Author: nishankji-user

आचार्य देवो: भव: नेक कॉन्‍क्‍लेव

आचार्य देवो: भव: नेक कॉन्‍क्‍लेव

 

दिनांक: 11 सितम्‍बर, 2020

 

 

माननीय शिक्षा मंत्री, डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’

 

‘आचार्य देवो भव:’ के नाम सेजो नैक ने आज यह महत्वपूर्ण कार्यक्रम आयोजित किया है, मैं सबसे पहले नैक के अध्यक्ष श्रीचौहान जी और नैक के निदेशक डॉ.शर्मा  कोविशेष बधाई देना चाहता हूं,उनका आभार प्रकट करना चाहता हूं। अभी हमारे यूजीसी के अध्यक्ष जो शालीनताकेधनी हैं, मैंने उन्‍हेंबहुत लंबे समय से यहां तक कि बचपन से ही देखा है, जब वेश्रीनगर में थे, पढ़ रहे थे, तब से ही हम उनको जानते थे और उनकी यात्रा को, उनके संघर्षों को मैंने निकटता से देखा है। शालीनता से कैसे शिखर तक जाया जा सकता है, वो भी उनसे अच्छे से सीखने की जरूरत है। हमलोगों को जैसे कि डी.पी सिंह जी ने डॉक्टर चौहानजी के बारे में बताया कि वो न केवल अद्भुत व्यक्तित्व के धनी हैं,बल्‍कि अपने कमिटमेंट के बहुत पक्के हैं कि मन में आया तो करना है, तो उनका भी हमको मार्गदर्शन मिला है। डॉक्टर शर्मा आपको मैं धन्यवाद देना चाहता हूं क्योंकि मैंने आपसे कहा था कि हमशिक्षक दिवस मना रहे हैं तो शिक्षक दिवस के अवसर पर मैंने आपसे अनुरोध किया था कि क्या हो सकता है? मेरा मन है कि एक बात सभी शिक्षक जितने अपनेहैं आचार्य उन सबको मैं अभिनंदन करूं। मैं उनको बधाई दूं उनको मैंप्रत्‍यक्षशुभकामना दूं और आपने इसबेड़े को उठाय।मैं देख रहा हूं कि लगभग 330 कुलपतिगण आज हमारे साथ जुड़े हुए हैं। आईआईटी और आईआईएम के 79डायरेक्‍टरइस समय हमारे साथ जुड़े हुए हैं। तीन हजार प्रधानाध्यापक जुड़ेहैं।31 हजार से अधिक सहायक प्रोफेसर, एसोसिएट प्रोफेसर और प्रोफेसर्स जुड़ेहैं,कुल मिला कर के लगभग डेढ लाख से भी अधिक लोग अभीप्रत्यक्ष तरीके से हमारे साथ जुड़े हुए हैं। मैं विशेषकरके आपको धन्यवाद देना चाहता हूं और आपके माध्यम से जो आज यह आचार्य देवो भव: के रूप में जो हम सब लोग आज अपने आचार्योंका विशेष करके देश के शिक्षा मंत्री होने के नाते मैं अपने आचार्यों को प्रणाम करना चाहता हूं, उनको मैं बधाई देना चाहता हूं,ह्रदय की गहराइयों से उनका अभिनंदन करने के लिए विशेष करके यह कार्यक्रम मैंने चाहा था। मैंबहुत गहरे मन से आपका आभार प्रकट कर रहा हूं क्योंकि मैं जानता हूं, मैं शिक्षक से लेकर शिक्षा मंत्री तक की अपनी यात्रा मेंउन तमाम पड़ावोंको महसूस कर सकता हूं कि एक शिक्षक की कितनी महत्वपूर्ण भूमिका होती है। कितनी वेदनाओं से, कितनी कठिनाइयों से, किस मन:स्थिति से होकर एक शिक्षक गुजरता है। शिक्षक केवल शब्द नहीं देता, शिक्षक अपने अंदर का उडेल कर अपने छात्र को देता है और उसका जो अंदर का अंतस मन है उसको किस सीमा तक को वोअपने को जोड़ करके छात्र के अंदर प्रवेश करता है। यहसामान्य बात नहीं है। शिक्षक एक वैज्ञानिक है ऐसा वैज्ञानिक है जो महसूस कर सकता है कि मुझे अपनेछात्रों के मन और मस्तिष्क पर किस तरीके से प्रवेश करना है। जब आप किसी के मन-मस्तिष्क में प्रवेश करते हैं, किसी के जीवन में प्रवेश करते हैं, किसी के संस्कारों में प्रवेश करते हैं,किसी की प्रकृति-प्रवृत्ति में प्रवेश करते हैं तो मैं समझ सकता हूं क्योंकि मैं लेखन से भी जुड़ा हूं। उन कठिनाइयों सेअध्यापक को गुजरना पड़ता है क्योंकि रचना तभी निकल सकती है। बड़ी वेदना के बाद वो रचना बाहर निकलती है और मैं इस बात को भी लेकर उतना ही महसूस करता हूं जैसे किडॉ.चौहान ने चिंता व्यक्त की है। मैं महसूस कर सकता हूं कि जो लोग मन के अंदर से अकलुशिततरीके से उस संवाद को नहीं बढ़ा पाते मुझे लगता है कि वहां कोई न कोई कमी रही है क्योंकि यह प्रकृति का नियम है। जब हमअंदर से कभी किसी को बोलते हैं तो वहआपसे जुड़ता है। वह आपका सम्मान करता है। वह गदगद् होता है। जब हम किसी व्यक्ति सेकभी मिलते नहीं हैं, लेकिन जब उसकी बातों को सुनते हैं तो स्वतःस्फूर्त मन के अंदर सम्मान पैदा होता है। ऐसा महसूस होता है कि यदि वह मेरे सामने होता तो मैं चरण स्पर्श करता। मैंइनकेपैरों पर लोट-पोट हो जाता, अंदर से आस्था प्रकट होती है। भावनाएंआह्लादित होती है। मन के अंदर से निकले उद्गार के तहत जब आदमी अपने को तैयार करता है, तभी वहदूसरे को कुछ दे सकता है। मैं इसकोबहुत ताकत के साथ कह सकता हूं और यदि मन के अंदर से तैयारी है जिसको कुछ देना है, वह देने का भी अधिकार उसी का है जिसके पास है। जब किसी के पास है ही नहीं यह किताब पढ़ी और इधर के शब्द उधर कोदिये वो देना नहीं हो सकता है। इसलिए मैं समझता हूं आज की उन परिस्‍थितियोंमें हमारी बहुत बड़ी जिम्मेदारी हो गई है और निश्चित रूप में जो चिन्ता चौहान जी ने व्यक्त कीउसको भी हमेंपाटना है, वह हमसे ही पैदा हुई है। परिस्‍थितियोंने पैदा की और तमाम प्रकार की परिस्‍थितियां पैदा हुई। एक ओर तो हमारे देश की गुलामी के उन थपेड़ों ने हमको जड़ों से काटा है। अन्यथा हम कैसे भूल जाएंगे हम उस देश के लोग है जो विश्वगुरु कहलाया है। ‘एतद्देशप्रसूतस्य सकाशादग्रजन्मनः स्वं स्वं चरित्रं शिक्षेरन्पृथिव्यां सर्वमानवाः’सारी दुनिया के लोगों ने हमसे आकर शिक्षा ली है,तक्षशिला, नालंदा और विक्रमशिला तमाम वो विश्वविद्यालय थे। दुनिया के कोई विश्वविद्यालय बताएं तो और यदि पूरी दुनियां हमसे आकर इतिहास, ज्ञान, विज्ञान, अनुसंधान और प्रौद्योगिकी कौन सा क्षेत्र था जिसमें भारत ने विश्‍व में लीडरशिप नहीं दी है। लेकिन वो तमाम जो भी परिस्‍थितियांरहीं उन पर मैं पीछे नहीं जाना चाहता। लेकिन हां, उन थपेड़ों ने हमको हमारीजड़ों से काटने की कोशिश की। मैं लार्ड मैकाले जी को दोष नहीं देता क्योंकि देश गुलाम था और स्वाभाविक रूपसे उनके मन में आया कि जब तक इस देश की शिक्षा और संस्कृति नहीं बदल देंगे तब तक भारत जैसे देश पर राज करना आसान नहीं होगा। उन्होंने अपने पत्रों में लिखा कि मैं जो चाहता हूं वह तब तक नहीं हो सकता क्‍योंकि यह देश बहुत बड़ा है। इसमें विविधता है, अनेकता में भी एकता है। यह संस्कारों से जुड़ा है और बिल्कुल सही है, जो उन्होंने सोचा। यह हम हमेशा कहते हैं कि‘‘यूनान, मिस्र रोमा सब मिट गए जहां से अब तक मगर है बाकी नामोनिशां हमारा और उसके बाद कुछ आगे कहते हैं कि कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी’’ कौन सी बात है? कुछ तो बात है कि तमाम लोग आए दुनिया के इतिहास में कितने देश खड़े हुए, कब मिट्टी में मिल गए उनका पता भी नहीं चलता। हिन्दुस्तान ने तमाम थपेड़े सहे हैं लेकिन हिंदुस्तान को मिटाने के कोशिशों पर लोग सफल नहीं हो सके हैं। यह जो हमारी थाती है, यह जो हमारा संस्कार है, यह जो हमारी विशेषता है यह हमारी रगों में बहने वाला वो खून जो हमको संकीर्णता में नहीं विश्‍व को लेकर विश्‍व बंधुत्‍व के रूप में स्‍थापित करता है। आज देश की आजादी के बाद एक ऐसे नेतृत्व में यशस्‍वीप्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी, जो इच्छाशक्ति के धनी हैं और जिन्होंने कम समय में भारत को दुनिया में लीडरशिप दी, जो विजनरीभीहैंऔर मिशनरी भी हैं। विजन होना कोई बहुत बड़ी मुश्किल नहीं है लेकिन उस विजन को मिशन में तब्दील करके धरती पर क्रियान्‍वितकरने की ताकत चाहिए। भाषण देने वाले तो बहुत मिल जाएंगे बड़ी बड़ी बातें करने, बड़ी बातों में क्या जा रहा है? लेकिन छोटी-छोटी बातें बड़े परिवर्तन का कारण बनती हैं। लोग जमीन पर क्रियान्‍वित हों, और इसीलिए बहुत लंबे समय के बाद देश को 70 वर्षों काचिर प्रतीक्षित जो लोगों का मानस था किअपने देश की शिक्षा नीति होनी चाहिए। मैं समझ सकता हूं मैंने शिशु मंदिर में भी पढ़ाया है। यह जो बच्चा हमारे पास उच्च शिक्षा में आया और नीचे से आ रहा है हमने तो उनको संस्कारों से हटा दिया है। वो संस्कार तो उसको स्कूली शिक्षा से मिलेंगे। हमने काटा है, उसको जड़ों से। हमने वहां जहां पर बोना था,वो संस्कार पढ़ने थे, तो उसे हटा दिया। आज पूरी दुनिया इस बात को महसूस करती है कि भारत कीशिक्षा जीवन मूल्यों पर खड़े हो करके ही संभव है जो इसकी बड़ी ताकत होगी। जबयूनेस्को की डीजे पीछे के समय में भारत आयी थी इस बात को लेकर चिंतित थीकिहमारे यहां अनुशासन हीनता क्यों है, हिंसा क्यों है, एक-दूसरे को सम्मान क्यों नहीं दे रहे हैं? मैंने उनसेचर्चा की। यह इसलिए नहीं हो रहा है कि जीवन-परक मूल्यपरक शिक्षा नहीं है। तुम यह चीज को, यह चीज को लेकिन मशीन बना रहे हैं मनुष्य नहीं।हमारे देश के प्रधानमंत्री ने कहा कि हम एक अच्छा नागरिक, विश्व मानव बनाएंगे उसकी आधारशिला यहशिक्षा और इसलिए आज मैं आप सबका बहुत अभिनंदन करना चाहता हूं। मैं सोचता हूं कि इसमें कोई दोराय नहीं है। हमारे देश में पहले से ही यह परंपरा रही है। उस परंपरा कोफिरताकत के साथ खड़ा करना जरूरी है दुनिया के लिए, अपनी पीढ़ी के लिए, अपने भविष्‍य के लिए और मानवता के लिए। हमने हमेशा गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुर्गुरुर्देवो महेश्वरः। गुरुः साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नमः॥  सारे देवताओं के भी ऊपर हमने गुरु को रखा है। क्या हम इसका आंकलन कर रहेहैं? अभी डॉ.सिंह कह रहे थे कि हम होंगे कामयाब, क्यों नहीं होंगे? हम पूरी ताकत के साथ समाहित करेंगे उन ताकतों को,उन संस्कारों को अपने अंदर। इसलिए यदि ‘‘गुरु गोविन्द दोऊखड़े काके लागो पाय, बलिहारी गुरु आपने, गोविन्द दियो बताय। उस बच्चे को कोई कन्फ्यूजन नहीं है। एक तरफ भगवान खड़े हैं दूसरी तरफ गुरु खड़े हैं। किसके पांव को मैं पहले स्पर्श करूं। गुरु के पांव को करना है। गुरु के कारण तो भगवान के दर्शन हुए हैं। गुरु वह जो प्रकाश देता है, जो अंधकार को मिटाता है, जो जीवन देता है। बिना गुरु के, बिना शिक्षा के, तो क्या है, मौत हीतो है गुरू के बिना मनुष्‍य एक चलता-फिरता पुतला है। मानव यदि शिक्षित नहीं है, यदि उसको गुरु का ज्ञान नहीं, गुरु उसको शिक्षित करके आगे नहीं बढ़ा रहे हैं तो क्या है फिर एक चलता-फिरता पुतला है और इसलिए मैं यहसमझता हूं आज हमारे पास गुरुहै। गुरु वही जो शिष्यों को जगाते हैं,दिशा बतातेहैंसिर्फ ज्ञान का संस्कार आप प्रदीप्त करते हैं, साधना भी सिखाते हैं आत्मा से परिचय करना भी सिखाते, प्रेरित भी होते हैं औरउत्प्रेरक भी होतेहै। गुरु इसकी सीमायें नहीं है। एक राजा का सम्मान तो उसके देश में हीहो सकता है लेकिन मेरे गुरु का सम्मान पूरे विश्व में होता है। वो देश की सीमाओं को पार करके जाता है क्योंकि ज्ञान का पुंज  है उसके अंदर ज्ञान हैवो गुरु है वो अंधकार को मिटाने की ताकत है, क्षमता है उनमें। इसीलिए वो जो गुरु होता है, वह पूरे विश्व में उसके लिए पूरी दुनिया एक होती है पूरा संसार उसके चरणों में आकर के खड़ा होता है। आपने डॉ.राधाकृष्णन जी की बात की और वो तो तब भी उन्होंने क्या किया था, मुझे कहने की ज़रूरत नहीं है। आप सब लोग जानते हैंऔर हम सब लोग जानते हैं। मेरा सौभाग्य है कि अब्दुल कलाम जी मुझे बहुत प्यार करते थे और जब-जब वह मिले उन्होंने शिक्षा पर यह हमेशा बात की और मेरी तो एक पुस्तक का जब लोकार्पण किया था तो कितनी देशभक्ति उनके मन के अंदर समाई थी। एक छोटी सी कविता सुनकरउनकी आंखों से आंसू टपकते, मैंने देखे थे।उन्होंने एक बार मेरे से कहा किमैंने सुना कि आपके सन्1883 सेदेशभक्ति के गीत रेडियो पर आते रहे हैं फिर एक जगह क्यों नहीं हो सकते देशभक्ति के गीत। मैंने कहा कि यदि आपका आदेश हैतो मैं जरूर कोशिश करूंगा।‘ऐ वतन तेरे लिए’ मेरे लगभग सौ देशभक्ति के गीतों को उठा करके वह लोकार्पण उन्होंने राष्ट्रपति भवन में किया। उससे पहले जब उनके पास प्रति गई छोटी सी कविता उन्होंने और उसको हिंदी में टाइप करके लगा रखा था। उसको याद किया था और वो था ‘अभी भी है जंग जारी, वेदना सोई नहीं है, मंजुता होगी धरा पर, संवेदना खोई नहीं है, किया है बलिदान जीवन, निर्बलता ढोई नहीं है, कह रहा हूं ऐ वतन तुझसे बड़ा कोई नही है। यह जो पीछे की अंतिम पंक्ति थी उसको एक बार,दो बार कह रहा हूं ‘ऐ वतन तूझसे बड़ा कोई नहीं है’ फिर मेरा हाथ पकड़ते बोलते हैं कह रहा हूं ऐ वतन तूझसे बड़ा कोई नहीं है और आंखों से उनके आंसू टपकते नजर आते। मैंने उस दिन महसूस किया कि इस व्यक्ति के अंदर देशभक्ति का कितना बड़ा सागर है और उसी दिन मेरे मन में आया कि मैं ज़रूर जब मुझे मौका मिलेगा मैं कलाम सर पर कुछ ज़रूर लिखूंगा। उनके जीते जी तो मैं नहीं लिख पाया लेकिन उसके बाद मैंने ‘सपने जो सोने न दें’ उनके व्यक्तित्व और कृतित्व पर लिखा। मैंने इसलिएकहा किवो अध्यापक हैं वो यदि अध्यापक नहीं होते वो गुरु नहीं होते उनके जीवन का अंतिम क्षण भी अध्यापक के ही रूप में खत्म हुआ। वो जो अंदर सेउस बात को महसूस करके बाहर उनके शब्द के रुप में एक-एक शब्द, एक-एक शब्द, उन भावनाओं की गंगा की धारा की तरह जब प्रवाहित होता है तो वो असर करता है और इसलिए मुझे भरोसा है कि हम इसको करेंगे।मैं समझता हूँ कि चाणक्य आपके सामने हैं, अगर चाणक्‍य नहीं होते तो चंद्रगुप्त कैसे होते। वैसे पचासों ऐसे-ऐसे उदाहरण हैं  कि क्या नहीं कर सकता गुरु? और चाणक्य ने कहा था कि शिक्षक कभी साधारण नहीं होता। निर्माण और प्रलय उसकी गोद में पलते हैं। निर्माण और प्रलयदोनों उसकी गोद में पलते हैं शिक्षक के। उस चाणक्य ने आज जिसने सारे विश्व में एक उदाहरण स्थापित किया। इसलिए मैं यह कहना चाहता हूं कि गुरु का जो स्थान है उसका तो व्याख्यान भी हम कर सकते हैं। बस थोड़ा सा, हम जब बैठें तो हम सब लोग आपस में आत्म-चिंतन कर सकते हैं। यहक्षणहम लोगों के लिए आत्मचिंतन का है न तो केवल भाषण दे करके कुछ संभव है, क्योंकि किसको बोलेंगे, हम सब एक परिवार के लोग ही एक-दूसरे को क्या बोल सकते हैं। लेकिन हां, ये क्षणहमारे लिएआत्मचिंतन का जरूर है। जो खाई है उसको कैसे पाटना है, वो खाई बनी तो उसकोपाटना है, क्या मैं उसके लिए महत्वपूर्ण व्यक्ति हो सकता हूं? उस खाई को पाटने के लिए तो कौन आएगा। आसमान से टपक कर तो कोई नहीं आएगा, हमकोहीखड़ा होना पड़ेगा। हमको जो भी खाई दिखती है ताकत के साथ उसको पाटने की प्रक्रिया में आगे आना पड़ेगा, लीडरशिप लेनी पड़ेगी। यह नई शिक्षा नीति जोआई है और नई शिक्षा नीति आपसबको पता है मुझे कहने की जरूरत नहीं है। मुझे इस बात की खुशी है कि आज पूरे देश ने उत्सव के रूप में इस नई शिक्षा नीति को गले लगाया है। खुश हैं लोग। लोगों को कितने खुशी है आप उसकी कल्पना नहीं कर सकते हो। अभी मेरे पासएक पश्‍चिम बंगाल के दूरस्‍थ क्षेत्र के एक सांसद का टेलीफोन आया तो उन्होंने मुझसेकहा कियह क्या जादू कर दिया है आपने इधर हमारा प्रधान भी बोलता है कि कुछ हो रहा है नई शिक्षा नीति आ रही है मैंने उनको कहा, क्यों नहीं बोलेगा गांव का। यह जब ग्राम प्रधान से प्रधानमंत्री जी तक सबके सुझाव आए हैं,प्रधानमंत्री जी का भी एक-एक शब्द का मार्गदर्शन मिला सबको। जब ग्राम प्रधान से प्रधानमंत्री जी तक सबकी सहभागिता है। गांव से लेकर संसद तक की है 2.5 लाखग्रामसभाओं तक हम लोग गए। मेरे एक हजार से अधिक विश्वविद्यालयों के कुलपति गण का सीधा-सीधा इसमें, पैंतालीस हजार डिग्री कॉलेजों के प्रिंसिपल का सीधा सीधा है,मेरे देश के एक करोड़ नौ लाख अध्यापकों की सीधे-सीधे इसमें सहभागिता है।  मेरे देश के पंद्रह लाख स्कूलों की और इस देश के तीस करोड़ से भी अधिक छात्रों उनके अभिभावकों की शिक्षा नीति में सहभागिता है। हमने कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। हमने सबको आमंत्रित किया। हमने तो जोइसका ड्राफ्ट हैउसेबाकायदा पब्लिक डोमेन में डालकर के छह महीने तक रखा।अब किसी को यह लगता हो कुछ और रह गया तो सुझाव दीजिए। शिक्षक दे,शिक्षाविददें,वैज्ञानिक दें,समाज में काम करने वाले लोगों आप दीजिए। जिस-जिस क्षेत्र के लोग हैं, जो-जो अपने देश की अच्छी नीति के लिए दे सकते हैं, दीजिए अपने अनुभव उनको दीजिए। बाद में मत कहनाकि कोई कोर कसर रह गई। कोई किसी को कहने की गुंजाइश नहीं छोड़ी हमने और मैं कह सकता हूं कि उसके बाद भी सवादो लाख सुझाव आए। एक-एक सुझाव का विश्‍लेषण किया हमने और दो-दो, तीन-तीनसचिवालय बनाए। उच्च शिक्षा का अलग बनाया, तकनीकी शिक्षा का अलग बनाया, स्कूली शिक्षा का अलग बनाया, एक पंक्ति भी नहीं छूटनी चाहिए। यह हमारे रिकॉर्ड में आना चाहिए कि क्या किसने कहा है। आज यदि देश का कोई व्यक्ति यह बोले कि मैंने क्या बोला है तो मैं कह सकता हूं, किसने क्‍या बोला है चाहे वो राजनैतिक क्षेत्र का है,प्रशासनिक क्षेत्र का है,जनप्रतिनिधि है चाहे कोई विशेषज्ञ हैं। मैं कह सकता हूं कि किस आदमी ने क्या सुझाव दिया और इसलिए मैं लगातार छह महीने तक सबको आमंत्रित भी करता रहा। लेकिन मुझे खुशी है कि आज इतने बड़े मंथन के बाद जो नीति आई उसने लोगों के मन और मस्तिष्क में एक उत्सव का वातावरण दिया। देश के अंदर आजशिक्षा का उत्सव मनाए जाने  से मुझे खुशी है कि दुनिया के तमाम देश हमसे लगातार संवाद कर रहेहैं। उनको लगता है इसकी खुशबू इतनी तेजी से पूरे विश्व में फैल रही है कि लगभग सात-आठ देशों के शिक्षा मंत्री हमलोगों से संवाद कर रहे हैं। वेकह रहे हैं कि हम भी हिंदुस्तान के एनईपीको अपने देश में लागू करना चाहते हैं। यह इसकी ताकत है। मैं सिर्फ यह कहना चाहता हूं कि हम लोगों के बीच बिल्कुल जो चौहान जी ने भी कहा और सिंह साहब  ने भी कहा कि हमारी दोहरी भूमिका होगी हमारा कितना बड़ा सौभाग्य है। हमारे समय में यहनीति आ रही है,इससे बड़ा सौभाग्य क्या हो सकता है हम को इसकी लीडरशिप मिल रही है और आज भी हमारे प्रधानमंत्री जी उच्च शिक्षा में उस दिन हमारे साथ बैठे थे। उन्होंने आह्वान किया था कि यदि कुछ लोगों के मन में कोई शंका होगी कि नई शिक्षा नीति तो अच्छी बनी है लेकिन इसका क्रियान्वयन कैसे होगा तो उन्होंने कहा था कि यहसरकारइच्छाशक्ति की धनी है और आप इसको लागू करें मैं आपके साथ चट्टान की तरह पीछे हूंऔर आज भी उन्होंने कहा कि यह जो अध्यापक हैं, यदि कोई जहाज जिसको उड़ना है उसका इंजन चाहे कितना ही पावरफुल क्यों नहीं है, लेकिन चलाएगा तो उसको पायलेट ही। जब तक पायलेट नहीं चलाएगा तब तक वो जहाज उड़ेगा नहीं। इसलिए इसमें अध्यापकों की भूमिका है, प्राध्यापक की भूमिका है यह जो लीडरशिप लेनी है हम को, यह लीडरशिप अपने हाथ में लेकर इस चुनौती का मुकाबला करके इनको अवसरों में तब्दील करना है। मुझे खुशी है कि सभी देश के शिक्षा मंत्रियों से मेरी बातचीत होती है और सबके मन में बहुत अच्छाभाव है। जो लोग थोड़ा सा भाषा के मुद्दे पर कभी किसी मुद्देमें बोलते हैं, उन्‍हें मैं कहना चाहता हूं कि भाषाका कोई मुद्दा नहीं  है। हमने तो खुला मैदान छोड़ दिया है। मातृभाषा में हमारी प्रारंभिक चिंता रही है, कोई राज्य यदि उच्च शिक्षा में ले जाना चाहता है तो जरूर ले जाएँ। हां,कुछलोगों ने ऐसा कहा कि नहीं-नहीं हमको देश को आगे बढाना है और अब अंग्रेजी में ही शिक्षा जरूरी है। तो मैंने उनका जबाब तो नहीं दिया लेकिन जब मैंने इसको स्पष्ट किया तो उन्होंने भी कहा कियह बात तो सही है। वो चाहेअमेरिका हो,जर्मनीहो, जापान हो और चाहे इस्राईल हो यह शीर्षजो दुनिया के जो देश हैं क्या वो अपनी भाषा में अपनी मातृभाषा में पढ़ाकर के पीछे चले गए? अपनी मातृभाषा में ज्यादा अभिव्यक्त मिलती है। भाषा तो केवल माध्यम होता है। इसलिए भाषाएं भी जितनी बढ़ा सकते हैं उसे खुली छूट दी है। क्यों बंधनों में बाँधना चाहते हैं कि क्यों दो ही भाषा सीखें,आठ दस भाषाओंको सीखों। लेकिन हां, भारत की जो मातृभाषाएं हैं,जिसकोबच्चे सुन कर के बढ रहेहैं, उस भाषा में उसकी प्रारंभिक शिक्षा होगी और उसके साथ देश की एक भारतीय भाषा आपको जरूर लेनी पड़ेगी। यदि वो उत्तर प्रदेश में है तो मलयालम को पढ़ सके। यदि उधर आंध्रमें है तो वो पंजाबी को पढ़ सके। यह देश एक है। अनेकतामें एकता है और यही हमारी विशेषता भी है। इसीलिए एक भारतीय भाषा को ले और उसके बाद जो आपको भाषा लेनी हैखूब लो, क्या दिक्कत है। मुझे अच्छा लगा कि देश के लोगों ने इस बात को महसूस किया जो लोग थोड़ा सा नाक भौं सिकोड़ने की कोशिश भी कर रहे थे उनको भी समझ में आया कि नहीं इससे अच्छा तो कोईविकल्प नहीं हो सकता है। मुझे इस बात की खुशी है और कितने आधारभूत परिवर्तनों के साथ हम इस शिक्षा नीति को लाए  हैं। मैं सोचता हूं यदि देखा जाय तो यहशिक्षा नीति नेशनल भी है औरइंटरनेशल भी है। यहइन्‍टरेक्‍टिव भी है, इन्क्लूसिव भी है। यदि इस इस शिक्षा नीति को आप जिस रूप में देखेंगेतो यह इंटरनेशनल भी है, इंटरएक्टिव भी है, इम्पैक्टफुल भी है। जिस कोने से भी आप देखेंगे उसको आपको इसकी खुशबू नजर आएगी और इक्विटी, क्वालिटी और एक्सेस इन तीनों की आधारशिला है। ये इसकी पहुँच भी है,उत्कृष्टता भी और समानता भी। ये तीनों चीजें इससेजुडी हुई हैं इसकी आधारशिला हैं। मुझे लगता है कि हमलोगों ने यहमहसूस कराया कि नेशन फर्स्‍ट और करेक्टर मस्ट। इसलिए हम रिफार्म भी करेंगे ट्रांसफोर्मभी करेंगे और हम रिजल्‍ट भी देंगे। हम केवल बोलने के लिए नहीं, हम रिजल्ट देना चाहते हैं। लेकिन मैं जरूर इस बातका आपसे अनुरोध करूंगा कि जो शिक्षक हैंक्‍याउसमें ट्रांसफार्म, टैलेंट, टेंपरामेंट,ट्रेजर, ट्रेनिंग इनपर आधारित है कि नहीं है और यदि है तो फिर इसको ये जो फोर क्‍यूहैं आईक्यू, ईक्यू, एसक्‍यू और टीक्‍यू। बुद्धिमत्ता भी, भावनात्मक भी, आध्यात्मिकता भी, तकनीकी क्षेत्र में इसको साथ समन्‍वय करने की जरूरत है, यह है इसका आधार। कुछबोल करके काम चलने वाला नहीं है मुझे भरोसा है कि इसके एक-एक सूत्र मेंनई शिक्षा नीति है लेकिन इसको जितना विस्तार आप दे सकते हैं जिस सीमा तक जा सकते है उस सीमा तक जा सकतेहैं। हम लोगों ने नेशनल एजुकेशन टेक्नोलॉजी फोरम बनाया है। जिसमें तकनीकी को उस सीमा तक बढ़ाएंगे  जिसका हर जगह उपयोग करें। दूसरी तरफ अनुसंधान के क्षेत्र में हमलोगों ने नेशनल रिसर्च फाउंडेशन बनाया है जिस पर प्रधानमंत्री के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार की अध्यक्षता में तेजी से काम चला चल रहा है। हम शोध और अनुसंधान की प्रवृति को और तेजी से बढ़ाना चाहते हैं क्‍योंकिमुझे मालूम है कि ऐसा नहीं कि हमारे संस्थानों में कोई कमी है। लेकिन हां, अनुसंधान में हम पीछे हैं। पूरी दुनिया के सामने जब मैंनेपीछे के समय क्‍यूएसरैंकिंग औरटाईम्‍सरैकिंग पर बुला-बुलाकर के कहा कि उनको बताओ क्या मानकहैंआपके? क्या मेरे संस्थान पीछे हैं? मुझे महसूस होता है कि जहां थोड़ीबहुत कमियों को भी दूर करके हम अच्‍छा कर सकते हैं। हां, संवाद की कमी है वो वातावरणबनाने की कमीहै थोड़ा-सा संसाधनों की भी कमी होगी लेकिन पूरा करेंगे। अभी हमने स्‍टडी इन इंडिया के तहत पूरी दुनिया के लोगों को हमारे पास आओऔर50 हजारसे भी अधिक बच्‍चे स्टडी इन इंडिया के तहत कोरोना काल में भी आए हैं। उसमें भी आपकी भूमिका कम नहीं रही योद्धा की तरह अपने काम किया। रात-रात में 25 करोड़ छात्रों को ऑनलाइन पर लाकर के खड़ा कर दें। यहदुनिया का पहला उदाहरण होगा। उसमें भी मेरे शिक्षकों ने जिस तरीके की भूमिका निभाई किसी योद्धा की भूमिका से कम नहीं और इसलिए शोध और अनुसंधान में हम थोड़ा सा पीछे रहे हैं इसको भी हम तेजी से आगे बढ़ाएंगे। वह तेजी से बढ़ेगी और अपना मूल्यांकन भी करेंगे। जो संस्था, जो व्यक्ति, जो परिवार, स्वयं मूल्यांकन नहीं करता वो कभी आगे बढ़ नहीं सकता। इसलिए सभी संस्थानों से मैंने बार-बार कहा कि मूल्यांकन की प्रवृति जरूर हो। नीचे सारी संस्थाओं का मैंयूजीसी के चेयरमैन साहब को भी अनुरोध करूंगा कि सब लोगों में यह भावना आए कि जब उसको लगता है कि मेरा मूल्यांकन हो रहा है तो तैयार करता है। अपने को तैयार करने की प्रवृति और प्रकृति होने होने चाहिए। जिस तरीके से विषयों के चुनाव के लिए बिल्कुल मैदान खाली छोड़ दिया कि किस विषय को लेना चाहते हो। किसी भी विषय को आप ले सकते हो।  यह इस नई शिक्षा नीति की खूबसूरती है और इसलिए यह हमसे होकरके गुजरेगी। हम अपने को मन से तैयार करें और मैं सोचता हूं लीडर को तो पूरी मस्ती के साथ आगे बढना है। जो लीडर आधा सोचता है, उसका सिर झुका रहता है। चेहरे पर देखो तो कुंठा दिखती है। जो चेहरा रो रहा वो दूसरों को हंसा कैसे सकता है। जो स्वयं हीनिराशाओं की चपेट में हैं वह दूसरों को जीत कैसे दिला सकता है। इससे पहले जरूर एक लीडर को अपने को सक्षम बनाना पड़ेगा।जब हम कहते हैं कि विपरित परिस्थितियों में लड़ना सीखो, बढ़ना सीखो तो फिर हम क्‍यों नहींविपरीत परिस्थितियों का मुकाबला करें। मुझे भरोसा है हम मुकाबला भी करेंगे और हम रिजल्ट भी देंगे जिस दिन इस देश का आचार्य खड़ा हो गया, जिस दिन इस देश के शिक्षक ने यह ठान ही लिया कोई दुनिया की ताकत हमको फिर विश्वगुरु बनने से रोक नहीं सकती। इस देश में ताकत है और मेरा भरोसा है जो आज आपने यहां पर यह कार्यक्रम किया है। मैं डॉक्टर शर्मा विशेष करके आपको धन्यवाद देना चाहता हूं क्योंकि मैं चाहता था मेरे मन में था मैंसभी अध्यापकगण का अभिनंदन करूं। मैंप्रणाम करूं,शिक्षक दिवस के रूप में यह दिन नहीं कर सके हम लोग, लेकिन यह मेरा परिवार है। इस परिवार को एकजुट हो करके आगे जाना है। इन चुनौतियों का मुकाबला मेरे पूरे परिवार को करना है। अकलुषित मन से करेंगे, ताकत के साथ करेंगे, संकल्प के साथ करने के विजन के साथ करेंगे, मिशन के साथ करेंगे, तब जाकर रिजल्ट निकालेंगे और देश को हम पर भरोसा होगा। हमारे देश के प्रधानमंत्री हमारे पीछे खड़े हैं। पूरा तंत्र आपके पीछे खड़ा है। नीति आपके हाथ में है, 21 करोड़ छात्रों का वैभव आपके पास है। कमी किस चीजहै,जो कमी होगी उसको भी दूर करेंगे। मैं एक बार फिर आप सबको बहुतबधाई देना चाहता हूं। मेरी आपको सबको बहुतशुभकामनाएं।

 

बहुत-बहुत धन्‍यवाद!

 

कार्यक्रम में गरिमामयी उपस्‍थिति:-

  1. डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’, माननीय शिक्षा मंत्री, भारत सरकार
  2. श्री वीरेन्‍द्र सिंह चौहान, अध्‍यक्ष, राष्‍ट्रीय मूल्‍यांकन एवं प्रत्‍यायन परिषद्
  3. प्रो. एस. सी. शर्मा, निदेशक, राष्‍ट्रीय मूल्‍यांकन एवं प्रत्‍यायन परिषद्
  4. डॉ. डी. पी. सिंह, अध्‍यक्ष, विश्‍वविद्यालय अनुदान आयोग

 

 

 

21वीं सदी की स्‍कूल शिक्षा पर आधारित दो दिवसीय कॉन्‍क्‍लेव

21वीं सदी की स्‍कूल शिक्षा पर आधारित दो दिवसीय कॉन्‍क्‍लेव

 

दिनांक: 10 सितम्‍बर, 2020

 

 

माननीय शिक्षा मंत्री, डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक

           

मेरे सहयोगी श्री संजय धोत्रे जी, सचिव उच्‍च शिक्षा, श्री अमितखरे जी, स्‍कूली शिक्षा की सचिव अनिता जी, हमारी राष्‍ट्रीय शिक्षा नीति की ड्राफ्ट समिति के अध्‍यक्ष के. कस्‍तूरीरंगन जी, सभी राज्यों के सचिव, निदेशक और सभी अधिकारीगण, शिक्षकगण, अभिभावकों और छात्र-छात्राएं। आज स्‍कूल एजुकेशन कन्‍क्‍लेव में देश के 15 लाख से भी अधिकस्‍कूल जुड़े हुए हैं जिसमें हमको माननीय प्रधानमंत्री जी का आशीर्वाद मिलने वाला है। इसमें 26 लाख छात्र-छात्राएं जुड़े हुए हैं, इसमें हमारे सीबीएसई बोर्ड के दुनिया भर में चल रहे शीर्ष देशों के अध्‍यापक गण और उनके छात्र एवं अभिभावक जुड़े हैं। मैं इन सबको आज के इस महत्‍वपूर्ण दिवस पर जबकि हम एक नई शिक्षा नीति पर परामर्शकर रहे हैं उसका उत्‍सव मना रहे हैं जिस नीति पर हमारे देश के यशस्‍वी प्रधानमंत्री श्री नरेन्‍द्र मोदी जी का हमको हमेशा मार्गदर्शन मिलने वाला है, ऐसे अवसर पर मैं आप सबका अभिनंदन करना चाहता हूं आप सबका स्‍वागत करना चाहता हूं। आपको मालूम है कि नई शिक्षा नीतिऐसी नीति है जिसका उद्देश्‍य हमारे देश की कई जरूरतों को पूराकरना है। यह संयुक्‍त राष्‍ट्र के सतत विकास एजेंडा 2030 के अनुरूप है। राष्‍ट्रीय शिक्षा नीति क्‍वालिटी, एक्‍सेस के मूलभूत स्‍तंभों पर खड़ी है यह सभी जरूरतों को पूरा करने के लिए है। जहां वर्गीकृत करने की जरूरत थी वहांवर्गीकृत कियागया है और जहांनही थी वहां अवर्गीकृत भी किया गया है। शिक्षा को समकालीन बनाने की दिशामें अब हम आगे बढ़े हैं। इसमें जरूरी लचीलापन भी है तो जरूरी स्‍थायित्‍व भी है। जहां एक ओर हम भारतीय फाउंडेशन पर खड़े होंगे, वहीं दूसरी ओर हमारा दृष्‍टिकोण इंटरनेशनल होगा। दोनों के बीच संतुलन का एक नई  शिक्षा नीति के माध्यम से विशेष ध्यान रखा गया है। शिक्षा को राष्ट्र निर्माण का सबसे शक्तिशाली प्रयोग माना गया है। जिस बदलाव की प्रगति कि हम आशा करते हैं उसका रास्ता शिक्षा और विशेष रूप से स्कूली शिक्षा से ही हो करके गुजरता है। कहा भी जाता है कि बुनियाद जितनी मजबूत होगी, इमारत उतनी ही बुलंद होगी। छात्रों में बाल्यावस्था से ही निवेश करना होगा ताकि हम मजबूत पीढ़ी का निर्माण कर सकें। आज स्कूली शिक्षा कॉन्‍क्‍लेब के अवसर पर मैं विशेष करके अपने प्रधानमंत्री जी का धन्यवाद देना चाहता हूं जो राष्ट्रीय शिक्षा नीति के निर्माण से लेकर अनुमोदन तक और अब क्रियान्वयन की प्रक्रिया तक निरंतर सुझाव और संवाद और चर्चा के जरिये देश तथा शिक्षा मंत्रालय का लगातार और लगातार मार्गदर्शन करते रहे। हमारी जो समिति है उस समिति सेभी बार-बार प्रधानमंत्री जी ने विमर्शकरके और अपने महत्वपूर्ण सुझावों से इसको समर्थवान बनाया है। इस पूरे एजुकेशन कॉन्क्लेव को हमने कुछ खास सत्रों में भी बांटा। एक सामूहिक परिचर्चा का केन्द्र भी बनाया। इन सत्रों की एक संक्षिप्त में रूपरेखा अनिता जी, सचिव स्कूली शिक्षा ने बताया कि कल भी दिनभर हमारापरामर्शहुआ है। कक्षा एक से तीन तक भाषा कौशल तथा गणितीय कौशल पर ध्यान केन्द्रित करने के लिए बुनियादी साक्षरता और संख्यात्मक ज्ञान पर एक राष्ट्रीय मिशन की स्थापना की जाएगी। इसमें पढने-लिखने, बोलने, गिनती करने अंकगणित और गणितीय सोच पर विशेष ध्यान केन्द्रित करने बुनियादी साक्षरता और संख्या ज्ञान पर उच्च क्वालिटी वाले संसाधनों का विकास महत्वपूर्ण पहल की गई है। हर छात्र को स्कूल तक ले जाना और हर छोर तक शिक्षा को पहुंचाना यह हमारा संकल्प है। बच्चों को शिक्षिततो किया ही जाना चाहिए लेकिन खुद भी शिक्षित होने के लिए बच्चों को उन पर छोड़ देना चाहिए। मैं यह समझता हूं यह एक ऐसी शिक्षा पद्धति है जो बच्चों को एक समूह में सीखना और काम करना सिखाती है। टीम भावना व सामूहिक भावना का विकास बाल्यावस्था से ही हो इस दिशा में हमारा विशेष प्रयास है। इससे न केवल बच्चों को उनकी पांचों इंद्रियां विकसित होंगी बल्कि उनमें वैज्ञानिक स्वभाव और सामुदायिकता की भावना भी विकसित होगी। अर्ली चाइल्ड केयर एंड एजुकेशन की यदि हम बात करें तो नई शिक्षा नीति 2025 तक 3 से 6 वर्ष तक की आयु के बच्चों के लिए गुणवत्तापूर्ण प्रारंभिक बाल्यकाल देखभाल और शिक्षा सुनिश्चित करने के लिए प्रारंभिक वर्षों के महत्व पर बहुत बल दिया गया है। इसलिए आपने देखा होगा कि हमने टेन प्लस टू को हटा करके फाइव प्लस थ्री, थ्री प्‍लस फोर प्रस्तुत किया है। आज एनसीईआरटी द्वारा आठ वर्ष की आयु तक के बच्चे के लिए प्रारंभिक बाल्यकाल देखभाल और शिक्षा के लिए एक राष्ट्रीय पाठ्यक्रम औरशिक्षाकी रूपरेखा तैयार की जा रही है। प्रारंभिक बाल्‍यावस्‍था शिक्षा की योजना बनाने और कार्यान्वयन का कार्य शिक्षा मंत्रालय, महिला और बाल विकास मंत्रालय, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय तथा जनजाति कार्य मंत्रालय द्वारा संयुक्त रूप से किया जाएगा। अंतर-मंत्रालय सहयोग से सहभागीता के साथ हम एनर्जी भी पाएंगे और सिनर्जी भी पाएंगे। मैं यह समझता हूं कि यह एक परिवर्तनकारी काम इस शिक्षा नीति के तहत किया जा रहा है। एक मुखी रिपोर्ट कार्ड नहीं होगा बल्कि आप 360 डिग्री होलिस्टिक मूल्यांकन होगा बच्चे का और वो एकमुखी नहीं बल्कि बहुमुखी, चहुंमुखी और रिपोर्ट कार्ड नहीं बल्कि प्रोग्रेस कार्ड उसको दिया जाएगा, बच्चा स्वयं अपना मूल्यांकन भी करेगा। अभिभावकभी मूल्यांकन करेंगे। अध्यापक भी मूल्यांकन करेंगे और उसका साथी भी उसका मूल्यांकन कर पाएगा । यह जो चौमुखी मूल्यांकन होगा इससे उसकी हर प्रकार की क्षमता निखर कर के सामने आएगी। जहां एक ओर इनपुट का आकलन होगा अब वहीं आउटपुट का भी आकलन इसी नीति के तहत किया जाएगा। लर्निंग आउटकम को वैज्ञानिक तरीकों से जांचा परखा और तय किया जाएगा। लक्ष्‍यआधारित कार्य योजना तैयार की जाएगी जिसको एक समय अवधि के अंदर बांटा जाएगा। भाषा की दृष्टि से बात करें तो भारतीय भाषाओं का प्रचार-प्रसार एवं संरक्षण-संवर्धन जीवंतता को सुनिश्चित करने के लिए बहुत सारी पहले इसमें की गई हैं। शास्त्रीय, जनजातीय और लुप्त प्राय: भाषाओं से सभी भारतीय भाषाओं को संरक्षित करने और उन्हें बढ़ावा देने के प्रयास किए जाएंगे। चाहे तेलगू है, मलयालम, गुजराती, मराठी है, बंगाली है, उड़िया है,उर्दू है, संस्कृत और हिन्दी है सभी भारतीय भाषाएं जो संविधान की अनुसूची 8 में जो हमारी 22 भारतीय भाषाएं हैं उनको और सशक्त किया जाएगा और किसी भी प्रदेश अथवा क्षेत्र पर कोई भाषा नहीं थोपी जाएगी, कोई भी सत्र पृथककरण नहीं होगा। सत्रमें शिक्षा का लचीलापन, इंटरएक्टिव तथा बहु पक्ष पर लगातार चर्चा की जाएगी। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के दौर में हमारी शिक्षा नीति आधुनिकता के सारे आयामों को बहु विषयक और बहुभाषी पक्षों को लेकर के आगे बढ़ रही है। आज कृत्रिम बुद्धिमत्ता यानी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से प्रभावित हमारी पीढ़ी को प्रभावी बुद्धिमत्ता की ओर ले जाए इसका भी विशेष ध्यान रखा गया है। छात्र प्रतिभावान हो सकता है परंतु यदि शिक्षा नीति उसकी प्रतिभा का विस्तार नहीं करती तो पूरी तरह हम अपने उद्देश्य में सफल नहीं हो सकते। इसलिए जो प्रतिभाशाली है तो उसकी प्रतिभा को कैसे करके आगे बढ़ाया और किसदिशा में और किस सीमा तक बढ़ाना है यह भी इस शिक्षा नीति का एक बहुत अहम् हिस्सा है। इस शिक्षा नीति में टैलेंट की पहचान तो होगी और टैलेंट को विकास भी किया जाएगा और उसका विस्तार भी किया जाएगा। अपनी प्रतिभा को साबित करने के लिए उसको पूरा अवसर दिया जाएगा क्योंकि छात्र ही हमारी इस रणनीति का केन्द्र बिन्दु है। हमारी नीति और हमारी रणनीति काजो केन्द्र है, वह हमारा छात्र है। इसी प्रगतिवादी सोच को सामने रखकर ही स्कूली शिक्षा में मूलभूत बदलाव किए गए हैं। मैं समझता हूं जो अब सबके सामने है जिसने अपने आप को खुलापन दिया है। बच्चों को छठी से ही वोकेशनल स्ट्रीम के साथ ही शैक्षणिक गतिविधियों के साथ उसकी शिक्षणेत्तर गतिविधियां और व्यावसायिक को तोजोड़ा, वोकेशनल स्ट्रीम के साथ उसे बढ़ाने का हो और चाहे स्कूली शिक्षा से कृत्रिम बुद्धिमता को आगे करने का विषय हो, मैं समझता हूं कि भविष्य का सोचिए तो हम उस युग की ओर बढ़ रहे हैं जहां कोई व्यक्ति जीवन भर किसी एक जगह स्थिर नहीं होगा। उसे क्रिएटकरते रहना होगा वरना डिफेन्‍डहोने का खतरा बना रहेगा। आज के दौर में चाहे हमारे कंप्यूटर हो या मोबाइल हो आज छात्र हो या स्वयं शिक्षक हो, यदि खुद को अपडेट नहीं करेंगे तो आउटडेटेड होने की संभावनाएं बनी रहेंगी और इसलिए इस दिशा में भी हम चौकस हैं। आज नई शिक्षा नीति खुद को स्किल और वोकेशनल ट्रेनिंग के जरिए अपडेट रखने में ज्यादा कारगर साबित होगी। अपडेट करते रहने की संस्कृति और सोच के साथ यह शिक्षा नीति आगे बढने की दिशा में बहुत अद्भुत परिणाम भी देगी, ऐसा मेरा भरोसा है। अच्छे सेअसेसमेंट और इनफ्लेशन से इंटीग्रेशन तक प्राथमिक शिक्षा से रिसर्च तक और थिंकिंग से अब थॉट प्रोसेस तक की यह नई शिक्षा नीति की यात्रा है। यह नीति सोच को अब सारे रूप में परिणित करने का भी आधार खड़ा करेगी। अगर हम लोग कार्यान्वयन की बात करें तो नीति निर्माण यह एक बहुत महत्वपूर्ण हिस्सा है और इसलिए नीति का जो क्रियान्वयन है यह स्‍वाभाविक ही है कि यह लीडर बहुतकुछ निर्भर करती है और इसलिए यह जो दोनों चीजें हैं यह लीडर पर ज्यादा निर्भर करेगी। ऐसी लीडरशिप जो नीति को जमीन पर उतार सकेगी। मैं आशा करता हूं कि शिक्षक से लेकर अभिभावक, संस्थान से लेकर के शिक्षाविद सचिव स्तर से लेकर के शिक्षा मंत्री हम सब मिलकर के अपने स्तर पर इस नीति को नेतृत्व देंगे, दिशा देंगे। हम इसी नीति का ऊर्जा के साथ क्रियान्वयन करेंगे और जिससे हमारे राष्ट्रीय स्तर पर एक क्रांतिकारी बदलाव आएगा।ऐसा बदलाव जिसका इंतजार इस देश को पिछले 75 वर्षों से है और निश्चित रूप से यह बदलाव भारत को ज्ञान की महाशक्ति के रूप में परिवर्तित भी करेगा। शिक्षा में राज्यों की भूमिका निश्चित रूप से बहुत महत्वपूर्ण है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति राज्यों को संविधान की समवर्तीप्रावधानों को ध्यान में रखते हुए विभिन्न मामलों पर निर्णय लेने की स्‍वायत्‍ता का अधिकार भी देती है।हमें केंद और राज्यों के इस स्तर पर व्यापक सुनियोजित और समझने वाली रणनीति बनानी होगी। राज्य सरकारों से सभी हितधारकों के साथ चर्चा के बाद एक नये व्यापक राष्‍ट्रीय पाठ्यक्रम की रूपरेखा का निर्माण एनसीईआरटी उस दिशा में काम कर रही है और राज्यों सेमैंनिवेदन करूँगा कि उनके जो एससीईआरटी हैं राज्यों में उन्होंने भीअपना काम करना शुरू कर दिया होगा। एनईपी 2020 के लक्ष्यों और उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए हमने प्रत्येक सिफारिश को मिशन मोड में लिया है। जितनी भी सिफारिशें हमारी समिति ने हमको दी हैंउन पर एक जुनूनी तरीके से हमनेमिशन मोड में लाने की कोशिश की है और इसको समय सीमा के साथ जोड़ते हुए और हम लोगोंने निश्चित कार्ययोजना उसमें बनाई है और लगातार हम बना रहे हैं। इस कार्यान्‍वयनयोजना का मुख्य फोकस इस बात पर है कि केंद्र और राज्यों द्वारा संयुक्त क्रियान्वन किया जा सके। राज्यों की भूमिका और केन्द्र के साथ हम राज्य और केंद्र दोनों मिलकर के इस और जो महत्वपूर्ण सूत्र है हमारा नई शिक्षा नीति का उसको निश्चित क्रियान्वित करेंगे,मिल करके करेंगे।जहां संवाद की आवश्यकता होगी, वहां संवाद भी किया जाएगा और विवाद को पीछे छोड़कर के संवाद को सहभागिता के साथ हम सकारात्मक दिशा में आगे बढ़ेंगे। हम कोशिश करेंगे कि छोटी-छोटी चीजों में ना उलझें क्योंकि स्वाभाविकहीचाहे कोई व्यक्ति है, परिवार है,अथवा राष्‍ट्र है कभी प्रगति नहीं कर सकता। इसलिए हम छोटी छोटी बातों में न उलझ कर हम एक बड़े लक्ष्य की ओर  सब मिलकर इसको क्रियान्वित करेंगे। क्रियान्वन योजना में नीति की भावना और सहयोगात्मक संघवाद जैसी बुनियादी बातों के साथ हम इसको अमल में लाएंगे।शीघ्रही टास्क लिस्ट को आने वाले दिनों में राज्यों और केन्द्र शासित राज्यों को हम लोग साझा कर रहे हैं। लगभग 300 से अधिक बिंदु हम लोगों ने बनाए हैं जिसमेंराज्‍य और हम आपस में परामर्श करेंगे उनके सुझाव मिलेंगे और उनके क्रियान्वन की दिशा में चरणबद्ध तरीके से कैसे काम करेंगे उस पर भी विचार विमर्श होगा। बिना किसी संकोच और पूर्वाग्रह के जरूर हमको आप सुझाव भेजेंगे,ऐसी मैं आशा कर रहा हूं। जैसे हमारे देश के प्रधानमंत्री जीने पीछे के समय कहा कि यहकिसी एक सरकार की नीति नहीं है,यह किसी एक विभाग के नीति नही है यह देश की शिक्षा नीति है और इस नीति में सभी का हित निहित है। जिस प्रकार का विस्तृत विचार मंथन और चिंतन नीति के प्रथम चरण में मिला वैसी समावेशी सोच के साथ क्रियान्वयन में भी हमें ‘सबका साथ और सबका विश्वास’ मिलेगा। ऐसी मैं आशा कर रहा हूं। मुझे पूर्ण विश्वास है कि कश्मीर से कन्याकुमारी तक कच्छ से अरुणाचल तक सभी छात्रों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मिलेगी और देश का हर छात्र शिक्षित होगा, ऐसी संपदा के रूप में ताकत बन कर के आत्मनिर्भर, शिक्षित और सशक्त भारत के निर्माण में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकेगा। हमारे देश के प्रधानमंत्री ने कहा है कि 21वीं सदी भारत की स्वर्णिम सदी है तो जिस स्वर्णिम भारत की उन्होंने कल्पना की है जो स्‍वच्‍छ भारत,स्वस्थ भारत, सशक्त भारत होगा,श्रेष्‍ठ भारत होगा। ऐसा एक श्रेठएवंआत्मनिर्भर भारत जो 21वीं सदी का स्वर्णिम भारत होगा। उस भारत की नींव बनेगी यह नयी शिक्षा नीति। मैं सभी हितधारकों, अभिभावकों, शिक्षकों, स्कूली छात्रों, शिक्षाविदों से आह्वान करना चाहूंगा कि क्रियान्वन हेतु अपने सुझावदें, चर्चा करें, हर स्तर पर चर्चा करें, नीचे के स्तर पर चर्चा करें। राष्ट्रीय शिक्षा नीति को जमीनी स्तर तक पहुँचाने के लिए जागरूकता अभियान और शिक्षा के संवाद आयोजित करें। हर छात्र, हर शिक्षक, हर संस्था, हर एक प्रदेश,अपनी-अपनी रणनीति बनाएं और हर छात्र, हर शिक्षक इसका ब्राण्ड एम्बेसडर बनें ताकि नीचे तक उस बात, उस भावना को लेकर की जा सकें। पूरे राष्ट के विमर्श और चिंतन के बाद पूरे राज्य की आकांक्षाओं को समेटे हुए राष्ट्र की शिक्षा नीति पर आप सबके क्रियान्वन का सुझाव फिर आमंत्रित करना चाहूंगा। जैसेकि हमारे माननीय मंत्री मेरे सहयोगी आदरणीय  शिक्षा राज्य मंत्री जी ने अपने विचारों में भी कहा कि हम चाहते हैं कि खुल कर के हम सब  मिल कर के साथ आगे बढ़े और हमारे प्रधानमंत्रीजी नेहमको समय समय पर आशीर्वाद दिया। मुझे विश्वास है कि आप सभी के सहयोग, समन्वय,सहभागिता और नेतृत्व से हम शिक्षा नीति का सफलतापूर्वक क्रियान्वयन कर पाएंगे। भारत एक वैश्विक ज्ञान की महाशक्ति के रूप में उभरेगा जिसकी पूरी दुनिया प्रतीक्षा कर रही है। मैं कस्तूरीरंगन जी आपको, मंजुल भार्गव जी,डॉ.श्रीधर जी, डॉ.वसुधा तामत जी सहित मैं जितने भी आप के सदस्य हैं मुझे आपका बार-बार अभिनन्दन करने का मन होता है क्योंकि आपने रात-दिन एक मिशन मोड में आपने यह नहीं सोचा कि हमको कुछ काम सौंपा है, इसको केवल पूरा करना है बल्‍कि वो काम, उसका रिजल्ट कैसे अंतिम छोर तक पहुँच सकता यह आपकी सोच रही है। मैंने बहुतनिकटता से आपलोगों को देखा है। मंजुल जी मैं विशेष कर के आपको क्‍योंकि आप अमेरिका से जुड़े हैं और जैसे अनीता जो सचिव हैं उन्होंने कहाहै कि वहां अभी तो रात के दो-तीन बज रहे होगें लेकिन आपहमेशा से जुड़े रहे हैं। मंजुल ने इस देश का गौरव भी बढ़ाया है, दुनिया में और हमकोउनसे बहुत आशाएं भी हैं लेकिन जब-जब भी हमने उनसे अपेक्षा की उन्होंने बिना किसी संकोच के और चलकर के यहांआये और यहां भी सप्ताहों तक में एक-एक शब्द हमारे प्रधानमंत्री जी से होकर के गुजरा है, सब कमेटी से वो करके गुजरा है और इसीलिए इस पर इतनी ताकत है। मंत्री संजय जी ने कहा कि इतना बड़ा विमर्श तो शायद दुनिया में हुआही नहीं होगा। किसी भी नीति पर दुनिया में सबसे बड़ा विमर्श है। आज करोड़ों छात्रोंके साथ विमर्श,करोड़ों अभिभावकों के साथ विमर्श ग्रामप्रधान से ले कर के प्रधानमंत्री जी तक आज चाहे संसद का सदस्य हो या किसी विधान सभा का सदस्‍य हो,ग्राम प्रधान हो या उच्च शिक्षाका कोई अधिकारी हो, बेसिक शिक्षा का कोई अधिकारी हो,चाहे अपने शिक्षाविद् हों, विशेषज्ञ हों, एनजीओज हों, कोई क्षेत्र नहीं छोड़ा और मुझे लगता है उसी का परिणाम है कि यह जो अमृत हमारे सामने निकला है आज देश का कोना-कोना स्वागत कर रहाहैदुनिया के देश भी इस एनईपीको अपने देश में लागू करने के बारे में भी लगातार संवादकरते जा रहे हैं। यह इस नई शिक्षा नीति की ताकत है। मुझे भरोसा है कि इस नई शिक्षा नीति को हम तेजी से क्रियान्वित करेंगे और जो कल से लेकर के आज तक छह थीमों पर लगातार परामर्श हो रहा है जिसमें हमारे राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित हमारे अध्यापकगणजो लगातार कल से विमर्श कर रहे इन छह थीमोंपर जो आपने अपना सुझाव दिया है, परामर्श दिया, चर्चा की है। यह भी हमारी ताकत बनेगी और आज पूरे दिन भर उन छह थीमोंपर जिस पर कल हमारे अध्यापक दल ने अपनेसुझाव दिए हैं, आज विशेषज्ञों की टीम पूरे दिन भर उस पर संवाद करेगी और उससे भी कुछ ऐसा निकलेगा जिससे हम इस नयी शिक्षा नीति को नीचे तक क्रियान्‍वितकरने की दिशा में बहुत अहम भूमिका उन विषयों की सफलतापूर्वक संचालित हो सकेगी उसको रिजल्ट दे सकेगी जो हम चाहते हैं वह हमारी इच्छा को पूर्ति कर सकेगी तो एक बार मैं पूरे देश के कोने-कोने से जुड़े मेरे 27 करोड़ से भी अधिक छात्र छात्राओं को कहना चाहता हूं कि आपके लिए पूरा मैदान खाली है। हमारे देश के प्रधानमंत्री जी समय समय पर हमारे साथ मिलते भी रहे हैं,अपना आशीर्वाद भी देने के लिए हमेशाआए हैं। कभी परीक्षा पर चर्चा हो तो हमारे बीच आये हैं चाहे वो ध्रुव तारा को बनाने की दिशा में आपकामार्गदर्शन रहा हो विभिन्न प्रकार से अपना महत्वपूर्ण समय देकर अपना आशीर्वाद देने के लिए आते रहें हैं। अभी थोड़ी देर में प्रधानमंत्री जी आपके बीच आ रहे हैं हम सबको आशीर्वाद देने के लिए। इसलिए छात्र-छात्राओं मैं आपको शुभकामनाएं दे रहा हूं। मैं अभिभावकों को भी शुभकामना देता हूं और विशेष करके अध्यापकगण जो इसकी महत्‍वपूर्णकड़ी होंगे जिनके मार्गदर्शन में हम इस बड़ी संरचना को धरती पर क्रियान्वित कर सकेंगे । एक बार फिर हृदय की गहराइयों से इन सबका मैं आभार प्रकट करता हूं।

 

बहुत बहुत धन्यवाद!

 

कार्यक्रम में गरिमामयी उपस्‍थिति:-

 

  1. श्री नरेन्‍द्र मोदी, माननीय प्रधानमंत्री, भारत
  2. डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’, माननीय शिक्षा मंत्री, भारत सरकार
  3. श्री संजय शामराव धोत्रे, माननीय शिक्षा राज्‍य मंत्री, भारत सरकार
  4. श्री अमित खरे, सचिव, उच्‍चतर शिक्षा विभाग, शिक्षा मंत्रालय
  5. सुश्री अनिता करवल, स्‍कूली शिक्षा विभाग, शिक्षा मंत्रालय,
  6. प्रो. के. कस्‍तूरीरंगन, अध्‍यक्ष, ड्राफ्ट समिति, राष्‍ट्रीय शिक्षा नीति

अंग्रेजी एवं विदेशी भाषा विश्‍वविद्यालय, तेलंगाना द्वारा निर्मित मोबाइल एप का शुभारम्‍भ

अंग्रेजी एवं विदेशी भाषा विश्‍वविद्यालय, तेलंगाना द्वारा निर्मित मोबाइल एप का शुभारम्‍भ

 

दिनांक: 31 अगस्‍त, 2020

 

 

माननीय शिक्षा मंत्री, डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’

 

आज के इस कार्यक्रम में एक बहुत हीमहत्वपूर्ण ऐप के निर्माण में हमारा यह अच्छा विश्वविद्यालय जिसका शिक्षा जगत में बड़ा नाम है वहमहत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। वहां से ऐसेऐप को जन्म मिला है जिसकी वर्तमान में जरूरत थी और इस कार्यक्रम में हमारे बहुत ही अनन्य सहयोगी आदरणीयसंजय धोत्रे जी,जिनका भी हमको मार्गदर्शन मिला है और जो इंजीनियरिंग क्षेत्र से हैं और विविधक्षेत्रोंमें जिनको बहुत महारत हासिल है जोमृदु स्वभाव और प्रखरता का अद्भुत संगम भी है। हमारे इस विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो.सुरेश कुमारजी और मैं देख रहा हूँ कि सभी फैकल्टी जुडी हुई हैं और कार्यपरिषद् सहित सभी परिषदों के सभी आदरणीय सदस्यगण जुड़े हुए हैं। कुलपति जी ने बताया है कि तमाम छात्र आज इस कार्यक्रम से जुड़े हैं सबसे पहले तो मैं आपको ढ़ेर सारी बधाई देना चाहता हूँ क्योंकि विश्वविद्यालय ज्ञान का ऐसा कोष है जहांसे हर चीज़ को बाहर निकलना ही निकलना है। जो छात्र वहां पढ़ रहे हैं और जो अध्यापक शोध कर रहे हैं यह सभी लोगमिल करके प्रतिदिन कुछ नया क्या हो सकता है यहशोध अनुसंधान की जो अभिलाषा है इसको लेकर के जिस तरीके से यहां काम शुरू हुआ है उसके लिए मैं बहुत बधाई देना चाहता हूं और सामाजिक दायित्व के तहत आपने यह किया है क्योंकि यहशिक्षा का एक ऐसा केन्द्र है जिसपर सबकीनिगाह है,यह हमारा भविष्य है। जो छात्र हैवो स्‍वयंअपनी आशाओं का तो केन्द्र हैं,अपने परिवार की भी आशाओं एवं अपेक्षाओं का केन्द्र हैं, मेरे देश की आशाओं का केन्द्र है और मैं कह सकता हूँ जैसे हमारे माननीय मंत्री संजय जी ने अभी बताया कि यह देश सामान्य देश नही रहा है और इस देश में तक्षशिला, नालंदा और विक्रमशिला जैसे विश्वविद्यालय रहे हैं जहाँ से पढ़कर के पूरी दुनिया में हमारा ज्ञान-विज्ञान-अनुसंधान गया है और हमने लीडरशिप ली है। हमारे देश नेविज्ञान में, ज्ञान में, प्रौद्योगिकी में किसी भी क्षेत्र में आप देखेंगे तो पूरी दुनिया को एक लीडरशिप दी तब तो दुनिया में कोई विश्वविद्यालय नहीं होते थे। जब तक्षशिला, नालंदा और विक्रमशिला जैसे इसभारत में विश्वविद्यालय होते थे तो दुनिया के लोग हमसे सीखनेके लिए आते थे और शिक्षा ग्रहण करके जाते थे। मैं यह समझता हूँ कि वह आपको याद रखना है और उसको याद रख कर के वर्तमान से जोड़ना है और वर्तमान से छलांग मारकर हमको वैश्विक शिखर पर जाना है, यहहमारा रास्ता है और उस रास्ते  पर जाने के लिए हमें बहुत ताकत के साथ आगे बढ़ना है क्योकि मेरे देश के प्रधानमंत्री जी ने हमको हमेशाकहा है कि नए भारत के निर्माण की जरूरत है।ऐसाभारत जो विश्वगुरु रहा है जिसके बारे में संस्कृत में एक उक्ति है‘एतद्देशप्रसूतस्य सकाशादग्रजन्मनः स्वं स्वं चरित्रं शिक्षेरन्पृथिव्यां सर्वमानवाः’ जहां पूरी दुनिया हमारे पास आकर खड़ी हो जाती थी और वैसे भी यह देश विश्व बंधुत्व की बात करता है, मानव कल्याण की बात करता है। इसलिए मेरे देश के प्रधानमंत्री कहते हैं कि नए भारत के निर्माण की जरूरत है।ऐसा भारत जो स्‍वच्‍छ भारत हो, जो स्‍वस्‍थ भारत हो, जो सशक्त भारत हो, जो समृद्ध भारत हो, जो श्रेष्ठ भारत हो, जो एक भारत हो तो वहीश्रेष्ठता हमें लानी है और अभीजैसा हमारे माननीय मंत्री जी ने कहा कि उसका रास्ता भी हमारे देश के प्रधानमंत्री जी ने हमको बताया है और सूत्र रूपमेंबताया है। इसका रास्‍ता‘मेक इन इंडिया’,‘डिजिटल इंडिया’,‘स्किल इंडिया’,‘स्टार्ट अप इंडिया’ और ‘स्‍टैंड अप इंडिया’ से होकर गुजरता है। क्‍यों‘मेक इन जापान’ हो,क्‍यों ‘मेक इन चीन’हो?मेरे हिन्दुस्तान में प्रतिभा की कमी नहीं है, विजन की कमी नहीं है, विजन को मिशन में क्रियान्वित करने की कोई कमी नहीं है फिर पूरी दुनिया में ‘मेक इन इंडिया’ क्‍यों नहीं हो सकता है क्योंकि ‘मेक इन इण्डिया’,‘डिजिटल इण्डिया’,‘स्टार्टअप इंडिया इन तीनों का बहुत अद्भुत समन्वय रहा है।आपने भारतीय शैली में अंग्रेजी बोलने के लिए जोऐप तैयार किया हैताकि कोई भी छात्र अपने को कमजोर महसूस न करें। हमें तो पूरी दुनिया मेंजाना है, दुनिया हमको देख रही है। तमिल, तेलगू, मलयालम, कन्नड़, गुजराती, मराठी, बंगाली, उड़िया, उर्दू, हिन्दी, संस्कृत, पंजाबी एवं अन्‍य भाषाएं जो हमारे संविधान की अनुसूची 8 में हैं, हमारे देश की जो 22 भाषाएं हैं उनके साथ पूरे विश्व के फलक पर दौड़ना हैतो अंग्रेजी सहित विश्व की तमाम भाषाओं को मेरे छात्र-छात्राएं कैसे सीख सकते हैं इसके लिए जो प्रयास आज आपने किया है, जितने भी छात्र, अध्यापकगण इस मिशन में जुटे हुए हैं, मैं उनको बधाई देना चाहताहूं।आपको मालूम होगा कि अभीपीछे के दिनों में भारत सरकार ने कई विदेशी ऐप पर प्रतिबन्ध लगाया था जो भारतीय मानकों पर खरी नहीं उतरते थे।मैं छात्रों से कहना चाहता हूँ कि आपके लिए पूरा मैदान खाली है और जो नई शिक्षा नीति आ रही है जिसमें पूरा मैदान आपके लिए खाली छोड़ा हैआप कोई भी विषय चुन सकते हैं, आप विज्ञान के साथ साहित्य ले सकते हैं,भाषा का भी कोई बंधन नहीं है और न विषयों का बंधन है। आप किसी भी भाषा को ले सकते हैं, मातृभाषा में शुरू कर सकते हैं। यूनेस्को सहित दुनिया के तमामविशेषज्ञों और वैज्ञानिकों ने कहा है कि बच्चा अपनी मातृभाषा में ज्यादा सीखता है और तीन से छह वर्ष की आयु समूह के बच्‍चों में मस्‍तिष्‍क का विकास सर्वाधिक होता है।इसलिएहम उस आयु समूह को भी पकड़ना चाहते हैं क्योंकि बच्चा हमारी निधि है। मेरे देश की निधि हैं, देश की धरोहर है,देशका भविष्य है। इसलिए हमने नई शिक्षा नीति में 10+2 को खत्‍म करके5+3+3+4 किया है,हम उस बच्चे के विजन के साथ, जो वहबच्चा सोचता है उसको साथ लेकर आगे बढ़ना चाहते हैं।यह शायद दुनिया का पहला देश होगा जो स्कूली शिक्षा सेआर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को पढ़ायेगा और हम इसको वोकेशनल स्ट्रीम के साथ, इंटर्नशिप के साथ आगे बढ़ाएंगे। अब हम बच्चे को रिपोर्ट कार्ड नहींदेंगे बल्‍किप्रोग्रेस कार्ड देंगे कि वह क्‍या प्रगति कर रहा है। अब हम उसका360 डिग्री होलिस्टिक मूल्यांकन करेंगे।बच्‍चा स्‍वयं भी अपना मूल्यांकन करेगा, उसका अध्यापक भीमूल्यांकन करेगा, उसका अभिभावक भीमूल्‍यांकन करेगा और उसका साथी भी उसका मूल्यांकन कर सकेगा।जब वह स्कूली शिक्षा से बाहर निकलेगा तो वो स्किल से भरा योद्धाहोगा,वहकौशलयुक्‍तहोगा औरउसेदर-दर भटकने जरूरत नहीं पड़ेगी।उधर हम लोगों ने आईआईटी, ट्रिपलआईटी, आईसीआर,आईआईएमसे यह कह दिया कि आप उद्योगों के साथ मिलकर पाठ्यक्रम बनाओ। ऐसा नहीं होना चाहिए कि मेरा छात्र पढ़ कुछ और रहा है औरउद्योग कुछ और चाहते हैं। इसलिए हम जो यह नई शिक्षा नीति लेकरआये हैं उसमें आप किसी भी विषय को ले सकते हैं और इतना ही नहीं,मैं छात्रों से कहना चाहता हूँ इस शिक्षा नीति के अंतर्गत यदि कोई 4 वर्ष का कोर्स है और यदि कोई छात्र दो साल में परिस्‍थितिवशछोड़के जा रहा है  तो पहले उसका पैसा एवं वर्ष दोनों खराब हो जाते थे लेकिन अब उसकोनिराश नहीं होना पड़ेगा।यदि आप परिस्‍थितिवश एक वर्षमें छोड़ कर जा रहे हैं तो  आपको सर्टिफिकेटदेंगे,दो साल में छोड़ कर जा रहा है तो डिप्लोमा देगें, तीन साल में छोड़कर जा रहे हैं तो उसकोडिग्री देंगे लेकिन यदि फिर वह लौट कर अपने भविष्य को संवारना चाहता है तो फिर जहां से उसने छोड़ा था वहीं से शुरू कर सकता है। उसके लिए हम एक ऐसा क्रेडिट बैंक बनायेंगे जहां उसके सारे क्रेडिट जमा होंगेइसलिए उसके लिए आगे बहुत आपार संभावनाएं है।मुझे लगता हैकि जिस तरीके का परिवेशहै,प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भीहम बहुत तेजी से आगे बढ़ेंगे। हम लोगों ने शोध और अनुसंधान के क्षेत्र मेंतय किया है क्योंकि मुझे लगता है कि जब मैं अपने संस्थानों कीविश्‍व के शिखर के संस्थानों के साथ समीक्षा करता हूं तोटाईम्‍सरैंकिंग होया क्‍यूएसरैंकिंग हो, उसमें हम कहां पर थोड़ा सा कमजोर हैं, तो मुझे लगता है कि हम थोड़ा सा शोध और अनुसंधान में कमजोर हैं और इसलिए हम उस कमी को भी दूर करना चाहते हैं। हम प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में,जहाँ हमारी प्रौद्योगिकी नवाचार से युक्‍त होगी,गुणवत्तापरक होगी, उत्कृष्टता से युक्त होगी, उदारवादी होगी और अंतिम छोरपर बैठे रहने वाले व्यक्ति तक जाने में भी समर्थ होगी और यह समावेशी भीहोगी तथा सार्वभौमिक भी होगी। मैं समझता हूं कि जिस तरीके से स्‍वायत्‍ताके क्षेत्र में, संबद्धता के क्षेत्र में और ‘नेशनल एजुकेशन टेक्नोलॉजी फोरम’ को गठित करके चाहे ‘स्वयं’ है,‘स्‍वयं प्रभा’ है,‘एनडीएल’ है,‘ई-पाठशाला’ है,‘दीक्षा’हैइसको हम‘वन नेशन वनडिजिटल प्लेटफॉर्म’ पर लाना चाहते हैं और ‘वन क्लास वन चैनल’कोविकसित करना चाहते हैं और यदि मैंनिचोड़ में बोलूं कि इसको क्या कह सकते हैं तो मैं कहना चाहता हूं यह शिक्षा नीति नेशनल भी है, इंटरनेशनल भी है, यह इंटरेक्‍टिवभी है, इम्पैक्टफुल भी है,इनोवेटिवभी है और यहइक्विटी, क्वालिटी और एक्सेस की आधारशिला पर खड़ी होती है।हमारेदेश के प्रधानमंत्री समय-समय पर कहते हैं कि ‘सबका साथ सबका विकास’हमसबको साथ ले करके चलना चाहते हैं। यदि देश को, राष्ट्र को मजबूत करना है तो अंतिम छोर के बच्चे को, अंतिम छोर के व्यक्ति को भी साथ ले करकेदौड़ना पड़ेगा।यह जो नई शिक्षा नीति आई है इसने आपके लिए पूरा मैदान खाली छोड़ाहै। अभी हम दुनिया के जो शिखर के विश्वविद्यालय हैं उनको अपनी धरती पर आमंत्रित कर रहे हैं क्योंकि लोगों की यी मनोस्थिति बन गई हैकि अगरउनको विदेश में जाना है तो विदेशों में पढ़ाई करनी  चाहिए। मैं छात्रों से कहनाचाहता हूं कि दुनिया में हमारी शिक्षा उत्कृष्ट शिक्षा है। यदि अमेरिका केमाइक्रोसॉफ्ट और गूगल जैसी विश्व कीशीर्ष कंपनियों का सीईओ मेरी धरती से पढ़ कर जाने वाला युवक होता है और जब मैंने अपनेआईआईएमसे लेकर के अपने विश्वविद्यालय के पूर्व छात्रों की सूची को देखा तो मैं आश्चर्यचकित था, मेरा छात्र पूरी दुनिया के तमाम देशों केमहत्वपूर्ण क्षेत्रों में लीडरशिप दे रहाहै।हमने ‘स्‍टडी इन इंडिया’ के तहत कहाकि दुनिया के लोगों हमारे पास आओ, हमारे पास क्षमता है,अभी हम 5 तारीख को अध्यापक दिवस के अवसर पर बड़ा कार्यक्रम मना रहे हैं और उसमें हम लोगों ने कहा ‘आचार्य देवो: भव:। यह जो गुरु है यह ज्ञान का पुंजहै, यह सब कुछ कर सकता है। इसलिए जोहमारे टीचर हैं यह सामान्य नहीं है यह इस देश केवो विजनरी योद्धा हैं जो अपने छात्र को किसी भी सीमा तक बढा सकता है और बढ़ा रहे हैं और अब एक बार फिर परिवेशबन रहा है। आपको मालूम है कि ‘स्टडी इन इंडिया’ के तहत लगभग 50 हजार से भी अधिक छात्रों ने अपना रजिस्ट्रेशन कराया हैऔरआसियान देशों के लगभग एक हजार छात्र हमारे यहां शोध और अनुसंधान के लिए आ रहे हैं।शोध और अनुसंधान के क्षेत्र में हम ‘स्पार्क’ के तहत दुनिया के शीर्ष127 देशों के विश्‍वविद्यालयों के साथ शोध एवं अनुसंधान कर रहे हैं, हम ‘स्‍ट्राइड’के तहत अंतर-विषयी शोध कर रहे हैं। हम ‘स्टार्स’ के तहत शोध कर रहे हैं,‘इम्‍प्रिंट’और ‘इम्प्रेस’ के तहत सामाजिक विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में शोध एवं अनुसंधान कर रहे हैं।नई शिक्षा नीति लोकल से ग्लोबल तकहोगी, इसमेंलोकस भी होगा, इसमें फोकस भी होगा। इसमें टैलेंट भी हेागा,इसमें पेटेंट भी होगा। यह सामान्य नहीं है,इसमें हम टैलेंट को उभारेंगे भी और टैलेंट का विस्तार भी करेंगे।इसलिए यह जो नई शिक्षा नीति आ रही है इसमें जहां हमने‘स्टडी इन इंडिया’ बोला है वही हमने ‘स्टे इन इंडिया’ भी कहा कि भारत में रूकोक्‍योंकि हमारे देश से 7-8 लाख छात्र प्रतिवर्ष विदेशों में पढ़ने के लिए जा रहे हैं। हमारे देश का पैसा और प्रतिभा दोनों बाहर चली जाती हैं तो वापस वह हमारे देश में नहीं आती है। इसलिए हमने‘स्‍टे इन इंडिया’ किया  हमने  छात्रों को भरोसा दिलाया कि हमारे आईआईटी, एनआईटी, आईएसर, केन्‍द्रीय विश्‍वविद्यालयों में योग्‍यता है, क्षमता है आपको  बाहर जाने  की जरूरत नहीं है,अब लोगों की समझ में आ गया है। मुझे इस बात की खुशी है कि पीछे के समय जब हमने जेईई परीक्षाएं करवाई। मुझे इसबात की भी खुशी है कि दो लाख से भी अधिक छात्रों ने जोछात्रविदेश में जा रहे थेवे जेईई और नीट की परीक्षाओं में सम्‍मिलित हुए।  हम ‘स्‍टे इन इंडिया’ के तहत दुनिया के शीर्ष सौविश्वविद्यालयों को अपनी धरती पर आमंत्रित कर रहे हैं आपकोकहीं जाने की जरूरत नहीं है और यहां के जो शीर्ष विश्वविद्यालय हैं वेभीबाहर जा रहे हैं। यह आदान-प्रदान हम करेंगे।हमारे देश के प्रधानमंत्री जीने कहा कियह नई शिक्षा नीति 21वीं सदी केस्वर्णिम भारत कीआधारशिला है। मुझे पूरा भरोसा है कि जो देश के प्रधानमंत्री ने कहा है किएक नए भारत के निर्माण की जरूरत है। यह नई शिक्षा नीति उसकी आधारशिला बन करके यह साबित करेगी कि यहवही भारत है जो कभी विश्वगुरु के नाम से जाना पहचाना जाता था उसभारत का फिर युग आ गया है और इसलिए उस भारत के उस नए युग में, उस स्वर्णिम युग में कौन-सी संस्था, कौन सा व्यक्ति, कौन सा विभाग आधारशिला बन करके खड़ा है अब प्रतिस्पर्धा तो इसकी है और मुझे भरोसा है हमारेलोगों के मन में छटपटाहट है, ऐसा नहीं है कि हममें प्रतिभा की कमी है, ऐसा नहीं कि हममें विजन की कमी है, ऐसा नहीं कि विजनको क्रियान्वित करने की ताकत नहीं है। हममें विजन भी है,मिशन भी है, धैर्य भी है, प्रखरता भी है। हमइन सबका समन्वय करेंगे। अभी जो हमने‘स्टे इन इंडिया’ अभियान लिया है उसके तहत हजारों छात्रों ने तय किया है कि वह विदेश नहीं जाना चाहते। नई शिक्षा नीति को लेकर पूरे देश में उत्‍सव का माहौल है,इसनई शिक्षा नीति को देश के 99 प्रतिशत लोगों नेस्‍वीकार किया है,किसी ने कोई टीका-टिप्पणी नहीं की। कुछ लोग भाषा पर टीका-टिप्पणी करते थेकुछ लोग कहते हैं कि हमको ग्‍लोबल पर जाना है तो अंग्रेजी सीखनी पड़ेगी मैंने कहा  हम अंग्रेजी का विरोध नहीं  करते, अंग्रेजी ही नहीं और दो-तीन भाषाएं सीखों,लेकिन अपनी भाषाओं को मत छोड़ो। हमारेसंविधान ने हमें 22 खुबसूरत भाषाएं दी हैं हिन्दी, तमिल, तेलगू, मलयालम, कन्नड़, गुजराती, मराठी, बंगाली,ओडिया, असमिया, उर्दू,यहहमारी 22 खूबसूरत भाषाएँ हैं इनमेंअपना ज्ञान है,जीवंता है,तोक्यों हम अपनी भाषाओं को खोयेंगे।हमने अंग्रेजी का कभी विरोध नहीं किया लेकिन अंग्रेजी इस देश की भाषा नहीं है। हमें अंग्रेजीक्या पूरी दुनिया की भाषाओं को पढना है लेकिन मैं उन लोगों से पूछना चाहता हूं। क्या जो देशनीचे से लेकर उच्च शिक्षा तकअपनी मातृभाषा में शिक्षा देते हैं वो किसी से पीछे हैं, क्‍या जापान, फ्रांस, इंग्लैंड और दुनिया के तमाम जो विकसित देश हैं वो अपनी मातृभाषा में शिक्षा देते हैं क्‍या वो किसी से पीछे हैं,फिर ऐसे तर्क दे करके देश को कमजोर करने की बातक्यों की जाती हैं। भाषा का भी कोई विवाद नहीं रहा, कौन ऐसा चाहेगा कि उसका बच्चा आगे न निकले, प्रतिस्पर्धा में न आये, उसका पूरा विकास न हो। इस समय देश के सभी राज्योंमें नई शिक्षा नीति के क्रियान्‍वयन को लेकर होड़ मची हुई है। मुझे खुशी होती है जब मैं देश के सभी मुख्यमंत्रियों से बात करता हूं,देश के सभी शिक्षामंत्रियोंसे मैं बात करताहूं तो मुझे खुशी होतीहै कि नई शिक्षा नीति को लेकर लोगों में उत्साह है, उमंग है उनको लगता है कि भारत में पहली बार ऐसी शिक्षा नीति आई है जो भारत की धरती पर खड़े हो करके आसमान को छूने की ताकत रखती हैऔर इसीलिए  हम उसके क्रियान्वन के लिए मिशन मोड मेंआगे बढ़ चुके हैं। मेरा भरोसा है कि आपका यह विश्वविद्यालय इस नई शिक्षा नीति के साथनये आयाम को स्थापित करेगा क्योंकि इस विश्वविद्यालय की प्रगति को मैं देख रहा हूं। कुलपति की लीडरिशप में यह विश्वविद्यालय काफी आगे बढ़ रहा है।इसके लिए मैं आपको शुभकामनाएं देता हूँ। जो ऐप आपने सृजित किया है यहश्रृंखला रुकनी नहीं चाहिए, टूटनी नहींचाहिए, बाधित नहीं होनी चाहिए अब यहां से ऐसी ऊर्जा पैदा होगी कि जिससेछात्र कुछ नया करेंगे।मुझे भरोसा है क्योंकि आपमें छटपटाहट है और आपमें पूरी क्षमता है और आप उस क्षमता का पूरा उपयोग करेंगे तो इस अवसर पर मैं कुलपति को, उनके सभी सहयोगियों को, विश्वविद्यालय के पूरे परिवार को, मुझे बताया गया हैकि दूर-दूर से लोग मेरे साथ जुड़े हुए हैं, मुझे तो लोग फोन करके बोलते हैं कि हमको तोजेल्‍यसीहो रही है कि यह शिक्षा नीति पहले आती तो हमको भी स्वतंत्रता होती,अपनी इच्‍छानुसार विषय लेने की।आपकोमैंनई शिक्षा नीति की ढेर सारी शुभकामनाएं देना चाहता हूं और जो पांच सितंबर को अध्यापक दिवस आता है इस अवसर पर हम पूरे विश्व में एक ऐसा वातावरण बनायेंगेजिससे किपूरी दुनिया को लगे किगुरु माने क्या होता है। टीचर्स का अर्थ क्या होता है और 5 तारीख को हम इसको भी भव्य तरीके से मनाएंगे और 5 सितंबर से लेकर 25 सितंबर तकयह जो नई शिक्षा नीति आई है उसको  देश की ढाई लाख ग्राम समितियों तक लेकर जाएंगे। आप‘एक भारत श्रेष्ठ भारत’ के अभियान में भीजुटे होंगे और जो ‘उन्नत भारत अभियान’ है उसमें भी आपने आस-पास केकुछ गांवों को लिया होगा।आप वहां भी सर्जनके बीज बो रहे होंगे क्‍योंकि इस विश्वविद्यालय केअगल-बगल में जो भी गांव है वो भी उन्‍नत होने चाहिए। मैं एक बार फिर आप सभी को धन्‍यवाद एवं शुभकामनाएं देना चाहता हूं।

 

बहुत-बहुत धन्‍यवाद!

 

 

कार्यक्रम में गरिमामयी उपस्‍थिति:-

 

  1. डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’, माननीय शिक्षा मंत्री, भारत सरकार
  2. श्री संजय शामराव धोत्रे, शिक्षा राज्‍य मंत्री, भारत सरकार
  3. प्रो. सुरेश कुमार, कुलपति, अंग्रेजी एवं विदेशी भाषा विश्‍वविद्यालय, तेलंगाना
  4. अंग्रेजी एवं विदेशी भाषा विश्‍वविद्यालय, तेलंगाना के संकाय सदस्‍य, अध्‍यापकगण एवं कर्मचारी।

 

शिक्षा-संवाद: भारत को वैश्‍विक ज्ञान महाशक्‍ति के रूप में स्‍थापित करना

 

दिनांक: 27 अगस्‍त, 2020

 

 

माननीय शिक्षा मंत्री,डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’

 

आज के इस महत्‍वपूर्ण विषय पर आयोजित बेवीनार में जुड़े हुए सभी विद्वानों का मैं हार्दिक स्‍वागत एवं अभिनंदन करता हूं। पीछे के समय में जब सतनाम जी मुझसे मिलने के लिए आए थे तो उनसे काफी चर्चा हुई और आप सब लोग आज यहां पर एकत्रित हुए हैं।मैंसबसे पहले तो आप सबके अभिनंदन के लिए मैं आपके बीच आया हूं,मुझेखुशी है कि आज यह संस्थाएं मिलकर के अपने देश के भविष्य को सुधारने, संवारने और उसकी उत्कृष्टता बढाने के लिए एकजुट हुई हैं। यह भी बहुत अच्छा परिवेश है और मैंने जितना सुना है सब लोगों को मुझे बेहद खुशी होती है। पीएसआई और जीसीए  दोनों ने मिलकर के एक संयुक्‍त प्रयास का जो निर्णय लिया है और जो चंडीगढ़ में जोआस-पास ये दोनों विद्यालय हैं। मैं सोचता हूं कि इनकी दोनों की ताकत मिलकर दोनों संस्थाओं के समन्वित प्रयास से बहुतबड़ा-बड़ा काम हो सकता है और मुझे इस बात की बेहद खुशी है। आज इसबहुत ही महत्वपूर्ण कार्यक्रम में आज हजारोंशिक्षाविद्जुड़ेहुए हैं। यह हमारा सौभाग्य है कि सरदार सतनाम सिंह संधू जी कुलाधिपति चंडीगढ़ विश्वविद्यालय, सरदार जगजीत सिंह जी अध्यक्ष जेसीए,श्रीअशोक मित्तल जी कुलाधिपति,लवली प्रोफेशनल यूनिवर्सिटी,डॉक्टर एच. चतुर्वेदी जी,निदेशक विमटैक, विश्वनाथन जी भी इस आयोजन से जुड़े हैं। मुझे लगता है वीआईटी को तो वैसे भी हमने आईओई में रखा हुआ है। जो संस्थापक और अध्‍यक्ष प्रशांत जी हैं, उनकोबहुत अच्‍छे से मैं जानता हूं। मुझे लगता है किमेरे सहयोगी भी जो शिक्षा मंत्री राज्य हैं संजय जी भी हमसे जुड़े हुए हैं। मुझे अच्छा लगा कि आपलोग केवल चिंता ही नहीं कर रह हैं, चर्चाएँ नहीं कर रहे हैं, बल्कि उसके क्रियान्वयन की भी दिशा में आगे बढ़ने का आपका सबका मन है।क्यों न हो, क्योंकि हम सब शिक्षा से जुड़े आम मन में हर व्यक्ति को छटपटाहट होती है, उसका लक्ष्य होता है, जीवन में कहीं पहुँचने का कुछ करने का और यदि उसको कहीं पहुँचना है, कुछ करना है तो उसका रास्ता भी वह तय करता है और फिर उन चुनौती भरे रास्तों से होकर अपने शिखर को चूमने की कोशिश करता है। मैं समझता हूं कि सबसे पहली बात तो यह है कि जितने भी लोग मुझसे जुड़े हैं उनका अभिनंदन करता हूं क्योंकि शिक्षा एक ऐसा क्षेत्र है जो किसी भी व्यक्ति का, किसी परिवार का, किसी समाज का, किसी राष्ट्र की धुरी होता है। शिक्षा नहीं है तो कुछ भी नहीं है। इसलिए जो शिक्षा है वह अच्छे मानव के स्वरूप में उसको हष्‍ट-पुष्ट रख करके उसको गतिशील रखती है। उसकीजो रीढ की हड्डी है उससे तमाम धमनियां जुड़ीहैं, हड्डिया जुड़ी हैं, लेकिन उस ढाँचे को ताकत के साथ खड़े रखने का काम शिक्षा करती है। यदि उस ढ़ाचे को खड़ा रखने वाली रीढ़ की हड्डी जब कहीं टूटती है तो सारे शरीर का अस्‍तित्‍वखतरे में आता है और इसीलिए जब जब भी शिक्षा पर चोट होती है जब जब भी शिक्षा अपने रास्ते से विमुख होती है, किसी व्‍यक्‍ति की,संस्था की,किसी राष्ट्र की हो तब तब प्रकृति से विकृति कीओर जाता है और विकृति हमेशा विनाश का कारण होती है। भिन्‍न-भिन्‍न कारणों से भिन्‍न-भिन्‍नसमय पर और भिन्‍न-भिन्‍नपरिस्थितियों में तो मैं यह समझता हूं कि सबसे अच्छी बात तो यह है कि हम सब लोग किसी अच्छे मन के साथ, अच्छे विजन के लिए, अब अच्छे मिशन के साथ हम लोग सब एकजुट हुए हैं,यहांपर एकत्रित हुए हैं तो में सबसे पहले तो आप सबका बहुत आभार प्रकट कर रहा हूं,तमाम संस्थाएं जुड़ी हैं, विश्वविद्यालय जुड़े हैं, कॉलेज से जुड़े हैं। जो नई शिक्षा नीति आई है उसके संदर्भ में यह बात सही है कि मुझे लगता है कि दुनिया में शायद ही किसी नीति पर इतना बड़ा व्यापक परामर्श हुआ हेागा। यदि दुनिया के सबसे बड़े परामर्श वाली यह नीति हमारे हाथों में आई है तो अब उसकी ताकत भी समझ आएगी। क्योंकि यह उन चंद लोगों के द्वारा बैठ करके बनाई गई शिक्षा नीति नहीं है। यह इस देश के गांव से ले के ग्रामप्रधान से ले करके और प्रधानमंत्री जी तक एक-एक शब्द विचार विमर्श के बाद यह पैदा हुई शिक्षा नीति है जिसमें इस देश के ढाई लाख ग्राम समितियां भी हैं तो इस देश के एक हजार से अधिक विश्वविद्यालयों के कुलपति भी हैं, पैंतालीस हजार से अधिक डिग्री कॉलेजों के प्रिंसिपल भी हैं, पंद्रह लाख से अधिक स्कूलों के प्राध्यापक अध्यापक भी हैं और यदि कुलअध्यापकों को देखा जाए तो आज एक करोड़ नौ लाख से भी अधिक अध्यापकों शिक्षकों और शिक्षाविदों का इसमें परामर्श जुड़ा हुआ है और जो तैतीस करोड़ छात्र-छात्राएं इस देश में जो अमेरिका की जनसंख्या से भी ज्यादा हैं, इनका फलक है उन तीस करोड़ छात्रों से भी संवाद और उनके अभिभावकों से भी सीधे संवाद से निकली यह शिक्षा नीतिहै। इतना ही नहीं फिर भी यह कहा गया है कि यदि किसी कोने पर कोई कोर-कसर वैज्ञानिक, शिक्षाविद्, विचारक,एनजीओ, राजनैतिक लोग, सामाजिक क्षेत्र के लोग यदि किसी के मन में किसी कोने पर कोई-किंतु परंतु रहे हैं तो उसके बाद इस पॉलिसी को हमने पब्लिक डोमेन में डाला और इसे पब्लिक डोमेन में डालने के बाद छह महीने तक लगातार हम सोशलमीडिया के माध्यम से, इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से, तथा प्रिन्ट मीडिया के माध्यम से और अपने संवादों के माध्यम से सबसे अनुरोध करते रहे कि देश की आजादी के बाद भारत की अपनी शिक्षा नीति आ रही है यदि किसी के मन में कोई और अच्छा सुझाव हो सकता है अपने देश की शिक्षा नीति के लिए तो उसको सुझाव जरूर देना चाहिए। सवा दो लाख से भी अधिक उसमें भी सुझाव आये। एक-एक सुझाव का दो-दो सचिवालयबना करके उच्च शिक्षा का अलग और स्कूली शिक्षा का अलग सचिवालय बना कर एक-एक सुझाव का विश्‍लेषण करने के बाद, मंथन करने के बाद,अमृत के रूप में यहनई शिक्षा नीति आयी है। मुझे यह बात कहते हुए बहुत खुशी है कि पूरे देश ने इसकी खूबसूरती को स्वीकारा है, उत्सव मनाया है, सभी लोगों ने इसको बहुत अच्छा माना है, इसका स्वागत किया है और यदि उसकी स्वीकार्यता हुई है तो आप स्वीकार्यता से फिर सहभागिता की और अब आगे बढ रही है।उससहभागिता का पहला कदम आप सब लोग मिलकर कर रहे हैं और आपकी जो चिन्ता है हां, हमने नीति में भी सबको साथ लेकर काम किया । हमने हर उस अच्छी चीज को कस्तूरीरंगन जी की अध्यक्षता मेंजो एक बहुत बड़े विचारक भी हैंतथावैज्ञानिकहैं। पद्म श्री, पद्मभूषण, पद्मविभूषण और तमाम देश और दुनिया के उनको सम्मान मिले  हैंऔर बहुत ही संवेदनशील हैं उनके मार्गदर्शन में जो ऐसी शिक्षा नीति बनी है।जहांतक भी हमारा फैलाव हो सकता है, जिस सीमा तक भी अच्छाई को हम अपने में समाहित कर सकते हैं अपने विजनमेंडाल करके दुनिया के शिखर पर पहुँचने का रास्ता तय कर सकते हैं, वह सब कुछ इसमें डालने की हमने कोशिश की है। इसलिए आपने भी कहा कि यदि शुरूआती शिक्षा से आपने मातृभाषा की जो बात की है वो मातृ भाषाजो बच्चा बोलता है, जो उसकीअपनी क्षेत्रीय भाषा है। इसके दो पक्ष हैं एक तो बच्चाजो अपनी भाषा में अभिव्यक्ति कर सकता है वो दूसरीसीखीहुई भाषा मेंनहीं कर सकता और तीन वर्षों से हमारी कमेटी ने भी जो कहा और वैज्ञानिकों ने भी और विशेषज्ञों ने भी जिस बात को कहा कि 3 वर्ष से 6 वर्ष तक के बच्चे को जो मस्तिष्क का विकास है वो 85 प्रतिशत तक होता है तो जो हमारी धरोहर है, जो हमारा भविष्य है, हम उसको शुरू से ही पकड़ना चाहते हैं, उसको आगे बढ़ाना चाहते हैं उसकी उन सभी क्षमताओंका जो उसके अंदर सृजनकी शक्तियां समाई हुई हैं उसको ख़ूबसूरती से खेल-खेल के माध्यम से और उसकी उसी की भाषा में आगे कैसे करके उभारते हैं। यहांसेइस नई शिक्षा नीति की यात्रा शुरू होती है और आप जाती है जोअंतर्राष्‍ट्रीयस्तर की प्रतिस्पर्धा में शिखर को चूमेगी। चाहे ज्ञान हो और विज्ञान हो और अनुसंधान हो, प्रौद्योगिकी हो और चाहे वो नवाचार के साथ श्रेष्ठता को प्राप्त करने की विश्व में यह है इसकी यात्रा। कुछ लोगों के मन में था कि जैसेआपने अभी कहा कि क्या शुरू से हीदुनिया में अंग्रेजी में ही जाना है? तो मैंने पूछा कि मातृभाषा में पढ़ाने वालाफ्रांस वो पीछे है? मातृभाषा में ही पढ़ाने वाला जो जापान है, वो क्या पीछे है? मातृभाषा में ही पढ़ाने वाला अमेरिका क्या वो पीछे है? मातृभाषा में ही पढ़ाने वाला इजराइल क्‍या वो पीछे है?यदि टॉप ट्वंटी को देखेंगे जो विकसित देश हैं। वेअपनी मातृभाषा में पढ़ाई कर रहे हैं क्योंकि उनको मालूम है कि अपनी चीज पर ही वो छलांग मार सकते हैं और इसीलिए यूनेस्को ने भी कहाथा  कि बच्चे की प्रारंभिक भाषा,उसकी मातृभाषा में ही उसका विकास हो सकता है और उसमें भी अंग्रेजी का कोई विरोध नहीं है। लेकिन हां, मेरे देश की भारतीय भाषाओं काइसमेंआग्रह है। मेरे देश की 22 भारतीय भाषाएं हैं। वो तमिल, तेलुगु, मलयालम, कन्नड़, गुजराती, मराठी, बंगाली, पंजाबी, हिन्दी औरउड़ियाहै । हमारी खूबसूरती हैंयह22 भारतीय भाषाएंजो हमको संविधान के अनुच्छेद 8 में मिलती है। इन 22 भारतीय भाषाओं के सशक्तिकरण की हमारी बात है, कौन देश का ऐसा व्यक्ति होगा जो अपनी भारतीय भाषाओं का सम्मान नहीं करना चाहता है। आखिर क्यों? हां, हम पूरी दुनिया के फलक पर जाएं किसी भाषा का विरोध नहीं है। कभी भी कोई भाषा से कोई दुराग्रह नहीं है। किसी पर कोई भाषाथोपी नहीं जाएगी। सबको स्वाधीनता है लेकिन आप कहें कि दो ही भाषा चाहिए, तीन ही भाषा चाहिए,  छात्र को स्वतंत्रता देनी चाहिए। कितनीभाषाएं सीख सकता है, सीखो ना। जितनी वह भाषाएं सीख सकता है, उसकी स्वाधीनता है सीखसकता है उसको क्यों रोके उसके लिए आगे बढने के लिए बाधा क्यों बनेंगें हम। इसलिए जो मातृभाषा मेंकोई राज्य आगे बढ़ाना चाहते हैं, उसको आगे तक बढ़ाएं। सभी राज्यों को इसकी छूट है और बहुत सारे राज्यों ने यह किया भी है क्योंकि उस भाषा का जिंदा रहना भी बहुत जरूरी है,उसकी जड़ें हैं और वो तभी जिन्दा रह सकती जब वो अपने बच्चों को जब-जब बचपन से ही उसकी मातृभाषा में नहीं सीखेगा तब मातृभाषा जिन्‍दारहेगी कहां? इसलिए बहुतसोच-समझ करके इस बात को रखा गया है। मुझे खुशी है कि पूरे देश ने इसको बहुत अच्छे से स्वीकारा है और इसे उत्सव के रुप में मनाया है। अपनी जड़ों पर खड़े हो करके आसमान को छूने की तमन्ना चाहिए क्‍योंकि जड़ों से कटा हुआ इन्सानजड़ों से कटाहुआराष्ट्र कटी हुई पतंग की तरह होता है, जो आसमान में उड़ तो रहा है लेकिन वो किस गर्त में गिरेगा उसको भी पता नहीं है और इसीलिए इसकी खूबसूरती है कि यह नीतिभारत केन्द्रित है। हम अपने जीवन मूल्‍यों के आधार पर पूरी दुनिया में विश्वगुरु रहे हैं। हमारी खूबसूरती हैहममानवीय मूल्यों के विश्‍वके संवाहक रहे हैं। हमने सम्‍पूर्ण विश्‍व केअपना परिवार माना है। एक ओर हम कहते हैं ‘ अयं निज: परो वेति गणना लघु चेतसाम्। उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्‍बकम्।। पूरी वसुधा को अपना कुटुम्‍बमानने वाला हिन्दुस्तान ही हो सकता है।हमारी पूरे विश्व के मानवतावादी कल्याण की सर्वोच्च भावना है, जिसके कारण हमें विश्व गुरु के रूप में लोग स्वीकारते हैं, महसूस करते हैं। ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः, सर्वे सन्तु निरामया’- इस दुनिया का कोई भी प्राणी यदि दु:खी है तो मैं सुख का अहसास नहीं कर सकता। इसका मतलब उसके दुख को दूर करने के लिए किसी भी पराकाष्ठा तक जा सकता हैऔर तभी मैं खुश हो सकता हूं। जब दूसरे के दु:ख को दूर करूंगा।यही हमारा मूल है, यही मेरा आधार है, यही मेरा चिंतन है। हम अपने चिंतन को कैसे छोड़ सकते हैं। जिस चिंतन ने पूरी दुनिया में हमको भविष्य के शिखर पर पहुंचाया है। इसीलिए यह जो नयी शिक्षा नीति है वो अपनी जमीन पर खड़े होकर के ज्ञान, विज्ञान, अनुसंधान,प्रौद्योगिकी,नवाचार के साथ आगे बढ़ाएगी। हम अपने अतीत को वर्तमान के साथ जोड़ेंगे क्योंकि हम अपने अतीत को कैसे भूल सकते हैं। हम उस अतीत को कैसे भूल जाएंगे जिसमेंसुश्रुत,शल्य चिकित्सा का जनक इस भारत-भूमिपर पैदा हुआ हम उस चरकको कैसे भूल जाएंगे जो आयुर्वेद का जनक है। आज आयुर्वेद के पीछेपूरी दुनिया आकर के खड़ी हो गई। कैसे भूल जाएंगे वो तो हमारी संपत्ति है । वही हमारी थाती है। हम कैसे भूल जाएंगे आर्यभट्ट को, वह आर्यभट जिसने दुनिया के लिए शून्‍य का आविष्‍कार किया। हम कैसे भूल जाएंगे उन श्रेष्ठ वैज्ञानिकों को, भास्कराचार्य को कैसे भूल जाएंगे, आचार्य कणाद को जिसने परमाणु के बारे में बतायाहो, कैसे भूल सकते हैं। पजंजलि के योग के पीछे पूरी दुनिया अपने को बचाने के लिए इकट्ठा हो गई हो,हमप्रति वर्ष योग दिवस मनाते हैं। हमारे पास जो ज्ञान का भंडार है हमारे पास वेद, पुराण, उपनिषद जैसीबहुतसारी चीजें हैं जिनको हम उस अतीत कोवर्तमान के साथ जोड़ करके उसमें ज्ञान, विज्ञान,अनुसंधान के साथ आगे बढ़ाएंगे।हमारे देश के प्रधानमंत्रीजी नेअनुसंधानकी बात की है और उनका बहुत सीधा सपाट मन है। उन्होंने कहा मुझे ऐसे नए भारत की जरूरत है, जो स्‍वच्‍छ भारत हो, स्वच्छता मतलब की गंदगी नहीं। स्वच्छता मतलब पवित्रता मन की भी, पवित्रता जैसे विचारों में पवित्रता चाहिए, स्वच्छता चाहिए सब चीजों में पारदर्शिता चाहिए तो स्वच्छ भारत चाहिए, स्वस्थ भारत चाहिए। वह व्यक्ति भी स्वस्थ चाहिए तो परंपराएं भी स्वस्थ चाहिएतो विचार भी स्वस्थ चाहिए तो ऐसेस्वस्थ भारत की जरूरत है। समर्थ भारत जो आत्मनिर्भर भारत की बात की है ऐसे आत्मनिर्भर भारत समृद्धभारत इसकी समृद्धता में यह तो देश सोने की चिड़िया कहलाता था। कहां समृद्धता की कमी थी हममें और सशक्त भारतसशक्त बहुत जरूरी है। आदमी सब कुछ हो लेकिन ताकतवर नहीं है तो बेकार हो जाता है। देश सशक्त भी चाहिए तभी जब ताकतवर आदमी होता है तो उसकी बातों को भी कोई सुनता है। किसी परिवार का मुखिया यदि ताकतवर न हो तो परिवार बर्बाद हो जाता है। ताकतवर माने उसका विजन भी चाहिए,उसको क्रियान्‍वित करने की ताकत भी चाहिए। ताकतवर भारत चाहिए,श्रेष्ठ भारत और एक भारत चाहिए ऐसा हमारे देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी बार-बार कहते हैं और उन्होंने जिस बात को कहा कि इसका रास्ता मेक इन इंडिया, डिजिटल इंडिया यह रास्‍ता है इसका। इस रास्ते से होकर आगे जा सकते हैं हम। क्यों मेक इन जापान हो और क्यों मेक इन चाइना?हममें प्रतिभा की कमी नहीं है, हममें संघर्षशीला की कमी नहीं है। यदि नहीं है तो फिर शुरू करना है। हर चीज को शुरू करेंगे और पीछे के चार-पांच सालों में देश ने हर क्षेत्र एवं दिशा में छलांग मारी है। इसीलिए यह डिजिटल इंडिया अब एक बटन दबाकर के हमसमय को बचा भीरहे हैं और पैसे को बचा रहे हैं, बेमानी और भ्रष्टाचार को खत्म कर रहे हैं क्योंकि पूरे देश में जब डिजिटल इंडिया हो जाएगा तो दूरियां भी कम होंगी और कई प्रकार की सुविधाएं एक क्लिक दबाने से सारे की सारी चीजें आपके पास एक सेकंड में सब सारी दुनिया इकट्ठा हो जाती है तो इसलिए देश को डिजिटल इंडिया भी करना है। हमबहुततेजी से काम कर रहे है और स्किल तो चाहिए। जब तक हम अपने कौशलका विकास नहीं करेंगे तब तक विकास सम्‍भव नहीं है। इसीलिए आपने देखा होगा कि हम इस नई शिक्षा नीति में कक्षा 6 से ही वोकेशनल स्ट्रीम लाए है और वो भी इंटर्नशिप के साथ लाए हैं। अबबच्चा ज्ञान को केवल किताबों में ही नहीं पढ़ेगा बल्कि वो इंटर्नशिप करेगा गांव में जाएगा, वो किसान के साथ बात करेगा वो उद्यानिकी के साथ जुड़ेगा। वहबानगीके साथ जुड़ेगा और वोस्थानीय उत्पादोंके साथ जुड़ेगा, जिधर उसका मन जा रहा है उसी को आगे बढ़ाएंगे और इसीलिए यह अद्भुत प्रयोग है। वहबच्चाजब स्कूल से बाहर निकलेगा तो आत्मनिर्भर हो करके निकलेगा तो वो किसी भी क्षेत्र में उसका स्किल किसी भी क्षेत्र में आगे बढ़ाएगा और उसके बाद ऊपर भी हमने जो आईआईटी, हमारे एनआईटी,आईसरहैं,उनको भी यह कहा है कि उद्योगों के साथ जुड़कर के पाठ्यक्रम बनाओ। आधा समय उसका उन उद्योगों में लगना चाहिए ताकि वो पाठ्यक्रम क्या चाहता है। उस उद्योग को जरूरत क्या है। अभी तो यहबिल्कुल खाली थी जो पाठ्यक्रम में कुछ और पढ़ाते थे और वो उद्योग कुछ और करते थे, दोनों में समन्‍वयनहीं था। प्रतिभा केअनुरूप समन्वय के अभाव में देश और उद्योग दम तोड़ते थे और प्रतिभा भी पलायन करती थी। अब इन दोनों का बेहतर समन्वय होगा। यह जो नई शिक्षा नीति आ रही है यह प्रतिभा का उसके समन्वय के साथ उस उद्योग को खड़ा करेगी और उसमें भी कोशिश करेंगें कि हम 50 प्रतिशत को जो हैं, उसका जोकाम है वो उस उद्योग के साथ जुड़कर कार्य करें। आप जो पढ़ते हैं, वो उस उद्योग को शिखर तक ले करके चला जाएगा। उसका पूराविजनवहां आजाएगा वो दोनों काम करेगा और इसलिए यह भी बहुत जरुरी था कि शिक्षा को उद्योग, शिक्षा को गांव से जोड़ना, शिक्षा को आत्‍म्‍निर्भरता से जोड़ना। हम दुनिया का पहला देश होंगे जो कृत्रिम बुद्धिमत्ता लेकर आ रहे हैं। छठवीं कक्षा से ही आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस वाला पहला देश होगा जो इस स्कूली शिक्षा से हम शुरू कर रहे हैं।मैं पूरे देश के अन्दर भ्रमणकरताहूं।मैं स्कूल में भी जाता हूं तो मैं विश्वविद्यालय के अंदर भी जाता हूं तो मैं अपने आईआईटी के अंदर भी जाता हूं तो मैंअपने आईसर के अंदर भी जाता हूं और कितनी विविधताएं हैं इस देश में।मैं यह समझता हूँ यह जो राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 आई है यहबहुतबड़े विजन के साथ आई है और निश्चित रूप में यह पूरी दुनिया में हिन्दुस्तान को ज्ञान की महाशक्ति के रूप में स्थापित करने का सामर्थ्‍यहैइसमें।इसमें हमनें कोई कोर कसर नहीं छोड़ी है। कितनी खूबसूरती है और उच्च शिक्षा में सब फ्री छोड़ दिया है। कहांतक दौड़ना चाहते हो, किस विषय को लेना चाहते हो, लो ना। आप अपने मन के राजा होलेकिन राजा अपने अस्तित्व को बचाए और बनाए रखने के लिए जीवन-मरण का संघर्ष करताहै। तभी उसका अस्तित्व कायम रहता है। इसका मतलब जब आपको फ्री है, पूरा मैदान खाली छोड़ दिया है। जिस भी विषय को ले करके मेरा छात्र जाना चाहता है उसके शिखर तक पहुँचने के लिए उसको अपनाखूनपसीना बहाना पड़ेगा और फिर रिजल्ट तो जरूर देना पड़ेगा और इतना ही नहीं जहां उसको विषयों की छूट दी है, लचीलापन दिया है,वहां पर यदि वो परिस्‍थितिवश बीच में भी छोड़ करके चला जाता है मानोइंजिनियरिंग कर रहाहै या बीएससी कर रहा है या एमएससी कर रहा है औरदो ही साल में छोड़ करके जाता है तो पहलेदो साल उसके बर्बाद हो जाते थे, अब ऐसा नहीं होगा। उसका एक साल भी खराब नहींहोगा। एक साल पढ़ाई करने के बाद जाने की परिस्‍थितिउसकी है तो एक साल में उसको सर्टिफिकेट मिल जाएगा। दो साल में उसको डिप्लोमा मिल जाएगा। तीन साल में उसको डिग्री मिल जाएगी और उसको और भी सुविधादे दी है। हम एक क्रेडिट बैंक ऐसा बनाएंगे जिसमें उसका सारा क्रेडिट रहेगा और जहां से वो छोड़ करके गया दुबारा वहींसेशुरू कर सकता है। उसके लिए पूरे तरीके से छूट है। मैं यह समझता हूं कि ये बहुत खूबसूरती के साथ यह चीजें आई हैं। आपने कहा कि आयोग बनेगा तो एक ऐसी छतरी के नीचे जहांआपको दर-दर भटकना नहीं पड़ेगा। एक आयोग बनेगा, उसके साथ तीन चार काउंसिलबनेंगी। यह एक काउंसिल पाठ्यक्रम को सुनिश्चित करेगी तो दूसरे उसके क्रियान्वयन पर ध्यान देगी, तीसरा उसका प्रशासनिक नियंत्रण करेगी और चौथी उसका वित्तीय पोषण करेगी। यह चारों होंगी लेकिन एक छत के नीचे। इसकी भी खूबसूरती है जो आपने कहा कि इसमें प्राइवेट का भी किस तरीके से सहभागिता हो सकती है उस पर जब काउंसिल बनेगी तो उसमें इस पर भी विचार होगा क्योंकि हम जो सरकारी तथा गैर-सरकारीकीबात करते अभी आईओई में इधर यह चेयरमेन विश्वनाथन जी बैठे हुए। इनके संस्थान को भी अभी यह तो सरकारी नहीं है लेकिन आईओईमें इनका संस्थान भी है। दस सरकारी और दस प्राइवेट मिलकर के देश कीशिक्षा का उत्थान करना चाहते हैं और इसलिए इसमें शंका की कोई गुंजाइश नहीं है। हम मिलकर काम करेंगे और इसीलिए उच्च शिक्षा में यदि मैं यह कहूं कि यह जो शिक्षा नीतिहै, यह5आईयदि मैं बोलूं कि यह इन्डियन भी है,इन्‍टरनेशनल भी है,इंटरएक्टिव भी है, इम्पैक्ट फुल भी है और इन्क्लूसिव भी है। इसलिए मैं समझता हूँ कि यदि इस शिक्षा नीति को आप देखेंगे तो तो यह लोकल से लेकरग्लोबल तक है, जो हमारे देश के प्रधानमंत्रीजी ने कहा कि यह लोकल से ग्लोबल तक है और यदि इसमें देखेंगे तो लोकस भी है और फोकस भी है। यदि इसको देखेंगे तो टैलेंट भी होगा, उनका पेटेंट होगा। यदि टैलेंट है तो पेटेंट भी हमारा होना है तो इसके साथ टैलेंट भी होगा, पेटेंट भी होगा कंटेंट भी होगा,रिलेवेंट होगा। यदि इस शिक्षा नीति को देखें आपतो बहुत सारी खूबसूरत चीजोंको साथ लेकर की यह शिक्षा नीति आई है। इसीलिए आपने ठीक कहा कि एक समय था जब देश आंतरिक दृष्टि से खाद्यान के संकट से गुजर रहा था, देश सीमाओं पर संकट से गुजर रहा था लालबहादुर शास्त्री जी के समयमें तो उस समय लालबहादुर शास्त्री ने नारा दिया था ‘जय जवान जय किसान’। पूरा देश इकट्ठा हो गया था और इन दोनों संकटों का देश ने बहुत अच्छे तरीके से मुकाबला किया था। उसके बाद भारत रत्न अटल बिहारी बाजपेयी आए। उनके मन में आया कि नई दुनिया में हमेंहर दिशा में ताकत चाहिए। हमने किसी को छेड़ा नहीं लेकिन हमारे भीतर इतना सामर्थ्य जरूर चाहिएकि हम ताकतवर बने रहें। हम किसी को छेड़ने के लिए ताकतवर नहीं बनना चाहते। हम ताकतवर बनना चाहते हैं ताकि कोई हमको छेड़े नहींऔर इसीलिए उन्होंने कहा‘जयविज्ञान’की जरूरत है और परमाणुपरीक्षण करके उन्होंने दुनिया को यह महसूस करा दिया था कि इस देश में ताकतवर क्षमताएं हैंदेश अपने आप में खड़ाहोता है और इसीलिए जब अटलजी ने ‘जय विज्ञान’ का नारा दिया तो हमारे प्रधानमंत्री जी ने जब उनको लगा कि अब अनुसंधान की जरूरत है जिसकी मैं भी चर्चा कर रहा हूं कि आखिर सब कुछ है लेकिन अगर अनुसंधान नहीं है तो सब कुछ होते हुए भी बेकार हो जाता है या हमारी चीज को दूसरा ले करके अनुसंधानकर्ता उस शिखर को प्राप्त करता है और हम उसको पकड़ नहीं पातेहैं तो इसीलिए मैं यह समझता हूं कि जो नरेंद मोदी जी ने जो एक सूत्र दिया है ‘जयअनुसंधान’ का उस क्षेत्र में हमें तेजी से बढ़ना है । हम ‘स्‍पार्क’ के तहत दुनिया के शीर्ष 127 देशों के साथ अनुसंधान कर रहे हैं। हम स्‍ट्राइडके तहतअंतरविषयीशोधों को कर रहे हैं, हम स्टार्स के साथ हम वैज्ञानिक शोध और अनुसंधान में जुटे हुए हैं। हम इम्प्रिंट, इम्प्रेस के साथ जहां प्रौद्योगिकी वहीं सामाजिक विज्ञान इनदोनों को साथ लेकर चल रहे हैं।इस नई शिक्षा नीति में नेशनल रिसर्च फाउंडेशन की जो बात की है जिसमें देश के प्रधानमंत्री के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार की अध्यक्षता में शोध और अनुसंधान की इस संस्कृति को नई ताकत मिलेगी वो और तेजी से आगे बढ़ेगा। मैं समझता हूं जो अनुसंधान है जहां हमने नेशनल साइंस रिसर्च फाउंडेशन की बात कीवहीं हम प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भी तेजी से आगे बढना चाहते हैं इसलिए हमने तय किया है कि नेशनल एजुकेशन टेक्नोलॉजी फोरमनाम से ऐसा फोरम गठित करेंगे जहांएक राष्ट्र और एक डिजिटल प्लेटफॉर्म होगा। ‘वन नेशन वन डिजिटल प्लेटफॉर्म’ और हमने देखा है कि ‘वन क्लास, वन चैनल’ हम स्वयं, स्‍वयं प्रभा, ई-पाठशाला, दीक्षा,एनडीएल आदि तमाम क्षेत्रों में बहुत तेजी से आगे बढ रहे हैं और अब तो हमें अपनी गतिशीलता को और आगे बढ़ाना है। हम लोगों ने जहां ज्ञान, विज्ञान, अनुसंधान के क्षेत्र में बोला है वहां भाषा पर भी बोला है कि सभी भाषाओंको इस सीमा तक हम लेकर के जाएंगे कि इस देश को ‘एक भारत श्रेष्ठ भारत’ का गौरव महसूस हो  सके। हम अनेकता में एकता वाले देश हैं और इसलिए मैं यह समझता हूंजैसाकिअभी आपने चर्चा की है कि अंतरराष्ट्रीय फलक पर क्या होगा, हम तेजी से बढ़ेंगे ना। हम स्टडी इन इंडिया अभियान को अब बहुत तेजी से बढ़ रहे हैं।मैं पीछे केदिनों लवली विश्‍वविद्यालय में एक घंटे के लिए गया था तो लगभग वहां इन्होंने पौन घंटे में अलग-अलग दस कार्यक्रम किए होंगे तो लगभग 50 देशों के बच्चे उधर दिखाई दिए। अभी तो हम लोगों ने यह शुरू किया हैअभी सतनाम जीसे मैंने पूछा तोइन्‍होंने कहा हमारे यहां भी 60 देशों के बच्चे थे। पूरी दुनिया हमारे पास आ रही है। ‘स्टडी इन इंडिया’ भारत को जानो। पूरी दुनिया के लोग बहुत बहुत तेजी से इधर आ रहे हैं। अभी हमने‘स्टे इन इंडिया’ कहा,‘स्टे इन इंडिया’ इसलिए कहा क्‍योंकि हमारे देश के साढे सात आठ लाख बच्चे बाहर जाते हैं और हमारे यहां काएक लाख से डेढ़ लाख करोड़ रूपए प्रति वर्ष बाहरजा रहा है, हमारा पैसा भी हमारी प्रतिभाभी बाहर जा रही है और इसलिए यह हमारे लिए चुनौती है। आप जैसे संस्‍थानों को खड़े होने की जरूरत है।‘स्टे इन इंडिया’ के तहत हम अपने बच्चों को भरोसा दिला सकते हैं किआपको विदेश में जाने की जरूरत नहीं है, जो आप दुनिया में पढ़ना चाहते हैं वो हमारे पास है। यह भरोसा उन लोगों को हो रहा है और तेजी से होना भी है इस भरोसे को और मैं यह समझता हूं कि यह भरोसा क्यों न हो? यह भरोसा होगा क्‍योकिइस देश के प्रधानमंत्री जी ने पीछे की दिनों जैसे अभी आप कह रहे थे कि नई शिक्षा नीति तो आई है लेकिन इसके क्रियान्वयन का क्या होगा, किस तरीके से होगा? आपको मालूम है कि अभी जब कुछ दिन पहले प्रधानमंत्री जी आप सबसे मिले थे तब उन्होंने चर्चा की थी। कुछ लोगों के मन में शंका है कि इसका क्रियान्वयन कैसेहोगा कि नीति तो बहुत अच्छी है। देश की आजादी के बाद पहली बार भारत की अपनी शिक्षा नीति आई है तो इसका लोगों में उत्साह उल्लास है। सतनाम जी ने अपने भाषण में भी कहा कि दो बार प्रधानमंत्री जी हम लोगों से जुड़े औरदोनों बार उन्होंने यह कहा कि शंका की कोई गुंजाइश नहीं है। मेरी सरकारइच्छा शक्ति की बहुत धनी है। आप लोग इसको क्रियान्वित करें मैं चट्टान की तरह आपके पीछे खड़ा हूं तो कहींदूर दूर तक कोई शंका का विषय नहीं है और यह तो देश की आधारशिला है। इसलिए 21वीं सदी का जो नया भारत जो पूरे विश्व का ऐसा भारत बनेगा उसकी आधारशिला यह शिक्षा नीति है और इसीलिए हर व्यक्ति, देश का कोने-कोने का व्यक्ति निश्चित रूप में काम करेगा। टीम इंडिया के रूप में मेरे देश के प्रधानमंत्री का ‘सबका साथ सबका विकास सबका विश्वास’ का सूत्र हैं। हम टीम इंडिया की तरह काम करेंगे, मिलकर के काम करेंगे केंद्र और राज्य मिलकर कामकरेंगे। किसको क्या दिक्कत है? क्या कोई राज्य अपने बच्चों का भविष्य नहीं बनाना चाहता? कौन राज्य होगा और वो कौन परिवार होगा, कौन मां बाप होगा जो अपने बच्चे का भविष्य अच्‍छा  नहीं  चाहता है। कौनदेश होगा जो अपनी पीढ़ी का भविष्य नहींचाहता है और यदि सब चाहते हैं तो समन्‍वयकरने के लिए हम लोग बैठे हुए है। हमारे ही जो परिवार है इसको जोड़ेंगे और मैंने एहसास किया औरइस नयी शिक्षा नीति को लेकर के आया। मेरे देश के प्रधानमंत्री जी का एक-एक मिनट हमको मार्गदर्शन मिला। मैंने इसकी खूबसूरती को निकटता से देखा। पूरा देश आज एकजुट है। पूरे देश में उत्सव का वातावरण है। अभी मुझे एक मित्र मिले उन्होंने कहा कि मैं वहां गया था तब किसी गांव के प्रधान ने कहा किनई शिक्षा नीति आ रही है,कुछ हो रहा है देश में। मेरे गांव के अंतिम छोर का व्यक्ति भी यह कह रहा है कि कुछ होने वाला है देश में, नयी शिक्षा नीति आ गई। नए भारत बनने वाला है। यह इसकी खूबसूरती है कि अंतिम छोर पर बैठने वाले व्यक्ति के मन में भी बहुत उत्सुकता  है,उल्लास है,हर्ष है, उसको भी लगता है कि कुछ होने वाला है। कुछ नया आने वाला है। यह इस शिक्षा नीति की खूबसूरती है और इसीलिए मुझे लगता है देश के सभी शिक्षा मंत्री गण से मेरी बातचीत होती है लगातार बात होती है। सभी लोग बातचीत सुनते हैं। ऐसे करके इसको लागू करें। हर हालत में लागू करना चाहते हैं और जो भी राज्य अपने को आगे बढाना चाहें तो उसे लागू करना ही करना है क्योंकि कोई भी राज्य क्यों चाहेगा कि उसकी पीढ़ीबहुत तेजी से आगे न बढ़े। इसलिए जो नई शिक्षा नीति है जिसके सन्‍दर्भ में अभी स्‍वायत्‍ताकी आपने बात की है। देश के प्रधानमंत्री चाहते हैं कि स्वायतता हो और हमने स्‍वायत्‍तादी भी है। पैंतालीस हजार से अधिक डिग्री कॉलेजों को जिनमें स्वायतता वाले हैंऔर लेकिन अभी हम चाहते हैं कि उनकी उत्कृष्टता बढे।उनको चरणबद्ध तरीके से जो जैसे जैसे सामर्थ्य में आते रहेंगे वैसे-वैसे उनकी स्वायतता भी बनती चली जाएगी। कुछ लोग कहते हैं स्वायत्तता का मतलब यह है कि मनमर्जी हो सकती है स्वायत्तता को लेकर जो विजन है, जो रास्ता, जो सूत्र है, उसके साथ आगे बढ़ेंगे क्योंकि स्वायतता में उत्तरदायित्व और पारदर्शिता भी बराबर होती है और हम चौकस हैं इस दिशा में हमको कोई कन्फ्यूजन नहीं है। इसीलिए मैं यह समझता हूं कि देश के विश्वविद्यालय देश के विश्वविद्यालयों में पीछे की समय में एक विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में गया तो मैंने कहा कि कितने कॉलेजों से जुड़े हैं?तब पता चला कि इस विश्वविद्यालय से आठ सौ कॉलेज जुड़े हैं। मैंने कहा कि यह आठ सौ कॉलेजों के साथ न्‍याय नहीं होगा,यहां  के कुलपति को 800 कॉलेजों को प्रिंसिपल का नाम क्या पांच सौ दो सौ कभी याद नहीं होगा तो न्याय कैसे हो सकता है। इसकी गुणवत्ता कैसे बढ़ सकती है। इसकी सक्रियता और समानता कैसे रह सकती है और इसीलिए हम लोगों ने इस शिक्षा नीति में कहा है कि क्रमबद्ध तरीके से एक विश्वविद्यालय 300 से अधिक संबद्धता नहीं रख सकता है। इसका मतलबविश्वविद्यालय बढ़ेंगे और जो डिग्री कॉलेज हैं वो भीविश्वविद्यालय की श्रेणी में आएंगे तो मैं समझता हूं कि यदि आप किसी कोने से भी शिक्षा नीति को देखेंगे तो हर कोने पर आपको ऐसा नजर आएगा कि यह आपके लिए बहुत अच्छे तरीके से और अभी जैसे मैं देख रहा था कि सतनाम जी आपने नीति केलचीलापन और बहुभाषीय तथाबहुविषय के बारे में जो कहा है कि उत्तरदायित्व और उत्तरदायी कैसे ले सकते हैं। मुझे लगता है कि आपने जो आत्मनिर्भर भारत की बात की है और मैंने उन बिन्दुओं को आपके साथ जोड़ा है कि वोकेशनल में कैसे करके आप लोग कर सकते हैं।आपको मालूम है कि जो शिक्षा नीति है उससे पहले हमने कुछ चीजों को शुरू किया। आईआईटी का कितनाखुबसुरत पीपीपी मोड है जिसमें 50 प्रतिशत केंद्र सरकार देती है 35 प्रतिशत राज्‍य सरकार देती है और 15 प्रतिशत उद्योग लगाता है और इतनी अच्‍छी मेरी ट्रिपलआईटी चल रहे हैं,बहुत अच्छे तरीके से चल रहे हैं। मुझे लगता कि रिफॉर्म भी करना है, परफॉर्म भी करना है।ज्ञान की शक्ति कोबढ़ाना है।हम बिल्‍कुल तैयार हैं और पूरी टीम इंडिया के तहत जब हम लोग बढना चाहेंगे काम करना चाहेंगे तो क्यों नहीं होगा। मैं समझता हूं कि जो आपने इन बिन्‍दुओं को कहा है और जीईआर बढ़ाने की भी आपने आज चर्चा की है, आप उसदिशा में निश्चित रूप में हम लोगों ने यह तय किया है किहम 50 प्रतिशत तक ले करके जाएंगे। अभी आपने क्रियान्वन के लिए जो प्रयास की बात की है सतनाम जी और हम उसके लिए कमेटियों का गठन कर रहे हैं। जिस तरीके से अभी हमने नीति बनाने के लिए लोगों से आवेदन किया, सुझाव मांगे हैं। अभी हम लोग उसका भी सुझाव मांग रहे कि आप बतायें। बिन्दुवार बताएं कि क्रियान्वयन में किस तरीके से हो सकता है। अभी कमेटी बनाई है, टास्कफोर्स भी बना दिया है। शिक्षाविदों से भी जो उच्च शिक्षा के क्षेत्र में काम कर  रहे हैं उनसे हम लगातार अनुरोध भी कर रहे हैं कि अब बताएं उनके मन में क्या है कि किस तरीके से इसका क्रियान्वन होना है, लेकिन उसके गंभीर प्रयास शुरू हो गए हैं। आप लोगों के साथ जैसे आपने कहा कि जो प्राइवेट संस्‍थानहैंवो भीयदि लीडरशिप के साथ इसका क्रियान्वन करेगा हमारे दिमाग में हैं और हम उन संस्थाओं का अभिनंदन करेंगे। जो संस्थान इसकोकरने के लिए आगे आएंगे पूरी ताकत के साथ उसके साथ चट्टान की तरह खड़े होकर उसको क्रियान्वित करेंगे। उद्योगों कोमैंने कह दिया कि जो उद्योग हैं उसके समन्‍वय की जरूरत हमने शुरू से महसूस की है और उसको भी आगे ले जाने कीसमय सीमा कोहमने तय किया है हमने चरणबद्ध तरीके से किया है कुछ तो हमने अभी शुरू कर दिया है औरकुछ को हम प्रशासनिक शासनादेशों के तहत करेंगे। जो अर्थ से संबंधितहै वो तीनों चरणों में राज्यों के साथ विमर्श करके लेकिन निश्चित समय के अंदर करेंगे यह तय है। मुझे लगता है कि सतनाम जी जो तीन-चार विषय आपने कहे हैं उसेपूरी ताकत के साथ हमलोग उसको क्रियान्वित करने और आपके साथ समन्वय भी करेंगे। मुझे लगता है कि आपके मन में कभी शंका होजाती है, आपने कहा कि बहुत सारी नीतियां बनती हैं लेकिन मुझे भी मालूम है कि बहुत सारी नीतियां बनती हैं लेकिन लागू नहीं होती हैं। अभी आपके मन में क्यों शंकाएं हैंकि जो नीति बनी हैवो लागू नहीं होगी। इन नीति लागू होने के लिए ही बनी है, यह पैदा ही इसलिए हुई है। फिर मैंने कहाकिदेश के प्रधानमंत्रीजी ने कहा है कि हम इच्छा शक्ति के धनी हैंइसीलिए तो देश की आजादी के बाद से यह महत्‍वपूर्ण शिक्षा नीति लाई है। हमें इस देश की शिक्षा व्यवस्था को विश्व स्तर का बनाने के लिए सभी लोगों को मिलकर करके करना है और यह दो-तीन जो सुझाव थेमैंने बीच-बीच में आपसेऔर चर्चा के दौरान भी उन पर बात की है लेकिन अब बहुत ताकत के साथ इस शिक्षा नीति को हम क्रियान्वित भी करेंगे। डॉक्टर चतुर्वेदी साहब ने मुझे लगता है वो बहुत आशावादी है मुझे अच्छा लगा। जो भी उन्होंने चर्चाएं की है वो बहुत अच्छे तरीके से उन्होंने अपनी बातों को कहा है, कलाम साहब ने यदि इसकी स्थापना की तो मैं समझता हूं कि बहुत ही पवित्र मन से इस संस्‍था की उन्होंने स्थापना की होगी। जितना मुझे कलाम साहब के निकट रहने का मौका मिला है। मुझे याद आता है जब मैं पहली बार उनसेमिला था तो उन्होंने कहा कि मैंने सुना है कि आपकी 1983से देश के आकाशवाणी केन्द्रों पर गीत आते  हैं देशभक्ति के।देशभक्ति के जो गीत आपने समय-समय पर लिखा वे एक जगह क्यों नहीं आ सकते?उन्होंने मुझे कहाएक जगह करिये और मैंने उनके आदेश पर उन गीतों को एक जगह किया फिर उन्होंने कहा कि हम उनको राष्टपति भवनमें गुनगुनाएंगे और ‘ए वतन तेरे लिए’ जो देशभक्ति के गीत थे उस संग्रह को उनके हाथों से लोकार्पित करवाया। आप सोच नहीं सकते कि कलाम जैसा विश्वविख्यात वैज्ञानिक,जितनेसंवेदनशील व्यक्ति के एक छोटी सी कविता को गुनगुनाते हुए उनकीआँखों से आँसू आते हुए मैंने देखे,वह छोटी सी कविता थी:-

 

अभी भी है जंग जारी, वेदना सोयी नहीं है

मनुजता होगी धरा पर, संवेदना खोयी नहीं है

किया है बलिदान जीवन, निर्बलता ढोयी नहीं है,

कह रहा हूं ऐ वतन तुझसे बड़ा कोई नहीं है।

 

यह जो अंतिम पंक्‍ति है इसको उन्‍होंने 4-5 बार गुनगुनाया और उनकी आंखों से आंसु टपकने शुरू हो गये। उस दिन मैंने देखा कि देशभक्‍ति का जो सागर उमड़ रहा था उनके ह्रदय में उसका मैंने साक्षात दर्शन किया। तो ऐसे व्‍यक्‍तित्‍व ने कुछ न कुछ सोचकर इसकी स्‍थापना की है। मेरी शुभकामनाएं कि ऐसी संस्‍था से जुड़े रहने वाले पवित्र लोग निश्‍चित रूप में बहुत तेजी से आगे बढ़ेगें। एक फिर मैं आप सभी को बहुत-बहुत शुभकामनाएं देना चाहता हूं।

 

बहुत-बहुत धन्‍यवाद!

 

कार्यक्रम में गरिमामयी उपस्‍थिति:-

  1. डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’, माननीय शिक्षा मंत्री, भारत सरकार
  2. सरदार सतनाम सिंह संधु, कुलाधिपति, चंडीगढ़ विश्‍वविद्यालय
  3. श्री अशोक मित्‍तल, कुलपति, लवली प्रोफेशनल विश्‍वविद्यालय, जालंधर
  4. सरदार जगजीत सिंह, अध्‍यक्ष, जेसीए
  5. डॉ. एच. चतुर्वेदी, निदेशक, विमटैक

केन्‍द्रीय विद्यालय आईजीएनटीयू, अमरकंटक (मध्‍य प्रदेश) के नवनिर्मित भवन का उद्घाटन

केन्‍द्रीय विद्यालय आईजीएनटीयू, अमरकंटक (मध्‍य प्रदेश) के नवनिर्मित भवन का उद्घाटन

 

दिनांक: 26 अगस्‍त, 2020

 

 

 

माननीय शिक्षा मंत्री, डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’

 

आज के इस कार्यक्रम में उपस्‍थित मेरे अनन्‍य सहयोगी और भारत सरकार में शिक्षा राज्‍य मंत्री आदरणीय श्री संजय धोत्रे जी, हमारे इस कार्यक्रम में जुड़ी इस क्षेत्र की बहुत ही लोकप्रिय और जुझारू सांसद श्रीमती हिमाद्री सिंह जी, विधायक श्री सुन्‍दर लाल जी, इस विश्‍वविद्यालय के यशस्‍वी कुलाधिपति डॉ. मुकुल साह जी, केंद्रीय विश्‍वविद्यालय के बहुत ही प्रखर और विद्वान कुलपति प्रो. प्रकाशमणि त्रिपाठी जी, इस परिसर के डीन प्रो. अनुप जी, केंद्रीय विद्यालय के प्रधानाचार्य नितिश कुमार जी, आज बहुत अच्‍छा संयोग है कि केंद्रीय विश्‍वविद्यालय और केंद्रीय विद्यालय इन दोनों के सभी आचार्यगण, शिक्षकगण और सभी छात्र-छात्राएं, अभिभावकगण, दूर-दूर से जुड़े जनप्रतिनिधिगण और विभिन्‍न हमारे प्रशासनिक अधिकारी। आज जो केंद्रीय विद्यालय के नवनिर्मित भवन का लोकार्पण हो रहा है इस अवसर पर जो सभी लोग एकत्रित हुए हैं, केंद्रीय विश्‍वविद्यालय संगठन के आयुक्‍त, इस केन्‍द्रीय विद्यालय के प्रधानाचार्य उनकोबहुत सारी बधाई देता हूं कि उनको एक बहुत अच्‍छा परिवेश मिला है, परिसर मिला है अपनी गतिविधियों को और शैक्षणिक गतिविधियों को बढ़ाने के लिए खूबसूरत भवन आज स्‍थापित हुआ है जहां केंद्रीय विद्यालय इसके लिए बधाई का पात्र है वहींकेंद्रीयविश्‍वविद्यालय जिसके परिसर में बच्‍चे पढ़ने के लिए आएंगे आप ऐसे बच्‍चों को तैयार करेंगे जो आपकेलिए बहुत बड़ी निधि होगी, आपके लिए बहुत बड़ी उपलब्‍धि होगी, मैं कुलपति जी को, कुलाधिपति जी को उनके परिवार को बधाई देना चाहता हूं। मैं समझता हूं कि शिक्षा पर, नई शिक्षा नीति पर जो हमारे कुलपति जी ने, हमारे कुलाधिपति जी ने प्रकाश डाला है। बच्‍चों, मैं सोचता हूं जब मैं आपसे बात करता हूं आप सबको मालूम है कि हमारा देश भारतपूरीदुनिया में विश्‍वगुरू रहा है और ऐसा विश्‍वगुरू रहा है जिसने ज्ञान,विज्ञान, अनुसंधान, नवाचार के क्षेत्र में पूरी दुनिया को लीडरशिप दी है बीच में कुछ परिस्‍थितियां आई हैं जिसके कारण हमें गुलामी की जंजीरों में जकड़े रहना पड़ा और सदियों की गुलामी के बाद फिर हम स्‍वाधीन हुए हैं और आज फिर पूरी दुनिया उस गौरवशाली भारत की ओर देख रही है।हम एक योद्धा की तरह खड़े होकर ज्ञान, विज्ञान, अनुसंधान और नवाचार की दिशा में आगे बढ़ने की मंशा रखते हैं। इसलिए मैं आपको शुभकामना देना चाहता हूं कि इस समय देश में जो परिवेश है वो बहुतअच्‍छा परिवेश है, पूरीदुनिया की नजरेा हम पर टिकी हैं। मेरे देश के प्रधानमंत्री जी ने जिस ‘नए भारत’ के निर्माणकी बात की है, आप सभी उस अभियान से जुड़े हैं। जब प्रधानमंत्री जी ने‘स्‍वच्‍छ भारत अभियान’ शुरू किया था तो स्‍कूली शिक्षा के छात्र-छात्राएं उसके ब्रांड अम्‍बेस्‍डर बने थे, जिन्‍होंने उसको अभियान के रूप में लिया जो कि सारी दुनिया में एक बहुत बड़ा अभियान रहा। स्‍वच्‍छ भारत का तात्‍पर्य केवल गंदगी को हटाना नहीं है, स्‍वच्‍छता परिसर की भी होनी चाहिए, स्‍वच्‍छता मन की भी होनी चाहिए,स्‍वच्‍छता विचारों की भी होनी चाहिए क्‍योंकि जहां स्‍वच्‍छता होती है वहीं पवित्रता होती है। जहां पवित्रता होती है, वहीं विचार आता है, जहां विचार आता है वही प्रगति का कारण बनता है और इसलिए हमने यह स्‍वच्‍छ भारत अभियान लिया। देश के प्रधानमंत्री जी ने कहा कि ऐसा भारत चाहिए जो स्‍वच्‍छ हो, स्‍वस्‍थ हो, सशक्‍त हो। एक बीमार मन, बीमार व्‍यक्‍ति कभी किसी को आगे नहीं बढ़ा सकता, उन्‍नति के  शिखर पर नहीं पहुंचा सकता और इसलिए जहांस्वच्छ भारत हो, वहीं स्वस्थ भारत हो, सशक्त भारत भी हो, एक आदमी हष्‍ट-पुष्‍ट है लेकिन ताकतवर नहीं है,ताकत केवल शरीर की नहीं होती,ताकत विचारों की भी होती है और इसीलिए जो सशक्त होना चाहिए वहीं ताकतवर भी होना चाहिए और समृद्ध भीहोना चाहिए। मेरे देश को सोने की चिड़िया कहा जाताथा, विश्वगुरु कहा जाताथा,जहां एक ओर धन धान्य से संपन्न इस देश को सोने की चिड़िया कहा जाता था तभी तो कहा गया कि‘यूनान मिस्र, रोमां सब मिट गये जहां से, अब तक मगर है बाकी नामो निशां हमारा’ और वो जो तीसरी और चौथी बात है वो हमारा संस्कार है, हमारी संस्कृति है। इसलिए देश के प्रधामंत्री जी ने कहा स्वच्छ भारत, स्वस्थ भारत,समृद्ध भारत,आत्मनिर्भर भारत, श्रेष्ठ भारत और एक भारत। श्रेष्ठ भारत चाहिए वो श्रेष्ठ भारत जिसकी गरिमा, जिसकी आभा पूरी दुनिया को आलोकित करती हो ऐसा भारत चाहिए और ऐसा भारत बनाने के लिए हम सब लोग मन से, तन से और अपने विजन से समर्पित होकर उस दिशा में दौड़ रहे हैं। मुझे लगता है इससे बड़ा सौभाग्य क्या मिलेगा कि‘मेक इन इंडिया’,‘डिजिटल इंडिया’,‘स्किल इंडिया’,‘स्टार्ट अप इंडिया’और‘स्‍टैंड अप इंडिया’जैसे सूत्र हमें मिल रहे हैं वहीं आत्मनिर्भर भारत केभीतमाम सूत्र मिल रहे हैं जिससे यह देश फिर आत्मनिर्भर होकर पूरे विश्व को बता सकेगा कि भारत फिर उन्हीं ऊंचाईयों को स्‍पर्श करेगा और इसीलिए यह जो नई शिक्षा नीति आयी है जो राष्‍ट्रीयशिक्षा नीति 2020 है जिसका मंत्री जी ने भी जिक्र किया है, यह बहुत अद्भुत है। देश में पहली बार ऐसा माहौल हो रहा है,देश के अंदर उत्सव का वातावरण है। छात्र भी खुश हैं,अभिभावक भी खुश है, अध्यापकभी खुश है क्योंकि शिक्षा किसी भी व्यक्ति की, परिवार की, समाज की,राष्‍ट्र की रीढ की हड्डी होती है यदि वो मजबूत नही है तो वो व्यक्ति कभी खड़ा नहीं हो सकता, व्यक्ति खड़ा नहीं होगा तो परिवार खड़ा नहीं हो सकता, परिवार सशक्त नहीं होगा तो फिर कैसे समाज और राष्ट्र खड़ा हो जाएगा। इसलिए किसी भी राष्ट्र की पहली धुरी है उसका व्यक्ति, उसका व्यक्ति सशक्त होना चाहिए,वह हर दिशा में सशक्त होना चाहिए। मेरे छात्र-छात्राओं आपको मालूम है कि हम भारतवासी पूरे विश्व को अपना परिवार मानते हैं । हम हमेशा कहते हैं कि‘अयं निज: परो वेति गणना लघु चेतसाम् उदारचरितांना वसुधैव कुटुम्बकम’ पूरी दुनिया कोहम अपना परिवार मानते हैं। हम हमेशाकहते हैं कि‘सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया सर्वे भद्राणी पश्‍यन्‍तु मां कश्‍चित् दुख: भाग भवेत’ जब तक इस धरती पर एक भी इंसान, एक प्राणी भी दुखी होगा तब तक में सुख का अहसास नहीं कर सकता।मैं एक योद्धा की तरह मनुष्‍य पर आने वाले हर संकट का मुकाबला कर सकता हूं, मैं मनुष्य पर आने वाली हर त्रासदी को हर सकता हूं। यह है हमारा विजन, यही हमारा मिशन है और इसलिए जोयह नयी शिक्षा नीति है यहभारत के मानवीय मूल्यों कीआधारशिला पर खड़े हो करके आई है।इसकीसुगंध पूरी दुनिया में जा रही है। दुनिया केतमाम देश भी यह कहरहे हैं कि हमको भी भारत जैसी शिक्षा नीति की ज़रूरत है। इससे ज्यादा सुखद बात क्‍या हो सकती है। हम तमाम परिवर्तन के साथ इस नई शिक्षा नीति को लाए हैं। आप सबको मालूम है, चाहे स्कूली शिक्षा हो, बच्चों को भी खूब मजा आएगा जब उनको लगेगा कि वोस्वयं अपना मूल्यांकन कर सकेंगे, अध्यापक भी मूल्यांकन करेगा, अभिभावक भी मूल्‍यांकनकरेगा और उसका साथी भी उसका मूल्‍यांकन कर सकेगा। पूरी पारदर्शिता के साथ मूल्यांकन होगा जब उसको लग सकेगा कि उसमें कोई कमी नहीं है। जब व्यक्ति अपना मूल्यांकन स्‍वयंकरता है तो बहुत सारी चीजों पर वो अंदर से झांकता हैकिक्या मूल्यांकन करूं? फिर दूसरी बात मुझे अपने नंबर स्‍वयं देने हैं तो मुझे क्या-क्या करना है, क्या करना चाहिए, यहहैइसकी ताकत और इतना ही नहीं भारतदुनिया में पहला देश होगा जो कृत्रिम बुद्धिमत्ता छठवी से शुरू करेगा,स्‍कूली शिक्षा से शुरू करेगा।हमारा देश दुनिया का पहला देश होगा जहां हमछठवीं कक्षा से ही वोकेशनलशुरू करेंगे,जहांशैक्षणिक गतिविधियां होंगी, वही शिक्षणेत्तर गतिविधियां भी होंगी और वहीं वोकेशनल गतिविधियां भी होंगी और इसको हम इंटर्नशिप के साथ लाएंगे।ऐसानहीं है कि केवल किताब पढ़कर के करेंगे, पढ़ाई के साथ बच्‍चे को अन्‍य गतिविधियों में भी शामिल करेंगे। अभी जो जनजातीयविश्वविद्यालय इस समय यहां पर है। मैं अभी देख रहा था कि इस क्षेत्र में बहुत सारी ऐसी जनजातिहैं,यह जो क्षेत्र है यहा बहुत दुर्लभ वनस्पतियां हैं और जैसाकि अभी हमारे मंत्री जी ने कहा कि विध्‍यं और सतपुड़ा की संधि पर यह स्थल मैकल पर्वत श्रृंखला से घिरा है जोखूबसूरत है और इसीलिए हमाराजोजड़ी बूटियों का भंडार है वो भी हमारे लिए वरदान साबित हो सकता है। किस तरीके से वरदान साबित होंगी? जो पहले के हमारे वैज्ञानिक थे, जो ऋषि-मुनि थे अभी जब विश्‍वविद्यालयका कुल गीत गाया जा रहा था,तो ऋषि मुनियों को याद करके अभियान आगे बढ़ाया जा रहा था। हम सब को पता है, पूरी दुनिया को पता है कि जो आयु का विज्ञान  है वह आयुर्वेद है। हमारेपाससंजीवनी बूटी रही है और उन पर शोध करनेकी जरूरत है। हमारा जो पुराना वैभव है सुश्रुत शल्य चिकित्सा का जनक जिस धरती पर पैदा होता है आपको मालूम है कि चाहे वो भास्कराचार्य हों, चाहे आर्यभट्ट हों,चाहे वराहमिहीरहों तमाम ऐसे-ऐसे आचार्य रहे हैं, चाहे आचार्य कणाद हों,ऐसे-ऐसे वैज्ञानिकहमारी धरती पर पैदा हुए। आज जरूरत है कि जो पीछे का हमारा ज्ञान है उसको पकड़ के अनुसंधान के क्षेत्र में, नवाचार के क्षेत्र में हमको आगे बढ़ना है और यह नई शिक्षा नीति उस क्षेत्र मेंसबकोआगे बढ़ाने के लिए हीहै। उच्च शिक्षा में छात्र आज बहुत खुश है उसको लगता है उस पर कोई पाबंदी नही है कि इस विषय कोलो, उस विषय को लो,कोई भी विषय ले सकता है। वो गणित के साथ विज्ञान, विज्ञान के साथ संगीत, संगीत के साथ दूसरा विषय,कोई भी विषय, कुछ भी विषय ले सकता है। वो अपने मन का राजा है लेकिन राजा ताकतवर होता है, मेहनती होता है। वो अपने अस्तित्व को कायम रखने के लिए अपने जीवन और मरण के सवालों से गुजरता है और इसीलिए जब भी आप अपने विषयों का चयन करेंगे उस विषय में आप कोमहारथ होना चाहिए। आपको छूट है बताओ किस क्षेत्र में जाना चाहते हैं और केवलविषय लेने की ही छूट नहीं है बल्‍किइस शिक्षा नीति के अंतर्गत यदि कोई 4 वर्ष का कोर्स है और यदि कोई छात्र दो साल में हीपरिस्‍थितिवशछोड़के जा रहा है  तो पहले उसका पैसा एवं वर्ष खराब हो जाते थे लेकिन अब उसकोनिराश नहीं होना पड़ेगा,यदि आप परिस्‍थितिवश एक वर्षमें छोड़ कर जा रहे हैं तो उसको सर्टिफिकेटदेंगे,दो साल में छोड़ कर जा रहा है तो डिप्लोमा देगें, तीन साल में छोड़ेकर जा रहा है तो उसकोडिग्री देंगे लेकिन यदि फिर वह लौट कर अपने भविष्य को संवारना चाहता है तो फिर जहां से उसने छोड़ा था वहीं से शुरू कर सकता है। उसके लिए हम एक ऐसा क्रेडिट बैंक बनायेंगे जहां उसके सारे क्रेडिट जमा होंगेइसलिए उसके लिए आगे बहुत आपार संभावनाएं है।वह कहां जाना चाहता है, शोध और अनुसंधान के क्षेत्र में जाना चाहता हैऔर इसलिए इस उच्च शिक्षा नीति में हम लोग बहुत सारे परिवर्तन को लेकर आए हैं। हमको अनुसंधान की जरूरत है। आप सबको मालूम होगा कि एक वक्त ऐसा था देश लालबहादुर शास्त्री देश के प्रधानमंत्री थे उस समय देश सीमाओं के संकट से जूझ रहा था, सीमाओं पर संकट था और देश के अंदर खाद्यान्‍न की बहुत परेशानी थी दोनों संकटों से देश गुजर रहा था। ऐसे वक्‍त पर हमारे देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री ने ‘जय जवान जय किसान’ का नारा देकर पूरे देश को एकजुटकर दिया था। पूरे देश नेएकजुट होकर इन दोनों संकटों का मुकाबला किया थाऔर उसके बाद भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी ऐसा योद्धा जिसको पूरी दुनिया मानती है, जानती है और महसूस करती है किजबभारत रत्न अटल बिहारी बाजपेयी जी भारत के प्रधानमंत्री बने तब उनको महसूस हुआ कि विज्ञान को और तेजी से बढ़ाने जरूरत है और उन्‍होंने‘जय विज्ञान’ का नारा दिया था और ‘जय विज्ञान’ का नारा देकर परमाणु परीक्षण करकेउन्‍होंने हिंदुस्तान को दुनिया में महाशक्ति के रूप में स्‍थापित किया था तो विज्ञान के क्षेत्र में हम तेजी से आगे बढ़ रहे हैंऔर अब जो वर्तमान में हमारे देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी हैं उनके मन में आया कि अबअनुसंधान की जरूरत है,हमारा अतीत गौरवशाली रहा है, उस अतीत की जो चीजें हैं उस पर अनुसंधान और नवाचार के साथ विश्व फलक पर ले जाने की हमारी अगली चुनौती है इसलिए  उन्‍होंने ‘जयअनुसंधान’ का नारा दिया हम अनुसंधान करेंगे, हम शोध करेंगे इसलिएशोधकी प्रकृति और शोधकी संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए हम देश के अंदर ‘नेशनल रिसर्च फाउंडेशन’ की स्थापना कररहे हैं क्योकि जब भी मैंबड़े संस्थानों की समीक्षा करता हूं तब मुझकोलगता है कि इंटरनेशनल स्तर पर हम कहांपीछे रह रहे हैं ऐसी स्‍थिति मेंतोमुझे लगता है कि हां अभी हमारा शोध और अनुसंधान के क्षेत्र में, पेटेंट के क्षेत्र में हमारा इतना काम नहीं हुआहै। मैं यहांके यशस्‍वी कुलपति जीको आग्रह करूंगा कि उसपर बहुत ध्यान दें और शोध और अनुसंधान की दिशा में छात्रों को आगे बढ़ाएं। वैसे भी हम ‘स्‍पार्क’के तहत दुनिया के 127देशोंके शीर्ष विश्वविद्यालयों के साथ शोध एवंअनुसंधान कर रहे हैं। हम‘स्‍ट्राइड’के तहत अंतर-विषयी शोध कर रहे हैं। हम ‘स्टार्स’ के तहत वैज्ञानिक क्षेत्र में शोध कर रहे हैं।हम ‘इम्‍प्रैस’ और‘इम्‍प्रिंट’ के साथ प्रौद्योगिकी,सामाजिक विज्ञान के क्षेत्र में शोध कर रहे हैं। अब अवसर आ गया है किहमको अनुसंधान के क्षेत्र में बहुत तेजी से दौड़ना है,भागना है और पूरे विश्व के शिखर पर जा करके यह साबित करना है कि हममें क्षमताएं हैं,हममें विजन भी है और उस विजन को क्रियान्वित करने का हममें मिशन भी है। इसलिए मैं समझता हूं यहबहुतअच्छा अवसर है। प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में हर जगह हम उसका उपयोग करना चाहते हैं।इसलिएआपको मालूम होगा कि इस नई शिक्षा नीति में हम ‘नेशनलटेक्नोलॉजी फोरम’ ला रहे हैं। हम‘वन नेशन वन डिजिटल प्लेटफार्म’ और ‘वन क्लास वन चैनल’ यह दोनों पहलकर रहे हैं क्योंकि हम जो ऑनलाइन शिक्षा प्रदानकर रहे रहे हैं उससेअंतिम छोर का बच्चा भीशिक्षा से वंचित न रहे जिसके पास स्मार्ट टेलीफोन नहीं है, जिसके पास नेटकी सुविधा नहीं है वह हमारा टारगेट है वो इससेदूर नहीं रहनाचाहिए। इसके लिए भी हमनेजहां‘स्‍वयं’  है, वहीं ‘स्वयं प्रभा’ के32चैनलों पर हम काम कर रहे हैं जो चौबीसों घंटे चलेंगे जोकि डिश टीवी, रिलायंस टीवी,टाटा स्‍काई दूरदर्शन आदि पर प्रसारित होंगे। हम सामुदायिक रेडियो के द्वारा भीजाएंगे क्‍योंकि हमारा टारगेट उस अंतिम बच्चे को भी पकड़ना है और आपको मालूम है कि इस देश का कितना बड़ा वैभवहै।हिन्‍दुस्‍तान दुनिया में सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देशहै।यहांएक हजार से भी अधिक विश्वविद्यालय हैं, पैंतालीस हजार से भी अधिक डिग्री कॉलेजहैं और 55 लाख से भी अधिक स्कूल हैं, एक करोड़ नौ लाख से भी अधिक अध्यापक हैं और अमेरिका की कुल जितनी जनसंख्या नहीं है उससे भी अधिक 33 करोड़ छात्र-छात्राएं हैं और आगे आने वाले 25 वर्षों में यह देश यंग इंडिया रहने वाला है। मेरे छात्र-छात्राओं! आपके लिए पूरा मैदान खाली है आप कहां तक दौड़ सकते हैं। पूरी दुनिया आपको निहार रही है हर क्षेत्र में आपको महारत हासिल करनी है। ज्ञान में भी, विज्ञान में भी, शोध में भी अनुसंधान में भी, नवाचार में भी, प्रौद्योगिकी में भी हमको छलांग मारनीहै और मुझे भरोसा है कि मेरे सारे केंद्रीय विश्वविद्यालय इस दिशा में बहुत अच्छा काम कर रहे हैं और जिस केन्‍द्रीय विद्यालय के भवन का आज लोकार्पण हुआ है, जो नई कमिश्नर यहां पर आई हुयी हैंजब वह  मुझसे मिलने के लिए आई थी तो मैंने निधि से कहा कि ऐसा सौभाग्य बहुत कम लोगों को मिलता है कि कोई केन्द्रीय विद्यालय का कमिश्नर बन करके ऐसे जो हमारे हीरे हैं इनके बीच सुशोभित होमैं जब भी केन्द्रीय विद्यालयों में जाता हूं मेरा माथा ऊँचा होता है। मेरे बच्चे इतने प्रखर, संस्कारी, अनुशासित हैं। केन्द्रीयविद्यालय देश के लिए बहुत बड़ी उपलब्धि है। इसीलिए आज केन्द्रीय विद्यालय का यहां पर उद्घाटन हो रहा है। मैं इसके प्राचार्य को धन्यवाद देना चाहता हूं, बधाई देना चाहता हूँ। मुझे भरोसा है कि केन्द्रीय विद्यालय जो यहाँ जनजाति का क्षेत्र है वहां पर जिस तरीके से हम लोग वोकेशनल एजुकेशन छठी से शुरू कर रहे हैं और जो परंपरा की बात हमने विश्‍वविद्यालय से लेकर के जो स्कूली शिक्षा तक कीहै जो हमारी धरोहर रही हैं जो हमारी सम्पदा है उसमें शोध अनुसंधान कैसे हो सकता है, वो आत्मनिर्भर भारत की धुरी कैसे बन सकता है, इसकी जरूरत है और इसलिए मुझे भरोसा है कि यहां से निकलने वाला मेरा छात्र पूरे देश के लिए एक ऐसे हीरे की तरह लोगों के आकर्षण का केन्द्र बन सकता है उस देश के लिए एक विजनवाला छात्र कैसे हो सकता है। मेरे केन्‍द्रीय विश्‍वविद्यालय होंऔर चाहे मेरा केन्द्रीय विद्यालय है और मुझे भरोसा है कि आज जिस भवन का उद्घाटन हो रहा है मैं उनके अभिभावकों को बहुत बधाई देना चाहता हूँ जो बहुतअच्छे तरीके से अपने बच्चों को केंद्रीय विद्यालयों में प्रवेश करा रहे हैं। मेरा बच्चा अगरकेन्द्रीय विद्यालय में चला गया तोवहहीरा बन जायेगा और बन भी रहा है। मैं आपको कहना चाहता हूँ आपसे बहुत अपेक्षाएँ होती हैं। आपसे आपके मां बाप की अपेक्षाएं बहुत हैं। आपसे आपके प्रदेश की अपेक्षाएं बहुत हैं। आपसे मेरे देशकी अपेक्षाएं बहुत हैं। आपको हीरा बनना है वो खुशबू बिखेरनी है दुनियामें जब पूरा देश आप पर गर्व कर सकेगा।जब दुनियाभी आप पर गर्व कर सकेगी और वो दिन दूर नहीं सारी दुनिया आज हिन्दुस्तान की ओर निहार रही है। हमारे देश के यशस्‍वी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी की अगुवाई में जिस तरीके से चौतरफा,जैसाकिअभी कुलपति कह रहे थे कि चाहे ‘सबका साथ सबका विकास’ हो और चाहे वो ‘आत्मनिर्भर भारत’ की बात हो और चाहे ‘वो मेक इन इंडिया’ की बात हो चाहे ‘स्‍किलइंडिया’ की बात हो हरक्षेत्र में भारत लीडरशिप ले रहा है और इसीलिए यह हमारे लिए बहुत अच्छा क्षण है और मैं शुभकामना देना चाहता हूं आप बधाई के पात्र हैं। इसराष्ट्रीय जनजाति विश्वविद्यालय कीअलग पहचान होनी चाहिए। इस क्षेत्र की जो सम्‍पदाएं हैं, जो कलाएं हैं, जो परंपराएं हैं हमउन परम्पराओं, कला, विचार,कौशल को कैसे विकसित कर सकते हैं। यहजो हमारे छात्र हैं, उसी के हाथों उनका कौशल विकास होते होते यह भारत आत्म निर्भर किस तरीके से बन सकता है, इसके लिए भी मैं आपको शुभकामना देना चाहता हूँ। मुझे भरोसा है कि आप इस मिशन में सफल होंगे। केन्द्रीय विश्वविद्यालय के कुलपति जी और आदरणीय कुलाधिपति जी, मैं देख रहा था कि कुलाधिपति जी भी जीवनभरशिक्षा के लिए समर्पित रहे हैं और अब अमरकंटक जैसे विश्वविद्यालय में वो कुलाधिपति होकर आये हैं। निश्चित रूप से कुलाधिपति जी के मार्गदर्शन में कुलपति एक योद्धा की तरह अपनी पूरी टीम को साथ ले करके इस विश्वविद्यालय को शिखर तक पहुंचाएंगे, ऐसा मेरा भरोसा है क्योंकि प्रकाश जी कोभी मैं जानता हूं, मेहनती है,विजनरी हैं सबको साथ लेकर चलने की हिम्मत रखते हैं, विजन रखते हैं,मिशन रखते हैं और इसलिए मुझे कोई शंका नहीं है कि मेरा यहजोविश्वविद्यालय है बहुत तेजी से आगे बढ़ेगा। यह अपनीसफलता के शिखर को चुमेगा। देश के अंदर केन्द्रीय विश्वविद्यालयों में एक अलग स्थान बनाएगा। मैं पूरी फैकल्टी को, कर्मचारियों को, छात्रों को, छात्राओं को और पूरे विश्वविद्यालयपरिवार और केन्‍द्रीय विद्यालय परिवार को बहुत बधाई देता हूं।

 

बहुत-बहुत धन्‍यवाद!

 

 

कार्यक्रम में गरीमामयी उपस्‍थिति:-

 

  1. डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’, माननीय शिक्षा मंत्री, भारत सरकार
  2. श्री संजय शामराव धोत्रे, माननीय शिक्षा राज्‍य मंत्री, भारत सरकार
  3. श्रीमती हिमाद्री सिंह, संसद सदस्‍य, लोक सभा
  4. डॉ. मुकुल शाह, कुलाधिपति, इन्‍दिरा गांधी राष्‍ट्रीय जनजातीय विश्‍वविद्यालय, अमरकंटक (मध्‍य प्रदेश)
  5. प्रो. श्री प्रकाशमणि त्रिपाठी, कुलपति, इन्‍दिरा गांधी राष्‍ट्रीय जनजातीय विश्‍वविद्यालय, अमरकंटक (मध्‍य प्रदेश)
  6. श्री पी. सिलुवनाथन, कुलसचिव, इन्‍दिरा गांधी राष्‍ट्रीय जनजातीय विश्‍वविद्यालय, अमरकंटक (मध्‍य प्रदेश)
  7. श्री नीतिश कुमार, प्रधानाचार्य, केन्‍द्रीय विद्यालय, अमरकंटक, मध्‍य प्रदेश