श्री श्री विश्वविद्यालय में भारतीय ज्ञान प्रणाली में समकालीन शिक्षा एवं व्यवहार पर एक संकाय विकास कार्यक्रम का उद्घाटन
दिनांक: 04 नवम्बर, 2020
माननीय शिक्षा मंत्री, डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’
आज के इस ऐतिहासिक और प्रेरणाप्रद कार्यक्रम में उपस्थित गुरू जी श्री श्री रविशंकर जी और यहां पर उपस्थित डॉ. सोनल मानसिंह जी, पद्म भूषण प्रो. कपिल कपूर जी जिनकामार्गदर्शन अभी हमें मिला जो हमारे एडवांस्ड स्टडी सेन्टर के न केवल अध्यक्ष हैं बल्कि उनका इस क्षेत्र में बहुत लम्बा योगदान है, प्रो. अनिल सहस्त्रबुद्धे जो एआईसीटीई के चेयरमेन हैं और भारतीय ज्ञान परम्परा का जो हमने मंत्रालय में प्रकोष्ठ बनाया है इनकेमार्गदर्शन में बहुत अच्छा काम हो रहा है और जिसके अध्यक्षप्रधानमंत्री जी प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार हैं और डॉ. अनिल सहस्त्रबुद्धे सहित कुछ महत्वपूर्ण लोग उससे जुड़े हैं जो इस अभियान को सरकार के स्तर पर भी बढ़ा रहे हैं। प्रो. पी.सी. जोशी और प्रो. बी.के. त्रिपाठी जी यहां पर उपस्थित हैं और यहां के कुलपति प्रो. अजय कुमार सिंह जी एवं डॉ. ऋचा जी, डॉ. रजिता कुलकर्णी जी जो श्रीश्री विश्वविद्यालय की अध्यक्ष हैं,साथ ही देश और दुनिया से आज हमारे साथ इस महत्वपूर्ण कार्यक्रम में जो लोग जुड़े हैं, मैं उनको धन्यवाद देना चाहता हूं और मैं गुरू जी को विशेष करके धन्यवाद देना चाहता हूं कि आपने पहल की है जो हमारा मन है, जो हमारा विचार है, जो हमारी परम्परा है और जब हम इस देश के बारे में सोचते हैं और जब भारतीय ज्ञान परम्पराओं के बारे में विचार करते हैं तथा जब हम पीछे देखतेहैं तो तक्षशिला, नालन्दा और विक्रमशिला जैसे विश्वविद्यालय हमारे देश में थे और अभी जो हमारी संचालिका ने कहा कि ‘एतद् देश प्रसूतस्य शकासाद् अग्रजन्मन : , स्वं-स्वं चरित्रं शिक्षरेन् पृथ्वियां सर्व मानव:’अर्थात् पूरी पृथवी के लोग हमारे ज्ञान, विज्ञान, नवाचार, आचार, विचार को सीखने के लिए आते थे। भारत विश्वगुरूकेरूप में जाना जाता था लेकिन जो बीचकाकालखंड आया जिन गुलामी के दिनों के थपेड़ों को भारत ने सहा है और हमें हमारी जड़ों से अलग करने की कोशिश हुई1 हमारे ज्ञान, विज्ञान और उस परंपरा को खत्म करने की कोशिश हुई। लेकिन हम नहीं भूलते कि कियूनान, मिस्र, रोमा सब मिट गए जहां से अब तक मगर है बाकी नामो निशां हमारा और कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी। कुछ तो बात हैजो मिटाने से भी नहीं मिटी है। वो जो कुछ बात है उसी बात को लेकर के हमको आगे बढ़ना है तथा हम बढ़ रहे हैं और बढ़ेंगे। मैं समझता हूँ कि भारत हमेशा विश्वगुरु था, विश्वगुरु है और विश्व रहेगा।इसलिए भी विश्वगुरू रहना है कि हम भारत के लोगों ने हमेशा विश्वबंधुत्व की बात की है, हमारा विचार बड़ा रहा है। पूरी दुनिया के लिए हमने एक ओर कहा अयं निजः परो वेति गणना लघु चेतसाम् | उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम् हमने यह बात की है। हम पूरी वसुधा को हम अपना परिवार मानते हैं हम उन लोगों में कभी नहीं रहे हैं जिन्होंने पूरी दुनिया को मार्किट माना है, बाजार माना है, हमने बाजार नहीं माना है। इस पूरी दुनिया को हमने परिवार माना है क्योंकि हम जानते हैं कि परिवार में हमेशा प्यार होता है और बाजार में केवल व्यापार होता है।वेदों,पुराणों एवंउपनिषदों के बारे में प्रो. कपिल जीचर्चा कर थे, वे बहुत बड़े ज्ञाता हैं,मैंजब-जब इनको देखता हूँ, सुनता हूँ, मिलता हूं तो मुझे प्रेरणा मिलती है। अभी वे वेद, पुराण,उपनिषदों की बात कर थे तो जहाँ आज यह कहा गया कि यह पूरा विश्व हमारा अपना परिवार है वहीं इससे बड़ी बात क्या हो सकती है किइस पृथ्वी पर पैदा होने वाला हर जीव-जन्तु मेरा अंग है। हमारा चिंतन किस सीमा तक का है कि‘सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया सर्वे भद्राणी पश्यन्तु मा कश्चिद् दु:ख भाग्भवेत’तब तक मैं सुखका अहसास नहीं कर सकता जब तक कि दुनिया में एक भी प्राणी दुखी होगा, इससे बड़ा विजनकिसका हो सकता है?इसलिए हम बड़े हैं, हम केवल कहने के लिए बड़े नहीं हैं। हमने केवल एक-दो अनुसंधान किये और हम शिखर पर पहुंच गए, ऐसा भी नहीं है। हम हमेशा ही बड़े थे, उदार थे औरहमने बड़प्पन दिखायाहै। हमने अपना पराकाष्ठा तक का समर्पण दिखाया है। हमने किसी को भी किसी सीमा तक जाकर हर चीज का प्रमाण दिया और आज जब हम भारतीय ज्ञान परंपरा की बात करते हैं तो दुनिया क्यों भूल जाएगी? पहले तो हमको याद दिलाना पड़ेगा कि क्या दुनिया भूल जाएगी कि शल्य चिकित्सा का जनक सुश्रुत इसी महान् भारत भूमि पर पैदा हुआ। क्या आयुर्वेद के जनक चरक, ज्योतिष के महान् ज्ञाता भास्कराचार्य, महान् गणितज्ञ आर्यभट्ट को कोई भी नकार सकता है? यह दुनिया तो इधर से लेकर के गई हैसबकुछ। मैं धन्यवाद देना चाहता हूंइस विश्वविद्यालय को किइन्होंने भारतीय ज्ञान परंपरा पर आज जो कार्यशुरू किया है और मैं देख रहा था कि आपने तीनों चीजों कोकिया। पहलाआत्मनिर्भर भारत, भारतीय ज्ञान परंपरा और उसमें भी प्राध्यापक का विकास क्योंकि इन सबके आखिर ध्वज वाहक तो मेरे यह आचार्य ही हैं। इन्होंने ही इसे शिखर तक पहुँचाना है।हमारी संस्कृति में गुरु को तो हमेशा सम्मान दिया गया है और इसीलिए हमने गुरू कोभगवानके समान माना है। एक तरफ हमने कहा ‘गुरुर ब्रम्हा गुरुर विष्णु गुरु देवो महेश्वर गुरु साक्षात् परम ब्रह्मा तस्मै श्री गुरुवै नम:।‘ गुरु को तो हमने हमेशा ईश्वर के समान माना है और साधारण भाषामें कहेंगे तो ‘गुरु गोबिन्द दोऊ खड़े काके लागू पाय बलिहारी गुरु आपने गोबिंद दियो बताए।‘ यदि ईश्वर और गुरु दोनों सामने हों तो हमारे को कोई संकोच नहीं होता कि पहले किसकी चरण वंदना करें।यही तो गुरु है जिन्होंने गोविन्द के दर्शन कराए, जीवन के दर्शन कराए। इसलिए मैंपहले चरण वंदना गुरु की करूंगा। हमारे यहां गुरु को सर्वोच्च शिखर पर माना गया है और इसीलिए यह जो नई शिक्षा नीति हम लायेहैं इसमें अध्यापक की केन्द्रीयभूमिका है और आपने आज जो अध्यापक विकास कार्यक्रम शुरू किया है जिसे आपने भारतीय ज्ञान परम्परा एवं आत्मनिर्भर भारत के साथ जोड़ा है, जो बहुत ही सराहनीय है। जैसा कपिल जी कह रहे थे कि आज आपने बिल्कुल नया रास्ता खोला है। क्योंकि कोई भी देश एक नंबर पर अपने विचार के आधारपर ही हो सकता है किसी से चोरी हुई चीजों को लेकर अथवा सीखी हुई चीजों को उधार लेकर कभी नंबर एक नहींहो सकता है और हमारे पास वो सब कुछ है जब हम पूरी दुनिया में नंबर एक थे और नंबर एक अभी भी है और नंबर एक ही रहना है। उस यात्रा को इस नई शिक्षा नीति के आधार पर करना चाहिए। इस योजनाकोभारतीय ज्ञान परंपरा के सूत्र के साथ इसलिए करें कि चरक को हम कैसे भूलसकते हैं। सुश्रुत, शल्य चिकित्सा का जनक आज उस पर शोध और अनुसंधान करके आगे बढाना चाहिए। हमको भास्कराचार्य कीचीजों को आगे बढ़ाना चाहिए। क्या कणादको भूल जाएगी दुनिया, अणु-परमाणुके विश्लेषणकर्ताऋषि कणाद को हम कैसे भूल जाएंगे? इतने बड़े वैज्ञानिकों को कैसे भूल जाएंगे और इसीलिए मैं सोचता हूं चाहे रामानुजन हों, चाहे बौधायन हों,चाहेभाषा विज्ञान में पाणिनी हों, इन सभी लोगों ने दुनिया को अपनी महान् देन से रास्ता दिखाया है। आज दुनिया योगकेपीछे खड़ी है। हमारे देश के प्रधानमंत्री जी ने हमारे देश के उस विचार को जब विश्व के मंच पर रखा कि मेरा देश ‘विश्व बंधुत्व’ को चाहता है, मेरा देश पूरी दुनिया की मानवता के कल्याण की बात करता है तब पूरी दुनिया को महसूस हुआ जब उन्होंने योग के बारे में कहा कि मनुष्य ईश्वर की सबसे सुंदरतम कृति है, इसकी सुरक्षा कैसे हो सकती है? क्या यह संभव है कि लोग योग को अपनाएं?प्रधानमंत्री श्रीनरेन्द्र मोदी जी की उस बात पर पूरी दुनिया पीछे खड़ी हो गई। आज 21 जून को पूरी दुनिया के 197देशयोग दिवस मनाते हैं। मेरा तो सौभाग्य है कि मैं उस हिमालय से आता हूं जहां वेद, पुराण, उपनिषदों का जन्म हुआ है और जहां आयुर्वेद का जन्म हुआ है एवं योग का जन्म हुआ। हिमालय की धरती आध्यात्मिक परम्पराओं की भी है तो ऋषि मुनियों की वो थाती है जहां से ज्ञान और विज्ञान का और आध्यात्म के जीवन-दर्शन का बेहतर समन्वय होता है। जहां स्वर्ग से अवतरित गंगा विश्व के कल्याण के लिए कलकल निनाद करके तमाम चट्टानों से टकराकरके भी अहर्निश चलती है औरतमाम अपने में गंदगी समाने के बाद भी जो पवित्रता नही खोती है,ऐसी गंगा भी हमारी हो सकती है और इसलिए आज जरूरत है इन सब चीजों पर ध्यान देकर कार्य करने की। इन सब चीजों को जो एक पीछे का कार्यकाल कालखंड था उसनेहमारे मन-मस्तिष्क को इस तरीके से दबोच दिया था कि अभी भी हम उससे उभर नहीं पाते हैं तभी हम दुनिया की बातें करते हैंलेकिन अपनी बातें नहीं करते हैं।मैं इस अवसर पर बस सिर्फ इतना कहना चाहता हूं कि यह बहुत अच्छी पहल है। हमारे पास पूरी दुनिया के लिए ऐसी शक्ति की पूंजी है जिससेहिंदुस्तान को ज्ञान की महाशक्ति बनाना है।इसीलिए यहजो नई शिक्षा नीति आई है, वह व्यापक परिवर्तन को लेकर आई है।हमने इतना परामर्श किया है कि शायद पूरी दुनिया की यह पहली नीति होगी जिस पर इतना बड़ा परामर्श हुआ। हमारा देश पूरे विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है। यदि मैंशिक्षा विभाग की बात करूं तो एक हजार यहां पर विश्वविद्यालय हैं,45 हजार से अधिक डिग्री कॉलेज हैं, 15 लाख से अधिक यहां स्कूल हैं, 1 करोड़ 9 लाख से अधिक अध्यापक हैं और कुल अमेरिका की जितनी जनसंख्या नहीं है उससे भी अधिक 33करोड़ छात्र-छात्राएं हैंऔर यह देश आगे 25 वर्षों तकयंग इंडिया रहने वाला है। क्या नहीं कर सकते हैंहम?हममें विजन भी है, मिशन भी है और जो लोग ये सोचते हैं कि नहीं, मेरे देश में शिक्षा नहीं है। मैं उनसे हाथ जोड़कर के विनम्रता से अनुरोध करता हूंकिआप यह मत बोले कि शिक्षा केवल विदेशों में है।नई शिक्षा नीति में हमने मातृभाषाओं को प्राथमिकता दी है। तमिल, तेलुगू, मलयालम, कन्नड़, गुजराती, मराठी, बंगाली,संस्कृत, हिन्दी, पंजाबी, उर्दू सहित हमारे संविधान की अनुसूची 8 में हमारी 22 भारतीय भाषाएं बहुत ही खूबसूरत हैं। उनके अंदर ज्ञान विज्ञान हैं, संस्कार है, आचार-व्यवहार हैं,हम उनके सशक्तिकरण की बात करते हैं। कुछ लोग यहतर्क देते हैं डॉ.निशंकआप बचपन से ही मातृभाषा में शिक्षा देने की बात कर रहे हैं और उच्चस्तर तक शिक्षा देने की आप बात कर रहे हैं, आप नईशिक्षा नीति में यह क्या लेकर आये हैं। कुछ लोग कहते हैं कि हमको ग्लोबल पर जाना है तो अंग्रेजी सीखनी पड़ेगी। मैंने कहा हम अंग्रेजी का विरोध नहीं करते, अंग्रेजी ही नहीं और दो-तीन भाषाएं सीखों,लेकिन अपनी भाषाओं को मत छोड़ो। हमने अंग्रेजी का कभी विरोध नहीं किया लेकिन अंग्रेजी इस देश की भाषा नहीं है। हमें अंग्रेजीही क्या पूरी दुनिया की भाषाओं को पढना है लेकिन मैं उन लोगों से पूछना चाहता हूं कि क्या जो देशनीचे से लेकर उच्च शिक्षा तकअपनी मातृभाषा में शिक्षा देते हैं वो किसी से पीछे हैं, क्या जापान, फ्रांस, इंग्लैंड और दुनिया के तमाम जो विकसित देश हैं वो अपनी मातृभाषा में शिक्षा देते हैं क्या वो किसी से पीछे हैं,फिर ऐसे तर्क दे करके देश को कमजोर करने की बातक्यों की जाती हैं। इसलिए देश के प्रधानमंत्री जीने कहा कि अब व्यक्ति अपनी मातृभाषा में डॉक्टर भी बन सकता है औरइंजीनियर भी बन सकता है क्योंकि जो बच्चा जिस भाषा को बोलता है यदि उसको उसकी भाषा में शिक्षा दी जाए तो वह उसमें ज्यादा अभिव्यक्त कर सकता है। हमारेदेश के प्रधानमंत्री जी ने 21वीं सदी के स्वर्णिम भारत की बात की है।ऐसा भारत जो स्वच्छ भारत होगा, स्वस्थ भारत होगा,समर्थ भारत होगा, सशक्त भारत होगा, श्रेष्ठ भारत होगा, आत्म निर्भर भारत होगा और एक भारत होगा।उसआत्मनिर्भर भारतकीआधारशिला मेक इन इंडिया,डिजिटल इंडिया, स्किल इंडिया,स्टार्ट अप इंडिया और स्टैंड अप इंडिया से होकर गुजरती है। मेरे देश के अंदर प्रतिभा है जिसकाहमने अभीदर्शन किया। जब देश और दुनिया कोविडकी माहमारी के संकट से गुजर रही थी तोहमारे देश के प्रधानमंत्री जी ने कहा है कि नौजवानों आगे आओ,आपक्या कर सकते हैं मैं इस बात को लेकर बहुतखुशहूं कि तब मेरे छात्रों ने, मेरे अध्यापकों ने प्रयोगशाला में जाकर एक से एक नये अनुसंधान किये। हमनेमास्कतैयार किए, हमने ड्रोन तैयार किए, हमने सस्ते एवं टिकाऊ वेंटिलेटर तैयार किए, टेस्टिंग किट तैयार किए जो पहले देश में कभी बनता ही नहींथा।यदि आप युक्ति पोर्टल पर जाएंगे तो आपको लगेगा कि इस कोरोना काल में भी इस देश के नौजवानों, अध्यापकों और छात्र-छात्राओंनेबहुत सारे शोध एवं अनुसंधान किये हैं,यह हमारी ताकत है। दुनिया ने हमारी ताकत को देखा है। हम को इस ताकत को बचाकररखने की जरूरत है।जब मैं दुनिया के सब देशों को देखता हूं कि कौन कहां है तथा क्या कर रहा है मुझे लगता है अमेरिका में आज चाहे वो गूगल हो, चाहे माइक्रोसॉफ्ट होइन सभी बड़ी-बड़ी कंपनी के सीईओ तो मेरे आईआईटी से पढ़कर के गए हैं और आज वे पूरी दुनिया में लीडरशिप ले रहे हैंतो क्या हमारी शिक्षा कमजोर हैंइसलिए अभी हम‘स्टडी इन इंडिया’को एक ब्राण्ड बना रहे हैं।आज दुनिया के लोग मेरे हिन्दुस्तान में आकर के पढ़ सकते हैं और इस समय 50 हजार से भी अधिक नामांकनहो गए हैं। दुनियाके लोगो में हिन्दुस्तान में पढने के लिए ललक दिखाई पड़ती है। मेरे आसियानदेशों के एक हजार से भी अधिक छात्र आज आईआईटी में शोध और अनुसंधान के लिए यहां आए हैंऔर उनके साथ एमओयू हो गया। अभीहमने ‘स्टेइन इंडिया’कीभी बात कीक्योंकि हमारे देश से 7-8 लाख छात्र प्रतिवर्ष विदेशों में पढ़ने के लिए जा रहे हैं। हमारे देश का पैसा और प्रतिभा दोनों बाहर चली जाती हैं तो वापस वह हमारे देश में नहीं आती है और इसलिए हमने‘स्टे इन इंडिया’ किया। हमने छात्रों को भरोसा दिलाया कि हमारे आईआईटी, एनआईटी, आईएसर, केन्द्रीय विश्वविद्यालयों में योग्यता है, क्षमता है तथा आपको बाहर जाने की जरूरत नहीं है,अब लोगों की समझ में आ गया है। मुझे इस बात की खुशी है कि पीछे के समय जब हमने जेईई परीक्षाएं करवाई। दो लाख से भी अधिक छात्र जोविदेश में जा रहे थेवे जेईई और नीट की परीक्षाओं में सम्मिलित हुए। हम ‘स्टे इन इंडिया’ के तहत दुनिया के शीर्ष सौविश्वविद्यालयों को अपनी धरती पर आमंत्रित कर रहे हैं। आपकोकहीं जाने की जरूरत नहीं है और यहां के जो शीर्ष विश्वविद्यालय हैं वेभीबाहर जा रहे हैं। यह आदान-प्रदान हम करेंगे।हमारे संस्थान अब एनआईआरएफ ही नहीं,अटल रैंकिंग ही नहीं बल्कि क्यूएस रैंकिंग और टाईम्स रैंकिंगमें भीछलांग मार रहे हैं क्योंकि हममें सामर्थ्य है।हमने नई शिक्षा नीति के तहत बिल्कुल खुला मैदान छोड़ दिया है।अब आप कोई भी विषय ले सकते हैं। आपविज्ञान के साथ साहित्य ले सकते हैं तथा आप इंजीनियरिंग के साथ संगीत ले सकते हैं। आप जो चाहें उस विषय को ले सकते हैं।इसके अतिरिक्त इस शिक्षा नीति के अंतर्गत यदि कोई 4 वर्ष का कोर्स है और यदि कोई छात्र दो साल में परिस्थितिवशछोड़के जा रहा है तो पहले उसका पैसा एवं समय दोनों खराब हो जाते थे। लेकिन अब उसकोनिराश नहीं होना पड़ेगा,यदि आप परिस्थितिवश एक वर्षमें छोड़ कर जा रहे हैं तो उसको सर्टिफिकेटदेंगे,दो साल में छोड़ कर जा रहा है तो डिप्लोमा देगें, तीन साल में छोड़कर जा रहा है तो उसकोडिग्री देंगे लेकिन यदि फिर वह लौट कर अपने भविष्य को संवारना चाहता है तो फिर जहां से उसने छोड़ा था वह वहीं से शुरू कर सकता है। उसके लिए हम एक ऐसा क्रेडिट बैंक बनायेंगे जहां उसके सारे क्रेडिट जमा रहेंगेइसलिए विद्यार्थियों के लिए आगे बहुत आपार संभावनाएं है।जब मैं अपने संस्थानों की समीक्षा करता हूं तो मुझे लगता है कि हमशोध और अनुसंधान के क्षेत्र में अभी कमजोर हैं।हमारे छात्रों में डिग्री ले करके पैकेजकी होड़ लग गई हैं और इसलिए मैंने आह्वानकिया नौजवानों को कि पैकेज की हौड़ की बजाय पेटेंट की होड़ लगाओ। जिस दिन पेटेंट की होड़ शुरू हो जाएगी उस दिन देश शिखर पर पहुंच जाएगा।मेरे नौजवानों में, मेरे छात्र छात्रों में प्रतिभा की कमी नहीं है और हम जिस दिन शोध और अनुसंधान के क्षेत्र में कार्य करना शुरू कर देंगे उस दिन शिखर पर पहुंचेंगे। एक समय था जब लालबहादुर शास्त्री जी देश केप्रधानमंत्री थे और हमारे देश अंदर खाद्यान का बहुत संकट था तथादेश की सीमाओं पर भीसंकट था। हम दोहरे संकट से गुजर रहे थे, खाद्यान संकट और सुरक्षा का संकट। लेकिन जब लालबहादुर शास्त्री जी ने ‘जय जवान, जय किसान’ का नारा दिया तो आप सबको भी मालूम है कि पूरा देश खड़ा हो गया था और हमने दोनों संकटों पर विजय प्राप्त की और रास्ता निकला था। उन्होंने कहा कि एक दिन का उपवास रखना है। लोगों ने एक दिन का उपवास रखना शुरू कर दिया था, पूरा देश खड़ा हो गया था लेकिन आपकेआह्वानमें दम होना चाहिए। उनके बाद जबहमारेदेश के प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी जी आए तो उन्होंने कहा कि एक समय था जब ‘जय जवान, जय किसान’ का नारा लगा लेकिन अब जरूरत है‘जय विज्ञान’ के नारे के साथ हमें आगे बढ़ना चाहिए। अब जरूरत है हमें अपनी ताकत को दिखाने की तथा अपने को और ताकतवर बनाने की, भले ही हमारा देश कभी किसी को छेड़ता नहीं हैं लेकिन ताकतवर तो रहना चाहिए। आदमी जबताकतवर रहता है तभीदूसरे का संरक्षण कर सकता है। कमजोर आदमी दूसरे का संरक्षण करने में समर्थ नहीं होता हैऔरयदि एक आदमी ने थप्पड़ मारा और कहा कोई बात नहीं, मैं तो आदर्शवादी हूं दूसरे गाल को भी मार दो,ऐसी कोई जरूरत नहीं है। आज जरूरत इस बात की है कि यदि किसी ने गाल पर थप्पड़ मारा तो उसके हाथ को पकड़ लिया जाए।हमारे पास ताकत तो इतनी है कि हाथ को तोड़कर के बाहर फेंक सकते थे लेकिन यह हमारा आदर्श है कि हमने आपको छोड़ दिया। जाइए, अब आगे से ऐसा मत करिए,यह है ताकत, इस ताकत की जरूरत है। उस ताकत की जरूरत के लिए अटलबिहारी बाजपेयी ने जैसे ही‘जय विज्ञान’ का नारा दिया आपको सब पता है देश महाशक्ति के रूप में किस तरीके से खड़ा हो गया। परमाणु परीक्षण करने के बाद दुनिया के तमाम देशों ने कहा कि हम भारत पर आर्थिक प्रतिबंध लगा देंगे। लेकिनअटल जी थे और उन्होंने बेहतरीन निर्णय लेते हुए कहा कि हम मजबूत भारत देखना चाहते हैं, हम अपाहिज भारत नहीं देखना चाहते हैं। हम शक्तिशाली भारत देखना चाहते हैं और इसलिए आपको याद होगा कि पूरी दुनिया ने आर्थिक प्रतिबंध लगाने की घोषणा की यहां तक की कई संपादकीय उनके विरोध में लिखे गए थे। उस समय अटल जी ने कहा था कि विकसित देशों के ऋण की भीख हमको नहीं चाहिए और उन्होंनेदेश से आयात और निर्यात दोनों बंद कर दिए थे। ना आयात होगा, ना निर्यात होगा।जो चीजें देश में बनती हैं वे चीजें दुनिया में नहीं जाएंगी और दुनिया की चीजें देश में नहीं आएंगी। केवल इसएक सूत्र ने छह महीने के अंदर-अंदर पूरी दुनिया को झुका दिया था और आर्थिक प्रतिबंधों को वापस लेना पड़ा था। यह है ताकत जब आदमी पूरे विजन के साथ काम करता है तो फिर वह आगे बढ़ता है। अब हमारे देश के यशस्वी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने जिस तरीके से 2013-14 के बाद जिस ढंग से काम किया है और आज उन्होंने ‘जय अनुसंधान’ का भी नारा दिया। अबहमेंअनुसंधान की जरूरत है।हमारे पास बहुत चीजें हैंजिनके बल पर पूरी दुनिया में हम नंबर एक हो सकते हैंलेकिन उस चीजों को नये अनुसंधान के साथ औरनये नवाचार के साथ सामने लाने की जरूरत है और इसीलिए अभी हम अनुसंधान के क्षेत्र में ‘स्पार्क’ के तहत दुनिया के शीर्ष127विश्वविद्यालयों के साथ शोधऔर अनुसंधान कर रहे हैं, हम स्ट्राइडके तहतपारस्परिक शोध कर रहे हैं। हमइम्प्रिंट,इम्प्रेस के तहतशोध कर रहे हैं, हम स्टार्स के तहत कर रहे हैं और नई शिक्षा नीति के तहतहमनेशनल रिसर्च फाउंडेशनकी स्थापना कर रहे हैं, जो प्रधानमंत्रीजी के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार की अध्यक्षता में होगा।हम इस देश में शोध और अनुसंधान की संस्कृति को तेजी से बढ़ाएंगे और इसके साथ ही हम नेशनल एजुकेशन टेक्नोलॉजी फोरम का भी गठन कर रहे हैं ताकितकनीकी दृष्टि से अंतिम छोर के व्यक्ति तक प्रौद्योगिकी पहुंच सके। हमारा देश तकनीकी एवं वास्तु कला से लेकर के विभिन्न क्षेत्रों में प्रौद्योगिकी के क्षेत्र शिखर पररहा है। यदि इस गुलामी के कालखंड को छोड़ दिया जाएतोजिस भारतीय ज्ञान परंपरा की बात आज हम कर रहे हैं उस भारत का जब दर्शन होता है तब पता चलता है कि दुनिया में तो हम ही शिखर पर थे। और इसलिए मैं समझता हूं आज यह जो परिचर्चा शुरू हुई है वह बहुत ही सुखद है। भारत को ज्ञान की महाशक्ति बनाने का रास्ता जो यह अभियान आपने शुरू किया इसके लिएमैंआपको बधाई देना चाहता हूं तथा शुभकामना देना चाहता हूं। मुझे भरोसा है कि जहां हमने‘नेशनल रिसर्चफाउंडेशन’ किया हैं वहीं हम‘नेशनल एजुकेशन टेक्नालॉजी फोरम’ का भी गठन कर रहे हैं जिसमें तकनीकी दृष्टि से बहुत तेजी से नीचे तक का विकास होगा और इसलिए चाहे शोध हों, अनुसंधान हो हर क्षेत्र मेंयहशिक्षा नीति तोभारत केंद्रित होगी। मुझे याद आता है जब हम इसका पालन कर रहे थे तो कपिल कपूर जी को मैने बुलाया वे मेरे यहां बैठे थे और चार पांच लोग थे। मैंने कहा कि आप एक-एक चीज का सुझाव लो और आपको मालूम है कि हमने33 करोड़छात्र-छात्राओं से विचार-विमर्श किया, यदि उनके माता-पिता को भी देखेंगे तो 99 करोड़ लोगों से परामर्श, शिक्षाविदों से परामर्श यहां तक की ग्रामप्रधान से लेकर के प्रधानमंत्री जी तक और गाँव से लेकर संसद तक एवं वैज्ञानिक से लेकर एनजीओतक कोई नहीं छोड़ा और उसके बाद भी इस शिक्षा नीति को हमने पब्लिक डोमेन में डालकर के कहा था कि अभी भी किसी के मन में किसी कोने पर कोई सुझाव है तो आप दीजिए और मुझे इस बात की खुशी है कि सवा दो लाख सुझाव हमारे पास आए और उनके विश्लेषण के लिए हमने तीन-तीन सचिवालय बनाए। कस्तूरीरंगन जी जो हमारी समिति के यशस्वी अध्यक्ष रहे हैं इनके लिए बैंगलोर में सचिवालय बनाया और इधर दो दिल्ली में भी सचिवालय बनाए और हमने एक-एक सुझाव का विशेषणकियाऔर इसके बाद यह अमृत निकला है। मुझे इस बात की खुशी है कि देश के अंदर एक उत्सव सा वातावरण है। नई शिक्षा नीति के आने के बाद लोगों को लगा कि अब कुछ होगा,छात्र खुश हैं, अभिभावक खुश है। अब बच्चों को बचपन से ही हम अपनी मातृभाषा में ला रहे हैं और उसके बाद कक्षा 6 से हम वोकेशनल पाठ्यक्रम ला रहे हैं वो भी इंटर्नशिप के साथ ला रहे हैं। इससे स्कूल से निकलने वाला बच्चा एक योद्धा के रूप में बाहर निकलेगा। और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पढ़ाने वाला हमारा देश दुनिया का पहला देश होगा जिसेस्कूली शिक्षा से हम शुरू कर रहे हैं। बच्चों को अबरिपोर्ट कार्ड नहींबल्किप्रोग्रेस कार्ड देंगे। अब उसका 360 डिग्री होलिस्टिक मूल्यांकन होगा वो अपना स्वयंमूल्यांकन करेगा, उसके अभिभावक उसका मूल्यांकन करेंगे, उसका साथी भी मूल्यांकन करेगा तथा उसका अध्यापक भी मूल्यांकन करेगा इसलिए वो जो बच्चा है वो फ्री है। हम चाहते हैं कि उसके अंदर की ऊर्जा पूरी ताकत के साथ बाहर निकले इसलिए बहुत सारे बदलावों के साथ यह नई शिक्षा नीति आई है जिसेन केवल इसदेश में बल्कि दुनिया के तमाम देशों में सराहना मिल रही है।मुझे इस बात को कहते हुए खुशी है कि पूरी दुनिया में ऐसा लगता है कि हिंदुस्तान इस समय बहुत तेजी से आगे बढ़ रहा हैं और आत्मनिर्भर भारत बननेकी दिशा में आगे बढ़ रहा है। हमारे देश को सोने की चिड़िया कहा जाता था और आज भी हमारे पास ज्ञान-विज्ञान की बड़ी सम्पदा मौजूद है। मुझे लगता है कि जिस तरीके से वर्तमान परिस्थितियोंमें देश के अंदर जो माहौल बना है वो उत्सव जैसा माहौल है। नई शिक्षा नीति का क्रियान्वयन हो जाने से अब अध्यापक की गरिमा। इसनीति को लागू करने वाला जो योद्धा है वो मेरा अध्यापक है और मुझे उन पर बहुत भरोसा है क्योंकि मैंने देखा है जबकोविड के समयपूरी दुनिया में आम लोग कैद हो गए थे तब मेरे अध्यापक ने कैसे काम किया।33छात्रों को एक साथ ऑनलाइन पर लाना इसके बारे में तोदुनिया सोचभी नहीं सकती और मुझे लगता है कि आप बच्चे को जिसकेअंदर ऊर्जा है, उसे कमरों में कैसे कैद कर देंगे। अगर ऐसे प्रयास नहीं होते तो अवसाद में बच्चे जाते लेकिन हम लोगों ने उस चुनौती को का मुकाबला किया और इसके लिए योद्धा की तरह मेरे अध्यापकने भूमिका निभाई। मुझे भरोसा है अध्यापकों पर क्योंकि मैं अपने संस्थानों की जबसमीक्षा करता हूं तो पाता हूं किविजनरीहैं हमारे अध्यापक। अध्यापकों को कैसे अत्याधुनिक जानकारी मिल सकती है इसलिएहमनेलीप प्रोग्राम भी किया, लीडरशिप काप्रोग्राम भी किया और हमने तो अर्पित प्रोग्राम भी किया। पिछले दिनों जब मैंने अध्यापकों के बारे में बोला तो मैंने कहीं कहा था कि अब आईएएस बनना तो सरल होगा लेकिन अध्यापक बनना कठिन होगा और लोगों में एक बार फिर यह भाषा आएगी किकाश मैंअध्यापक बन जाता तो कितना अच्छा होगामेरा भी सौभाग्य रहा है और मैंने एक सामान्य शिक्षक से लेकर शिक्षा मंत्री तक की यात्रा तय की है। मैं जानता हूं कि अध्यापक की कितनी बड़ी ताकत होती है। नेल्सन मंडेला ने कहा था कि शिक्षा ऐसा हथियार है जो कुछ भी कर सकता है। गांधी जी ने भी शिक्षा और शिक्षक के बारे में पूरी ताकत के साथ कहा था। हमारे देश के यशस्वी राष्टपति जिनका मुझे बहुत आशीर्वाद मिला डॉ. कलाम साहब से जबपूछा गया था कि आप क्या कहलाना पसंद करेंगे। डॉ. कलाम ने कहा था कि मैं अध्यापक कहलाना पसंद करूंगा। मेरे मरने के बाद कोई मुझे अध्यापक कहकेपुकारे, मुझे वो पसंद है। यह अध्यापक की गरिमा है और मुझे लगता है कि जो विद्या है वोऐसा धन है जिसको आप कहीं बाँट नहीं सकते। सभीदानों में श्रेष्ठ दान है विद्याऔर मुझे भरोसा है कि हम इस अभियान को आगे बढ़ाएंगे। मुझे गुरूजी पर भी भरोसा है मैंने उनको देखा है, सुना है। मुझे याद आता है जब मैं उत्तराखंड का मुख्यमंत्री था तब गुरूजी लंदन या अमेरिका से सीधे जहाज को लेकर के मुझसे मिलने के लिए देहरादून आये थे और जब उनसे बातचीत हुई तो मुझे बहुत सुख मिला। मुझे अच्छा लगा और आज उनके सानिध्य में यह जो विश्वविद्यालय निर्मित हुआ है इसमें निश्चित रूप सेभारत की आत्मा प्रवेश करेगी और फिर वही भारत विश्वगुरु भारत के रूप में पुन: स्थापित होगा। मुझे भरोसा है कि उसकी शुरुआत आज आपने की है। आपनेआत्मनिर्भर भारत, भारतीय ज्ञान परंपरा और अध्यापक विकास कार्यक्रम को नई शिक्षा नीति से जोड़ करके इस अभियान को आगे बढ़ाया है।मैंएक बार फिर जो लोग जुड़े हुए हैं उन सभी को शुभकामनाएं देता हूं।
बहुत-बहुत धन्यवाद!
कार्यक्रम में गरिमामयी उपस्थिति:-
- डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’, माननीय शिक्षा मंत्री, भारत सरकार
- श्री श्री रविशंकर, संस्थापक, श्री श्री विश्वविद्यालय, कटक, ओडिशा
- श्री अजय कुमार सिंह, कुलपति, श्री श्री विश्वविद्यालय, कटक, ओडिशा
- डॉ. रजिता कुलकर्णी, अध्यक्ष शासी मंडल, श्री श्री विश्वविद्यालय, कटक, ओडिशा
- प्रो. अनिल सहस्त्रबुद्धे, अध्यक्ष, एआईसीटीई
- प्रो. कपिल कुमार, प्रो.बी.सी. जोशी, प्रो. बी.के. त्रिपाठी, संकाय सदस्य एवं छात्र-छात्राएं।