जेएनयू में अकादमिक कॉम्प्लेक्सभवन का शिलान्यास समारोह
दिनांक: 04 जनवरी, 2021
माननीय शिक्षा मंत्री, डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’
आज के इस अवसर पर जेएनयू परिवार और उससे जुड़े पूर्व छात्र तथा सभी लोगों का मैं नये वर्ष पर अभिनन्दन कर रहा हूं और इस नये वर्ष की शुरूआत में ही जो कुलपति जी ने शुरूआत की है उसके लिए भी मैं उनको बधाई देना चाहता हूं। इस विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. जगदीश कुमार जी, जिन्होंने पीछे 5 वर्षों में तामम अभिनव प्रयोग करके अपने कुलपति होने का एक महत्वपूर्ण इतिहास का दस्तावेज यहां संचित किया है मैं बहुत बधाई देना चाहता हूं आपको। प्रो. चिन्तामणि महापात्रा जी आपने जिन बिन्दुओं को कहा है, प्रो. सतीशचन्द्र घटकोटे जी, जिनको बहुत लम्बे समय से मैं जानता हूं और प्रो. राणा प्रताप जीमुझे इस बात की खुशी है कि आप तीनों पीवीसी ने और इस विश्वविद्यालय के कुलसचिव डॉ. प्रमोद ने मिलकर के जिस तरीके से एकजुटता, प्रखरता और कुलपति के साथ कंधा से कंधा मिलाकर इस विश्वविद्यालय को ऊंचाईयों पर पहुंचाया है इसलिए मैं इनको शुभकामनाएं देना चाहता हूं। यहां के अन्य जितने भी संकायसदस्य है, कमर्चारी वर्ग है, मैं सबको ऐसे अवसर पर जबकि दो बहुत महत्वपूर्ण संस्थानों का शिलान्यास हो रहा है वो भी एक ऐसा संस्थान जो प्रबंधन से जुड़ा है , वो भी अटल बिहारी वाजपेयी जी के नाम पर है, जिसकी आधारशिला रखी जा रही है तथा दूसरा इंजीनियरिंग क्षेत्र का संस्थान है। मुझे लगता है कि आगे आने वाले समय में निश्चित रूप में यह 21वीं सदी के स्वर्णिम भारत की आधारिशला बनेगा, ऐसा मेरा भरोसा है। पीछे पांच वर्षों में जिस तरीके से प्रो. जगदीशजीने यहांपर काम किया है, वह सबके संज्ञान में है, मैं आपको बधाई देता हूं। नये वर्ष में आपको ऐसी सौगात मिली है जो भावी भारत के निर्माण की आधारशिला होगी। मेरे साथ हमारे अपर सचिव है डॉ. विनीत जोशी जो विश्वविद्यालयों के काम को देखते हैं वो भी हमारे साथ जुड़े हुए हैं और डॉ. अंशु जो अच्छा संयोजन करती हैं और यह अच्छी लेखिका के रूप में भी प्रतिष्ठित है, मैं इनको पढ़ रहा हूं, इनको भी मैं बहुत शुभकामनाएं देना चाहता हूं। मुझे बहुत खुशी है कि जब मेरे सामने यह प्रस्ताव आया तो जेएनयू जो हमारीशीर्ष संस्था है, मैंने हमेशा से यह कहा है चाहे पीछे के समय में लोकसभा में था जब मैं संसदीय कमेटी का अध्यक्ष था, उस रूप में भी जब-जब जेएनयू के बारे में चर्चा हुई तो मैंने इस संस्थान के बारे में लोगों को अवगत कराया है कि यह देश के अन्दर अपने ढंग का मेरा संस्थान है जो विश्व फलक पर आगे बढ़ने की ताकत रखता है और इस संस्थान को बहुत तेजीसेआगे बढ़ाने की जरूरत है। उस तेजी से आगे बढ़ाने के रास्ते की दिशा में आज यह दो एवं इससे भी पहले बहुत अभिनव प्रयोग किये हैं। नई शिक्षा नीति आने के बाद दो चीजें तो आपने तत्काल शुरू कर ही दी हैं। मुझे लगता है कि इसमें चाहेमेरे शोधार्थी हों, अध्यापक हों, इसका बहुत अच्छा उपयोग कर सकेंगे और इनको लगेगा कि हां, यह दोनों संस्थान जैसा कि अभी हमारे प्रति-कुलपति साहब कह रहे थे कि आत्मनिर्भर भारत बनाने की दिशा में प्रबंधन एवं इंजीनियरिंग के यह दोनों संस्थानबहुत आगे बढ़कर जाएंगे। यहां उच्च गुणवत्ता वाली सुविधाओं से युक्त और प्रबंधन और प्रौद्योगिकी पर जो शैक्षणिक माहौल बनेगा उसका एक अपना अलग सा संदेश जाएगा। अब मैनेजमेंट संस्थान का नामकरण जो आपने किया है इस देश के पूर्व प्रधानमंत्री भारतरत्न और जिनको अजातसत्रु कहा जाता था अटल जी की प्रखरता और उनकी मुखरता दुनिया ने बहुत निकटता से जाना है। कुलपति जी,आपने ऐसे व्यक्तित्व के नाम पर इस अकादमिक भवन को रखा जिसका नाम लेते ही श्रद्धा से केवल सिरनत नहीं होता, आज झुकता नही बल्कि अन्दर से प्रेरणा भी बाहर निकलती है, देश के लिए कुछ कर गुजरने की अभिलाषा मन में पैदा होती है। अटल बिहारी वाजपेयीजीहमेशा कहते थे किछोटे मन वाला कभी बड़ा नहीं हो सकता और टूटे तने वाला कभी खड़ा नहीं हो सकता।छोटी-छोटी बातों में उलझा हुआकोई व्यक्ति, संस्था, राष्ट्र कभी शिखर को प्राप्त नही कर सकता। उसेबड़ा बनना है तो उसके लिए बड़ा मन चाहिए, बड़ा दिल चाहिए, बड़ा दिमाग चाहिए,बड़ा धैर्य चाहिए, पराकाष्ठा एवंप्रखरता चाहिए तब ही आदमी बड़ा बन सकता है। कोई संस्था भी तभी बड़ी हो सकती है तभी कोई समाज उन्नति कर सकता है और तभी कोई राष्ट्र भी शिखर पर पहुँच सकता हैयह बहुत प्रबल धारणा रही है उनकी हमेशा औरहमेशा। अटलजी जहाँ इस बात को बोलते थे, वहीं अटल जी इस बात को भी बोलते थे जोउनकी एक छोटी सी कविता का अंश है कि पेड़ के ऊपर चढ़ा आदमी ऊँचा दिखाई देता है और पेड़ की जड़ पर खड़ा आदमी छोटा दिखाई देता है। न आदमी छोटा होता है न बड़ा होता है। आदमी सिर्फ आदमी होते है और उन्होंने कहा कि इस बात का फर्क नहीं पड़ता कि आदमी कहां खड़ा है, रथ पर या पथ पर। उनकी यदिरचनाओं को पढ़ेंगे तो आपकोलगेगा कि क्या जीवंतता है। जो मरा हुआ भी आदमी होगा वह भी खड़े होकरके दौड़ना शुरू कर देगा। कितना ही स्वार्थी आदमी है वो भी कहेगा कि नहीं, मुझे राष्ट्र के लिए, समाज के लिए कुछ करने की अभिलाषा मेरे मन में रहनी चाहिए। ऐसे व्यक्ति के नाम पर आपने इस भवन का नाम रखा है मुझे बहुतखुशी है। आपको तो मालूम है यदि आप अटल जी के उससमय के कामों को देखें जब वो प्रधानमंत्री थे तो उन्होंने देश को एक साथ जोड़ने के लिए चाहे स्वर्णिम चतुर्भुज योजना हो और चाहे वो गांव-गांव को जोड़ने वाली प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना हो, क्या विज़न था उनके पास। उसी समय उन्होंने शिक्षा के उन्नतिकरण के लिए एजुकेशन सेस लागू किया था और आज भी वो जारी है कि और सारे संस्थानोंएवं जितनी कम्पनियांहैंउनसेटैक्स ले करके शिक्षा का उत्थान कैसे करके करसकते हैं। सर्व शिक्षा अभियान जोआज समग्र शिक्षा के रूप में विकसित हो रहा है। अंतिम छोर तक का बच्चा भी अनपढ़ नहीं रहना चाहिए उस तक कैसे करके शिक्षा जा सकती है यह उनका विजन था। आज हम उनके विजनको लेकर के आगे जारहे हैं। टेलीकॉम की क्रांति होचाहे वो कनेक्टिविटी का सवाल हो मुझे लगता है कि अटल जी का जो मानस था वो अद्भुत था। मुझे भरोसा है इस संस्थान के अंदर घुसते ही छात्र-छात्रा और मेरे अध्यापक गण के मन के अंदर एक नई स्फूर्ति का संचार होगा, एक नए विचार का संचार होगा, उसेताकत मिलेगी, ऊर्जा मिलेगी। एक समय था जब हमारे देश के प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री थे और देश दो संकटों सेएक साथ गुजर रहा था। सीमाओं पर हम सुरक्षा के संकट से गुजर रहे थे और आंतरिक रूप से हम खाद्यान्न के संकट से गुजर रहे थे। ऐसे वक्त में हमारे देश के तत्कालीनप्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने ‘जय जवान जय किसान’ का नारा दिया था। जवान और किसान ने साथ खड़ा होकर के देश की इन दोनों समस्याओं पर विजय प्राप्त की थी और सब को मालूम है उनके बाद जब अटल बिहारी बाजपेयी जी भारत के प्रधानमंत्री बने। उनको लगा कि अब विज्ञान का समय है, हमको और तेजी से दुनिया में आगे बढ़ना है तो उन्होंने ‘जय विज्ञान’ का नारा दिया थाऔर आपको याद होगा कि जैसे ही परमाणु परीक्षण की उन्होंने घोषणा की थी तोपूरी दुनिया के लोगों ने किस-किस तरीके से संपादकीय तक लिखे थे। अटलजी पर जब दबाव पड़ा कि नहीं आप इस निर्णय को वापस लीजिए तो अटल जी ने कहा था कि हम देश को ताकतवर बनाना चाहते हैं। हम किसी को छेड़ने के लिए नहीं,किसी को परेशान करने के लिए नहीं, किसी को हड़पने के लिए नहीं बल्कि अपनी सुरक्षा के लिए हम अपना परमाणु परीक्षण करना चाहते हैं। हम भारत को महाशक्ति के रूप में स्थापित करना चाहते हैं। वो जानते थे कि पूरी दुनिया में सुख-शांति और प्रगति का रास्ता कहीं से गुजरता है तो वह हिंदुस्तान की धरती से गुजरेगा तब तक दुनिया में शांति सुरक्षित नहीं रह सकती जब तक हिन्दुस्तान का वो मानस जो ‘वसुधैव कुटुम्बकम’कोकहता है और‘अयं निजः परो वेति गणना लघुचेतसाम्। उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम्।।‘पूरी वसुधा को अपना परिवार मानने वाला विजनयदि है तो मेरे भारत का है। अटल जी के मन और मस्तिष्क में तो स्वयं भी भारत उनके अंदर दिखाई देता था और इसलिए ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया’ की इस कल्पना को ले करके उन्होंने कहा था किहमदुनिया में सुख चाहते हैं, शांति चाहते हैं, पूरी दुनिया मेरा परिवार है एवं इस परिवार की खुशहाली के लिए हम यह ज़रूर करेंगे और तब पूरी दुनिया ने कहा था कि हम तो आप पर आर्थिक प्रतिबंध लगा देंगे और अटल जी ने ताकत के साथ खड़े होकर कहा था हम मुकाबला कर लेंगे उन्होंने एक सूत्र दिया था उस समय किदेश में न तो कोई चीज आयात होगी और न हीकोई चीज निर्यात होगी। न बाहर से इस देश के अंदर कोईवस्तु आएगी औरन ही यहां से निर्मित चीज बाहर जाएगी। छह महीने के अंदर-अंदर दुनिया हिल गई थी। अंततोगत्वा दुनिया को अपने निर्णय वापस लेने पड़े थे,यह ताकत थी अटल बिहारी बाजपेयी कीजिन्होंने पूरा देश खड़ा कर दिया और मुझे इस बात की खुशी है कि उसअभियान को आज बढ़ाते हुए हमारे वर्तमान प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने एक कदम आगे जाकर अब‘जय अनुसंधान’ की बात की है। अब अनुसंधान कीजरूरत है। हमनवाचार और अनुसंधान तथाशोध के साथ आगे बढ़ना चाहते हैं और तेजी से जाना चाहते हैं और उसी ‘जय अनुसंधान’ के साथआपको तो मालूम है कि आज पर हम ‘स्पार्क’ के तहत दुनिया के 127 शीर्ष विश्वविद्यालयों के साथ अनुसंधान कर रहे हैं। हम ‘स्ट्राइड’के तहत अंतर-विषयक शोध कर रहे हैं। हम स्पार्क और स्ट्राइड ही नहीं हम इम्प्रिंटऔर इम्प्रेस इनदोनों अभियानों को भीआगे बढा रहे हैं।हम‘स्टार्स’ में वैज्ञानिक क्षेत्र में कार्य कर रहे हैं। हमने ‘ज्ञान’ में बाहर के अध्यापकों को यहां बुलाकर के परामर्श करना शुरू किया तो ‘ज्ञान प्लस’ में हमारे भीअध्यापकदुनिया में जा कर के पढ़ाएंगे। यह हम लोगों ने शुरू किया है।हमलोगों ने उसी आधार पर ‘स्टडी इन इंडिया’ अभियान लिया और आह्वान किया किदुनिया के लोगों, भारत में आओ और स्टडी करो। उसअभियान के अंदर 50 हजार से भी अधिक अभी रजिस्ट्रेशन हुए हैं। पूरी दुनिया लालायित है अब हिंदुस्तान में आने के लिए। अभी एक हजार से अधिक आसियान देशों के मेरे छात्र आईआईटी में शोध और अनुसंधान के लिए आ रहे हैं। अब तो हमने ‘स्टे इन इंडिया’ कर दिया, मेरे इन संस्थानों ने पूरी दुनिया में हमारा मान-सम्मान बढ़ाया है। यदि मैं जेएनयू को ही देखता हूं तो कितने लोग निकले हैं यहां से पद्म श्री, पद्म विभूषण,वैज्ञानिक,तमाम राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय सम्मानों से प्राप्त राजनैतिक क्षेत्र में हो, प्रशासनिक क्षेत्र में हो, सामाजिक क्षेत्र में हो कौन सा क्षेत्र ऐसा है जहां जेएनयू ने अपनी महत्त्वपूर्ण उपस्थिति दर्ज नहीं की है।आज फिर समय आ गया। अब तो हमारा नेतृत्व भी ताकतवर नेतृत्व है। पूरी दुनिया हमको देख रही है और तब जबकि नई शिक्षा नीति को लेकर के हम आए हैं। नई शिक्षा नीति 2020 जो हमारीराष्ट्रीय शिक्षा नीति है यह बहुत खूबसूरत शिक्षा नीति है। नई शिक्षा नीति पूरी दुनिया में लोकल भी है और ग्लोबल भी है। हम अपनी हम अपनी प्रारंभिक शिक्षा को बच्चे की मातृभाषा में शुरू करेंगे और उसके बादअंतरराष्ट्रीय फलक पर हम ज्ञान, विज्ञान, अनुसंधान एवं नवाचार के क्षेत्र में और तेजी से आगे बढ़ेंगे। हम स्कूली शिक्षा में वोकेशनल स्ट्रीम के साथ इंटर्नशिप भी साथ ला रहे हैं। अभी जो यह मेरा इंजीनियरिंग संस्थान बन रहा है, इस इंजीनियरिंग संस्थान में निश्चित रूप में वो बच्चा जो छठवींसे वोकेशनल औरइंटर्नशिप के साथ आएगा वो आप तक पहुँचते-पहुँचते एक योद्धा बन कर जाएगा और जब आप उसको उभारेंगेतो वह विश्व के फलक पर चमकता सितारा साबित होगा। हम लोग पूरी दुनिया का पहला ऐसा देश बन रहे हैं जो आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस कोस्कूली शिक्षा से ला रहे हैं। हम लोगों ने इस नई शिक्षा नीति में मूल्यांकन का भी तरीका बदल दिया है। नई शिक्षा नीति में हम अब बच्चे को रिपोर्ट कार्ड नहीं देंगे। अब हम उसको प्रोग्रेसकार्डदेंगे और छात्र स्वयंअपना मूल्यांकन भी करेगा, अध्यापक भी उसका मूल्यांकन करेगा, उसके अभिभावक भी मूल्यांकनकरेंगे औरउसका साथी भी उसका मूल्यांकन कर सकेगा।इस शिक्षा नीति के अंतर्गत यदि कोई चार वर्ष का कोर्स है और यदि कोई छात्र दो साल में परिस्थितिवशछोड़के जा रहा है तो पहले उसका पैसा एवं वर्ष दोनों खराब हो जाते थे। लेकिन अब उसकोनिराश नहीं होना पड़ेगा,यदि आप परिस्थितिवश एक वर्षमें छोड़ कर जा रहे हैं तो उसको सर्टिफिकेटदेंगे,दो साल में छोड़ कर जा रहा है तो डिप्लोमा देगें, तीन साल में छोड़कर जा रहा है तो उसकोडिग्री देंगे लेकिन यदि फिर वह लौट कर अपने भविष्य को संवारना चाहता है तो फिर जहां से उसने छोड़ा था वहीं से शुरू कर सकता है। उसके लिए हम एक ऐसा क्रेडिट बैंक बनायेंगे जहां उसके सारे क्रेडिट जमा रहेंगे।इसलिए उसके लिए आगे बहुत आपार संभावनाएं है।वह कहां जाना चाहता है,यदिशोध और अनुसंधान के क्षेत्र में जानाचाहता है तो हमने ‘नेशनलरिसर्च फाउंडेशन’ की स्थापना की है,जो कि प्रधानमंत्री जी के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार की अध्यक्षता में होगीयह फाउन्डेशन शोध की संस्कृति को तेजी से आगे बढ़ाएगा। वहींहमतकनीकी के क्षेत्र मेंकोशिश कर रहे हैं कि हमतकनीकी को नीचे स्तर तक, अंतिम छोर के व्यक्ति तक कैसे पहुंचा सकते हैं इसके लिए ‘नेशनल एजूकेशन टेक्नोलॉजीफोरम’का भी गठन कर रहे हैं। जिससेतकनीकी दृष्टि से भी देश समृद्ध हो सके। ये अद्भुत और अभिनव प्रयोग हम कर रहे हैं। नई शिक्षा नीति को को यदि आप देखेंगे तो इसको लेकर पूरी दुनिया के अंदर खुशी का माहौल है औरदुनिया के कई देश इसको अपने यहां लागू करना चाहते हैं। भारत ने दुनिया को लीडरशिप दी है हर क्षेत्र में। वहभारत जोज्ञान, विज्ञान, अनुसंधान के क्षेत्र में शिखर पर रहा है औरतक्षशिला तथानालंदा जैसे विश्वविद्यालय इस देश के अंदर थे।जहां पूरी दुनिया के लोग ज्ञान, विज्ञान, अनुसंधान और नवाचार के लिए शिक्षा ग्रहण करने के लिए आते थे, तब दुनिया में कौन सा विश्वविद्यालय था और इसीलिए मैं यह समझता हूं कि सुश्रुत, शल्य चिकित्सा काजनक इस धरती पर पैदा हुआ है औरमैंमेडिकल कॉलेजों के छात्रों का आह्वान करना चाहता हूं कि सुश्रुत को पढ़ो, उस पर शोध और अनुसंधान करो। चाहेआयु के विज्ञान आयुर्वेद के जनक हों, रसायनशास्त्री नागार्जुन हों,पाणिनी हों, भास्कराचार्य हों, महान गणितज्ञ आर्यभट्ट हों सभी इसी धरती पर ही तो पैदा हुए। आज जरूरत है नई शिक्षा नीति पर ताकत देते हुए, बल देतेहुए भारत केन्द्रित लेकिन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहुँचने वाली यह जोशिक्षा नीति है यहसामान्य नहीं है। यह नेशनल भी है, इंटरनेशनल भी है, यह इंटरेक्टिवभी है, इम्पैक्टफुल भी है,इनोवेटिवभी है और यहइक्विटी, क्वालिटी और एक्सेस की आधारशिला पर खड़ी होती है।हम इसमें कंटेंट भी पैदा करेंगें और उसको टैलेंट केसाथ भीजोड़ेगें और उसका पेटेंट भी करायेंगे। आज भी देश के अन्दर छात्रों में केवल पैकेज की होड़लगीहै।इस पैकेज की होड़ को खत्म करके पेटेंट के होड़को तैयार करना होगा तभी देश प्रगति के पथ पर आगे बढ़ सकता है और वो दिन दूर नहीं है। अभीकुछ दिन पूर्व कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय ने भी हमारी नई शिक्षा नीति की तारीफ की है, हमारे देश के अन्दर उत्साह का वातावरण है, वहीं पूरी दुनिया भी इस नई शिक्षा नीति के साथ जुड़ना चाहती है। मुझे इस बात की खुशी है किआपने नयी शिक्षा नीति को पकड़ा है औरदोनों संस्थाओं ने नयी शिक्षा नीति के क्रियान्वन की दिशा में यह बहुत अच्छा आयोजन किया है, उसके लिए मैं आपको बधाई देना चाहता हूं, आपकी टीम को बधाई देना चाहता हूं और पूरे जेएनयू को बधाई देना चाहता हूं। मुझे भरोसा है कि जेएनयू नई शिक्षा नीति के क्रियान्वित करने की दिशा में लीडरशिप लेगा, उसे लेनी ही चाहिए। अभी देखिये हमारे देश के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में 2014 के बाद शिक्षा का किस तरीके से व्याप हुआ है। पूरी दुनिया में यह कमजोर देश नहीं है। हमारे जो छात्र हैं आईआईटी से निकलने वाले वो दुनिया मेंअमेरिका से लेकर के तमाम जो विकसित देश हैं उनके चाहे वो गूगल हो, माइक्रोसॉफ्ट हो जैसीश्रेष्ठ कम्पनियोंकेसीईओमेरीधरती से पढकर जानेवाला नौजवान हीहै। पीछे के समय प्रधानमंत्री जी जितने भी शिक्षा-संवाद हुए उनमें आपके साथ जुड़े थे और जब विवेकानंद जी की मूर्ति का अनावरण किया तब भी वे हमसे जुड़े थे विवेकानंद एक मॉडल है दुनिया के लिए,केवलदेश के लिए हीनहीं। वो ऐसे आदर्श हैं जो हमें ज्ञान, विज्ञान, अनुसंधान के शिखर पर पहुंचाते हैं और साथ हीउनके आदर्श जीवन मूल्यों की आधार शिला पर खड़े होते हैं। यह हमारी ताकत है और इसलिए विवेकानंद जी ने कहा था ‘रुको नहीं, जब तक लक्ष्य नहीं मिलता। तब तक रात-दिन खपो।नेल्सन मंडेला जैसे व्यक्ति ने भी यह कहा है कि शिक्षा एक ऐसा हथियारहै जो कुछ भी कर सकता है। मुझे भरोसा है कि जेएनयू से ऊर्जावान, आदर्शवादी, साहसी और सकारात्मक सोच के हमारे नौजवान आगे आएंगे और इसका लाभ पूरी तरीके से लेंगे। इंजीनियरिंग के क्षेत्र में भी औरवास्तुकला के क्षेत्र में भी हम बहुत शिखर पर थे। अब हमें नवाचार के साथ आगे बढ़ाना है औरउसको लोगों को दिखाना हैकिहमारे पास पीछे के समय में क्या था इसके भी दर्शन कराने की ज़रूरत हैंक्योंकि तभी जा करके हमारी पीढी को पता चलेगा, अन्यथा वो तो अमेरिका की ओर एवं दूसरे देशों की ओर देखती है। यही देश तो विश्वगुरु रहा है। आखिर विश्व गुरु क्यों रहा है भारत? यह अचानक नहीं रहा है औरकेवलजीवन मूल्यों में ही नहीं रहा है। यह देश विश्वगुरूज्ञान में रहा है, विज्ञान मेंरहा है औरकौन सा ऐसा क्षेत्र है, जिसमें भारत नेविश्व को लीडरशिप नहीं दी हो और वो चीज तो आज भी हमारे पास इस धरती पर है और इसलिए मुझे भरोसा है कि हमारे देश के प्रधानमंत्री जी ने जो आत्मनिर्भर भारत की बात की है और 21वीं सदी के स्वर्णिम भारत की बात की है। यह आत्मनिर्भर भारत जो 5 ट्रिलियन डॉलर की आर्थिकी को ले करके ज्ञान की महाशक्ति के रूप में उभरेगा और वहीं आर्थिक दृष्टि से भी एक मजबूत तंत्र विकसित होगा। आपके प्रबंधन के क्षेत्र से निकल कर आने वाले छात्र-छात्राएं, इंजीनियरिंग एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्र से आने वाले विद्यार्थियों में अब पैकज की दौड़ और होड़ नहीं होगी क्योंकि अब नई शिक्षा नीति टैलेंट को ढूंढेंगी भी तथा टैलेंट को विकसित भी करेगी और उसका विस्तार भी करेगी और टैलेंट के साथ उत्कृष्ट कोटि का केंटेंटभी देगी और टैलेंट तथाकंटेंट को मिला कर के पेटेंट करेगी, अब दौड़ होगी पेटेंट की। इस देश में नौकरी की दौड़ और होड़ नहीं होगी बल्कि अब नौकरी देने की होड़ और दौड़ होगी। मुझे भरोसा है कि मेरे देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने जो आत्मनिर्भर भारत का जो एक सूत्र दिया है वो इस देश को और शिखर तक ले करके जाएगा। मेरे नौजवान और मेरे छात्र-छात्राओं में बहुत ताकत है। हमारा देश तो आगामी 25-30 वर्षों तक और पूरी दुनिया में केवल हिंदुस्तान छाने वाला है।हमारे में क्षमता की कमी नहीं है, उसमें विजनकी कमी नहीं है, उसमें मिशन की कमी नहीं है। इस समय हमारी लीडरशीप है उसमें मजबूती है, ताकत है औरजब हमारी युवा पीढ़ी कोताकत मिलेगी तो वह छलांग मारेगा और मुझे भरोसा है कि हम पूरी दुनिया में एकआगाज के साथ आगे बढ़ेंगे। मुझे इस बात की खुशी है कि इस नई शिक्षा नीति आने के बाद संयुक्तअरब अमीरात के शिक्षा मंत्री के साथ मेरी द्विपक्षीय मीटिंग हुई। उन्होंने कहा हमअपने देश में भी इस नीति को लागू करना चाहते हैं। मुझे इस बात को कहते हुए खुशी है किआजएनईपी केक्रियान्वयन की दिशा में जेएनयू आगे बढ़ रहा है। मुझे लगता है कि जो हमारी संस्कृति और जो प्रकृति है वो हमको जीवन जीने की दृष्टि भी देती है और उद्यमिता भी देती है और इसको भी आप खुबसूरती से वहां आगे जोड़ रहे हैं। आप जानते हैं इस बात को कि प्रकृति का यदि संरक्षण नहीं होता और उसके विपरीत जाया जाता है तो वो प्रकृति विकृति में चली जाती है और विकृति विनाश का कारण होती है और जब संस्कृति संस्कारों से युक्त नहीं होती है तब वो विनाश का कारण हो जाती है। इसलिए यह जो संस्कृति है यदि वो प्रकृति के अनुसार चलते हैं तो संस्कृति में तब्दील हो करके और शिखर के मार्ग को प्रशस्त करती है। मनुष्य को मनुष्य बनाती है लेकिन जब प्रकृति के विपरीत जाते हैं तो यह संस्कृति में तब्दील नहीं होती और वह फिर विकृति में तब्दील हो जाती है और उससे विनाश के सिवाय कुछ नहीं होता है। मुझे खुशी है कि आपने भाषा प्रौद्योगिकी, प्रबंधन, उद्यमिता और आर्थिक विषयों के बहु-वैकल्पिक शिक्षा के पाठ्यक्रम को आज यहां पर लागू कर दिया यह भीखुशी का विषय है कि जिसको हम चाहते थे और जो बहु-अनुशासनात्मक संस्थानों की स्थापना की दिशा में हमारे प्रयास हैं, उससे उनको ओर गति मिलेगी। हमने इस शिक्षा नीति में बहु-भाषिकता को भी प्राथमिकता दी है। भाषा का कोई मुद्दा नहीं है, किसी पर कोई भाषा नहीं थोपी जाएगी। इस नीति में हमने कहा है कि प्राथमिक शिक्षा बच्चे की मातृभाषा में ही होनी चाहिए।कुछ लोग कहते हैं कि हमको तो ग्लोबल पर जाना है इसलिए अंग्रेजी सीखनी पड़ेगी। मैंने कहा हम अंग्रेजी का विरोध नहीं करते, अंग्रेजी ही नहीं और दो-तीन भाषाएं सीखों,लेकिन अपनी भाषाओं को मत छोड़ो। हमारेसंविधान ने हमें 22 खुबसूरत भाषाएं दी हैं जिनमें हिन्दी, तमिल, तेलगू, मलयालम, कन्नड़, गुजराती, मराठी, बंगाली,ओडिया, असमिया, उर्दू,यह सबहमारी 22 खूबसूरत भाषाएँ संविधान में उल्लेखित हैं।इनमेंअपना ज्ञान है,जीवंता है,तोक्यों हम अपनी भाषाओं को खोयेंगे।हमने अंग्रेजी का कभी विरोध नहीं किया लेकिन अंग्रेजी इस देश की भाषा नहीं है। हमें अंग्रेजीक्या पूरी दुनिया की भाषाओं को पढना है लेकिन मैं उन लोगों से पूछना चाहता हूं कि क्या जो देशनीचे से लेकर उच्च शिक्षा तकअपनी मातृभाषा में शिक्षा देते हैं वो किसी से पीछे हैं? क्या जापान, फ्रांस, इंग्लैंड और दुनिया के तमाम जो विकसित देश हैं वो अपनी मातृभाषा में शिक्षा देते हैं क्या वो किसी से पीछे हैं?फिर ऐसे तर्क दे करके देश को कमजोर करने की बातक्यों की जाती हैं। इसलिए देश के प्रधानमंत्री जीने कहा कि अब व्यक्ति अपनी मातृभाषा में डॉक्टर भी बन सकता है औरइंजीनियर भी बन सकता है क्योंकि जो बच्चा जिस भाषा को बोलता है यदि उसको उसकी भाषा में शिक्षा दी जाए तो वह उसमें ज्यादा अभिव्यक्त कर सकता है। फिर ऐसे कुतर्क क्यों दिऐ जाते हैं मैं उन सभी लोगों से निवेदन करना चाहता हूं कि प्लीज भाषा का कोई मुद्दा नउठाया जाए,देश की ताकत को समझें इन सभी भाषाओं में हमें काम को आगे बढ़ाना है। हम विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश हैं और मुझे भरोसा है किलोग इस बात को समझ रहे हैं। मुझेभरोसा है कि जो नयी शिक्षा नीति है वो एक नया आयाम स्थापित करेगी। मैं एक बार पुन:संस्थान के सभी फैकल्टी को, इस पूरे परिवार को और पूर्व छात्रों को तथावर्तमान छात्र-छात्राओं को भीबधाई और शुभकामनाएं देना चाहता हूं और साथ ही कुलपति जी आपको भी शुभकामना कि आपके नेतृत्व में पांच साल में इस संस्थान ने बहुत ऊंचाइयों को छुआ है। मेरा जेएनयू पूरे देश और दुनिया में शिखर पर पहुंचे ऐसी शुभकामना के साथ मैं आपको एक बार फिर बधाई देता हूं।
बहुत-बहुत धन्यवाद!
कार्यक्रम में गरिमामयी उपस्थिति:-
- डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’, माननीय शिक्षा मंत्री, भारत सरकार
- प्रो. जगदीश कुमार, कुलपति, जे.एन.यू.
- जेएनयू के संकाय सदस्य एवं पूर्व-छात्र