्राम शिक्षण संस्‍थानों में किस तरह से आगे बढ़ रहे हैं। नई शिक्षा नीति में लीडरशिप के विषय को विशेष ध्यानरखा गया है। लीडरशिप बहुत जरूरी है क्‍योंकि लीडरशिप के अभाव में बहुत सारी चीजें बिखर जाती है और स्वरूप भी बदल जाता है तो यह भी बहुत महत्वपूर्ण है।

भारतीय ज्ञान प्रणाली का एकीकरण जिसके बारे में आपसबको पता है कि अंततोगत्‍वा भारतीय ज्ञान जिसकी हमलोग चर्चा कर रहे हैं क्‍योंकि हमारा देश को विश्व गुरु को कहा गया है। इसके बारे में हमेशा से एक उक्‍ति प्रचलित थी ‘एतद् देश प्रसूतस्य शकासाद् अग्रजन्मन : , स्वं-स्वं चरित्रं शिक्षरेन् पृथ्वियां सर्व मानव:’ तक्षशिला, नालंदा औरविक्रमशिला जैसे विश्वविद्यालय तो हमारे यहां थे। विज्ञान, अनुसंधान, कला, जीवन दर्शन और प्रौद्योगिकी सहित कौन-सा क्षेत्र ऐसा था जहां हम आगे नहीं थे। इस समय जो नई शिक्षा नीति आई है।

उसमें सौ डेढ सौ सालों के बाद ऐसा हो रहा है कि जब लार्ड मैकाले की उस शिक्षा नीति के विपरीत जिसने हमारी शिक्षा को जड़ से मिटाने की कोशिश की क्‍योंकि हमारी जड़ें गहरी थीं। जबइन बातों को कहते हैं तो कुछ लोगों को बहुत आश्चर्य होता है। मुझे उनके आश्चर्य होने पर कोई दुख इसलिए नहीं होता कि उनको उस वैभव का ज्ञान नहीं कराया गया तथा लोगों को उनसे दूर रखा गया। भारत की उस ज्ञान परंपरा में जिसमेंसुश्रुत जैसे शल्य चिकित्‍सकइस देश में पैदा हुए आचार्य चाणक्य जैसे विधि तथानीतिवेताइस देश में पैदा हुए, कणाद जैसे अणुओं औरपरमाणुओं का विश्लेषण करने वाले भी इसी धरती पर पैदा हुए हैं। आयुर्वेद जो आुय का विज्ञान है जिस आयुर्वेद के पीछे आज पूरी दुनिया खड़ीहै, उसके महान् ज्ञाता चरक ऋषि की ‘चरक संहिता’ की रचना भी इसी देश में हुई है। मेरा देश ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ की बात करने वाला है।

हमने हमेशा से कहा है औरहमारा विचार हमेशा बहुतविशाल रहा हैतथाउसमें हमने कहा है कि अयं निज: परो वेति गणना लघु चेतसाम्। उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्‍बकम् अर्थात्पूरी वसुधा को हमने अपना कुटुम्‍ब माना है और उसके लिए सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया सर्वे भद्राणी पश्‍यन्‍तु मा कश्‍चिद् दुखभाग्‍भवेत की कामना की है। जब तक धरती पर एक भी प्राणी दुखी होगा तब तक मैं सुख का अहसास नहीं कर सकता यह है हमारा संकल्प, यह है हमारा विचार और उस विचार को पुख्ता करने के लिए जो हमारे प्राचीन वैज्ञानिकों, शिक्षाविदों, भाषाविदों,का कोई सानी हैं।

चाहे बौधायन हो, कौटिल्‍य का अर्थशास्त्र आज भी उन्हीं मुद्दों पर खड़ा है और मैं समझता हूं जो मेरे देश के यशस्‍वी प्रधानमंत्री जी ने नये भारत की बात की है और ऐसा भारत जो स्वच्छ भारत हो,स्वस्थ भारत हो, सशक्त भारत हो, श्रेष्ठ भारत हो, आत्मनिर्भर भारत होऔरएक भारत हो और जो21वीं सदी का स्वर्णिम भारत हो उस स्वर्णिम भारत के लिए यहनई शिक्षा नीति आई है।यह नयी शिक्षा नीति नए आयाम के साथ आयी हैजोकमजोर तबके कोजोड़नेकी बात करेगी और शिखर पर पहुंचने की बात भी करेगी। मैं उन बातों पर पीछे नहीं जाता कि देश की गुलामी के थपेड़ों ने हमको बहुत दूर पटक करके खड़ा किया और हमारी जो शिक्षा है उसका पूरा स्वरूप ही बदल दिया। उसमें चर्चा करके समय गंवाने की जरूरत नहीं है।

अब तो यह है कि जैसे अभी तेजप्रताप जी कह रहे थे कि हम को रूकना नहीं है हमको झुकना नहीं है, हमको जोश के साथ निरंतर आगे बढ़ना है।विवेकानन्‍द जी ने हमेशा कहा है कि उठो जागो और तब तक नहीं रुको जब तक मंजिल प्राप्त ना हो जाए।

हम तो उस संस्कृति के लोग हैं यदि कोई बीड़ा उठाया है तो उसे हर कीमत पर परिणति तक पहुंचाना ही है। हर कीमत जब बोलते हैं तो जीवन-मरण के सवालों से ऊपर गुजरते हैं क्योंकि पहले तो हम निश्चित रूप से हम मानवता के लिए हम दुनिया के लिए हैं, इस पूरी पृथ्वी के लिए हैं। इसलिए इस विजनके साथ हम कोई चीज सोचते हैं तो फिर हम भारत केन्द्रित होते हैं क्योंकि भारत के बारे में कहा गया है कि ‘अरुण यह मधमेय देश हमारा, जहां पहुंच अनजान क्षितिज को मिलता एक सहारा।‘ हम तो पूरी दुनिया को सहारा देने वाले लोग हैं इसकी और मजबूती चाहिए। डॉक्टर अशोक चौहान के प्रति मैं बहुत गदगद रहता हूं क्योंकि वो उन चीजों को पकड़कर आगे बढ़ना चाहते हैं जिन चीजों पर मेरा देश विश्व गुरु रहा है और ऐसे में मैं यह समझता हूं कि यह बड़ा काम है,यहछोटा काम नहीं है और इसीलिए यह जो नई शिक्षा नीति आई हैं इसे बड़े फलक पर देंखें तो यह नेशनल भी है, यह इंटरनेशनल भी है, इम्पैक्टफुल भी है, इन्क्लूसिव भी है और यह इनोवेटिव भी है और यदि आप देखेंगे तो यह इक्‍विटी, क्वालिटी, एक्सेस की आधारशिला पर खड़ी है।

यदि इस नई शिक्षा नीति को देखेंगे तो इसेमातृभाषा में हमशुरू कर रहे हैं।मातृभाषा में जितनी अभिव्यक्ति सामने आ सकती है वहकिसी और भाषा में नहीं आ सकती है इसलिए प्रारंभिक शिक्षा बच्‍चे की अपनी मातृभाषा में होगी और उच्च शिक्षा तक यदि कोई प्रदेश करना चाहता है तो वह भी स्‍वतंत्र है।कुछ लोग कहते हैं कि हमको ग्‍लोबल पर जाना है तो अंग्रेजी सीखनी पड़ेगी। मैंने कहा  हम अंग्रेजी का विरोध नहीं  करते, अंग्रेजी ही नहीं और दो-तीन भाषाएं सीखों,लेकिन अपनी भाषाओं को मत छोड़ो। हमारेसंविधान ने हमें 22 खुबसूरत भाषाएं दी हैं। हिन्दी, तमिल, तेलगू, मलयालम, कन्नड़, गुजराती, मराठी, बंगाली,ओडिया, असमिया, उर्दू,यहहमारी 22 खूबसूरत भाषाएँ हैं।

इनमेंअपना ज्ञान है,जीवंता है,तोक्यों हम अपनी भाषाओं को नहीं अपनाएंगे। हमने अंग्रेजी का कभी विरोध नहीं किया लेकिन अंग्रेजी इस देश की भाषा नहीं है। हमें अंग्रेजीक्या पूरी दुनिया की भाषाओं को पढना है। लेकिन मैं उन लोगों से पूछना चाहता हूं क्या जो देशनीचे से लेकर उच्च शिक्षा तकअपनी मातृभाषा में शिक्षा देते हैं वो किसी से पीछे हैं, क्‍या जापान, फ्रांस, इंग्लैंड और दुनिया के तमाम जो विकसित देश हैं वो अपनी मातृभाषा में शिक्षा देते हैं क्‍या वो किसी से पीछे हैं,फिर ऐसे तर्क दे करके देश को कमजोर करने की बातक्यों की जाती हैं। इसलिए देश के प्रधानमंत्री जीने कहा कि अब व्‍यक्‍ति अपनी मातृभाषा में डॉक्टर भी बन सकता है औरइंजीनियर भी बन सकता है क्‍योंकि  जो बच्‍चा जिस भाषा को बोलता है यदि उसको उसकी भाषा में शिक्षा दी जाए तो वह उसमें ज्यादा अभिव्यक्त कर सकता है।

यह नीति बहुत अच्छी है। हमारे देश में शिक्षा का कितना बड़ा व्‍यापक हैं।मैं समझता हूं यहां एक हजार से अधिक विश्वविद्यालय हैं, 45 हजार से अधिक डिग्री कॉलेज हैं,15 लाख से अधिक स्कूल हैं, 1 करोड़ 9 लाख से अधिक अध्यापक हैंऔर कुल अमेरिका की जितनीजनसंख्या नहीं है उससे भी अधिक 33 करोड़ यहां छात्र-छात्राएं हैं।यह बात बिल्कुल सही है कि यह देश यंग इंडिया रहने वाला है। पूरी दुनिया की सर्वाधिक यंगआबादी भारत में है हमारा देश क्या नहीं कर सकता। इसलिए जो तेज प्रताप ने कहा कि इसको क्रियान्वित कैसे करेंगे हमको इसे जुनूनी मूड में लाना पड़ेगा और एक व्यापक परिवर्तन के साथ देश खड़ा हो रहा है।हमारी नई शिक्षा नीति किसी एक व्‍यक्‍ति या सरकार की शिक्षा नीति नहीं है।यहभारत की शिक्षा नीति है और जिसने विश्व को लीडरशीप दी है। सभी क्षेत्रों में चाहेज्ञान हो, विज्ञान हो, अनुसंधान और प्रौद्योगिकी का क्षेत्र हो, प्रत्‍येक क्षेत्र में भारत ने लीडरशिप दी है लेकिन मैं यह निवेदन करना चाहता हूं कि नीति का जब निर्माण होता है तो लगभग नीतियां हमेशाबहुतअच्छी ही बनती है। लेकिन नीति के निर्माण के बाद जो उसके क्रियान्वयन का पक्ष है वह बहुत महत्वपूर्ण है।

आज इस नीति के निर्माण और नीतियों के क्रियान्वयन के जो महत्‍वपूर्ण कार्य को सम्‍पन्‍न करने वाले हैं, वे हमारे बीच बैठे हैं इस लीडरशिप से पहले नीति को जमीन तक ले जाने का जो महत्वपूर्ण काम है,मिशन है,उसमेंमेरे कुलपतिगण हैं, मेरे निदेशक हैं, इन संस्थानों के प्रमुख लोग हैं,अध्यापकगण हैं और शिक्षाविद् हैं उन्‍हें यह चुनौतीपूर्ण कार्य करना है। चुनौती का मुकाबला यदिडटकर के होता है तोफिर वो अवसरों में तब्दील होती है और वही एक नए सृजन के साथ एक नया निर्माण देती है। इसलिए मुझे लगता है इसके लिए सबको एक मिशन मोड में आना पड़ेगा और मुझे जो वर्तमान में परिस्‍थितियां लग रही हैं उससे औरमैं तेज प्रताप जी की बात से बहुत सहमत हूं किदेश के अंदर बहुत उत्साह है। उस उत्साह से लोग काम करनाशुरू कर रहे हैं।इस शिक्षा नीति के घोषित होने से पूर्व बहुत बड़ा विचारविमर्श हुआ है। ग्रामप्रधान से लेकर आदरणीय प्रधानमंत्री जी तक परामर्श हुआ,शिक्षकोंसे लेकर शिक्षाविदों तक, वैज्ञानिकों से लेकर विशेषज्ञों तक और एनजीओ से लेकर के राजनीतिज्ञों तक परामर्श हुआ है। 33 करोड़ छात्र छात्राओं के अभिभावकों से परामर्श हुआ है तथा अध्यापकों से परामर्श हुआ है एवं ढाई लाख ग्राम समितियों तक से परामर्श हुआ है।

उसके बाद भी पब्लिक डोमेन में डालने के बाद सवा दो लाखसुझाव आये हैं। दुनिया का पहला ऐसा उदाहरण होगा और उन एक-एक सुझाव पर व्यापक विश्लेषण के बाद यह नीति बनी और इसलिए नीति बहुत खूबसूरत है। प्रारंभिक अवस्था से ही अब कक्षा छह से वोकेशनलस्ट्रीम के साथ हम शिक्षा ला रहेहैं। हम शिक्षण एवं शिक्षेणेतर जिसमें सभी गतिविधियां होंगी, सांस्कृतिक गतिविधियां होंगी, योग होगा, खेलकूद होगा, विभिन्न प्रकार की गतिविधि होंगी, शिक्षणेत्तर गतिविधियां और वोकेशनल स्‍ट्रीम वो भी इंटर्नशिप के साथ होगा तो जब बच्‍चा स्कूल से बाहर निकलेगा तो एक योद्धा की तरह निकलेगा और अब उसका मूल्यांकन भी बिल्कुल नयी पद्वति से होगा। अब 360 डिग्री होलिस्टिक उसका मूल्यांकन होगा जिसमें वो अपना स्वयं का मूल्यांकन भी करेगा, उसका अभिभावक भी उसका मूल्यांकन करेगा और उसके अध्यापकगण भी उसका मूल्यांकन करेंगें, उसका साथी भीउसका मूल्यांकन करेगा।

नई शिक्षा नीति के तहत स्‍कूली शिक्षा से ही आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पढ़ाने वाले शायद हम दुनिया का पहला देश होंगे। स्कूली शिक्षा से ही हम कृत्रिम बुद्धिमत्ता को ला रहे हैं और अब बच्‍चे के मूल्यांकन की जोमैंने बात की है उसको रिपोर्ट कार्ड नहीं मिलेगा, उसको प्रोग्रेस कार्ड मिलेगा और उच्च शिक्षा में भी देखेंगे तो यह नीति कितना व्यापक परिवर्तन लाई हैं।

अब विद्यार्थी किसी भी विषय को चुन सकता है वो साईंस के साथ साहित्य को भी ले सकता है एवं तकनीकी के साथ संगीत को लेसकता है। जिसक्षेत्र में तथाजिस विषय में महारत हासिल कर सकता है तथा उसके अंदर की ऊर्जा अब बाहर निकल निकल सकती है और वो अपनेजीवन में प्रगति कर सकता है। अब बच्‍चे के लिए पूरा मैदान खाली है और इतना ही नहीं इस शिक्षा नीति के अंतर्गत यदि कोई 4 वर्ष का कोर्स है और यदि कोई छात्र दो साल में परिस्‍थितिवश छोड़के जा रहा है तो पहले उसका पैसा एवं समय दोनों खराब हो जाते थे लेकिन अब उसको निराश नहीं होना पड़ेगा,यदि आप परिस्‍थितिवश एक वर्षमें छोड़ कर जा रहे हैं तो उसको सर्टिफिकेट देंगे, दो साल में छोड़ कर जा रहा है तो डिप्लोमा देगें, तीन साल में छोड़कर जा रहा है तो उसको डिग्री देंगे लेकिन यदि फिर वह लौट कर अपना भविष्य को संवारना चाहता है तो फिरवह जहां से उसने छोड़ा था वहीं से शुरू कर सकता है। उसके लिए हम एक ऐसा क्रेडिट बैंक बनायेंगे जहां उसके सारे क्रेडिट जमा होंगेइसलिए उसके लिए आगे बहुत आपार संभावनाएं है।पूरी दुनिया में अपने तरीके से नए अभिनव प्रयोग के साथ हम इसको ला रहे हैं।

शोध और अनुसंधान की जैसे अभी आपने चर्चा भी की है तो मुझे लगता है मेरी संस्थान कहां कमजोर हुए हैं जबकि हमारे पास व्यापकता है। मुझे ऐसा लगता है कि हमेंशोधऔर अनुसंधान के क्षेत्र में तेजी से थोड़ा आगे बढ़ना पड़ेगा और हमको पेटेंट भी करना पड़ेगा।अभी भी ऐसा नहीं हैं किहमनहीं कर रहे हैं। हम ‘स्‍पार्क’के तहतदुनिया के 127 शीर्ष विश्वविद्यालयों के साथ हमलोग शोध और अनुसंधान कर रहे हैं,हम‘ज्ञान’ के तहत जहां  बाहर की फैकल्टी को यहां बुला रहे हैं वहीं‘ज्ञान प्लस’में हमारी भी फैकल्‍टी बाहर पढ़ाने के लिए जाएंगी।इसलिए फैकल्टी को आने और जाने का इतनाहीनहीं बल्‍कि भविष्य में ‘स्टडी इन इंडिया’और ‘स्‍टे इन इंडिया’ की अभीबातचीत हुई है, स्टडी इन इंडिया को एकब्रांड बनायेंगे।मुझे इस बात को कहते हुए खुशी है कि दुनिया के देशों में अब भारत में पढ़ने के लिए हौड़ सी लगती है।

हमने जब ‘स्टडी इनइंडिया’ अभियान लिया और उसमें हजारों नामांकनहो रहे हैं और अब हमारा दूसरा महत्वपूर्ण कदम‘स्‍टे इन इंडिया’ है।अभीहमने ‘स्टेइन इंडिया’कीभी बात कीक्‍योंकि हमारे देश से 7-8 लाख छात्र प्रतिवर्ष विदेशों में पढ़ने के लिए जा रहे हैं। हमारे देश का पैसा और प्रतिभा दोनों बाहर चली जाती हैं तो वापस वह हमारे देश में नहीं आती है।हमने  छात्रों को भरोसा दिलाया कि हमारे आईआईटी, एनआईटी, आईएसर, केन्‍द्रीय विश्‍वविद्यालयों में योग्‍यता है, क्षमता है आपको  बाहर जाने  की जरूरत नहीं है,अब लोगों की समझ में आ गया है।

मुझे इस बात की भी खुशी है कि दो लाख से भी अधिक छात्रों ने जो विदेश में जा रहे थे वे जेईई और नीट की परीक्षाओं में सम्‍मिलित हुए।  हम ‘स्‍टे इन इंडिया’ के तहत दुनिया के शीर्ष सौविश्वविद्यालयों को अपनी धरती पर आमंत्रित कर रहे हैं, आपकोकहीं जाने की जरूरत नहीं है और यहां के जो शीर्ष विश्वविद्यालय हैं वेभीबाहर जा रहे हैं।मुझेइस बात की खुशी हैकि जब दुनिया के उन परिसरोंके बारे में मैं अध्ययन करता हूं तो हमारे संस्‍थानोंको अधिकांश क्षेत्रों में शीर्ष पर देखता हूं। ऐसे ही हम यहां भी उनके कुछ विश्वविद्यालयों को लाएंगे और अपने विश्वविद्यालयों को आईओई सहित हमारे एनआईआरएफ में जो टॉप 100 विश्वविद्यालयों को हम ऑनलाइन भी ले करआ रहे हैं।

नई शिक्षा नीति में हम शोध और अनुसंधान के दिशा में नेशनल रिसर्चफाउंडेशन ला रहे हैं जो प्रधानमंत्री जी के  प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार की अध्यक्षता  होगा, इससे शोध और अनुसंधान की गतिशीलता को बढ़ावा मिलेगा और वही तकनीकी के क्षेत्र में अंतिम छोर तक उसको पहुंचाने के लिए हमनेशनल एजुकेशन टेक्नोलॉजी फोरम का गठन कर रहे हैं। इस शिक्षा नीति के तहत हम मूल्यांकन भी करेंगे उसको आगे भीबढ़ाएंगे। विश्व के शिखर तक संस्थाओं को किस तरीके से आगे बढना है और रैंकिंग  में हमारे संस्थान कैसे करके जंप मार सकते है, इस पर काम करने कीआवश्यकता है। इसीलिए उच्चतर शिक्षा आयोग का गठन कर रहे हैं ताकि शैक्षणिक गुणवत्ता और सशक्तता हमारी बनी रहेगी। मुझे भरोसा है कि जो नई शिक्षा नीति है वो नई शिक्षा नीति जिस स्तर पर विश्वविद्यालय अपना शुरू करना चाहते हैं वो शुरुआत कर सकते हैं। मुझे यह भी कहते हुए खुशी है कि बहुत सारी चीजें जोनई शिक्षा नीति में जोहम लेकरआये हैं उनका हमने पालन करना शुरू कर दिया है।

भारतीय शिक्षण प्रक्रिया के विकेन्द्रीकरण, सशक्तिकरण और स्वायत्तता के हम पक्षधर हैं उसका लाभ लेकर के यह जो नई लहर है शिक्षा की वो अंतिम कोने तक पहुंचेगी क्योंकि हमको इस बात पर भी चिंता है कि अभी हमारा जीईआर 26-27 प्रतिशत है। हमें वर्ष 2035 तक इसको 50 प्रतिशत करने का टारगेट रखा है जिसमें साढ़े तीन करोड़ से भी अधिक छात्र नई और उच्च शिक्षा में नया स्थान प्राप्त कर सकेंगे। मैं सोचता हूं कि व्यापक परामर्श और सुझाव कीअभूतपूर्व प्रक्रिया से होकर हमगुजरे हैं अब यह जो दूसरी प्रक्रिया है जो निश्चित रूप से बहुत ताकत मांगती है, जो समर्पण मांगती है, जो प्रखरता मांगती है, जो विनम्रता मांगती है, जो धैर्य मांगती है इसलिए जो भी हमारे योद्धा जुड़े हुए हैं, मैं उनसे कहना चाहता हूं कि मुझे ऐसा लगता है कि हमको 5 डी मॉडल के साथ आगे बढना पड़ेगा।

डिस्कस, डिबेट, डिसाइड, डिसिमिनेट और डिलिवर इन पांचों कोलेकर हमें आगे बढ़ना पड़ेगा और तब जाकर के हम एक अच्छे मार्गदर्शक के रूप में हो सकते हैं क्योंकि मैं समझता हूं कि छात्र इस नीति का केन्द्र बिन्दु है लेकिन इसका फोकस प्वाइंट हमारे ब्रांड अम्बेसडर हैं।इसनयी शिक्षा नीति में एक ओर छात्र हैं तो दूसरी ओर शिक्षक और शिक्षाविद हैं।

\नई शिक्षा नीति के क्रियान्‍वयन के लिए विश्वविद्यालय और महाविद्यालय को कार्य योजना बनाकर उसको समयबद्ध लागू करना पड़ेगा क्योंकि कितने समय में हम क्या-क्या कर सकते हैं उसमें प्रशासन केविकेंद्रीकरण और सशक्तिकरण के साथ जोड़कर हमकोआगे बढ़ानापड़ेगा। मुझे भरोसा है कि हम स्टडी इन इंडिया और स्‍टे इन इंडिया इन दोनों लक्ष्यों को भी हम प्राप्त कर सकेंगे और ग्लोबल पार्टनरशिप के माध्यम से हम दुनिया को बताना चाहते हैं कि अब जो हमारी संस्कृति है, जो हमारी विविधता है, जो हमारे देश का सॉफ्ट पावर है, वो दुनिया के फलक पर कैसे महक सकता है। मैं समझता हूं कि शोधअनुसंधान के द्वारा हमें टैलेंट को ढूंढना भी है, उसका विकास भी करनाहै औरउसका विस्तार भी करना है तथाटैलेंट को पेटेंट के साथ जोड़नाभी है।मैंदेख रहा था पीछे के समय 10-15 साल पहले जहां चीन हमारे बराबरथा लेकिन उसने जंप मारा है। वहां जमीन-आसमान का अंतर है तो इस बीच हमारा पीछे के समय में जो 10 15 वर्ष पीछे के थे और उनमें हम लोग उस दिशा में और गंभीरता से आगे बढ़ नहीं पाये। अब जरूरत हो गई है और परिवेशभी बनरहा है।

हमारे देश के प्रधानमंत्री जी ने तो जय अनुसंधान का नारा दिया है कि जयअनुसंधान के साथ विश्व फलक पर मेरे देश को आगे बढऩा है। मुझे भरोसा है कि इसके लिए आपविशेषज्ञों को अपने-अपने संस्थानों में, विश्वविद्यालयों में,अपनेप्रोफेसर, शिक्षाविद और विशेषज्ञों की टास्कफोर्स बनाकर इस नीति को नीचे तक ले जाने का तरीका भी बनाएंगेऔर उसको क्रियान्वित भी करेंगे। हर कदम पर व्यवधान आते  हैं जब कोई नई चीज होती है लेकिन हमें व्यवधान से समाधान की ताकत चाहिए और मुझे भरोसा है कि जो टास्कफोर्स आपतैयार करेंगे वो व्यवधान से समाधान की ओर बढ़ने के सभी बिन्दु तैयार करेंगे। राज्य के विश्वविद्यालय हों, चाहेकेन्द्रीय विश्वविद्यालय हो, चाहे प्राइवेट विश्वविद्यालय हों उन सभी में पारस्परिक समन्‍वय हो, इसकी भी हम लोग पूरी कोशिश कर रहे हैं। इसलिए मैं अपने सभी कुलपति गण से, सभी निदेशक से औरसभीशिक्षाविदों से यह आग्रह करूंगा कि मेक इन इंडिया डिजिटल इंडिया स्किल इंडिया स्टार्टअप इंडिया जो भारत की 5 ट्रिलियन डॉलर की आर्थिकी के रूप में सुनिश्चित करेगा।इक्कीसवीं सदी का जो स्‍वर्णिम भारत होगा उसके निर्माता के रूप में आप सारे लोग हमारे देश के प्रधानमंत्री जी के उस विजन को, उस मिशन को, उस संकल्प को पूरा करेंगे।आप निश्चित रूप में दो दिन के इस सेमिनार में ‘सबका साथ सबका विकास और सबका विश्‍वास’ मंत्र को ले करके आगे बढ़ेंगे। टीम इंडिया के रूप में हम ‘इंडिया फर्स्ट’ का नारा ले करके कैसे आगेबढ़ सकते हैं, इसको जुनून के साथ हम करेंगे।मैंएमिटी का आभारी हूं कि उन्होंने यह शुरुआत कर दी है और बहुत खूबसूरत शुरूआत है। मैं देखता हूं सभी प्रदेशों के शिक्षा मंत्रियों से औरमुख्यमंत्रियों से लगातार मेरी बातचीत होती है और मुझे इस बात की खुशी है कि लगभग देश के सभी मुख्यमंत्री एवं सभी शिक्षा मंत्री इस मूड में हैं कि अबमैं अपने प्रदेश में कैसे करके पहले इसको लागू कर सकता हूं, मेरी शुभकामनाएं।

बहुत-बहुत धन्‍यवाद!

 

कार्यक्रम में गरिमामयी उपस्‍थिति:-

  1. डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’, माननीय शिक्षा मंत्री, भारत सरकार
  2. डॉ. अशोक कुमार चौहान, संस्‍थापक, अमिटी विश्‍वविद्यालय
  3. डॉ. बलविन्‍दर शुक्‍ला, कुलपति, अमिटी विश्‍वविद्यालय,
  4. डॉ. अतुल चौहान, कुलाधिपति,अमिटी विश्‍वविद्यालय
  5. प्रो. डी.पी. सिंह, अध्‍यक्ष, विश्‍वविद्यालय अनुदान आयोग,
  6. डॉ. भूषण पट्टवर्धन, उपाध्‍यक्ष, विश्‍वविद्यालय अनुदान आयोग,
  7. डॉ. तेज प्रताप सिंह, कुलपति, गोविन्‍द बल्‍लभ पंत कृषि और प्रौद्योगिकी विश्‍वविद्यालय एवं अध्‍यक्ष, भारतीय विश्‍वविद्यालय अनुदान संघ