आचार्य देवो: भव: नेक कॉन्क्लेव
दिनांक: 11 सितम्बर, 2020
माननीय शिक्षा मंत्री, डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’
‘आचार्य देवो भव:’ के नाम सेजो नैक ने आज यह महत्वपूर्ण कार्यक्रम आयोजित किया है, मैं सबसे पहले नैक के अध्यक्ष श्रीचौहान जी और नैक के निदेशक डॉ.शर्मा कोविशेष बधाई देना चाहता हूं,उनका आभार प्रकट करना चाहता हूं। अभी हमारे यूजीसी के अध्यक्ष जो शालीनताकेधनी हैं, मैंने उन्हेंबहुत लंबे समय से यहां तक कि बचपन से ही देखा है, जब वेश्रीनगर में थे, पढ़ रहे थे, तब से ही हम उनको जानते थे और उनकी यात्रा को, उनके संघर्षों को मैंने निकटता से देखा है। शालीनता से कैसे शिखर तक जाया जा सकता है, वो भी उनसे अच्छे से सीखने की जरूरत है। हमलोगों को जैसे कि डी.पी सिंह जी ने डॉक्टर चौहानजी के बारे में बताया कि वो न केवल अद्भुत व्यक्तित्व के धनी हैं,बल्कि अपने कमिटमेंट के बहुत पक्के हैं कि मन में आया तो करना है, तो उनका भी हमको मार्गदर्शन मिला है। डॉक्टर शर्मा आपको मैं धन्यवाद देना चाहता हूं क्योंकि मैंने आपसे कहा था कि हमशिक्षक दिवस मना रहे हैं तो शिक्षक दिवस के अवसर पर मैंने आपसे अनुरोध किया था कि क्या हो सकता है? मेरा मन है कि एक बात सभी शिक्षक जितने अपनेहैं आचार्य उन सबको मैं अभिनंदन करूं। मैं उनको बधाई दूं उनको मैंप्रत्यक्षशुभकामना दूं और आपने इसबेड़े को उठाय।मैं देख रहा हूं कि लगभग 330 कुलपतिगण आज हमारे साथ जुड़े हुए हैं। आईआईटी और आईआईएम के 79डायरेक्टरइस समय हमारे साथ जुड़े हुए हैं। तीन हजार प्रधानाध्यापक जुड़ेहैं।31 हजार से अधिक सहायक प्रोफेसर, एसोसिएट प्रोफेसर और प्रोफेसर्स जुड़ेहैं,कुल मिला कर के लगभग डेढ लाख से भी अधिक लोग अभीप्रत्यक्ष तरीके से हमारे साथ जुड़े हुए हैं। मैं विशेषकरके आपको धन्यवाद देना चाहता हूं और आपके माध्यम से जो आज यह आचार्य देवो भव: के रूप में जो हम सब लोग आज अपने आचार्योंका विशेष करके देश के शिक्षा मंत्री होने के नाते मैं अपने आचार्यों को प्रणाम करना चाहता हूं, उनको मैं बधाई देना चाहता हूं,ह्रदय की गहराइयों से उनका अभिनंदन करने के लिए विशेष करके यह कार्यक्रम मैंने चाहा था। मैंबहुत गहरे मन से आपका आभार प्रकट कर रहा हूं क्योंकि मैं जानता हूं, मैं शिक्षक से लेकर शिक्षा मंत्री तक की अपनी यात्रा मेंउन तमाम पड़ावोंको महसूस कर सकता हूं कि एक शिक्षक की कितनी महत्वपूर्ण भूमिका होती है। कितनी वेदनाओं से, कितनी कठिनाइयों से, किस मन:स्थिति से होकर एक शिक्षक गुजरता है। शिक्षक केवल शब्द नहीं देता, शिक्षक अपने अंदर का उडेल कर अपने छात्र को देता है और उसका जो अंदर का अंतस मन है उसको किस सीमा तक को वोअपने को जोड़ करके छात्र के अंदर प्रवेश करता है। यहसामान्य बात नहीं है। शिक्षक एक वैज्ञानिक है ऐसा वैज्ञानिक है जो महसूस कर सकता है कि मुझे अपनेछात्रों के मन और मस्तिष्क पर किस तरीके से प्रवेश करना है। जब आप किसी के मन-मस्तिष्क में प्रवेश करते हैं, किसी के जीवन में प्रवेश करते हैं, किसी के संस्कारों में प्रवेश करते हैं,किसी की प्रकृति-प्रवृत्ति में प्रवेश करते हैं तो मैं समझ सकता हूं क्योंकि मैं लेखन से भी जुड़ा हूं। उन कठिनाइयों सेअध्यापक को गुजरना पड़ता है क्योंकि रचना तभी निकल सकती है। बड़ी वेदना के बाद वो रचना बाहर निकलती है और मैं इस बात को भी लेकर उतना ही महसूस करता हूं जैसे किडॉ.चौहान ने चिंता व्यक्त की है। मैं महसूस कर सकता हूं कि जो लोग मन के अंदर से अकलुशिततरीके से उस संवाद को नहीं बढ़ा पाते मुझे लगता है कि वहां कोई न कोई कमी रही है क्योंकि यह प्रकृति का नियम है। जब हमअंदर से कभी किसी को बोलते हैं तो वहआपसे जुड़ता है। वह आपका सम्मान करता है। वह गदगद् होता है। जब हम किसी व्यक्ति सेकभी मिलते नहीं हैं, लेकिन जब उसकी बातों को सुनते हैं तो स्वतःस्फूर्त मन के अंदर सम्मान पैदा होता है। ऐसा महसूस होता है कि यदि वह मेरे सामने होता तो मैं चरण स्पर्श करता। मैंइनकेपैरों पर लोट-पोट हो जाता, अंदर से आस्था प्रकट होती है। भावनाएंआह्लादित होती है। मन के अंदर से निकले उद्गार के तहत जब आदमी अपने को तैयार करता है, तभी वहदूसरे को कुछ दे सकता है। मैं इसकोबहुत ताकत के साथ कह सकता हूं और यदि मन के अंदर से तैयारी है जिसको कुछ देना है, वह देने का भी अधिकार उसी का है जिसके पास है। जब किसी के पास है ही नहीं यह किताब पढ़ी और इधर के शब्द उधर कोदिये वो देना नहीं हो सकता है। इसलिए मैं समझता हूं आज की उन परिस्थितियोंमें हमारी बहुत बड़ी जिम्मेदारी हो गई है और निश्चित रूप में जो चिन्ता चौहान जी ने व्यक्त कीउसको भी हमेंपाटना है, वह हमसे ही पैदा हुई है। परिस्थितियोंने पैदा की और तमाम प्रकार की परिस्थितियां पैदा हुई। एक ओर तो हमारे देश की गुलामी के उन थपेड़ों ने हमको जड़ों से काटा है। अन्यथा हम कैसे भूल जाएंगे हम उस देश के लोग है जो विश्वगुरु कहलाया है। ‘एतद्देशप्रसूतस्य सकाशादग्रजन्मनः स्वं स्वं चरित्रं शिक्षेरन्पृथिव्यां सर्वमानवाः’सारी दुनिया के लोगों ने हमसे आकर शिक्षा ली है,तक्षशिला, नालंदा और विक्रमशिला तमाम वो विश्वविद्यालय थे। दुनिया के कोई विश्वविद्यालय बताएं तो और यदि पूरी दुनियां हमसे आकर इतिहास, ज्ञान, विज्ञान, अनुसंधान और प्रौद्योगिकी कौन सा क्षेत्र था जिसमें भारत ने विश्व में लीडरशिप नहीं दी है। लेकिन वो तमाम जो भी परिस्थितियांरहीं उन पर मैं पीछे नहीं जाना चाहता। लेकिन हां, उन थपेड़ों ने हमको हमारीजड़ों से काटने की कोशिश की। मैं लार्ड मैकाले जी को दोष नहीं देता क्योंकि देश गुलाम था और स्वाभाविक रूपसे उनके मन में आया कि जब तक इस देश की शिक्षा और संस्कृति नहीं बदल देंगे तब तक भारत जैसे देश पर राज करना आसान नहीं होगा। उन्होंने अपने पत्रों में लिखा कि मैं जो चाहता हूं वह तब तक नहीं हो सकता क्योंकि यह देश बहुत बड़ा है। इसमें विविधता है, अनेकता में भी एकता है। यह संस्कारों से जुड़ा है और बिल्कुल सही है, जो उन्होंने सोचा। यह हम हमेशा कहते हैं कि‘‘यूनान, मिस्र रोमा सब मिट गए जहां से अब तक मगर है बाकी नामोनिशां हमारा और उसके बाद कुछ आगे कहते हैं कि कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी’’ कौन सी बात है? कुछ तो बात है कि तमाम लोग आए दुनिया के इतिहास में कितने देश खड़े हुए, कब मिट्टी में मिल गए उनका पता भी नहीं चलता। हिन्दुस्तान ने तमाम थपेड़े सहे हैं लेकिन हिंदुस्तान को मिटाने के कोशिशों पर लोग सफल नहीं हो सके हैं। यह जो हमारी थाती है, यह जो हमारा संस्कार है, यह जो हमारी विशेषता है यह हमारी रगों में बहने वाला वो खून जो हमको संकीर्णता में नहीं विश्व को लेकर विश्व बंधुत्व के रूप में स्थापित करता है। आज देश की आजादी के बाद एक ऐसे नेतृत्व में यशस्वीप्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी, जो इच्छाशक्ति के धनी हैं और जिन्होंने कम समय में भारत को दुनिया में लीडरशिप दी, जो विजनरीभीहैंऔर मिशनरी भी हैं। विजन होना कोई बहुत बड़ी मुश्किल नहीं है लेकिन उस विजन को मिशन में तब्दील करके धरती पर क्रियान्वितकरने की ताकत चाहिए। भाषण देने वाले तो बहुत मिल जाएंगे बड़ी बड़ी बातें करने, बड़ी बातों में क्या जा रहा है? लेकिन छोटी-छोटी बातें बड़े परिवर्तन का कारण बनती हैं। लोग जमीन पर क्रियान्वित हों, और इसीलिए बहुत लंबे समय के बाद देश को 70 वर्षों काचिर प्रतीक्षित जो लोगों का मानस था किअपने देश की शिक्षा नीति होनी चाहिए। मैं समझ सकता हूं मैंने शिशु मंदिर में भी पढ़ाया है। यह जो बच्चा हमारे पास उच्च शिक्षा में आया और नीचे से आ रहा है हमने तो उनको संस्कारों से हटा दिया है। वो संस्कार तो उसको स्कूली शिक्षा से मिलेंगे। हमने काटा है, उसको जड़ों से। हमने वहां जहां पर बोना था,वो संस्कार पढ़ने थे, तो उसे हटा दिया। आज पूरी दुनिया इस बात को महसूस करती है कि भारत कीशिक्षा जीवन मूल्यों पर खड़े हो करके ही संभव है जो इसकी बड़ी ताकत होगी। जबयूनेस्को की डीजे पीछे के समय में भारत आयी थी इस बात को लेकर चिंतित थीकिहमारे यहां अनुशासन हीनता क्यों है, हिंसा क्यों है, एक-दूसरे को सम्मान क्यों नहीं दे रहे हैं? मैंने उनसेचर्चा की। यह इसलिए नहीं हो रहा है कि जीवन-परक मूल्यपरक शिक्षा नहीं है। तुम यह चीज को, यह चीज को लेकिन मशीन बना रहे हैं मनुष्य नहीं।हमारे देश के प्रधानमंत्री ने कहा कि हम एक अच्छा नागरिक, विश्व मानव बनाएंगे उसकी आधारशिला यहशिक्षा और इसलिए आज मैं आप सबका बहुत अभिनंदन करना चाहता हूं। मैं सोचता हूं कि इसमें कोई दोराय नहीं है। हमारे देश में पहले से ही यह परंपरा रही है। उस परंपरा कोफिरताकत के साथ खड़ा करना जरूरी है दुनिया के लिए, अपनी पीढ़ी के लिए, अपने भविष्य के लिए और मानवता के लिए। हमने हमेशा गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुर्गुरुर्देवो महेश्वरः। गुरुः साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नमः॥ सारे देवताओं के भी ऊपर हमने गुरु को रखा है। क्या हम इसका आंकलन कर रहेहैं? अभी डॉ.सिंह कह रहे थे कि हम होंगे कामयाब, क्यों नहीं होंगे? हम पूरी ताकत के साथ समाहित करेंगे उन ताकतों को,उन संस्कारों को अपने अंदर। इसलिए यदि ‘‘गुरु गोविन्द दोऊखड़े काके लागो पाय, बलिहारी गुरु आपने, गोविन्द दियो बताय। उस बच्चे को कोई कन्फ्यूजन नहीं है। एक तरफ भगवान खड़े हैं दूसरी तरफ गुरु खड़े हैं। किसके पांव को मैं पहले स्पर्श करूं। गुरु के पांव को करना है। गुरु के कारण तो भगवान के दर्शन हुए हैं। गुरु वह जो प्रकाश देता है, जो अंधकार को मिटाता है, जो जीवन देता है। बिना गुरु के, बिना शिक्षा के, तो क्या है, मौत हीतो है गुरू के बिना मनुष्य एक चलता-फिरता पुतला है। मानव यदि शिक्षित नहीं है, यदि उसको गुरु का ज्ञान नहीं, गुरु उसको शिक्षित करके आगे नहीं बढ़ा रहे हैं तो क्या है फिर एक चलता-फिरता पुतला है और इसलिए मैं यहसमझता हूं आज हमारे पास गुरुहै। गुरु वही जो शिष्यों को जगाते हैं,दिशा बतातेहैंसिर्फ ज्ञान का संस्कार आप प्रदीप्त करते हैं, साधना भी सिखाते हैं आत्मा से परिचय करना भी सिखाते, प्रेरित भी होते हैं औरउत्प्रेरक भी होतेहै। गुरु इसकी सीमायें नहीं है। एक राजा का सम्मान तो उसके देश में हीहो सकता है लेकिन मेरे गुरु का सम्मान पूरे विश्व में होता है। वो देश की सीमाओं को पार करके जाता है क्योंकि ज्ञान का पुंज है उसके अंदर ज्ञान हैवो गुरु है वो अंधकार को मिटाने की ताकत है, क्षमता है उनमें। इसीलिए वो जो गुरु होता है, वह पूरे विश्व में उसके लिए पूरी दुनिया एक होती है पूरा संसार उसके चरणों में आकर के खड़ा होता है। आपने डॉ.राधाकृष्णन जी की बात की और वो तो तब भी उन्होंने क्या किया था, मुझे कहने की ज़रूरत नहीं है। आप सब लोग जानते हैंऔर हम सब लोग जानते हैं। मेरा सौभाग्य है कि अब्दुल कलाम जी मुझे बहुत प्यार करते थे और जब-जब वह मिले उन्होंने शिक्षा पर यह हमेशा बात की और मेरी तो एक पुस्तक का जब लोकार्पण किया था तो कितनी देशभक्ति उनके मन के अंदर समाई थी। एक छोटी सी कविता सुनकरउनकी आंखों से आंसू टपकते, मैंने देखे थे।उन्होंने एक बार मेरे से कहा किमैंने सुना कि आपके सन्1883 सेदेशभक्ति के गीत रेडियो पर आते रहे हैं फिर एक जगह क्यों नहीं हो सकते देशभक्ति के गीत। मैंने कहा कि यदि आपका आदेश हैतो मैं जरूर कोशिश करूंगा।‘ऐ वतन तेरे लिए’ मेरे लगभग सौ देशभक्ति के गीतों को उठा करके वह लोकार्पण उन्होंने राष्ट्रपति भवन में किया। उससे पहले जब उनके पास प्रति गई छोटी सी कविता उन्होंने और उसको हिंदी में टाइप करके लगा रखा था। उसको याद किया था और वो था ‘अभी भी है जंग जारी, वेदना सोई नहीं है, मंजुता होगी धरा पर, संवेदना खोई नहीं है, किया है बलिदान जीवन, निर्बलता ढोई नहीं है, कह रहा हूं ऐ वतन तुझसे बड़ा कोई नही है। यह जो पीछे की अंतिम पंक्ति थी उसको एक बार,दो बार कह रहा हूं ‘ऐ वतन तूझसे बड़ा कोई नहीं है’ फिर मेरा हाथ पकड़ते बोलते हैं कह रहा हूं ऐ वतन तूझसे बड़ा कोई नहीं है और आंखों से उनके आंसू टपकते नजर आते। मैंने उस दिन महसूस किया कि इस व्यक्ति के अंदर देशभक्ति का कितना बड़ा सागर है और उसी दिन मेरे मन में आया कि मैं ज़रूर जब मुझे मौका मिलेगा मैं कलाम सर पर कुछ ज़रूर लिखूंगा। उनके जीते जी तो मैं नहीं लिख पाया लेकिन उसके बाद मैंने ‘सपने जो सोने न दें’ उनके व्यक्तित्व और कृतित्व पर लिखा। मैंने इसलिएकहा किवो अध्यापक हैं वो यदि अध्यापक नहीं होते वो गुरु नहीं होते उनके जीवन का अंतिम क्षण भी अध्यापक के ही रूप में खत्म हुआ। वो जो अंदर सेउस बात को महसूस करके बाहर उनके शब्द के रुप में एक-एक शब्द, एक-एक शब्द, उन भावनाओं की गंगा की धारा की तरह जब प्रवाहित होता है तो वो असर करता है और इसलिए मुझे भरोसा है कि हम इसको करेंगे।मैं समझता हूँ कि चाणक्य आपके सामने हैं, अगर चाणक्य नहीं होते तो चंद्रगुप्त कैसे होते। वैसे पचासों ऐसे-ऐसे उदाहरण हैं कि क्या नहीं कर सकता गुरु? और चाणक्य ने कहा था कि शिक्षक कभी साधारण नहीं होता। निर्माण और प्रलय उसकी गोद में पलते हैं। निर्माण और प्रलयदोनों उसकी गोद में पलते हैं शिक्षक के। उस चाणक्य ने आज जिसने सारे विश्व में एक उदाहरण स्थापित किया। इसलिए मैं यह कहना चाहता हूं कि गुरु का जो स्थान है उसका तो व्याख्यान भी हम कर सकते हैं। बस थोड़ा सा, हम जब बैठें तो हम सब लोग आपस में आत्म-चिंतन कर सकते हैं। यहक्षणहम लोगों के लिए आत्मचिंतन का है न तो केवल भाषण दे करके कुछ संभव है, क्योंकि किसको बोलेंगे, हम सब एक परिवार के लोग ही एक-दूसरे को क्या बोल सकते हैं। लेकिन हां, ये क्षणहमारे लिएआत्मचिंतन का जरूर है। जो खाई है उसको कैसे पाटना है, वो खाई बनी तो उसकोपाटना है, क्या मैं उसके लिए महत्वपूर्ण व्यक्ति हो सकता हूं? उस खाई को पाटने के लिए तो कौन आएगा। आसमान से टपक कर तो कोई नहीं आएगा, हमकोहीखड़ा होना पड़ेगा। हमको जो भी खाई दिखती है ताकत के साथ उसको पाटने की प्रक्रिया में आगे आना पड़ेगा, लीडरशिप लेनी पड़ेगी। यह नई शिक्षा नीति जोआई है और नई शिक्षा नीति आपसबको पता है मुझे कहने की जरूरत नहीं है। मुझे इस बात की खुशी है कि आज पूरे देश ने उत्सव के रूप में इस नई शिक्षा नीति को गले लगाया है। खुश हैं लोग। लोगों को कितने खुशी है आप उसकी कल्पना नहीं कर सकते हो। अभी मेरे पासएक पश्चिम बंगाल के दूरस्थ क्षेत्र के एक सांसद का टेलीफोन आया तो उन्होंने मुझसेकहा कियह क्या जादू कर दिया है आपने इधर हमारा प्रधान भी बोलता है कि कुछ हो रहा है नई शिक्षा नीति आ रही है मैंने उनको कहा, क्यों नहीं बोलेगा गांव का। यह जब ग्राम प्रधान से प्रधानमंत्री जी तक सबके सुझाव आए हैं,प्रधानमंत्री जी का भी एक-एक शब्द का मार्गदर्शन मिला सबको। जब ग्राम प्रधान से प्रधानमंत्री जी तक सबकी सहभागिता है। गांव से लेकर संसद तक की है 2.5 लाखग्रामसभाओं तक हम लोग गए। मेरे एक हजार से अधिक विश्वविद्यालयों के कुलपति गण का सीधा-सीधा इसमें, पैंतालीस हजार डिग्री कॉलेजों के प्रिंसिपल का सीधा सीधा है,मेरे देश के एक करोड़ नौ लाख अध्यापकों की सीधे-सीधे इसमें सहभागिता है। मेरे देश के पंद्रह लाख स्कूलों की और इस देश के तीस करोड़ से भी अधिक छात्रों उनके अभिभावकों की शिक्षा नीति में सहभागिता है। हमने कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। हमने सबको आमंत्रित किया। हमने तो जोइसका ड्राफ्ट हैउसेबाकायदा पब्लिक डोमेन में डालकर के छह महीने तक रखा।अब किसी को यह लगता हो कुछ और रह गया तो सुझाव दीजिए। शिक्षक दे,शिक्षाविददें,वैज्ञानिक दें,समाज में काम करने वाले लोगों आप दीजिए। जिस-जिस क्षेत्र के लोग हैं, जो-जो अपने देश की अच्छी नीति के लिए दे सकते हैं, दीजिए अपने अनुभव उनको दीजिए। बाद में मत कहनाकि कोई कोर कसर रह गई। कोई किसी को कहने की गुंजाइश नहीं छोड़ी हमने और मैं कह सकता हूं कि उसके बाद भी सवादो लाख सुझाव आए। एक-एक सुझाव का विश्लेषण किया हमने और दो-दो, तीन-तीनसचिवालय बनाए। उच्च शिक्षा का अलग बनाया, तकनीकी शिक्षा का अलग बनाया, स्कूली शिक्षा का अलग बनाया, एक पंक्ति भी नहीं छूटनी चाहिए। यह हमारे रिकॉर्ड में आना चाहिए कि क्या किसने कहा है। आज यदि देश का कोई व्यक्ति यह बोले कि मैंने क्या बोला है तो मैं कह सकता हूं, किसने क्या बोला है चाहे वो राजनैतिक क्षेत्र का है,प्रशासनिक क्षेत्र का है,जनप्रतिनिधि है चाहे कोई विशेषज्ञ हैं। मैं कह सकता हूं कि किस आदमी ने क्या सुझाव दिया और इसलिए मैं लगातार छह महीने तक सबको आमंत्रित भी करता रहा। लेकिन मुझे खुशी है कि आज इतने बड़े मंथन के बाद जो नीति आई उसने लोगों के मन और मस्तिष्क में एक उत्सव का वातावरण दिया। देश के अंदर आजशिक्षा का उत्सव मनाए जाने से मुझे खुशी है कि दुनिया के तमाम देश हमसे लगातार संवाद कर रहेहैं। उनको लगता है इसकी खुशबू इतनी तेजी से पूरे विश्व में फैल रही है कि लगभग सात-आठ देशों के शिक्षा मंत्री हमलोगों से संवाद कर रहे हैं। वेकह रहे हैं कि हम भी हिंदुस्तान के एनईपीको अपने देश में लागू करना चाहते हैं। यह इसकी ताकत है। मैं सिर्फ यह कहना चाहता हूं कि हम लोगों के बीच बिल्कुल जो चौहान जी ने भी कहा और सिंह साहब ने भी कहा कि हमारी दोहरी भूमिका होगी हमारा कितना बड़ा सौभाग्य है। हमारे समय में यहनीति आ रही है,इससे बड़ा सौभाग्य क्या हो सकता है हम को इसकी लीडरशिप मिल रही है और आज भी हमारे प्रधानमंत्री जी उच्च शिक्षा में उस दिन हमारे साथ बैठे थे। उन्होंने आह्वान किया था कि यदि कुछ लोगों के मन में कोई शंका होगी कि नई शिक्षा नीति तो अच्छी बनी है लेकिन इसका क्रियान्वयन कैसे होगा तो उन्होंने कहा था कि यहसरकारइच्छाशक्ति की धनी है और आप इसको लागू करें मैं आपके साथ चट्टान की तरह पीछे हूंऔर आज भी उन्होंने कहा कि यह जो अध्यापक हैं, यदि कोई जहाज जिसको उड़ना है उसका इंजन चाहे कितना ही पावरफुल क्यों नहीं है, लेकिन चलाएगा तो उसको पायलेट ही। जब तक पायलेट नहीं चलाएगा तब तक वो जहाज उड़ेगा नहीं। इसलिए इसमें अध्यापकों की भूमिका है, प्राध्यापक की भूमिका है यह जो लीडरशिप लेनी है हम को, यह लीडरशिप अपने हाथ में लेकर इस चुनौती का मुकाबला करके इनको अवसरों में तब्दील करना है। मुझे खुशी है कि सभी देश के शिक्षा मंत्रियों से मेरी बातचीत होती है और सबके मन में बहुत अच्छाभाव है। जो लोग थोड़ा सा भाषा के मुद्दे पर कभी किसी मुद्देमें बोलते हैं, उन्हें मैं कहना चाहता हूं कि भाषाका कोई मुद्दा नहीं है। हमने तो खुला मैदान छोड़ दिया है। मातृभाषा में हमारी प्रारंभिक चिंता रही है, कोई राज्य यदि उच्च शिक्षा में ले जाना चाहता है तो जरूर ले जाएँ। हां,कुछलोगों ने ऐसा कहा कि नहीं-नहीं हमको देश को आगे बढाना है और अब अंग्रेजी में ही शिक्षा जरूरी है। तो मैंने उनका जबाब तो नहीं दिया लेकिन जब मैंने इसको स्पष्ट किया तो उन्होंने भी कहा कियह बात तो सही है। वो चाहेअमेरिका हो,जर्मनीहो, जापान हो और चाहे इस्राईल हो यह शीर्षजो दुनिया के जो देश हैं क्या वो अपनी भाषा में अपनी मातृभाषा में पढ़ाकर के पीछे चले गए? अपनी मातृभाषा में ज्यादा अभिव्यक्त मिलती है। भाषा तो केवल माध्यम होता है। इसलिए भाषाएं भी जितनी बढ़ा सकते हैं उसे खुली छूट दी है। क्यों बंधनों में बाँधना चाहते हैं कि क्यों दो ही भाषा सीखें,आठ दस भाषाओंको सीखों। लेकिन हां, भारत की जो मातृभाषाएं हैं,जिसकोबच्चे सुन कर के बढ रहेहैं, उस भाषा में उसकी प्रारंभिक शिक्षा होगी और उसके साथ देश की एक भारतीय भाषा आपको जरूर लेनी पड़ेगी। यदि वो उत्तर प्रदेश में है तो मलयालम को पढ़ सके। यदि उधर आंध्रमें है तो वो पंजाबी को पढ़ सके। यह देश एक है। अनेकतामें एकता है और यही हमारी विशेषता भी है। इसीलिए एक भारतीय भाषा को ले और उसके बाद जो आपको भाषा लेनी हैखूब लो, क्या दिक्कत है। मुझे अच्छा लगा कि देश के लोगों ने इस बात को महसूस किया जो लोग थोड़ा सा नाक भौं सिकोड़ने की कोशिश भी कर रहे थे उनको भी समझ में आया कि नहीं इससे अच्छा तो कोईविकल्प नहीं हो सकता है। मुझे इस बात की खुशी है और कितने आधारभूत परिवर्तनों के साथ हम इस शिक्षा नीति को लाए हैं। मैं सोचता हूं यदि देखा जाय तो यहशिक्षा नीति नेशनल भी है औरइंटरनेशल भी है। यहइन्टरेक्टिव भी है, इन्क्लूसिव भी है। यदि इस इस शिक्षा नीति को आप जिस रूप में देखेंगेतो यह इंटरनेशनल भी है, इंटरएक्टिव भी है, इम्पैक्टफुल भी है। जिस कोने से भी आप देखेंगे उसको आपको इसकी खुशबू नजर आएगी और इक्विटी, क्वालिटी और एक्सेस इन तीनों की आधारशिला है। ये इसकी पहुँच भी है,उत्कृष्टता भी और समानता भी। ये तीनों चीजें इससेजुडी हुई हैं इसकी आधारशिला हैं। मुझे लगता है कि हमलोगों ने यहमहसूस कराया कि नेशन फर्स्ट और करेक्टर मस्ट। इसलिए हम रिफार्म भी करेंगे ट्रांसफोर्मभी करेंगे और हम रिजल्ट भी देंगे। हम केवल बोलने के लिए नहीं, हम रिजल्ट देना चाहते हैं। लेकिन मैं जरूर इस बातका आपसे अनुरोध करूंगा कि जो शिक्षक हैंक्याउसमें ट्रांसफार्म, टैलेंट, टेंपरामेंट,ट्रेजर, ट्रेनिंग इनपर आधारित है कि नहीं है और यदि है तो फिर इसको ये जो फोर क्यूहैं आईक्यू, ईक्यू, एसक्यू और टीक्यू। बुद्धिमत्ता भी, भावनात्मक भी, आध्यात्मिकता भी, तकनीकी क्षेत्र में इसको साथ समन्वय करने की जरूरत है, यह है इसका आधार। कुछबोल करके काम चलने वाला नहीं है मुझे भरोसा है कि इसके एक-एक सूत्र मेंनई शिक्षा नीति है लेकिन इसको जितना विस्तार आप दे सकते हैं जिस सीमा तक जा सकते है उस सीमा तक जा सकतेहैं। हम लोगों ने नेशनल एजुकेशन टेक्नोलॉजी फोरम बनाया है। जिसमें तकनीकी को उस सीमा तक बढ़ाएंगे जिसका हर जगह उपयोग करें। दूसरी तरफ अनुसंधान के क्षेत्र में हमलोगों ने नेशनल रिसर्च फाउंडेशन बनाया है जिस पर प्रधानमंत्री के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार की अध्यक्षता में तेजी से काम चला चल रहा है। हम शोध और अनुसंधान की प्रवृति को और तेजी से बढ़ाना चाहते हैं क्योंकिमुझे मालूम है कि ऐसा नहीं कि हमारे संस्थानों में कोई कमी है। लेकिन हां, अनुसंधान में हम पीछे हैं। पूरी दुनिया के सामने जब मैंनेपीछे के समय क्यूएसरैंकिंग औरटाईम्सरैकिंग पर बुला-बुलाकर के कहा कि उनको बताओ क्या मानकहैंआपके? क्या मेरे संस्थान पीछे हैं? मुझे महसूस होता है कि जहां थोड़ीबहुत कमियों को भी दूर करके हम अच्छा कर सकते हैं। हां, संवाद की कमी है वो वातावरणबनाने की कमीहै थोड़ा-सा संसाधनों की भी कमी होगी लेकिन पूरा करेंगे। अभी हमने स्टडी इन इंडिया के तहत पूरी दुनिया के लोगों को हमारे पास आओऔर50 हजारसे भी अधिक बच्चे स्टडी इन इंडिया के तहत कोरोना काल में भी आए हैं। उसमें भी आपकी भूमिका कम नहीं रही योद्धा की तरह अपने काम किया। रात-रात में 25 करोड़ छात्रों को ऑनलाइन पर लाकर के खड़ा कर दें। यहदुनिया का पहला उदाहरण होगा। उसमें भी मेरे शिक्षकों ने जिस तरीके की भूमिका निभाई किसी योद्धा की भूमिका से कम नहीं और इसलिए शोध और अनुसंधान में हम थोड़ा सा पीछे रहे हैं इसको भी हम तेजी से आगे बढ़ाएंगे। वह तेजी से बढ़ेगी और अपना मूल्यांकन भी करेंगे। जो संस्था, जो व्यक्ति, जो परिवार, स्वयं मूल्यांकन नहीं करता वो कभी आगे बढ़ नहीं सकता। इसलिए सभी संस्थानों से मैंने बार-बार कहा कि मूल्यांकन की प्रवृति जरूर हो। नीचे सारी संस्थाओं का मैंयूजीसी के चेयरमैन साहब को भी अनुरोध करूंगा कि सब लोगों में यह भावना आए कि जब उसको लगता है कि मेरा मूल्यांकन हो रहा है तो तैयार करता है। अपने को तैयार करने की प्रवृति और प्रकृति होने होने चाहिए। जिस तरीके से विषयों के चुनाव के लिए बिल्कुल मैदान खाली छोड़ दिया कि किस विषय को लेना चाहते हो। किसी भी विषय को आप ले सकते हो। यह इस नई शिक्षा नीति की खूबसूरती है और इसलिए यह हमसे होकरके गुजरेगी। हम अपने को मन से तैयार करें और मैं सोचता हूं लीडर को तो पूरी मस्ती के साथ आगे बढना है। जो लीडर आधा सोचता है, उसका सिर झुका रहता है। चेहरे पर देखो तो कुंठा दिखती है। जो चेहरा रो रहा वो दूसरों को हंसा कैसे सकता है। जो स्वयं हीनिराशाओं की चपेट में हैं वह दूसरों को जीत कैसे दिला सकता है। इससे पहले जरूर एक लीडर को अपने को सक्षम बनाना पड़ेगा।जब हम कहते हैं कि विपरित परिस्थितियों में लड़ना सीखो, बढ़ना सीखो तो फिर हम क्यों नहींविपरीत परिस्थितियों का मुकाबला करें। मुझे भरोसा है हम मुकाबला भी करेंगे और हम रिजल्ट भी देंगे जिस दिन इस देश का आचार्य खड़ा हो गया, जिस दिन इस देश के शिक्षक ने यह ठान ही लिया कोई दुनिया की ताकत हमको फिर विश्वगुरु बनने से रोक नहीं सकती। इस देश में ताकत है और मेरा भरोसा है जो आज आपने यहां पर यह कार्यक्रम किया है। मैं डॉक्टर शर्मा विशेष करके आपको धन्यवाद देना चाहता हूं क्योंकि मैं चाहता था मेरे मन में था मैंसभी अध्यापकगण का अभिनंदन करूं। मैंप्रणाम करूं,शिक्षक दिवस के रूप में यह दिन नहीं कर सके हम लोग, लेकिन यह मेरा परिवार है। इस परिवार को एकजुट हो करके आगे जाना है। इन चुनौतियों का मुकाबला मेरे पूरे परिवार को करना है। अकलुषित मन से करेंगे, ताकत के साथ करेंगे, संकल्प के साथ करने के विजन के साथ करेंगे, मिशन के साथ करेंगे, तब जाकर रिजल्ट निकालेंगे और देश को हम पर भरोसा होगा। हमारे देश के प्रधानमंत्री हमारे पीछे खड़े हैं। पूरा तंत्र आपके पीछे खड़ा है। नीति आपके हाथ में है, 21 करोड़ छात्रों का वैभव आपके पास है। कमी किस चीजहै,जो कमी होगी उसको भी दूर करेंगे। मैं एक बार फिर आप सबको बहुतबधाई देना चाहता हूं। मेरी आपको सबको बहुतशुभकामनाएं।
बहुत-बहुत धन्यवाद!
कार्यक्रम में गरिमामयी उपस्थिति:-
- डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’, माननीय शिक्षा मंत्री, भारत सरकार
- श्री वीरेन्द्र सिंह चौहान, अध्यक्ष, राष्ट्रीय मूल्यांकन एवं प्रत्यायन परिषद्
- प्रो. एस. सी. शर्मा, निदेशक, राष्ट्रीय मूल्यांकन एवं प्रत्यायन परिषद्
- डॉ. डी. पी. सिंह, अध्यक्ष, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग