Author: nishankji-user

जेएनयू में अकादमिक कॉम्‍प्‍लेक्‍सभवन का शिलान्‍यास समारोह

जेएनयू में अकादमिक कॉम्‍प्‍लेक्‍सभवन का शिलान्‍यास समारोह

 

दिनांक: 04 जनवरी, 2021

 

 

माननीय शिक्षा मंत्री, डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’

 

आज के इस अवसर पर जेएनयू परिवार और उससे जुड़े पूर्व छात्र तथा सभी लोगों का मैं नये वर्ष पर अभिनन्‍दन कर रहा हूं और इस नये वर्ष की शुरूआत में ही जो कुलपति जी ने शुरूआत की है उसके लिए भी मैं उनको बधाई देना चाहता हूं। इस विश्‍वविद्यालय के कुलपति प्रो. जगदीश कुमार जी, जिन्‍होंने पीछे 5 वर्षों में तामम अभिनव प्रयोग करके अपने कुलपति होने का एक महत्‍वपूर्ण इतिहास का दस्‍तावेज यहां संचित किया है मैं बहुत बधाई देना चाहता हूं आपको। प्रो. चिन्‍तामणि महापात्रा जी आपने जिन बिन्‍दुओं को कहा है, प्रो. सतीशचन्‍द्र घटकोटे जी, जिनको बहुत लम्‍बे समय से मैं जानता हूं और प्रो. राणा प्रताप जीमुझे इस बात की खुशी है कि आप तीनों पीवीसी ने और इस विश्‍वविद्यालय के कुलसचिव डॉ. प्रमोद ने मिलकर के जिस तरीके से एकजुटता, प्रखरता और कुलपति के साथ कंधा से कंधा मिलाकर इस विश्‍वविद्यालय को ऊंचाईयों पर पहुंचाया है इसलिए मैं इनको शुभकामनाएं देना चाहता हूं। यहां के अन्‍य जितने भी संकायसदस्‍य है, कमर्चारी वर्ग है, मैं सबको ऐसे अवसर पर जबकि दो बहुत महत्‍वपूर्ण संस्‍थानों का शिलान्‍यास हो रहा है वो भी एक ऐसा संस्‍थान जो प्रबंधन से जुड़ा है , वो भी अटल बिहारी वाजपेयी जी के नाम पर है, जिसकी आधारशिला रखी जा रही है तथा दूसरा इंजीनियरिंग क्षेत्र का संस्‍थान है। मुझे लगता है कि आगे आने वाले समय में निश्‍चित रूप में यह 21वीं सदी के  स्‍वर्णिम भारत की आधारिशला बनेगा, ऐसा मेरा भरोसा है। पीछे पांच वर्षों में जिस तरीके से प्रो. जगदीशजीने यहांपर काम किया है, वह सबके संज्ञान में है, मैं आपको बधाई देता हूं। नये वर्ष में आपको ऐसी सौगात मिली है जो भावी भारत के निर्माण की आधारशिला होगी। मेरे साथ हमारे अपर सचिव है डॉ. विनीत जोशी जो विश्‍वविद्यालयों के काम को देखते हैं वो भी हमारे साथ जुड़े हुए हैं और डॉ. अंशु जो अच्‍छा संयोजन करती हैं और यह अच्‍छी लेखिका के रूप में भी प्रतिष्‍ठित है, मैं इनको पढ़ रहा हूं, इनको भी मैं बहुत शुभकामनाएं देना चाहता हूं। मुझे बहुत खुशी है कि जब मेरे सामने यह प्रस्‍ताव आया तो जेएनयू जो हमारीशीर्ष संस्‍था है, मैंने हमेशा से यह कहा है चाहे पीछे के समय में लोकसभा में था जब मैं संसदीय कमेटी का अध्‍यक्ष था, उस रूप में भी जब-जब जेएनयू के बारे में चर्चा हुई तो मैंने इस संस्‍थान के बारे में लोगों को अवगत कराया है कि यह देश के अन्‍दर अपने ढंग का मेरा संस्‍थान है जो विश्‍व फलक पर आगे बढ़ने की ताकत रखता है और इस संस्‍थान को बहुत तेजीसेआगे बढ़ाने की जरूरत है। उस तेजी से आगे बढ़ाने के रास्‍ते की दिशा में आज यह दो एवं इससे भी पहले बहुत अभिनव प्रयोग किये हैं। नई शिक्षा नीति आने के बाद दो चीजें तो आपने तत्‍काल शुरू कर ही दी हैं। मुझे लगता है कि इसमें चाहेमेरे शोधार्थी हों, अध्यापक हों, इसका बहुत अच्छा उपयोग कर सकेंगे और इनको लगेगा कि हां, यह दोनों संस्थान जैसा कि अभी हमारे प्रति-कुलपति साहब कह रहे थे कि आत्मनिर्भर भारत बनाने की दिशा में प्रबंधन एवं इंजीनियरिंग के यह दोनों संस्‍थानबहुत आगे बढ़कर जाएंगे। यहां उच्च गुणवत्ता वाली सुविधाओं से युक्त  और प्रबंधन और प्रौद्योगिकी पर जो शैक्षणिक माहौल बनेगा उसका एक अपना अलग सा संदेश जाएगा। अब मैनेजमेंट संस्थान का नामकरण जो आपने किया है इस देश के पूर्व प्रधानमंत्री भारतरत्न और जिनको अजातसत्रु कहा जाता था अटल जी की प्रखरता और उनकी मुखरता दुनिया ने बहुत निकटता से जाना है। कुलपति जी,आपने ऐसे व्‍यक्‍तित्‍व के नाम पर इस अकादमिक भवन को रखा जिसका नाम लेते ही श्रद्धा से केवल सिरनत नहीं होता, आज झुकता नही बल्कि अन्दर से प्रेरणा भी बाहर निकलती है, देश के लिए कुछ कर गुजरने की अभिलाषा मन में पैदा होती है। अटल बिहारी वाजपेयीजीहमेशा कहते थे किछोटे मन वाला कभी बड़ा नहीं हो सकता और टूटे तने वाला कभी खड़ा नहीं हो सकता।छोटी-छोटी बातों में उलझा हुआकोई व्यक्ति, संस्था, राष्ट्र कभी शिखर को प्राप्त नही कर सकता। उसेबड़ा बनना है तो उसके लिए बड़ा मन चाहिए, बड़ा दिल चाहिए, बड़ा दिमाग चाहिए,बड़ा धैर्य चाहिए, पराकाष्ठा एवंप्रखरता चाहिए तब ही आदमी बड़ा बन सकता है। कोई संस्था भी तभी बड़ी हो सकती है तभी कोई समाज उन्नति कर सकता है और तभी कोई राष्ट्र भी शिखर पर पहुँच सकता हैयह बहुत प्रबल धारणा रही है उनकी हमेशा औरहमेशा। अटलजी जहाँ इस बात को बोलते थे, वहीं अटल जी इस बात को भी बोलते थे जोउनकी एक छोटी सी कविता का अंश है कि पेड़ के ऊपर चढ़ा आदमी ऊँचा दिखाई देता है और पेड़ की जड़ पर खड़ा आदमी छोटा दिखाई देता है। न आदमी छोटा होता है न बड़ा होता है। आदमी सिर्फ आदमी होते है और उन्होंने कहा कि इस बात का फर्क नहीं पड़ता कि आदमी कहां खड़ा है, रथ पर या पथ पर। उनकी यदिरचनाओं को पढ़ेंगे तो आपकोलगेगा कि क्या जीवंतता है। जो मरा हुआ भी आदमी होगा वह भी खड़े होकरके दौड़ना शुरू कर देगा। कितना ही स्वार्थी आदमी है वो भी कहेगा कि नहीं, मुझे राष्ट्र के लिए, समाज के लिए कुछ करने की अभिलाषा मेरे मन में रहनी चाहिए। ऐसे व्‍यक्‍ति के नाम पर आपने इस भवन का नाम रखा है मुझे बहुतखुशी है। आपको तो मालूम है यदि आप अटल जी के उससमय के कामों को देखें जब वो प्रधानमंत्री थे तो उन्होंने देश को एक साथ जोड़ने के लिए चाहे स्वर्णिम चतुर्भुज योजना हो और चाहे वो गांव-गांव को जोड़ने वाली प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना हो, क्या विज़न था उनके पास। उसी समय उन्होंने शिक्षा के उन्नतिकरण के लिए एजुकेशन सेस लागू किया था और आज भी वो जारी है कि और सारे संस्थानोंएवं जितनी कम्‍पनियांहैंउनसेटैक्स ले करके शिक्षा का उत्थान कैसे करके करसकते हैं। सर्व शिक्षा अभियान जोआज समग्र शिक्षा के रूप में विकसित हो रहा है। अंतिम छोर तक का बच्चा भी अनपढ़ नहीं रहना चाहिए उस तक कैसे करके शिक्षा जा सकती है यह उनका विजन था। आज हम उनके विजनको लेकर के आगे जारहे हैं। टेलीकॉम की क्रांति होचाहे वो कनेक्टिविटी का सवाल हो मुझे लगता है कि अटल जी का जो मानस था वो अद्भुत था। मुझे भरोसा है इस संस्थान के अंदर घुसते ही छात्र-छात्रा और मेरे अध्यापक गण के मन के अंदर एक नई स्फूर्ति का संचार होगा, एक नए विचार का संचार होगा, उसेताकत मिलेगी, ऊर्जा मिलेगी। एक समय था जब हमारे देश के प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री थे और देश दो संकटों सेएक साथ गुजर रहा था। सीमाओं पर हम सुरक्षा के संकट से गुजर रहे थे और आंतरिक रूप से हम खाद्यान्‍न के संकट से गुजर रहे थे। ऐसे वक्त में हमारे देश के तत्कालीनप्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने ‘जय जवान जय किसान’ का नारा दिया था। जवान और किसान ने साथ खड़ा होकर के देश की इन दोनों समस्याओं पर विजय प्राप्त की थी और सब को मालूम है उनके बाद जब अटल बिहारी बाजपेयी जी भारत के प्रधानमंत्री बने। उनको लगा कि अब विज्ञान का समय है, हमको और तेजी से दुनिया में आगे बढ़ना है तो उन्होंने ‘जय विज्ञान’ का नारा दिया थाऔर आपको याद होगा कि जैसे ही परमाणु परीक्षण की उन्होंने घोषणा की थी तोपूरी दुनिया के लोगों ने किस-किस तरीके से संपादकीय तक लिखे थे। अटलजी पर जब दबाव पड़ा कि नहीं आप इस निर्णय को वापस लीजिए तो अटल जी ने कहा था कि हम देश को ताकतवर बनाना चाहते हैं। हम किसी को छेड़ने के लिए नहीं,किसी को परेशान करने के लिए नहीं, किसी को हड़पने के लिए नहीं बल्कि अपनी सुरक्षा के लिए हम अपना परमाणु परीक्षण करना चाहते हैं। हम भारत को महाशक्ति के रूप में स्थापित करना चाहते हैं। वो जानते थे कि पूरी दुनिया में सुख-शांति और प्रगति का रास्‍ता कहीं से गुजरता है तो वह हिंदुस्तान की धरती से गुजरेगा तब तक दुनिया में शांति सुरक्षित नहीं रह सकती जब तक हिन्दुस्तान का वो मानस जो ‘वसुधैव कुटुम्बकम’कोकहता है और‘अयं निजः परो वेति गणना लघुचेतसाम्। उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम्।।‘पूरी वसुधा को अपना परिवार मानने वाला विजनयदि है तो मेरे भारत का है। अटल जी के मन और मस्तिष्क में तो स्वयं भी भारत उनके अंदर दिखाई देता था और इसलिए ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया’ की इस कल्पना को ले करके उन्होंने कहा था किहमदुनिया में सुख चाहते हैं, शांति चाहते हैं, पूरी दुनिया मेरा परिवार है एवं इस परिवार की खुशहाली के लिए हम यह ज़रूर करेंगे और तब पूरी दुनिया ने कहा था कि हम तो आप पर आर्थिक प्रतिबंध लगा देंगे और अटल जी ने ताकत के साथ खड़े होकर कहा था हम मुकाबला कर लेंगे उन्‍होंने एक सूत्र दिया था उस समय किदेश में न तो कोई चीज आयात होगी और न हीकोई चीज निर्यात होगी। न बाहर से इस देश के अंदर कोईवस्तु आएगी औरन ही यहां से निर्मित चीज बाहर जाएगी। छह महीने के अंदर-अंदर दुनिया हिल गई थी। अंततोगत्वा दुनिया को अपने निर्णय वापस लेने पड़े थे,यह ताकत थी अटल बिहारी बाजपेयी कीजिन्‍होंने पूरा देश खड़ा कर दिया और मुझे इस बात की खुशी है कि उसअभियान को आज बढ़ाते हुए हमारे वर्तमान प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने एक कदम आगे जाकर अब‘जय अनुसंधान’ की बात की है। अब अनुसंधान कीजरूरत है। हमनवाचार और अनुसंधान तथाशोध के साथ आगे बढ़ना चाहते हैं और तेजी से जाना चाहते हैं और उसी ‘जय अनुसंधान’ के साथआपको तो मालूम है कि आज पर हम ‘स्‍पार्क’ के तहत दुनिया के 127 शीर्ष विश्वविद्यालयों के साथ अनुसंधान कर रहे हैं। हम ‘स्‍ट्राइड’के तहत अंतर-विषयक शोध कर रहे हैं। हम स्‍पार्क और स्‍ट्राइड ही नहीं हम इम्‍प्रिंटऔर इम्प्रेस इनदोनों अभियानों को भीआगे बढा रहे हैं।हम‘स्टार्स’ में वैज्ञानिक क्षेत्र में कार्य कर रहे हैं। हमने ‘ज्ञान’ में बाहर के अध्यापकों को यहां बुलाकर के परामर्श करना शुरू किया तो ‘ज्ञान प्लस’ में हमारे भीअध्‍यापकदुनिया में जा कर के पढ़ाएंगे। यह हम लोगों ने शुरू किया है।हमलोगों ने उसी आधार पर ‘स्टडी इन इंडिया’ अभियान लिया और आह्वान किया किदुनिया के लोगों, भारत में आओ और स्टडी करो। उसअभियान के अंदर 50 हजार से भी अधिक अभी रजिस्ट्रेशन हुए हैं। पूरी दुनिया लालायित है अब हिंदुस्तान में आने के लिए। अभी एक हजार से अधिक आसियान देशों के मेरे छात्र आईआईटी में शोध और अनुसंधान के लिए आ रहे हैं। अब तो हमने ‘स्टे इन इंडिया’ कर दिया, मेरे इन संस्थानों ने पूरी दुनिया में हमारा मान-सम्मान बढ़ाया है। यदि मैं जेएनयू को ही देखता हूं तो कितने लोग निकले हैं यहां से पद्म श्री, पद्म विभूषण,वैज्ञानिक,तमाम राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय सम्मानों से प्राप्त राजनैतिक क्षेत्र में हो, प्रशासनिक क्षेत्र में हो, सामाजिक क्षेत्र में हो कौन सा क्षेत्र ऐसा है जहां जेएनयू ने अपनी महत्त्वपूर्ण उपस्थिति दर्ज नहीं की है।आज फिर समय आ गया। अब तो हमारा नेतृत्व भी ताकतवर नेतृत्व है। पूरी दुनिया हमको देख रही है और तब जबकि नई शिक्षा नीति को लेकर के हम आए हैं। नई शिक्षा नीति 2020 जो हमारीराष्ट्रीय शिक्षा नीति है यह बहुत खूबसूरत शिक्षा नीति है। नई शिक्षा नीति पूरी दुनिया में लोकल भी है और ग्लोबल भी है। हम अपनी हम अपनी प्रारंभिक शिक्षा को बच्‍चे की मातृभाषा में शुरू करेंगे और उसके बादअंतरराष्ट्रीय फलक पर हम ज्ञान, विज्ञान, अनुसंधान एवं नवाचार के क्षेत्र में और तेजी से आगे बढ़ेंगे। हम स्कूली शिक्षा में वोकेशनल स्ट्रीम के साथ इंटर्नशिप भी साथ ला रहे हैं। अभी जो यह मेरा इंजीनियरिंग संस्थान बन रहा है, इस इंजीनियरिंग संस्थान में निश्चित रूप में वो बच्‍चा जो छठवींसे वोकेशनल औरइंटर्नशिप के साथ आएगा वो आप तक पहुँचते-पहुँचते एक योद्धा बन कर जाएगा और जब आप उसको उभारेंगेतो वह विश्‍व के फलक पर चमकता सितारा साबित होगा। हम लोग पूरी दुनिया का पहला ऐसा देश बन रहे हैं जो आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस कोस्कूली शिक्षा से ला रहे हैं। हम लोगों ने इस नई शिक्षा नीति में मूल्यांकन का भी तरीका बदल दिया है। नई शिक्षा नीति में हम अब बच्‍चे को रिपोर्ट कार्ड नहीं देंगे। अब हम उसको प्रोग्रेसकार्डदेंगे और छात्र स्‍वयंअपना मूल्‍यांकन भी करेगा, अध्यापक भी उसका मूल्यांकन करेगा, उसके अभिभावक भी मूल्‍यांकनकरेंगे औरउसका साथी भी उसका मूल्यांकन कर सकेगा।इस शिक्षा नीति के अंतर्गत यदि कोई चार वर्ष का कोर्स है और यदि कोई छात्र दो साल में परिस्‍थितिवशछोड़के जा रहा है  तो पहले उसका पैसा एवं वर्ष दोनों खराब हो जाते थे। लेकिन अब उसकोनिराश नहीं होना पड़ेगा,यदि आप परिस्‍थितिवश एक वर्षमें छोड़ कर जा रहे हैं तो उसको सर्टिफिकेटदेंगे,दो साल में छोड़ कर जा रहा है तो डिप्लोमा देगें, तीन साल में छोड़कर जा रहा है तो उसकोडिग्री देंगे लेकिन यदि फिर वह लौट कर अपने भविष्य को संवारना चाहता है तो फिर जहां से उसने छोड़ा था वहीं से शुरू कर सकता है। उसके लिए हम एक ऐसा क्रेडिट बैंक बनायेंगे जहां उसके सारे क्रेडिट जमा रहेंगे।इसलिए उसके लिए आगे बहुत आपार संभावनाएं है।वह कहां जाना चाहता है,यदिशोध और अनुसंधान के क्षेत्र में जानाचाहता है तो हमने ‘नेशनलरिसर्च फाउंडेशन’ की स्थापना की है,जो कि प्रधानमंत्री जी के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार की अध्यक्षता में होगीयह फाउन्‍डेशन शोध की संस्कृति को तेजी से आगे बढ़ाएगा। वहींहमतकनीकी के क्षेत्र मेंकोशिश कर रहे हैं कि हमतकनीकी को नीचे स्‍तर तक, अंतिम छोर के व्यक्ति तक कैसे पहुंचा सकते हैं इसके लिए ‘नेशनल एजूकेशन टेक्‍नोलॉजीफोरम’का भी गठन कर रहे हैं। जिससेतकनीकी दृष्टि से भी देश समृद्ध हो सके। ये अद्भुत और अभिनव प्रयोग हम कर रहे हैं। नई शिक्षा नीति को को यदि आप देखेंगे तो इसको लेकर पूरी दुनिया के अंदर खुशी का माहौल है औरदुनिया के कई देश इसको अपने यहां लागू करना  चाहते  हैं। भारत ने दुनिया को लीडरशिप दी है हर क्षेत्र में। वहभारत जोज्ञान, विज्ञान, अनुसंधान के क्षेत्र में शिखर पर रहा है औरतक्षशिला तथानालंदा जैसे विश्वविद्यालय इस देश के अंदर थे।जहां पूरी दुनिया के लोग ज्ञान, विज्ञान, अनुसंधान और नवाचार के लिए शिक्षा ग्रहण करने के लिए आते थे, तब दुनिया में कौन सा विश्वविद्यालय था और इसीलिए मैं यह समझता हूं कि सुश्रुत, शल्‍य चिकित्‍सा काजनक इस धरती पर पैदा हुआ है औरमैंमेडिकल कॉलेजों के छात्रों का आह्वान करना चाहता हूं कि सुश्रुत को पढ़ो, उस पर शोध और अनुसंधान करो। चाहेआयु के विज्ञान आयुर्वेद के जनक हों, रसायनशास्‍त्री नागार्जुन हों,पाणिनी हों, भास्‍कराचार्य हों, महान गणितज्ञ आर्यभट्ट हों सभी इसी धरती पर ही तो पैदा हुए। आज जरूरत है नई शिक्षा नीति पर ताकत देते हुए, बल देतेहुए भारत केन्द्रित लेकिन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहुँचने वाली यह जोशिक्षा नीति है यहसामान्य नहीं है। यह नेशनल भी है, इंटरनेशनल भी है, यह इंटरेक्‍टिवभी है, इम्पैक्टफुल भी है,इनोवेटिवभी है और यहइक्विटी, क्वालिटी और एक्सेस की आधारशिला पर खड़ी होती है।हम इसमें कंटेंट भी पैदा करेंगें और उसको टैलेंट केसाथ भीजोड़ेगें और उसका पेटेंट भी करायेंगे। आज भी देश के अन्‍दर छात्रों में केवल पैकेज की होड़लगीहै।इस पैकेज की होड़ को खत्म करके पेटेंट के होड़को तैयार करना होगा तभी देश प्रगति के पथ पर आगे बढ़ सकता है और वो दिन दूर नहीं है। अभीकुछ दिन पूर्व कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय ने भी हमारी नई शिक्षा नीति की तारीफ की है, हमारे देश के अन्‍दर उत्साह का वातावरण है, वहीं पूरी दुनिया भी इस नई शिक्षा नीति के साथ जुड़ना चाहती है। मुझे इस बात की खुशी है किआपने नयी शिक्षा नीति  को पकड़ा है औरदोनों संस्थाओं ने नयी शिक्षा नीति के क्रियान्वन की दिशा में यह बहुत अच्‍छा आयोजन किया है, उसके लिए मैं आपको बधाई देना चाहता हूं, आपकी टीम को बधाई देना चाहता हूं और पूरे जेएनयू को बधाई देना चाहता हूं। मुझे भरोसा है कि जेएनयू नई शिक्षा नीति के क्रियान्वित करने की दिशा में लीडरशिप लेगा, उसे लेनी ही चाहिए। अभी देखिये हमारे देश के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्‍व में 2014 के बाद शिक्षा का किस तरीके से व्‍याप हुआ है। पूरी दुनिया में यह कमजोर देश नहीं है। हमारे जो छात्र हैं आईआईटी से निकलने वाले वो दुनिया मेंअमेरिका से लेकर के तमाम जो विकसित देश हैं उनके चाहे वो गूगल हो, माइक्रोसॉफ्ट हो जैसीश्रेष्ठ कम्‍पनियोंकेसीईओमेरीधरती से पढकर जानेवाला नौजवान हीहै। पीछे के समय प्रधानमंत्री जी जितने भी शिक्षा-संवाद हुए उनमें आपके साथ जुड़े थे और जब विवेकानंद जी की मूर्ति का अनावरण किया तब भी वे हमसे जुड़े थे विवेकानंद एक मॉडल है दुनिया के लिए,केवलदेश के लिए हीनहीं। वो ऐसे आदर्श हैं जो हमें ज्ञान, विज्ञान, अनुसंधान के शिखर पर पहुंचाते हैं और साथ हीउनके आदर्श जीवन मूल्यों की आधार शिला पर खड़े होते हैं। यह हमारी ताकत है और इसलिए विवेकानंद जी ने कहा था ‘रुको नहीं, जब तक लक्ष्य नहीं मिलता। तब तक रात-दिन खपो।नेल्‍सन मंडेला जैसे व्‍यक्‍ति ने भी यह कहा है कि शिक्षा एक ऐसा हथियारहै जो कुछ भी कर सकता है। मुझे भरोसा है कि जेएनयू से ऊर्जावान, आदर्शवादी, साहसी और सकारात्मक सोच के हमारे नौजवान आगे आएंगे और इसका लाभ पूरी तरीके से लेंगे। इंजीनियरिंग के क्षेत्र में भी औरवास्‍तुकला के क्षेत्र में भी हम बहुत शिखर पर थे। अब हमें नवाचार के साथ आगे बढ़ाना है औरउसको लोगों को दिखाना हैकिहमारे पास पीछे के समय में क्‍या था इसके भी दर्शन कराने की ज़रूरत हैंक्‍योंकि तभी जा करके हमारी पीढी को पता चलेगा, अन्‍यथा वो तो अमेरिका की ओर एवं दूसरे देशों की ओर देखती है। यही देश तो विश्वगुरु रहा है। आखिर विश्व गुरु क्यों रहा है भारत? यह अचानक नहीं रहा है औरकेवलजीवन मूल्यों में ही नहीं रहा है। यह देश विश्‍वगुरूज्ञान में रहा है, विज्ञान मेंरहा है औरकौन सा ऐसा क्षेत्र है, जिसमें भारत नेविश्व को लीडरशिप नहीं दी हो और वो चीज तो आज भी हमारे पास इस धरती पर है और इसलिए मुझे भरोसा है कि हमारे देश के प्रधानमंत्री जी ने जो आत्मनिर्भर भारत की बात की है और 21वीं सदी के स्वर्णिम भारत की बात की है। यह आत्मनिर्भर भारत जो 5 ट्रिलियन डॉलर की आर्थिकी को ले करके ज्ञान की महाशक्ति के रूप में उभरेगा और वहीं आर्थिक दृष्टि से भी एक मजबूत तंत्र विकसित होगा। आपके प्रबंधन के क्षेत्र से निकल कर आने वाले छात्र-छात्राएं, इंजीनियरिंग एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्र से आने वाले विद्यार्थियों में अब पैकज की दौड़ और होड़ नहीं होगी क्योंकि अब नई शिक्षा नीति टैलेंट को ढूंढेंगी भी तथा टैलेंट को विकसित भी करेगी और उसका विस्तार भी करेगी और टैलेंट के साथ उत्कृष्ट कोटि का केंटेंटभी देगी और टैलेंट तथाकंटेंट को मिला कर के पेटेंट करेगी, अब दौड़ होगी पेटेंट की। इस देश में नौकरी की दौड़ और होड़ नहीं होगी बल्‍कि अब नौकरी देने की होड़ और दौड़ होगी। मुझे भरोसा है कि मेरे देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने जो आत्मनिर्भर भारत का जो एक सूत्र दिया है वो इस देश को और शिखर तक ले करके जाएगा। मेरे नौजवान और मेरे छात्र-छात्राओं में बहुत ताकत है। हमारा देश तो आगामी 25-30 वर्षों तक और पूरी दुनिया में केवल हिंदुस्तान छाने वाला है।हमारे में क्षमता की कमी नहीं है, उसमें विजनकी कमी नहीं है, उसमें मिशन की कमी नहीं है। इस समय हमारी लीडरशीप है उसमें मजबूती है, ताकत है औरजब हमारी युवा पीढ़ी कोताकत मिलेगी तो वह छलांग मारेगा और मुझे भरोसा है कि हम पूरी दुनिया में एकआगाज के साथ आगे बढ़ेंगे। मुझे इस बात की खुशी है कि इस नई शिक्षा नीति आने के बाद संयुक्‍तअरब अमीरात के शिक्षा मंत्री के साथ मेरी द्विपक्षीय मीटिंग हुई। उन्होंने कहा हमअपने देश में भी इस नीति को लागू करना चाहते हैं। मुझे इस बात को कहते हुए खुशी है किआजएनईपी केक्रियान्वयन की दिशा में जेएनयू आगे बढ़ रहा है। मुझे लगता है कि जो हमारी संस्कृति और जो प्रकृति है वो हमको जीवन जीने की दृष्टि भी देती है और उद्यमिता भी देती है और इसको भी आप खुबसूरती से वहां आगे जोड़ रहे हैं। आप जानते हैं इस बात को कि प्रकृति का यदि संरक्षण नहीं होता और उसके विपरीत जाया जाता है तो वो प्रकृति विकृति में चली जाती है और विकृति विनाश का कारण होती है और जब संस्कृति संस्कारों से युक्त नहीं होती है तब वो विनाश का कारण हो जाती है। इसलिए यह जो संस्कृति है यदि वो प्रकृति के अनुसार चलते हैं तो संस्कृति में तब्दील हो करके और शिखर के मार्ग को प्रशस्त करती है। मनुष्य को मनुष्य बनाती है लेकिन जब प्रकृति के विपरीत जाते हैं तो यह संस्कृति में तब्दील नहीं होती और वह फिर विकृति में तब्दील हो जाती है और उससे विनाश के सिवाय कुछ नहीं होता है। मुझे खुशी है कि आपने भाषा प्रौद्योगिकी, प्रबंधन, उद्यमिता और आर्थिक विषयों के बहु-वैकल्पिक शिक्षा के पाठ्यक्रम को आज यहां पर लागू कर दिया यह भीखुशी का विषय है कि जिसको हम चाहते थे और जो बहु-अनुशासनात्मक संस्थानों की स्थापना की दिशा में हमारे प्रयास हैं, उससे उनको ओर गति मिलेगी। हमने इस शिक्षा नीति में बहु-भाषिकता को भी प्राथमिकता दी है। भाषा का कोई  मुद्दा नहीं है, किसी पर कोई  भाषा नहीं थोपी जाएगी। इस नीति में हमने कहा है कि प्राथमिक शिक्षा बच्‍चे की मातृभाषा में ही होनी चाहिए।कुछ लोग कहते हैं कि हमको तो ग्‍लोबल पर जाना है इसलिए अंग्रेजी सीखनी पड़ेगी। मैंने कहा  हम अंग्रेजी का विरोध नहीं  करते, अंग्रेजी ही नहीं और दो-तीन भाषाएं सीखों,लेकिन अपनी भाषाओं को मत छोड़ो। हमारेसंविधान ने हमें 22 खुबसूरत भाषाएं दी हैं जिनमें हिन्दी, तमिल, तेलगू, मलयालम, कन्नड़, गुजराती, मराठी, बंगाली,ओडिया, असमिया, उर्दू,यह सबहमारी 22 खूबसूरत भाषाएँ संविधान में उल्‍लेखित हैं।इनमेंअपना ज्ञान है,जीवंता है,तोक्यों हम अपनी भाषाओं को खोयेंगे।हमने अंग्रेजी का कभी विरोध नहीं किया लेकिन अंग्रेजी इस देश की भाषा नहीं है। हमें अंग्रेजीक्या पूरी दुनिया की भाषाओं को पढना है लेकिन मैं उन लोगों से पूछना चाहता हूं कि क्या जो देशनीचे से लेकर उच्च शिक्षा तकअपनी मातृभाषा में शिक्षा देते हैं वो किसी से पीछे हैं? क्‍या जापान, फ्रांस, इंग्लैंड और दुनिया के तमाम जो विकसित देश हैं वो अपनी मातृभाषा में शिक्षा देते हैं क्‍या वो किसी से पीछे हैं?फिर ऐसे तर्क दे करके देश को कमजोर करने की बातक्यों की जाती हैं। इसलिए देश के प्रधानमंत्री जीने कहा कि अब व्‍यक्‍ति अपनी मातृभाषा में डॉक्टर भी बन सकता है औरइंजीनियर भी बन सकता है क्‍योंकि  जो बच्‍चा जिस भाषा को बोलता है यदि उसको उसकी भाषा में शिक्षा दी जाए तो वह उसमें ज्यादा अभिव्यक्त कर सकता है। फिर ऐसे  कुतर्क क्‍यों दिऐ जाते हैं मैं उन सभी लोगों से निवेदन करना चाहता हूं  कि प्‍लीज भाषा का कोई  मुद्दा नउठाया जाए,देश की ताकत को समझें इन सभी भाषाओं में हमें काम को आगे बढ़ाना है। हम विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश हैं और मुझे भरोसा है किलोग इस बात को समझ रहे हैं। मुझेभरोसा है कि जो नयी शिक्षा नीति है वो एक नया आयाम स्थापित करेगी। मैं एक बार पुन:संस्थान के सभी फैकल्टी को, इस पूरे परिवार को और पूर्व छात्रों को तथावर्तमान छात्र-छात्राओं को भीबधाई और शुभकामनाएं देना चाहता हूं और साथ ही कुलपति जी आपको भी शुभकामना कि आपके नेतृत्व में पांच साल में इस संस्थान ने बहुत ऊंचाइयों को छुआ है। मेरा जेएनयू पूरे देश और दुनिया में शिखर पर पहुंचे ऐसी शुभकामना के साथ मैं आपको एक बार फिर बधाई देता हूं।

 

बहुत-बहुत धन्‍यवाद!

 

कार्यक्रम में गरिमामयी उपस्‍थिति:-

 

  1. डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’, माननीय शिक्षा मंत्री, भारत सरकार
  2. प्रो. जगदीश कुमार, कुलपति, जे.एन.यू.
  3. जेएनयू के संकाय सदस्‍य एवं पूर्व-छात्र

तिहान आईआईटी हैदराबाद

तिहान आईआईटी हैदराबाद

 

दिनांक: 29 दिसम्‍बर, 2020

 

माननीय शिक्षा मंत्री, डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक

 

          तिहान-नेवीगेशन टेस्‍ट बैड भारतीय प्रौद्योगिकी संस्‍थान, हैदराबाद के शिलान्‍यास के अवसर पर मैं आपको शुभकामनाएं देना चाहता हूं और इस अवसर पर हमारे साथ जुड़े मेरे सहयोगी शिक्षा राज्‍य मंत्री आदरणीय श्री संजय धोत्रे जी, इस संस्‍थान के अध्‍यक्ष बीओजी बी.वी. आर. मोहन रेड्डी जी,श्री मोहन रेड्डी जी आईआईटी रूड़की के बीओजी के भी चैयरमैन हैं एवं बहुत विजनरी हैं एवं विभिन्‍न आयामों के धनी हैं, इस संस्‍थान के बीओजी के अध्‍यक्ष के रूप में भी मैं आपका स्‍वागत कर रहा हूं।इस संस्‍थान के निदेशक प्रो. वी.एस. मूर्ति जिनके नेतृत्‍व में यह संस्‍थान तेजी से आगे बढ़ रहा है एवं शोध तथा अनुसंधान के क्षेत्र में नित नया इतिहास गढ़ रहा है। हमारे मिशन डायरेक्‍टर श्री आर.के. मुरली मोहन जी जिन्‍होंने अभी अपना उद्बोधन दिया है और मिशन डायरेक्‍टर के रूप में जिन्‍होंने अपने विजन को बढ़ाने का सराहनीय कार्य किया है। डीन आरएंडी हैदराबाद, डीन योजना आईआईटी हैदराबाद, डीन पीसीआरप्रो. राजलक्ष्‍मी जी, कुलसचिव, सभी संकाय सदस्‍य, सभी अधिकारी वर्ग, कर्मचारीवर्ग, प्रिय छात्र-छात्राओं और मेरे साथ शासन में जो आईआईटी को देखते हैं अपर सचिव श्री राकेश रंजन जी और सभी जो देश और दुनिया में पूर्व छात्र आज इस सुखद अवसर पर हमारे साथ जुड़ेहैं तो मैं इस अवसरपर आप सभी को बधाई देना चाहता हूं। एक ऐतिहासिक काम आज शुरू हो रहा है, उसका शिलान्‍यास हो रहा है, जो देश की प्रगति एवं विकास की आधारशिला बनेगा जो देश को आत्‍मनिर्भर बनाने की दिशा में, प्रौद्योगिकी की दिशा में एक नया कीर्तिमान स्‍थापित करेगा ऐसा मेरा भरोसा है।मैं कहना चाहता हूं कि वैसे तो हैदराबाद ने ज्ञान-विज्ञान, शोध एवं पारिस्‍थितिकी तंत्र को बढ़ाने में बहुत ही समृद्धशाली भूमिका निभाई है। हैदराबाद शहर आईआईटी के लिए मॉडल के रूप में उभरा है। इसलिए लोग अब इसे साइबर सिटी कहने लगे हैं। हैदराबाद में आईआईटी से जुड़ी गतिविधियां बहुत तेजी से बढ़ रही है और हैदराबाद में स्‍थापित साफ्टवेयर टैक्‍नोलॉजी पार्कऑफ इंडिया, सूचना प्रौद्योगिकी के विकास हेतु लगातार प्रयासरत है और ऐसे स्‍थान पर जो हमारा यंग आईआईटी है वो छलांग लगाने को तैयार है।हमारा यह संस्‍थान शोध, अनुसंधान एवं नवाचार के क्षेत्र में आगे बढ़ रहा है और इसी दिशा में बढ़ते हुए आज जो शिलान्‍यास हो रहा है,‘स्‍वायत्‍त नेवीगेशन सिस्‍टम’ का मैं उसके लिए आपको बधाई देना चाहता हूं। यह सिस्‍टम अगली पीढ़ी की गतिशीलता के लिए महत्‍वपूर्ण परिवर्तक साबित  होगा यह भारत एवं विश्‍व के कई देशों के प्राथमिक तकनीकी लक्ष्‍यों  में से एक है।यदि आसान शब्‍दों में कहूं तो ऑटोमेशन नेवीगेशन सिस्‍टम 21वीं सदी में एक शक्‍तिवर्धक की तरह होगा जो नये भारत एवं आत्‍मनिर्भर भारत की आधारशिला बनेगा। मेरे देश के प्रधानमंत्री ने कहा कि 21वीं सदी का भारत तकनीकी का भारत होगा,प्रौद्योगिकी का भारत होगा, ऐसा भारत होगा जो स्‍वस्‍थ होगा, सशक्‍त होगा, समृद्ध होगा, आत्‍मनिर्भर होगा, श्रेष्‍ठ होगा और एक भारत होगा। इसलिए उस आत्‍मनिर्भर भारत की दिशा में आज आप एक ऐसा मील का पत्‍थर रख रहे हैं जिसके लिए मैं आपको शुभकामना देना चाहता हूं। भारत के पास विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार के क्षेत्र में समृद्ध विरासत है। विज्ञान का यह ज्ञानप्रयोग एवं परीक्षण की आधारशिला है इसलिए विज्ञान के क्षेत्र में आगे बढ़ना हमारी सर्वोच्‍च प्राथमिकता रही है। यदि देखा जाए तो आजादी के बाद से ही भारत विज्ञान एवं तकनीकी के क्षेत्र में तेजी से आगे बढ़ रहा है। इसका श्रेय भारत के प्रतिभाशाली वैज्ञानिकोंकोजाता है जिन्‍होंने भारत में विज्ञानएवं प्रौद्योगिकी की नींवरखी है। चाहे वह नोबल पुरस्कार विजेता भौतिक विज्ञानी सी.वी. रमन हों, चाहे आधुनिक विज्ञानके जनक डॉ. जगदीश चन्‍द्र बसु हों, चाहे देश के ऊर्जा एवं परमाणु कार्यक्रम के वास्‍तुकार डॉ. होमी जहांगीर भाभा हो, भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के जनक डॉ. विक्रम साराभाई हो, मिसाइलमैन ऑफ इंडिया डॉ. कलाम हों, सभी ने अपनेक्षेत्रों में महत्‍वपूर्ण कार्यकिया है। इसी प्रकार हैदराबाद शहर में पैदा हुए डॉ. एस.सी. रामकृष्‍ण हों, राम गोविन्‍द राजन हों, रफी अहमद हों, बहुत लंबी श्रृंखला है जिन्‍होंने इसको आगे बढ़ाया है। अभी मैं देख रहा था कि आपके संस्‍थान ने एनआईआरएफ रैंकिंग में 10वां स्‍थान प्राप्‍त किया है। अटल रैंकिंग में भी आपने शीर्ष 20 में अपनीजगह बनाई है और जिस तरीके से आप 200 अत्‍याधुनिक प्रयोगशालाएं, 5 उद्यमिता केंद्र चला रहे हैं और संस्‍थान को 500 करोड़ से भी अधिक की स्‍वीकृति मिली है और उसमें भी बहुत बड़ा काम होगा। पीएचडी के विद्वानों की कुल छात्र संख्‍या लगभग 30 प्रतिशतआपके यहां हैं और 1500 से भी अधिक शोध प्रकाशनोंकेलिए मैं आपको बधाई देना चाहता हूं और पेटेन्‍ट कार्य भी आपने किया है। 300 प्रायोजित परियोजनाओं एवं उद्योग सहयोगियों के साथ नवाचार में आप लगातार आगे बढ़रहें हैं, यहबहुत अच्छी बात है। आप प्रेक्टिकल रूप में ज्वाइन करकेउसको आगे बढ़ा रहे हैं और यह भी मेरे लिए खुशी है कि जिस तरीके से नवाचार के साथ आप पूरी दुनिया के लोगों के साथ चाहे अमेरिका है,जापान है, आस्टेलिया है, ताइवान हैऔरयूरोप के लगभग 50 से अधिक दुनिया के विश्वविद्यालयों के साथ आप पारस्परिक शोध एवंअनुसंधान और कई प्रोजेक्ट पर काम कर रहे हैं।यहमेरे लिए खुशी का विषय है और वैसे भी आपको मालूम है कि आज भी हम लोग स्पार्क के तहत दुनिया के शीर्ष 128 विश्वविद्यालयों के साथ अनुसंधान कर रहे हैं।अब हमनयी शिक्षा नीति लेकर के आएं  हैं जो नये आयाम और नये ऊंचाइयों को ले करके पूरे देश में आमूल चूल परिवर्तन के साथ आगे आ रहीहैं।शोध एवं अनुसंधान को बढ़ावा देने के लिए नेशनल रिसर्चफाउंडेशन जो प्रधानमंत्री जी के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार की अध्यक्षता में होगा और अपने तरीके से शोध और अनुसंधान के क्षेत्र में वो एक नया आयाम स्थापित करेगा दूसरीओरतकनीकी को अंतिम व्यक्ति तक ले जाना और शीर्ष तक पहुंचाना भी हमारा लक्ष्‍य है। इसके लिए नेशनल एजुकेशन टेक्नोलॉजी फोरम का भी गठन किया जा रहा है। मैं सोचता हूं नेशनल रिसर्च फाउण्डेशन और नेशनल एजुकेशन टेक्नोलॉजी फोरम इन दोनों कीस्थापना इस देश को अन्तराष्ट्रीय शिखर पर बढाएगी। मैं जरूर इस अवसर पर मैं कहना चाहूंगा औरअपने निदेशक साहबको हमारे छात्रों  की ओर से निवेदन करना चाहूंगा कि प्लीज पीछे का जो कार्यकाल आया है, उसमें पैकेज की दौड़ लगी है लेकिन पेटेंट की दौड़ने नहींलगी है। जिस दिन हम पेटेंट की दौड़ शुरू कर देंगे उस दिन यह आत्मनिर्भर भारत दुनिया के लिए नई आधारशिला पर खड़ा होगा। नई शिक्षा नीति भारत केन्द्रित होगी, यह हमने कहा है क्योंकि हम सोचते हैं कि हमारे इस पीढ़ी को उस ज्ञान पर भी शोध और अनुसंधान करके आगे जाना चाहिए। यदि इस देश में शल्य चिकित्सा का जनक सुश्रुत पैदा हुआ है तो वो जो थातीहैंउसको आगे कहां तक बढ़ा सकते हैं इस पर काम करने की जरूरत है। दुनिया के लिए यदि रसायन शास्त्री नागार्जुन हैंतो उनके ज्ञान कैसे करके आगे बढ़ा सकते हैं।हमारीतमाम पीछे की चीजों को शोध और अनुसंधान के साथ कैसेव्यापक रूप में आगे बढ़ा सकते हैं, इसकी जरूरत है। आर्थिकी के क्षेत्र में भी हमारादेश बहुत आगे रहा है। मैं सोचता हूं कि लार्ड मैकाले के आने से पहले के भारत को आप देखेंगे तो तकनीकी के क्षेत्र में हो, ज्ञान के क्षेत्र में, विज्ञान के क्षेत्र में, नवाचार की चेतना के क्षेत्र में पूरी दुनिया को भारत ने मार्गदर्शन दिया है। हमारे पास सामर्थ्य भी है,विजन भी है औरविजनको तब्दील करके जमीन पर निर्मित करने का मिशन भी है, क्षमता भी है।हमेंवो विश्व गुरु भारत चाहिए जिसने ज्ञान, विज्ञान अनुसंधान, टेक्नोलॉजी और नवाचार में शीर्ष अपनीपराकाष्ठा को प्राप्त किया, दुनिया ने उसको जाना है, महसूस किया है। मुझे लगता है कि आज वहवक्त फिर आ गया है जब हम अपनी प्रतिभा को उनके साथ निखार सकते हैंयह देश 135 करोड़ लोगों का देश है। इस देश में बिखरीतमाम समस्याएं और विषयों को शोध और अनुसंधान के साथ हमें समाधान की दिशा में बढ़ाना है। इन 135 करोड़ के लिए जब हम खड़े होंगे तो सारा विश्व आपके पीछे खड़ा होगा।यह आत्मनिर्भर भारत खड़ा होगा जो मेरे देश के प्रधानमंत्री 5 ट्रिलियन डॉलर की आर्थिकी की की बात करते हैं, यह संस्थान इसकी आधारशिला बनेंगे। यदि हमारे प्रधानमंत्री जी21वीं सदी के आत्मनिर्भर भारत की बात करते हैं तो उसका रास्ता भी मेक इन इंडिया, डिजिटल इंडिया,स्‍किल इंडिया, स्‍टार्ट अप इंडिया, स्‍टैंड अप इंडिया से होकर के जाता है। अभी मुझे अच्छा लगा कि हमारे निदेशक महोदय ने भी कहा है कि हमारे बीओजी के चेयरमैन ने जिन बिन्‍दुओं को कहा है चाहे मौसम परिवर्तन की चुनौतियां हों और चाहे समाज में बिखरी तमाम चुनौतियों हों, चाहे कृषि के क्षेत्रमें हो तमाम क्षेत्रों में जो बिखरीहुईचुनौतियां हैं, उन चुनौतियों का यदिमुकाबला होता है तो एक नई चीज सामने आती है। विवेकानन्‍द जी कहते थे कि जितना गहरा संकट होता है और जितनी बड़ी कठिनाई होती हैं उतनी बड़ी सफलता भी होती है तो आप यदि रखें कि जितनी बड़ी कठिनाई होगी उतनी बड़ी आपकी सफलता भी होगी। मुझे भरोसा है कि नए शोध और अनुसंधान के साथ मेरा आईआईटी बहुत तेजी से काम कर रहा है। उस सोच के साथ पूरी ताकत के साथनवाचार के साथ नए प्रमाणिक तौर तरीकों के साथ आगे बढ़ रहा है निश्चित हीआपएक नया आयाम स्थापित करेंगे, ऐसा मेरा भरोसा है। मैं समझता हूं कि आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस और कोविड-19 परीक्षण जो आपने विकसित किया है] आज इस तरह का नवाचार निश्चित रूप में अभूतपूर्व है और आप इसको आगे बढ़ा रहे हैं। आपने देखा है कि हम नई शिक्षा नीति में शायद दुनिया का यह पहला देश होगा जो स्कूली शिक्षा से ही आर्टिफिशल इंटेलिजेंस को लेकर के आ रहा है। तकनीकी और व्यावसायिक शिक्षा को छठवीं से ही इंटर्नशिप के साथ वोकेशनल स्ट्रीम को हम ला रहे हैं। दुनिया का पहला ऐसा देश होगा जो व्‍यावहारिक रूप से इस पीढ़ीको खड़ा करना चाहता है। मुझे बहुत खुशी होती है कि आईआईटी हैदराबाद ने कोविड-19के परीक्षण और श्वसन मास्‍कके क्षेत्र में जो काम किया है, जो हमारे देश के प्रधानमंत्री जी कीआत्मनिर्भर भारत की जो सोच है उसको आपने बहुत तेजी से करने की दिशा में आगे काम किया है। आपने अभी चर्चा की है कि आप नवाचार से जो इजऑफ लिविंग है, इज ऑफ बिजनेसहै,इज ऑफ डिसिजन मैकिंग है और इजऑफ गवर्नेंस है इसका माहौल भी इसी से शुरू करना होगा और इसी की आज देश को जरूरत भी है। निश्चित रूप सेजो नए नवाचार आप अनुसंधान के साथ कर रहे है उससेएक माहौल सृजित होगा क्‍योंकिप्राध्यापक तो सबसे बड़ी ताकत होती है किसी भी देश की मुझे लगता है कि जिस तरीके से नित नए विषयों की खोज और अनुसंधान आप कर रहे हैं और बहुत तेजी से उसको बढ़ा रहे हैं तोहमारे विज्ञान की जो चीजें हैं उनको भी नवाचार के रूप में हम आगे लाने में निश्चित रूप से सफल होंगे। नयी शिक्षा नीति कोहम बिल्कुल नए परिवेश के साथ लाये हैं।नई शिक्षा नीति लागू होने से पहले यदि आप शिक्षण पद्धति में देखेंगे तो विज्ञान, मानविकी और वाणिज्य की धाराओं के बीच एकलाइन खींची हुई थी। अपने पसंद का छात्र जो है वो अध्‍ययन नहीं कर सकता था,मनचाहेविषय को नहीं प्राप्त कर सकता था। उन्हें उन्हीं विषयों का आकलन करने के लिए मजबूर होना पड़ता था जो उसको दिया जाता था लेकिन अब नई शिक्षा नीति आने के बाद तो ज्ञान, मानविकी, वाणिज्य के जो बीच की धाराएं हैं तथा जो बाधाएं हैं, उनकोअब खत्म कर दिया है। अब विद्यार्थीकिसी भी विषय को ले सकता है औरकिसी भी विषय के साथ किसी विषय को जोड़ सकता है और बिल्कुल नई दिलचस्पी के साथ और पूरे नये आयाम के साथ बहु-विषयक व्‍यवस्‍था, अब हमने निर्मित की है।इस शिक्षा नीति के अंतर्गत यदि कोई 4 वर्ष का कोर्स है और यदि कोई छात्र दो साल में परिस्‍थितिवशछोड़के जा रहा है  तो पहले उसका पैसा एवं वर्ष दोनों खराब हो जाते थे लेकिन अब उसकोनिराश नहीं होना पड़ेगा।यदिवह परिस्‍थितिवश एक वर्षमें छोड़ कर जा रहा है तो उसको सर्टिफिकेटदेंगे,दो साल में छोड़ कर जा रहा है तो डिप्लोमा देगें, तीन साल में छोड़कर जा रहा है तो उसकोडिग्री देंगे। लेकिन यदि फिर वह लौट कर अपने भविष्य को संवारना चाहता है तो फिर जहां से उसने छोड़ा था, वहीं से शुरू कर सकता है। उसके लिए हम एक ऐसा क्रेडिट बैंक बनायेंगे जहां उसके सारे क्रेडिट जमा होंगे,इसलिए उसके लिए आगे बहुत आपार संभावनाएं है।वह कहां जाना चाहता है, शोध और अनुसंधान के क्षेत्र में जाना चाहता है।छात्रोंमैं आपसे कहना चाहता हूं कि आपके लिए पूरा मैदान खाली है। ऐसा अवसर है जब आप किसी भी क्षेत्र में जा सकते हैं और कुछ भी करने के लिए आपके लिए पूरा मैदान खाली है। पूरी ताकत के साथ शोध अनुसंधान और नवाचार आपके पीछे दौड़ रहे हैं। आपको आगे दौड़ना है औरमुझे लगता है कि ऐसा अवसर आएगा यहतो नए भारत का स्वर्णिम भारत का नवोदय है और इसका पूरा उपयोग हम लोगों को करना है। मुझे भरोसा है कि चाहेराष्ट्रीय अनुसंधान परिषद हो, चाहे उच्च शिक्षा होहम लोगों ने तमाम प्रकार के नए-नए प्रयोग करने की जो बात की है। मैं पीछे की समय से जब देखता हूं तो पीछे दस या पंद्रह साल में जो देश पेटेंट में हमारे साथ थे उन देशों ने छलांग मारी है। पीछे दसऔर पंद्रह सालों में हम पेटेंट और शोध तथा अनुसंधान की जो संस्कृति हैउससे हम थोड़ा दूर गए हैं और इसी का परिणाम है कि हमारे बच्चों में विदेश में जाने की होड़ लग गई। इसलिए नईशिक्षा नीति में दुनिया के शीर्षस्थ विश्वविद्यालयों कोअपनी जमीन पर हमआमंत्रित करना चाहते हैं। लेकिन ‘ज्ञान’ और ‘ज्ञान प्लस’ में जो अध्यापक बाहर से आते हैं उनको तो हम आमंत्रित कर ही रहें हैं।‘ज्ञान प्लस’ में हमारे अध्यापक और फैकल्टी दुनिया में जा सकते हैं, उनको भी दुनिया में जाना चाहिए। कुछ तो चीजें हमारी ऐसी हैं जिसको  हम दुनिया को दे सकते हैं। ऐसा नहीं है हम दुनिया में ज्यादा केवल लेने के लिए ही हम हैं, जबकि हमारी समता एवं सामर्थ्‍य देने की है और इसलिए देने की स्थितियां अबआनी चाहिए।मुझे इस बात की खुशी है कि ‘स्टडीइन इंडिया’ में इस समय 50 हजार से भी ज्यादा नामांकनहुए हैं। आईआईटी में आसियान देशों के एक हजार से भी अधिक छात्र शोध और अनुसंधान के लिए आ रहे हैं। जिनके साथ अनुबंध हो गया वो औरआगे बढ़ेगा। लोगों को भरोसा हैहमारे आईआईटी पर औरऐसा नही है कि हमारे जो आईआईटीहैंवहसमर्थ नहींहैं। आज पूरी दुनिया में यदि आप प्रबंधन और टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में देखें तो आपके जितने छात्र हैं जितने मेरे देश के पूर्व छात्र हैं वो पूरी दुनिया में बिखरे हुए हैं। चाहे वो गूगल हो, चाहे माइक्रोसॉफ्ट होइसके भी प्रबंधन के शीर्ष क्षेत्र में सीओओ जो हैं इन आईआईटी से निकलने वाला मेरा छात्र पूरी दुनिया को रोज सीख दे रहे हैं और इसलिए हमने‘स्‍टे इन इंडिया’ किया।  हमने अपने  छात्रों को भरोसा दिलाया कि हमारे आईआईटी, एनआईटी, आईएसर, केन्‍द्रीय विश्‍वविद्यालयों में योग्‍यता है, क्षमता है आपको  बाहर जाने  की जरूरत नहीं है और यहअब लोगों की समझ में आ गया है। मुझे इस बात की खुशी है कि पीछे के समय जब हमने जेईई परीक्षाएं करवाई तो दो लाख से भी अधिक छात्रों ने जोविदेश में जा रहे थे,वे जेईई और नीट की परीक्षाओं में सम्‍मिलित हुए।  हम ‘स्‍टे इन इंडिया’ के तहत दुनिया के शीर्ष सौविश्वविद्यालयों को अपनी धरती पर आमंत्रित कर रहे हैं आपकोकहीं जाने की जरूरत नहीं है और यहां के जो शीर्ष विश्वविद्यालय हैं वेभीबाहर जा रहे हैं। ये आदान-प्रदान हम करेंगे।हमारे संस्‍थान अब एनआईआरएफ ही नहीं,अटल रैंकिंग ही नहीं बल्‍कि क्‍यूएस रैंकिंग और टाईम्‍स रैंकिंगमें भीछलांग मार  रहे हैं क्योंकि हममें सामर्थ्य हैऔर मुझे भरोसा है कि आप जिस तरीके से काम कर रहे हैं आप इसको आगे बढ़ाएंगे। जलवायु परिवर्तन की दिशा में दूर संचार प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में जो काम कर रहे हैंमैंउसकी भी सराहना करना चाहता हूं। आईआईटी हैदराबाद द्वारा फाइव जी तकनीकी पर भारत का पेटेंट हमारे लिए बहुत बड़ी उपलब्धि है और मैं उसकी भी बधाई देना चाहता हूं। मुझेभरोसा होता है जब मैं आपके आईआईटी के बारे में अध्ययन करता हूं और समय-समय पर मैं बातचीत करता रहता हूं तो मुझे खुशी मिलती है कि नहीं, मेरा आईआईटी बहुत अच्छा काम कर रहा है। मानवता की भलाई के लिए अभी हम लोगों ने कृषिऔर फसलों के विकास और जलवायु परिवर्तन की दिशा में भी बेहतरीन कार्य करने का प्रयास किया है।मेरा भारत है वह विश्वगुरु के रूप में रहा है। इसके बारे में हमेशा कहा गया है कि ‘एतद् देश प्रसूतस्य शकासाद् अग्रजन्मन:, स्वं-स्वं चरित्रं शिक्षरेन् पृथ्वियां सर्व मानव:’हम विश्व बंधुत्व वाले लोग हैं। हम पूरी दुनिया को अपना परिवारमानते हैं, परिवार वहीमान सकता हैं जिसमें ताकत होगी। उस परिवार को समझने की क्षमता और ताकत मेरे हिंदुस्तान के अंदर है और इसीलिए हमने हमेशा ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः’ की बात की है। धरती पर हर व्यक्ति खुश रहना चाहिए यदि एक प्राणी भी दुखी रहेगा तो मैंसुख अहसास नहीं कर सकता यह हमारी ताकत है। हमारी भारतीयता का जो संस्कार है, जो मिशन है इसको लेकर चलना है और हर क्षेत्र में हमको इसको कभी भूलना नहीं है क्‍योंकि यही भारत की आत्मा है। यदि भारत विश्व गुरू के रूप में रहा है तो केवल ज्ञान और विज्ञान और तकनीकी के क्षेत्र में नहीं जो देश केवल तकनीकी के क्षेत्र और आर्थिकी के क्षेत्र में श्रेष्ठ है वह विश्व गुरू नहीं कहलाए। विश्वगुरु मेरा भारत कहलाया है क्योंकि ज्ञान,विज्ञान, तकनीकी के क्षेत्र में नहीं बल्‍कि जीवन दर्शन के क्षेत्र में भी और जीवन मूल्यों के क्षेत्र में भी वह हमेशापूरी दुनिया की मानवता को ले करके चला है। अंततोगत्वाशोध जितने भी हो रहे मनुष्य के लिए हो रहे हैं, दुनिया के किसी भी छोर में रहने वाला मूल केन्द्र तो व्यक्ति है, प्राणी है तो इसीलिए उस प्राणी को केन्द्रित करके सदैव हमारा विचार रहा है और इसीलिए इस विचार को हम आगे बढ़ाने के लिए निरन्‍तर कार्य करेंगे ऐसा मेरा विश्वास है। भारत वर्तमान में कृषि,ऊर्जा और उद्योगों के क्षेत्र में शोध एवं अनुसंधान की आवश्‍यकता है, जिसके लिए आज यहां शिलान्‍यास भी हो रहा है और इसके लिए मैं शुभकामना देना चाहता हूं। मुझे भरोसा है कि इसके होने से नकेवलइस देश को बल्कि पूरी दुनिया को मार्गदर्शन मिलेगा और हम पूरी ताकत के साथ इसको आगे बढ़ा सकेंगे।वर्ष 2008 में आपके इस संस्‍थान की स्‍थापना हुई है और 2008 से लेकर के आज 12 बरसों की इस आयु में आपने छलांग मारी है और मैं आपकीपूरीफैकल्टी को भी बधाई देना चाहता हूं।आज का दिन न केवल आईआईटी हैदराबाद के इतिहास में बल्कि देश के इतिहास में और दुनिया के इतिहास में एक महत्वपूर्ण दिवस साबित होगा। इस शुभकामना के साथ मैं आपको एक बार फिर बधाई देता हूँ।

 

बहुत-बहुत धन्यवाद।!

 

 

कार्यक्रम में गरिमामयी उपस्‍थिति:-

 

  1. डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’, माननीय शिक्षा मंत्री, भारत सरकार
  2. श्री संजय शामराव धोत्रे, माननीय शिक्षा राज्‍य मंत्री, भारत सरकार
  3. श्री बी.वी. आर. मोहन रेड्डी, अध्‍यक्ष बीओजी, आईआईटी हैदराबाद,
  4. प्रो. वी.एस. मूर्ति, निदेशक, आईआईटी हैदराबाद
  5. श्री आर.के. मुरली मोहन, मिशन डायरेक्‍टर,
  6. श्री राकेश रंजन, अपर सचिव, शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार

विश्‍वैश्‍वरैया राष्‍ट्रीय तकनीकी संस्‍थान, नागपुर का 18वां दीक्षांत समारोह  

विश्‍वैश्‍वरैया राष्‍ट्रीय तकनीकी संस्‍थान, नागपुर का 18वां दीक्षांत समारोह

 

दिनांक: 28 दिसम्‍बर, 2020

 

 

माननीय शिक्षा मंत्री, डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’

 

          विश्‍वैश्‍वरैया राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान नागपुर के दीक्षांत समारोहमेंमैंआप सबका स्वागत कर रहा हूं। इस दीक्षांत समारोह से जुड़े मेरे सहयोगी और भारत सरकार में शिक्षा राज्यमंत्री श्री संजय धोत्रेजी,हमारे विशेष अतिथि श्री जयंत डी.पाटिल निदेशक एवं वरिष्ठकार्याकारीउपाध्यक्ष, एलएंडटी, रक्षा व्यवसायी, निदेशक वीएनआईटी, सभी उपस्थित विभागाध्यक्ष और डीन,सभी प्राध्यापगण, सभी शासीनिकाय के सदस्यगण एवं सभी संकाय छात्र-छात्राओं, अभिभावकगण और सम्पूर्ण एनआईअीपरिवार के सदस्यगण! मुझे खुशी है कि आज एनआईटी नागपुर अपना दीक्षांत समारोह मना रहाहैऔर मैंसभी छात्र छात्राओं को जो आज उपाधि प्राप्त कर रहे हैं, इन सभी लोगों को मैं बधाई देना चाहता हूं।यहदीक्षांत समारोह का अवसर है इसलिए निश्‍चित रूप से बहुत सारी चीजें आपके मन में उभर रही होंगी क्योंकि जब आप इस संस्थान में प्रवेश लेकर आयें होंगे तब आपके लिए वो खुशी के क्षण थे गर्व के क्षण थे,और उसके बाद लगातार आपने शिक्षा ग्रहण की और अब आपआज दीक्षांत के बाद अपनीउपाधियोंको लेकर मैदान में जा रहे हैं। आज तक आपने अपने आचार्यगण से बहुत सारे प्रश्नों पर परामर्श एवं चर्चा की होगी और आपके बहुत सारे सवाल रहे होंगे जिसके समाधान की दिशा में आपनेउनका मार्गदर्शन लिया होगा। लेकिन आजऐसाक्षण हैं जब हम ज्ञान अर्जन करने के बाद मैदान में जा रहे हैं। अबसारे सवालों के हमको स्‍वयंजवाब देने होंगे। बहुत सारे सवाल खड़े होंगे हमारी जिन्दगी के आगे बढने के, जो हमनेज्ञान प्राप्त किया है उसको सरसानेके, उसको पल्लवित और पुष्पित करने के सवाल हमारे सामने होंगे। आज समाज के लिए, राष्ट्र के लिए, अपने परिवार के लिए, स्वयं अपनेलिए उन्‍नति के अवसर तलाशने हैं। आपके पास पूरा मैदान खाली है और आपयोद्धा के रूप में जा रहे हैं।इसलिए यह अवसर आपके लिए बहुत ही अविस्मरणीय है।आपइस संस्थान सेएक लंबे समय की तमाम यादों के साथ जा रहे हैं और उस प्राप्त किए हुए ज्ञान के भंडार को लेकर के आप मैदान में जा रहे हैं, अपने जीवन के गंतव्य मेंजा रहे हैं इसलिए आज आपकोअर्जित ज्ञान का अपने जीवन के लिए पूरा उपयोग करना है।बहुतसारे सवाल भी आपके हैं और इनसब सवालों के जबाब भीस्वयं ही देने होंगे। इसलिए आज का क्षण आपके लिए बेहद खुशी का क्षण है और आपके अभिभावकों में से भी जितने लोगसुन रहे हैं उनसे भी मैं कहना चाहता हूं कि आपकेलिए भी यह गर्व का विषय है, गर्व का दिन है किआपके बेटा-बेटी आज डिग्री प्राप्त करने के बाद और गोल्ड मैडल प्राप्त करने के बाद जीवन की ऊँचाइयों को गौरवपूर्णरास्ते पर आगे बढ़ाएंगे तो मैं आपको भी बहुत बधाई देना चाहता हूं और अध्यापकगण को भी बहुत बधाई देना चाहता हूं। एक अध्यापक के लिए सबसे महत्वपूर्ण होता है जब आपकाछात्र प्रगति करता है तो उसकी खुशी का कोईठिकाना नहीं रहता हैं, इसलिए उनको भी मैं बहुत बधाई देना चाहता हूँ। आज इस एनआईटी ने बहुत तेजी से काम किया है और यह देश के प्रमुख प्रौद्योगिकी संस्थानों में से एक है,जिसको विश्वविद्यालय के दर्जे से सम्मानित किया गया है और मैं समझता हूं कि यह राष्ट्रीय महत्व का हमारा वो संस्थान है जिसे देश की बहुत सारी अपेक्षाओं को पूरा करना है।पहले यह संस्‍थानरिजनल कॉलेज के रूप में था और अब यह एक राष्ट्रीय महत्व के महत्वपूर्ण संस्थान के रूप में विकसित हो रहा है। विश्‍वैश्‍वरैया एक साधारण इंजीनियर नहीं थे जिनके नाम पर यह संस्‍थान है बल्कि वे ऐसे विख्यात विद्वान थे जिन्होंने पूरी दुनिया में नाम कमाया और उन्‍हेंसर्वोच्च नागरिक सम्‍मान भारत रत्न से सम्मानित उनको किया गया। विभिन्न क्षेत्रों में उन्होंने काम किया और उसके शिखर को चूमा है। इंजीनियरिंगभारत के आर्थिक विकास में बहुत महत्वपूर्ण स्‍थान रखतीहै और हमारीसरकार ने अपने विभिन्न माध्यमों से इंजीनियरिंग के क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए मेक इन इंडिया, डिजिटल इंडिया,स्‍किल इंडिया, स्‍टार्टअप इंडिया और स्‍टैंडअप इंडियाजैसी बहुत सारी योजनाएं हमने बनाई हैं वे बेहद महत्वपूर्ण हैं। बहुत से कौशल विकास कार्यक्रमों के माध्यम से सृजन और उद्यमिता के क्षेत्र में आपके संस्थान ने बहुत दूरगामी कदम बढ़ाए हैं, इसकी भी मैं आपको बधाई देना चाहता हूं।यदिमैं प्रधानमंत्री जी के शब्दों में कहूं तो भारत के पास थ्री ‘डी’ है। एक तो डेमोग्राफिक है, डेमोक्रेसी हैऔर डिमांड है। हमारा देश पूरी दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देशहैजिसकी130 करोड़ से भी अधिक जनसंख्या है तो स्‍वाभाविकहै कि डिमांड भी बढ़ेगी। इंजीनियरिंग राष्ट्र के निर्माण में बहुतमदद करती है, यहां तक कि इंजीनियर तो टूटे हुए को भी जोड़ता है। इसलिए मैं समझता हूं कि इंजीनियरिंग बहुत बड़ा क्षेत्र है और आप सबने आज यहां पर जिस तरीके से काम किया है, आपने विभिन्न विषयों को लेकर काफी प्रगति की है। कोरोना काल में भी मैंने देखा कि आपने ऐसे विकट संकट में जब पूरी दुनियां संकट सेहोकर गुजर रहीथी तब भी आपने काम किया है और मुझे मालूम है कि आपने मास्‍क से लेकर,टेस्टिंग किट और वेंटीलेटर तक का निर्माण किया हैऔरनिश्‍चितही आपके हाथ में कौशल है और  जब कौशल हाथ में होगा तो आपको कहीं ठहराव नहीं मिलेगा,आपतेजी से दौड़ेंगे और प्रगति के शिखर तक आपका मार्ग रोकने वाला कोई नही होगा। हमारी ऐसी शुभकामनाएं आपके साथ हैं और आज हम सभी आपको शुभकामना देने के लिए आपकीखुशी में सम्मलित होने के लिए ही यहां उपस्‍थित हुए हैं। हमारे देश की परंपरा रही है कि जब भी कोई अच्छा काम होता है और जब भीखुशी के क्षण होते हैं तो उसको भी हम मिलकर के बांटते हैं और जब किसी के जीवन में दु:ख का भी क्षणआता है तो भी हम मिलकर के बांटते है क्‍योंकि हमारी प्रबल धारणा रही है जो सुख है या खुशी है, वह बांटने से बढ़ती है और जो दु:ख है या संकट है, वह बाँटनेसेकम होता है।जबइसलिए पूरा समाज एकजुट हो करके आगे बढता है तो निश्‍चित ही राष्‍ट्र प्रगति के शिखर तक पहुंचता है। आपको तो मालूम है कि हमने हमेशा कहा है किहम साथ-साथ पुरूषार्थ करेंगे, साथ चलेंगे सब साथ-साथ आगे बढ़ेंगे और यही एकत्व का भाव हमकोनिश्चित रूप से बहुत तेजी से आगे बढाता है।हमारे देश के प्रधानमंत्रीजी ने आत्म निर्भर भारत की बात की है एक ऐसे भारत के निर्माण की बात की है जो स्वच्छ भारत हो, जो स्वस्थ भारतहो,जो सुंदर भारत हो, जो सशक्त भारत हो, जो आत्मनिर्भर भारतहो, जो श्रेष्ठ भारत हो और उसश्रेष्ठ भारत के लिए मेक इन इण्डिया, डिजिटल इंडिया, स्किल इंडिया, स्टार्टअप इंडिया और स्‍टैंड अप इंडिया जैसे रास्तों को बनाया है। मुझे भरोसा है कि आप इस अभियान को ओर आगे बढ़ायेंगे। आप किसी की नौकरी पाने के लिए नहीं बल्कि नौकरी देने के लिए इस अभियान को आगे बढ़ाएंगे। हममें सामर्थ्‍य है, आप यहां से शिक्षा ग्रहण करके जा रहे हैं,आपएक योद्धा की तरह बाहर निकलेंगे और हर क्षेत्र में आगे बढ़ेंगे ऐसा मेरा विश्वास है और इसलिए मैं ऐसे वक्त पर आपको शुभकामना देना चाहता हूं। पीछे के समयमें हमने युक्ति पोर्टल बनाया जिसमें बहुत सारे मेरे इंजीनियर्स औरमैकेनिकों के आइडियाज आ रहे हैं ताकि उनका गांव एवं शहर के सभी क्षेत्रों में उपयोग करके देश की आर्थिकी को बढ़ाया जाए क्योंकि देश के प्रधानमंत्री ने कहा है कि हमकों फाइव ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनानी है तो इसका रास्‍ताआत्‍मनिर्भरभारत से होकर गुजरेगा और निश्चित रूप से आपके हाथों में सामर्थ्य है और आपके हाथों में स्किल है। वर्तमान में जो नई शिक्षा नीति आई है,वहबहुत व्यापक परिवर्तनों एवं सुधारों के साथ आई हैयहनई शिक्षा नीति शोध और अनुसंधान के क्षेत्र में भी आपको आगेबढ़ाएगी। तकनीकी केक्षेत्र में हमने जो ‘नेशनल एजुकेशन टेक्नोलॉजी फोरम’ बनाया है, उसके माध्यम से आप बहुत आगे बढ सकते हैं।शोध एवं अनुसंधान को बढ़ावा देने के लिए ‘नेशनल रिासर्चफाउंडेशन’ अलग से गठित हो रहा है। यही नई शिक्षा नीति की खूबसूरती है जिसका सभी लाभ उठा सकते हैं। आप पेटेंट की ओर दौड़े आपने डिग्री ले ली है।आगे बढने के लिए हमेंशोध एवं अनुसंधानसे होकर गुजरना ही होगा। इसीलिए टैलेंट तो होता है लेकिन टैलेंट का यदि विकास नहीं होगा तो बात नहीं बनेगी। टैलेंट पेटेन्ट के साथजुड़ेगा तो हम और आगे बढ़ेंगे, टैलेंट और पेटेंट इन दोनों का जुड़ाव एक नयी चीज को पैदा करेगा और जो नई शिक्षा नीति आई है, वह यही कहती हैं कि हम टैलेंट का विकास भी करेंगे विस्तार भी करेंगे, और उसको पेटेंट तक भी लेकर केजाएंगे।यह शिक्षा नीति सामान्य नहीं है। यह नेशनल भी है, इंटरनेशनल भी है, यह इंटरेक्‍टिवभी है, इम्पैक्टफुल भी है,इनोवेटिवभी है और यहइक्विटी, क्वालिटी और एक्सेस की आधारशिला पर खड़ी होती है।हम इसमें कंटेंट भी पैदा करेंगें और उसको टैलेंट केसाथ भीजोड़ेगें और उसका पेटेंट भी करायेंगे। आज भी देश के अन्‍दर छात्रों में केवल पैकेज की होड़लगीहै।इस पैकेज की होड़ को खत्म करके पेटेंट के होड़को तैयार करना होगा तभी देश प्रगति के पथ पर आगे बढ़ सकता है।दुनिया में भारत तीसरी महाशक्ति के रूप में तो स्‍थापित हो ही रहा है लेकिन मेरा विश्‍वास है कि देश ज्ञान की महाशक्ति के रूप में भीउभर कर आएगा।हमज्ञान की महाशक्ति की जो 5 ट्रिलियन डॉलर की आर्थिकीहोगी उसकी आधारशिला आप  बनेंगेऔर पूरी दुनिया में यह लगेगा कि भारत के पास इस समय अपनी सोच है। मुझे भरोसा है कि आप अपने कठिन परिश्रम और प्रतिभा से आगे बढ़ेंगे और भारत की इन अपेक्षाओं को भीपूरा करेंगे। हम लोगों प्रिन्ट  के साथ ही डिजिटल लाइब्रेरी और विशिष्ट समस्या केन्द्र तथा औद्योगिक अनुसंधान एवं नवाचार कार्यक्रमों को हम लगातार बढ़ावादेरहे हैं, यहआपके भविष्‍य केलिएअच्छा होगा।नई शिक्षा नीति के अंतर्गत जहां ‘ज्ञान’ में हम बाहर की फैकल्‍टी को अपनी धरती पर आमंत्रित कर रहे हैं वहींअब‘ज्ञान प्लस’ में हमारी भी फैकल्टी बाहर पढ़ाने के लिए जाएगी।वे बाहर जाकर नये आइडियाज को लेकर आएंगेऔर अब तो हमने उसका अंतरराष्ट्रीयकरण भी कर दिया है। विश्व के टॉप सौ विश्वविद्यालयों को हम यहां आमंत्रित कर रहे हैं। हमारे विश्वविद्यालय भी पूरी दुनिया में जाना चाहते हैं। अभी बाहर जाने की होड़ खत्म हो जाएगी क्योंकि उनको दुनिया की सबसे बेहतरीनशिक्षा यहां उपलब्‍ध होगी। हमारीनई शिक्षा नीति तमामबदलाव के साथ पूरी दुनिया की सबसे बड़े रिफॉर्म वालीनीति है।संयुक्‍त राष्‍ट्र संघ  द्वारा वर्ष 2030 तक के लिए जो सतत विकास लक्ष्‍य निर्धारित किये गय हैं, उन सबको पाने की सामर्थ्‍य  नई शिक्षा नीति में है। शिक्षक और शिक्षार्थी का समग्र रूप से किसतरीके से विकास हो सकता है वो भी इस नई शिक्षा नीति में है,वैज्ञानिक चेतना भी इसमें है तो मातृभाषा पर भी इसमें जोर है क्योंकि जो अभिव्यक्ति हम अपनी मातृभाषा में दे सकते हैं, वह दूसरी सीखी हुई एवं थोपी हुईभाषामें नहीं कर सकते हैं। वैसे तो हम पूरी दुनिया की सभी भाषाओं को सीखना चाहते हैं लेकिन हमारे देश की जो 22 भारतीयभाषाएँ संविधान में वर्णित हैं हम उनका जरूर संरक्षण एवं संवर्धन करना चाहिए। संविधान कीअनुसूची 8 में हमको जिन22 भारतीय भाषाओं को दिया गया है, वे वाकई खूबसूरत हैं और निश्चित ही नई शिक्षा नीति के माध्यम से उनका भी विकास होगा। नेशनल एजुकेशन टेक्नोलॉजी फोरम के माध्‍यम से अंतिम छोर केव्यक्ति को भी तकनीकी लाभों से सम्‍पन्‍न बनाया जाएगा। हम तकनीकी काविस्तार भी करेंगे और विकास भी करेंगे। हमारी प्रतिभा से हम नई चीजों को उभार कर पूरी दुनिया के स्तर पर उसका विस्तार कर सकते हैं।इस शिक्षा नीति के अंतर्गत हमने व्‍यवस्‍था की है कियदि कोई 4 वर्ष का कोर्स है और यदि कोई छात्र दो साल में परिस्‍थितिवशछोड़के जा रहा है  तो पहले उसका पैसा एवं समय दोनों खराब हो जाते थे। लेकिन अब उसकोनिराश नहीं होना पड़ेगा।यदिकोई छात्र परिस्‍थितिवश एक वर्षमें छोड़ कर जा रहा है तो हम उसको सर्टिफिकेटदेंगे; यदि वहदो साल में छोड़ कर जा रहा है तो डिप्लोमा देगें, तीन साल में छोड़कर जा रहा है तो उसकोडिग्री देंगे। लेकिन यदि फिर वह लौट कर अपने भविष्य को संवारना चाहता है तो फिर जहां से उसने छोड़ा था वहीं से शुरू कर सकता है। उसके लिए हम एक ऐसा क्रेडिट बैंक बनायेंगे जहां उसके सारे क्रेडिट जमा रहेंगे।इसलिए हमारे विद्यार्थियों के लिए आगे बहुत आपार संभावनाएं है।वह कहां जाना चाहता है, शोध और अनुसंधान के क्षेत्र भी हमने  बहुत से सकारात्‍मक परिवर्तन किये हैं। मुझे प्रसन्‍नता है कि एनआईआरएफ में भी आपकासंस्थान रैंकिंग को लगातार बढ़ाता जा रहा है।जहां यह पहले 31वें स्थान पर था अब यह 27वें स्थान पर आगया है और  मैं आगे भी आपसे ऐसी ही प्रगति की अच्छी अपेक्षा कर रहा हूं।वर्ष 2020 को यह संस्‍थान  अपनी हीरक जयंती के रूप में मना रहा है। संस्‍थान से जितने भी पूर्व छात्र निकले हैंयदि उनके नाम कीसूची देखें तो विजय भट्टकरजी जिनसे मेरा लगातार संवाद भी होता है, जोपद्म विभूषण पद्म श्री और परम सुपर कंप्यूटर के आर्किटेक्ट हैं। एशियापैसिफिक के सीनियर वाइस प्रेसिडेंट  दिनेश जी हैं,यदिसभीनामों को लूं तो एक बड़ी लंबी सूची है जिन्होंने इस संस्थान का गौरव पूरी दुनिया में बढ़ाया है। मुझे खुशी है कि अनुसंधान और शोध की दिशा में लगभग 56 करोड़  की आपकी विभिन्न परियोजनाएं चल रही है। आपअनुसंधान भी कर रहे हैं और पेटेंट की दिशा में भीकाफी तेजी से आगे बढ़रहेहैं।मैं देख रहा था कि चाहे उन्‍नत अल्ट्रा सुपर क्रिटिकल हो या जलवायु परिवर्तन परक्षमता निर्माण के लिए नवाचार केन्द्र कीस्थापना हो, विभिन्न क्षेत्रों में आप लगातार काम कर रहे हैं तो इसकी भी मुझे बहुत खुशी है। यह भी प्रसन्‍नता का विषय है किआपने दस गांवों को गोद लिया है, इस तरीके से आप उनकी समस्याओं के समाधान करने की दिशा में आगे आ रहे हैं।मुझे भरोसा है कि उद्योग और हमारे इन संस्थानों के बीच अच्छा समन्‍वय होगा ताकि जो उद्योगों को जरूरत है उसे हमारे संस्‍थान उद्योगों  के समन्‍वय के साथ पूरा कर सकते हैं। ऐसा करने से जो हमारी  प्रतिभाएं बाहर पलायन करती हैं वह समस्‍या भी खत्‍म होगी। उद्योग को जो नई ऊर्जा चाहिए, नई दिशा चाहिए,नया विजन चाहिए वोहमारे इन युवाओं में निश्चित रूप से मिलेगा। हमारे प्रधानमंत्री जी ने ऐसे नये और स्‍वर्णिम भारत के निर्माण का संकल्‍प लिया है जो स्वच्छ भारत हो,सशक्त भारत हो, समृद्ध भारत हो, आत्मनिर्भर हो और श्रेष्ठ हो। हमें ऐसे भारत के निर्माण की नींव बनकर आगे बढ़ना हैं हमजरूर आगेबढ़ेंगे और पूरे देश में और पूरी दुनिया में इस संस्थान का नाम बढ़ाएंगे। मैं एक बार पुन: जिन स्‍नातकों को गोल्ड मैडल मिले हैं उनको ढेर सारी बधाई देना चाहता हूं। जो आज डिग्री ले करके हमारे विद्यार्थी जा रहे हैं, उनको भीढेर सारी शुभकामनाएं एवं बधाई देना चाहता हूं। आप आज यहां से एक योद्धा के रूप में जायेंगे और आप यहसाबित करेंगे कि जोदीक्षा आपने ली है वो समाज के लिए काम आएगी तथापूरे राष्ट्र के लिए काम आएगी एवं पूरी दुनिया के लिए काम आएगी क्योंकि हम ‘वसुधैव कुटुम्‍बकम्’ की भावना वाले लोग हैं। हम पूरी दुनिया को ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया:’ के मार्ग पर ले जाना चाहते हैं। कोई व्यक्ति दुःखी न हो और यदि कोई दु:खी हो तो उसके दु:ख को दूर करने की ताकत हममें समाहित हो सकती है, हम उसको उबार सकते हैं तो एक बार पुन: आप सबको मेरी बधाई एवंशुभकामनाएं।

 

बहुत-बहुत धन्‍यवाद!

 

 

कार्यक्रम में गरिमामयी उपस्‍थिति:-

 

  1. डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’, माननीय शिक्षा मंत्री, भारत सरकार
  2. श्री संजय शामराव धोत्रे, माननीय माननीय शिक्षा राज्‍य मंत्री, भारत सरकार
  3. श्री जयंत डी. पाटिल, निदेशक एवं वरिष्‍ठ कार्यकारी उपाध्‍यक्ष, एलएंडटी, रक्षा व्‍यवसाय
  4. डॉ. प्रमोद एम. पडोले, निदेशक,विश्‍वैश्‍वरैया राष्‍ट्रीय तकनीकी संस्‍थान, नागपुर

एनआईटी गोवा का छठा दीक्षांत समारोह  

एनआईटी गोवा का छठा दीक्षांत समारोह

 

दिनांक: 28 दिसम्‍बर, 2020

 

माननीय शिक्षा मंत्री, डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’

 

एनआईटी गोवा के छठे दीक्षांत समारोह में उपस्‍थित आप सभी भाइयों और बहनों का मैं स्‍वागत करता हूं तथा आपको बधाई देने के लिए आपके बीच आया हूं। समारोह में उपस्‍थित एनआईटी गोवा के शासी मंडल के अध्‍यक्ष एवं निदेशक प्रो. गोपाल मुगेरिया जी,शासी मंडल के अन्‍य सभी सदस्‍यगण, संकाय सदस्‍य, सभी अतिथि, छात्र-छात्राओं, अभिभावकगण एवं विदेशों से मुझसे जुड़े मेरे भाइयो और बहनो! आज छठवे दीक्षांतसमारोह के अवसर पर मैं आपको बधाईदेने के लिए आया हूं और वैसे तो दीक्षा का कभी अंत नहीं होता है। आजीवन व्‍यक्‍ति कुछ न कुछ सीखता है लेकिन जब आप एनआईटी गोवा में आयें होंगे तो वे क्षण आपको याद आ रहे होंगे कि जब आपने प्रवेश किया था तो क्‍या उमंग थी कि मुझे एनआईटी गोवा में प्रवेश मिला है। आपके अभिभावक, नाते रिश्‍तेदार कितने खुश थे आज उस दिन को याद करिए और आज इतने वर्षों के बाद जब आप डिग्री को लेकर जा रहे हैं तो मैं समझता हूं कि यह अवसर आपके लिए कितना सुखद, हर्ष और उल्‍लास का यह अवसरहै और हमारे लिए भी खुशी का अवसर है। इसलिए हम सब मिलकर आपको शुभकामनाएंदेने के लिए आये हैं। मुझे भरोसा है कि आप एनआईटी गोवासे एक योद्धाकी तरह बाहरनिकलेंगे उसके लिए मैं आपको बधाई देना चाहता हूं। आपको मालूम है कि आपके घर में, आपके माता-पिता, दोस्‍त, नाते-रिश्‍तेदार भी खुश होंगे कि आप पढ़ाई करने के बाद मैदान में जा रहे हैं आपने जो ज्ञान अर्जन किया है अब उसको अपने जीवन में ढालकर के समाज के लिए,देश के लिए, दुनिया के लिए आप सब एक योद्धा की तरह निकलेंगे। हम सब आपको शुभकामनाएं देने के लिए आये हैं। स्‍वाभाविक ही है कि जो आपके आचार्यगण होंगे वे भी खुश होंगे, वहीं वे इस बात से दुखी भी होंगेकि आप इतने वर्षों के बाद उनका साथ छोड़ कर जा रहे हैं। लेकिन वे खुश इसलिए होंगे कि आप यहां से दीक्षाग्रहण करनेकेबाद जीवन के हर क्षेत्र में प्रगति के लिए बढ़ेंगे और आप केवल पैकेजकी हौड़ नहीं बल्‍कि पटेंट की दौड़ में बढ़ेंगे और आपका नाम नौकरी पाने वाले नहीं बल्‍कि देने वालों में होगा। मुझे भरोसा है कि जो एनआईटीगोवा है यह अपना परचमफहरायेगा। जब मैं पीछे के समय गोवा आया था तो निदेशकगोपालजी से मिला था और इस एनआईटी के लिए जमीन को लेकर हम मिलेथे। मुझेखुशी है कि एनआईटी गोवा एक नये स्‍थान पर एक भव्‍य भवन में भव्‍य इतिहास रचेगा। गोवापर्यटन का हब है और उच्‍च शिक्षाकेलिए इसकीअलग पहचानहै। मैं अभी देख रहा था कि जो एनआईटी गोवा की रैंकिंगहै वो रैकिंग भी लगातार बढ़ रही है और जो हमारे नए 18 एनआईटी हैं उनमें यह दूसरेनंबर पर आया है। यह दर्शाता है कि हमारा यह एनआईटी तेजी से आगे बढ़ रहा है मुझेइस बात की भी खुशीहै कि रिसर्च स्‍कालर प्रीति भी इस संस्‍था से जुड़ी हैं जिनको इंटरनेशनलसोसायटी फॉर आप्‍टिक्‍स,यूएसए  द्वारा 25 महिला वैज्ञानिकों में चिन्‍हि्त किया गया है जो एकमात्र भारतीय हैं इसके लिए मैं उनको बधाई देना चाहता हूं। हम जो नई शिक्षा नीति लायें हैं वो इंटरनेशनल स्‍तर की लायें हैं और वो भारत केन्‍द्रित भी होगी।नई शिक्षा नीति नेशनल भी है, इंटरनेशनल भी है, यह इंटरेक्‍टिव भी है, इम्पैक्टफुल भी है, इनोवेटिव भी है और यह इक्विटी, क्वालिटी और एक्सेस की आधारशिला पर खड़ी  है। मुझे लगता है कि जो नई शिक्षा नीति है इसमें कंटेंट को आपकी प्रतिभाकेसाथ जोड़ेंगे और जब वो केंटेंट जुड़ेगा आपकी प्रतिभा के साथ तो वो पेटेंट को जन्‍म देगा। इस शिक्षानीति  के अंतर्गत हम छठवीं कक्षा से ही वोकेशनल स्‍ट्रीम लेकर आ रहे हैं, वो भी इंटर्नशिप के साथ लेकर आ रहे हैं। इस शिक्षा नीति में विषयों की भी कोई पाबन्‍दी नहीं है। आप कोई भी विषय ले सकते हैं। इस शिक्षा नीति के अंतर्गत यदि कोई 4 वर्ष का कोर्स है और यदि कोई छात्र दो साल में परिस्‍थितिवश छोड़ के जा रहा है  तो पहले उसका पैसा एवं वर्ष दोनों खराब हो जाते थे। लेकिन अब उसको निराश नहीं होना पड़ेगा। यदि अब वह परिस्‍थितिवश एक वर्ष में छोड़ कर जा रहा है तो उसको सर्टिफिकेट देंगे, दो साल में छोड़ कर जा रहा है तो डिप्लोमा देगें, तीन साल में छोड़ कर जा रहा है तो उसको डिग्री देंगे लेकिन यदि फिर वह लौट कर अपने भविष्य को संवारना चाहता है तो फिर जहां से उसने छोड़ा था वहीं से शुरू कर सकता है। उसके लिए हम एक ऐसा क्रेडिट बैंक बनायेंगे जहां उसके सारे क्रेडिट जमा होंगेइसलिए उसके लिए आगे बहुत आपार संभावनाएं है। इसलिए मैं समझता हूं कि यह नई शिक्षा नीति बहुत सारे बदलावों के साथ आई है। शोध और अनुसंधान के क्षेत्र में हम ‘स्‍पार्क’ के तहत दुनिया के शीर्ष 127 विश्‍वविद्यालयों के साथ शोध एवं अनुसंधान कर रहे हैं। हम ‘स्‍ट्राइड’ के तहत अंतर-विषयकशोध कर रहे हैं। इसके अलावा हम इम्‍प्रिंट एवं इम्‍प्रेंसके तहत शोध एवं अनुसंधान कर रहे हैं। आपको मालूम है कि एक समय तथा जब हमारा देश सीमाओं पर संकट से गुजर रहा था एवं देश के अन्‍दर खाद्यान्‍न का भी संकट था, ऐसे वक्‍त में हमारे देश के प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्‍त्री जी ने ‘जय जवान जय किसान’ का नारा दिया था और पूरा देश उनके साथ खड़ा हो गया था और हमने दोनों संकटों का सामना किया था। उसके बाद जब अटल बिहारी वाजपेयी जी आये और बाजपेयी जी को महसूस हुआ कि देश को विज्ञान की जरूरत है तो उन्‍होंने ‘जय विज्ञान’ का नारा दिया और आपको याद होगा कि भारत ने परमाणु परीक्षण  करके पूरी दुनिया में देश को महाशक्‍ति के रास्‍ते पर बहुत ताकत के साथ आगे बढ़ाया और अब जब हमारे देश के प्रधानमंत्री श्री नरेन्‍द्र मोदी जी को लगा कि अब एक कदम और आगे जा करके देश को विश्‍व के शिखर पर पहुंचाने की जरूरत है तब उन्‍होंने ‘जय अनुसंधान’ का नारा दिया और निश्‍चित रूप में ‘जय अनुसंधान’ के साथ देश आगे बढ़ेगा। हमारे अतीत में बहुत कुछ है लेकिन गुलामी के थपेड़ों ने उन चीजों को हमसे दूर किया। हमारा ज्ञान-विज्ञान, नवाचार जो देश पूरे विश्‍व को लीडरशिप देता था ‘‘एतद् देश प्रसूतस्‍य शकासाद् अग्रजन्‍मन:,स्‍वं-स्‍वं चरित्रं शिक्षरेन् पृथ्‍वियां सर्व मानव:’’ तक्षशिला, नालन्‍दा और विक्रमशिला जैसे विश्‍वविद्यालय इस देश में थे जहां पूरी दुनिया के लोग ज्ञान, विज्ञान, अनुसंधान, नवाचार सीख कर जाते थे। तब दुनिया में कौन-सा विश्‍वविद्यालय था? हां, यह अलग बात है कि गुलामी के थपेड़ों ने उसको हमसे दूर किया, हमको हमारी जड़ों से अलग कर दिया गया। लेकिन अब हम स्‍वाधीन हैं और आज हम आजादी के 70 वर्षों के बाद खड़े हैं। हमको ताकतवर नेतृत्‍व मिला है। हमको विजनरी नेतृत्‍व मिला है और उस विजन को मिशन में तब्‍दील करने की सामर्थ्‍य हम सब में है। हमारे देश के प्रधानमंत्री जी ने कहा है कि आत्‍मनिर्भर भारत की जरूरत है। ऐसा भारत जो स्‍वच्‍छ हो, स्‍वस्‍थ हो, सशक्‍त हो, आत्‍मनिर्भर हो, श्रेष्‍ठ हो और एक भारत हो और इसका रास्‍ता मेक इन इंडिया, स्‍किल इंडिया, डिजिटल इंडिया, स्‍टार्ट अप इंडिया और स्‍टैंड अप इंडिया से होकर गुजरता है। क्‍या नहीं कर सकते हम, भारत पूरे विश्‍व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है और आने वाले 25 वर्षों तक यह देश यंग इंडिया रहने वाला है। हम अपने विजन को धरती पर क्रियान्‍वित करेंगे। हम केवल पैकेज की होड़ में नहीं जाएंगे बल्‍कि हम पेटेंट की होड़ में जाएंगे। हम टेलेंट और केंटेंट दोनों को मिलाकर पेटेंट की और बढ़ेंगे। इसके लिए ‘नेशनल रिसर्च फाउंडेशन’ की स्‍थापना की जा रही है। तकनीकी के क्षेत्र में हम ‘नेशनल एजुकेशन टैक्‍नोलॉजी फोरम’ का गठन कर रहे हैं ताकि अंतिम छोर के व्‍यक्‍ति तक तकनीकी को ले जाया सके। हमारी नई शिक्षा नीति दुनिया के सबसे बड़े रिफॉर्म के साथ आ रही है और इसी का परिणाम है कि आज पूरे देश में उत्‍सव का माहौल है। छात्र भी खुश है, अभिभावक भी खुश है और अध्‍यापक भी खुश है कुछ लोग तो ईर्ष्‍या करते हैं कि यदि यह शिक्षा नीति 10, 20 या 50 वर्ष पहले आतीतो देश का नक्‍शा बदल जाता लेकिन कोई बात नहीं देर से सही लेकिन हमारी शुरूआत हुई है। मोदी जी के नेतृत्‍व में, उनके मार्गदर्शन में उनकी इच्‍छाशक्‍ति से यह विश्‍वपटल पर अपने को बहुत मजबूती के साथ नए सुधार और नये आयाम के साथ यह नीति स्‍थापित करेगी। इसलिए जो हमारा शोध एवं अनुसंधान का क्षेत्र है इसको हम बहुत तेजी से आगे बढ़ाएंगे। एनआईटी गोवा का जो रोबोटिक्‍स क्‍लब है इसके माध्‍यम से रचनात्‍मक कौशल को निश्‍चित रूप से प्रोत्‍साहन भी मिलेगा और जो हम आत्‍मनिर्भर भारत की बात करते हें उसमें भी हम आगे बढ़ सकेंगे। यदि हमको भारत को ज्ञान की महाशक्‍ति के रूप में स्‍थापित करना है तो हममें से प्रत्‍येक व्‍यक्‍ति को अपना योगदान देना पड़ेगा। मुझे भरोसा है कि हममें क्षमता की कमी नहीं हैं। जब पूरी दुनिया कोविड के संकट से गुजर रही थी और हमारा देश भी उससे अछूता नहीं था ऐसे वक्‍त में जब लोग घरों में कैद हो गए थे तब मेरे एनआईटी, आईआईआईटी, आईआईटी, आईसर, केन्‍द्रीय विश्‍वविद्यालयों के छात्रों एवं अध्‍यापकों ने प्रयोगशालाओं में जाकर एक से एक नये प्रयोग किये। उन्‍होंने मास्‍क बनायें, वेंटीलेटर बनाये, टेस्‍टिंग किट का निर्माण किया, ड्रोन बनायें। ऐसे-ऐसे प्रयोग किये जो देश में पहले होता ही नहीं था इन सभी अनुसंधानों एवं प्रयोगों को हम ‘युक्‍ति’ पोर्टल पर एकत्रित किया है। एक बार आप युक्‍ति पोर्टल का विजिट किजिए आपको बहुत खुशी होगा। हमारे देश के प्रधानमंत्री जी बार-बार कहते हैं कि जब बड़ी चुनौती होती है और उसका मजबूती के साथ मुकाबला किया जाता है तो वही चुनौती अवसरों में तब्‍दील होती है, जो आपने करके दिखाया है। मुझे गौरव होता है कि शिक्षा मंत्रालय ने इन विषम परिस्‍थितियों में रात-दिन काम करके छात्रों को ऑनलाइन शिक्षा पर लेकर आये और ‘मनोदर्पण’ जैसे अभियान को आरम्‍भ करके छात्रों को अवसाद में नहीं जाने दिया, लगातार हम छात्रों से जुड़े रहे। मुझे लगता है कि हमारी जो शिक्षा है वो आज भी समर्थवान है। अब तो हम अन्‍तर्राष्‍ट्रीय फलक की शिक्षा ला रहे हैं जिसके माध्‍यम से हम दुनिया के शीर्ष 100 विश्‍वविद्यालयों को अपनी धरती पर आमंत्रित कर रहे हें और जो हमारे भी शीर्ष विश्‍वविद्यालय हैं वह भी दुनिया में पढ़ाने के लिए जाएंगे। इसके अलावा हम नई शिक्षा नीति में जहां ‘ज्ञान’ के तहत हम बाहर की फैकल्‍टी को अपनी धरती पर आमंत्रित कर रहे हैं वहीं अब ‘ज्ञान प्‍लस’ में हमारी भी फैकल्‍टी दुनिया में पढ़ाने के लिए जाएगी। अभी हमने ‘स्‍टडी इन इंडिया’ अभियान लिया कि दुनिया के लोगों भारत में आओ, पढ़ों तथा भारत को जानों। इसी का परिणाम था कि अभी आसियान देशों के 1000 से भी अधिक छात्र हमारे यहां शोध एवं अनुसंधान के लिए आ रहे हैं एवं ‘स्‍टडी इन इंडिया’ के तहत लगभग 50000 रजिस्‍ट्रेशन हो गए हैं। ‘स्‍टडी इन इंडिया’ की तरह ही हमने ‘स्‍टे इन इंडिया’ कार्यक्रम किया है क्‍योंकि हमारे 7-8 लाख छात्र प्रतिवर्ष विदेशों में जाते हैं और हमारा लगभग 1.5 लाख करोड़ रूपया प्रतिवर्ष विदेशों में चला जाता है। हमारे देश की प्रतिभा और पैसा दोनों ही बाहर चले जाते हैं जो कभी वापस नहीं आते हैं। अब हमने छात्रों को भरोसा दिलाया है कि आपको बाहर जाने की जरूरत नहीं हैं। हमारी संस्‍थाओं में क्षमता है। अगर हमारी संस्‍थाओं में क्षमता नहीं होती तो जो दुनिया की तमाम शीर्ष कंपनियां हैं चाहे गूगल हो, चाहे माइक्रोसॉफ्ट हो जो उनके सीईओ हैं वह हमारी ही धरती से तो पढ़कर गए हैं। हमारे छात्र पूरी दुनिया में लीडरशिप ले रहे हैं क्‍योंकि हमारे पास विजन है, मिशन है। विजन को मिशन में तब्‍दील करने का माद्दा है तो निश्‍चित ही हम कुछ भी कर सकते हैं और जैसा कि मैंने अभी कहा कि हम भारत को ज्ञान की महाशक्‍ति बनाना चाहते हैं तो उसमें आने वाली कोई भी बाधा हमें रोक नहीं सकती क्‍योंकि हम इच्‍छाशक्‍ति के धनी हैं। मैं गोपाल जी एवं उनकी टीम को बधाई देना चाहता हूं कि आपने उन्‍नत भारत अभियान के तहत भी बहुत अच्‍छा काम किया है। अभी आपने तीन गांवों को गोद लिया है और मैं यह कहना चाहता हूं कि स्‍वामी विवेकानन्‍द जी ने कहा था कि उठो, जागो और तब तक मत रूको जब तक आपको लक्ष्‍य की प्राप्‍ति नहीं हो जाती तो विवेकानन्‍द जी का जो दर्शन है उसको आप अपने जीवन में धारण करें। आपको तो मालूम हैं कि भारत रत्‍न डॉ. कलाम जी ने भी कहा था कि सपने जो सोने न दे अर्थात् ऐसे सपने जिनके क्रियान्‍वित होने तक आपके अन्‍दर छटपटाहट हो। आपको मालूम होगा कि दुनिया के तमाम देश हमारी एनईपी को अपने देश में लागू करना चाहते हैं। अभी कैम्‍ब्रिज  विश्‍वविद्यालय ने कहा कि हम इस शिक्षा नीति को पूरी दुनिया में लेकर के जाना चाहते हैं। अभी संयुक्‍त अरब अमीरात के शिक्षा मंत्री ने भी कहा कि हम इस नई शिक्षा नीति को अपने यहां लागू करना चाहते हैं तो मेरे छात्र-छात्राओं मैं आपसे कहना चाहता हूं कि जब आप आज यहां से डिग्री लेकर एक योद्धा की तरह बाहर निकल रहे हैं तो मैं आपसे कहना चाहता हूं कि:-

 

‘‘लहरों से घबराकर नौका पार नहीं होती और

कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।

कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।।’’

 

आप मेहनती हैं, कभी आपको जिन्‍दगी में हार का सामना नहीं करना पड़ेगा। आप एक योद्धा की तरह आगे बढ़ेंगे तो मैं एक बार फिर आप सभी को बधाई एवं शुभकामनाएं देता हूं।

बहुत-बहुत धन्‍यवाद!

 

कार्यक्रम में गरिमामयी उपस्‍थिति:-

  1. डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’, माननीय शिक्षा मंत्री, भारत सरकार
  2. प्रो. गोपाल मुगेरिया, अध्‍यक्ष, बीओजी एवं निदेशक, एनआईटी गोवा
  3. डॉ. वसंथा एम.एच, कुलसचिव, एनआईटी गोवा
  4. शासी मंडल के अन्‍य सदस्‍यगण, संकाय सदस्‍य, अभिभावकगण एवं छात्र-छात्राएं।

 

भारतीय अनुवाद संघ

भारतीय अनुवाद संघ

 

दिनांक: 22दिसम्बर, 2020

 

 

माननीय शिक्षा मंत्री, डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’

भारतीय अनुवाद संघ के इस कार्यक्रम में उपस्थित सभी लोगों का मैंअभिनंदन कर रहा हूं। मुझे खुशी है कि देश की आजादी के बाद पहली बार इस तरीके का चिंतन प्रत्यक्षीकरण के रूप में प्रकट हो रहा है। इसमेंकेवल चिंता एवंचर्चा नहीं है बल्कि क्रियान्वयन की दिशा में साकार रूप से आज इसका शुभारंभ हो रहा है। मैं इसके लिए विशेष करके महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा के यशस्वी कुलपति आचार्य रजनीश कुमार शुक्ल जी को मैं विशेष बधाई देना चाहता हूं, धन्यवाद देना चाहता हूं कि आपने यह पहल की है और उस पहल के निश्चित रूप से सकारात्मक परिणाम आएंगे। केंद्रीय विश्वविद्यालयों के बहुत सारे कुलपतिगण यहां परइस महत्वपूर्ण कार्यक्रम से जुड़ रहे हैं और मुझे बताया गया है कि इसके साथ ही महात्‍मा गांधी अन्‍तर्राष्‍ट्रीय हिन्‍दी विश्‍वविद्यालय के प्रति-कुलपति हनुमान प्रसाद शुक्‍ल, विविध विद्यापीठों के अधिष्‍ठाता एवं प्रोफेसरगण तथा भारतीय अनुवाद संघ के विविध सदस्‍यों सहित तमाम वे लोग जुटे हैं जो मानते हैं तथा जिनका विचार है कि  भारतीय भाषाओं का विस्तार होना चाहिए औरउनका अनुवाद होनाचाहिए और वे भाषाएं लोगों तक जानी चाहिए। उसके अंदर का ज्ञान, विज्ञान और उसका जो दर्शन है उसको दुनिया में बांटना चाहिए और दुनिया में बांटने से पहले अपने देश के लोगों को उसके दर्शन होने चाहिए।इस चिंतन-मंथन में ऐसे लोगजुड़े हैं जिनमें बहुत लंबे समय से इस बात की छटपटाहट थी कि हां, यह देश इतना बड़ा देश है, दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है और उस सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश में जिसे विश्व गुरु कहा गया तो ऐसे ही उसको विश्वगुरु नहीं कहा गया होगा। वो भारत जो गुलामी से पहले का भारत था उसका जब हम दर्शन करते हैं तो स्वाभाविक है कि उस बात को महसूस करते हैं और समझ सकते हैं कि कितने दर्दों से होकर भारत गुजरा है और विश्व गुरु कहलाने वाला भारत को किस तरीके से ध्वस्त करने की कोशिश हुई है। तो एक विषय तो यह है कि हम क्‍या केवल विगत समय के दुखों को याद करके रोते हैं?क्या करें कि ऐसा हुआ, यह हुआ, हमारी भाषा खत्म हो गई, हमारी संस्कृति को यह करने की कोशिश हुई, हमारे ज्ञान विज्ञान सब ग्रंथों को खत्म कर दिया, जला दिया, शिक्षा के केन्द्रों को ध्वस्त कर दिया? इस विषय पर बात तो बहुत पुरानी बात हो गई अब उसकी जरूरत नहीं है। अब जरूरत इस बात की हैकि जो लोग इस बात को समझते हैं, महसूस करते हैं, जानते हैं और जिनके मन में इस बात की पीड़ा है, छटपटाहट है, कि नहीं यदि देश आजादहुए 70 वर्ष हो गए तो कौन सा कारण है कि जहां हम अपने को पुन: खड़ा नहीं कर पा रहे हैं? कौन सा कारण है कि जोहम अपने को और उस भारत की जो असली आत्मा है उस आत्मा को अपने अंदर समाहित नहीं कर पाये तथा देश को भी उस आत्मा का परिचय नहीं दे पा रहे है। मैं समझता हूं कि यह सारे वो तथ्य हैं, वो बिन्दू है जो हमको अंदर तक हिलातेहैं और जब अंदर तक वो हमको झंकृत करते हैं, हिलाते है तो फिर वो चीज प्रकट होकर बाहर आती है तो बाहरआई हुई चीज इकट्टा होकर के एक ताकत के रूप में आगे बढ़नी चाहिए। आज वो जो अलग अलग छटपटाहट थी उन सबको एक संयुक्त रूप में करके जो आज काम हो, मैं इसके लिए आपको बधाई देना चाहता हूं। इसविश्‍वविद्यालय परिवार को और डॉ.रजनीश जी को, कि उन्होंने यह शुरुआत की है और शुरुआत भी की हैतो फिर संकल्प के साथ की है। बहुत सारे लोग होते हैं, अच्छे विचारों की कमी थोड़ी होती है आचार्य रजनीश जी, आपको याद होगा कि एक बार मैंने भारती ज्ञान प्रकोष्ठ की एक बैठक की थी और जब मेरे से कहा गया कि जो इसमें रुचि रखते हैं उनसे मीटिंग की जाए लेकिन बड़ी लम्बी सूची आईतो मेरे से पूछा गया कि फिर किनकी मीटिंग करनी है। क्‍या जो भारती ज्ञान प्रबोध के बारे में जानते हैं, जो अच्छे सुझाव दे सकते हैं फिर किनकी मीटिंग करनी है? तो मैंने कहा कि मुझे केवल उनकी मीटिंग करनी है जो काम कर रहे हैं, जो उसको आगे बढ़ा रहे हैंऔरजिनके मन में छटपटाहट है तथा जिनमें दम है करने का, वो लोग चाहिए मुझे, सुझाव देने वाले लोगों की तो दुनिया में कभी कमी नहीं रही है। बड़ी-बड़ी बातों को करने की तो दुनिया में कभी कमी नहीं रही है लेकिन हां, उस सुझाव को क्रियान्वित करके स्वयं खड़े होकर के और अपने जीवन का तिल-तिल खपा करके रिजल्ट देने वाले लोगों की कुछ कमी रही है और वो भी कमी मुझे लगता है शायद बहुत बड़ी कभी नहीं है। हमारा विजनरी देश रहा है, कमी कभी नहीं रही है। जब-जब भीपरिस्थितियां आई और आह्वान हुआ तो लोग खड़े हो गए। क्या लीडरशिप की थोड़ा कमी रही है क्या? तो यदि लीडरशिप की कमी रही है तो उस कमी को भी दूर करना चाहिए और मैं इसलिए कह रहा हूं कि ऐसा नहीं कि लोग सोए रहते हैं। ऐसा भी नहीं कि लोग कुछ करना नहीं चाहते हैं। एक समय था जब हमारे देश में ऐसी परिस्थिति थी,जब लालबहादुर शास्त्री जी देश केप्रधानमंत्री थे और हमारे देश अंदर खाद्यान का बहुत संकट था तथादेश की सीमाओं पर भीसंकट था। हम दोहरे संकट से गुजर रहे थे, खाद्यान संकट और सुरक्षा का संकट। लेकिन जब लालबहादुर शास्त्री जी ने ‘जय जवान, जय किसान’ का नारा दिया तो आप सबको भी मालूम है कि पूरा देश खड़ा हो गया था और हमने दोनों संकटों पर विजय प्राप्‍त कीऔर रास्ता निकला था तो पूरा देश लालबहादुर शास्त्री के पीछे खड़ा हो गया। उन्होंने कहा कि एक दिन का उपवास रखना है। लोगों ने एक दिन का उपवास रखना शुरू कर दिया था, पूरा देश खड़ा हो गया था लेकिन आपकेआह्वानमें दम चाहिए। जबहमारेदेश के प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी जी आए तो उन्होंने कहा कि एक समय था जब ‘जय जवान जय किसान’ का नारा लगा लेकिन अब जरूरत है‘जय विज्ञान’ के नारे के साथ हमें आगे बढ़ना चाहिए। अब जरूरत है हमें अपनी ताकत को दिखाने की तथा अपने को और ताकतवर बनाने की,भले ही हमारा देश कभी किसी को छेड़ता नहीं हैं लेकिन ताकतवर तो रहना चाहिए। आदमी जबताकतवर रहता है तब ही दूसरे का संरक्षण कर सकता है। कमजोर आदमी दूसरे का संरक्षण करने में समर्थ नहीं होता है यदि एक आदमी ने थप्पड़ मारा और कहा कोई बाद नहीं, मैं तो आदर्शवादी हूं दूसरे गाल को भी मार दोऐसी कोई जरूरत नहीं है। जरूरत इस बात की है कि यदि किसी ने गाल पर थप्पड़ मारा तो उसके हाथ को पकड़ लिया जाए। ताकत तो इतनी है कि हाथ को तोड़कर के बाहर फेंक सकते थे लेकिन यह हमारा आदर्श है कि हमने आपको छोड़ दिया। जाइए, अब आगे से ऐसा मत करिए,यह है ताकत, इस ताकत की जरूरत है। उस ताकत की जरूरत के लिए अटलबिहारी बाजपेयी ने जैसे ही‘जय विज्ञान’ का नारा दिया आपको सब पता है देश महाशक्ति के रूप में किस तरीके से खड़ा हो गया। परमाणु परीक्षण करके दुनिया के तमाम देशों ने कहा कि हम भारत पर आर्थिक प्रतिबंध लगा देंगे। यदि इस चीज को वापस नहीं लिया गया तो और अटल जी थे उन्होंने बेहतरीन निर्णय लेते हुए कहा कि हम मजबूत भारत देखना चाहते हैं, हम अपाहिज भारत नहीं देखना चाहते हैं। हम शक्तिशाली भारत देखना चाहते हैं और इसलिए आपको याद होगा कि पूरी दुनिया ने आर्थिक प्रतिबंध लगाने की घोषणा की यहां तक की कई संपादकीय उनके विरोध में लिखे गए थे। उस समय अटल जी ने कहा था कि विकसित देशों के ऋण की भीख हमको नहीं चाहिए और इसलिए केवल देश से आयात और निर्यात दोनों बंद कर दिए थे। ना आयात होगा, ना निर्यात होगा।जो चीजें देश में बनती है वे चीजें दुनिया में नहीं जाएंगी और दुनिया की चीजें देश में नहीं आएंगी। केवल इसएक सूत्र ने छह महीने के अंदर-अंदर पूरी दुनिया को झुका दिया था और आर्थिक प्रतिबंधों को वापस लेना पड़ा था। यह है ताकत जब आदमी पूरे विजन के साथ काम करता है तो फिर वह आगे बढ़ता है।अब हमारे देश के यशस्‍वी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने जिस तरीके से 2013-14 के बाद जिस ढंग से काम किया है आज उन्होंने ‘जय अनुसंधान’ का भी नारा दिया। अब अनुसंधान की जरूरत है हमको चीजें हमारे पास बहुत है जिनके बल पर पूरी दुनिया में हम नंबर एक हो सकते हैंलेकिन उस चीजों को नये अनुसंधान के साथ नया नवाचार के साथ सामने लाने की जरूरत है उसी कड़ी में जो नई शिक्षा नीति आईहै वो निश्चितरूप से भारत केन्द्रित है।मुझे इस बात को लेकर खुशी है कि जब हमभारत केन्द्रित बोलते थे पहले, तो तमाम प्रकार के लोगों को परेशानी खड़ी हो जाती थी। उनको ‘भारत’शब्द ही पसंद नहीं है। मैं पूछना चाहता हूं उनसे कि भाई,तुमको ना हिंदुस्तान शब्द पसंद है ना भारत शब्द पसंद है तो भाई क्या पसंद है? जब हम भारत केन्द्रित बोलते हैं तो भारत केन्द्रित का मतलब है कि भारत की आत्मा उसमें दिखाई देनी चाहिए,भारत की वो सब चीजें आनी चाहिए उस शिक्षा नीति में क्‍योंकि वह देश के लिए बन रही है।यदि उसी देश की चीज उसमें नहीं है तो फिर क्या भारत की शिक्षा नीति है। इसलिए लंबे समय के विमर्श के बाद, लोगों की लंबे समय की छटपटाहट के बाद यह नई शिक्षा नीति आई है।यहभारत केन्द्रित होगी और भारत केन्द्रित होने का मतलब है कि इसमें ज्ञान, विज्ञान, अनुसंधान सब कुछ शामिल होगापहले तो अपने देश के लोगों को भारत के दर्शन कराने की ज़रूरत है। इस पीढ़ी को भारत के दर्शन कराने की जरूरत है और यह तभी होगा जब हमारे पीछे की जो हमारी संपत्ति है, जो हमारी थाती है, जो हमारी धरोहर हैं उनको हम अपनी पीढ़ी तक ले जा सकें।हमारी नई पीढ़ी को हमारे अतीत की सम्‍पन्‍नता का पता नहीं है इसलिए जब अचानक कोई चीज आती है तो उनको लगता है जैसे यह तो हास्यास्पद है और इसीलिए यह जो नयी शिक्षा नीति है वह भारत केन्द्रित तो होगीहीलेकिन यह नेशनल होने के साथ ही, इंटरनेशनल भी है, इम्पैक्टफुल भी है, इंटरएक्टिव भी है, इनक्लूसिव भी है और इनोवेटिव भी है। इसका जो मूलाधार है वो इक्विटी, क्वालिटी और एक्सिस, इसके मूल आधार पर यह खड़ी है जो नीचे अंतिम छोर के व्यक्ति से लेकर के विश्व के शिखर तक पहुंचती है। इसमें सभी शैक्षणिक क्षेत्रों पर ध्‍यान केन्‍द्रित किया गया है।शोध और अनुसंधान के क्षेत्र में‘नेशनल रिसर्च फाउंडेशन’ का गठन किया जा रहा है जिसके अध्‍यक्ष प्रधानमंत्री के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार होंगेअभी तक हमारे युवाओं में पैकज की दौड़ थी, अब वो पेटेंट की दौड़ होगी। केवल विदेशों में बड़ी-बड़ी फर्मों में पैसा मिल जाए यहजो दौड़ थी नई शिक्षा नीति उस दौड़ को खत्म कर देगी। हम पेटेंट के रूप में अपने को खड़ा कर सकते है।हमको नौकरी पाने के लिए दौड़ने वाले नहीं बल्कि नौकरी देने वाले लोगों को तैयार करना है और इसीलिए नई शिक्षा नीति जहां ‘नेशनल रिसर्च फाउंडेशन’ को गठित करती है वहीं तकनीकी की दृष्टि में अंतिम छोर तक के व्यक्ति को ‘नेशनल एजुकेशन टेक्नोलॉजी फोरम’ के माध्यम से सशक्‍त करने का काम भी करती है। हमारे पास किसी भी क्षेत्र में ज्ञान की कोई भी कमी नहीं रही है। हमने अभी तक अपने पीछे को देखा ही नहीं, हम केवल दौड़ रहे है अभी तो हम केवल पाश्‍चात्‍य लोगों को देख रहे हैऔरउनके पीछे अन्‍धानुकरण कर दौड़ रहे हैं जिन्होंने हमारी संस्कृति, हमारी शिक्षा और हमारी भाषा को ध्वस्त किया औरइसलिए इस वर्तमान पीढ़ी के लोगों के सामने यह चुनौती है। मेरे देश के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी से एक बहुत अच्छी बात बोलते हैं। वे कहते हैं कि यदि चुनौती का डटकर मुकाबला होता है तो वह अवसर में तब्दील हो जाती है। यदिचुनौती न आए तोवो सफलता कहां से और इसलिए हमको यह भी सोचना पड़ेगा, ताकत के साथ खड़े होने की जरूरत है। हां में हां मिलाने वाले लोग परिवर्तन नहीं कर सकते है, ताकत के साथ खड़े रहने वाले लोग परिवर्तन का कारक बनते हैं। हमारी दृष्टि ठीक है कि नहीं, हमारी जो दिशा है वो ठीक है कि नहीं, हमारा जो हेतुया लक्ष्य है वो ठीक है कि नहीं, यह पहले स्‍पष्‍ट रहना चाहिए। हां, हमारा टारगेट बहुत स्पष्ट है। हमारी दृष्टि, हमारी नियत भी साफ है। हम इस देश को पूरी दुनिया में ज्ञान की महाशक्ति बनाना चाहते है। महाशक्ति जब हम बोलतेहैं तो यह भी स्‍पष्‍ट रहना चाहिए कि यह देश तो महाशक्ति था, विश्वगुरू तो इसको कहते थे।  सारी दुनिया के लोग यहां शिक्षा ग्रहण करने के लिए आते थे,जब यहां तक्षशिला, नालंदा और विक्रमशिला जैसे विश्वविद्यालय थे। अभी जब हम नई शिक्षा नीति के तहत मातृभाषा में प्रारंभिक शिक्षा को लाए तो कुछ लोगों ने इस बात की चर्चा करनी शुरू कर दी। लोगों ने कहा कि निशंक जी आप एक ओर तो अंतर्राष्ट्रीय  तथा ग्लोबल स्‍तर पर जाने की बात कर रहे हैं तो वो तो केवल अंग्रेजी में ही हो सकता है और फिर आप मातृभाषा पर आ रहे है तो इससे तो हम देश को पीछे धकेल रहे है। मैंने उनसे हाथ जोड़कर यह निवेदन किया कि अंग्रेजी का कहीं विरोधनहीं है। लेकिन नंबर एक अंग्रेजी अपने देश की भाषा नहीं है, वो विदेश की भाषाहै। नंबर दूसरी बात यह है कि मेरे देश की जो भारतीय भाषाएं हैं जिनमें तमिल है, तेलगू है, मलयालम है, कन्नड़ है, गुजराती है, मराठी है, बंगाली है, असमिया है,उर्दू है, संस्कृत है, हिंदी है, कश्मीरी है, उड़िया हैसिंधीहै, कोंकणी है, मणिपुरी है, नेपाली है, बोडो है, डोगरी है, मैथिली है, संथाली है, यह संविधान में प्रदत्‍त जो 22 भारतीय भाषाएं हैं, यह हमारी आत्मा हैं। इसमें ज्ञान भी है, विज्ञान भी है, आचार भी है, व्यवहार भी है, संस्कार भी है, हमारी परंपराएं भी हैं। फिर इन भाषाओं की बात  क्‍यों न करें? पहलेक्‍या दुनिया की बात करें औरअपने घर को छोड़ दें? अपनी भाषा को छोड़ दें, अपने संस्कारों को छोड़ दें, अपनी परिस्थितियों को छोड़ दें, तो क्‍या शिक्षा के माध्‍यम से हम नागरिक देश के लिए पैदा कर रहे है या दुनिया के लिए पैदा कर रहे है?इसी कारण से आज मेरे देश के 8 लाख से भी अधिक बच्चे बाहर पढ़ रहे हैं। इस देश की प्रतिभाऔर पैसा दोनों बाहर चला गया। लगभग पौने दो लाख करोड़ से भी अधिक रूपये प्रति वर्ष बाहर जा रहे हैं।हमारी जो प्रतिभाएं छोटे-छोटे  पैकेज को पाने की दौड़ एवं लालच में बाहर चली जाती हैं, वे फिर उसी देश की अर्थव्यवस्था को, तकनीकी को, विज्ञान को बढ़ाने में जुट जाते हैं मैं तो सारा अध्ययन कर रहा हूं। मैंने कहा हिंदुस्तान के लोग कहां-कहां है?दुनिया के जितने विश्वविद्यालयों को मैं देखता हूंअधिकांश में हिंदुस्तान के लोग है। मैं देख रहा हूंचाहे गूगल हो या माइक्रोसॉफ्ट हो या इन जैसी दूसरी कोई कम्‍पनी हो इन कंपनियों में भी सीईओ अमेरिका का नहीं हैं वो भी हिंदुस्तान कहा ही है। इन सभी प्रतिष्‍ठित पदों पर बैठे हुए लोग, हमारे ही संस्‍थानों से पढ़े हुए लोग हैं इसलिए ऐसा नहीं है कि हमारी शिक्षा में गुणवत्ता नहीं है। हमारी शिक्षा में गुणवत्ता नहीं होती तो यहां का आईआईटी से पढ़ा हुआ विद्यार्थीदुनिया में क्यों लीडरशिप ले रहा है? हमारे विश्वविद्यालयों का पढ़ा छात्र दुनिया में प्रतिष्‍ठित पदों पर क्यों है? यह हमारी शिक्षा है ऐसा नहीं कि वह जीर्ण-शीर्ण शिक्षा है। लेकिनहमेंअब थोड़ा सा मन को भी बदलना है। विदेशों में पढ़ाई के नाम पर दो लाख करोड़ रुपए प्रति वर्ष जा रहा है। मेरे देश का पैसा जा रहा है और मेरी देश की प्रतिमा भी जा रही है अब इसको रोकना है। इसलिए हमने जहां ‘स्टडी इन इंडिया’ अभियान लिया वहीं हमने‘स्टे इन इंडिया’ भी किया। ‘स्टडी इन इंडिया’ में तो हम लोगों को देना चाहते हैं क्‍योंकि हमारे पास देने के लिए है यदि दूसरे देशों के पास देने के लिए है तो हमारे पास तो उनसे हजारों गुना ज्यादा चीजें  हैं।उनकी जरूरत है और हम देंगे भी लेकिन देने के लिए रास्ता चाहिए और रास्ते के लिए पहले यहसब चिंतन चाहिए जो आज शुरू हो रहा हैं। मैं ये समझता हूं कि यह जो भारतीय भाषाएं और उनमें जितने हमारे ग्रंथ हैं, भारतीय भाषाओं में अकेले संस्कृत में हीहजारों-हजारों ग्रन्थ हैं। आखिरक्योंजर्मनी जैसा देश उन ग्रन्थों का अनुवाद करने में रात-दिन जुटा हुआ है और यहां से हजारों आचार्यों को उच्च वेतन पर अपने यहां बुला रहा है उसको मालूम हैकि इन ग्रंथों में ज्ञान-विज्ञान का खजाना छिपा है तो फिर हम क्या कर रहे है? देश की आजादी के 70 वर्ष हो गये हैं, किसी भी राष्ट्र की अपनी भाषा होती है। हमने कहा हमारे लिए सारे देश की भाषाएँ महत्‍वपूर्ण एवं सम्‍मानीय हैं।किसी भीप्रदेश पर कोई भी भाषा थोपी नहीं जाएगी। लेकिन हां, गांधी जी ने कहा था किइस देश की सम्पर्क भाषा हिन्दी होनी चाहिए। अम्बेडकर जी ने कहा था कि इस देश की एक तो ऐसी भाषा होनी चाहिए जो सबको एकसूत्र में पिरो करके रख सकें। उन्होंने कहा था वो एक सुर में पिरोने वाली भाषा हिंदी है तो गांधी जी और हमारे संविधान के निर्माताअम्बेडकर जी इन दोनों की भावनाओं सेहम खिलवाड़ कैसे कर सकते हैं? इसलिए गांधी जी के नाम पर जो अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय, वर्धा है, जिसकेकुलपति जी से लगातार  मैंने इस बात को लेकरचर्चा की है।पूरी दुनिया में लोग हिन्दी को पढ़ना चाहते हैंहिन्‍दी भाषा में कितना शब्द सामर्थ्य है और फिर हमारी तो जितनी भी यह भाषाएं हैंइन सबके शब्दों को हिन्‍दी में समाहित करने की हमारे संविधान ने अनुमति प्रदान की जब अटल जी ने सबसे पहले हिन्दी में संयुक्त राष्ट्र संघ में अपना जब वक्तव्य दिया था तब देश में कितने खुशी कीलहरें थी। ऐसा लग रहा था कि कुछ बड़ी चीज मिल गयी है क्योंकि देश को अपनी भाषा से स्वाभिमान महसूस होता है। जब इस देश के प्रधानमंत्री भाषण हिन्दी में देते है तो कोई भी समझ सकेगा हिन्दुस्तान का है, कोई भी यह नहीं बोलेगा कि यह दूसरे देश का है क्योंकि हिन्दी देश की पहचान है और इसलिए मुझे लगता है। हिन्दी का किसी से कोई विरोध नहीं है। मैं सोचता हूं कि हिन्दी की किताबें तमिल में, तमिल की किताबें हिन्दी में क्यों न अनुवाद हों, तेलगू की किताबें हिन्दी में क्यों नहीं अनुवादित हो, मलयालम की किताबें क्यों नहीं हिन्दी में अनुवादित हों।मेरीतेलगू भाषा में समर्थता है, जो उसके लेखक हैं, जो उनका विचार है उसको भी तो पूरे देश के अंदर हमको सरसाना है। कुछ लोग केवल भाषा के नाम पर राजनीति करते हैं, अपने आप उनकी दुकानें बंद हो सकती हैं। हमारे लिए तमिल, तेलुगू, मलयालम, कन्नड़, गुजराती, मराठी, बंगाली, असमिया, ओड़िया, संस्कृत, हिन्दी, उर्दू सब हमारी भाषाएं हैं। सब हमारी भाषाएं हैं लेकिन हां, उन भाषाओं को ऊपर उठाने की जरूरत है। मुझे इस बात की खुशी है कि यहां पूरे देश भर के पैंतालीस भाषाओं के अनुवादक आज एकत्रित हुए हैं। आप एक नया इतिहास रच रहे हैं, इसलिए मैं आप सबको ढेर सारी बधाई देना चाहूंगा। मैं शुभकामना भी देनाचाहता हूं कि जिस मन से आप एकत्रित हुए हैऔरजो यह अभियान शुरू हुआ है यह सामान्‍य विभाग का अभियान नहीं है, यह केवल विश्वविद्यालय भर काअभियान नहीं हैबल्‍कि यह तो देश का अभियान है।मैं सोचता हूंआज सुश्रुत को कितने लोग पढ़ रहे हैं, सुश्रुत शल्य चिकित्सा का जनक था उसे आप कितनी भाषाओं में पढ़ा रहे हैं? दूसरे देशों के लोगों को यह पता नहीं है कि सुश्रुत का जन्म इस देश की धरती पर हुआ है। सुश्रुत से संबंधित जितने भी ग्रन्थ हैं उनका सभी भारतीयभाषाओं एवं अन्‍य भाषाओं में अनुवाद होना चाहिए। ‘आयुशो वेदा आयुर्वेदा’की बात करने वाले चरक कीजो‘चरक संहिता’ है इसका भी सारी दुनिया की भाषाओं में अनुवाद होना चाहिए लेकिन पहले आपने भारत की भाषाओं में इन संस्‍कृत ग्रंथों का अभियान के रूप में अनुवाद होना चाहिएहिंदी और संस्कृत तो सोहदरा हैं, एक भी ग्रंथ नहीं छूटना चाहिए था जो हिन्दी में अनुवादित न हो। मैं अनुरोध करना चाहता हूं आचार्य रजनीश से कि आपकी अच्छी टीमें है आप लीडरशीप लीजिए और यहां गांधी जी के नाम पर स्‍थापित विश्‍वविद्यालय मेंइतिहास रचिए। देश की आजादी के बाद गांधी जी को सम्मान मिला देश को सम्मान मिला और देश के संविधान को सम्मान मिला है।  संस्‍कृत के इन सारे अमूल्‍य ग्रंथों को हम हर कीमत पर अनुवादित करेंगे। पहले चरण में हिन्दी में करेंगे और उसके बाद तमिल में करेंगे, तेलगू में करेंगे, मलयालम में करेंगे तथा भारत की संविधान में उल्‍लेखित सभी22 भाषाओं मेंकरेंगे और उसके बाद विश्व की भाषाओं में भी करेंगे। विश्व के लोगों से आह्वान करेंगे कि आप भी इसकी खुशबू को लो, आपकोदेने के लिए हमारे पास बहुत कुछ है और मैं समझता हूं यह संकल्प लेने की जरूरत है। इस समाज में बहुत सारे लोग हैं जो केवल किंतु-परंतु करते हैं। मैं हमेंशा आग्रह करता हूंकिउनकी परवाह नहीं करनी चाहिए। नकारात्मक सोच के व्यक्ति से दूर रहिए। कोशिश करें कि वह नकारात्‍मक व्‍यक्‍ति भी हमारे सम्‍पर्क से सकारात्मक हो जाए लेकिन उस पर अपनी शक्ति को खपाना नहीं चाहिए। सकारात्मक लोग ही बहुत हैं उनको थोड़ा सा पुश करने की जरूरत है। अभी भी तो आपने यह पहल की और एक हजार लोग बाहर निकल कर आ गए।यह है सकारात्मकता कि जिनमें छटपटाहट है वो कुछ करना चाहते हैं। जिसको कुछ नहीं करना होता वह सबसे ज्यादा बोलता है  और केवल आलोचना करता है। पत्रकारिता का छात्र होने के नाते मुझे विश्लेषण करने कीऔर अध्ययन करने की थोड़ी सी प्रवृति है। इसलिए मैं जब उन लोगों की ओर देखता हूं कि यहआदमी बोलता तो बहुत है लेकिन जब पूछता हूं कि कि क्या-क्या किया? तब उत्‍तर मिलता है कि सर, कुछ भी नहीं किया तो भाई फिर केवल बोलते क्यों हैं? उसको बोलना भी है लेकिन पहलेकरना भी है। केवल बोलकर के काम नहीं चलेगा, केवल चिंता करके और चर्चा करके काम नहीं चलने वाला है। हमारे लिए एक-एक कदम भी बहुत महत्वपूर्ण हैं। हमारा एक शब्द भी क्रियान्वन होता वो हमारे लिए महत्वपूर्ण है और मैं इस बात के लिए महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय, वर्धा को बधाई देना चाहता हूं कि एक कदम जिसकी लंबे समय से जो मांग थी, जो छटपटाहट थी आज इस दिशा में विश्‍वविद्यालय ने अपने कदम आगे बढ़ाये हैं। यशस्‍वी प्रधानमंत्री जी के मार्गदर्शन में अभी हम नई शिक्षा नीति को लेकर आये हैं जिसमें बहुभाषिकता के साथ ही भाषा संस्‍थानों के निर्माण पर भी बल दिया गया है। दुनिया के तमाम विश्वविद्यालयों ने, दुनिया के तमाम देशों ने, अभी तीन-चार दिन पहले ब्रिटेन के  विदेश मंत्री जी हमारे आवास पर आकर के और इतनी खुशी व्यक्त करके गए हैं कि यह विजनरीशिक्षा नीति है यह देश और दुनिया के अंदर बहुत आगे बढ़ेगी। कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय ने न केवल तारीफ की बल्‍कि उन्‍होंने अपने एशिया हेड को भेज करके हमको सम्मान भी दिया और अभी उन्होंने पत्र भेजकर भी आमंत्रित किया कि यह जो नई शिक्षा नीति है भारत की, इसको हम पूरे विश्व के शिक्षा जगत के साथ जुड़कर बढ़ाना चाहते हैं। अभी संयुक्त अरब अमीरात के जो हमारे शिक्षा मंत्री थे उनके साथ संवाद हुआ, उन्होंने कहा हम अपने देश में इस शिक्षा नीति को लाना चाहते है।चाहे आस्ट्रेलिया हो,चाहे मोरिसश हो पूरी दुनिया इस शिक्षा नीति को लेने के लिए तैयार है।हमारे जीवन मूल्यों की पुस्तकें भी सभी भाषाओं में होनी चाहिए। यूनेस्को की डीजी से जब पेरिस में चर्चा हो रही थी, तो उन्होंने एक चिन्ता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि आजकल विद्यार्थियों में अनुशासनहीनता हो रही है और हिंसक प्रवृत्तियां बढ़ रही हैं। वैमनष्यता हो रही है, यह हो रहा है, वो हो रहा है कईचीजें उन्‍होंनेगिनाई। तब मैंने कहा कि हमारी शिक्षा व्‍यवस्‍था ने व्‍यक्‍ति को मनुष्‍य बनाने के स्‍थान पर केवल मशीन बनाया है इसलिए हिंसा और अनुशासनहीनता जैसी प्रवृत्‍तियां बढ़ी हैं। मेरे देश की परंपरा रही है कि हमने विश्व को मार्किट कभी नहीं माना। जिन लोगों ने विश्व को मार्किट माना वो इस पूरी दुनिया कोबाजार मानते हैं और तो हमने तो पूरी दुनिया को अपना परिवार मानाक्योंकि हमारी प्रबल धारणा रही है कि परिवार में प्यार होता है और बाजार में व्यापार होता है। हम अपने परिवार की तरह पूरे विश्व को देखना चाहते हैं, रखना चाहते हैं और साथ मिलकर चलना चाहते हैं। इसीलिए यह जो हमारी नई शिक्षा है, यह मनुष्य को एक देश के लिए एक आदर्श नागरिक बनाएगी तो विश्व मानव भी बनाएगी।मैं बहुत बधाई देना चाहता हूं कि आपने जो काम शुरू किया है और निश्चित रूप सेइससे बहुत बड़ा परिवर्तन होगा। मैं जब पीछे के समय एक कमेटी का चेयरमैन था तो उसमेंकोई भी चीजें हिन्दीमें आती ही नहीं थी। जब मैंने पूछा कि ऐसा क्योंहो रहा है तो 10 दिन बोलेकि अनुवादक ही नहीं मिल रहे है। इस देश में अंग्रेजी का तो अनुवादक होना चाहिए था लेकिन हिन्दी का अनुवादक क्यों?ठीक उल्टा हो रहा है तो इसको हमको तेजी से बदलना होगा हालांकि विगतचार-पांच वर्षों में हमारे प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी जी की अगुवाई में पीछे के समय में प्रधानमंत्री जी ने कहा कि विद्यार्थीअपनी मातृभाषा में इंजीनियर भी बन सकेगा और डॉक्टर भी बन सकेगा। देश में कितनी खुशी की लहर आई कि, अच्छा आपनी मातृभाषा में अब मेरा बेटा डॉक्टर बन जाएगा।यदि हमें बच्‍चे को मातृभाषाओं में डॉक्‍टर तथा इंजीनियर बनाना है तो निश्चित ही उन पाठ्यक्रमों को अनुवादित करके और अच्छे तरीके से उस तक पहुँचाना पडेगा।चाहे हमारा स्वयं है, चाहे स्वयं प्रभाहै, हमारी दीक्षा है, हमारी ई-पाठशाला है, हम चाहते हैं कि इन सबका सभी भारतीय भाषाओं में अनुवाद हो और जो अनुवादक हैं वो किन-किन भाषाओं के और किन-किन विषयों के अनुवादक है इसका अगली बैठक में हम थोड़ा-सा परामर्श भी करेंगे।अभी हमारे कुछ आईआईटीज ने भी कहा कि पहले वर्ष में वो भी भारतीय भाषाओं में पाठ्यक्रम लेकरआएंगें ताकि उसको यह न लगे कि  वो आईआईटीज तक नहीं पहुँच सकता। हमारे कुछ आईआईटीज ने यह करना शुरू भीकर दिया है अब जेईई की जो परीक्षाएं हैं वो भी तेरह भारतीय भाषाओं में करने का सुनिश्चित हुआ है।देश के इतिहास में पहली बार होगा कि 13 भारतीय भाषाओं में जेईई की परीक्षाएं आयोजित होंगी और अभी हम कोशिश कर रहे कि नीट को भी किस तरीके से भारतीय भाषाओं में आयोजित किया जा सकता है मैं समझता हूँ कि यह बहुत अच्छी पहल है। अभी लोग गूगल में जाकर अनुवाद का अर्थ का अनर्थ हो रहा है और जो अनुवादक भी हैं वो इतने क्लिष्ट हैं कि जब हम अपने अध्यादेशों को पढ़ते हैं तो हम सिर पकड़ करके बैठ जाते हैं तो दूसरा आदमी तोइनसे दूर होगा ही मुझे याद है कि एक दिन जब हम चर्चा कर रहे थे नई शिक्षा नीति पर तो शशि थरूर जी जो पहले तोबहुतविरोध करते थे लेकिन जब हम लोगों कीचर्चा हुई तो बात उनकी समझ में आई तो उन्होंने कहा कि आपकी बात से मैं सहमत हूं।मेरा अनुवादकों से अनुरोध रहेगा कि क्‍लिष्‍टतान लाएं, हम आम आदमी की भाषा में उसका अनुवाद करें, आम आदमी की भाषा में हम उस बात को कहने की कोशिश करें अन्‍यथा  हिन्दी से लोग दूर हो रहे हैं,उनको लग रहा है कि इतनी क्‍लिष्‍ट भाषा है किउसको दो बार रटने पर भी नहीं आ रहा है। आम बोलचाल की भाषा में कैसे कर के अनुवाद हो सकते हैं, इसकी जरूरत है।अभी वैज्ञानिक शब्दावली आयोग से भी मैं चर्चा कर रहा था कि आप ऐसे शब्‍द तैयार करें कि आम आदमी को उस शब्द को रटना न पड़े, उसकेजीवन में जैसे दिख रहा है उसको सहज सरल हिन्दी में प्रसारित करें,  प्रचारित करे, अनुवाद करें। मुझे भी खुशी है कि आपने एक अनुवादक पोर्टल बनाया है, हमने भी कोविड़ के समय में युक्ति पोर्टल बनाया था। हमने आह्वान किया कि जिन-जिन भी आईआईटीज ने काम किया है, जो भी शोध किया है वो युक्ति पोर्टल पर डालो।‘युक्ति-2’ पर हमने कहा कि जितनेआइडियाज आएहैं उनका एक प्लेटफॉर्म बना दो, तो मेरा अनुरोध रहेगा कि एक पोर्टल ऐसा भी बनाया जाए जिस पोर्टल पर सारे लोगों के आइडियाज आ जाएं। बहुत लोग सोचते हैं कि मेरी सामग्री का इस भाषा में अनुवाद हो जाए कहां ढूंढते-फिरते रहते हैं, तो कहीं एक जगह जो आपका प्लैटफॉर्म बनेगा, उस पर विजिट करने के बाददेश और दुनिया का कोई भी आदमी कहेगा तमिल का यह है, तेलुगू का यह है, हिंदी का यह है, मलयालम का यह है, मराठी का यहहै बंगाली का यहहै तो पता चल जाएगा कि किस-किस भाषा के कौन-कौन और किन विषयों के वो विशेषज्ञ हैं तो उससे बहुत सरलता होगी। साहित्य अकादमी हो, चाहे एनबीटी हो, चाहे एनसीईआरटी हों, विश्वविद्यालयों हों, सभी यदि एक प्लेटफार्म परमिल जाए सबको तो सब लोगवहां से उपयोग करेंगे और मेरे श्रोताओं यहअभियान की तहत होना जरूरी है और जो बड़े प्रकाशक हैं उनसे भी मेरा निवेदन रहेगा किइसके लिए जो अनुवादक हैं उनको अपने यहां इंटर्नशिप दें। वो अपने यहां यदि इंटर्नशिप देंगे तो उनका भी भला होगा और अनुवादक संघ की प्रेरणा से जो नये लोग सामने आएंगे तो उनको भी एक अच्छा रास्ता मिल सकता है।हम इसको अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी लेकर जा सकते हैं क्योंकि दुनिया को मालूम है कि भारत के इन ग्रंथों में असीम संभावनाएं हैं। एक बार फिर मैं आप सबको बहुत धन्यवाद देना चाहता हूं कि आपने प्रतिष्ठित 25 पुस्तकों के अनुवाद के कार्य का निर्णय लिया है।यहअच्छा है कि पहले संचितऔर उसके बाद फिर सृजित फैले। संचित का भी आपके पास अथाह भंडार है,उस संचित भंडार को कैसे करके सामने लाया जा सकता है और उसके बाद जो सृजित है जो वर्तमान में सृजित हो रहा है उननई चीजों को भी सामने लाना है।आज जो नए लेखक हैं, नए कहानीकार हैं,विभिन्न विषयों में जो नए चिंतन के साथ आगे आ रहे हैं आप उनको कैसे करके आगे लासकते हैं, इस पर भी बहुत काम करने की जरूरत है। एक बार फिर मैं आप सभी को बहुत शुभकामनाएं देता हूं और इस अवसर पर जो 1 हजार 11 लोगहमारे साथ जुड़े हैं, यह संख्या भी कुछ चमत्कारिक हो गई है जोनिश्चित रूप में व्‍यापकपरिवर्तन का सूचक लग रहा है। मैं सबको शुभकामना देता हूँ, बहुत बधाई देता हूँ।

 

बहुत-बहुत धन्‍यवाद!

 

कार्यक्रम में गरिमामयी उपस्‍थिति:-

  1. डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’, माननीय शिक्षा मंत्री, भारत सरकार
  2. प्रो. रजनीश कुमार शुक्‍ल, कुलपति, महात्‍मा गांधी अंतर्राष्‍ट्रीय हिन्‍दी विश्‍वविद्यालय, वर्धा
  3. भारतीय अनुवाद संघ के विशिष्‍ट अधिकारी

 

 

 

 

 

 

लवली प्रोफेशनल यूनिवर्सिटी द्वारा गुरू नानक देव जी की 551वीं वर्षगांठ पर शांति, न्याय और वैश्विक सद्भाव पर आयोजित वेबिनार

लवली प्रोफेशनल यूनिवर्सिटी द्वारा गुरू नानक देव जी की 551वीं वर्षगांठ पर शांति, न्याय और वैश्विक सद्भाव पर आयोजित वेबिनार

 

दिनांक: 18 दिसम्बर, 2020

 

 

माननीय शिक्षामंत्री, डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’

 

आज के इस अवसर पर जबकि गुरु नानक देव जी के 550 जन्मोत्सव को पूरी दुनिया बहुत उत्साह व उमंग के साथ मना रही है और इस उत्साह और उमंग की इस लहर में, इस वेग में इसको लीडरशीप आगे देते हुए जो यह लवली प्रोफेशनल यूनिवर्सिटी है, यहहमेशा निर्माणिक क्षेत्र में पहली पंक्ति में खड़े हो करके काम करता है और आज भी इस विश्वविद्यालय ने पहली पंक्ति में वो महान विभूति जिसकी वाणी आज पूरे विश्व के लिए अमृत है उन गुरु नानक देव जी के 550वेंजन्मोत्सव के अवसर पर अपने विश्वविद्यालय में एक पीठ स्थापित की है और इस अवसर पर छात्रों के लिए बहुत सहज और सरल भाषा में गुरुदेव के जीवन से जुड़ी कुछ घटनाओं को, कुछ बातों को,तथा उनकी वाणी को बच्चों तक पहुँचाने के लिए इस पुस्तक के अंग्रेजी अनुवाद के संस्करण का लोकार्पण किया है मैं इस अवसर पर उपस्थित पंजाब राज्य के तकनीकी शिक्षा और औद्योगिक प्रशिक्षण मंत्री आदरणीय श्री चरनजीत सिंह चन्नी जी, एक्सीलेंसी रोबेन गोसाई जी, अशोक मित्तल जी चांसलर लवली प्रोफेशनल यूनिवर्सिटी,श्री मार्टिन सिंह जी जो कनाडा से जुड़े हैं,श्री गुनेन्द्रर मान जी जो निदेशक है ग्लोबल इंस्टीट्यूट ऑफ श्री स्टडीज न्यूयार्क अमेरिका के, इस विश्वविद्यालय के कुलपति, रजिस्ट्रार और उपाध्यक्ष, अध्यक्ष और सभी अध्यापकगण और पूरी दुनिया से लगभग 64 देशों से जो इस विश्वविद्यालय के अंदर पढ़ रहे हैं सभी छात्र-छात्राएं, सभी अभिभावक औरआज जो अपने विशिष्ट अन्य अतिथिगण हैं। मैं इस अवसर पर आपका अभिनंदन कर रहा हूँ, आपका स्वागत कर रहा हूं। मुझे इस बात की खुशी है कि वैश्विक सद्भावना और मानवता के लिए गुरुवाणी की कितनी आवश्यकता आज है। इस विषयपर अंतर्राष्ट्रीय वेबीनार आपने सुनिश्चित किया है और मुझे भरोसा है कि जो गुरु की वाणी है वह निश्चित रूप से मानवता के लिए सार्थकता लाकर के लोगोंकोएक नया जीवन देगीऔर दुनिया से जो वैमनस्यता है, जो असहिष्णुता है, जो हिंसा है वो मिटेगी और मानवता के सृजन की एक नई आधारशिलाबहुत तेजी से आगे बढ़ेगी। मैं एक बार सभी जो लोग जुड़े हैं उनका अभिनंदन कर रहा हूँतथास्वागत कर रहा हूँ। मेरे हिन्दुस्तान की परंपरा रही है किहमने गुरु को हमेशा भगवान के तुल्य माना है और हमने कहा है‘गुरुर ब्रह्मा, गुरुर विष्णु,गुरुर देवो महेश्वरः गुरुः साक्षात परब्रह्मा तस्मै श्री गुरुवे नमः।’ हमने हमेशा गुरू को ईश्‍वर का रूप माना है तथा हमने गुरू में भगवान के दर्शन किये हैं। हमारे कबीर कहते थे कि ‘गुरु गोविन्द दोनों खड़े, काके लागू पाय, बलिहारी गुरु आपने, गोविन्द दियो बताये’ यदि गुरु और भगवान आमने सामने खड़े हों तो पहले गुरु के चरणों में वंदनहोता है क्‍योंकि गुरु नेही भगवान तक पहुँचाने का मार्ग प्रशस्त किया है। इसलिए मेरे लिए आप पहले पूजनीय हैं क्योंकि वहां तक पहुँचाने का काम आपने किया है, आपके मार्ग-दर्शन में हुआ है तो यह हमारी परंपरा रही है और गुरु नानक जी ने जिस तरीके से, जिन विषम परस्थितियों में उस समय की स्थितियों में जिस तरीके से मानवता का हमको पाठ पढ़ाया, जिस तरीके से बहुत सहज-सरल बातों में करके और जिन्दगी का पाठ पढ़ाया, मानवता का पाठ पढ़ाया, वह वंदनीय है। हमारे विचारों को किस तरीके से मनुष्‍य को ईश्‍वर की सबसे सुन्‍दर कृति है।वो कैसे अच्छी रह सकती है तथा द्वेष भाव कैसे दूरहो सकता है। सारा विश्व एक परिवार है,वो परिवार कैसे अच्छा रह सकता है, यह हमारे गुरुदेव ने हमको सिखाया हमने यह उनकी वाणी से सीखा है। मुझे बहुत खुशी होती है कि इस विश्वविद्यालय के अशोक जी जिनको मैं बधाई देना चाहता हूं कि आप कहीं न कहीं रचनात्मक दिशा में जुड़े रहते हैं और मानवीय मूल्यों के शिखर पुरुष गुरुदेव के नाम पर आपने आश्चर्य स्थापित किया हैऔर मुझे भरोसा है कि आपका यह प्रयास पूरे देश और दुनिया में एक नए आयाम को स्थापित करेगा। आज पूरी दुनिया को गुरुजी की उस वाणी की आवश्‍यकता है। जो शांति और सुख इन दोनों का अमृत बरसायगी।उनकी वाणी आदमी को आगे बढ़ने की प्रेरणा देगी तो निश्चित रूप से आपके विश्वविद्यालय में जो आज यह स्थापित हुआ है इसके लिए मैं आपको बहुत बधाई देना चाहता हूँ औरधन्यवाद देना चाहता हूँ।मैंने गुरू नानक देव जी अमृत वाणी को बहुत सरल भाषा में बच्‍चों तक पहुंचाने के लिए यह छोटी सी पुस्‍तिका तैयार की थी, जिसके अंग्रेजी संस्‍करण को भी आज आपने किया है, उसके लिए धन्यवाद तथा बधाई देना चाहता हूँ और डॉक्टर राजेश नैथानी ने जिस तरीके से कहा कि पूरी दुनिया में यह पुस्तक छा रही है एवं लोगों में बहुत लोकप्रिय हो रही है देश के नहीं बल्कि दुनिया की विभिन्न भाषाओं में हमारी यह धरोहर बच्चों तक पहुंच रही है। पूरी दुनिया यह जो युवा हैं, यह जो बच्चे हैं इनकोहम अपनी कुछ चीजें दे सकते हैं, बांट सकते हैं तो मुझे ज्यादा अच्छा लगता है। वैसे भी आपको मालूम है कि हिन्दुस्तान दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है और इस दुनिया के बड़े लोकतांत्रिक देश मेंएक हजार से अधिक विश्वविद्यालय हैं,45हजार से अधिक डिग्री कॉलेज हैं, यहां 16 लाख के लगभग स्कूल हैं और अध्यापकों को देखें तो 1 करोड़ 10 लाख से भी अधिक यहां पर अध्यापक हैं और छात्र-छात्राओं की संख्या को देखें तो कुल अमेरिका की जितनी आबादी नहीं है उससे भी ज्यादा 33करोड़ छात्र-छात्राएं हैं। यह है इस हिन्दुस्तान का विशाल दर्पण और इसलिए जो युवा है उसको गुरूजी के विचारों के निकट लाना है। हमारी कोशिश है और इसकीइस समय न केवल हिंदुस्तान को बल्कि पूरीदुनिया को जरूरत है क्योंकि पीछे के समय जब मैं यूनेस्को में गया था तभी मेरे मन में ऐसा विचार आया। यूनेस्को की डीजी ने कहा कि असहिष्णुता बढ़ रही है तथा लोगों में छोटी-छोटी बातों में पारस्परिक असमानता है एवं तमाम प्रकार की हिंसा का वातावरण बन रहा है।उनको तब ही मैंने यह कहा कि हिंसा की प्रवृत्ति बढ़ रही हो यास्वार्थ लोलुपता बढ़ रही हो और ऐसी तमाम बहुत सारी बातें हैं जिसकी जड़ में, जिसके मूल में, मानवीय मूल्य हैं। जब आदमी मानवीय मूल्यों से होकरके नहीं गुजरता है तथा जब उसको मनुष्य बनाने की जगह मशीन बनाते हैं और उसका एक ही लक्ष्य है कि कैसे करके वह अपनी सुख सुविधाओं को जुटा सकता है।हमने उसे लक्ष्य नहीं दिया कि कैसे वह अपने संस्कारों को पा सकता है एवं वो अपने विचारों को पा सकता है। अपने जीवन को सार्थक करने की दिशा में आगे बढ़ने की अभिलाषा पा सकता है तो जब इसका मानवीय मूल्‍यों से जुड़ाव नहीं होतातो नये संकट पैदा होते है और इसलिए मैं यह समझता हूँकिआज की परिस्थितियों में यह बहुत जरूरी है कि गुरूदेव की उस वाणी को जिसमें उन्‍होंनेपूरी दुनिया को अपना माना,उन्होंने ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ की बात की है। गुरुदेव ने कहा पूरी वसुधा हमारा परिवार है और जब हम परिवार मानते हैं तो परिवार में सुख और दुख मिल करके कहते हैं ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः, सर्वे सन्तु निरामया, सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्यद् दुख भागभवेत।‘अर्थात् जब तक धरती पर एक इंसान भी दुखी होगा तब तक मैं सुख का एहसास नहीं कर सकता। मैं दूसरों के दुखों को दूर करना चाहूंगा तभी मैं सुखी हो सकता हूं। यहहैंहमारे गुरुदेव के विचार, यह है मेरी संस्कृति जिसमें कहा गया है कि उतना ही ग्रहण करो जितनी जरूरत है। गुरुदेव ने भी यही तो दिखाया, यही तो सिखाया किजितना आपको उपयोग करना उतना करो बाकी सबको मिलकर के बांट दो। जिसके पास नहीं उसको मिल करके बांटो। इसीलिए जो लंगरकी प्रथा की, सामाजिक समरसता की बात की,जिसके पास जो कुछ है अपनीजितनीजरूरत है उसके बाद जो बचता है सब बांटो, यह है हमारा जीवन, यहहै गुरु की वाणी। यह बहुत सारे अहम्को खत्म करके समस्या का समाधान करती है। इसलिए इस वाणी की आज जरूरत है जब दुनिया आतंक के ढेर पर खड़ी हो जब दुनिया में वैमनस्यता बढ़ रही हो, स्वार्थ लोलुपता बढ़ रही हो। जबएक ओर पर्यावरण का संकट हो और दूसरी ओर तमाम दुख और दर्दों से घिरा मनुष्य हो, ऐसे वक्त पर गुरु नानक देव जी की यहवाणी बहुत सार्थक होती है और पूरी दुनिया की मानवता के लिए अमृत का काम कर सकती है। मेरा सौभाग्य है कि मैं उस हिमालय से आता हूँ जहां हिमकुण्ड साहिब है।उसका विकास किस तरीके से हो सकता है हम लोगों ने सभी गुरुद्वारों के साथ बैठ करके उसका विमर्श किया। मेरा सौभाग्य है कि उसी धरती पर रीठा साहिब भी है। मेरा सौभाग्य है कि उत्तराखंड की उसी धरती पर गुरु नानक मत्था भी है और इसलिए वो चाहे हेमकुंड साहिब हो, चाहे वो गुरु नानक मत्था हो, चाहे रीठा साहिब हो यह उस हिमालय की उस धरती पर है तब समझ आता है कि गुरुदेव का और हमारे गुरुओं का कितना बड़ा विजन रहा होगा। आज तो हिमालय से जीवन देने के लिए जो उनकी उत्सुकता और जो उनके अंदर छटपटाहट थी उसका दर्शन हम लोग कर सकते हैं और इसलिए मैं समझता हूं कि प्रमुख शिक्षा ‘वंड छको और नाम जपो’ हमेशा सार्थक रहेगी,मैं सोचता हूँ भक्तिकाल कीसर्वप्रमुख विभूतियों में सच्चा सौदा करने वाले गुरु नानक जी अद्भुत थे और हमेंगुरु नानकदेव के संदेश को जन-जन तक पहुंचाना है।पूरी दुनिया के लोग उनकीवाणी का रसास्वादन करअपने जीवन में आगे बढ़ा सकते हैं। मुझे इस बात की खुशी है कि हमारे देश के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने गुरुदेव के 550वें प्रकाशोत्सव में पूरे देश के लिए व्यापक तरीके से तमाम कार्यक्रमों को करने की बात की है और इतना ही नहीं राष्ट्रीय पुस्तक न्यास ने अभी तीन पुस्तकें गुरू नानक देव जी के जीवन और सीख पर प्रकाशित कर पूरे देश और दुनिया में व्यापक तरीके से प्रसार करने का सराहनीय कार्य किया है। इसी कड़ी में पंजाब के गुरु नानक देव विश्वविद्यालय में लगभग 400 करोड़ की लागत बहुत बड़े केंद्र की स्थापना की जा रही है। सौ करोड़ से भी अधिक उसके लिए अभी जारी हुआ है। इसके लिए अंतरराष्ट्रीय सेमिनार का आयोजन भी किया जा रहा है ताकि गुरुदेव की 550वें प्रकाशोत्सव पर हम उनके विचारों को जन-जन तक पहुंचा सकें। आप सभी इस महत्‍वपूर्ण आयोजन में जुटे, आप सबका, बहुत-बहुत धन्‍यावाद।

धन्‍यवाद!

 

कार्यक्रम में गरिमामयी उपस्‍थिति:-

  1. डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’, माननीय शिक्षा मंत्री, भारत सरकार
  2. श्री चरनजीत सिंह ‘चन्‍नी’, माननीय तकनीकी शिक्षा और औद्योगिकी प्रशिक्षण मंत्री, पंजाब सरकार
  3. श्री अशोक मित्‍तल, कुलाधिपति, लवली प्रोफेशनल युनिवर्सिटी, चंडीगढ़ (पंजाब)
  4. श्री रमेश कुमार, कुलपति,लवली प्रोफेशनल युनिवर्सिटी, चंडीगढ़ (पंजाब)
  5. विश्‍वविद्यालय के सभी संकाय सदस्‍य, छात्र-छात्राएं एवं अभिभावकगण।

10वां सीआईआई एजुकेशन समिट

10वां सीआईआई एजुकेशन समिट

 

दिनांक: 11 दिसम्‍बर, 2020

 

 

माननीय शिक्षा मंत्री, डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’

 

10वें सीआईआई सम्‍मेलन में उपस्‍थित सभी भाइयो और बहनों का मैं अभिनन्‍दन कर रहा हूं और मुझे प्रसन्‍नता है कि जैसा कि डॉ. चंद्रजीत बनर्जी ने कहा है कि इस आयोजन में 900 से भी अधिक लोग विभिन्‍न क्षेत्रों के विशेषकर शैक्षणिक संस्‍थानों के लोग आज जुड़े हैं। मुझे इस बात की खुशी है कि एक लंबी यात्रा सीआईआई ने की है। यह संस्‍थान 125 वर्षोंकीयात्रा के बाद भी थका नहीं है और अपनी उन सभी चीजों को नये परिवेश में नये सिरे से एक दिन एक नये अभियान के साथ आगे बढ़ा रहा है। इस अवसर पर सीआईआई शिक्षा परिषद् के अध्‍यक्ष डॉ. बी.वी.आर. मोहन रेड्डी जी, हमारे एआईसीटीई के अध्‍यक्ष डॉ. अनिल सहस्‍त्रबुद्धे जी, डॉ. राम गोपाल राव जी, निदेशक आईआईटी दिल्‍ली, राधिका भरत जी मुझे याद है कि पीछे के समय में हम लोग शिक्षा संवाद में मिले थे जिसमें राधिका जी ने भी बहुत सक्रिय तरीके से भाग लिया था। हमारी नई शिक्षा नीति को बनाने में अत्‍यन्‍त महत्‍वपूर्ण योगदान करने वाले डॉ. पंकज मित्‍तल, महासचिव, भारतीय विश्‍वविद्यालय संगठन, डॉ. चंद्रजीत बनर्जी, महानिदेशक, सीआईआई और सभी उपस्‍थित भाइयों ओर बहनों। मैं समझता हूं कि आज जिस विषय को लेकर के आपने आगे बढ़ाया है वह अत्‍यन्‍त ही महत्‍वपूर्ण है आपने इस समय कहा है कि एक नई दुनिया के लिए नये भारत के निर्माण की जरूरत है। आपने कहा कि उसका रास्‍ता शिक्षा से ही होकर गुजर सकता है। शिक्षा और उद्योग के बीच वह कौन सी कड़ी हो सकती है कि दोनों परस्‍पर मिल करके ऐसे विश्‍व के लिए जो भारत की नजर में एक परिवार हो,एक कुटुम्‍ब हो, विश्‍व का विकसित परिवार हो, जो सभी चीजों से युक्‍त हो, ऐसा परिवार बनाने के लिए नये भारत की जरूरत है। जिस बात को हम हमेशा ही बोलते हैं कियदि विश्व की प्रगति,शांति पूरे विश्व के लिए हिंदुस्तान से होकर गुजरती है तो यदि यहकहते हैं हमतो यहअतिश्योक्ति नहीं है। यह केवल भाषण के शब्द नहीं हो सकते हैं, इतिहास इस बात का गवाह है कि हिंदुस्तान ही विश्व की ओर समृद्धि,शांति और प्रगति का एक बहुत बड़ा आधार है। प्रगति केवल  आर्थिक प्रगति नहीं होती, मात्र कुछसुविधाओं को जुटाना प्रगति नहीं हो सकती, संसाधनों को जुटाना ही मात्र प्रगति नहीं हो सकती। सर्वांगीण प्रगति चाहिए और इसीलिए हमारी धारणा, हमारी भावना विश्व के परिवारके बारे में बिल्कुल अलग रही है। हम विश्व को अपना परिवार मानते हैं इसलिएयहहिन्दुस्तान विश्वगुरू कहलाया गया और इसने जिस तरीके से काम किया पूरी दुनिया के लिए, मानवता के लिए , चाहे वह मनुष्य कहीं काभी क्यों नहीं हैचाहेवो किसी भी जाति, पंथ, संप्रदाय का क्यों नहीं है। जिस भारत के बारे में मेरे देश के प्रधानमंत्री जी ने कहा कि हम को 21वीं सदी का स्वर्णिम भारत चाहिए ऐसा भारत जो स्‍वस्‍थ भारत हो, जो स्‍वच्‍छ भारत हो, जो श्रेष्‍ठ भारत हो, जो आत्‍मनिर्भर भारत हो और जो एक भारत हो, इन सबके बाद में आती है श्रेष्ठता। उसके अंदर बहुत कुछ समाया हुआ है,यहपांच-सात चीजें सामने बोली वो तो हैं ही लेकिन पूरी दुनिया उस श्रेष्ठता के अंदर समाई हुई है जिसमें आपकाविजन भी, आपका मिशन भी, आपका चरित्र भी है, आपका व्यवहार भी है, आचार भी है, आपकी तमाम तरीके की बहुआयामी वो गतिविधियां भीहोती हैं जिससे एक अच्छा नागरिक बन सकता है।इन गुणों की बदौलत वह व्‍यक्‍ति विश्व के लिए एक विश्व मानव बन सकता है और इसलिए जब आपने नई शिक्षा नीति के बारे में बोला जब हम पिछली बार आपके साथ जुड़े थे और हमने यह कहा था किहम एकऐसीशिक्षा नीति ला रहे हैं जो विश्व के फलक पर होगी। यह बात बीच-बीच में कही जाती रही है कि हिंदुस्तान से इसलिए लोग बाहर जा रहे हैं पढ़ने के लिए कि हिंदुस्तान की जो शिक्षा नीति है वो इंटरनेशनल है ही नहीं, ऐसा भी नहीं था। यदि मेरे देश के यह आईआईटी डॉ.राम गोपाल बैठे हैंआपके साथ यह आईआईटी केडायरेक्टर हैं जब मैं उनसे पूछता हूं कि आप बताओ क्या आपके आईआईटी के बच्चे आज कहां-कहां है?यहबताते हैंपूरी दुनिया में छाए हुए और पूरी दुनिया कोलीडरशिप दे रहे हैं। हमारे संस्‍थानों से निकले छात्र आज दुनिया की बड़ी से बड़ी कम्‍पनियों एवं प्रतिष्‍ठित संस्‍थानों को लीड कर रहे हैं तो फिर कैसे कह सकते हैं कि हमारी शिक्षा इंटरनेशनल स्‍तर की नहीं है और फिर यदि आपके किसी के मन में शंका भी थी तो इस नई शिक्षा नीति नेबड़े व्यापक परिवर्तन के साथ, तमाम सुधारों के साथ उन शंकाओं को दूर कर दिया है। अब यह दुनिया का सबसे बड़ा रिफॉर्म होगा। नई शिक्षा नीति दुनिया केसबसे बड़े विमर्श से निकली हुईनई शिक्षा नीति है। यदि देखा जाए तो जो आप लोगों की चिंता है क्योंकि आप उद्योग जगत से जुड़े हुए हैं और यह देश 130 करोड़ लोगों का देश है। इस देश में बाहर से क्या आरहाहैएक बार उसके बारे में विचार कर लीजिए। इस देश में किस चीज की जरूरत है,उसके बारे में विचार कर लीजिए। इसदेश में जो हमारी प्रतिभा हैं और जो आपका हुनर है उसको तकनीकी के साथ जोड़कर के उद्योगों में क्या परिवर्तन करना था, उनकी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए उस गैप को खत्म करने की ज़रूरत थी और इसलिए इस नई शिक्षा नीतिको हम नए कलेवर के साथ लाएं हैं जो भारतीयता के आधार पर खड़ी होगी। जब मैंभारत कहता हूं तो यह सामान्य भारतनहीं होता है। वो भारत कौटिल्‍य का भारत होता है, वो भारत चरकका भारत होता है, वो भारत सुश्रुतका भारत होता है, वो भारत नागार्जुन का भारतहोता है, वो भारत जो पातंजलि का भारतहोता है और वो भारत के उन लोगों का होता है जिन्होंने भारत को विश्वगुरु के रूप में स्थापित किया और ‘‘एतद्देशप्रसूतस्य सकाशादग्रजन्मनः स्वं स्वं चरित्रं शिक्षेरन्पृथिव्यां सर्वमानवाः’’जिनके पास पूरी दुनियां ज्ञान, विज्ञान, अनुसंधान, तकनीकी इस सब को प्राप्त करने के लिए आती थी मैंउस भारत की बात करता हूं। इसलिए आज पूरी दुनिया भारत की ओर देख रही है। यदि मेरे देश के प्रधानमंत्री ने कहा हैकि स्वर्णिम भारत कीजरूरत है उस स्वर्णिम भारत की आधारशिला को लेकर नईशिक्षा नीति आई है।यह नेशनल भी होगी, यहइन्टरनेशनल भी होगी, यहइम्पैक्टफुल भी होगी, यहइन्‍क्‍लुसिवभी होगी, यहइन्‍टरेक्‍टिव भी होगी और यह इनोवेटिव भी होगी, यह इक्विटी, क्वालिटी और एक्सेस की आधारशिला पर खड़ी होगी। इसीलिए जब मैं नई शिक्षा नीति को कहता हूं तो इसमें कंटेंट भी होगा, पेटेंट भी होगा। हम कंटेंट को पेटेंट से जोड़नहीं पाये थे मैं जब मैंसंस्थाओं में जाता हूं तो मैंने एकअनुरोध किया है कि यह पैकेज की होड़ से पेटेंट की होड़ हो सकती है कि नहीं। जिस दिन इस भारत में पेटेंट की होड़ लग जाएगी मेरे युवाओं में उस दिन भारत अपने आप ही पूरी दुनिया कासर्वशक्तिमान राष्‍ट्र बन जाएगा यहअब लोगों को समझ में आ गया है। अब उस राह पर चलना लोगों ने शुरु कर दिया है। इसलिए मैं यह समझता हूं कि जहां हम कंटेंट भी करेंगे,वहांहम कैरेक्टर को भी करेंगे वहां हम उसके टैलेंट को भी खोजेंगे तो उसको विकसित भी करेंगे औरउसका विस्तार भी करेंगे। यह जो नयी शिक्षा नीति है वो शोध और अनुसंधान पर भीआधारित होगी, जहां नेशनल रिसर्चफाउंडेशन की स्थापना होगी। वहांतकनीकी को अंतिम छोर तक के व्‍यक्‍ति तक पहुँचाने के लिए भी नेशनल एजुकेशन टेक्नोलॉजी फोरम का गठन करेंगे। मैं इस बात से सहमत हूं कि जिस दिन पूरी ताकत के साथ इस खाई को पाटा जाएगा, उद्योग और हमारे विद्यार्थियों की शिक्षा के तकनीकी संस्‍थानों चाहे वोमेरे आईआईटी हों, एनआईटी हों,आईसर हों,आईआईएम हों और विश्वविद्यालय हों,  जिस दिन मेरे राष्ट्रीय महत्व के संस्थानों और उद्योगों का के बीच समन्वय हो जाएगा तब दुनिया की कोई ताकत नहीं कि मेरे देश के सामने कोई खड़ा भी हो सकता है।हममें क्योंकि विजनहैहममें ऊर्जाभी है, हमारे भीतर रिजल्ट देने की ताकत भी है लेकिन यह पार्ट-पार्ट में हो रहा है, उसको समन्वित  करने की जरूरत है।  यह देश इतना विशाल देश है किकहीं भी जाया जा सकता है। अब उस दिशा में शिखर को पाया जा सकता है। जब इस मिशन के साथ हम करेंगे तो निश्चित रूप में हम स्‍वयं कंटेंट भी तैयार करेंगे और पेंटेंट भी हमारा होगा। हमारे भीतर आत्मविश्वास भी होगा,हमारा समर्पण भी होगा किहमकोकरना क्या है और यहकेवल शिक्षार्थियों एवं विद्यार्थियों पर ही लागू नहीं होता है क्‍योंकि नियम तो सबके लिए होता है। यदि किसी उद्योग में समर्पण नहीं है,यदिकोई विजन नहीं है, टारगेट नहीं है, तो मुझे लगता है वो बहुत दिनों तक खड़ा नहीं रह सकता। उसके लिए विजनहोना जरूरी है। विजन के साथ उसके समर्पण के साथ ही जीवन-मरण के प्रश्न पर उसका जो टारगेट है उसको पाने कीललकहोनी चाहिए, वह जरूरी है। आज कैपेसिटी बिल्‍डिंग के साथ ही हमको नेशन बिल्‍डिंग पर भी फोकस करना है तथा ऐसी क्षमता का निर्माण भी करना है। मैं यह समझता हूं कि इसकी जरूरत है,सुशासन की जरूरत है। यह जो जीवन है उसके साथ जोड़ने जरूरतहै यह हमारी नयी शिक्षा नीति आज उसी का एक प्रयाय है। मुझे बहुत खुशी है कि आपनेजिस बात को कहा है कि क्या उद्योगऔर शैक्षणिक संस्थान यह दोनों मिलकर के काम कर सकते हैं, कर सकते हैं। यदि नेशन को आपने ताकत देनी है तो इसके लिए कोई किंतु-परंतु नहीं हो सकता। किस तरीके से करना है वह रास्ता हम को तय करना है और मैं बनर्जी जी से कहूंगा यह महासचिव हैं इस दिशा में सबसे परामर्श करने के बाद जो अभी आपने कहा, जब हम पिछलीबार जून में जुड़े थेतब भी यह आशा की थी कि हम लोगों को एक कमेटी गठित करनी है,एकटास्कफोर्स गठित करनी है। वो टास्कफोर्स हमनिश्चित रूप से गठित करेंगे। आपकुछ नामोंकोदे दीजिए। अनिल जोजो मेरे साथ जुड़े हुए हैं मैं इनको कहूंगा कि आपकी उस टास्कफोर्स में जो हमारी युक्ति-1 और युक्ति-2 है।युक्ति-1मेंआईआईटीमें जितने भी हमारे छात्रों ने आज शोध और अनुसंधान किया है, इस बीच कोविडके दौरान हमारी क्षमता देखिए हमारीताकत देखिए हमारे बच्चों ने आज शोध और अनुसंधान किया है। रामगोपाल जी जुडे हुए हैं जब ऐसी परिस्थिति आयी और देश के प्रधानमंत्री जी ने बताया कि नौजवान क्या कर सकते हैं तो हमारे आईटी के छात्रों ने अपना हुनर दिखाया।आज हमारे अपने सस्ते और टिकाऊ वेंटीलेटर हमने तैयार किये। हमने बहुत कम समय में और हंड्रेड परसेंट रिजल्ट देने की क्षमता वाली टेस्टिंग किट तैयार की। आईआईटी दिल्ली नेफिर एक कंपनी के साथ एमओयू करके आज पूरी दुनिया को भी हमने भेजा। इस बीच तमाम अनुसंधान छात्रों ने किये हैंऔर युक्ति-2 में तो अनिल सहस्‍त्रबुद्धे जी को मालूम है कि जितने भी इनके बच्चों के आइडियाज हैं, हजारों-लाखों युक्ति-2पर आ करकेसारे इकट्ठा हैं। देश के लिए इतना बड़ा प्‍लेटफॉर्मबनाया है जिसका विजिटजो चाहे उद्योगपति, कृषक सभी करके वहां से अच्‍छे आईडियाज को अपने साथ लेकर जा सकते हैं। इसीलिए मैं समझता हूँ कि यह बहुत अच्छा है औरदेश नई अंगड़ाई ले रहाहै तथा  तेजी से लोगों की मनःस्थिति बदल रही है। इस नई शिक्षा नीति के लिए तोपूरी दुनिया और देश ने उत्सव मनाया है। दुनिया भी इस नई शिक्षा नीति को लेकर के बहुत लालायित एवंउत्सुक है तथातमाम देशों ने कहा है कि हम भी भारत की शिक्षा नीति को अपने यहां लागूकरना चाहते हैं। अभी दो-दिन दिन पहले संयुक्त अरब अमीरात के शिक्षा मंत्री और उनका पूरा ग्रूप मेरे साथ जुड़ा था जब उन्होंने कहा कि हम इस नई शिक्षा नीति को अपने यहां लागूकरना चाहते हैं। अभी कुछ ही दिन पहले कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय ने भीकहा कि भारत तो ज्ञान का बड़ा केन्द्र था। यह कैम्ब्रिज नेकहा कि भारत बड़ा केन्द्र था जो यह अब नयी शिक्षा नीति आई है अब वह पुनर्जागरण के साथ सम्‍पूर्ण विश्व को मार्गदर्शन दे सकती है और हम दुनिया के सभी शिक्षा मंत्रालयों के साथ मिल करके आपके अभियानको आगे बढ़ाने की इच्छा प्रकट करते हैं। यह हमारी ताकत है और इस नई शिक्षा नीति की वो ताकत है इसलिए मैं समझता हूं कि यह अवसर अच्छा अवसर है इस अवसर को हमें हाथ से जाने भी नहीं देना है।इसलिए जब अच्‍छे अवसर आते हैं और फिर जब मौसम अच्छा रहता है तो उसी ताकत के साथ एवं गतिशीलता से दौड़ना भी पड़ता है। मुझे भरोसा है कि जो आज सर्वेक्षण एआईसीटीई और दोनों ने मिलकर के जो काम किया है उसके लिए मैं एआईसीटीई को भी बधाई देना चाहता हूँ कि आपने औद्योगिक क्षेत्र में विश्व रैंकिंग करने का जो नया कार्य किया है, वह बहुत अच्‍छा है उद्योगों की दृष्टि से कैसे रैंकिंग हो सकती है और संयुक्‍त रूप में हमलोग किस तरीके से रैंकिंग निर्धारित कर सकते हैं इस पर बहुत अच्छा कार्यगहन चिंतन-मननके साथ होना चाहिए। हमने आईआईआईटी को पीपीपी मोड में किया है। आपको मालूम है कि भारत सरकार 50 प्रतिशत, राज्य सरकार 35 प्रतिशत और उद्योग जगत 15 प्रतिशत उसको योगदान देता है।हमारे आईआईआईटी बहुत खूबसूरत एवं अनुकरणीय पीपीपी मॉडल  के संस्‍थानों का आदर्श हैं। मैं जब आईआईआईटी के आयोजनों में सम्‍मिलित होता हूं तो मुझे लगता है कि आने वाले भविष्‍य में मेरे यह संस्‍थान शिखर को चूमेंगे।यहजो उद्योगों के दृष्टिकोण से मानकों को रखने एवं रैंकिंग निर्धारण का जो आपने प्रावधान रखा है, वह बहुत अच्‍छा है और केंद्र सरकार के द्वारा चलाए जा रहे सभी तकनीकी संस्थानों में भी इस तरीके के लागू होना चाहिए ताकि लगे कि हमको उद्योगों के साथ किस तरीके से जुड़ाव और लगाव है। हम अलग नहीं हैं। मुझे लगता है कि यह बहुत अच्छा ही होगा और वो जो संयुक्त कार्य दल बनाने की आपने बात की है उससे मैं बिल्कुल सहमत हूं और जितना जल्दी हो सकता है उसको बननाही चाहिए। यहजो प्रधानमंत्री डॉक्टरल रिसर्च की आपने 2012 में शुरुआत की थी यह भी बहुतअच्‍छाकार्यक्रम थालेकिन मैं सोचता हूं किबहुत तेजी से काम भी कर रहा है लेकिन रिजल्ट जिस अनुरूप निकालना था वो क्यों नहीं निकल रहाहै इस पर विचार करने की जरूरत है। लेकिन आपकी बात तो अच्छी है। पहले बात तो यह अच्छी पहल है इसको और किस तरीके से आगे बढ़ाया जा सकता है आपकेअनुसंधानों को रिजल्ट के रूप में परिवर्तित होना चाहिए।समझता हूँ यदि उसकी भी एक ओर कमेटी के स्वरूप में लगातार समीक्षा करते रहेंगे तो बहुत अच्छा होगा बल्कि मैं तो यह कहता हूँ कि इसको विज्ञान और सामाजिक विषयों पर भी आपको आगे बढ़ाना चाहिए क्योंकि आपका जो सीआईआई है वहशैक्षणिक उत्थान की दृष्टि से आपका मिशन है और जहां उद्योगोंकाऔर समन्‍वयहोना चाहिए तथासार्वजानिक क्षेत्र की भी गतिविधियों में उन्नयन होना चाहिए। तोआप विज्ञान और सामाजिक विज्ञान के क्षेत्र में भी यदि उसको करेंगे तो बहुत अच्छा होगा। आज जो आइपेट नामक दो परीक्षाएं हैमैं सोचता हूँ कि इनको भी आगे बढ़ना चाहिए। इससे जो बड़ी बड़ी कंपनियां हैं उनमें हमारे छात्रों को अपनी प्रतिभा दिखाने का अच्छा अवसर मिल सकता है और उद्योग जगत के लिए भी यह बहुत महत्वपूर्ण होगा। मेरे जो छात्र हैं जिनको रोजगार की दिशा में जाना है उनके लिए भी अच्छा होगा। जैसे अभी अनिल जीने कहा कि यदि हम इंटर्नशिप के माध्‍यम से विद्यार्थियों की प्रतिभा को जोड़ते हैं तो वह विद्यार्थी उस संस्थान को भीबढ़ाएगा  तथा उसे  पीछे नहीं आने देगा और हो सकता है कि उसके बाद वहउसको छोड़ें ही ना। उसको कहो कि तुम साथ-साथ अध्‍ययन करो लेकिन तुम इस उद्योग में भी भागीदारी करते हुए इसकी बारिकियों कोभी सीखों क्‍योंकि तुम प्रतिभाशाली हो और वो आपको आयडियाज देगा। पूरी दुनिया की शिक्षण व्‍यवस्‍था का अध्‍ययन करके कि किस देश में क्या हो रहा है और मुझे अब उससे भी आगे कहां जाना है। यह उसमें क्षमता है, उनकी विराटता है। इन छात्रों में और हमारे देश में टैलेंट की बिल्कुल कमी नहीं है और इसको लीडरशिप देनी होगी, इसको वैश्विक परिवेशमें आगे बढ़ाना होगा।मैं यह समझता हूँ कि एक बार आप सब लोग बैठें और जितने भी ओद्योगिक क्षेत्र के लोग हैं आप यह तय कर दें कि सीएसआर के फंड उपयोग शैक्षणिक क्षेत्र के उन्नयन की दिशा में लगेगा तो यहक्रांतिकारी कदम होगा औरवो उद्योगों के साथ जुड़ेंगे। यहां जो आत्मनिर्भर भारत का मेरे देश के प्रधानमंत्री जी ने आह्वान किया है कि आईआईटी से निकलने वाला हरछात्र, एनआईटी से निकलने वाले छात्र, इंजीनियरिंग कॉलेजों से निकलने वाले छात्र निश्चितरूप से एक स्टार्टअप को लेकरजाऐंगेऔर मेरा भारत उस दिन आत्मनिर्भर हो जाएगा। ऐसा हो सकता है कोई दिक्कत नहीं है। एक बार थोड़ा सा समन्‍वय करने की आवश्‍यकता है, उसमें क्षमता तो है ही इसलिए दूसरों को भी लीडरशिप देकर दुनिया के देशों को आगे बढ़ा रहे हैं। दुनिया के देशों कीयदि आप समीक्षा करें तो जैसे मैंने अभी कहा कि आईआईटी से निकलने वालेछात्र,यह देश 130 करोड़ लोगों का देश है। यदि देश काजितना मार्केट के रूप में आप अध्‍ययन करेंगे तो देखेंगे कि50 देशों के बराबर अकेला अपना हिन्दुस्तान है जो पूरी दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है और इसलिए जब आपको याद होगा कि एक बार  आदरणीय अटल बिहारी बाजपेयी जी ने जब परमाणु परीक्षण की बात की थी तब कुछ देशों ने हिंदुस्तान पर आर्थिक प्रतिबंध लगाने की बात की थी और कहा था कि यदि आपने यह किया तो हम आपको अनुदान नहीं देंगे, भीख नहीं देंगे और अटल जी ने पूरी ताकत के साथ कहा था कि नहीं, मेरा देश किसी को छेड़ता नहीं, किसी से हम लड़ने के लिए नहीं लेकिन हम अपनी ताकत के विकास के लिए परमाणु परीक्षण जरूर करेंगे और आपको याद होगा कि कई संपादकीय में लिखा गया था कि अटल जी ने बहुत खतरनाक खेल किया है। अब दुनिया से, अमेरिका से, पैसा नहीं मिलेगा, लोन नहीं मिलेगा, कर्ज नहीं मिलेगा और अटल जी ने एक ही सूत्र दिया था कि देश में न कोई आयात होगा और न देश में कोई निर्यात होगा। बाहर से कोई चीज देश के अंदर नहीं आएगी और देश से कोई चीज बाहर नहीं जाएगी। छह महीने मेंदुनिया की आंखे खुल गई थी। दुनिया नहीं रह सकती हिंदुस्तान के बिना, यही हमारी ताकत है। देश से कोई चीज बाहर नहीं जाएगी और केवल इसएक सूत्र ने पूरे देश को खड़ा कर दिया था।मैं समझता हूं कि आज हमारे प्रधानमंत्री जी ने जो आत्मनिर्भर भारत की बात की है, वह बहुत महत्वपूर्ण बात की है। हर एक छात्र योद्धा की तरह निकल कर के बाहर आए और वो इस होड़ में न जाए कि मुझको विदेश में जाकर कितना पैकेज मिल जाये। उसकी प्रतिभा को यहां किसी उद्योग के साथ कैसे संबंध से हम कर सकते हैं। आज इसकी जरूरत है। मुझे भरोसा है कि जो हमारे देश के प्रधानमंत्री ने 5 ट्रिलियन डॉलर आर्थिकी की बात की है और उसके लिए उन्होंने मेक इन इंडिया, डिजिटल इंडिया, स्किल इंडिया जैसे रास्ते भी दिखाये हैं। हमारे पास स्किल भी है, हमारे पास कौशल भी है और मेक इन इंडिया क्यों नहीं हो सकता। पूरी दुनिया में मेक इन इंडिया होना चाहिएक्‍योंकि यह देश इतना बड़ा है और विजनरी देश है और जिस दिन उद्योग और मेरी यहप्रतिभाएंदोनों मिल जाएंगे उस दिन पूरी दुनिया में मेक इन इंडिया ही दिखाई देगा। कोई देश दिखाई भी नहीं देगा और वो दिन आ रहा है तथा वो तेजी से बढ़ रहा है। उसके समन्वय के लिएसीआईआईको जरूर उसकी लीडरशिप लेनी चाहिए। इसलिए लेनी चाहिए क्‍योंकिआपका125 वर्षों का इतिहास है। आपने हर कदम पर देखा है, झेला है, रास्ते निकाले हैं देश की खराब परस्थितियों को भी देखा है और अबजब देश उत्थान के उत्कर्ष पर है आप उसको भी देख रहे हैं और उसके सहभागी भीबन रहे हैं और इसलिए मैं समझता हूं कि यह अच्छा मौका है जब हम नई शिक्षा नीति के माध्यम से उसकी आधारशिला रखकर उसको आगे बढ़ाने की आप कोशिश कर रहे हैं। मैं आप सब लोगों को शुभकामना देना चाहता हूं और मुझे भरोसा है कि जो अद्भुतस्वीकार्यता मिली है नई शिक्षा नीति को और वह के लिए एक विजन डॉक्यूमेंट हो गया है और दुनिया के लिए उत्सुकता का कारण बना है उसकाहमताकत के साथ क्रियान्वयन करेंगे। शोध और अनुसंधान के क्षेत्र में चाहे नेशनल रिसर्च फाउंडेशन हो और चाहे नेशनल एजुकेशन टेक्नोलॉजी फोरमहो इन दोनों की गतिविधियां जो भविष्य में आने वालीहैउससे उद्योगों, छात्रों एवं शोध-संस्‍थानों के बीच बेहतर समन्‍वय होगा। हम कह सकते हैं कि ऐसीनई चीजें इस देश में होनी चाहिए और जिसका मैंने अभी आपको एक उदाहरण दिया कि जब परिस्‍थितियांहोती हैं तो दूसरे भीखड़े हो जाते हैं। मुझे भरोसा है कि आपका जोविजन है और जिस तरीके का आपका मिशन है वो इस देश को आत्मनिर्भर भारत एवं5ट्रिलियनडॉलर की आर्थिकी तक जाने का जो रास्ता है उसेउद्योग, नई शिक्षा नीति और हमारे शैक्षणिक संस्थान और उद्योग यह सब मिलकर के उस रास्ते को आगे बढ़ाएंगे और वैसे भी भारत पूरी दुनिया में ज्ञान की महाशक्ति के रूप में तेजी से उभर रहा है। आज लोग महसूस करेंगे और अभी दो साल बाद देखिएगा। अभी तो यह नया है और पूरी दुनिया के अंदर हलचल है। अभी तो हमारे कुछ लोगों को स्वीकारने में भी हिचक होगी क्‍योंकि उनको लगता है कि सौ डेढ़ सौ सालों की उस गुलामी के जो थपेड़े हमारे मन मस्तिष्क पर पड़े हैं।उनके कारण सहज तरीके से अपने को भी खड़ा करने में वक्त लगेगा। लेकिन पूरी ताकत के साथ जब यहकाम होगा तो देखिएगा कि हमारे यहां विजनकी कमी नहीं है और मेहनत की कमी नहीं है तो विजन और मिशन जब मिलता तो नई चीज पैदाहोती है, वो हमारे पास है और फिर यह देश तो आने वाले 25 बरसों तक यंग इंडिया रहने वाला है। क्‍या नहीं कर सकते हम सब कुछ कर सकते हैं केवलजरूरत है लीडरशिप की।वैसे भी यह जो नयी नीति तो बहुत अच्छी बनी है लेकिन इसको नीचे तक क्रियान्वित करना औरढांचागत रिफॉर्म का परिणाम किस तरीके से नीचे तक ला सकते हैं। इसके बीच की कड़ी आपकी लीडरशिप हो सकती है। इस नीति को नीचे तक व्यावहारिक रूप में, प्रेक्टिकल रूप में नीचे तक ले जाने के लिए आपकी लीडरशिप में जरूर होगा ऐसा मेरा भरोसा है। मैं आज आपको बहुत शुभकामना देना चाहता हूं यह शैक्षणिक गतिविधियों का जो सम्मेलन है इससे बहुत कुछ निकलेगा और इससे वो चीज निकलेगी जिसकी देश हमसेअपेक्षा कर रहा है।परिवर्तन करने वाले आप ही लोग हैं। कोई आसमान से टपक करके परिवर्तन करने के लिए नहीं आएगा। मुझे भरोसा है कि यह जो क्षण  हैं वो एक नये भारत के उदय को सुनिश्‍चित करेगा औरजिस दिन भारत नये भारत के रूप में आएगा स्वत:स्फूर्त विश्व एक नया विश्‍वबन जाएगा क्योंकि भारत का बल पूरे विश्व के बराबर है और उसमें सामर्थ्य है, पूरी दुनिया को अपने में समेटने की और जिस बात को मैं बार-बार कहता हूं कि एक परिवार के रूप में हमने पूरी दुनिया को देखा है और उस दुनिया के परिवार को हम सब और सम्पन्न भी करनाचाहते हैं उसे आगे बढ़ना भी चाहते हैं। हम संस्कारों एवं जीवन-मूल्‍यों  की भी प्रगतिचाहते हैं,इसलिए जो सीआईआईजो विश्व स्तर पर यह शिक्षा का संवाद आयोजित कर रहा है, वह उस दिशा में भी कड़ी बनेगा। वैसे भी इस समय शिक्षा संवाद मैं लगातार कर रहा हूं और तमाम देशों के शिक्षा मंत्री और तमाम देशों के राजदूत इस बात को कहते हैं कि हमेंभीशिक्षा का संवाद चाहिए। बाहर के लोग हमारे अंतरराष्ट्रीय शीर्ष 100 विश्वविद्यालयों को अपने देश के अंदर आमंत्रित किया है और हम अपने शीर्ष विश्वविद्यालयों को भी दुनिया के देशों में भेजनाचाहते हैं। अभी कुछ दिन पहले आईआईटी के दीक्षांत समारोह में डॉ.राम गोपाल रावजीने कहा है कि आज विदेशों में कई देशों में लोग लगातार आग्रह कर रहे हैं इनकोहां, बोलना है। हमारे शिक्षकों को भेजना हैतो मैंने उनको कहा जितना जल्दी हो सकता है जाओ, हमको दुनिया पर जाना है। हमारे आईआईटीज के बाद दूसरेनए फिल्‍ड में भी प्रतिभाओं को लगना चाहिए। हिन्दुस्तान में ज्ञान के तहत हम विदेश की फैकल्‍टी को इधर लाते थे लेकिन मैने कहाज्ञान प्लस होना चाहिए हमारेयहां कि फैकल्टी भीदुनिया को पढ़ाने के लिए जानी चाहिए और वो हो रहा है। मुझे इस बात की खुशी है कि मैं विगत डेढ साल से इसकोदेख रहा हूं। मैं अपने आईआईटीज के अंदर जाकर घुस करके देखता हूं, अपने विश्वविद्यालयों के अंदर देखता हूं, शीर्ष संस्थाओं के अंदर देखता हूं  मुझको दर्शन मिलता है औरमुझे बहुत भरोसा है कि हम दुनिया के सबसे बड़ी शिक्षा का आधार बनेंगे और जो लोग हमसे अपेक्षा कर रहे हैं जो देख रहे हैं कि पूरी दुनिया का शिक्षा का यह सबसे बड़ा भंडार होगा और हमारा देश महाशक्ति के रूप में उभरेगा आपकी ताकत से, जुड़ाव से, लगाव से और अभियान से हमारी देश के लोगों की यहइच्छा भी पूरी होगी। मैं एक बार फिर आप सब लोगों को शुभकामनाएं देता हूं।

 

बहुत-बहुत धन्‍यवाद!

 

 

कार्यक्रम में गरिमामयी उपस्‍थिति:-

 

  1. डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक’, माननीय शिक्षा मंत्री, भारत सरकार
  2. डॉ. बी.वी.आर. मोहन रेड्डी, अध्‍यक्ष, सीआईआई शिक्षा परिषद्
  3. डॉ. चंद्रजीत बनर्जी, महानिदेशक, सीआईआई शिक्षा परिषद्
  4. डॉ. पंकज मित्‍तल, महासचिव, भारतीय विश्‍वविद्यालय संगठन
  5. डॉ. अनिल सहस्‍त्रबुद्धे, अध्‍यक्ष, एआईसीटीई
  6. डॉ. राम गोपाल राव जी, निदेशक आईआईटी दिल्‍ली